Monday, September 24, 2018

वेद कुरान को, एक बताने वाले सेक्युलर ये सच्चाई जरुर पढ़ें..

24 September 2018

🚩सभी हिन्दू अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते हुए भी ईश्वर एक है यह मानते हैं । यहाँ चर्चा हिंदुओं की मान्यता या अमान्यता को लेकर नहीं है यहाँ विषय केवल, काफी लोगों द्वारा फैलाई गयी भ्रांतियों को साधारण रूप से दूर करना है क्योंकि इन भ्रांतियों में कभी-2 कुछ भोले लोग फंस जाते हैं । हिन्दू धर्म के मूल ग्रन्थ वेद हैं इसमें किसी हिन्दू को आपत्ति नहीं है इसलिए इनके निशाने पर वेद रहते हैं । मैं यहाँ इस छोटे से लेख में दोनो पुस्तकों, वेद और कुरान की समीक्षा नहीं कर रहा हूँ अभी के लिये केवल एक छोटी सी बात कहना चाहता हूँ । वैसे वेद और कुरान की आपस में तुलना करना ही तुच्छ लगता है फिर भी यदि आवश्यक हुआ तो उसको भी सप्रमाण लिख देंगे फिर कभी । अभी बस हिंदुओं एक छोटी सी बात समझ लो --
Read this truth to the Vedor Koran, the one telling the secular ..

🚩कुछ ब्लॉग जेहादियों द्वारा यह निरन्तर प्रचारित किया जा रहा है कि वेद और कुरान का एक ही सिद्धांत है वो कुरान को वेदों से और वेदों को कुरान से सत्यापित करते हैं और इस्लाम के पक्ष में माहौल बनाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं । इसमें अपने धर्म से अनभिज्ञ बेचारे हिन्दू जोकि सैंकड़ो वर्षों से धोखा खाते, इस्लाम द्वारा युद्धों को झेलते, धर्मान्तरण कराते हुए, इस्लाम के नाम पर देश के टुकड़े करवाते हुए, इस्लामिक आतंकवाद से मरते हुये भी प्रेम, भाई-चारे, शान्ति से अनावश्यक रूप से अत्यधिक ग्रसित बड़े ही गर्व के साथ हाँ में हाँ मिलाकर कहते हैं – हाँ धर्म तो सभी एक हैं सभी ईश्वर को एक मानते हैं, सभी प्रेम की शिक्षा देते हैं, वो तो लोग ही हैं जो कुछ का कुछ बना देते हैं । भाइयों जैसे साबुत उड़द, काला पत्थर, राई, काले कपड़े इत्यादि के कुछ एक गुण एक ही होते है तो क्या वे सब वस्तुएं एक ही हो गयी ? जबकि वो विभिन्न वस्तुऐं हैं । नमक और चीनी एक रंग के होते हैं किन्तु उनके स्वाद में कितना अन्तर होता है उसी प्रकार से यदि सभी मतों में ईश्वर एक माना गया भी है तो क्या शेष सभी बातों का भेद समाप्त हो जाता है । चलो थोड़ी देर के लिये मानो मैं आज एक नया मत चलाता हूँ और उस नये मत के अनुसार ईश्वर एक है यह कहता हूँ और साथ में किसी की भी हत्या करना पाप नहीं है ये कहता हूँ तो चलाया गया मत हिन्दू वेदानुसार कहलायेगा क्या ? कुछ हिंदुओं को अपने इतिहास में मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा की गयी बर्बादी को देखकर भी अक्ल नहीं आई तो कब आएगी और आज भी इस्लाम के आधार पर तुम्हे मारा जा रहा है, तुम्हारा धर्म-भ्रष्ट (कथित धर्म-परिवर्तन) किया जा रहा है । तुम्हारे ही मुंह पर ही तुम्हारे धर्म-ग्रन्थों का मजाक उड़ाया जा रहा है । मजे की बात यह है कि ये जेहादी वेदों का अर्थ अपने अनुसार दिखाकर या अनाप-शनाप बक कर उनका मजाक उड़ाते हैं, उनकी निंदा करते हैं, उसको अमान्य ठहराते हैं और फिर वेदों से ही कुरान की पुष्टि करते फिरते हैं । पुराणों का मजाक उड़ाया जाता है फिर कहीं से भविष्य पुराण के आधार पर ही मोहम्मद को अन्तिम अवतार घोषित किया जाता है । कुरान के अनुसार इस्लाम में अवतारवाद को अमान्य ठहराते हैं और अपने मजहब-प्रवर्तक को अन्तिम अवतार घोषित करते हैं । क्या मजाक लगा रखा है ये फिर भी कुछ हिन्दूओं की बुद्धि पर तरस आता है जो इनके प्रत्यक्ष छल को अन्धों की भांति देख ही नहीं पाते । कुरान या किसी भी मत में कुछ बात यदि सहीं भी लिखी हैं मतलब कि यदि वैदिक पुस्तकें भी उन कुछ बातों को मान्यता देती हैं किन्तु शेष सब बातों को गलत और अमान्य ठहराती हैं तो क्या वो मत वेदानुसार हो जायेंगे ? हिंदुओं मोहम्मद साहब का इतिहास और उसके विचार तो पढ़ो फिर बताना कि क्या इस्लाम कम्युनिज्म की तरह एक साम्राज्यवाद नहीं है, जिसको तुम जाने-अनजाने धर्म की संज्ञा देते हो । क्या तुम्हे इन प्रत्यक्ष जेहादियों की धूर्त सोच दिखाई नहीं देती जो तुम्हें डंके की चोट पर गाली देते हैं, तुम्हारा मजाक उड़ाते हैं फिर भी तुम इनका आलिंगन करने के लिये बेक़रार रहते हो । पूरा देश भी इसीका प्रत्यक्ष उदाहरण है पाकिस्तान से हजार जूते खाने पर भी उससे प्रेम की पींगे बजायी जा रही हैं । यहाँ की मीडिया, फिल्में, टी. वी. नेता इत्यादि सभी पाकिस्तान से प्रेम और भाई-चारे की बात करते नहीं थकते, जबकि पाकिस्तान यहाँ के लोगों की खोपड़ी में सूराख भी करता रहता है और इनके मुंह पर थूकता भी है ।
अब बहुत से हिंदुओं को भी इनके साथ ही इस लेख से आपत्ति हो सकती है कि तुमतो अमन, चैन-शान्ति भंग करने पर तुले हो तुम्हारा उद्देश्य क्या है वगैरह-2 । बताओ जी कौन सी शान्ति की बात करते हैं ? ये लोग इनकी बुद्धि को क्या हो गया है ? इतना मजहब के नाम पर अत्याचार होने पर और मारे जाने पर भी इनकी अक्ल सही नहीं होती तो कोई क्या कर सकता है । हर जेहादी या आतंकवादी, लोगों की हत्या के बाद डंके की चोट पर उसको इस्लाम के अनुसार बताता है, इन्ही के कुछ साथी इस बात को प्रसारित करते हैं कि यह मुसलामानों पर हुए अत्याचार की प्रतिक्रिया है, कुछ समर्थक कहेंगे ये भटके हुए जवान हैं आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, पर साथ में वो हत्यारे जेहादी खुलकर चिल्ला-2 कर कहते रहेंगे कि हम इस्लाम का युद्ध लड़ रहे हैं, पर हिन्दूओं को उन जेहादियों की आवाज़ नहीं सुनाई देती वो तो ढोंग भरी शान्ति या कायरता में ही मग्न रहता है ।


🚩मेरा उद्देश्य लोगों को सत्य से अवगत कराना है, हो सके तो हो जाओ वरना परिणाम भुगतने के लिये तैयार रहो । अभी तो पकिस्तान, बंगलादेश, काश्मीर और आंशिक कुछ प्रदेश ले ही लिये हैं । आगे-2 देखना हिंदुओं की यही सोच रही तो ये सारा भारत ले लेंगे । इन जेहादियों का साथ कुछ तथाकथित हिन्दू संत भी दे रहे हैं, जोकि भेड़ की खाल में छिपे भेड़िये हैं जो कि इनके साथ मिलकर शान्ति का राग गाने वाली हिन्दू भेड़ों(मूर्खों) को चुपचाप निगल रहे हैं । उदाहरण के तौर पर एक तथाकथित शंकराचार्य है, एक तथाकथित अग्निवेश व प्रमोद कृषण है ऐसे ही और भी हैं और कुछ लोगों को भी संन्यासी के भेष में लाकर इस्लाम की तारीफ़ करवाते फिरते हैं वेदों के अनुसार बतलाते हैं । यदि इनकी धूर्तता कुछ लोगो को नहीं दिखाई देती उनके बारे में यही कह सकते हैं--
विनाशकाले विपरीत बुद्धि !! - हिन्दू लेखक


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Sunday, September 23, 2018

श्राद्ध का अर्थ एवं श्राद्धविधि का इतिहास आप भी जान लीजिए...

23 September 2018

श्राद्धविधि हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण आचार है तथा वेदकाल का आधार है । अवतारों ने भी श्राद्धविधि किए हैं, ऐसा उल्लेख है । श्राद्ध का अर्थ क्या है, उसका इतिहास तथा श्राद्धविधि करने का उद्देश्य, इस लेख से समझ लेते हैं ।

🚩व्युत्पत्ति एवं अर्थ :-

‘श्रद्धा’ शब्द से ‘श्राद्ध’ शब्द की निर्मिति हुई है । इहलोक छोड़ गए हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए जो कुछ किया, वह उन्हें लौटाना असंभव है । पूर्ण श्रद्धा से उनके लिए जो किया जाता है, उसे ‘श्राद्ध’ कहते हैं ।
Know the meaning of Shraddha
and the history of Shraddha rituals ...

व्याख्या :-

ब्रह्मपुराण के ‘श्राद्ध’ अध्याय में श्राद्ध की निम्न व्याख्या है –
देशे काले च पात्रे च श्रद्धया विधिना च यत् ।
पित¸नुद्दिश्य विप्रेभ्यो दत्तं श्राद्धमुदाहृतम् ।। – ब्रह्मपुराण

अर्थ : देश, काल तथा पात्र (उचित स्थान)के अनुसार, पितरों को उद्देशित कर ब्राह्मणों को श्रद्धा एवं विधियुक्त जो (अन्नादि) दिया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं ।

🚩समानार्थी शब्द :-

श्राद्धात्व पिंड, पितृपूजा, पितृयज्ञ

🚩श्राद्ध एक विधि:-

‘श्राद्ध’ का अर्थ पितरों का मात्र कृतज्ञतापूर्वक स्मरण नहीं; अपितु यह एक विधि है ।’

🚩श्राद्धविधि का इतिहास :-

‘श्राद्धविधि की मूल कल्पना ब्रह्मदेव के पुत्र अत्रिऋषि की है । अत्रिऋषि ने निमी नामक अपने एक पुरुष वंशज को ब्रह्मदेवद्वारा बताई गई श्राद्धविधि सुनाई । यह रूढ़ आचार आज भी होता है ।

मनु ने प्रथम श्राद्धक्रिया की, इसलिए मनु को श्राद्धदेव कहा जाता है ।

🚩लक्ष्मण एवं जानकी सहित श्रीराम के वनवास-प्रस्थान के उपरांत, भरत वनवास में उनसे जाकर मिलते हैं एवं उन्हें पिता के निधन का समाचार देते हैं । तदुपरांत श्रीराम यथाकाल पिता का श्राद्ध करते हैं, ऐसा उल्लेख रामायण में (श्रीरामचरितमानस में) है ।

इतिहासक्रम से रूढ़ हुर्इं श्राद्ध की तीन अवस्थाएं एवं वर्तमानकाल की अवस्था :-

🚩1. अग्नौकरण
ऋग्वेदकाल में समिधा तथा पिंड की अग्नि में आहुति देकर पितृपूजा की जाती थी ।

🚩2. पिंडदान (पिंडपूजा)

यजुर्वेद, ब्राह्मण तथा श्रौत एवं गृह्य सूत्रों में पिंडदान का विधान है । गृह्यसूत्रों के काल में पिंडदान प्रचलित हुआ । ‘पिंडपूजा का आरंभ कब हुआ, इसके विषय में महाभारत में निम्नलिखित जानकारी (पर्व 12, अध्याय 3, श्लोक 345) है – श्रीविष्णु के अवतार वराहदेव ने श्राद्ध की संपूर्ण कल्पना विश्व को दी । उन्होंने अपनी दाढ से तीन पिंड निकाले और उन्हें दक्षिण दिशा में दर्भ पर रखा । ‘इन तीन पिंडों को पिता, पितामह (दादा) एवं प्रपितामह (परदादा)का रूप समझा जाए’, ऐसा कहते हुए उन पिंडों की शास्त्रोक्त पूजा तिल से कर वराहदेव अंतर्धान हुए । इस प्रकार वराहदेव के बताए अनुसार पितरों की पिंडपूजा आरंभ हुई ।’

‘छोटे बच्चे एवं संन्यासियों के लिए पिंडदान नहीं किया जाता; क्योंकि उनकी शरीर में आसक्ति नहीं होती । पिंडदान उनके लिए किया जाता है, जिन्हें सांसारिक विषयों में आसक्ति रहती है ।’

🚩3. ब्राह्मण भोजन :-

गृह्यसूत्र, श्रुति-स्मृति के आगे के काल में, श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन आवश्यक माना गया और वह श्राद्धविधि का एक प्रमुख भाग सिद्ध हुआ । 

🚩4. उक्त तीनों अवस्थाएं एकत्रित :-

वर्तमानकाल में ‘पार्वण’ श्राद्ध में उक्त तीनों अवस्थाएं एकत्रित हो गई हैं । धर्मशास्त्र में यह श्राद्ध गृहस्थाश्रमियों को कर्तव्य के रूप में बताया गया है । संदर्भ : सनातन का ग्रंथ श्राद्ध (भाग 1) श्राद्धविधि का अध्यात्मशास्त्रीय आधार

🚩श्राद्ध के विषय में प्राचीन ग्रंथों के संदर्भ :-

मृत व्यक्ति के तिथि के श्राद्ध के अतिरिक्त अन्य समय कितना भी स्वादिष्ट पदार्थ अर्पित किया जाए, पूर्वज ग्रहण नहीं कर पाते । बिना मंत्रोच्चार के समर्पित पदार्थ पूर्वजों को नहीं मिलते । – (स्कंद पुराण, माहेश्‍वरी खंड, कुमारिका खंड, अध्याय 35/36)

🚩मृत पूर्वजों को भू और भुव लोकों से आगे जाने के लिए गति प्राप्त हो; इसलिए हिन्दू धर्म में श्राद्ध करने के लिए कहा गया है । श्राद्ध न करने से व्यक्ति में कौन-से दोष उत्पन्न हो सकते हैं, इसका भी वर्णन विविध धर्मग्रंथों में मिलता है । 

🚩1. ऋग्वेद

त्वमग्न ईळितो जातवेदोऽवाड्ढव्यानि सुरभीणि कृत्वी ।
प्रादाः पितृभ्यः स्वधया ते अक्षन्नद्धि त्वं देव प्रयता हवींषि ॥
– ऋग्वेद, मण्डल 10, सूक्त 15, ऋचा 12

अर्थ : हे सर्वज्ञ अग्निदेव, हम आपकी स्तुति करते हैं । आप हमारे द्वारा समर्पित इन हवनीय द्रव्यों को सुगंधित बनाकर, हमारे पूर्वजों तक पहुंचाइए । हमारे पूर्वज स्वधा के रूप में दिए गए इस हवनीय द्रव्य का भक्षण करें । हे भगवन ! आप भी हमसे समर्पित इस हविर्भाग का भक्षण कीजिए ।

🚩2. कूर्मपुराण

अमावास्वादिने प्राप्ते गृहद्वारं समाश्रिताः ।
वायुभूताः प्रपश्यन्ति श्राद्धं वै पितरो नृणाम् ॥
यावदस्तमयं भानोः क्षुत्पिपासासमाकुलाः ।
ततश्‍चास्तंगते भानौ निराशादुःखसंयुताः ।
निःश्‍वस्य सुचिरं यान्ति गर्हयन्तः स्ववंशजम् ।
जलेनाऽपिचन श्राद्धं शाकेनापि करोति यः ॥ 
अमायां पितरस्तस्य शापं दत्वा प्रयान्ति च ॥ 
– कूर्मपुराण

अर्थ : (मृत्यु के पश्‍चात) वायुरूप बने पूर्वज, अमावस्या के दिन अपने वंशजों के घर पहुंचकर देखते हैं कि उनके लिए श्राद्ध भोजन परोसा गया है अथवा नहीं । भूख-प्यास से व्याकुल पितर सूर्यास्त तक श्राद्ध भोजन की प्रतीक्षा करते हैं । न मिलने पर, निराश और दुःखी होते हैं तथा आह भरकर अपने वंशजों को चिरकाल दोष देते हैं । ऐसे समय जो पानी अथवा सब्जी भी नहीं परोसता, उसको उसके पूर्वज शाप देकर लौट जाते हैं ।

🚩3. आदित्यपुराण

न सन्ति पितरश्‍चेति कृत्वा मनसि वर्तते । 
श्राद्धं न कुरुते यस्तु तस्य रक्तं पिबन्ति ते ॥  
– आदित्यपुराण

अर्थ : मृत्यु के पश्‍चात पूर्वजों का अस्तित्व नहीं होता, ऐसा मानकर जो श्राद्ध नहीं करता, उसका रक्त उसके पूर्वज पीते हैं ।

🚩4. मार्कंण्डेयपुराण

श्राद्ध न करने से प्राप्त दोष

न तत्र वीरा जायन्ते नाऽऽरोग्यं न शतायुषः । 
न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति यत्र श्राद्धं विवर्जितम् ॥ 
– मार्कण्डेयपुराण

अर्थ : जहां श्राद्ध नहीं होता, उसके घर लड़का (वीराः) नहीं जन्मता । (जन्मीं तो केवल लडकियां ही जन्मती हैं ।), उस परिवार के लोग स्वस्थ्य और शतायु नहीं होते तथा उनको आर्थिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं अथवा संतुष्टि नहीं प्राप्त होती । (न च श्रेयः) 
(संदर्भ : श्राद्धकल्पकता, पृष्ठ ६)

इस संदर्भ से ज्ञात होता है कि श्राद्धकर्म न करने से पितर रूठ जाते हैं । इससे उनके वंशजों को कष्ट होता है । सब उपाय करने पर भी जब कष्ट दूर न हो, तब समझना चाहिए कि यह पूर्वजों के रुष्ट होने के कारण हो रहा है ।

🚩5. गरुड़ पुराण

अमावस्या के दिन पितृगण वायुरूप में घर के द्वार के निकट उपस्थित होते हैं तथा अपने परिजनों से श्राद्ध की अपेक्षा रखते हैं । भूख-प्यास से व्याकुल वे सूर्यास्त तक वहीं खडे रहते हैं । इसलिए, पितृपक्ष की अमावस्या तिथि पर श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ।

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Saturday, September 22, 2018

जानिए अमेरिका और वेटिकन सिटी ने भारत के देशभक्तों को कैसे जेल भेजा ?

22 September 2018

🚩भारत का इतिहास रहा है कि जब-जब कोई व्यक्ति, महापुरुष देश के लिए अच्छा कार्य करना चाहते हैं, तब-तब विदेशी लोगों को यह रास नहीं आता है, परिणाम स्वरूप वे उनके खिलाफ भयंकर षड्यंत्र चालू कर देते हैं और हथकंडा अपने ही लोगों को बनाते है ऐसे एक दो नहीं, लेकिन हजारो-लाखों उदाहरण है ।

🚩सुभाष चन्द्र बोस देश को आज़ादी दिलाने करीब ही थे और उनकी हत्या हो गई, लाल बहादुर शास्त्री देश के लिए महान कार्य कर रहे थे, अचानक गायब हो गए और उनकी हत्या हो गई । श्री राजीव दीक्षित देश को नया रूप देने का कार्य कर रहे थे और अचानक हत्या हो गई, उड़ीसा के स्वामी लक्ष्मणानन्द जी धर्मान्तरण पर रोक लगा रहे थे और उनकी हत्या हो गई ।

🚩हिन्दू राष्ट्र के लिए कार्य करने वाली
साध्वी प्रज्ञा जी को बिना सबूत 9 साल जेल में रखकर प्रताड़ित किया गया । धर्मान्तरण रोकने वाले शंकरचार्य जी और स्वामी असीमानंद जी को जेल भिजवाया था ।
ऐसे ही देश हित में कार्य करने वाले श्री डी.जी. वंजारा जी, कर्नल पुरोहित को सालों से जेल में रखा गया ।
Know how the US and Vatican City sent prisoners of India to jail?

🚩वर्तमान में दो उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं :- 

पहला वैज्ञानिक नंबी नारायणन जी का,
नंबी नारायणन को 1994 में केरल पुलिस ने जासूसी और भारत की रॉकेट टेक्नोलॉजी दुश्मन देश को बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया था ।

🚩यह सारी कवायद भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को ध्वस्त करने की नीयत से हो रही थी, ये वो दौर था जब भारत जैसे देश अमेरिका से स्पेस टेक्नोलॉजी करोड़ों रुपये में किराये पर लिया करते थे । भारत के आत्मनिर्भर होने से अमेरिका को अपना कारोबारी नुकसान होने का डर था । जिसके लिए सी.आई.ए. ने वामपंथी पार्टियों को अपना हथियार बनाया ।
एस.आई.टी. के जिस अधिकारी सी.बी. मैथ्यूज़ ने नंबी के खिलाफ जांच की थी, उसे कम्युनिस्ट सरकार ने बाद में राज्य का डी.जी.पी. बना दिया, सी.बी. मैथ्यूज के अलावा तब के एस.पी. के.के. जोशुआ और एस. विजयन के भी इस साजिश में शामिल होने की बात सामने आ चुकी है ।

🚩सी.बी.आई. की जांच में ही इस बात के संकेत मिल गए थे कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सी.आई.ए
 के एक अधिकारी के इशारे पर केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने नंबी को साजिश का शिकार बनाया, एक इतने सीनियर वैज्ञानिक को न सिर्फ गिरफ्तार करके लॉकअप में बंद किया गया, बल्कि उन्हें टॉर्चर किया गया कि वो बाकी वैज्ञानिकों के खिलाफ गवाही दे सकें ।

🚩परिणाम स्वरूप क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी विकसित होने में 15 साल की देरी हो गई और इस वजह से हमें अबतक लाखों डॉलर का नुकसान हो चुका है ।

🚩दूसरा है हिन्दू संत आसाराम बापू का
उन्होंने ऐसे-ऐसे कार्य किये जिससे वेटिकन सिटी तक हिल गई थी...

1). ईसाई मिशनरियों को खुली 
चुनौती दिया, लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को 
पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया ।

2) . कत्लखाने में जाती हज़ारों
गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया ।

🚩3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में 
स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद 
जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया ।

4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को 
बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाने वाले हैं संत आशारामजी बापू ।

🚩5). लाखों करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत मंत्र की दीक्षा देकर, तेजस्वी बनाया ।

6). पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका 
और बहुत सारे देशों में जाकर 
सनातन हिंदू धर्म का ध्वज 
फहराया ।

🚩7). 100 से ज्यादा देशों में आश्रमों 
को स्थापित कर हिंदुत्व का 
विस्तार किया ।

8). वेलेंटाइन डे का विरोध करके 
"मातृ-पितृ पूजन दिवस" 
का प्रारम्भ करवाया ।

🚩9). क्रिसमस डे के दिन क्रिसमस ट्री 
के बजाय, तुलसी पूजन दिवस 
मनाने शुरू करवाया ।

10). लाखों-करोड़ों लोगों को अधर्म से 
धर्म की ओर मोड़ दिया ।

🚩11). बिकाऊ मीडिया को प्रचार-प्रसार के लिए रुपयों के पैकेज ना देकर, गरीबों में भंडारा व जीवनोपयोगी वस्तुएं दीं ।

12). गरीब इलाकों में 
चलचिकित्सालय चलवाकर 
निःशुल्क दवाईयाँ उपलब्ध 
करवाई ।

🚩13). नशा मुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसन-मुक्त करया ।

14). गिरते युवावर्ग को "दिव्य प्रेरणा प्रकाश" जैसी पुस्तकों द्वारा ब्रह्मचर्य की महिमा बताकर करोड़ों युवाओं को संयमी जीवन की ओर अग्रसर किया ।

🚩15). वैदिक शिक्षा पर आधारित 
अनेकों गुरुकुल खुलवाए ।

16). पिछले 50 वर्षों से लगातार आदिवासियों के बीच मुफ्त भंडारा 
मकान, कपड़े, अनाज व दक्षिणा बाँटा ।

🚩17). मुश्किल हालातों में कांची कामकोठी पीठ के "शंकराचार्य श्री #जयेंद्र सरस्वतीजी" 
बाबा रामदेव, मोरारी बापूजी, साध्वी प्रज्ञा
एवं अन्य संतों का साथ दिया ।

हिन्दू संत आसाराम बापू कर इन महान कार्य करने के कारण विदेशी शक्तियों को यह रास नहीं आया, वेटिकन सिटी उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गई और सोनिया गांधी के इशारे पर झूठा मुदकमा दर्ज हुआ और मीडिया द्वारा बदनाम करके जेल भिजवाया गया ।

🚩युवावस्था में अपनी सुंदर पत्नी को छोड़कर ईश्वर प्राप्ति के लिए गृह त्याग करनेवाले कारक महापुरुष क्या ऐसा गलत कार्य कर सकते हैं?

जिनके दर्शन सत्संग से सैकड़ो युवान/युवतियाँ ने संसार विमुख होकर ईश्वर प्राप्ति के लिए सन्यास जीवन स्वीकारा, क्या वे संत स्वयं ऐसा गलत कार्य कर सकते हैं ???

🚩जिन-जिन महापुरुषों ने देश, संस्कृति, समाज के लिए अच्छे कार्य किये है उनके खिलाफ षड्यंत्र हुआ है, इस षडयंत्र से उन महापुरुष को नुकसान नहीं होता है, नुकसान समाज को होता है । उन्होंने तो अपना कार्य कर लिया अब हमारी बारी है हम उनके लिए क्या करते हैं? षड्यंत्र के खिलाफ आवाज उठाते हैं कि नहीं यही हमारी परीक्षा की घड़ी है ।

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Friday, September 21, 2018

जाने श्राद्ध क्यों करना चाहिए ? कैसे करें ? नहीं करने से कितनी हानि होती है ?

21 September 2018
http://azaadbharat.org
श्राद्ध पक्ष : 24 सितम्बर से 8 अक्टूबर तक
🚩 भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता है कि जीते-जी तो विभिन्न संस्कारों के द्वारा, धर्मपालन के द्वारा मानव को समुन्नत करने के उपाय बताती ही है, लेकिन मरने के बाद, अंत्येष्टि संस्कार के बाद भी जीव की सदगति के लिए किए जाने योग्य संस्कारों का वर्णन करती है ।
🚩#मरणोत्तर क्रियाओं-संस्कारों का वर्णन हमारे #शास्त्र-पुराणों में आता है । #आश्विन(गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) के कृष्ण पक्ष को हमारे #हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के रूप में मनाया जाता है । श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में यथास्थान किया गया है ।
Why should Shraddha go? How to do ?
 How much damage does it take?

🚩 दिव्य लोकवासी पितरों के पुनीत आशीर्वाद से आपके कुल में दिव्य आत्माएँ #अवतरित हो सकती हैं । जिन्होंने जीवन भर खून-पसीना एक करके इतनी साधन-सामग्री व संस्कार देकर आपको सुयोग्य बनाया उनके प्रति सामाजिक कर्त्तव्य-पालन अथवा उन पूर्वजों की प्रसन्नता, ईश्वर की प्रसन्नता अथवा अपने हृदय की शुद्धि के लिए सकाम व निष्काम भाव से यह #श्राद्धकर्म करना चाहिए ।
🚩हिन्दू #धर्म में एक अत्यंत सुरभित पुष्प है कृतज्ञता की भावना, जो कि बालक में अपने माता-पिता के प्रति स्पष्ट परिलक्षित होती है । हिन्दू धर्म का व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा तो करता ही है, उनके #देहावसान के बाद भी उनके कल्याण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है । 'श्राद्ध-विधि' इसी भावना पर आधारित है ।
🚩 #मृत्यु के बाद #जीवात्मा को उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ कर्मानुसार #स्वर्ग नरक में स्थान मिलता है । पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुनः मृत्युलोक (पृथ्वी) में आता है । स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना यह देवयान मार्ग है ।
🚩पितृयान मार्ग से जाने वाले जीव पितृलोक से होकर चन्द्रलोक में जाते हैं । #चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं । यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है । अतः #कृष्ण पक्ष में वंशजों को उनके लिए आहार पहुँचाना चाहिए, इसलिए श्राद्ध एवं पिण्डदान की व्यवस्था की गयी है । शास्त्रों में आता है कि अमावस्या के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना चाहिए ।
🚩आधुनिक विचारधारा एवं नास्तिकता के समर्थक शंका कर सकते हैं किः "यहाँ #दान किया गया अन्न पितरों तक कैसे पहुँच सकता है ?"
🚩 #भारत की मुद्रा 'रुपया' अमेरिका में 'डॉलर' एवं लंदन में 'पाउण्ड' होकर मिल सकती है एवं अमेरिका के डॉलर जापान में येन एवं दुबई में दीनार होकर मिल सकते हैं । यदि इस #विश्व की नन्हीं सी #मानव रचित सरकारें इस प्रकार मुद्राओं का रुपान्तरण कर सकती हैं तो ईश्वर की सर्वसमर्थ सरकार आपके द्वारा #श्राद्ध में अर्पित वस्तुओं को पितरों के योग्य करके उन तक पहुँचा दे, इसमें क्या आश्चर्य है ?
🚩मान लो, आपके #पूर्वज अभी पितृलोक में नहीं, अपित मनुष्य रूप में हैं । आप उनके लिए श्राद्ध करते हो तो श्राद्ध के बल पर उस दिन वे जहाँ होंगे वहाँ उन्हें कुछ न कुछ लाभ होगा ।
🚩मान लो, आपके पिता की मुक्ति हो गयी हो तो उनके लिए किया गया #श्राद्ध कहाँ जाएगा ? जैसे, आप किसी को मनीआर्डर भेजते हो, वह व्यक्ति मकान या आफिस खाली करके चला गया हो तो वह #मनीआर्डर आप ही को वापस मिलता है, वैसे ही श्राद्ध के निमित्त से किया गया दान आप ही को विशेष लाभ देगा।
🚩#दूरभाष और दूरदर्शन आदि यंत्र, हजारों किलोमीटर का अंतराल दूर करते हैं, यह प्रत्यक्ष है । इन यंत्रों से भी मंत्रों का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है ।
🚩 देवलोक एवं पितृलोक के वासियों का आयुष्य मानवीय आयुष्य से हजारों वर्ष ज्यादा होता है । इससे पितर एवं पितृलोक को मानकर उनका लाभ उठाना चाहिए तथा श्राद्ध करना चाहिए।
🚩भगवान श्रीरामचन्द्रजी भी श्राद्ध करते थे । पैठण के महान आत्मज्ञानी संत हो गये श्री #एकनाथ जी महाराज, पैठण के निंदक ब्राह्मणों ने एकनाथ जी को जाति से बाहर कर दिया था एवं उनके श्राद्ध-भोज का बहिष्कार किया था । उन योगसंपन्न एकनाथ जी ने ब्राह्मणों के एवं अपने पितृलोक वासी पितरों को बुलाकर भोजन कराया । यह देखकर पैठण के ब्राह्मण चकित रह गये एवं उनसे अपने अपराधों के लिए #क्षमायाचना की ।
🚩जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान एवं धर्म के संस्कारों का सिंचन किया उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध से प्रसन्न करने के दिन ही हैं श्राद्धपक्ष । श्राद्धपक्ष आश्विन के (गुजरात-महाराष्ट्र में भाद्रपद के) कृष्ण पक्ष में की गयी श्राद्ध-विधि गया क्षेत्र में की गयी #श्राद्ध-विधि के बराबर मानी जाती है । इस विधि में मृतात्मा की पूजा एवं उनकी इच्छा-तृप्ति का सिद्धान्त समाहित होता है ।
🚩प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर #देवऋण, #पितृऋण एवं #ऋषिऋण रहता  है। श्राद्धक्रिया द्वारा पितृऋण से मुक्त हुआ जाता है । देवताओं को यज्ञ-भाग देने पर देवऋण से मुक्त हुआ जाता है । ऋषि-मुनि-संतों के विचारों को, आदर्शों को अपने जीवन में उतारने से, उनका प्रचार-प्रसार करने से एवं उन्हें लक्ष्य मानकर आदरसहित आचरण करने से ऋषिऋण से मुक्त हुआ जाता है ।
🚩पुराणों में आता है कि आश्विन(गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) कृष्ण पक्ष की अमावस (पितृमोक्ष अमावस) के दिन सूर्य एवं चन्द्र की युति होती है । सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है । इस दिन हमारे पितर यमलोक से अपना निवास छोड़कर सूक्ष्म रूप से मृत्युलोक (पृथ्वीलोक) में अपने वंशजों के निवास स्थान में रहते हैं । अतः उस दिन उनके लिए विभिन्न श्राद्ध करने से वे तृप्त होते हैं ।
🚩 गरुड़ पुराण (10.57-59) में आता है कि ‘समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दु:खी नहीं रहता । पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशुधन, सुख, धन और धान्य प्राप्त करता है ।
🚩‘हारीत स्मृति’ में लिखा है :
न तत्र वीरा जायन्ते नारोग्यं न शतायुष: |
न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति यंत्र श्राद्धं विवर्जितम ||
🚩‘जिनके घर में श्राद्ध नहीं होता उनके कुल-खानदान में वीर पुत्र उत्पन्न नहीं होते, कोई निरोग नहीं रहता । किसी की लम्बी आयु नहीं होती और उनका किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त होता ( किसी – न - किसी तरह की झंझट और खटपट बनी रहती है ) ।’
🚩महर्षि सुमन्तु ने कहा : “श्राद्ध जैसा कल्याण - मार्ग गृहस्थी के लिए और क्या हो सकता है । अत: बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए ।”
🚩अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :
“हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं ।
🚩 श्राद्ध पक्ष में रोज भगवदगीता के सातवें अध्याय का पाठ और 1 माला माला द्वादश मंत्र ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” और एक माला "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा" की करनी चाहिए और उस पाठ एवं माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए।
🚩श्राद्ध कैसे करें, लिंक क्लिक करके देखिये👇
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