Saturday, October 13, 2018

श्रीलंका में हिंदुओं का ईसाई मिशनरियां जोर शोर से करवा रही है धर्मान्तरण

13 October 2018

🚩दुनिया में हिन्दू कही भी रहता हो उनको मिटाने की कोशिशें की जा रही हैं, कभी लालच देकर तो कभी भय दिखाकर धर्मान्तरण करवाया जा रहा है जिससे दुनिया के नक्शे से हिन्दू जाति को पूर्णतः मिटा दिया जाए ।
Christian missionaries of Hindus are making loud noise in Sri Lanka

🚩श्री. मरवनपुलावु सच्चिदानंदन श्रीलंका के हिन्दुत्वनिष्ठ, साथ ही हिन्दू समाज एवं मंदिरों की रक्षा करनेवाला संगठन ‘शिवसेनाई’ के संस्थापक हैं एवं उन्होंने साधना के आध्यात्मिक स्तर को प्राप्त किया है। श्रीलंका में ईसाई मिशनरियों द्वारा हिन्दुआें के हो रहे धर्मांतरण के विरोध में श्री. सच्चिदानंदन द्वारा किया गया संघर्ष उन्हीं की शब्दों में यहां प्रस्तुत कर रहे हैं . . .

🚩1. विरोध करनेवाले हिन्दुआें पर ईसाई मिशनरियोंद्वारा धर्मांतर का दबाव :-

17 सितंबर 2018 को मैं श्रीलंका के एक दुर्गम क्षेत्र में स्थित कात्तैय्यादम्पण चेत्तीरामामाकन् गांव में कुछ हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताओं के साथ गया था । वहां के एक गिरे हुए मंदिर में वहां के हिन्दू श्रद्धालु भगवान शिवजी का नामजप कर रहे थे । जप समाप्त होने पर वे हमारे पास एकत्रित बैठ कर अपनी व्यथाएं बताने लगें ।

🚩एक वयस्क महिला ने बताया कि उस गांव में ईसाई मिशनरी हिन्दुआें का बलपूर्वक धर्मांतरण कर रहे हैं । गांव के 50 हिन्दू परिवारों में से 15 परिवारों ने ईसाई धर्म का स्वीकार किया है । उन्हें अन्न, कपड़े और घर का लालच दिखाकर उनका धर्मांतरण किया गया; परंतु शेष 36 हिन्दू परिवारों ने ईसाई धर्म में प्रवेश करना अस्वीकार किया, जिसकी वजह से उन पर दबाव डालने के प्रयास चल रहे हैं । उस गांव में ईसाईयों द्वारा एक चर्च भी बनाया गया है । दूसरी ओर वहां के हिन्दुआें के पास इस एकमात्र गिरे हुए मंदिर का पुननिर्माण करने के लिए भी पैसे नहीं हैं । यहां के हिन्दू चाहे दयनीय जीवन जी रहे हैं; परंतु अभी भी उनमें स्वाभिमान जागृत है । इस गांव के हिन्दू पुजारियों को दक्षिणा न मिलने से वे इस मंदिर में नहीं आते ।

🚩2. सरकारी विद्यालयों में ईसाई धर्म की शिक्षा; परंतु हिन्दुआें के धर्माचरण पर प्रतिबंध :-

इस गांव में हिन्दू धर्म की जानकारी देनेवाला कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं हैं । यहां के बच्चे निकट के सरकारी विद्यालय में जाते हैं, जहां ईसाई पंथ की प्रबलता है। वहां लड़कों के विभूति लगाने एवं लड़कियों के कंगन पहनने पर प्रतिबंध है । लड़कों के हाथों में बांधे गए लाल धागे तोड़ दिए जाते हैं । कुछ अभिभावकों ने इसके विरोध में शिक्षाधिकारी के पास फरियाद की जिसके बाद विद्यालय की प्रधानाध्यापिका ने इनके बच्चों को दंडित करना आरंभ कर दिया । सरकारी विद्यालयों में ईसाई पंथ की शिक्षा दी जाती है; परंतु हिन्दू धर्म की शिक्षा कहीं भी नहीं दी जाती ।

🚩3. गांव में हिन्दुआें को धर्म की जानकारी देकर उनके उद्बोधन हेतु किए गए प्रयास :-

मैने वहीं से जर्मनी में रहनेवाले मेरे परिचय के एक व्यक्ति को भ्रमणभाष कर श्रीलंका के कात्तैय्यादम्पण चेत्तीरामामाकन् गांव में हिन्दू धर्म की जानकारी देनेवाली पुस्तकें भेजने का अनुरोध किया और उसने उसे स्वीकार किया । यह सुनते ही वहां उपस्थित हिन्दुआें के मुखकमल आनंदित हो गए । मैने उन्हें एक लघुउद्योग आरंभ कर उससे होनेवाली आय से मंदिर के नवनिर्माण करने की सूचना की, जिसे सभी ने स्वीकार किया, साथ ही मैने उन्हें उनके मन में व्याप्त भय को निकाल देने का भी आवाहन किया और उन्हें ईश्‍वर उनके साथ हैं, इस बात से उन्हें आश्‍वस्त किया । उसके पश्‍चात मैं कार्यकर्ताआें के साथ एक हिन्दू के घर गया । वहां की एक युवती ने धर्मांतरण किया था । हमने उसे समझा कर उसको पुनः हिन्दू धर्म में लिया और घर पर लगाने के लिए एक नंदीध्वज दिया ।

🚩4. श्रीलंका में हिन्दुआें की जनसंख्या में कमी, तो ईसाईयों की जनसंख्या में वृद्धि :-

श्रीलंका में विगत 12 वर्षों में ईसाईयों की जनसंख्या 44 प्रतिशत से बढ़ी, तो हिन्दुआें की जनसंख्या 16 प्रतिशत से न्यून हुई । लगभग 400 वर्ष पूर्व पोर्तुगीजों ने श्रीलंका में मन्नार में कदम रखा और हिन्दुआें का धर्मांतरण प्रारंभ हुआ । तत्कालीन हिन्दू राजा ने 400 धर्मांतरित लोगों का शिरच्छेद किया । आज ही पेसालाई गांव में प्रार्थना कर इन धर्मांतरितों को श्रद्धांजली दी जाती है; परंतु 400 वर्ष पूर्व प्रारंभ किया गया धर्मांतरण आज भी अन्न, वस्त्र और निवास का लालच दिखाकर चल ही रहा है ।

🚩5. शिवसेनाई संगठन द्वारा धर्मांतरण करनेवाले ईसाईयों का विरोध :-

लिबरेशन टाईगर्स ऑफ तमिल ईलम् (एलटीटीई) के विरोध में चल रहा युद्ध समाप्त होने के पश्‍चात विगत 7 वर्षों में वहां के हिन्दुआें के धर्मांतरण की घटनाआें की गति अधिक तीव्र हो गई । वर्ष 2016 में हमने इस धर्मांतरण के विरोध में संघर्ष करने के लिए ‘शिवसेनाई’ इस संगठन की स्थापना की । हमारे स्वयंसेवक गांव-गांव घूमने लगे । उन्होंने गांव-गांव में लगाए गए क्रॉस हटा दिए । मंदिरों की ओर जानेवाली सड़कों पर खड़ी की गई बाधाआें को दूर किया । ईसाईयों द्वारा धमकियां दी जाने से बंद किए गए हिन्दू त्योहारों को पुनः मनाना आरंभ किया गया । गांव-गांव में हिन्दुआें के घरों के सामने नंदीध्वज खड़े किए गए । चर्च के पदाधिकारियों ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को लिखे गए पत्रों में शिवसेनाई संगठन के विरोध के कारण नए क्षेत्रों में धर्मांतरण के कार्य में बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं, इसे अनुमोदित किया ।

🚩इस क्षेत्र में 6 हजार हिन्दू परिवार रहते हैं। उन सभी के सामने धर्मांतरण का संकट है । चर्च के पास युरोप और अमेरिका से आनेवाली प्रचुर धनराशि उपलब्ध है । हिन्दुआें का मनोबल गिराने के लिए इस धनराशि का दुरूपयोग किया जा रहा है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

🚩ईसाई मिशनरियों का एक ही लक्ष्य बन गया है , दुनिया में एक भी हिन्दू नहीं बचना चाहिए, सभी हिदुओं को ईसाई बना दो जिससे बड़ी वोटबैंक बन जाये और हम पूरे विश्व मे अपना राज कर सकें । हिंदुओं आप सभी ईसाई मिशनरियों से सावधान रहें नहीं तो ये लोग लालच देकर आपका धर्मपरिवर्तन करवाकर आपको धर्म से च्युत कर देंगे और फिर से गुलामी की जंजीरो में जकड़ देंगे ।

🚩सभी हिन्दुओं का कर्त्तव्य है कि एक दूसरे की आर्थिक या किसी भी तरह की परेशानी हो तो उनकी मदद करें, जाति-पाति भूलकर एक रहें । धर्मान्तरण करने वालों का संघठित होकर विरोध करें ।

🚩स्वामी विवेकानन्दजी की इस बात को हमेशा याद रखें उन्होंने कहा था कि हिन्दू समाज में से एक मुस्लिम या ईसाई बने, इसका मतलब यह नहीं कि एक हिन्दू कम हुआ बल्कि हिन्दू समाज का एक दुश्मन और बढ़ गया ।

🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻


🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk

🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt

🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf

🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX

🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Friday, October 12, 2018

महर्षि सुश्रुत के शल्य चिकित्सा से 4 साल से अटकी हुई नाक की सर्जरी पूरी हुई

12 October 2018
http://azaadbharat.org
🚩कॉन्वेंट स्कूल में पढ़े हुए बच्चें भले अपनी प्राचीन संस्कृति को न माने पर आज भी ऋषि-मुनियों द्वारा बताई गई युक्तियां काम कर रही हैं । 
🚩शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत की लिखी सुश्रुत संहिता आज 2500 वर्षों बाद भी चिकित्सा क्षेत्र में मार्गदर्शक बनी हुई है । यह है भारत का वह सनातनी ज्ञान जिसके कारण भारत विश्वगुरु कहलाता था ।
🚩चार सालों से एक विदेशी महिला की नाक की सर्जरी अटकी हुई थी । कोई भी दवाई काम में नहीं आ रही थी। लाख कोशिशों के बाद वह इलाज के लिए भारत आई। डॉक्टरों ने यहां शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत के तकरीबन ढाई हजार साल पुराने तरीके अपनाए और उसकी सफल सर्जरी कर नई नाक तैयार की । डॉक्टरों ने महिला के गाल की खाल की मदद से यह नई नाक बनाई ।
🚩एक न्यूज एजेंसी के अनुसार, शम्सा खान (24) मूलरूप से अफगानिस्तान की रहनेवाली हैं । आतंकी हमले में चार साल पहले उन्हें गोली लग गई थी । वह उस हमले में बाल-बाल बचीं, पर कुछ जख्मों ने उनकी नाक का हुलिया बुरी तरह बिगाड दिया था। वह इसके चलते ठीक से सांस भी नहीं ले पाती थीं। यहां तक कि उनकी सूंघने की क्षमता भी चली गई थी ।
Surgery completed with surgery for
Maharishi Sushruta's surgery for 4 years

🚩इलाज की आस में उन्होंने अफगानिस्तान में कई डॉक्टरों के चक्कर लगाए, परंतु उनके हाथ केवल निराशा ही आई । उन्होंने वहां पर सर्जरी भी कराई, परंतु वह सफल न हो पाई । ऐसे में उन्होंने बेहतर इलाज के लिए भारत का रुख किया । राजधानी नई देहली स्थित केएएस मेडिकल सेंटर एंड मेडस्पा में उन्हें भर्ती कराया गया । प्लास्टिक सर्जन अजय कश्यप ने एजेंसी से कहा, “यह जटिल मामला था । आधुनिक तरीकों से बात नहीं बनी, तो हमने शल्य चिकित्सक महर्षि सुश्रुत की तकनीक से नाक बनाने के लिए गाल से खाल ली ।"
🚩उधर, इलाज के बाद शम्सा खास खुश हैं । वह बोलीं, “हमारे यहां गोली चलना व हमले होना आम है। उनमें कुछ मरते हैं तो कुछ बच जाते हैं, जबकि कुछ हालात के कारण मानसिक व शारीरिक ट्रॉमा का शिकार हो बैठते हैं । अंग बेकार हो जाए, जो जिंदगी भयावह हो जाती है। पर अब मुझे खुशी है कि सामान्य जीवन जी सकूंगी ।” स्त्रोत : जनसत्ता
🚩कौन थे सुश्रुत ?
प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे । उन्हें शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है ।
🚩शल्य चिकित्सा (Surgery) के पितामह और 'सुश्रुत संहिता' के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म काशी में हुआ था । इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की । सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है ।
🚩सुश्रुत संहिता में सुश्रुत को विश्वामित्र का पुत्र कहा है । 'विश्वामित्र' से कौन से विश्वामित्र से अभिप्राय है, यह स्पष्ट नहीं । सुश्रुत ने काशीपति दिवोदास से शल्यतंत्र का उपदेश प्राप्त किया था । काशीपति दिवोदास का समय ईसा पूर्व की दूसरी या तीसरी शती संभावित है । सुश्रुत के सहपाठी औपधेनव, वैतरणी आदि अनेक छात्र थे । सुश्रुत का नाम नावनी तक में भी आता है ।
🚩सुश्रुत के नाम पर आयुर्वेद भी प्रसिद्ध हैं । यह सुश्रुत राजर्षि शालिहोत्र के पुत्र कहे जाते हैं (शालिहोत्रेण गर्गेण सुश्रुतेन च भाषितम् - सिद्धोपदेशसंग्रह)। सुश्रुत के उत्तरतंत्र को दूसरे का बनाया मानकर कुछ लोग प्रथम भाग को सुश्रुत के नाम से कहते हैं; जो विचारणीय है। वास्तव में सुश्रुत संहिता एक ही व्यक्ति की रचना है ।
🚩सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है। शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे । ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए खोजे गए थे । इन उपकरणों में विशेष प्रकार के चाकू, सुइयां, चिमटियां आदि हैं । सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की । सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी । सुश्रुत नेत्र शल्य चिकित्सा भी करते थे । सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ओपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया गया है। उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था। सुश्रुत को टूटी हुई हड्डियों का पता लगाने और उनको जोड़ने में विशेषज्ञता प्राप्त थी ।
🚩शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए वे विशेष औषधियां देते थे । इसलिए सुश्रुत को संज्ञाहरण का पितामह भी कहा जाता है । इसके अतिरिक्त सुश्रुत को मधुमेह व मोटापे के रोग की भी विशेष जानकारी थी । सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ-साथ श्रेष्ठ शिक्षक भी थे । उन्होंने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताये और शल्य क्रिया का अभ्यास कराया । प्रारंभिक अवस्था में शल्य क्रिया के अभ्यास के लिए फलों, सब्जियों और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे । मानव शारीर की अंदरूनी रचना को समझाने के लिए सुश्रुत शव के ऊपर शल्य क्रिया करके अपने शिष्यों को समझाते थे । सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा में अद्भुत कौशल अर्जित किया तथा इसका ज्ञान अन्य लोगों को कराया । इन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे शरीर संरचना, काय चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग आदि की जानकारी भी दी ।
🚩महर्षि सुश्रुत को विश्व का पहला शल्य चिकित्सक (सर्जन) माना जाता है। 2500 साल पहले सुझाए उनके सर्जरी के तरीके आज भी सबसे सटीक माने जाते हैं । 184 अध्यायवाली सुश्रुत संहिता में आठ तरीके की सर्जरी और 1120 प्रकार के रोगों के बारे में बताया गया है। वह, चरक और धन्वंतरि जैसे चिकित्सकों जैसे ही मशहूर रहे हैं म
🚩ये है भारत देश की ऋषि-मुनियों की महिमा लेकिन हम उनके लिखे हुए शास्त्र की बाते भूलते जा रहे है इसलिए दुःखी, परेशान, बेचैन, बीमार, अशांत रहते हैं, अगर ऋषि-मुनियों द्वारा बताई गई बातों अनुसार कार्य किया जाए तो हर व्यक्ति सुखी, स्वस्थ्य, सम्मानित जीवन जी सकता है ।
🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻
🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk
🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt
🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf
🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX
🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG
🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Thursday, October 11, 2018

जानिए नवरात्रि का महत्त्व एवं इतिहास..

11 October 2018
http://azaadbharat.org
🚩नवरात्रि महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा का त्यौहार है । जिनकी स्तुति कुछ इस प्रकार की गई है,
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ।।
अर्थ : अर्थात सर्व मंगल वस्तुओं में मंगलरूप, कल्याणदायिनी, सर्व पुरुषार्थ साध्य करानेवाली, शरणागतों का रक्षण करनेवाली, हे त्रिनयने, गौरी, नारायणी ! आपको मेरा नमस्कार है ।
🚩1. मंगलरूप त्रिनयना नारायणी अर्थात मां जगदंबा !
जिन्हें आदिशक्ति, पराशक्ति, महामाया, काली, त्रिपुरसुंदरी इत्यादि विविध नामों से सभी जानते हैं ।  जहां पर गति नहीं वहां सृष्टि की प्रक्रिया ही थम जाती है । ऐसा होते हुए भी अष्ट दिशाओं के अंतर्गत जगत की उत्पत्ति, लालन-पालन एवं संवर्धन के लिए एक प्रकारकी शक्ति कार्यरत रहती है । इसी शक्ति को आद्याशक्ति कहते हैं । उत्पत्ति-स्थिति-लय यह शक्ति का गुणधर्म ही है । शक्ति का उद्गम स्पंदनों के रूप में होता है । उत्पत्ति-स्थिति-लय का चक्र निरंतर चलता ही रहता है ।
🚩श्री दुर्गासप्तशतीके अनुसार श्री दुर्गा देवी के तीन प्रमुख रूप हैं,
1. महासरस्वती, जो ‘गति’ तत्त्व का  प्रतीक हैं ।
2. महालक्ष्मी, जो ‘दिक’ अर्थात ‘दिशा’तत्त्वका प्रतीक हैं ।
3. महाकाली जो ‘काल’ तत्त्व का प्रतीक हैं ।
🚩जगत का पालन करने वाली जगदोद्धारिणी मां शक्ति की उपासना हिंदू धर्म में वर्ष में दो बार नवरात्रि के रूप में, विशेष रूप से की जाती है ।
वासंतिक नवरात्रि : यह उत्सव चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल नवमी तक मनाया जाता है ।
शारदीय नवरात्रि : यह उत्सव आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आश्विन शुक्ल नवमी तक मनाया जाता है ।
🚩2. ‘नवरात्रि’ किसे कहते हैं ?
नव अर्थात प्रत्यक्षत: ईश्वरीय कार्य करनेवाला ब्रह्मांड में विद्यमान आदिशक्तिस्वरूप तत्त्व । स्थूल जगत की दृष्टि से रात्रि का अर्थ है, प्रत्यक्ष तेजतत्त्वात्मक प्रकाश का अभाव तथा ब्रह्मांड की दृष्टि से रात्रि का अर्थ है, संपूर्ण ब्रह्मांड में ईश्वरीय तेज का प्रक्षेपण करने वाले मूल पुरुषतत्त्व का अकार्यरत होनेकी कालावधि । जिस कालावधि में ब्रह्मांड में शिवतत्त्व की मात्रा एवं उसका कार्य घटता है एवं शिवतत्त्व के कार्यकारी स्वरूप की अर्थात शक्ति की मात्रा एवं उसका कार्य अधिक होता है, उस कालावधि को ‘नवरात्रि’ कहते हैं । मातृभाव एवं वात्सल्य भाव की अनुभूति देनेवाली, प्रीति एवं व्यापकता, इन गुणों के सर्वोच्च स्तर के दर्शन कराने वाली जगदोद्धारिणी, जगत का पालन करने वाली इस शक्ति की उपासना, व्रत एवं उत्सव के रूप में की जाती है ।
🚩3. ‘नवरात्रि’ का इतिहास
- रामजी के हाथों रावण का वध हो, इस उद्देश्य से नारदने रामसे इस व्रत का अनुष्ठान करने का अनुरोध किया था । इस व्रत को पूर्ण करने के पश्चात रामजी ने लंका पर आक्रमण कर अंत में रावण का वध किया ।
- देवी ने महिषासुर नामक असुर के साथ नौ दिन अर्थात प्रतिपदा से नवमी तक युद्ध कर, नवमी की रात्रि को उसका वध किया । उस समय से देवी को ‘महिषासुरमर्दिनी’ के नाम से जाना जाता है ।
🚩4. नवरात्रि का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व
- ‘जगमें जब-जब तामसी, आसुरी एवं क्रूर लोग प्रबल होकर, सात्त्विक, उदारात्मक एवं धर्मनिष्ठ सज्जनों को छलते हैं, तब देवी धर्मसंस्थापना हेतु पुनः-पुनः अवतार धारण करती हैं । उनके निमित्त से यह व्रत है ।
- नवरात्रि में देवीतत्त्व अन्य दिनों की तुलनामें 1000 गुना अधिक कार्यरत होता है । देवीतत्त्व का अत्यधिक लाभ लेने के लिए नवरात्रि की कालावधिमें ‘श्री दुर्गादेव्यै नमः ।’ नामजप अधिकाधिक करना चाहिए ।
🚩नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक दिन बढ़ते क्रम से आदिशक्ति का नया रूप सप्त पाताल से पृथ्वी पर आनेवाली कष्टदायक तरंगों का समूल उच्चाटन अर्थात समूल नाश करता है । नवरात्रि के नौ दिनों में ब्रह्मांड में अनिष्ट शक्तियों द्वारा प्रक्षेपित कष्टदायक तरंगें एवं आदिशक्ति की मारक चैतन्यमय तरंगों में युद्ध होता है । इस समय ब्रह्मांड का वातावरण तप्त होता है ।श्री दुर्गा देवी के शस्त्रों के तेज की ज्वालासमान चमक अति वेग से सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियों पर आक्रमण करती है । पूरे वर्ष अर्थात इस नवरात्रि के नौवें दिन से अगले वर्ष की नवरात्रिके प्रथम दिनतक देवी का निर्गुण तारक तत्त्व कार्यरत रहता है । अनेक परिवारों में नवरात्रि का व्रत कुलाचार के रूप में किया जाता है । आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से इस व्रत का प्रारंभ होता है ।
🚩5. नवरात्रि की कालावधि में सूक्ष्म स्तर पर होने वाली गतिविधियां:-
नवरात्रि के नौ दिनों में देवीतत्त्व अन्य दिनों की तुलना में एक सहस्र गुना अधिक सक्रिय रहता है । इस कालावधि में देवीतत्त्व की अतिसूक्ष्म तरंगें धीरे-धीरे क्रियाशील होती हैं और पूरे ब्रह्मांड में संचारित होती हैं । उस समय ब्रह्मांड में शक्ति के स्तर पर विद्यमान अनिष्ट शक्तियां नष्ट होती हैं और ब्रह्मांड की शुद्धि होने लगती है । देवीतत्त्व की शक्ति का स्तर प्रथम तीन दिनों में सगुण-निर्गुण होता है । उसके उपरांत उसमें निर्गुण तत्त्वकी मात्रा बढ़ती है और नवरात्रि के अंतिम दिन इस निर्गुण तत्त्वकी मात्रा सर्वाधिक होती है । निर्गुण स्तर की शक्ति के साथ सूक्ष्म स्तर पर युद्ध करने के लिए छठे एवं सातवें पाताल की बलवान आसुरी शक्तियों को अर्थात मांत्रिकों को इस युद्ध में प्रत्यक्ष सहभागी होना पड़ता है । उस समय ये शक्तियां उनके पूरे सामर्थ्य के साथ युद्ध करती हैं ।
🚩6. श्री दुर्गा देवी का वचन
नवरात्रिकी कालावधि में महाबलशाली दैत्यों का वध कर देवी दुर्गा महाशक्ति बनी । देवताओं ने उनकी स्तुति की । उस समय देवीमां ने सर्व देवताओं एवं मानवों को अभय का आशीर्वाद देते हुए वचन दिया कि
🚩इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ।
तदा तदाऽवतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम् ।।
– मार्कंडेयपुराण 91.51
इसका अर्थ है, जब-जब दानवोंद्वारा जगत्को बाधा पहुंचेगी, तब-तब मैं अवतार धारण कर शत्रुओं का नाश करूंगी ।
इस श्लोक के अनुसार जगत में जब भी तामसी, आसुरी एवं दुष्ट लोग प्रबल होकर, सात्त्विक, उदार एवं धर्मनिष्ठ व्यक्तियोंको अर्थात साधकोंको कष्ट पहुंचाते हैं, तब धर्मसंस्थापना हेतु अवतार धारण कर देवी उन असुरोंका नाश करती हैं ।
🚩8. नवरात्रि के नौ दिनों में शक्ति की उपासना करनी चाहिए
`असुषु रमन्ते इति असुर: ।’ अर्थात् `जो सदैव भौतिक आनंद, भोग-विलासितामें लीन रहता है, वह असुर कहलाता है ।’ आज प्रत्येक मनुष्य के हृदय में इस असुर का वास्तव्य है, जिसने मनुष्य की मूल आंतरिक दैवी वृत्तियों पर वर्चस्व जमा लिया है । इस असुर की मायाको पहचानकर, उसके आसुरी बंधनोंसे मुक्त होनेके लिए शक्तिकी उपासना आवश्यक है । इसलिए नवरात्रिके नौ दिनोंमें शक्तिकी उपासना करनी चाहिए । हमारे ऋषिमुनियोंने विविध श्लोक, मंत्र इत्यादि माध्यमोंसे देवीमां की स्तुति कर उनकी कृपा प्राप्त की है । श्री दुर्गासप्तशति के एक श्लोकमें कहा गया है,
🚩शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो:स्तुते ।।
– श्री दुर्गासप्तशती, अध्याय 11.12
अर्थात शरण आए दिन एवं आर्त लोगों का रक्षण करने में सदैव तत्पर और सभी की पीड़ा दूर करनेवाली हे देवी नारायणी!, आपको मेरा नमस्कार है । देवी की शरण में जाने से हम उनकी कृपा के पात्र बनते हैं । इससे हमारी और भविष्य में समाज की आसुरी वृत्ति में परिवर्तन होकर सभी सात्त्विक बन सकते हैं । यही कारण है कि, देवी तत्त्व के अधिकतम कार्यरत रहने की कालावधि अर्थात नवरात्रि विशेष रूप से मनायी जाती है ।
🚩नवरात्रि के नौ दिनों में घट स्थापना के उपरांत पंचमी, षष्ठी, अष्टमी एवं नवमी का विशेष महत्त्व है । पंचमी के दिन देवी के नौ रूपों में से एक श्री ललिता देवी अर्थात महात्रिपुर सुंदरी का व्रत होता है । शुक्ल अष्टमी एवं नवमी ये महातिथियां हैं । इन तिथियों पर चंडीहोम करते हैं । नवमी पर चंडीहोम के साथ बलि समर्पण करते हैं ।
🚩संदर्भ – सनातन धर्म के ग्रंथ, ‘त्यौहार मनाने की उचित पद्धतियां एवं अध्यात्मशास्त्र‘, ‘धार्मिक उत्सव एवं व्रतों का अध्यात्मशास्त्रीय आधार’ एवं ‘देवीपूजनसे संबंधित कृत्यों का शास्त्र‘ एवं अन्य ग्रंथ
🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻
🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk
🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt
🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf
🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX
🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG
🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ