Friday, December 7, 2018

बुलंदशहर : गाय काटी मुल्लों ने, जान गई हिन्दुओं की, जानिए गौहत्या का इतिहास

07 दिसंबर 2018

🚩बुलंदशहर में पुलिस अधिकारी सुबोध सिंह की हत्या को लेकर मीडिया, सेक्युलर, वामपंथी ये सभी गौरक्षकों को दोषी करार दे रहे हैं । गौकशी करने वाले तस्करों और दंगे में मारे गए निर्दोष अंकित का कोई नाम तक ले रहा । मीडिया इस विषय पर विचार ही नहीं कर रहा कि गौरक्षकों को सड़कों पर आकर गौरक्षा की आवश्यकता क्यों पड़ रही हैं । हिन्दू बहुसंख्यक देश में प्रतिबन्ध के बाद भी गौहत्या क्या प्रशासन की नाकामयाबी और पुलिस की अकर्मण्यता नहीं है ? 

🚩गौरक्षकों की आलोचना करने से पहले हमारे इतिहास और वर्तमान की परिस्थितियों को भली प्रकार से समझ लेना चाहिए था । सदियों से हिन्दू समाज गौरक्षा को लेकर अत्यंत संवेदनशील रहा है । इसका मुख्य कारण वह गौ को माता के समान सम्मान देता है । जब-जब शासक गौरक्षा को लेकर नाकाम सिद्ध हुआ है। तब-तब हिन्दुओं ने अपनी जान की बाजी लगाकर भी गौरक्षा के लिए अनेक वीर गाथाएं लिखी है । दुर्भाग्य यह है कि इन वीर गाथाओं को किसी पाठ्यक्रम में नहीं पढ़ाया जाता । जिससे आने वाली पीढ़ी इनसे प्रेरणा ले सके । भारतीय इतिहास में गौ हत्या को लेकर कई आंदोलन हुए हैं और कई आज भी जारी हैं, लेकिन अभी तक गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध नहीं लग सका है । इसका सबसे बड़ा कारण राजनितिक इच्छा शक्ति की कमी होना है।
Bulandshahr: Cow Kati Mulles, know the history of the Hindus, know the
 history of cow slaughter

🚩आप कल्पना कीजिए हर रोज जब आप सोकर उठते हैं तब तक हज़ारों गौओं के गलों पर छूरी चल चुकी होती है । गौ हत्या से सबसे बड़ा फ़ायदा तस्करों एवं गाय के चमड़े का कारोबार करने वालों को होता है । इनके दबाव के कारण ही सरकार गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने से पीछे हट रही है । वरना जिस देश में गाय को माता के रूप में पूजा जाता हो, वहां सरकार गौ हत्या रोकने में नाकाम है ये अपने आप में बहुत बड़ा आश्चर्य है । 

🚩आज हमारे देश में नरेंद्र मोदी जी की सरकार है । सेक्युलरवाद और अल्पसंख्यकवाद के नाम पर पिछले अनेक दशकों से बहुसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों का दमन होता आया है । उसी के प्रतिरोध में हिन्दू प्रजा ने संगठित होकर, जात-पात से ऊपर उठकर एक सशक्त सरकार को चुना है । इसलिए यह इस सरकार का कर्त्तव्य बनता है कि वह बदले में हिन्दुओं की शताब्दियों से चली आ रही गौरक्षा की मांग को पूरा करे और गौ हत्या पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाए । अक्सर देखने में आता है कि बिकाऊ मीडिया और पक्षपाती पत्रकारों के प्रभाव से हम यह आंकलन निकाल लेते हैं कि सारे देशवासियों की भी यही राय होगी जो इन सेक्युलर पत्रकारों, छदम बुद्धिजीवियों की होती है । मगर देश की जनता ने चुनावों में मोदी जी को जीत दिलाकर यह सिद्ध कर दिया कि नहीं यह केवल आसमानी किले है । इसलिए सरकार को चंद उछल कूद करने वालों की संभावित प्रतिक्रिया से प्रभावित होकर गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगाने से पीछे नहीं हटना चाहिए ।

🚩मुस्लिम शासनकाल में गौ हत्या पर रोक थी । भारत में मुस्लिम शासन के दौरान कहीं भी गौकशी को लेकर हिंदू और मुसलमानों में टकराव देखने को नहीं मिलता । बाबर से लेकर अकबर ने गौहत्या पर रोक लगाई थी । औरंगजेब ने इस नियम को तोड़ा तो उसका साम्राज्य तबाह हो गया । आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र ने भी 28 जुलाई, 1857 को बकरीद के मौक़े पर गाय की क़ुर्बानी न करने का फ़रमान जारी किया था । साथ ही चेतावनी दी थी कि जो भी गौ वध करने या कराने का दोषी पाया जाएगा, उसे मौत की सज़ा दी जाएगी।

🚩गौहत्या कबसे शुरू हुई ?

भारत में गौ हत्या को बढ़ावा देने में अंग्रेज़ों ने अहम भूमिका निभाई । जब 1700 ई. में अंग्रेज़ भारत आए थे, उस वक़्त यहां गाय और सुअर का वध नहीं किया जाता था । हिंदू गाय को पूजनीय मानते थे और मुसलमान सुअर का नाम तक लेना पसंद नहीं करते थे । अंग्रेजों ने मुसलमानों को भड़काया कि कुरान में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाय की क़ुर्बानी हराम है । इसलिए उन्हें गाय की क़ुर्बानी करनी चाहिए । उन्होंने मुसलमानों को लालच भी दिया और कुछ लोग उनके झांसे में आ गए । इसी तरह उन्होंने दलित हिंदुओं को सुअर के मांस की बिक्री कर मोटी रकम कमाने का झांसा दिया । 18वीं सदी के आखिर तक बड़े पैमाने पर गौ हत्या होने लगी । अंग्रेज़ों की बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी सेना के रसद विभागों ने देश भर में कसाईखाने बनवाए । जैसे-जैसे यहां अंग्रेज़ी सेना और अधिकारियों की तादाद बढ़ने लगी, वैसे-वैसे गौ हत्या में भी बढ़ोत्तरी होती गई ।

🚩गौ हत्या और सुअर हत्या की आड़ में अंग्रेज़ों को हिंदू और मुसलमानों में फूट डालने का भी मौक़ा मिल गया । इस दौरान हिंदू संगठनों ने गौ हत्या के ख़िला़फ मुहिम छेड़ दी । नामधारी सिखों का कूका आंदोलन की नींव गौरक्षा के विचार से जुड़ी थी । हरियाणा प्रान्त में हरफूल जाट जुलानी ने अनेक कसाईखानों को बर्बाद कर कसाइयों को यमलोक पंहुचा दिया । हरफूल जाट ने बलिदान दे दिया मगर पीछे नहीं हटें । 1857 की क्रांति, मंगल पांडेय का बलिदान इसी गौरक्षा अभियान के महान बलिदानों से सम्बंधित है । आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द ने गौरक्षा के लिए आधुनिक भारत में सबसे व्यापक प्रयास आरम्भ किये । उन्होंने गौरक्षा एवं खेती करने वाले किसानों लिए गौ करुणा निधि पुस्तक की रचना कर सप्रमाण यह सिद्ध किया कि गौ रक्षा क्यों आवश्यक है । स्वामी जी यहाँ तक नहीं रुके । उन्होंने भारत की पहली गौशाला रेवाड़ी में राव युधिष्ठिर के सहयोग से स्थापित की जिससे गौरक्षा हो सके । इसके अतिरिक्त उन्होंने पांच करोड़ भारतीयों के हस्ताक्षर करवाकर उन्हें महारानी विक्टोरिया के नाम गौहत्या पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रस्ताव भेजने का अभियान भी चलाया । यह अभियान उनकी असमय मृत्यु के कारण पूरा न हुआ । मगर इससे भारत वर्ष में हज़ारों गौशाला की स्थापना हुई एवं गौरक्षा अभियान को लोगों ने अपने प्रबंध से चलाया। भारत में गौरक्षा अभियान के समाचार लंदन भी पहुंचे । आख़िरकार महारानी विक्टोरिया ने वायसराय लैंस डाउन को पत्र लिखा । महारानी ने कहा, हालांकि मुसलमानों द्वारा की जा रही गौ हत्या आंदोलन का कारण बनी है, लेकिन हक़ीक़त में यह हमारे ख़िलाफ़ है, क्योंकि मुसलमानों से कहीं ज़्यादा गौ वध हम कराते हैं। इसके ज़रिए ही हमारे सैनिकों को गौ मांस मुहैया हो पाता है । इसके बाद 1892 में देश के विभिन्न हिस्सों से सरकार को हस्ताक्षरयुक्त पत्र भेजकर गौ वध पर रोक लगाने की मांग की जाने लगी । इन पत्रों पर हिंदुओं के साथ मुसलमानों के भी हस्ताक्षर होते थे । 1947 के पश्चात भी गौरक्षा के लिए अनेक अभियान चले । 1966 में हिन्दू संगठनों ने देशव्यापी अभियान चलाया । हज़ारों गौभक्तों ने गोली खाई मगर पीछे नहीं हटे । राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी के चलते यह अभियान सफल नहीं हुआ ।

🚩इस समय भी देशव्यापी अभियान चलाया जा रहा है । जिसमें केंद्र सरकार से गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने और भारतीय गौवंश की रक्षा के लिए कठोर क़ानून बनाए जाने की मांग की जा रही है । गाय की रक्षा के लिए अपनी जान देने में भारतीय मुसलमान किसी से पीछे नहीं हैं । उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले के गांव नंगला झंडा निवासी डॉ. राशिद अली ने गौ तस्करों के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ रखी थी, जिसके चलते 20 अक्टूबर, 2003 को उन पर जानलेवा हमला किया गया और उनकी मौत हो गई । उन्होंने 1998 में गौ रक्षा का संकल्प लिया था और तभी से डॉक्टरी का पेशा छोड़कर वह अपनी मुहिम में जुट गए थे ।  गौ वध को रोकने के लिए विभिन्न मुस्लिम संगठन भी सामने आए हैं ।  दारूल उलूम देवबंद ने एक फ़तवा जारी करके मुसलमानों से गौ वध न करने की अपील की है । दारूल उलूम देवबंद के फतवा विभाग के अध्यक्ष मुती हबीबुर्रहमान का कहना है कि भारत में गाय को माता के रूप में पूजा जाता है । इसलिए मुसलमानों को उनकी धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए गौ वध से ख़ुद को दूर रखना चाहिए । उन्होंने कहा कि शरीयत किसी देश के क़ानून को तोड़ने का समर्थन नहीं करती । क़ाबिले ग़ौर है कि इस फ़तवे की पाकिस्तान में कड़ी आलोचना की गई थी । इसके बाद भारत में भी इस फ़तवे को लेकर ख़ामोशी अख्तियार कर ली गई ।

🚩गाय भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा है । यहां गाय की पूजा की जाती है । यह भारतीय संस्कृति से जुड़ी है । महात्मा गांधी कहा करते थे कि अगर निःस्वार्थ भाव से सेवा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कहीं देखने को मिलता है तो वह गौ माता है। गाय का ज़िक्र करते हुए वह लिखते हैं:-

🚩"गौ माता जन्म देने वाली माता से श्रेष्ठ है । हमारी माता हमें दो वर्ष दुग्धपान कराती है और यह आशा करती है कि हम बड़े होकर उसकी सेवा करेंगे । गाय हमसे चारे और दाने के अलावा किसी और चीज़ की आशा नहीं करती । हमारी मां प्राय: रूग्ण हो जाती है और हमसे सेवा की अपेक्षा करती है । गौ माता शायद ही कभी बीमार पड़ती है । वह हमारी सेवा आजीवन ही नहीं करती, अपितु मृत्यु के बाद भी करती है । अपनी मां की मृत्यु होने पर हमें उसका दाह संस्कार करने पर भी धनराशि व्यय करनी पड़ती है । गौ माता मर जाने पर भी उतनी ही उपयोगी सिद्ध होती है, जितनी अपने जीवनकाल में थी । हम उसके शरीर के हर अंग-मांस, अस्थियां, आंतों, सींग और चर्म का इस्तेमाल कर सकते हैं । यह बात जन्म देने वाली मां की निंदा के विचार से नहीं कह रहा हूं, बल्कि यह दिखाने के लिए कह रहा हूं कि मैं गाय की पूजा क्यों करता हूं ।"- महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी का नाम लेकर पूर्व में अनेक सरकारें बनी मगर गौहत्या पर प्रतिबन्ध नहीं लगा । आज इस देश की सरकार से हम प्रार्थना करते हैं कि समस्त देश की भवनाओं का सम्मान करते हुए गौहत्या पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाएं एवं गौहत्या करने वालों को कठोर से कठोर दंड मिले ।

🚩महान गौरक्षकों को उनके तप और बलिदान के लिए कोटि कोटि नमन...
-डॉ विवेक आर्य

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Thursday, December 6, 2018

बाबरी मस्जिद ढहाने के बाद पाकिस्तान में तोड़े गए थे 100 मंदिर : पत्रकार

06 दिसंबर 2018

🚩भारत में हिन्दू बहुसंख्यक हैं और मुसलमान अल्पसंख्यक हैं लेकिन आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ है कि पाकिस्तान या बांग्लादेश आदि मुस्लिम देशों में हिन्दुओं के साथ अत्याचार हुआ तो भारत में मुस्लिमों के साथ हिन्दुओं ने गलत व्यवहार किया हो, लेकिन यहाँ तो उससे उल्टा दिखाई दे रहा है, भारत को लूटने वाले, हिन्दुओं का कत्लेआम करने वाले, बलात्कारी बाबर के नाम की मस्जिद 1992 में जब तोड़ दी तो पाकिस्तान में हिन्दुओ के साथ भयंकर अत्याचार हुआ और लगभग 100 हिन्दू मन्दिर तोड़ दिये गये, जबकि सबको ये ज्ञात है कि बाबरी मस्जिद श्री राम मंदिर की नींव पर बना था ।
100 temples were demolished in Pakistan
after demolition of Babri Masjid: journalist

🚩आज से 25  साल पहले मतलब कि 6 दिसंबर, 1192 को अयोध्या में कार सेवकों ने विवादित बाबरी ढांचे को ढहा दिया था । इस घटना की प्रतिक्रिया में पूरे देश में साम्प्रदायिक दंगे भड़के थे । यहां तक कि बाबरी विध्वंस की आग पड़ोसी देश पाकिस्तान-बांग्लादेश समेत कई देशों में भी भड़की थी । पड़ोसी देश पाकिस्तान में तो इस घटना के विरोधस्वरूप लगभग 100 मंदिरों को या तो गिरा दिया गया या फिर उसे तोड़-फोड़ कर नुकसान पहुंचाया गया ।

🚩पाकिस्तान के फोटो पत्रकार और बीबीसी से जुड़े शिराज हसन ने इन मंदिरों के फोटोज शेयर कर ट्विटर पर दावा किया था कि, “1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पाकिस्तान में करीब 100 मंदिरों को दंगाइयों ने निशाना बनाया था । उन लोगों ने या तो इन मंदिरों को गिरा दिया या फिर उनमें तोड़-फोड़ की थी। इन अधिकांश मंदिरों में 1947 के देश विभाजन के शरणार्थी रहते थे !”

🚩अपने दूसरे ट्वीट में हसन ने लिखा है, “हमने इन खंडहर मंदिरों में रह रहे कई लोगों से बातचीत की है । इन लोगों ने साल 1992 के उस भयावह मंजर को याद करते हुए कहा कि हमने दंगाइयों से रहम की अपील की थी और कहा था कि यह हमारा आशियाना है, इसे मत तोड़ो लेकिन वो नहीं माने !” हसन ने अपनी बात को बल देने के लिए कुछ मंदिरों की तस्वीर भी शेयर की हैं । इनमें रावलपिंडी का कृष्ण मंदिर भी है, जिसका ऊपरी गुंबद दंगाइयों ने 1992 में तोड़कर गिरा दिया था।

🚩कृष्ण मंदिर कल्याण दास मंदिर:-

हसन ने एक अन्य ट्वीट में रावलपिंडी के ही कल्याण दास मंदिर की भी तस्वीर साझा की है, जहां आजकल दृष्टिहीनों का एक सरकारी स्कूल चलता है । स्कूल से जुड़े लोगों ने उन्हें बताया कि दंगाइयों ने यहां भी हमला बोला था लेकिन बहुत निवेदन करने के बाद उसे बचा लिया गया था । यह मंदिर सहीं सलामत हालत में दिखता है।

🚩बन्सिधर मंदिर सीतलादेवी मंदिर

आपको बता दें कि बाबरी विध्वंस के वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे । इस घटना के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और इरान समेत कई देशों में भारतीय दूतावासों पर हमले भी हुए थे । पाकिस्तान और बांग्लादेश में एंटी हिन्दू दंगे भी भड़के थे । श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रेमदासा को बोधगया दौरा टालना पड़ा था । इरान ने तेल सप्लाय रोकने की धमकी दे डाली थी । स्त्रोत : जनसत्ता

🚩अल्पसंख्यकों को नहीं है धार्मिक आजादी 

अमेरिका द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, पाकिस्तान में सिख, हिन्दू जैसे अल्पसंख्यक जबरन धर्मांतरण के डर में रहते हैं । रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अल्पसंख्यकों को यह चिंता भी है कि पाकिस्तान सरकार जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठा पाती है ।

🚩पाकिस्तान और बांग्लादेश में दिन-रात हिन्दुओं के घर जलाये जा रहे हैं #हिन्दू #महिलाओं की #इज्जत #लूटी जा रही है, #मंदिर, घर, दुकानों को तोड़ा जा रहा है, पुजारियों की हत्या की जा रही है, हिन्दुओं की संपत्ति हड़प ली जाती है, #हिन्दुओं को मारा-पीटा जा रहा है, दिन-रात #हिन्दुओं को पलायन होना पड़ रहा है, यहाँ तक कि हिन्दू मर जाता है तो उसको जला भी नहीं सकते है, उसपर किसी नेता, मीडिया, संयुक्त राष्ट्र और सेक्युलर लोगों की नजर क्यों नहीं जाती है ?

🚩भारत में तो हिंदुओं से कई गुना अधिक सुख-सुविधाएं मुसलमानों को दी जा रही हैं फिर भी कुछ गद्दार, सेक्युलर बोलते हैं  कि भारत में मुसलमान डरे हुए हैं, लेकिन आजतक ये नहीं बोला कि पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि मुसलमान बाहुल्य देश में हिन्दुओं पर कितना अत्याचार हो रहा है । नर्क से भी बत्तर जीवन जीना पड़ रहा है ।

🚩एक तरफ पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहा है दिन-प्रतिदिन हिन्दू कम हो रहे हैं दूसरी ओर बंगाल, कश्मीर, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक आदि राज्यों में हिन्दुओं की हत्याएं हो रही हैं उस पर सभी ने चुप्पी क्यों साध ली है ?

भारत में अगर कोई हिन्दू कार्यकर्ता या हिन्दू साधु-संत इन अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो या तो उनको जेल भेज दिया जाता है या हत्या करवा दी जाती है ।

🚩ईसाई मिशनरियाँ और #मुस्लिम देश दिन-रात #हिंदुस्तान और पूरी दुनिया से हिन्दुओं को मिटाने में लगे हैं अतः हिन्दू सावधान रहें ।

अभी समय है हिन्दू #एक होकर #हिन्दुओं पर हो रहे प्रहार को रोकें तभी हिन्दू बच पायेंगे । हिन्दू होगा तभी सनातन संस्कृति बचेगी ।

🚩अगर #सनातन #संस्कृति नहीं बचेगी तो दुनिया में इंसानियत ही नहीं बचेगी क्योंकि #हिन्दू संस्कृति ही ऐसी है जिसने "वसुधैव कुटुम्बकम्" का वाक्य चरितार्थ करके दिखाया है ।

प्राणिमात्र में ईश्वरत्व के दर्शन कर, सर्वोत्वकृष्ट ज्ञान प्राप्त कर जीव में से #शिवत्व को प्रगट करने की क्षमता अगर किसी संस्कृति में है तो वो सनातन हिन्दू #संस्कृति में है ।

🚩हिंदुओं की बहुलता वाले देश #हिंदुस्तान में अगर आज हिन्दू #पीड़ित है तो सिर्फ और सिर्फ हिंदुओं की निष्क्रियता और अपनी महान संस्कृति की ओर विमुखता के #कारण !!

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Wednesday, December 5, 2018

जानिए श्री राम मंदिर तोड़ने और लाखों हिंदुओ के बलिदान व शौर्य दिवस का इतिहास

5 दिसम्बर 2018

🚩भारत में विधर्मी आक्रमणकारियों ने बड़ी संख्या में हिन्दू मन्दिरों का विध्वंस किया । स्वतन्त्रता के बाद भी सरकार ने मुस्लिम वोटों के लालच में मस्जिदों, मजारों आदि को बना रहने दिया ।

🚩इनमें से श्रीराम जन्मभूमि मंदिर (अयोध्या), श्रीकृष्ण जन्मभूमि (मथुरा) और काशी (विश्वनाथ मंदिर) के सीने पर बनी मस्जिदें सदा से हिन्दुओं को उद्वेलित करती रही हैं। इनमें से श्रीराम मंदिर के लिए विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष स्वर्गीय श्री अशोक सिंघल की अध्यक्षता और शिवसेना के बाला साहब की अध्यक्षता में देशव्यापी #आन्दोलन किया गया, जिससे 6 दिसम्बर, 1992 को वह #बाबरी ढाँचा धराशायी हो गया।
Know the breakdown of Sri Ram Mandir and the history
of the sacrifice and sacrifice of lakhs of Hindus

🚩बाबरी मस्जिद विध्वंस का 6 दिसंबर को हर साल #हिन्दू शौर्य दिवस मानते हैं
वीडियो : रामसेवको पर गोलीबारी

🚩श्री राम मंदिर कब तोड़ा?

मुस्लिम शासक आक्रमणकारी बाबर 1527 में फरगना से भारत आया था, बाबर के आदेश से उसके #सेनापति मीर बाकी ने 1528 ई. में श्रीराम मंदिर को गिराकर वहाँ एक मस्जिद बना दी थी । मंदिर तोड़ रहे थे उस समय इस्लामी आक्रमणकारियों से मंदिर को बचाने के लिए रामभक्तों ने 15 दिन तक लगातार संघर्ष किया, जिसके कारण आक्रांता मंदिर पर चढ़ाई न कर सके और अंत में मंदिर को तोपों से उड़ा दिया। इस संघर्ष में 1,36,000 रामभक्तों ने मंदिर रक्षा हेतु अपने जीवन की आहुति दी।

🚩भगवान श्री राम मंदिर टूटने के बाद #हिन्दू समाज एक दिन भी चुप नहीं बैठा। वह लगातार इस स्थान को पाने के लिए #संघर्ष करता रहा । 

🚩1528  से 1949 ईस्वी तक के कालखंड में श्रीरामजन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु 76 बार संघर्ष/युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज, महारानी राज कुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया।

🚩संघर्ष करने के बाद 23 दिसम्बर,1949 को आखिर हिन्दुओं ने वहाँ #रामलला की #मूर्ति स्थापित कर पूजन एवं अखण्ड कीर्तन शुरू कर दिया।

🚩मंदिर पर ताला

कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट ने ढांचे को आपराधिक दंड संहिता की धारा 145 के तहत रखते हुए प्रिय दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया। सिटी मजिस्ट्रेट ने मंदिर के द्वार पर ताले लगा दिए।

🚩पहली धर्म संसद

अप्रैल, 1984 में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा विज्ञान भवन (नई दिल्ली) में आयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार से ताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करने का प्रस्ताव पारित किया।

🚩विश्व हिन्दू परिषद्' द्वारा इस विषय को अपने हाथ में लेने से पूर्व तक 76 हमले हिन्दुओं ने किये; जिसमें देश के लाखों हिन्दू नर नारियों का #बलिदान हुआ; पर पूर्ण #सफलता उन्हें कभी नहीं मिल पायी।

 विश्व हिन्दू परिषद ने लोकतान्त्रिक रीति से जनजागृति के लिए #श्रीराम #जन्मभूमि मुक्ति #यज्ञ समिति का गठन कर 1984 में श्री रामजानकी रथयात्रा निकाली, जो सीतामढ़ी से प्रारम्भ होकर #अयोध्या पहुँची।

🚩श्री राम मंदिर के लिए जनता का आक्रोश देखकर #हिन्दू नेताओं ने शासन से कहा कि #श्री रामजन्मभूमि मंदिर पर लगे अवैध ताले को खोला जाए। #न्यायालय के आदेश से 1 फरवरी 1986 को ताला खुल गया। 

अयोध्या में भव्य मंदिर बनाने के लिए 1989 में देश भर से श्रीराम शिलाओं को पूजित कर अयोध्या लाया गया और बड़ी धूमधाम से 9 नवम्बर, 1989 को #श्रीराम मन्दिर का #शिलान्यास कर दिया गया। जनता के दबाव के आगे #प्रदेश और #केन्द्र शासन को झुकना पड़ा। पर #मन्दिर निर्माण तब तक सम्भव नहीं था, जब तक वहाँ खड़ा ढाँचा न हटे। हिन्दू नेताओं ने कहा कि यदि मुसलमानों को इस ढाँचे से मोह है, तो वैज्ञानिक विधि से इसे स्थानान्तरित कर दिया जाए; पर शासन मुस्लिम वोटों के लालच से बँधा था। वह हर बार न्यायालय की दुहाई देता रहा। #विहिप #शिवसेना आदि हिन्दू कार्यकर्ताओं का तर्क था कि आस्था के विषय का निर्णय #न्यायालय नहीं कर सकता आंदोलन और तीव्र कर दिया।

🚩आंदोलन के अन्तर्गत 1990 में वहाँ #कारसेवा का निर्णय किया गया। तब #उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी। उन्होंने घोषणा कर दी कि #बाबरी परिसर में एक परिन्दा तक पर नहीं मार सकता । पर हिन्दू युवकों ने #शौर्य दिखाते हुए 29 अक्तूबर को गुम्बदों पर #भगवा फहरा दिया। बौखला कर 2 नवम्बर को #मुलायम सिंह ने गोली चलवा दी, जिसमें कोलकाता के दो सगे भाई #राम और शरद कोठारी सहित सैकड़ों कारसेवकों का #बलिदान हुआ।

🚩कारसेवकों के बलिदान के बाद #प्रदेश में #भाजपा की सरकार बनी। #केन्द्र की #कांग्रेस सरकार के इस आश्वासन पर कि नवंबर में #न्यायालय का निर्णय आ जाएगा एक बार फिर #गीता जयंती के शुभ दिन (6 दिसम्बर, 1992 ) को #कारसेवा की तिथि निश्चित की गयी। परन्तु जानबूझ कर सब सुनवाई पूरी होने के बाद भी निर्णय की तिथि आगे से आगे बढ़ाकर 6 दिसंबर के बाद की कर दी गई ।

🚩विहिप की योजना तो तब भी #केन्द्र शासन पर दबाव बनाने की ही थी । पर #युवक आक्रोशित हो उठे। उन्होंने वहाँ लगी तार बाड़ के खम्भों से प्रहार कर #बाबरी ढाँचे के तीनों गुम्बद गिरा दिये। इसके बाद विधिवत वहाँ श्री रामलला को भी विराजित कर दिया गया।

🚩मंदिर के अवशेष मिले

ध्वस्त ढांचे की दीवारों से 5 फुट लंबी और 2.25  फुट चौड़ी पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों ने बताया कि इस पर बारहवीं सदी में संस्कृत में लिखीं 20 पंक्तियां उत्कीर्ण थीं। पहली पंक्ति की शुरुआत “ओम नम: शिवाय” से होती है। 15वीं, 17वीं और 19वीं पंक्तियां स्पष्ट तौर पर बताती हैं कि यह मंदिर “दशानन (रावण) के संहारक विष्णु हरि” को समर्पित है। मलबे से करीब ढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईं जो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में हैं।

🚩पंकज निगम (तत्कालीन विहिप नगर प्रमुख) ” जो की 1992 को कार सेवक थे की आंखो देखी – संक्षिप्त मे : “हम लोग 1992 को बाबरी विध्वंस के दिन ही अयोध्या पहुचे थे, किन्तु जब लोटे तब तक आधे से भी कम बचे थे, 6 दिसम्बर के बाद तिब्बत पुलिस ने सरयू नदी को लाशों से पाट दिया था, जिसमे सभी लाशे कर सेवको की थी, सभी बसे जो भी आजा रही थी सभी लाशों से भरी थी, रात के समय तिब्बत पुलिस फ़ाइरिंग करती थी जो भी उसके बीच मे आगया उसका राम नाम सत्य का मोका भी नही मिलता था, लाशे नदी मे बहा दी जाती थी।
हम लोगो ने गिरफ्तारी दे दी थी, और हमे 18 दिनो तक 1 जेल मे रखा गया, जहा उन 18 दिनो मे हमारे कई साथी भूख और बीमारी से मर गए, क्यू की जेल मे ना तो कुछ खाने को दिया जाता था, ना दिसम्बर की ठंड से बचाने की कोई व्यवस्था थी, 15 दिनो से भूखे होने के बाद भी हम 5 लोग जेल से भागने मे कामयाब हुये, और जंगलो से रास्ते पैदल दिल्ली पहुचे, वह पर हमारे कुछ अन्य लोग थे, उनकी मदद से नागदा पहुचे ।”

 🚩सोचें, श्री राम मन्दिर के पीछे कितने #बलिदान हुए, कितनी #माताओं ने अपने #पुत्र खोये , कितनी #पत्नियों ने अपने #सुहाग खोये! क्या बीती होगी उस #बाप पर, जब उसने अपने दो-दो #बेटों की गोलियों से छलनी हुई लाश को देखा होगा!
ये सब किया तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस और उत्तर प्रदेश की सपा सरकार ने!

🚩रामभक्तों को गोलियो से छलनी कर उनके शरीर में बालू के बोरे बांध कर उनकी लाश #सरयू मे फेंक दी गयी । सोचिए, क्या बीती होगी उस #परिवार पर जब उन्होंने अपनों की सड़ी-गली और जानवरो से खाई हुई लाशें यमुना से कई हफ्तों बाद निकाली होगी !

🚩कारसेवकों को हेलीकाप्टर से चुन चुन कर निशाना बनाया गया और गोली आँख में या सिर में मारी गयी । आखिर क्यों...??? क्योंकि #हिन्दू सहनशील हैं! अयोध्या जो #बाबर की औलादों के चंगुल में थी, लाखों हिन्दू पुरुषों और हजारों #नारियों ने बलिदान देकर उसे मुक्त कराया ।

🚩अमर बलिदानी कारसेवक गोली लगने के बाद मरते-मरते भी “जय श्री राम” बोलते रहें । इस प्रकार वह बाबरी कलंक नष्ट हुआ पर तत्कालीन केंद्र सरकार ने सारी जमीन अधिग्रहीत कर ली ।

🚩देश मे 98 करोड़ हिन्दू है पर अभीतक बाबर ने तोड़ा हुआ श्री राम मंदिर नही बन पाया वे हिन्दुओ के लिए शर्म की बात है ।

🚩अब मामला #सर्वोच्च #न्यायालय में लंबित है । 100 करोड़ हिन्दुओ का पूर्ण विश्वास है कि हिंदूवादी #वर्तमान #केंद्र #सरकार तथा उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार भव्य मंदिर निर्माण का मार्ग शीघ्र प्रशस्त करेगी । 🚩जय श्री राम!!

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