Thursday, January 3, 2019

जानिये कुंभ की उत्पत्ति कैसे हुई और कहाँ-कहां कुंभ मेला लगता है ?

3 जनवरी  2019


🚩कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं । इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है । 2013 का कुम्भ प्रयाग में हुआ था । 2019 में प्रयाग में अर्धकुंभ मेले का आयोजन होगा ।

🚩खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं । मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है । यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है ।
Know how Kumbh originated and where
 and where does Kumbh Mela occur?

🚩प्रयागराज में कुंभ पर्व का लाभ उठाने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु एकत्रित हो रहे हैं । इस निमित्त से कुंभ मेले की महिमा का वर्णन करनेवाले सूत्र पाठकों के लिए यहां प्रस्तुत कर रहे हैं ।

🚩कुंभ पर्व का अर्थ

प्रत्येक 12 वर्ष के उपरांत प्रयाग, हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक में आनेवाला पुण्ययोग ।

🚩कुंभपर्व की उत्पत्ति की कथा:-

अमृतकुंभ प्राप्ति हेतु देवों एवं दानवों ने (राक्षसोंने) एकत्र होकर क्षीरसागरका मंथन करने का निश्चय किया । समुद्रमंथन हेतु मेरु (मंदार) पर्वत को बिलोने के लिए सर्पराज वासुकी को रस्सी बनने की विनती की गई । वासुकी नाग ने रस्सी बनकर मेरु पर्वत को लपेटा । उसके मुख की ओर दानव एवं पूंछ की ओर देवता थे । इस प्रकार समुद्रमंथन किया गया । इस समय समुद्रमंथनसे क्रमशः हलाहल विष, कामधेनु (गाय), उच्चैःश्रवा (श्वेत घोडा), ऐरावत (चार दांतवाला हाथी), कौस्तुभमणि, पारिजात कल्पवृक्ष, रंभा आदि देवांगना (अप्सरा), श्री लक्ष्मीदेवी (श्रीविष्णुपत्नी), सुरा (मद्य), सोम (चंद्र), हरिधनु (धनुष), शंख, धन्वंतरि (देवताओंके वैद्य) एवं अमृतकलश (कुंभ) आदि चौदह रत्न बाहर आए । धन्वंतरि देवता हाथ में अमृतकुंभ लेकर जिस क्षण समुद्रसे बाहर आए, उसी क्षण देवताओं के मनमें आया कि दानव अमृत पीकर अमर हो गए तो वे उत्पात मचाएंगे । इसलिए उन्होंने इंद्रपुत्र जयंतको संकेत दिया तथा वे उसी समय धन्वंतरि के हाथोंसे वह अमृतकुंभ लेकर स्वर्गकी दिशा में चले गए । इस अमृतकुंभ को प्राप्त करनेके लिए देव-दानवोंमें 12 दिन एवं 12 रातोंतक युद्ध हुआ । इस युद्ध में 12 बार अमृतकुंभ नीचे गिरा । इस समय सूर्यदेवने अमृतकलश की रक्षा की एवं चंद्र ने कलश का अमृत न उड़े इस हेतु सावधानी रखी एवं गुरु ने राक्षसों का प्रतिकार कर कलश की रक्षा की । उस समय जिन 12 स्थानों पर अमृतकुंभ से बूंदें गिरीं, उन स्थानों पर उपरोक्त ग्रहों के विशिष्ट योग से कुंभपर्व मनाया जाता है । इन 12 स्थानोंमें से भूलोक में प्रयाग (इलाहाबाद), हरद्वार (हरिद्वार), उज्जैन एवं त्र्यंबकेश्वर-नासिक समाविष्ट हैं ।


🚩3. कुंभपर्वका विविध धर्मग्रंथोंमें वर्णित माहात्म्य:-

3 अ. ऋग्वेद

        ऋग्वेदके खिलसूक्तमें कहा गया है –

🚩सितासिते सरिते यत्र सङ्गते तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति ।

ये वै तन्वं विसृजन्ति धीरास्ते जनासो अमृतत्वं भजन्ते ।।

– ऋग्वेद, खिलसूक्त

अर्थ : जहां गंगा-यमुना दोनों नदियां एक होती हैं, वहां स्नान करनेवालों को स्वर्ग मिलता है एवं जो धीर पुरुष इस संगम में तनुत्याग करते हैं, उन्हें मोक्ष-प्राप्ति होती है ।

🚩3 आ. पद्मपुराण

प्रयागराज तीर्थक्षेत्र के विषय में पद्मपुराण में कहा गया है –

ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी ।

तीर्थानामुत्तमं तीर्थं प्रयागाख्यमनुत्तमम् ।।

अर्थ : जिस प्रकार ग्रहोंमें सूर्य एवं नक्षत्रोंमें चंद्रमा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार सर्व तीर्थोंमें प्रयागराज सर्वोत्तम हैं ।

🚩3 इ. कूर्मपुराण

कूर्मपुराण में कहा गया है कि प्रयाग तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है ।

🚩3 ई. महाभारत

प्रयागः सर्वतीर्थेभ्यः प्रभवत्यधिकं विभो ।।

श्रवणात् तस्य तीर्थस्य नामसंकीर्तनादपि ।।

मृत्तिकालम्भनाद्वापि नरः पापात् प्रमुच्यते।।

– महाभारत, पर्व ३, अध्याय ८३, श्लोक ७४, ७५

अर्थ : हे राजन्, प्रयाग सर्व तीर्थों में श्रेष्ठ है । उसका माहात्म्य श्रवण करनेसे, नामसंकीर्तन करनेसे अथवा वहां की मिट्टी का शरीर पर लेप करने से मनुष्य पापमुक्त होता है ।

(संदर्भ – सनातनका ग्रंथ – कुंभमेलेकी महिमा एवं पवित्रताकी रक्षा )

🚩इतिहासकार एस बी रॉय ने अनुष्ठानिक नदी स्नान को 10,000 ईसापूर्व (ईपू) स्वसिद्ध किया । जब इतिहासकार मानते है कि यीशु से 10, 000 साल पहले से कुंभ है तो सनातन संस्कृति तो जब से सृष्टि उत्पन्न हुई है तबसे है, फिर भी कुछ मुर्ख लोगों द्वारा 2018 साल पुराना धर्म को लेकर नया साल मनाने लगे ।

🚩ज्योतिषीय महत्व:-

ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुंभ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेषराशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है । ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी स्थान पर गंगा जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है । यही कारण है ‍कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं । आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुंभ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है । हालाँकि सभी हिंदू त्यौहार समान श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाए जाते हैं, पर यहाँ अर्ध कुंभ तथा कुंभ मेले के लिए आने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है ।

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Wednesday, January 2, 2019

केवल मासिक धर्म ही नहीं और भी कारण हैं सबरीमाला प्रवेश के, चल रही है साजिश

2 जनवरी  2019

🚩दुनिया में सबसे ज्यादा हिंदू अगर कहीं बचे हैं तो वे हैं भारत देश में, दुनिया में किसी भी देश में हिंदु सुरक्षित नहीं है, पाकिस्तान, बांगलादेश , अफगानिस्तान आदि देशों में तो हिंदू नर्क जैसा जीवन जी रहे हैं । 

🚩भारत में भले ही हिंदू बहुसंख्यक हो लेकिन उनको सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं दी जाती है, यहाँ तक ही अपने ही धार्मिक स्थलों पर जाने के लिए टैक्स देना पड़ता है । हिन्दू देवी-देवताओं को गालियां दी जा रही है, मंदिरों से टैक्स वसूला जा रहा है, हिंदूओं का इतिहास गायब कर दिया गया, हिंदूओं का धर्मांतरण किया जा रहा है और उनके खिलाफ जो आवाज उठाते हैं, उन हिंदू कार्यकर्त्ताओं और हिंदू साधू-संतों की या तो हत्या कर दी जाती है या उन्हें झूठे केस में जेल भिजवाया जाता है ।

🚩अभी हाल ही में सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश को लेकर जो विवाद चल रहा है, उसमें कोई भी हिंदू महिला प्रवेश के लिए तैयार नहीं है पर कुछ वामपंथी, मिशनरियां आदि विदेशी शक्तियां मंदिर की पवित्रता को खत्म करने के लिए एक षड्यंत्र कर रही हैं, मंदिर के कारण वहाँ के हिंदूओ में संयम बढ़ रहा है, ब्राह्मण, दलित सभी एकजुट हैं, जिसके कारण धर्मान्तरण का धंधा नहीं चल रहा था इन सभी कारणों को लेकर मंदिर में प्रवेश करवाने की साजिश चल रही है, नहीं तो किसी मुस्लिम महिला को मस्जिद में प्रवेश नहीं मिलता है तो उसके लिए किसी की आवाज नहीं उठ रही है ।
Not only menstruation, but also the reasons
 for entry into Sabarimala, the ongoing conspiracy

🚩पवित्र सबरीमाला के पावन इतिहास से जो लोग अभी अंजान हैं उनके लिए ही वहां की परम्पराओं पर सवाल उठाना अभिव्यक्ति की वो आज़ादी है जिसके पीछे कुछ लोग भारत में न जाने क्या-क्या बोल जाते हैं, लेकिन सनातन परम्परा में विश्वास करने वाले तमाम धार्मिक लोगों के लिए सबरीमाला का पावन इतिहास और उसका पौराणिक महत्व उनके पूर्वजों द्वारा दिया गया वो आशीर्वाद है जिसे वो सदियों से सहेज कर आये थे ।

🚩ज्ञात हो कि दक्षिण में जहाँ हिन्दुओं का श्रृंखलाबद्ध नरसंहार PFI जैसे समूहों पर करने का आरोप लग रहा है तो वहीं चौराहे पर गौ मांस काट कर खाना भी कुछ लोगों ने अपनी स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति बना ली है .. लेकिन हद तो तब हो गयी जब लोग उसके आगे बढ़ गये और पावन धाम सबरीमाला की उस परम्परा पर वार कर रहे हैं जो वहां के हिन्दुओं की एक प्रकार से अमिट निशानी के रूप में सदियों से स्थापित रहा है । ध्यान देने योग्य है कि दक्षिण के सबसे प्रसिद्ध हिन्दू शक्तिपीठों में से एक सबरीमाला भारत के प्रमुख हिंदू मंदिरों में एक है । पूरी दुनिया से लाखों श्रद्धालु आशीर्वाद लेने के लिए इस मंदिर परिसर में आते हैं ।

🚩सबरीमाला मंदिर में दर्शन को लेकर कई मान्यताएं हैं । कुछ के मुताबिक महिलाओं के पीरियड्स होने को अशुभ माना जाता है तो कई मान्यताओं के मुताबिक भगवान अयप्पा के दर्शन के लिए बहुत ही पवित्र और कठिन पूजा करनी होती है । इस मन्दिर से जुड़ी पुरानी पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, भगवान अयप्पा अविवाहित हैं । वे अपने भक्तों की प्रार्थनाओं पर पूरा ध्यान देना चाहते हैं । उन्होंने तब तक अविवाहित रहने का फैसला किया है जब तक उनके पास कन्नी स्वामी (यानी वे भक्त जो पहली बार सबरीमाला आते हैं) आना बंद नहीं कर देते ।” महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक की बात का पीरियड्स से कुछ भी लेना-देना नहीं है ।

🚩एक कथा यहाँ के हिन्दू समाज के हर घर में आज भी कही और सुनी जाती है । उसी धार्मिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के दौरान भोलेनाथ भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित हो गए थे और इसी के प्रभाव से एक बच्चे का जन्म हुआ जिसे उन्होंने पंपा नदी के तट पर छोड़ दिया । इस दौरान राजा राजशेखर ने उन्हें 12 सालों तक पाला । बाद में अपनी माता के लिए शेरनी का दूध लाने जंगल गए अयप्पा ने राक्षसी महिषि का भी वध किया । पुराणों के अनुसार अयप्पा विष्णु और शिव के पुत्र हैं । यह किस्सा उनके अंदर की शक्तियों के मिलन को दिखाता है न कि दोनों के शारीरिक मिलन को । देवता अयप्पा में दोनों ही देवताओं का अंश है, जिसकी वजह से भक्तों के बीच उनका महत्व और बढ़ जाता है ।

🚩मंदिर में प्रवेश के लिए तीर्थयात्रियों को 18 पवित्र सीढ़ियां चढ़नी होती हैं । मंदिर की वेबसाइट के मुताबिक, इन 18 सीढ़ियों को चढ़ने की प्रक्रिया इतनी पवित्र है कि कोई भी तीर्थयात्री 41 दिनों का कठिन व्रत रखे बिना ऐसा नहीं कर सकता । श्रद्धालुओं को मंदिर जाने से पहले कुछ रस्में भी निभानी पड़ती हैं । सबरीमाला के तीर्थयात्री काले या नीले रंग के कपड़े पहनते हैं और जब तक यात्रा पूरी न हो जाए, उन्हें शेविंग की इजाजत भी नहीं होती । इस तीर्थयात्रा के दौरान वे अपने माथे पर चंदन का लेप भी लगाते हैं । माना जाता था कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे और जो महिलाएं रजस्वला होती हैं उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं होनी चाहिए । - स्त्रोत्र : सुदर्शन न्यूज़

🚩दुनिया के नक्शे से सनातन हिन्दू धर्म को मिटाने के लिए सदियों से षड्यंत्र चल रहा है जिसे रोकना बेहद जरूरी है । 

🚩भारत में 700 साल मुगलों ने राज किया और 200 साल अंग्रेजों ने राज किया तब से तो काफी हिंदू सेकुलर बन गए हैं, मानसिक गुलाम बन गए हैं अपने धर्म के प्रति जागरूक नहीं हो रहे हैं, भले अभी इनको यह बात समझ में न आये, लेकिन अभी नहीं समझे तो जब अल्पसंख्यक बन जायेंगे और उनपर कश्मीरी पंडितों की तरह भयंकर अत्यचार होंगे  तब समझ में आयेगा, बस इतना ही कहना है कि आग लगने से पहले कुआँ तैयार रखना चाहिए ।

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औरंगजेब के पसीने छोड़ने वाले गोकुल सिंह का बलिदान दिवस भूल गए देशववासी

1 जनवरी 2019
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🚩भारतवासीयों का टीवी, फिल्में, सीरियल, अखबार, पढ़ाई, झूठे इतिहास आदि द्वारा ऐसा ब्रेनवोस कर दिया है कि जिन अंग्रेजों ने भारत को 200 साल गुलाम बनाकर रखा, देशवासियों को प्रताड़ित किया, देश की संपत्ति लूटकर ले गये उन ईसाई अंग्रेजों के नये साल पर बधाई दे रहे हैं, जश्न मना रहे हैं, लेकिन जिन क्रांतिकारीयों ने इन अंग्रेजों को भगाने में और मुगलों की नींव समाप्त करने में अपने प्राणों की बलि दे दी तथा आज जिनके कारण हम इस देश में स्वतंत्र गुम रहे हैं ऐसे योद्धाओं को भुला दिया  ।
🚩ऐसे ही एक भारत माता के वीर सपूत थे गोकुल सिंह, जिन्होंने विशाल मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए थे और औरंगजेब के पसीने छुड़वा दिए थे । उनका आज बलिदान दिवस है, इनका इतिहास पढ़कर आप भी अपने पूर्वजों की वीरता पर गर्व महसूस करेंगे तथा इन विदेशी आक्रांताओं मुगलों तथा अंग्रेजों से नफरत करने लगेंगे ।
Aurangzeb's persecutor Gokul Singh's sacrifice was forgotten

🚩सन् 1666  में #इस्लामिक राक्षस #औरंगजेब के अत्याचारों से हिन्दू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी । मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, #हिन्दू स्त्रियों की इज्जत लूटकर उन्हें मुस्लिम बनाया जा रहा था ।
औरंगजेब और उसके सैनिक पागल हाथी की तरह हिन्दू जनता को मथते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे ।
🚩हिंदुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया । अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला ।
🚩सिनसिनी गाँव के #सरदार #गोकुल सिंह के आह्वान पर #किसानों ने लगान देने से इंकार कर दिया, परतन्त्र भारत के इतिहास में वह "पहला #असहयोग आन्दोलन" था ।
🚩दिल्ली के सिंहासन के नाक तले समरवीर धर्मपरायण #हिन्दू वीर योद्धा गोकुल सिंह और उनकी किसान सेना ने आतताई औरंगजेब को हिंदुत्व की ताकत का एहसास दिलाया ।
🚩मई 1669 में अब्दुन्नवी ने सिहोरा गाँव पर हमला किया । उस समय वीर गोकुल सिंह गाँव में ही थे । भयंकर #युद्ध हुआ लेकिन इस्लामी शैतान अब्दुन्नवी और उसकी सेना सिहोरा के वीर हिन्दुओं के सामने टिक ना पाई और सारे इस्लामिक पिशाच गाजर-मूली की तरह काट दिए गए ।
🚩गोकुल सिंह की #सेना में जाट, राजपूत, गुर्जर, यादव, मेव, मीणा इत्यादि सभी जातियों के हिन्दू थे । इस #विजय ने मृतप्राय हिन्दू समाज में नए प्राण फूँक दिए थे ।
🚩इसके बाद #पाँच माह (5 महीनों )तक भयंकर युद्ध होते रहे । मुगलों की सभी तैयारियां और चुने हुए सेनापति प्रभावहीन और असफल सिद्ध हुए । क्या सैनिक और क्या सेनापति सभी के ऊपर गोकुलसिंह का वीरता और युद्ध संचालन का आतंक बैठ गया । अंत में सितंबर मास में, बिल्कुल निराश होकर, शफ शिकन खाँ ने गोकुलसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा । #गोकुल सिंह ने औरंगेजब का प्रस्ताव अस्वीकार करते हुए  कहा कि "औरंगजेब कौन होता है हमें माफ करने वाला, माफी तो उसे हम हिन्दुओं से मांगनी चाहिए उसने अकारण ही हिन्दू धर्म का बहुत अपमान किया है ।
🚩अब औरंगजेब 28 नवम्बर 1669 को दिल्ली से चलकर खुद मथुरा आया गोकुल सिंह से लड़ने के लिए। #औरंगजेब ने मथुरा में अपनी छावनी बनाई और अपने सेनापति होशयार खाँ को एक मजबूत एवं विशाल सेना के साथ युद्ध के लिए भेजा ।
🚩आगरा शहर का फौजदार होशयार खाँ 1669 सितंबर के अंतिम सप्ताह में अपनी-अपनी सेनाओं के साथ आ पहुंचे । यह विशाल सेना चारों ओर से गोकुलसिंह को घेरा लगाते हुए आगे बढ़ने लगी । #गोकुलसिंह के विरुद्ध किया गया यह अभियान, उन आक्रमणों से विशाल स्तर का था, जो बड़े-बड़े राज्यों और वहां के राजाओं के विरुद्ध होते आए थे । #इस वीर के पास न तो बड़े-बड़े दुर्ग थे, न अरावली की पहाड़ियाँ और न ही महाराष्ट्र जैसा विविधतापूर्ण भौगोलिक प्रदेश । इन अलाभकारी स्थितियों के बावजूद, उन्होंने जिस धैर्य और रण-चातुर्य के साथ, एक शक्तिशाली साम्राज्य की केंद्रीय शक्ति का सामना करके, बराबरी के परिणाम प्राप्त किए, वह सब अभूतपूर्व है
🚩औरंगजेब की तोपो,धर्नुधरों, हाथियों से सुसज्जित तीन लाख (3 लाख) लोगों की विशाल सेना और #गोकुल सिंह के किसानों की बीस हजार (20 हजार)की सेना में भयंकर #युद्ध छिड़ गया ।
चार दिन तक भयंकर युद्ध चलता रहा और #गोकुल सिंह की छोटी सी अवैतनिक सेना अपने बेढंगे व घरेलू हथियारों के बल पर ही अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित और प्रशिक्षित मुगल सेना पर भारी पड़ रही थी ।
🚩भारत के #इतिहास में ऐसे युद्ध कम हुए हैं जहाँ कई प्रकार से बाधित और कमजोर पक्ष, इतने शांत निश्चय और अडिग धैर्य के साथ लड़ा हो । #हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था। पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे, परन्तु #वीरवर #गोकुलसिंह का युद्ध तीसरे दिन भी चला ।
🚩इस लड़ाई में सिर्फ पुरुषों ने ही नहीं, बल्कि उनकी #स्त्रियों ने भी पराक्रम दिखाया ।
🚩चार दिन के युद्ध के बाद जब #गोकुल की सेना युद्ध जीतती हुई प्रतीत हो रही थी तभी हसन अली खान के नेतृत्व में एक नई विशाल मुगलिया टुकड़ी आ गई और इस टुकड़ी के आते ही गोकुल की सेना हारने लगी । युद्ध में अपनी सेना को हारता देख हजारों नारियाँ जौहर की पवित्र अग्नि में खाक हो गई ।
🚩गोकुल सिंह और उनके ताऊ उदय सिंह को #सात हजार साथियों सहित बंदी बनाकर आगरा में औरंगजेब के सामने पेश किया गया । औरंगजेब ने कहा "जान की खैर चाहते हो तो इस्लाम कबूल कर लो और रसूल के बताए रास्ते पर चलो । बोलो क्या इरादा है इस्लाम या मौत ?
🚩अधिसंख्य धर्म-परायण #हिन्दुओं ने एक सुर में कहा - "औरंगजेब, अगर तेरे खुदा और रसूल मोहम्मद का रास्ता वही है जिस पर तू चल रहा है तो धिक्कार है तुझे,
हमें तेरे रास्ते पर नहीं चलना l"
🚩इतना सुनते ही औरंगजेब के संकेत से गोकुल सिंह की बलशाली भुजा पर जल्लाद का बरछा चला ।
🚩गोकुल सिंह ने एक नजर अपने भुजाविहीन रक्तरंजित कंधे पर डाली और फिर बड़े ही घमण्ड के साथ जल्लाद की ओर देखा और कहा दूसरा वार करो ।

🚩दूसरा बरछा चलते ही वहाँ खड़ी जनता आर्तनाद कर उठी और फिर #गोकुल सिंह के शरीर के #एक-एक जोड़ काटे गए । गोकुल सिंह का सिर जब कटकर धरती माता की गोद में गिरा तो मथुरा में केशवराय जी का मंदिर भी भरभराकर गिर गया । यही हाल उदय सिंह और बाकि साथियों का भी किया गया । उनके छोटे- छोटे बच्चों को #जबरन #मुसलमान बना दिया गया ।
🚩*1 जनवरी 1670 ईसवी का दिन था वह।*
ऐसे अप्रतिम #वीर का कोई भी इतिहास नहीं पढ़ाया गया और न ही कहीं कोई सम्मान ही दिया गया । न ही उनके नाम पर न कोई विश्वविद्यालय है और न कोई केन्द्रीय या राजकीय परियोजना ।
🚩*कितना एहसान फरामोश, कृतघ्न है हिंदू समाज!!*
कैसे वीर हुए इस धरा पर,जिन्होंने #धर्म के लिए प्राण न्यौछावर कर दिये पर इस्लाम नहीं अपनाया ।
🚩गोकुलसिंह सिर्फ जाटों के लिए शहीद नहीं हुए थे न उनका राज्य ही किसी ने छीन लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुगल-सत्ता, दीनतापूर्वक, सन्धि करने की तमन्ना लेकर गिड़-गिड़ाई थी ।
🚩शर्म आती है हमें कि हम ऐसे अप्रतिम वीर को कागज के ऊपर भी सम्मान नहीं दे सके ।
🚩शाही इतिहासकारों ने उनका उल्लेख तक नहीं किया । केवल जाट पुरूष ही नहीं बल्कि उनकी #वीरांगनायें भी अपनी ऐतिहासिक दृढ़ता और पारंपरिक शौर्य के साथ उन सेनाओं का सामना करती रही ।
🚩दुर्भाग्य की बात है कि #भारत की इन #वीरांगनाओं और सच्चे सपूतों का कोई उल्लेख शाही टुकड़ों पर पलने वाले तथाकथित इतिहासकारों ने नहीं किया ।
🚩 1669 की क्रान्ति के जननायक, परतंत्र #भारत में असहयोग आन्दोलन के जन्मदाता, #राष्ट्रधर्म रक्षक #वीर #गोकुल सिंह जी और उनके सात हजार क्रान्तिकारी साथियों के #बलिदान दिवस पर {1जनवरी} उनको शत-शत नमन ।
🚩कैसे वीर थे वो अलबेले,कैसी अमर है उनकी कहानी।
सरदार गोकुल सिंह जी की, आओ याद करें कुर्बानी।।
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