Monday, January 14, 2019

मकर संक्रांति और सूर्य उपासना की महिमा जानकर आप भी हो जाएंगे उसके दीवाने

14 जनवरी  2019

🚩सब पर्वों की तारीखें बदलती जाती हैं किंतु मकर सक्रांति की तारीख नहीं बदलती  । यह नैसर्गिक पर्व है  । किसी व्यक्ति के आने-जाने से या किसी के अवतार के द्वारा इस पर्व की शुरुआत नहीं हुयी है  । प्रकृति में होने वाले  मूलभूत परिवर्तन से यह पर्व संबंधित है और प्रकृति की हर चेष्टा व्यक्ति के तन और मन से संबंध रखती है  । इस काल में भगवान भास्कर की गति उत्तर की तरफ होती है  । अंधकार वाली रात्रि छोटी होती जाती है और प्रकाश वाला दिन बड़ा होता जाता है  । 

🚩पुराणों का कहना है कि इन दिनों देवता लोग जागृत होते हैं  । मानवीय 6 महीने दक्षिणायन के बीतते हैं, तब देवताओं की एक रात होती है । उत्तरायण के दिन से देवताओं की सुबह मानी जाती है । 

🚩ऋग्वेद में आता है कि सूर्य न केवल सम्पूर्ण विश्व के प्रकाशक, प्रवर्त्तक एवं प्रेरक हैं वरन् उनकी किरणों में आरोग्य वर्धन, दोष-निवारण की अभूतपूर्व क्षमता विद्यमान है । सूर्य की उपासना करने एवं सूर्य की किरणों का सेवन करने से प्रकार के  शारीरिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।

🚩जितने भी सामाजिक एवं नैतिक अपराध हैं, वे विशेषरूप से सूर्यास्त के पश्चात अर्थात् रात्रि में ही होते हैं । सूर्य की उपस्थिति मात्र से ही दुष्प्रवृत्तियां नियंत्रित हो जाती  हैं । सूर्य के उदय होने से समस्त विश्व में मानव, पशु-पक्षी आदि क्रियाशील होते हैं । यदि सूर्य को विश्व-समुदाय का प्रत्यक्ष देव अथवा विश्व-परिवार का मुखिया कहें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।

🚩वैसे तो सूर्य की रोशनी सभी के लिए समान होती है परन्तु उपासना करके उनकी विशेष कृपा प्राप्त कर व्यक्ति सामान्य लोगों की अपेक्षा अधिक उन्नत हो सकता है तथा समाज में अपना विशिष्ट स्थान बना सकता है ।

🚩सूर्य एक शक्ति है । भारत में तो सदियों से सूर्य की पूजा होती आ रही है । सूर्य तेज और स्वास्थ्य के दाता माने जाते हैं । यही कारण है कि विभिन्न जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय के लोग दैवी शक्ति के रूप में सूर्य की उपासना करते है ।

सूर्य की किरणों में समस्त रोगों को नष्ट करने की क्षमता विद्यमान है । सूर्य की प्रकाश – रश्मियों के द्वारा हृदय की दुर्बलता एवं हृदय रोग मिटते हैं । स्वास्थ्य, बलिष्ठता, रोगमुक्ति एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए सूर्योपासना करनी ही चाहिए ।

🚩सूर्य नियमितता, तेज एवं प्रकाश के प्रतीक हैं । उनकी किरणें समस्त विश्व में जीवन का संचार करती हैं । भगवान सूर्य नारायण सतत् प्रकाशित रहते हैं । वे अपने कर्त्तव्य पालन में एक क्षण के लिए भी प्रमाद नहीं करते, कभी अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं होते । प्रत्येक मनुष्य में भी इन सदगुणों का विकास होना चाहिए । नियमतता, लगन, परिश्रम एवं दृढ़ निश्चय द्वारा ही मनुष्य जीवन में सफल हो सकता है तथा कठिन परिस्थितियों के बीच भी अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है ।

सूर्य बुद्धि के अधिष्ठाता देव हैं । सभी मनुष्यों को प्रतिदिन स्नानादि से निवृत्त होकर एक लोटा जल सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए । अर्घ्य देते समय इस बीजमंत्र का उच्चारण करना चाहिएः
🚩ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः ।
इस प्रकार मंत्रोच्चारण के साथ जल देने से तेज एवं बौद्धिक बल की प्राप्ति होती है ।

🚩सूर्योदय के बाद जब सूर्य की लालिमा निवृत्त हो जाय तब सूर्याभिमुख होकर कंबल अथवा किसी विद्युत कुचालक आसन् पर पद्मासन अथवा सुखासन में इस प्रकार बैठें ताकि सूर्य की किरणें नाभि पर पड़े । अब नाभि पर अर्थात् मणिपुर चक्र में सूर्य नारायण का ध्यान करें ।

यह बात अकाट्य सत्य है कि हम जिसका ध्यान, चिन्तन व मनन करते हैं, हमारा जीवन भी वैसा ही हो जाता है । उनके गुण हमारे जीवन में प्रगट होने लगते हैं ।

🚩नाभि पर सूर्यदेव का ध्यान करते हुए यह दृढ़ भावना करें कि उनकी किरणों द्वारा उनके दैवी गुण आप में प्रविष्ट हो रहे हैं । अब बायें नथुने से गहरा श्वास लेते हुए यह भावना करें कि सूर्य किरणों एवं शुद्ध वायु द्वारा दैवीगुण मेरे भीतर प्रविष्ट हो रहे हैं । यथासामर्थ्य श्वास को भीतर ही रोककर रखें । तत्पश्चात् दायें नथुने से श्वास बाहर छोड़ते हुए यह भावना करें कि मेरी श्वास के साथ मेरे भीतर के रोग, विकार एवं दोष बाहर निकल रहे हैं । यहाँ भी यथासामर्थ्य श्वास को बाहर ही रोककर रखें तथा इस बार दायें नथुने से श्वास लेकर बायें नथुने से छोड़ें । इस प्रकार इस प्रयोग को प्रतिदिन दस बार करने से आप स्वयं में चमत्कारिक परिवर्तन महसूस करेंगे । कुछ ही दिनो के सतत् प्रयोग से आपको इसका लाभ दिखने लगेगा । अनेक लोगों को इस प्रयोग से चमत्कारिक लाभ हुआ है ।

सूर्य की रश्मियों में अद्भुत रोगप्रतिकारक शक्ति है । दुनिया का कोई वैद्य अथवा कोई मानवी इलाज उतना दिव्य स्वास्थ्य और बुद्धि की दृढ़ता नहीं दे सकता है, जितना सुबह की कोमल सूर्य-रश्मियों में छुपे ओज-तेज से मिलता है ।

भगवान सूर्य तेजस्वी एवं प्रकाशवान हैं । उनके दर्शन व उपासना करके तेजस्वी व प्रकाशमान बनने का प्रयत्न करें ।
ऐसे निराशावादी और उत्साहहीन लोग जिनकी आशाएँ, भावनाएँ व आस्थाएँ मर गयी हैं, जिन्हें भविष्य में प्रकाश नहीं, केवल अंधकार एवं निराशा ही दिखती है ऐसे लोग भी सूर्योपासना द्वारा अपनी जीवन में नवचेतन का संचार कर सकते हैं ।

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Sunday, January 13, 2019

जानिए मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है? क्या करना चाहिए उसदिन?

13 जनवरी  2019

🚩हिन्दू संस्कृति अति प्राचीन #संस्कृति है, उसमें अपने जीवन पर प्रभाव पड़ने वाले ग्रह, नक्षत्र के अनुसार ही वार, तिथि त्यौहार बनाये गये हैं । इसमें से एक है  मकर संक्रांति..!! इस बार 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जायेगी ।

🚩हिंदू धर्म ने माह को दो भागों में बाँटा है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष । इसी तरह वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है। #पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। उक्त दो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है ।   

🚩मकर संक्रांति के दिन #सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करने की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर ढलता जाता है, इसलिए इस काल को उत्तरायण कहते हैं ।  

🚩 इसी दिन से अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है । कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है ।

🚩सूर्य पर आधारित #हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत अधिक महत्व माना गया है । वेद और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है । होली, दीपावली, दुर्गोत्सव, शिवरात्रि और अन्य कई त्यौहार जहाँ विशेष कथा पर आधारित हैं, वहीं #मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है । मकर संक्रांति का महत्व #हिंदू धर्मावलंबियों के लिए वैसा ही है जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय ।  

🚩सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है । इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं । यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे #भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हो, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है ।

🚩विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है:-

🚩उत्तर प्रदेश : मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है । सूर्य की पूजा की जाती है । चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है ।

🚩गुजरात और राजस्थान : उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है ।

🚩आंध्रप्रदेश : संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है ।

🚩तमिलनाडु : किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है । घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है ।

🚩महाराष्ट्र : लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं ।

🚩पश्चिम बंगाल : हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है ।

🚩असम : भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है ।

🚩पंजाब : एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है । धूमधाम के साथ समारोहों का आयोजन किया जाता है ।

🚩इसी दिन से हमारी धरती एक नए वर्ष में और सूर्य एक नई गति में प्रवेश करता है। वैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि 21 मार्च को धरती सूर्य का एक चक्कर पूर्ण कर लेती है तो इसे माने तो #नववर्ष तभी मनाया जाना चाहिए। #इसी 21 मार्च के आसपास ही विक्रम संवत का नववर्ष शुरू होता है और #गुड़ी पड़वा मनाया जाता है, किंतु 14 जनवरी ऐसा दिन है, जबकि धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है। ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है। जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों को ठीक नही माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।  

🚩मकर संक्रांति के दिन ही पवित्र #गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। महाभारत में #पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था, कारण कि #उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएँ या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है।

 🚩दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ सकता है । सब कुछ प्रकृति के नियम के तहत है, इसलिए सभी कुछ प्रकृति से बद्ध है । #पौधा प्रकाश में अच्छे से खिलता है, अंधकार में सिकुड़ भी सकता है । इसीलिए मृत्यु हो तो प्रकाश में हो ताकि साफ-साफ दिखाई दे कि हमारी गति और स्थिति क्या है । क्या हम इसमें सुधार कर सकते हैं? 
क्या ये हमारे लिए उपयुक्त चयन का मौका है ?  

🚩स्वयं भगवान #श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए #गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग #ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। (श्लोक-24-25)  

🚩क्या करे मकर संक्रांति को..???

🚩14 जनवरी - मकर संक्रांति ( पुण्यकालः दोपहर 1:27 से सूर्यास्त तक)

🚩मकर संक्रांति या #उत्तरायण दान-पुण्य का पर्व है । इस दिन किया गया #दान-पुण्य, जप-तप अनंतगुना फल देता है । इस दिन गरीब को अन्नदान, जैसे तिल व गुड़ का दान देना चाहिए। इसमें तिल या तिल के लड्डू या तिल से बने खाद्य पदार्थों को दान देना चाहिए । कई लोग रुपया-पैसा भी दान करते हैं।

🚩मकर संक्रांति के दिन साल का पहला #पुष्य नक्षत्र है मतलब खरीदारी के लिए बेहद शुभ दिन ।

🚩उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के 
इन नामों का जप विशेष हितकारी है ।

ॐ मित्राय नमः । ॐ रवये नमः । 
ॐ सूर्याय नमः । ॐ भानवे नमः ।
ॐ खगाय नमः । ॐ पूष्णे नमः ।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः । ॐ मरीचये नमः । 
ॐ आदित्याय नमः । ॐ सवित्रे नमः ।
ॐ अर्काय नमः ।  ॐ भास्कराय  नमः । 
ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः ।

🚩ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:।  इस मंत्र से सूर्यनारायण की वंदना कर लेना, उनका चिंतन करके प्रणाम कर लेना। इससे सूर्यनारायण प्रसन्न होंगे, निरोगता देंगे और अनिष्ट से भी रक्षा करेंगे।

🚩यदि नदी तट पर जाना संभव नही है, तो अपने घर के स्नान घर में #पूर्वाभिमुख होकर जल पात्र में तिल मिश्रित जल से स्नान करें । साथ ही समस्त पवित्र नदियों व तीर्थ का स्मरण करते हुए ब्रम्हा, विष्णु, रूद्र और भगवान भास्कर का ध्यान करें । साथ ही इस जन्म के पूर्व जन्म के ज्ञात अज्ञात मन, वचन, शब्द, काया आदि से उत्पन्न दोषों की निवृत्ति हेतु #क्षमा याचना करते हुए सत्य धर्म के लिए निष्ठावान होकर सकारात्मक कर्म करने का संकल्प लें । जो संक्रांति के दिन स्नान नही करता वह 7 जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है ।

🚩तिल का महत्व :-

🚩विष्णु धर्मसूत्र में उल्लेख है कि मकर संक्रांति के दिन #तिल का 6 प्रकार से उपयोग करने पर जातक के जीवन में सुख व समृद्धि आती है ।

 🚩तिल के तेल से स्नान करना । #तिल का उबटन लगाना । पितरों को तिलयुक्त तेल अर्पण करना। तिल की आहूति देना । तिल का दान करना । तिल का सेवन करना।

🚩ब्रह्मचर्य बढ़ाने के लिए :-

🚩ब्रह्मचर्य रखना हो, संयमी जीवन जीना हो, वे 
उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण का 
सुमिरन करें, जिससे बुद्धि में बल बढे ।
ॐ सूर्याय नमः... ॐ शंकराय नमः... 
ॐ गं गणपतये नमः... ॐ हनुमते नमः... 
ॐ भीष्माय नमः... ॐ अर्यमायै नमः... 
ॐ... ॐ...

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दसवें गुरु गोविंद सिंह जिन्होंने भारत से उखाड़ फेंका मुगल साम्राज्य को..

12 जनवरी  2019

🚩सिख समुदाय के दसवें धर्म-गुरु (सतगुरु) गोविंद सिंह जी का जन्म पौष शुदि सप्तमी संवत 1723 ( 5 जनवरी 1666) को हुआ था । उनका जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था। इस साल 13 जनवरी को गुरु गोविंद सिंह जयंती मनाई जायेगी।

🚩उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1675 को वे गुरू बने । वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक संत थे।

🚩सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की । जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

🚩गुरू #गोविन्द सिंह ने सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। 

🚩उन्होंने #मुगलों या उनके #सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाड़ियों के राजा) के साथ 14 युद्ध लड़े । धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान किया, जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' भी कहा जाता है । इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, #बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं ।

🚩गुरु गोविंद सिंह जो विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, #मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे।

🚩गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म!!

🚩प्राग राज के निवास समय श्री गोबिंद राय जी के जन्म से एक दिन पहले माता नानकी जी ने स्वाभाविक श्री गुरु तेग बहादुर जी (Shri Guru Teg Bahadar Ji) को कहा कि बेटा! आप जी के पिता ने एक बार मुझे वचन दिया था कि तेरे घर तलवार का धनी बड़ा प्रतापी शूरवीर पोत्र ईश्वर का अवतार होगा । मैं उनके वचनों को याद करके प्रतीक्षा कर रही हूँ कि आपके पुत्र का मुँह मैं कब देखूँगी !
 बेटा जी! मेरी यह मुराद पूरी करो, जिससे मुझे सुख की प्राप्ति हो ।

🚩अपनी माता जी के यह मीठे वचन सुनकर गुरु जी ने वचन किया कि माता जी! आप जी का मनोरथ पूरा करना अकाल पुरख के हाथ मैं है । हमें भरोसा है कि आप के घर तेज प्रतापी #ब्रह्मज्ञानी पौत्र देंगे ।

🚩गुरु जी के ऐसे आशावादी वचन सुनकर माता जी बहुत प्रसन्न हुए । माता जी के मनोरथ को पूरा करने के लिए गुरु जी नित्य प्रति प्रातकाल त्रिवेणी स्नान करके अंतर्ध्यान हो कर वृति जोड़ कर बैठ जाते व पुत्र प्राप्ति के लिए अकाल #पुरुष की आराधना करते ।

🚩गुरु जी की नित्य आराधना और याचना अकाल पुरख के दरबार में स्वीकार हो गई। उसने हेमकुंट के महा तपस्वी दुष्ट दमन को आप जी के घर माता गुजरी जी के गर्भ में जन्म लेने कि आज्ञा की । जिसे स्वीकार करके श्री #दमन (दसमेश) जी ने अपनी माता गुजरी जी के गर्भ में आकर प्रवेश किया ।

🚩गुरु #गोविंद_सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी के घर पटना में 5 जनवरी 1666 को हुआ था। जब वह पैदा हुए थे उस समय उनके पिता असम में #धर्म उपदेश को गये थे। उन्होंने बचपन में फारसी, #संस्कृत की शिक्षा ली और एक योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल सीखा।

🚩गुरु गोबिंद सिंह की तीन #पत्नियाँ थी :- 

🚩21जून, 1677 को 10 साल की उम्र में उनका विवाह माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर #बसंतगढ़ में किया गया। उन दोनों के 3 लड़के हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह ।

🚩4अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनका एक #बेटा हुआ जिसका नाम था #अजीत सिंह।

🚩15अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। वैसे तो उनकी कोई संतान नहीं थी पर सिख धर्म के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा। 

🚩गुरु गोबिन्द सिंह मार्ग :- 

🚩अप्रैल 1685 में, सिरमौर के राजा मत प्रकाश के निमंत्रण पर गुरू गोबिंद सिंह ने अपने निवास को सिरमौर राज्य के पांवटा शहर में स्थानांतरित कर दिया । सिरमौर राज्य के गजट के अनुसार, राजा भीम चंद के साथ मतभेद के कारण गुरु जी को आनंदपुर साहिब छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था और वे वहाँ से टोका शहर चले गये । मत प्रकाश ने गुरु जी को टोका से सिरमौर की राजधानी नाहन के लिए आमंत्रित किया। नाहन से वह पांवटा के लिए रवाना हुये। मत प्रकाश ने गढ़वाल के राजा फतेह शाह के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने के उद्देश्य से गुरु जी को अपने राज्य में आमंत्रित किया था। राजा मत प्रकाश के अनुरोध पर गुरु जी ने पांवटा मे बहुत कम समय में उनके #अनुयायियों की मदद से एक किले का निर्माण करवाया। गुरु जी पांवटा में लगभग तीन साल के लिए रहे और कई ग्रंथों की रचना की। 

🚩सन 1687 में नादौन की लड़ाई में, #गुरु गोविंद सिंह, भीम चंद, और अन्य मित्र देशों की पहाड़ी राजाओं की सेनाओं ने अलिफ खान और उनके सहयोगियों की सेनाओं को हरा दिया था । विचित्र नाटक (गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित आत्मकथा) और भट्ट वाहिस के अनुसार, #नादौन पर बने व्यास नदी के तट पर गुरु गोबिंद सिंह आठ दिनों तक रहे और विभिन्न महत्वपूर्ण सैन्य प्रमुखों का दौरा किया।

🚩भंगानी के युद्ध के कुछ दिन बाद, रानी चंपा (बिलासपुर की विधवा रानी) ने गुरु जी से आनंदपुर साहिब (या चक नानकी जो उस समय कहा जाता था) वापस लौटने का अनुरोध किया जिसे गुरु जी ने स्वीकार किया । वह नवंबर 1688 में वापस आनंदपुर साहिब पहुंच गये ।

🚩1695 में, दिलावर खान (#लाहौर का मुगल मुख्य) ने अपने बेटे #हुसैन खान को आनंदपुर साहिब पर हमला करने के लिए भेजा । मुगल सेना हार गई और हुसैन खान मारा गया। हुसैन की मृत्यु के बाद, दिलावर खान ने अपने आदमियों जुझार हाडा और चंदेल राय को शिवालिक भेज दिया। हालांकि, वे जसवाल के गज सिंह से हार गए थे। पहाड़ी क्षेत्र में इस तरह के घटनाक्रम मुगल सम्राट औरंगजेब के लिए चिंता का कारण बन गए और उसने क्षेत्र में मुगल अधिकार बहाल करने के लिए सेना को अपने बेटे के साथ भेजा।

🚩खालसा पंथ की स्थापना :-

🚩गुरु #गोविंद सिंह जी का नेतृत्व सिख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया रंग ले कर आया। उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा जो कि सिख धर्म के विधिवत् #दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है उसका निर्माण किया।

🚩सिख समुदाय के एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा – कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है? उसी समय एक #स्वयंसेवक इस बात के लिए राजी हो गया और गुरु गोबिंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पूछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राजी हुआ और उनके साथ गया पर वे तम्बू से जब बाहर निकले तो #खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी प्रकार पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु #गोबिंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।

🚩उसके बाद गुरु गोबिंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दुधारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा के बनाने के बाद उन्हें छटवां खालसा का नाम दिया गया जिसके बाद उनका नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया गया। उन्होंने क शब्द के पांच महत्व खालसा के लिए समझाये और कहा – केश, कंगा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा।

🚩यह कहा जाता है कि #गुरु गोबिंद सिंह ने कुल चौदह युद्ध लड़े परन्तु कभी भी किसी पूजा के स्थल के लोगों को ना ही बंदी बनाया या क्षतिग्रस्त किया।

🚩भंगानी का युद्ध Battle of Bhangani (1688)नादौन का #युद्ध 

Battle of Nadaun (1691)गुलेर का युद्ध 

Battle of Guler (1696)आनंदपुर का पहला युद्ध 

First Battle of Anandpur (1700)आनंदपुर साहिब का युद्ध 

Battle of Anandpur Sahib (1701)निर्मोहगढ़ का युद्ध 

Battle of Nirmohgarh (1702)बसोली का युद्ध 

Battle of Basoli (1702)आनंदपुर का युद्ध 

Battle of Anandpur (1704)सरसा का युद्ध 

Battle of Sarsa (1704)चमकौर का युद्ध 

Battle of Chamkaur (1704)मुक्तसर का युद्ध Battle of Muktsar (1705)

🚩परिवार के लोगों की मृत्यु :-

🚩कहा जाता है कि सिरहिन्द के मुस्लिम गवर्नर ने गुरु गोबिंद सिंह के माता और दो पुत्र को बंदी बना लिया था। जब उनके दोनों पुत्रों ने इस्लाम धर्म को कुबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें जिन्दा दफना दिया गया। अपने पोतों के मृत्यु के दुःख को ना सह सकने के कारण माता गुजरी भी ज्यादा दिन तक जीवित ना रह सकी और जल्द ही उनकी मृत्यु हो गयी। मुगल सेना के साथ युद्ध करते समय 1704 में उनके दोनों बड़े बेटों की मृत्यु हो गयी।

🚩जफरनामा :-

🚩गुरु गोबिंद सिंह ने जब देखा कि मुगल सेना ने गलत तरीके से युद्ध किया है और क्रूर तरीके से उनके पुत्रों का हत्या कर दी है तो हथियार डाल देने के बजाये गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को एक जफरनामा (विजय की चिट्ठी) लिखा, जिसमें उन्होंने औरगंजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।

🚩 8 मई सन्‌ 1705 में 'मुक्तसर' नामक स्थान पर मुगलों से भयानक युद्ध हुआ, जिसमें गुरुजी की जीत हुई। मुक्तसर को पंजाब में दोबारा गुरु जी ने स्थापित किया और अदि ग्रन्थ Adi Granth के नए अध्याय को बनाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया जो पांचवें सिख गुरु अर्जुन द्वारा संकलित किया गया है।

🚩उन्होंने अपने लेखन का एक संग्रह बनाया है जिसको नाम दिया दसम ग्रन्थ Dasam Granth और अपनी स्वयं की आत्मकथा जिसका नाम रखा है बिचित्र नाटक Bicitra Natak.

अक्टूबर सन्‌ 1706 में गुरुजी दक्षिण में गए जहाँ पर उनको औरंगजेब की मृत्यु का पता लगा। औरंगजेब ने मरते समय एक शिकायत पत्र लिखा था। हैरानी की बात है कि जो सब कुछ लुटा चुका था, (गुरुजी) वो फतहनामा लिख रहे थे व जिसके पास सब कुछ था वह शिकस्त नामा लिख रहा है। इसका कारण था सच्चाई। गुरुजी ने युद्ध सदैव अत्याचार के विरुद्ध किए थे न कि अपने निजी लाभ के लिए।

🚩अन्तिम समय :-

औरंगजेब की मृत्यु के बाद आपने बहादुरशाह को बादशाह बनाने में मदद की। गुरुजी व बहादुरशाह के संबंध अत्यंत मधुर थे। इन संबंधों को देखकर सरहद का नवाब वजीत खाँ घबरा गया। अतः उसने दो पठान गुरुजी के पीछे लगा दिए। इन पठानों ने गुरुजी पर धोखे से घातक वार किया, जिससे 7 अक्टूबर 1708 में गुरुजी (गुरु गोबिन्द सिंह जी) नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए। अंत समय में सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा व खुद भी माथा टेका। गुरुजी के बाद माधोदास ने, जिसे गुरुजी ने सिक्ख बनाया बंदासिंह बहादुर नाम दिया था, जिन्होंने सरहद पर आक्रमण किया और अत्याचारियों की ईंट से ईंट बजा दी।

🚩 गुरु गोविंद सिंह के नारा था : ‘चिड़ियों से मैं बाज़ लड़ाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं । 

जिनका एक एक सिपाही मुगलों को धूल चटा देता था, जिनका नाम सुनते ही औरंगजेब के पसीने छूटने लगते थे उन गुरु गोविंद सिंह जी को प्राणों से प्यारा था धर्म।

🚩 धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए ऐसे गुरु गोविंद सिंह को शत्- शत् नमन।

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Friday, January 11, 2019

वोटबैंक के लिए नेता बसा रहे हैं अवैद्य बांग्लादेशी, देश के लिए है खतरा

11 जनवरी  2019

🚩नेता वोटबैंक के लिए कुछ भी कर सकते हैं, चाहे देश की सुरक्षा खतरे में चली जाए, आतंकवादी हमले कर दें, हिन्दुओं की सम्पति पर कोई अधिकार कर ले या देश में जनसंख्या बढ़ जाए, इससे नेताओं को कोई लेना-देना नहीं होता है, कई नेता अच्छे भी हैं, लेकिन चूँकि भारत में भ्रष्ट नेताओं की संख्या अधिक है, जिसके कारण ईमानदार नेता भी सहीं से कार्य नहीं कर पाते हैं ।

🚩भारतवासी नेता भी अधिकतर देशहित के निर्णय, न लेकर, वोटबैंक कैसे बढ़े इस बारे में ही सोचते हैं तो फिर विदेश से आई सोनिया गांधी तो देशहित के लिए सोच ही कैसे सकती है ?

🚩आज देश में जनसंख्या बढ़ रही है, उसकी परेशानी बढ़ रही है ऊपर से करोड़ों बांग्लादेशी अवैध रूप से भारत में बस गए हैं, जिससे भारत को और भी अधिक परेशानी उठानी पड़ रही है ।

🚩विपक्ष एक बार फिर राज्यसभा में सरकार के सामने तनकर खड़ा हो गया तथा विपक्ष ने नागरिकता संशोधन विधेयक को पास होने से रोक दिया । अब यह विधेयक अगले सत्र में पेश किया जा सकता है । इस बिल के पास होने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से पीड़ित होकर भारत आने वाले गैर मुस्लिम(हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी) हिंदुस्तान की नागरिकता प्राप्त कर सकेंगे तथा इस बिल के मुताबिक बांग्लादेशी घुसपैठिए को देश छोड़कर जाना होगा, लेकिन मजहबी कट्टरपंथी तथा तथाकथित सेक्यूलर दल इस बिल के खिलाफ है । ये जानने के बाद भी कि बांग्लादेशी घुसपैठिये देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं, देश को खोखला कर रहे हैं, इतना होने पर भी विपक्ष राजनीति से बाज नहीं आ रहा है ।

🚩कब-कब बने चुनौती ?

2012 में असम के कोकराझार में वहां के स्थानीय बोड़ो आदिवासी और बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के बीच जबरदस्त सांप्रदायिक झड़प के कारण 77 लोगों की मौत हो जाती है । इस घटना के बाद से ही असम में घुसपैठियों के प्रति अविश्वास का माहौल तैयार होता है और इस मुद्दे का बहुत तेज़ी से राजनीतिकरण होता है ।

🚩इसी साल रोहिंग्या मुसलमानों और कोकराझार के दंगों में मरने वाले मुसलमानों को लेकर मुंबई के आज़ाद मैदान में बांग्लादेशी मुसलमानों के द्वारा एक रैली का आयोजन किया जाता है जिसमें बांग्लादेशी मुसलमानों की हिंसक भीड़ पुलिस कर्मचारियों को दौड़ा- दौड़ा कर मारती है । 

🚩महिला सिपाहियों के साथ बदसलूकी की जाती है और करोड़ों रुपये की सरकारी सम्पति को नुकसान पहुँचाया जाता है । इस बीच बंगाल और असम में कई बांग्लादेशी घुसपैठियों के तार प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन ‘हूजी’ से जुड़े होने के मामले सामने आते हैं । इस्लामिक स्टेट ने भी भारत में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए घुसपैठियों को अपने एजेंडे में शामिल होने का न्यौता दिया था ।

🚩हिन्दुस्तान सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं । हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं । पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार ने वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया ।

🚩तीन दशकों तक राज्य की राजनीति को चलाने वालों ने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण देश और राज्य को बारूद की ढेर पर बैठने को मजबूर कर दिया । उसके बाद राज्य की सत्ता में वापसी करने वाली ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों के दम पर जिहादी दीदी का तमगा लेकर मुस्लिम वोटबैंक की सबसे बड़ी धुरंधर बन गईं ।

🚩हाल ही में बंगाल के कई इलाकों में हिन्दुओं के ऊपर होने वाले सांप्रदायिक हमलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का ही हाथ रहा है । 2014 में पश्चिम बंगाल के सीरमपुर में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि चुनाव के नतीजे आने के साथ ही बांग्लादेशी ‘घुसपैठियों’ को बोरिया-बिस्तर समेट लेना चाहिए । 2016 में असम में भाजपा की सरकार आने के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अपडेट किया जा रहा है । लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार हिंदुत्व के मोर्चे पर किये गए अपने वादों का संज्ञान लेना चाहती है । बांग्लादेशी मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी ने देश के कई राज्यों में जनसंख्या असंतुलन को बढ़ाने का काम किया है जिसके कारण देश में कई अप्रिय घटनाएं घटित हुई हैं । इसलिए इस समस्या का तुरंत निष्पादन जरूरी है ।


🚩बांग्लादेशी भारत में उपद्रव करते हैं, आतंकवादी गतिविधियां पाई गई हैं । देश की सुरक्षा को बंगलादेशी घुसपैठियों से खतरा है । देश की सुरक्षा के मद्देनजर इन्हें शीघ्र बाहर करना होगा ।

🚩भारत में अवैध घुसपैठियों को, अल्पसंख्यक की सारी सुविधाएं दी जा रही है, दूसरी ओर बांग्लादेश में बस रहे हिंदुओ पर, भीषण अत्याचार किया जा रहा है |

🚩बांग्लादेश माइनॉरिटी वॉच के अध्यक्ष अधिवक्ता #श्री रवींद्र घोष ने कहा कि बांग्लादेश जब से स्वतंत्र हुआ है, तब से आज तक वहां 15 लाख से अधिक हिन्दुओं की हत्या की गई है । स्वतंत्रता के पश्‍चात जब से वहां के शासन ने, संविधान में इस्लाम धर्मानुसार, आचरण करने की धारा घुसाई, तब से निरंतर वहां के हिन्दुओं की, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों को नकारा जा रहा है । वहां के हिन्दुओं को किसी प्रकार का न्याय अथवा अधिकार नहीं मिलता, अपितु हिन्दुओं की भूमि बलपूर्वक दबा ली गई ।

🚩हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर बलात्कार किए जाते हैं । हिन्दुओं के घर-दुकाने जला दिए जातें हैं, सम्पति हड़प ली जाती है,  विद्यालय के बुद्धिमान हिन्दू विद्यार्थियों को मारा जाता है । अभी तक #बांग्लादेश में #3 सहस्र 336 मंदिर तोड़े गए हैं । ऐसे विविध प्रकार से हिन्दुओं पर #अत्याचार और अन्याय किया जाता है तथा उस प्रत्येक घटना के विरोध में #‘बांग्लादेश मायनॉरिटी वॉच’ संघर्ष कर रहा है । 

🚩अखण्ड भारत को जिहादियों ने खण्ड-खण्ड कर दिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश बना दिया, उसमें पहले से ही स्थायी रूप से रह रहे हिन्दुओं पर भीषण अत्याचार किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत मे अवैध रूप में बस रहे, बंगलादेशीयों को सारी सुख-सुविधाएं दी जा रही है, यह कहाँ का न्याय है ?

बंगलादेशीयों और रोहिंग्याओं को शीघ्र बाहर करना होगा, तभी देश की सुरक्षा बनी रहेगी ।

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Thursday, January 10, 2019

स्वामी विवेकानंदजी ने विदेशों में लहरा दिया था हिन्दू संस्कृति का परचम

10 जनवरी  2019
www.azaadbharat.org
🚩 स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी सन 1863  (विद्वानों के अनुसार #मकर संक्रान्ति संवत 1920) को #कलकत्ता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम #नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे।
  🚩दुर्गाचरण दत्ता, (नरेंद्र के दादा) संस्कृत और फारसी के विद्वान थे उन्होंने अपने #परिवार को 25 वर्ष की उम्र में छोड़ दिया और साधु बन गए।
🚩उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थी। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेंद्र के पिता और उनकी माँ के धार्मिक, #प्रगतिशील व तर्कसंगत रवैये ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में मदद की ।
Swami Vivekanandji had waved
 overseas in the field of Hindu culture

🚩बचपन से ही #नरेन्द्र अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के तो थे ही नटखट भी थे। अपने साथी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते और मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे। उनके घर में नियमपूर्वक रोज पूजा-पाठ होता था धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवी को पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था। संत इनके घर आते रहते थे। नियमित रूप से #भजन-कीर्तन भी होता रहता था। #परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से #बालक नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे होते गये। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही #ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी। ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुकता में कभी-कभी वे ऐसे प्रश्न पूछ बैठते थे कि इनके माता-पिता और कथावाचक पण्डितजी तक चक्कर में पड़ जाते थे।
🚩स्वामी विवेकानन्द जी के जीवन की महत्त्वपूर्ण तारीखें!!
🚩12 जनवरी 1863 -- कलकत्ता में जन्म
🚩1879 -- प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश
🚩1880 -- जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश
🚩नवंबर 1881 -- रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेंट
🚩1882-86 -- रामकृष्ण परमहंस से सम्बद्ध
🚩1884 -- स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण; पिता का स्वर्गवास
🚩1885 -- रामकृष्ण परमहंस की अन्तिम बीमारी
🚩16 अगस्त 1886 -- रामकृष्ण परमहंस का निधन
🚩1886 -- वराहनगर मठ की स्थापना
🚩जनवरी 1887 -- वराह नगर मठ में संन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा
🚩1890-93 -- परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण
🚩25 दिसम्बर 1892 -- कन्याकुमारी में
🚩13 फ़रवरी 1893 -- प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकन्दराबाद में
🚩31 मई 1893 -- मुम्बई से अमरीका रवाना
🚩25 जुलाई 1893 -- वैंकूवर, कनाडा पहुँचे
🚩30 जुलाई 1893 -- शिकागो आगमन
🚩अगस्त 1893 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो॰ जॉन राइट से भेंट
🚩11 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान
🚩27 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अन्तिम व्याख्यान
🚩16 मई 1894 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण
🚩नवंबर 1894 -- न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना
🚩जनवरी 1895 -- न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरम्भ
🚩अगस्त 1895 -- पेरिस में
🚩अक्टूबर 1895 -- लन्दन में व्याख्यान
🚩6 दिसम्बर 1895 -- वापस न्यूयॉर्क
🚩22-25 मार्च 1896 -- फिर लन्दन
🚩मई-जुलाई 1896 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान
🚩15 अप्रैल 1896 -- वापस लन्दन
🚩मई-जुलाई 1896 -- लंदन में धार्मिक कक्षाएँ
🚩28 मई 1896 -- ऑक्सफोर्ड में मैक्समूलर से भेंट
🚩30 दिसम्बर 1896 -- नेपाल से भारत की ओर रवाना
🚩15 जनवरी 1897 -- कोलम्बो, श्रीलंका आगमन
🚩जनवरी, 1897 -- रामनाथपुरम् (रामेश्वरम) में जोरदार स्वागत एवं भाषण
🚩6-15 फ़रवरी 1897 -- मद्रास में
🚩19 फ़रवरी 1897 -- कलकत्ता आगमन
🚩1 मई 1897 -- रामकृष्ण मिशन की स्थापना
🚩मई-दिसम्बर 1897 -- उत्तर भारत की यात्रा
🚩जनवरी 1898 -- कलकत्ता वापसी
🚩19 मार्च 1899 -- मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना
🚩20 जून 1899 -- पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा
🚩31 जुलाई 1899 -- न्यूयॉर्क आगमन
🚩22 फरवरी 1900 -- सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की स्थापना
🚩जून 1900 -- न्यूयॉर्क में अन्तिम कक्षा
🚩26 जुलाई 1900 -- यूरोप रवाना
🚩24 अक्टूबर 1900 -- विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा
🚩26 नवम्बर 1900 -- भारत रवाना
🚩9 दिसम्बर 1900 -- बेलूर मठ आगमन
🚩10 जनवरी 1901 -- मायावती की यात्रा
🚩मार्च-मई 1901 -- पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थयात्रा
🚩जनवरी-फरवरी 1902 -- बोध गया और वाराणसी की यात्रा
🚩मार्च 1902 -- बेलूर मठ में वापसी
🚩4 जुलाई 1902 -- महासमाधि!!
🚩स्वामी विवेकानन्द जी की शिक्षा..!!
🚩सन् 1871 में, आठ साल की उम्र में नरेंद्रनाथ ने #ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया जहाँ वे स्कूल गए। 1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया। 1879 में कलकत्ता में अपने परिवार की वापसी के बाद, वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किये ।
🚩वे दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित विषयों के एक #उत्साही पाठक थे। इनकी वेद, उपनिषद, भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में गहन रूचि थी। नरेंद्र को #भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित किया गया था और ये नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम में व खेलों में भाग लिया करते थे। नरेंद्र ने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेंबली इंस्टिटूशन (अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में किया। 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी कर ली।
🚩नरेंद्र ने डेविड ह्यूम, इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोजा, जोर्ज डब्लू एच हेजेल, आर्थर स्कूपइन्हार , ऑगस्ट कॉम्टे, जॉन स्टुअर्ट मिल और चार्ल्स डार्विन के कामों का अध्यन किया। उन्होंने स्पेंसर की किताब एजुकेशन (1861) का बंगाली में अनुवाद किया।  ये हर्बर्ट स्पेंसर के विकासवाद से काफी मोहित थे।  #पश्चिम दार्शनिकों के अध्यन के साथ ही इन्होंने संस्कृत ग्रंथों और बंगाली साहित्य को भी सीखा।विलियम हेस्टी (महासभा संस्था के प्रिंसिपल) ने लिखा, "नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस है। मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है लेकिन उनकी जैसी प्रतिभा वाला एक भी बालक कहीं नहीं देखा यहाँ तक कि जर्मन #विश्वविद्यालयों के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं।" अनेक बार इन्हें श्रुतिधर( विलक्षण स्मृति वाला एक व्यक्ति) भी कहा गया है।
🚩स्वामी विवेकानन्द जी की आध्यात्मिक शिक्षुता - ब्रह्म समाज का प्रभाव!!
🚩1880 में नरेंद्र ईसाई से हिन्दू धर्म में रामकृष्ण के प्रभाव से परिवर्तित केशव चंद्र सेन की नव विधान में शामिल हुए, नरेंद्र 1884 से पहले कुछ बिंदु पर, एक फ्री मसोनरी लॉज और साधारण #ब्रह्म समाज जो ब्रह्म समाज का ही एक अलग गुट था और जो केशव चंद्र सेन और देवेंद्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में था। 1881-1884 के दौरान ये सेन्स बैंड ऑफ़ होप में भी सक्रीय रहे जो धूम्रपान और शराब पीने से युवाओं को हतोत्साहित करता था।
🚩यह नरेंद्र के परिवेश के कारण पश्चिमी आध्यात्मिकता के साथ परिचित हो गया था। उनके प्रारंभिक विश्वासों को ब्रह्म समाज ने (जो एक निराकार ईश्वर में विश्वास और मूर्ति पूजा का प्रतिवाद करते थे) ने प्रभावित किया और सुव्यवस्थित, युक्तिसंगत, अद्वैतवादी अवधारणाओं , धर्मशास्त्र ,वेदांत और उपनिषदों के एक चयनात्मक और आधुनिक ढंग से अध्ययन पर प्रोत्साहित किया।
🚩स्वामी विवेकानन्द जी की निष्ठा..!!
🚩एक बार किसी #शिष्य ने #गुरुदेव की #सेवा में घृणा और निष्क्रियता दिखाते हुए नाक-भौं सिकोड़ीं। यह देखकर विवेकानन्द को क्रोध आ गया। वे अपने उस गुरु भाई को सेवा का पाठ पढ़ाते और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर पी गये । #गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे अपने गुरु के शरीर और उनके दिव्यतम आदर्शों की उत्तम सेवा कर सके। गुरुदेव को समझ सके और स्वयं के अस्तित्व को गुरुदेव के स्वरूप में विलीन कर सके। और आगे चलकर समग्र विश्व में #भारत के अमूल्य आध्यात्मिक भण्डार की महक फैला सके।
🚩ऐसी थी उनके इस #महान व्यक्तित्व की नींव में गुरुभक्ति, गुरुसेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा जिसका परिणाम सारे संसार ने देखा।
🚩स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने #गुरुदेव #रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। उनके गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और #कुटुम्ब की नाजुक हालत व स्वयं के भोजन की चिन्ता किये बिना वे गुरु की सेवा में सतत संलग्न रहे।
🚩विवेकानन्द बड़े स्‍वप्न‍दृष्‍टा थे। #उन्‍होंने एक ऐसे समाज की कल्‍पना की थी जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्‍य-मनुष्‍य में कोई भेद न रहे। उन्‍होंने वेदान्त के सिद्धान्तों को इसी रूप में रखा। अध्‍यात्‍मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धान्त का जो आधार विवेकानन्‍द ने दिया उससे सबल बौद्धिक आधार शायद ही ढूँढा जा सके। #विवेकानन्‍द को युवकों से बड़ी आशाएँ थी।
आज के युवकों के लिये इस ओजस्‍वी सन्‍यासी का जीवन एक आदर्श है।
🚩स्वामी विवेकानन्द जी यात्राएँ!!
🚩25 वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया था । तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे #भारतवर्ष की यात्रा की। सन्‌ 1893 में शिकागो (अमरीका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे। यूरोप-अमरीका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे।
🚩वहाँ लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। परन्तु एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला। उस परिषद् में उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये। फिर तो अमरीका में उनका अत्यधिक स्वागत हुआ। वहाँ उनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय बन गया। तीन वर्ष वे #अमरीका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की। उनकी वक्तृत्व-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया।
🚩"अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा" यह स्वामी विवेकानन्द का दृढ़ विश्वास था। अमरीका में उन्होंने #रामकृष्ण मिशन की अनेक #शाखाएँ स्थापित कीं। अनेक अमरीकी विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। वे सदा अपने को 'गरीबों का सेवक' कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशान्तरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया।
🚩स्वामी विवेकानन्दजी का योगदान !!
🚩39 वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी #विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
🚩तीस वर्ष की आयु में स्वामी #विवेकानन्द ने #शिकागो, अमेरिका के #विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवायी।
🚩 गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था-"यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।"
🚩रोमारोला ने उनके बारे में कहा था-"उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असम्भव है, वे जहाँ भी गये, सर्वप्रथम ही रहे। हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता था। वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी।
🚩हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देख ठिठक कर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा-‘शिव!’ यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के #आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो।"
🚩वे केवल सन्त ही नहीं, एक #महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। अमेरिका से लौटकर उन्होंने #देशवासियों को आह्वान करते हुए कहा था-"नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूँजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पडे झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से।" और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी। #गान्धीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानन्द के आह्वान का ही फल था।
🚩इस प्रकार वे #भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा-स्रोत बने। उनका विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यहीं बड़े-बड़े महात्माओं व ऋषियों का जन्म हुआ, यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं-केवल यहीं-आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिये जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है।
🚩उनके कथन-"‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।"
🚩उन्नीसवीं सदी के आखिरी वर्षोँ में विवेकानन्द लगभग सशस्त्र या हिंसक क्रान्ति के जरिये भी देश को आजाद करना चाहते थे। परन्तु उन्हें जल्द ही यह विश्वास हो गया था कि परिस्थितियाँ उन इरादों के लिये अभी परिपक्व नहीं हैं। इसके बाद ही विवेकानन्द जी ने ‘एकला चलो‘ की नीति का पालन करते हुए एक परिव्राजक के रूप में भारत और दुनिया को खंगाल डाला।
🚩उन्होंने कहा था कि #मुझे बहुत से युवा संन्यासी चाहिये जो भारत के ग्रामों में फैलकर देशवासियों की सेवा में खप जायें।  विवेकानन्दजी पुरोहितवाद, धार्मिक आडम्बरों, कठमुल्लापन और रूढ़ियों के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने धर्म को मनुष्य की सेवा के केन्द्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया था। उनका हिन्दू धर्म अटपटा, लिजलिजा और वायवीय नहीं था।
🚩विवेकानन्द जी इस बात से आश्वस्त थे कि #धरती की गोद में यदि ऐसा कोई देश है जिसने मनुष्य की हर तरह की बेहतरी के लिए ईमानदार कोशिशें की हैं, तो वह भारत ही है।
🚩उन्होंने पुरोहितवाद, ब्राह्मणवाद, धार्मिक कर्मकाण्ड और रूढ़ियों की खिल्ली भी उड़ायी और लगभग आक्रमणकारी भाषा में ऐसी विसंगतियों के खिलाफ युद्ध भी किया। उनकी दृष्टि में हिन्दू धर्म के #सर्वश्रेष्ठ चिन्तकों के विचारों का निचोड़ पूरी दुनिया के लिए अब भी ईर्ष्या का विषय है। #स्वामीजी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को जरूरत भी है लेकिन हमें याचक नहीं बनना चाहिये। हमारे पास उससे ज्यादा बहुत कुछ है जो हम पश्चिम को दे सकते हैं और पश्चिम को उसकी बेसाख्ता जरूरत है।
🚩यह स्वामी विवेकानन्द का अपने देश की धरोहर के लिये दम्भ या बड़बोलापन नहीं था। यह एक वेदान्ती #साधु की भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तटस्थ, वस्तुपरक और मूल्यगत आलोचना थी। बीसवीं सदी के इतिहास ने बाद में उसी पर मुहर लगायी।
🚩स्वामी विवेकानन्द जी की महासमाधि!!
🚩विवेकानंद #ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि #विश्व भर में है। जीवन के अन्तिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा-"एक और विवेकानन्द चाहिये, यह समझने के लिये कि इस #विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है।" उनके शिष्यों के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो तीन घण्टे ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर #महासमाधि ले ली। बेलूर में #गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी। #इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था।
🚩उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक #मन्दिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु #रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की।
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Wednesday, January 9, 2019

महिलाएं बिना अंडरगारमेंट्स के ही चर्च आएं, नहीं तो यीशु प्रवेश नही करेंगे

9 जनवरी  2019

🚩हिन्दू धर्म में महिलाओं को देवी का दर्जा दिया है, नारी तू नारायणी कहा गया है। लेकिन ईसाई धर्म में महिलाओं की स्वतंत्रता के नाम पर पादरी महिलाओं को भोग्या बना दिया है, चर्च में कन्फेशन के नाम पर महिलाओं के बलात्कार कर रहे है, अब पादरी ने अपनी वासना पूरी करने के लिए एक और फरमान जारी कर दिया ईश्वर की आड़ में दुष्कर्म पर बढ़ावा देने वाला फतवा जारी कर रहे है।

🚩ईसाई चर्च के एक पादरी ने कहा कि अगर औरतें अपने अंतर्वस्‍त्र पहनेंगी, तो यह ईश्वर के खिलाफ होगा और ईसा मसीह औरतों के शरीर के अंदर प्रवेश नहीं कर पाएंगे।

🚩पिछले दिनों एक सभा को संबोधित करते हुए पादरी ने कहा कि पैंटी और ब्रा पहनकर आने वाली औरतों को चर्च में प्रवेश नहीं देना चाहिए। यह पादरी केन्या का रहने वाला है और इसका नाम है रेव नोही। रेव लॉर्ड्स प्रोफेलर रिडेंपशन चर्च का प्रतिनिधित्व करता है। इस शख्स ने पुरुषों के अंडरगारमेंट्स के बारे में कुछ नहीं कहा। 

🚩धार्मिक सभा के दौरान पादरी रेव ने महिला श्रद्धालुओं से कहा कि उन्हें बिल्कुल मुक्त होकर चर्च आना चाहिए। कोई भी अंडरगारमेंट्स नहीं पहनने चाहिए। क्राइस्ट को अपने शरीर में पूरी तरह से प्रवेश करने देना चाहिए।

🚩रेव ने तर्क दिया कि चर्च जाते समय लोगों को मन और शरीर से पूरी तरह फ्री होना चाहिए। उनके मुताबिक इस काम में अंडरगारमेंट्स बाधा पहुंचाते हैं।

🚩पादरी की धमकी
रेव अपने खयालों से साथ यहीं नहीं रुका। उसने कमोबेश धमकी देते हुए ये दावा किया कि अगर चर्च का कोई सदस्य गुपचुप ढंग से अंडरगारमेंट्स पहनकर आया, तो उसके साथ बहुत बुरा होगा। पादरी ने महिलाओं से कहा कि चर्च में आने से पहले उन्हें अपनी बेटियों को चेक करना होगा, ताकि वह अंदरूनी कपड़े पहनकर न आ सकें। स्त्रोत : आजतक

🚩ईसाई पादरी अपनी वासनाये पूरी करने के लिए ईश्वर को भी नही छोड़ते, ईश्वर सर्वत्र और सर्वसमर्थ है जब ईश्वर सर्वत्र है तो फिर अंदर भी है फिर प्रवेश करने करने की क्या जरूरत है और सर्वसमर्थ है तो वे कहि भी आ जा सकता है, अन्तर्यामी भी है जो सबके मन की जानते है फिर ये पादरी ईश्वर के नाम पर अपनी वासनाये पूरी करते है वे कैसे धर्मगुरु है? जो ईश्वर की शक्ति को नही जानते है और महिलाओं के प्रति आसक्त है तो कैसे लोगो का भला करेगें? ऐसे पादरियों का बहिष्कार करना चाहिए।

🚩हजारो ईसाई पादरी बच्चों व् महिलाओं के साथ दुष्कर्म करते पकड़े गए है इससे तो साफ होता है कि चर्च को भी ये लोग ने वासनापूर्ति का स्थान बना दिया है, जनता को इससे बचना चाहिए ऐसे लोगो के बहकावे में आकार धर्मपरिवर्तन नही करना चाहिये।

🚩वकील गेल के मुताबिक 1980 से 2015 के बीच ऑस्ट्रेलिया के 1000 कैथोलिक इंस्टीट्यूशनों में 4,444 बच्चों का यौन उत्पीड़न हुआ ।

🚩सन् 1950 से 2002 के काल में #पादरियों के द्वारा किये गये यौन-शोषण के 10,667अपराध दर्ज किये गये 

🚩सन् 2002 में आयरलैंड के पादरियों के यौन-शोषण के अपराधों के कारण 12 करोड़ 80 लाख डॉलर का दंड चुकाना पड़ा । 

🚩मई 2009 में प्रकाशित रायन रिपोर्ट के अनुसार 30,000 बच्चों को चर्च में पादरियों द्वारा प्रताड़ित और शोषित किया जाता रहा ।

🚩अब आप ही तय करे की हमारी भारतीय संस्कृति के संत महान है कि हजारों बच्चो और महिलाओं के यौन शोषण करने वाले पादरी? फिर भी मीडिया और सेकुलर भारत के पवित्र हिन्दू साधु-संतों को ही टारगेट करते है उनपर झूठे आरोप लगाकर जेल भिजवाया जाता है और दुष्कर्मी पादरी खुलेआम बाहर गुमते है अतः बिकाऊ मीडिया से और ईसाई पादरियों से हिंदुस्तानी सावधान रहें।

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