Thursday, April 11, 2019

सुप्रीम कोर्ट का आदेश मंदिर का नियंत्रण भक्त करें, सरकार नहीं

11 अप्रैल 2019 

🚩देश में कांग्रेस सरकार ने पहले सरकारी खजाना खाली कर दिया और उसके बाद उनकी वक्रदृष्टि हिन्दू मंदिरों में श्रद्धालुआें के धन पर पड़ी । इस धन को हड़पने के लिए उन्होंने हिन्दुआें के मंदिरों का सरकारीकरण आरंभ किया । इसके द्वारा मंदिर के श्रद्धालुआें के करोड़ों रुपए लूटे तथा हज यात्रा एवं चर्च के विकास के लिए उस धन का उपयोग किया ।

🚩कर्नाटक में हुए चुनावों के समय भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में हिन्दुआें के सरकारीकरण हुए मंदिर हिन्दुआें को वापस करेंगे, ऐसी एक प्रमुख घोषणा की थी, परंतु महाराष्ट्र में यही भाजपा सरकार हिन्दुआें से मंदिर छीनकर उनका सरकारीकरण कर रही है ।  सरकार कोई भी आए, लेकिन हिन्दुओं के हित का कार्य कोई भी  जल्दी नहीं करता है ।

🚩सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार धर्मनिरपेक्ष सरकार को हिन्दुआें के मंदिर चलाने का अधिकार नहीं है । न्यायालय ने केवल प्रबंधन कि त्रुटियां दूर कर मंदिर पुनः उस समाज को लौटाने के निर्देश दिए हैं । ऐसा होते हुए भी सरकार ने कई मंदिरों का सरकारीकरण किया है, और अभी भी लगातार कर रहे हैं ।

🚩 ‘सरकार की ओर से मंदिरों का होनेवाला सरकारीकरण और सरकार अधिगृहीत मंदिरों की कुव्यवस्था पर तीव्र अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मंदिरों का नियंत्रण भक्तों के हाथों में हो, यह काम सरकार का नहीं है ।’ यही बात हिन्दू जनजागृति समिति पिछले 13 वर्षों से कह रही है । यही बात देश के हिंदू कह रहे हैं । वर्ष 2006 से इस विषय में जन जागृति समिति आंदोलन भी कर रही है । मंदिरों का सरकारीकरण और वहां के भ्रष्ट सरकारी कामकाज के कारण हिन्दू समाज और श्रद्धालुआें में बहुत रोष है । इसलिए, सब राजनैतिक दल श्रीराममंदिर निर्माण की ही भांति मंदिर सरकारीकरण के विषय में अपनी नीति लोकसभा चुनाव से पहले स्पष्ट करें, यह मांग हिन्दू जनजागृति समिति ने की है ।

🚩प्राचीन काल में राज्यकर्ता मंदिरों को दान करते थे, परंतु इस देश में धर्मनिरपेक्ष शासनव्यवस्था लागू होने के पश्‍चात यह परंपरा टूट गई । अब इस शासन में हिन्दुआें के केवल धनी मंदिरों को लूटने का एकसूत्री कार्यक्रम आरंभ हुआ है । मंदिरों में पुजारियों को बदलना, धार्मिक कृत्य, प्रथा-परंपरा बंद करने का कार्य भी सरकार करने लगी है । इस अन्याय के विरुद्ध लड़ने का निश्‍चय हिन्दू जनजागृति समिति ने वर्ष 2006 में किया । उसके पश्‍चात, सरकार अधिग्रहित मंदिरों में श्री सिद्धिविनायक मंदिर (प्रभादेवी), श्री विठ्ठल-रुख्मिणी मंदिर(पंढरपुर), श्री साई संस्थान (शिर्डी), श्री तुलजापुर मंदिर आदि सब प्रमुख मंदिर तथा 3067 मंदिरों की व्यवस्था देखनेवाली ‘पश्‍चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति’ में सरकारी भ्रष्टाचार तथा अनुचित कामकाज को हिन्दू जनजागृति समिति ने प्रमाण के साथ समय-समय पर उजागर किया है । उन भ्रष्टाचारों के विरुद्ध वैध मार्ग से अनेक आंदोलन और वैधानिक लड़ाई अभी भी जारी है । इस लड़ाई में समिति के साथ वारकरी संप्रदाय,हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन, मंदिरों के न्यासी, पुजारी मंडल और भक्त भी बड़ी संख्या में जुड़े हैं ।

🚩यदि मस्जिदों की व्यवस्था मुसलमानों के हाथ में है और चर्च की व्यवस्था ईसाई समाज के हाथ में है, तो मठों और मंदिरों की व्यवस्था हिन्दू समाज के हाथ में क्यों नहीं, उनपर सरकारी नियंत्रण क्यों होना चाहिए ? हमारे इस प्रश्‍न का उत्तर सरकार ने अभी तक नहीं दिया है ।

🚩हिन्दू मंदिरों की व्यवस्था नि:स्वार्थ भक्तों और धर्माचार्य के पास ही होनी चाहिए, यह मांग समिति बार-बार कर रही है । कर्नाटक राज्य के विधानसभा चुनाव के समय भाजपा सरकार ने मंदिरों को भक्तों को लौटाने का आश्‍वासन दिया था । अब देश में लोकसभा का चुनाव होनेवाला है । ऐसे समय सब राजनैतिक दल मंदिरों के सरकारीकरण के विषय में अपनी-अपनी नीति हिन्दू समाज के सामने स्पष्ट करें, यह आवाहन हिन्दू जनजागृति समिति करती है। - स्त्रोत : हिन्दू जनजागृति समिति

🚩सरकारी कामकाज में लगभग सभी जगह भ्रष्टाचार मिलता है अब वे हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक मंदिरों को भी सरकारीकरण करने लगे हैं तो फिर उसमें भ्रष्टाचार होना स्वाभाविक ही है ।

🚩हिन्दू कितना भी आर्थिक रूप से कमजोर हो, लेकिन फिर भी अपनी जिस देवस्थान में आस्था रखता है वहाँ कुछ न कुछ भेंट चढ़ाता ही है और इसलिए ताकि उन पैसों का सहीं इस्तेमाल होगा और सत्कर्म में लगेगा जिससे उसका और उसके परिवार का उद्धार होगा और ऐसे भी हिन्दू धर्म मे कमाई का दसवां हिस्सा दान करने का शास्त्र का नियम है तो लगभग सभी हिन्दू मंदिरों या आश्रमों में जाकर दान करते हैं और उन दान के पैसे से धर्म, राष्ट्र और समाज के उत्थान के लिये कार्य होते हैं ।

🚩सरकार अगर इन मंदिरों का सरकारी करण कर लेती है तो धर्म और राष्ट्र के हित के कार्य रुक जाएंगे और भ्रष्टाचार में पैसे चले जाएँगे इसलिए सरकार को मंदिरों को सरकारी तंत्र से मुक्त कर देना चाहिए ।

🚩सरकार कभी चर्च या मस्जिद को नियंत्रण में लेने के लिए विचार करती है ? अगर नहीं तो फिर मन्दिरों को ही  नियंत्रण में क्यों लेना चाहती है ? जबकि चर्चों और मस्जिदों में धर्मिक उन्माद बढ़ाया जाता है जो देश के लिए हानिकारक है और मंदिरों में शांति का पाठ पढ़ाया जाता है जो देश के लिए हितकारी है अतः अभी सरकार को शीघ्रातिशीघ्र मंदिरों को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त कर देना चाहिए ।

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Tuesday, April 9, 2019

वायनाड में हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने का इतिहास पढ़कर आपकी रूह भी कांप उठेगी

09 अप्रैल 2019 

🚩आजकल केरल का वायनाड चर्चा में है । उत्तर भारत में रहने वाले लोगों को यह संभवत प्रथम बार ज्ञात हुआ कि केरल में एक ऐसा भूभाग है जहाँ पर अहिन्दू (मुस्लिम +ईसाई) जनसंख्या हिन्दुओं से अधिक है । बहुत कम हिन्दुओं को यह ज्ञात होगा कि उत्तरी केरल के कोझिकोड, मल्लपुरम और वायनाड के इलाके दशकों पहले ही हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके थे । इस भूभाग में हिन्दू आबादी कैसे अल्पसंख्यक हुई ?  इसके लिए केरल के इतिहास को जानना आवश्यक हैं ।

🚩1. केरल में इस्लाम का आगमन अरब से आने वाले नाविकों के माध्यम से हुआ । केरल के राजपरिवार ने अरबी नाविकों की शारीरिक क्षमता और नाविक गुणों को देखते हुए उन्हें केरल में बसने के लिए प्रोत्साहित किया । यहाँ तक कि ज़मोरियन राजा ने स्थानीय मलयाली महिलाओं के उनके साथ विवाह करवाए । इन्हीं मुस्लिम नाविकों और स्थनीय महिलाओं की संतान मपिल्ला/ मापला/मोपला अर्थात भांजा कहलाई । ज़मोरियन राजा ने दरबार में अरबी नाविकों को यथोचित स्थान भी दिया । मुसलमानों ने बड़ी संख्या में राजा की सेना में नौकरी करना आरम्भ कर दिया । स्थानीय हिन्दू राजाओं द्वारा अरबी लोगों को हर प्रकार का सहयोग दिया गया । कालांतर में केरल के हिन्दू राजा चेरुमन ने भारत की पहले मस्जिद केरल में बनवाई । इस प्रकार से केरल के इस भूभाग में मुसलमानों की संख्या में वृद्धि का आरम्भ हुआ । उस काल में यह भूभाग समुद्री व्यापार का बड़ा केंद्र बन गया ।

🚩2. केरल के इस भूभाग पर जब वास्को डी गामा ने आक्रमण किया तो उसकी गरजती तोपों के समक्ष राजा ने उससे संधि कर ली । इससे समुद्री व्यापार पर पुर्तगालियों का कब्ज़ा हो गया और मोपला मुसलमानों का एकाधिकार समाप्त हो गया ।  स्थानीय राजा के द्वारा संरक्षित मोपला उनसे दूर होते चले गए । व्यापारी के स्थान पर छोटे मछुआरे आदि का कार्य करने लगे । उनका सामाजिक दर्जा भी कमतर हो गया । उनकी आबादी मूलतः तटीय और ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता में जीने लगी ।

🚩3. केरल के इस भूभाग पर जब टीपू सुल्तान की जिहादी फौजों ने आक्रमण किया तब स्थानीय मोपला मुसलमानों ने टीपू सुल्तान का साथ दिया । उन्होंने हिन्दुओं पर टीपू के साथ मिलकर कहर बरपाया । यह इस्लामिक साम्राज्यवाद की मूलभावना का पालन करना था । जिसके अंतर्गत एक मुसलमान का कर्त्तव्य दूसरे मुसलमान की इस्लाम के नाम पर सदा सहयोग करना नैतिक कर्त्तव्य हैं । चाहे वह किसी भी देश, भूभाग, स्थिति आदि में क्यों न हो । टीपू की फौजों ने बलात हिन्दुओं का कत्लेआम, मतांतरण, बलात्कार आदि किया । टीपू के दक्षिण के आलमगीर बनने के सपने को पूरा करने के लिए यह सब कवायद थी । इससे इस भूभाग में बड़ी संख्या में हिन्दुओं की जनसंख्या में गिरावट हुई । मुसलमानों के संख्या में भारी वृद्धि हुई क्यूंकि बड़ी संख्या में हिन्दू केरल के दूसरे भागों में विस्थापित हो गए ।

🚩4. अंग्रेजी काल में टीपू के हारने के बाद अंग्रेजों का इस क्षेत्र पर आधिपत्य हो गया । मोपला मुसलमान अशिक्षित और गरीब तो थे, पर उनकी इस्लाम के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य को वह भूले नहीं थे । 1919 में महात्मा गाँधी द्वारा तुर्की के खलीफा की सल्तनत को बचाने के लिए मुसलमानों के विशुद्ध आंदोलन को भारत के स्वाधीनता संग्राम के साथ नत्थी कर दिया गया । उनका मानना था कि इस सहयोग के बदले मुसलमान भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ उनका साथ देंगे ।  गाँधी जी के आह्वान पर हिन्दू सेठों ने दिल खोलकर धन दिया, हिन्दुओं ने जेलें भरी, लाठियां खाई । मगर खिलाफत के एक अन्य पक्ष को वह कभी देख नहीं पाए । इस आंदोलन ने मुसलमानों को पूरे देश में संगठित कर दिया । इसका परिणाम यह निकला कि इस्लामिक साम्राज्यवाद के लक्ष्य की पूर्ति में उन्हें अंग्रेजों के साथ-साथ हिन्दू भी रूकावट दिखने लगे ।

🚩1921 में इस मानसिकता की परिणीति मोपला दंगों के रूप में सामने आयी । मोपला मुसलमानों के एक अलीम ने यह घोषणा कर दी कि उसे जन्नत के दरवाजे खुले नजर आ रहे हैं । जो आज के दिन, दीन की खिदमत में शहीद होगा वह सीधा जन्नत जाएगा । जो काफ़िर को हलाक करेगा वह गाज़ी कहलाएगा । एक गाज़ी को कभी दोज़ख का मुख नहीं देखना पड़ेगा । उसके आहवान पर मोपला भूखे भेड़ियों के समान हिन्दुओं की बस्तियों पर टूट पड़े । टीपू सुल्तान के समय किये गए अत्याचार फिर से दोहराए गए । अनेक मंदिरों को भ्रष्ट किया गया । हिन्दुओं को बलात मुसलमान बनाया गया, उनकी चोटियां काट दी गई । उनकी सुन्नत कर दी गई । मुस्लिम पोशाक पहना कर उन्हें कलमा जबरन पढ़वाया गया । जिसने इंकार किया उसकी गर्दन उतार दी गई । ध्यान दीजिये कि इस अत्याचार को इतिहासकारों ने अंग्रेजी राज के प्रति रोष के रूप में चित्रित किया हैं जबकि यह मज़हबी दंगा था । 2021 में इस दंगे के 100 वर्ष पूरे होंगे ।

🚩अंग्रेजों ने कालांतर में दोषियों को पकड़ कर दण्डित किया मगर तब तक हिन्दुओं की व्यापक क्षति हो चुकी । ऐसे में जब हिन्दु समाज की सुध लेने वाला कोई नहीं था । तब उत्तर भारत से उस काल की सबसे जीवंत संस्था आर्यसमाज के कार्यकर्ता लाहौर से उठकर केरल आए । उन्होंने सहायता डिपो खोलकर हिन्दुओं के लिए भोजन का प्रबंध किया । सैकड़ों की संख्या में बलात मुसलमान बनाये गए हिन्दुओं को शुद्ध किया गया । आर्यसमाज के कार्य को समस्त हिन्दू समाज ने सराहा । विडंबना देखिये अंग्रेजों की कार्यवाही में जो मोपला दंगाई मारे गए अथवा जेल गए थे उनके कालांतर में केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने क्रांतिकारी घोषित कर दिया । एक जिहादी दंगे को भारत के स्वाधीनता संग्राम के विरुद्ध संघर्ष के रूप में चित्रित कर मोपला दंगाइयों की पेंशन बांध दी गई। कम्युनिस्टों ने यह कुतर्क दिया कि मोपला मुसलमानों ने अंग्रेजों का साथ देने  वाले धनी हिन्दू जमींदारों और उनके निर्धन कर्मचारियों को दण्डित किया था । कम्युनिस्टों के इस कदम से मोपला मुसलमानों को 1947 के बाद खुली छूट मिली । मोपला 1947 के बाद अपनी शक्ति और संख्याबल को बढ़ाने  में लगे रहे । उन्होंने मुस्लिम लीग के नाम से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नाम से अपना राजनीतिक मंच बनाया ।

🚩5. 1960 से 1970 के दशक में विश्व में खाड़ी देशों के तेल निर्यात ने व्यापक प्रभाव डाला । केरल के इस भूभाग से बड़ी संख्या में मुस्लिम कामगार खाड़ी देशों में गए । उन कामगारों ने बड़ी संख्या में पेट्रो डॉलर खाड़ी देशों से भारत भेजे । उस पैसे के साथ-साथ इस्लामिक कट्टरवाद भी देश ने आयात किया । उस धन के बल पर बड़े पैमाने पर जमीनें खरीदी गईं । मस्जिदों और मदरसों का निर्माण हुआ । स्थानीय वेशभूषा छोड़कर मोपला मुसलमान भी इस्लामिक वेशभूषा अपनाने लगे । मज़हबी शिक्षा पर जोर दिया गया । जिसका परिणाम यह निकला कि इस इलाके का निर्धन हिन्दू अपनी जमीने बेच कर यहाँ से केरल के अन्य भागों में निकल गया। बड़ी संख्या में मुसलमानों ने हिन्दू लड़कियों से विवाह भी किये । इस्लामिक प्रचार के प्रभाव, धन आदि के प्रलोभन में अनेक हिन्दुओं ने स्वेच्छा से इस्लाम को स्वीकार भी किया । केरल से छपने वाले सालाना सरकारी गजट में हम ऐसे अनेक उदहारणों को पढ़ सकते हैं। इस धन के प्रभाव से संगठित ईसाई भी अछूते नहीं रहे । असंगठित हिन्दू समाज तो इस प्रभाव को कैसे ही प्रभावहीन करता । ऐसी अवस्था में इस भूभाग का मुस्लिम बहुल हो जाना स्वाभाविक ही तो है।

🚩वर्तमान  स्थिति यह है कि धीरे-धीरे इस इलाके में इस्लामिक कट्टरवाद बढ़ता गया । इन मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व मुस्लिम लीग करती हैं । जी हाँ वही मुस्लिम लीग जो 1947 से पहले पाकिस्तान के बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी । हिन्दुओं का केरल में असंगठित होने के कारण कोई राजनीतिक रसूख नहीं हैं । वे कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के मध्य विभाजित हैं । जबकि ईसाई और मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि नेताओं से खूब मोल भाव कर वोट के बदले अपनी मांगें मनवाते हैं । इसलिए केरल की जनसँख्या में आज भी सबसे अधिक होने के बाद भी जाति, सामाजिक हैसियत, धार्मिक विचारों में विभाजित होने के कारण हिन्दु अपने ही प्रदेश में एक उपेक्षित है। यही कारण है कि शबरीमाला जैसे मुद्दों पर केरल की सरकार हिन्दुओं की उपेक्षा कर उनके धार्मिक मान्यताओं को भाव नहीं दे रही है । जिन अरबी मुसलमानों को केरल के हिन्दू राजा ने बसाया था । उन्हें हर प्रकार से संरक्षण दिया । उन्हीं मोपला की संतानों ने हिन्दुओं को अपने ही प्रदेश के इस भूभाग में अल्पसंख्यक बनाकर उपेक्षित कर दिया । समस्या यह है कि वर्तमान में इस बिगड़ते जनसँख्या समीकरण से निज़ात पाने के लिए हिन्दुओं की कोई दूरगामी नीति नहीं हैं ।  हिन्दुओं को अब क्या करना है ।  इस पर आत्मचिंतन करने की तत्काल आवश्यकता है। अन्यथा जैसा कश्मीर में हुआ वैसा ही केरल में न हो जाए । - डॉ विवेक आर्य

🚩आज भी हिंदू संस्कृति, हिंदू त्यौहार, हिंदू साधु-संतों, हिंदू कार्यकर्ताओं एवं हिंदू मंदिरों पर षडयंत्र हो रहा इसको रोकने के लिए हिंदुओ को संघठित होना पड़ेगा नहीं तो राष्ट्र विरोधी ताकते हमें गुलाम बनाकर हमारे पर राज करेंगी ।

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Monday, April 8, 2019

हिन्दी भाषी छात्रों पर जुल्म कब तक ???

8 अप्रैल 2019
🚩आज भारत को आज़ादी मिले 71 वर्षों से भी अधिक समय हो चुका है, हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन लोगों में देशभक्ति देखने को मिलती है, देशभक्ति के गीत हर जगह गाए और बजाए जाते हैं, लेकिन जब बात अपनी मातृभाषा, अपनी हिंदी पर आती है तो बस एक ही लाइन सुनने में आती है और वो है "My hindi is weak" । ये लाइन बोलने वाला व्यक्ति आज एक सभ्य नागरिक माना जाता है और हिंदी बोलने वाला गांव का गंवार ।
🚩क्या सच में ये हम हिंदुओं का हिंदुस्तान है, जहां की राष्ट्र भाषा हिंदी है ?

🚩एक ओर जहां जर्मनी, जापान, चीन जैसे बड़े-बड़े देश अपनी मातृभाषा को सम्मान देकर, आपनी खुद की राष्ट्रभाषा का उपयोग कर उन्नति के शिखर पर पहुंच रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर हमारे अपने हिंदुस्तान में हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी को महत्व न देकर अंग्रेजी को महत्व दिया जा रहा है ।
🚩यहां तक कि देश की सबसे बड़ी परीक्षा UPSC में भी हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी को महत्व दिया जा रहा है । वैसे तो सभी जगहों पर अंग्रेजी को महत्व दिया जाता है, लेकिन हम यहां UPSC  को इसलिए उजागर कर रहे हैं क्योंकि यही वो परीक्षा है जो देश को बड़े-बड़े IAS, IPS जैसे अधिकारी देती है । देश की सेवा करने के इच्छुक विद्यार्थी इस परीक्षा को बड़े जतन से देते हैं, लेकिन अगर उन्हें सिर्फ इस बात से रोक दिया जाए कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती तो ये कितना उचित है ?
🚩इस वर्ष  UPSC के रिजल्ट ने  हिन्दी भाषी छात्रों को पलायन पर मजबूर कर दिया है । परीक्षा में सम्मिलित 800 छात्रों में मात्र  20 छात्र सफल हुए जो मात्र 2.5% है ।

🚩इसमें जो सफल भी हुए, उनका रैंक बहुत ही ज्यादा हो गया है।  इस वर्ष जिसने हिन्दी भाषा से टॉप किया है, उसका रैंक  389 है, जो कॉपी मूल्यांकन पर बार बार सवाल खड़ा कर रहा है ।
🚩जी हां अभी हाल ही में ऐसा ही चौका देने वाला मामला सामने आया है, राज्य सभा में संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी की परीक्षाओं में क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव का मामला उठा। बीजेपी के उत्तर प्रदेश से सांसद हरनाथ सिंह यादव ने रिपोर्ट के हवाले से बताया कि यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले हिंदी माध्यम के छात्रों की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है।
🚩हिंदी मीडियम वालों के साथ भेदभाव:-
🚩हरनाथ सिंह ने कहा कि हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों की संख्या में हो रही गिरावट गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने हिंदी मीडियम के अभ्यर्थियों के साथ होने वाली भेदभाव की ओर सदन का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि यूपीएससी की मुख्य परीक्षा की कॉपी चेक करने पर भी आरोप लग रहे हैं।
🚩UPSC कॉपी की जांच JNU, BHU जैसे भारत के बड़े बड़े विश्वविद्यालय के प्रोफेसर करते हैं । ये अंग्रेजी माध्यम के जानकार रहते हैं और बहुत से हिन्दी अक्षरों को समझ भी नहीं पाते हैं। और कॉपी में औसत अंक देते जाते हैं।

🚩हिन्दी माध्यम के इंटरव्यू में भी  अंग्रेजी पर आधारित प्रश्न पूछे जाते है, जिसका खामियाजा हिन्दी भाषी छात्र को उठाना पर रहा है।
🚩वे हिंदी माध्यम के छात्रों के साथ भेदभाव करते हैं। तथा इंटरव्यू के दौरान हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के साथ अपमानजनक व्यवहार भी किया जाता है । 
🚩सवाल ही गलत तो जवाब का क्या :-
🚩सांसद सिंह ने यूपीएससी के हिंदी के पेपर को लेकर भी सवाल खड़े किए । उन्होंने कहा कि इंग्लिश के पेपर का हिंदी में अनुवाद गूगल ट्रांसलेट की मदद से किया जाता है । मशीनी अनुवाद होने के कारण सवाल का सिर्फ पूरा ढांचा ही नहीं बदलता, बल्कि कई बार सवाल में काफी गलती होती है। ऐसे में किसी मेधावी छात्र के लिए भी उन सवालों का जवाब देना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा कि जब सवाल ही गलत होंगे, तो जवाब सहीं कैसे हो सकता है। :- इंडिया टाइम्स
🚩ऊपर की खबरों को पढ़कर आपको पता चल ही गया होगा कि यूपीएससी जैसे एग्जाम में कितने गैरजिम्मेदाराना कार्य हो रहे हैं । देश की अच्छी तरह से सेवा कौन कर सकता ?
🚩वो जो अपनी राष्ट्रभाषा बोलता हो, उसे सम्मान देता हो या वो जो अंग्रेजों की भाषा को अपनाकर, अपनी भाषा को कहीं दूर छोड़ आया हो ?
🚩UPSC के गलत शिक्षा प्रणाली छात्रों पर भारी पड़ रही है,  इसके बावजूद सरकार मौन है ।
🚩माना आज का परिवेश ऐसा बन गया है कि अंग्रेजी को एक जरूरत की तरह देखा जाता है लेकिन इसे बनाने वाले कौन हैं ? क्या हम अपनी हिंदी भाषा बोलकर देश की सेवा नहीं कर सकते ?
🚩सभी मौसियों का सम्मान करना चाहिए लेकिन प्रेम तो अपनी माँ से ही हो, ऐसे ही सभी भाषाओं को सम्मान की दृष्टि से देखो, लेकिन अपनी मातृभाषा, अपनी हिंदी को सर्वोपरि रखो ।
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Sunday, April 7, 2019

जानिए गणगौर पर्व क्यों मनाया जाता है ? व्रत करने से क्या होगा फायदा?

07 अप्रैल 2019

🚩गणगौर का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । यह पर्व चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है इस साल 8 अप्रैल 2019 को यह पर्व मनाया जाएगा ।

भारत देश की संस्कृति इतनी महान, व्यापक और दिव्य है कि हर व्यक्ति की रगों में परोपकार, परहित आदि के लिए स्वार्थरहित होकर कार्य करना जन्म से ही है । 

🚩भारतीय संस्कृति उच्छ्रंखलता को निषिद्ध करके सुसंस्कारिता को प्राथमाकिता देती है । दूसरे देशों में प्रायः ऐसा नहीं है । यूरोप, अमेरिका आदि में तो स्वतन्त्रता के नाम पर पशुता का तांडव हो रहा है । एक दिन में तीन पति बदलने वाली औरतें भी अमेरिका जैसे देश में मिल जाती हैं ।

🚩यूरोप के कई देशों में तो शादी को मुसीबत माना गया है तथा यौन स्वैच्छाचार को वैध माना जाता है जबकि भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के साथ शास्त्रानुकूल शारीरिक संबंध ही वैध माना जाता है । 

🚩गृहस्थाश्रमरूपी रथ के दो पहिये हैं – पति और पत्नी । अगर एक भी पहिये में कमजोरी रहती है तो रथ की गति अवरूद्ध होती है । विदेशों में पति-पत्नी जैसा कोई संबंध रहा नहीं, लेकिन यहाँ भारत में अब भी पति को देवता माना जाता है और पत्नी को देवी कहा गया है इसलिए समाज में इतनी उच्छ्रंखलता, मनमुखता एवं पशुता का खुला प्रचार होते हुए भी दुनिया के 250 देशों का सर्वेक्षण करने वालों ने पाया कि हिन्दुस्तान का दाम्पत्य जीवन सर्वश्रेष्ठ एवं संतुष्ट जीवन है । यह भारतीय संस्कृति के दिव्य ज्ञान एवं ऋषि-मुनियों के पवित्र मनोविज्ञान का प्रभाव है ।

🚩भारत मे महिलाएं पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य उत्तम रहे है इसलिए कई व्रत रखती हैं, उनमें से एक है गणगौर व्रत ।

🚩गणगौर पर्व:-

होली के दूसरे दिन से महिलाएं और नवविवाहिताएं गणगौर की पूजा करनी शुरू कर देती हैं और गणगौर वाले दिन इसका समापन होता है । गणगौर चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलने वाला त्योहार है । यह माना जाता है कि माता गवरजा होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं तथा आठ दिनों के बाद ईसर (भगवान शिव ) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं और चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है ।

🚩विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और प्यार पाने के लिए गणगौर पूजती हैं, वहीं कुंवारी लड़कियां अच्छा वर पाने के लिए ईशर-गणगौर की पूजा करती हैं । होली के दूसरे दिन से ही युवतियां 16 दिनों तक सुबह जल्दी उठकर बगीचे में जाती हैं और दूबा, फूल लाती हैं । उस दूबा से दूध के छींटे मिट्टी की बनी गणगौर माता चढ़ाती हैं । थाल में पानी, दही, सुपारी और चांदी का छल्ला अर्पित किया जाता है ।

🚩प्राचीनकाल में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या, व्रत आदि किया था । भगवान शिव माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और माता पार्वती की मनोकामना पूरी की । तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए और सुहागने अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए ईशरजी और मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं ।

🚩गणगौर वाले दिन महिलाएं सज-धज कर सोलह श्रृंगार करती हैं और माता गौरी की विधि-विधान से पूजा करके उन्हें श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करती हैं । इस दिन मिट्टी से ईशर और गणगौर की मूर्ति बनाई जाती है और इन्हें बड़े ही सुंदर ढंग से सजाया जाता है । गणगौर पर विशेष रूप से मैदा के गुने बनाए जाते हैं और गणगौर माता को गुने, चूरमे का भोग लगाया जाता है ।

🚩शादी के बाद लड़की पहली बार गणगौर अपने मायके में मनाती है और गुनों तथा सास के कपड़ों का बायना निकालकर ससुराल में भेजती है । यह विवाह के प्रथम वर्ष में ही होता है, बाद में प्रतिवर्ष गणगौर लड़की अपनी ससुराल में ही मनाती है । ससुराल में भी वह गणगौर का उद्यापन करती है और अपनी सास को बायना, कपड़े तथा सुहाग का सारा सामान देती है ।

🚩साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर प्रत्येक को सम्पूर्ण श्रृंगार की वस्तुएं और दक्षिणा दी जाती है । दोपहर बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है, यानि कि विसर्जित किया जाता है । विसर्जन कुएं या तालाब में किया जाता है ।

🚩कुछ समय पहले मनोवैज्ञानिकों ने ʹप्लेनेट प्रोजेक्टʹ के अऩ्तर्गत इंटरनेट के माध्यम से विश्व भर के दम्पत्तियों के वैवाहिक जीवन का सर्वेक्षण किया । सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य था ʹकिस देश के पती-पत्नी एक-दूसरे से संतुष्ट हैं ?ʹ

🚩लम्बी जाँच के बाद जब निष्कर्ष निकाला गया तो विश्लेषक यह देखकर चकित रह गए कि विश्व के 250 देशों में से भारतीय दम्पत्ति एक-दूसरे से सर्वाधिक सुखी व संतुष्ट हैं । अन्य देशों में ऐसा देखने को नहीं मिला ʹवहाँ के दम्पत्ति अपने जीवनसाथी में कुछ-न-कुछ बदलाव अवश्य लाना चाहते हैं ।

🚩भारत के ऋषि-मुनियों ने सत्शास्त्रों के रूप में अपने भावी संतानों के लिए दिव्य ज्ञान धरोहर के रूप में  छोड़ा है तथा इस कलियुग में भी साधु-संत, नगर-नगर जाकर समाज में चरित्र, पवित्रता, अध्यात्मिकता एवं कर्तव्यपरायणता के सुसंस्कार सींच रहे हैं ।

🚩इसी का यह शुभ परिणाम है कि पाश्चात्य अपसंस्कृति के आक्रमण के बावजूद भी ऋषि-मुनियों का ज्ञान भारतवासियों के चरित्र एवं संस्कारों की रक्षा कर रहा है तथा इन्हीं संस्कारों के कारण वे सुखी एवं संतुष्ट जीवन जी रहे हैं ।

🚩रामायण, महाभारत एवं मनुस्मृति व मानवता का प्रभाव ही तो है कि आज भी सर्वेक्षण करने वाले प्लेनेट प्रोजेक्टरों को 250 देशों में केवल भारतीय दम्पत्तियों को ही परस्पर सुखी, संतुष्ट एवं श्रेष्ठ कहना पड़ा । धन्य है भारत की संस्कृति !

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