Wednesday, August 7, 2019

जानिए भारतीय इतिहास और प्रतिभा का विकृतिकरण कैसे हुआ ?

07 अगस्त 2019
http://azaadbharat.org
🚩कुछ दिन पहले MA की इतिहास की पुस्तक पढ़ा ।उसमे लिखा था प्राचीन भारत में जाति को वर्ण कहा जाता था । संस्कृत भाषा में वर्ण का अर्थ है रंग । अतः रंग के आधार पर उत्तर भारतीयों ने गौरे रंग वालों को ब्राह्मण कहा । उत्तर भारत के काले रंग वाले व दक्षिण भारत के काले रंग वालों को भी शूद्र, दस्यु आदि नाम से कहा । यही बात UGC के इतिहास चैनल पर एक प्राध्यापिका बोल रही थी |

🚩इस विषय में हमें भ्रमित करने या संबंधित इतिहास का विकृतिकरण करने का कार्य मैकडानल ने विशेष रूप से किया। उन्होंने अपनी पुस्तक 'वैदिक रीडर' में लिखा-"ऋग्वेद की ऋचाओं से प्राप्त ऐतिहासिक सामग्री से पता चलता है कि 'इण्डो आर्यन' लोग सिंधु पार करके भी आदिवासियों के साथ युद्घ में संलग्न रहे। ऋग्वेद में उनकी इन विजयों का वर्णन है। वे अपनी तुलना में आदिवासियों को यज्ञविहीन, आस्थाहीन, काली चमड़ी वाले व दास रंग वाले और अपने आपको आर्य-गोरे रंग वाले कहते थे। मैकडानल का यही झूठ आज तक हमारे विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जा रहा है। यह भारत है और इसमें सब चलता है-भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर।
🚩ग्रिफिक ने ऋग्वेद (1/10/1) का अंग्रेजी में अनुवाद करते हुए की टिप्पणी में लिखा है-कालेरंग के आदिवासी, जिन्होंने आर्यों का विरोध किया। 'उन्होंने कृष्णवर्णों के दुर्गों को नष्ट किया। उन्होंने दस्युओं को आर्यों के सम्मुख झुकाया तथा आर्यों को उन्होंने भूमि दी। सप्तसिन्धु में वे दस्युओं के शस्त्रों को आर्यों के सम्मुख पराभूत करते हैं।''
🚩रोमिला थापर ने अपनी पुस्तक 'भारत का इतिहास' में लिखा कि वर्ण व्यवस्था का मूल रंगभेद था। जाति के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्द वर्ण का अर्थ ही रंग होता है।
सच्चाई इसके बिलकुल विपरीत है । सभी भाषाओं में अनेकार्थी शब्द होते हैं । वर्ण शब्द भी अनेकार्थी है । यहाँ वर्ण शब्द का अर्थ है चुनाव । गुण, कर्म और स्वभाव से वर्ण निश्चित होता था । जन्म से नहीं ।
इतिहास लेखन का निमित्त उद्देश्य विशेष की प्राप्ति
जब भारत पर अंग्रेजों ने छल से, बल से और कूटनीति से पूरी तरह से कब्जा कर लिया तो उन्हें उस कब्जे को स्थाई बनाने की चिन्ता हुई। भारत में अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए उन्हें तलवार के बल की अपेक्षा यह मार्ग सरल लगा कि इस देश का इतिहास, भाषा और धर्म बदल दिया जाए। उनका दृढ़ विश्वास था कि संस्कृति के बदले हुए परिवेश में जन्मे, पले और शिक्षित भारतीय कभी भी अपने देश और अपनी संस्कृति की गौरव-गरिमा के प्रति इतने निष्ठावान, अपनी सभ्यता की प्राचीनता के प्रति इतने आस्थावान और अपने साहित्य की श्रेष्ठता के प्रति इतने आश्वस्त नहीं रह सकेंगे।

🚩झूठ को हज़ार बार बोलें तो झूठ सच लगने लगता है।
--
🚩आर्यों का बाहर से आक्रमण, यहाँ के मूल निवासियों को युद्ध कर हराना, उनकी स्त्रियों से विवाह करना, उनके पुरुषों को गुलाम बनाना, उन्हें उत्तर भारत से हरा कर सुदूर दक्षिण की ओर खदेड़ देना, अपनी वेद आधारित पूजा पद्धति को उन पर थोंपना आदि अनेक भ्रामक, निराधार बातों का प्रचार जोर-शोर से किया जाता है।
----
🚩वैदिक वांग्मय और इतिहास के विशेषज्ञ स्वामी दयानंद सरस्वती जी का कथन इस विषय में मार्ग दर्शक है।
स्वामीजी के अनुसार किसी संस्कृत ग्रन्थ में यह इतिहास में नहीं लिखा कि आर्य लोग ईरान से आये और यहाँ के जंगलियों से लड़कर, जय पाकर, निकालकर इस देश के राजा हुए
(सन्दर्भ-सत्यार्थप्रकाश 8 सम्मुलास)
🚩जो आर्य श्रेष्ठ और दस्यु दुष्ट मनुष्यों को कहते हैं वैसे ही मैं भी मानता हूँ, आर्यावर्त देश इस भूमि का नाम इसलिए है कि इसमें आदि सृष्टि से आर्य लोग निवास करते हैं इसकी अवधि उत्तर में हिमालय दक्षिण में विन्ध्याचल पश्चिम में अटक और पूर्व में ब्रहमपुत्र नदी है इन चारों के बीच में जितना प्रदेश है उसको आर्यावर्त कहते और जो इसमें सदा रहते हैं उनको आर्य कहते हैं। (सन्दर्भ-स्वमंतव्यामंतव्यप्रकाश-स्वामी दयानंद)।
----
🚩135 वर्ष पूर्व स्वामी दयानंद द्वारा आर्यों के भारत पर आक्रमण की मिथक थ्योरी के खंडन में दिए गये तर्क का खंडन अभी तक कोई भी विदेशी अथवा उनका अँधानुसरण करने वाले मार्क्सवादी इतिहासकार नहीं कर पाए हैं। एक कपोल कल्पित, आधार रहित, प्रमाण रहित बात को बार-बार इतना प्रचार करने का उद्देश्य विदेशी इतिहासकारों की 'बांटो और राज करो' की कुटिल नीति को प्रोत्साहन मात्र देना है। इतिहास में अगर कुछ भी घटा है तो उसका प्रमाण होना उसका इतिहास में वर्णन मिलना उस घटना की पुष्टि करता है। किसी अंग्रेज इतिहासकार ने कुछ भी लिख दिया और आप उसे बिना प्रमाण, बिना उसकी परीक्षा के सत्य मान रहे हैं-- इसे मूर्खता कहें या गोरी चमड़ी की मानसिक गुलामी कहें। सर्वप्रथम तो हमें कुछ तथ्यों को समझने की आवश्यकता हैं:-
🚩प्रथम तो 'आर्य' शब्द जातिसूचक नहीं अपितु गुणवाचक हैं अर्थात आर्य शब्द किसी विशेष जाति, समूह अथवा कबीले आदि का नाम नहीं हैं अपितु अपने आचरण, वाणी और कर्म में वैदिक सिद्धांतों का पालन करने वाले, शिष्ट, स्नेही, कभी पाप कार्य न करनेवाले, सत्य की उन्नति और प्रचार करनेवाले, आतंरिक और बाह्य शुचिता इत्यादि गुणों को सदैव धारण करनेवाले आर्य कहलाते हैं।
---
🚩आर्य का प्रयोग वेदों में श्रेष्ठ व्यक्ति के लिए (ऋक 1/103/3, ऋक 1/130/8 ,ऋक 10/49/3) विशेषण रूप में प्रयोग हुआ हैं।
🚩अनार्य अथवा दस्यु किसे कहा गया है?
अनार्य अथवा दस्यु के लिए 'अयज्व’ विशेषण वेदों में (ऋग्वेद १|३३|४) आया है अर्थात् जो शुभ कर्मों और संकल्पों से रहित हो और ऐसा व्यक्ति पाप कर्म करने वाला अपराधी ही होता है। अतः यहां राजा को प्रजा की रक्षा के लिए ऐसे लोगों का वध करने के लिए कहा गया है। सायण ने इस में दस्यु का अर्थ चोर किया है।
--
---
🚩यजुर्वेद 30/ 5 में कहा हैं- तप से शुद्रम अर्थात शुद्र वह हैं जो परिश्रमी, साहसी तथा तपस्वी हैं।
🚩वेदों में अनेक मन्त्रों में शूद्रों के प्रति भी सदा ही प्रेम-प्रीति का व्यवहार करने और उन्हें अपना ही अंग समझने की बात कही गयी हैं और वेदों का ज्ञान ईश्वर द्वारा ब्राह्मण से लेकर शुद्र तक सभी के लिए बताया गया हैं।
🚩यजुर्वेद 26 ।2 के अनुसार हे मनुष्यों! जैसे मैं परमात्मा सबका कल्याण करने वाली ऋग्वेद आदि रूप वाणी का सब जनों के लिए उपदेश कर रहा हूँ, जैसे मैं इस वाणी का ब्राह्मण और क्षत्रियों के लिए उपदेश कर रहा हूँ, शूद्रों और वैश्यों के लिए जैसे मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिन्हें तुम अपना आत्मीय समझते हो , उन सबके लिए इसका उपदेश कर रहा हूँ और जिसे ‘अरण’ अर्थात पराया समझते हो, उसके लिए भी मैं इसका उपदेश कर रहा हूँ, वैसे ही तुम भी आगे आगे सब लोगों के लिए इस वाणी के उपदेश का क्रम चलते रहो।
🚩अथर्ववेद 19 ।62 ।1 में प्रार्थना हैं कि हे परमात्मा ! आप मुझे ब्राह्मण का, क्षत्रियों का, शूद्रों का और वैश्यों का प्यारा बना दें।
🚩यजुर्वेद 18 ।48 में प्रार्थना हैं कि हे परमात्मन आप हमारी रुचि ब्राह्मणों के प्रति उत्पन्न कीजिये, क्षत्रियों के प्रति उत्पन्न कीजिये, विषयों के प्रति उत्पन्न कीजिये और शूद्रों के प्रति उत्पन्न कीजिये।
🚩अथर्ववेद 19 ।32 ।8 हे शत्रु विदारक परमेश्वर मुझको ब्राह्मण और क्षत्रिय के लिए, और वैश्य के लिए और शुद्र के लिए और जिसके लिए हम चाह सकते हैं और प्रत्येक विविध प्रकार देखने वाले पुरुष के लिए प्रिय कर।
🚩द्रविड़ और आर्य-
बात कुछ पुरानी है । भारत में पहला उपग्रह बना । महान भारतीय गणितज्ञ के नाम पर इसका नामकरण किया गया आर्यभट्ट । तमिलनाडू के राजनेताओं ने यह कह कर विरोध किया कि आर्य भट्ट तो विदेशी ब्राह्मण था । उसके नाम को प्रयोग ना किया जाए ।
🚩कुछ समय पहले मैं तिरुक्कुल का हिंदी भाषान्तर पढ़ रहा था । तिरुक्कुल को तमिल वेद भी कहा जाता है और इसके लेखक तिरुवल्लुवर को ऋषि कह कर सम्मानित किया जाता है ।
इसे पढ़ कर लगा कि तिरुक्कुल और मनुस्मृति आदि वैदिक ग्रन्थों में बहुत अधिक समानता है । इसका समय 300 इस्वी पूर्व (300 BC) माना जाता है । कुछ लोग इसका समय इतना पुराना नहीं मानते परन्तु इस बात पर सभी सहमत हैं कि यह तमिल की प्राचीनतम रचनाओं में से एक है । मनु स्मृति इससे बहुत प्राचीन है । आश्चर्य है वेद की तरह इसमें भी कोई पाठभेद नहीं है ।
🚩मनु स्मृति और तिरुक्कुल की तुलना (कोष्ठक में संख्या तुरुक्कुल के पद्य की संख्या है)
1-
संन्यास और ब्राह्मण
तिरुक्कुल- सदाचार पर चलकर संन्यास ग्रहण करना सर्वश्रेष्ठ है । (21 ) मुक्ति के लिए संन्यास ग्रहण करे (22)
🚩मनुस्मृति - सन्यासी का धर्म है कि मुक्ति के लिए इन्द्रियों को दुराचार से रोक कर सभी जीवों पर दया करे ।
🚩2- गृहस्थ
तिरुक्कुल- गृहस्थ अन्य 3 आश्रमों के धर्माकुल जीवन जीने में सहायक होता है । (41) धन करते समय पाप से बचे और खर्च करते समय बाँट कर प्रयोग करे ।(44) नियमानुसार गृहस्थ जीवन जीने वाला सभी आश्रमों से श्रेष्ठ है ।(46)

🚩मनुस्मृति- जिसके दान से 3 आश्रमों का जीवन चलता है वह गृहस्थ आश्रम सबसे बड़ा है ।  ।जैसे सभी वायु के आश्रित होते हैं वैसे ही सभी आश्रम गृहस्थ के आश्रित हैं । गृहस्थ धर्मानुकुल धन का संचय करे ।
यह केवल दिग्दर्शन मात्र है । इस विषय पर पूरी पुस्तक लिखी जा सकती है ।
हमारा उद्देश्य केवल यह दिखाना है कि तमिल साहित्य का आधार संस्कृत साहित्य है । इसलिए तमिल भाषा और साहित्य, संस्कृत से प्रेरित है ।
🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻
🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk
🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt
🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf
🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG
🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

वैज्ञानिक एवं शास्त्रों की दृष्टि में मांसभक्षण-निषेध क्यों है?

06 अगस्त 2019
http://azaadbharat.org
🚩दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा शाकाहारी लोग रहते हैं । इसकी एक वजह हमारे शास्त्र द्वारा इसकी सहमति ना देना है क्योंकि मांस खाना इंसान के शरीर के लिए नुकसानदेय है ।
🚩महाभारत में "मांसभक्षणकी घोर निन्दा की गई है। मनुष्य को मन, वचन और कर्म से हिंसा न करने और मांस न खाने का आदेश देते हुए दिया है

🚩स्वमांसं परमांसेन यो वर्धयितुमिच्छति ।
नाति क्षुद्रतरस्तस्मात्स नृशंसतरो नरः ।।
अर्थ―जो दूसरों के मांस से अपना मांस बढ़ाना चाहता है, उससे बढ़कर नीच और निर्दयी मनुष्य दूसरा कोई नहीं है
🚩रुपमव्यङ्गतामायुर्बुद्धिं सत्त्वं बलं स्मृतिम् ।
प्राप्तुकामैर्नरैहिंसा वर्जिता वै महात्मभिः । ―(21/9)
अर्थात्―जो सुन्दर रुप, पूर्णाङ्गता, पूर्ण-आयु, उत्तम बुद्धि, सत्त्व, बल और स्मरणशक्ति प्राप्त करना चाहते थे, उन महात्माओं ने हिंसा का सर्वथा त्यागकर दिया था।
🚩न भक्षयति यो मांसं न च हन्त्यान्न घातयेत् ।
तन्मित्रं सर्वभूतानां मनुः स्वायम्भुवोऽब्रवीत् ।।―(21/12)
अर्थात्―स्वायम्भुव मनु का कथन है―"जो मनुष्य न मांस खाता है, न पशु-हिंसा करता और न दूसरे से ही हिंसा कराता है, वह सभी प्राणियों का मित्र होता है।"
🚩अधृष्यः सर्वभूतानां विश्वास्यः सर्वजन्तुषु ।
साधूनां सम्मतो नित्यं भवेन्मांसं विवर्जयन् ।। ―(21/13)
अर्थ―जो मनुष्य मांस का परित्याग कर देता है, वह सब प्राणियों में आदरणीय, सब जीवों का विश्वसनीय और सदा साधुओं से सम्मानित होता है
🚩स्वमांसं परमांसेन यो वर्धयितुमिच्छति ।
*_नाति क्षुद्रतरस्तस्मात्स नृशंसतरो नरः ।।
―(21/14)_*
अर्थ―जो दूसरों के मांस से अपना मांस बढ़ाना चाहता है, उससे बढ़कर नीच और निर्दयी मनुष्य दूसरा कोई नहीं है
🚩ददाति यजते चापि तपस्वी च भवत्यपि ।
मधुमांसनिवृत्येति प्राह चैवं बृहस्पतिः ।। ―(21/15)
अर्थ―बृहस्पतिजी का कथन है―"जो मद्य और मांस त्याग देता है, वह दान देता, यज्ञ और तप करता है अर्थात् उसे इन तीनों का फल मिलता है।"
🚩एवं वै परमं धर्मं प्रशंसन्ति मनीषिणः ।
प्राणा यथाऽऽत्मनोऽभीष्टा भूतानामपि वै तथा ।। ―(21/17)
अर्थात्―इस प्रकार मनीषी पुरुष अहिंसारुप परमधर्म की प्रशंसा करते हैं। जैसे मनुष्य को अपने प्राण प्रिय होते हैं, वैसे ही सभी प्राणियों को अपने-अपने प्राण प्रिय जान पड़ते हैं।
🚩अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः ।
अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते ।। ―(21/19)
अर्थ―अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तप है और अहिंसा परम सत्य हैक्योंकि उसी से धर्म की प्रवृत्ति होती है
🚩न हि मांसं तृणात् काष्ठादुपलाद् वापि जायते ।
हत्वा जन्तुं ततो मांसं तस्माद् दोषस्तु भक्षणे ।। ―(21/20)
अर्थ―मांस तृण से, काष्ठ (लकड़ी) से अथवा पत्थर से पैदा नहीं होता, वह प्राणी की हत्या करने पर ही उपलब्ध होता है, अतः उसके खाने में महान् दोष है
🚩कान्तारेष्वथ घोरेषु दुर्गेषु गहनेषु च ।
मांसभक्षणे राजन् भयमन्यैर्न गच्छति ।। ―(21/22)
अर्थ―हे राजन् ! जो मनुष्य मांस नहीं खाता वह संकटपूर्ण स्थानों, भयंकर दुर्गों और गहन वनों में भी दूसरों से नहीं डरता।
🚩धन्यं यशस्यमायुष्यं स्वर्ग्यं स्वस्त्ययनं महत् ।
मांसस्याभक्षणं प्राहुर्नियताः परमर्षयः ।। ―(21/27)
अर्थ―नियमपरायण महर्षियों ने मांसभक्षण के त्याग को ही धन, यश, दीर्घायु और स्वर्गसुख-प्राप्ति का प्रधान उपाय तथा परमकल्याण का साधन बताया है
🚩अखादन्ननुमोदंश्च भावदोषेण मानवः ।
योऽनुमोदति हन्यन्तं सोऽपि दोषेण लिप्यते ।। ―(21/31)
अर्थ―जो स्वयं तो मांस नहीं खाता, परन्तु खाने वाले का अनुमोदन करता है, वह भी भाव-दोष के कारण मांसभक्षण के पाप का भागी होता है।इसी प्रकार जो मारनेवाले का अनुमोदन करता है, वह भी हिंसा के दोष से लिप्त होता है
🚩हिरण्यदानैर्गोदानैर्भूमिदानैश्च सर्वशः ।
मांसस्याभक्षणे धर्मो विशिष्टः स्यादिति श्रुतिः ।। ―(21/33)
अर्थ―सुवर्णदान, गोदान और भूमिदान करने से जो धर्म प्राप्त होता हैमांसभक्षण न करने से उसकी अपेक्षा भी विशिष्ट धर्म की प्राप्ति होती है, ऐसा सुना जाता है
🚩इज्यायज्ञश्रुतिकृतैर्यो मार्गैरबुधोऽधमः ।
*_हन्याज्जन्तून् मांसगृध्नुः स वै नरकभाङ्नरः ।।
―(21/34)_*
अर्थ―जो मांसलोभी मूर्ख एवम् अधम मनुष्य यज्ञ-याग आदि वैदिक मार्गों के नाम पर प्राणियों की हिंसा करता है, वह नरकगामी होता है
🚩नात्मनोऽस्ति प्रियतरः पृथिवीमनुसृत्य ह ।
तस्मात्प्राणिषु सर्वेषु दयावानत्मवान् भवेत् ।। ―(21/47)
अर्थात्―इस भूमण्डल पर अपने आत्मा से बढ़कर कोई प्रिय पदार्थ नहीं है, अतः मनुष्य को चाहिए कि प्राणियों पर दया करे और सबको अपनी ही आत्मा समझे।
🚩मां स भक्षयते यस्माद् भक्षयिष्ये तमप्यहम् ।
एतन्मांसस्य मांसत्वमनुबद्ध्यस्व भारत ।। ―(21/51)
अर्थात्―हे भारत ! (वध्य प्राणी कहता है―) "आज मुझे वह खाता है, तो कभी मैं भी उसे खाऊँगा"―यही मांस का मांसत्व है―यही मांस शब्द का तात्पर्य है
🚩सर्वयज्ञेषु वा दानं सर्वतीर्थेषु वाऽऽप्लुतम् ।
सर्वदानफलं वापि नैतत्तुल्यमहिंसया । ―(21/56)
अर्थ―सम्पूर्ण यज्ञों में दिया हुआ दान, समस्त तीर्थों में किया हुआ स्नान समस्त दानों का जो फल―यह सब मिलकर भी अहिंसा के बराबर नहीं हो सकता।
https://www.facebook.com/288736371149169/posts/2158796850809769/
🚩वैज्ञानिक दृष्टिकोण में मांसाहार-
मांस खाने वाले ज्यादातर लोगों चिड़चिड़ापन होता है और ज्यादा गुस्सा होते है और शरीर व मन दोनों अस्वस्थ बन जाते हैं । गंभीर बीमारियों की चपेट में ज्यादा आते हैं । इन बीमारियों में हाई ब्लड प्रशेर, डायबिटिज, दिल की बीमारी, कैंसर, गुर्दे का रोग, गठिया और अल्सर शामिल हैं ।
🚩विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार मांसाहार का सेवन करना हमारे शरीर के लिए उतना ही नुकसानदायक होता है जितना कि धूम्रपान असर करता है । इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पका हुआ मांस खाने से कैंसर का खतरा बना रहता है ।
🚩दुनिया के एक चौथाई प्रदूषण का कारण मांस है । अगर दुनिया के लोग मांस खाना छोड़ दें तो 70 प्रतिशत तक प्रदूषण कम हो जाएगा ।
🚩मांसाहार की तुलना में शाकाहारी भोजन सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है । शाकाहारी भोजन करने से इंसान स्वस्थ, दीर्घायु, निरोग और तंदरुस्त बनाता है ।
🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻
🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk
🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt
🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf
🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG
🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

जानिए कश्मीर का इतिहास और 370 क्यों और किसने बनाई थी?

🚩जानिए कश्मीर का इतिहास और 370 क्यों और किसने बनाई थी?
05 अगस्त 2019
http://azaadbharat.org
🚩प्राचीनकाल में कश्मीर हिन्दू संस्कृति का गढ़ रहा है। यहाँ पर भगवान शिव और माता पार्वती रहते थे । यहाँ झील में देवताओं का वास था, वहाँ एक राक्षस भी रहने लगा, जो देवताओं को सताने लगा, जिसका वैदिक ऋषि कश्यप और देवी सती ने मिलकर अंत कर दिया, ऋषि कश्यप द्वारा उस असुर को मारने से उस जगह का नाम कश्यपमर पड़ा, जो आगे चलकर कश्मीर नाम से जाना जाने लगा ।

🚩कश्मीर संस्कृत विद्या का विख्यात केन्द्र रहा। कश्मीर शैवदर्शन भी यहीं पैदा हुआ और पनपा। यहां के महान मनीषियों में पतञ्जलि, दृढ़बल, वसुगुप्त, आनन्दवर्धन, अभिनवगुप्त, कल्हण, क्षेमराज आदि हैं। यह धारणा है कि विष्णुधर्मोत्तर पुराण एवं योगवशिष्ठ यहीं लिखे गये।
🚩कश्मीर सदियों तक एशिया में #संस्कृति एवं दर्शन शास्त्र का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा और संतों का दर्शन यहां की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।
🚩प्राचीन काल में यहाँ हिन्दू आर्य राजाओं का राज था। मौर्य सम्राट अशोक और कुषाण सम्राट कनिष्क के समय कश्मीर बौद्ध धर्म और संस्कृति का मुख्य केन्द्र बन गया। पूर्व-मध्ययुग में यहाँ के चक्रवर्ती सम्राट ललितादित्य ने एक विशाल साम्राज्य कायम कर लिया था।
🚩मध्ययुग में मुस्लिम आक्रान्ता कश्मीर पर काबिज हो गये। कुछ मुसलमान शाह और राज्यपाल (जैसे शाह ज़ैन-उल-अबिदीन) हिन्दुओं से अच्छा व्यवहार करते थे पर कई (जैसे सुल्तान सिकन्दर बुतशिकन) ने यहाँ के मूल कश्मीरी हिन्दुओं को मुसलमान बनने पर, या राज्य छोड़ने पर या मरने पर मजबूर कर दिया। कुछ ही सदियों में कश्मीर घाटी में मुस्लिम बहुमत हो गया। मुसलमान शाहों में ये बारी बारी से अफगान, कश्मीरी मुसलमान, मुगल आदि वंशों के पास गया।
🚩मुगल सल्तनत गिरने के बाद ये सिख महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में शामिल हो गया। कुछ समय बाद जम्मू के हिन्दू डोगरा राजा गुलाब सिंह डोगरा ने ब्रिटिश लोगों के साथ सन्धि करके जम्मू के साथ साथ कश्मीर पर भी अधिकार कर लिया (जिसे कुछ लोग कहते हैं कि कश्मीर को खरीद लिया)। डोगरा वंश भारत की आजादी तक कायम रहा।
🚩भारत की स्वतन्त्रता के समय हिन्दू राजा हरि सिंह यहाँ के शासक थे।  कश्मीर को लेने के लिए पाकिस्तानी फौज द्वारा आक्रमण हुआ उस समय जवाहरलाल नेहरु प्रधानमंत्री थे उन्होंने भारतीय सेना भेजने से इन्कार कर दिया, लेकिन सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हवाई जहाज से कश्मीर में सैन्य भेजा तब तक कश्मीर का दो तिहाई हिस्सा पाकिस्तान कब्जाने में सफल रहा।
🚩कश्मीर का बाकी का हिस्सा गुरुजी (माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर) के समझाने पर महाराजा ने भारत में विलय कर दिया। भारतीय सेना ने कश्मीर राज्य का काफी हिस्सा बचा लिया । भारतीय सेना दो हिस्से लेने की तैयारी में थी तबतक नेहरू ने सैन्य को युद्ध विराम दे दिया । जो आजतक पोक आदि हिस्से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हैं । नेहरू की वजह से आज तक अलगावादी नेता वहाँ राज कर रहे हैं ।
🚩370 और 35a किसने बनवाई:
देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने मित्र शेख अब्दुल्ला के आग्रह पर आर्टिकल 370 का और 35 ए को लागू करने का निर्णय किया था, किंतु नेहरू जब इस आर्टिकल 370 को संविधान सभा में लेकर गए और सबके सामने रखा तो एक भी व्यक्ति इसका समर्थन करने को तैयार नहीं था और वहां यह पास ना हो सका, सरदार पटेल गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री थे और नेहरू ने सरदार पटेल से आग्रह किया कि आर्टिकल 370 को संविधान सभा से पास करा दीजिए, सरदार पटेल नहीं माने नेहरू ने सोचा कि कांग्रेस कार्यसमिति के अधिकांश लोग तो संविधान सभा के भी सदस्य हैं, यदि यह कांग्रेस की कार्यसमिति से पास हो गया तो फिर हम संविधान सभा से भी इसे पास करा सकते हैं, किंतु जब प्रस्ताव कांग्रेस कार्यसमिति के सामने रखा गया तो कांग्रेस की कार्यसमिति ने भी एक स्वर से इसका विरोध किया कि ऐसा संभव नहीं है ।
🚩अब नेहरू के मित्र शेख अब्दुल्ला पुनः विलाप करते हुए नेहरू के पास गये और नेहरू ने इस बार गोपाल स्वामी आयंगर को निर्देश दिया कि आप यह आर्टिकल 370 संविधान सभा में पास करवाएंगे और पटेल से कहा कि इसके लिए जो भी करना पड़े वह कीजिए ।
🚩गोपाल स्वामी आयंगर ने स्पष्ट कहा कि “ ठीक है मैं यह कर देता हूं, किंतु यह गलत है और भविष्य में आपको पछताना पड़ेगा”,
वी पी मेनन ने भी यह अपनी बायोग्राफी में लिखा है कि “मैं मना करता रहा, लेकिन क्योंकि प्रधानमंत्री नेहरू के आदेश का पालन करना था इसलिए मैंने यह किया”
लेकिन इस कानून की गंभीरता और दुष्परिणाम को समझते हुए उन्होंने उस आर्टिकल 370 में क्लॉज़ डाल दिया कि यह एक अस्थाई यानी टेंपरेरी धारा थी और आज मोदी सरकार ने आर्टिकल 370 को हटा दिया ।
🚩कश्मीर से धारा 370 एवं 35A हटाने की सभी राष्ट्रनिष्ठ एवं हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों की मांग पूर्ण करने के लिए प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदी जी और गृहमंत्री श्री अमित शाह जी का धन्यवाद !
🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻
🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk
🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt
🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf
🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG
🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ