Friday, August 16, 2019

स्वतंत्रता दिवस तो मना लिया पर क्या हम स्वतन्त्र हैं?

15 अगस्त 2019
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🚩सभी देशवासियों ने 15 अगस्त की खुशियां मनाई और मनानी भी चाहिए क्योंकि हमें 700 साल मुगलों ने और 200 साल अंग्रेजों ने गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था उससे हमें स्वतंत्रता मिली तो खुशी होनी चाहिए, लेकिन मुगलों से आज़ाद होने के लिए लाखों और अंग्रेजों के अत्याचारी शासन से मुक्त होने के लिए 732000 शहीदों ने बलिदान दिया है ।
🚩15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की बाह्य गुलामी तो दूर हुई, लेकिन अंग्रेजी भाषा की, उनके बनाये कानून और उनके विचारों की गुलामी तो हमारे दिमाग में घुसी हुई है । उनकी बनाई हुई शिक्षा प्रणाली आज भी चल रही है।

🚩स्वतंत्रता दिवस की खुशियाँ मनानी चाहिए पर खुशी मनाने के साथ खुशी शाश्वत रहे, ऐसी नजर रखो। इसके लिए देश को तोड़ने वाले षड्यंत्रों से बचें, संयमी और साहसी बनें, बुद्धिमान बनें। अपनी संस्कृति व उसके रक्षक संतों के प्रति श्रद्धा तोड़ने वालों की बातें मानकर अपने देश की जड़ें खोदने का दुर्भाग्य अपने हाथ में न आये। बड़ी कुर्बानी देकर आजादी मिली है। फिर यह आजादी विदेशी ताकतों के हाथ में न चली जाय, उसका ध्यान रखना ही 15 अगस्त याद दिलाता है।
🚩आज कॉन्वेंट स्कूल , मीडिया, टीवी, इंटरनेट आदि के माध्यम से उनकी संस्कृति हमें परोसकर हमारे देशवासियों को कमजोर कर रहे हैं । दूसरा अंग्रेजों के बनाये कानून के द्वारा आज भी निर्दोष को न्याय और अपराधियों को सजा नही होने के कारण अपने भारतीय संस्कृति के अनुसार भारत की व्यवस्था करनी चाहिए जिसके कारण देशवासियों को न्याय मिल पाए।
🚩विदेशी लोग अपनी पाश्चात्य संस्कृति से परेशान होकर वे लोग हमारी संस्कृति व भाषा अपना रहे हैं।
🚩हमे भी अपनी वैदिक संस्कृति, अपने देश की जलवायु और रीति-रिवाजों के अनुसार स्वास्थ्य लाभ, सामाजिक जीवन और आत्मिक उन्नति करानेवाली भारत की महान संस्कृति का आदर करना चाहिये, लाभ लेना चाहिए । अंग्रेजी कल्चर का दिखावटी जीवन भीतर से खोखला कर देता है । संयमी, सदाचारी और साहसी भारतीय संस्कृति के सपूतों को अपनी मिली हुई आजादी को सावधानी से सँभाले रखना चाहिये । उनकी संस्कृति अपनाकर हमें परतंत्र नही बनाना चाहिए बल्कि अपनी महान भारतीय वैदिक संकृति अपनाकर स्वतंत्र बनना चाहिए।
आइये आपको कुछ नमूने बताते हैं जो विदेशियों की विवशता और भारतवासियों की महामूर्खता कर रहे हैं-
🚩1. आठ महीने ठण्ड पड़ने के कारण कोट पेंट पहनना विदेशियों की विवशता और शादी वाले दिन भरी गर्मी में कोट - पेंट डालकर बारात लेकर जाना हमारी मूर्खता ।
🚩2. ठण्ड में नाक बहते रहने के कारण टाई लगाना विदेशियों की विवशता और दूसरों को प्रभावित करने के लिऐ जून महीने में टाई कसकर घर से निकलना हमारी मूर्खता ।
🚩3. ताजा भोजन उपलब्ध ना होने के कारण सड़े आटे से पिज्जा, बर्गर, नूडल्स आदि खाना विदेशियों की विवशता और 56 भोग छोड 400/- की सड़ी रोटी (पिज्जा ) खाना हमारी मूर्खता ।
🚩4. ताजे भोजन की कमी के कारण फ्रीज का इस्तेमाल करना यूरोप की विवशता और रोज दो समय ताजी सब्जी बाजार में मिलनें पर भी हफ्ते भर की सब्जी मंडी से लेकर फ्रीज में ठूसकर सड़ा-सड़ा कर खाना हमारी मूर्खता ।
🚩5. जड़ी बूटियों का ज्ञान ना होने के कारण... जीव जंतुओं के हाड़मांस से दवाएं बनाना उनकी विवशता और आयुर्वेद जैसा महान चिकित्सा ग्रंथ होेने के बावजूद हाड़मांस की दवाईयां उपयोग करना हमारी महामूर्खता ।
🚩6. पर्याप्त अनाज ना होने के कारण जानवरों को खाना उनकी विवशता और 1600 किस्मों की फसलें होनें के बाबजूद जीभ के स्वाद के लिए किसी निर्दोष प्राणी को मारकर उसे खाना हमारी मूर्खता ।
7. लस्सी, दूध, जूस आदि ना होने के कारण कोल्ड ड्रिंक को पीना उनकी विवशता और 36 तरह के पेय पदार्थ होते हुए भी कोल्ड ड्रिंक नामक जहर को पीकर खुद को आधुनिक समझ कर इतराना हमारी महा मूर्खता ।
🚩8. टाइट कपड़े पहनने के कारण जमीन की जगह कुर्सी पर बैठ कर भोजन करना उनकी विवशता और हमारी मूर्खता ।
9. न बोल पाने की असमर्थता के कारण उनका संस्कृत ना बोलना और जोड़-तोड़ वाली अंग्रेजी से काम चलाना और दूसरी ओर अपनी महान संस्कृत से विमुख होकर अंग्रेजी बोलने का प्रयास करना हमारी मूर्खता ।
🚩10. असभ्य, लालची और स्वार्थी स्वभाव के कारण अपने माँ बाप से अलग रहना । ये उनका दुर्व्यवहार अपने में लाना हमारी मूर्खता ।
🚩क्या ये भारतीयों को शोभा देता है..???
🚩भारतीय अपनी मूर्खता छोड़ें और अपनी दिव्य , महान संस्कृति पर ध्यान देे...
🚩भारत महान था, महान है ,किंतु महान तब रहेगा जब देशवासी ऐसी महामूर्खताओं को त्याग कर अपने देश की महानता को समझेंगे ।
🚩हमें स्वतंत्र होना है तो उनके कानून, उनकी शिक्षा और उनकी संस्कृति को खत्म करके हमारी संस्कृति के अनुसार करना होगा तभी पूर्ण स्वतंत्र होंगे।
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Tuesday, August 13, 2019

संस्कृत भाषा कितनी महान है जानिए बड़ी हस्तियों के उद्गार

13 अगस्त 2019

🚩देववाणी संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है, संस्कृत भाषा से ही विश्व की सभी भाषाओं का उद्गम हुआ है । 15 अगस्त को संस्कृत दिवस है, लेकिन अधिकतर भारतवासीयों को ये बात पता नही होगी क्योंकि ये सब इतिहास में पढ़ाया नहीं जाता है ।

🚩संस्कृत भाषा की कितनी महिमा है, उसका कोई भी पूरा वर्णन नहीं कर सकता आइए आपको बताते हैं कि कई बड़ी-बड़ी हस्तियों ने क्या कहा है संस्कृत भाषा के बारे में...

🚩संस्कृत भारतीय अस्मिता है। भारतीय भाषाओं में मात्र संस्कृत ही देश के लोगों को अपनी संस्कृति और इतिहास से परिचित कराकर भारत की एकता और अखंडता की रक्षा करने में समर्थ है। - पूर्वमहामहिम राष्ट्रपति, श्री ज्ञानी जेल सिंह

🚩भारतवर्ष में संस्कृत भाषा ही ऐसी भाषा है जो सर्वग्राह्य है । स्वतंत्रता संग्राम के समय जब बोलचाल के लिए अंग्रेजी भाषा का हर और विरोध हो रहा था । तब जेल में विभिन्न प्रान्तों व प्रदेशो के स्वतंत्रता  सेनानियों को परस्पर बातचीत करने व समझने में संस्कृत भाषा ही अयत्यन्त सहायक व उपयोगी सिद्ध हुई। - स्वतंत्रता सेनानी श्री मन्मथनाथ गुप्त

🚩भारतीय ऋषियों ने हमेशा तन, मन और धन संस्कारों में पवित्रता के उपाय बताए, साथ ही वाणी की शुद्धता के लिए भी उन्होंने देश को संस्कृति के रूप में एक वैज्ञानिक भाषा का वरदान दिया है। -पूर्व मंत्री, दिल्ली, श्री राजेन्द्र गुप्ता

🚩स्वाधीनता की प्रेरणा संस्कृत वाड्मय ने दी और स्वतंत्रता सेनानियों ने गुरुकुलों से इसकी योजना तैयार की । -पूर्वमहापौर, दिल्ली नगर निगम, श्रीमती शाकुन्तल आर्य

🚩भारत और भारतीयता की कल्पना संस्कृत भाषा मे अभाव में अधूरी है ।
-पूर्वसंसदीय सचिव, दिल्ली विधानसभा, श्री नंदकिशोर गर्ग

🚩समाज में नैतिकता का ह्रास संस्कृत भाषा की उपेक्षा के कारण हुआ है। -पूर्वखाद्य , संभकारण एवं समजकल्यानमंत्री, दिल्ली कु० पूर्णिमा सेठी

🚩संस्कृतज्ञ और संस्कृति-प्रेमी लोग ही भारत को नई दिशा दे सकते हैं । - पूर्वनागार्निगमपार्षद, दिल्ली, श्री महेश चंद्र शर्मा

🚩कविता के द्वारा राष्ट्रजगारण का कार्य सर्वप्रथम संस्कृत-कवियों ने किया । - पुरबविधायक दिल्ली, श्री जीतराम सोलंकी

🚩महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण ने जिस प्रकार तत्कालीन समाज में संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया था, उसी प्रकार इस समय संस्कृत विद्वानों को कुछ विशिष्ट रचनाओं के द्वारा करना चाहिए । - पूर्वविधायक, दिल्ली, श्री स्वरूपचंद राजन

🚩संस्कृत वाड्मय समस्त ज्ञान-विज्ञान का कोष है, संप्रति लोक जीवन के कल्याणार्थ का व्यवहार आवश्यक है । - पूर्वविशेष सचिव (भाषा एवं शिक्षा), दिल्ली, श्री अनंत सागर अवस्थी

🚩मानव-इतिहास के सम्पूर्ण तथ्य संस्कृत वाड्मय में है, इसलिए मानवोत्थान के लिए संस्कृत की शिक्षा आवश्यक है -पूर्वपाध्यक्ष, दिल्ली विधानसभा, चौ० फतेह सिंह

🚩संस्कृत भाषा के माध्यम से ही छात्रों को भारतीय संस्कृति का ज्ञान कराया जा सकता है । शिक्षामंत्री, दिल्ली सरकार, श्री अरविंद सिंह लवली

🚩संस्कृत भाषा मानवजाति के चित को समृद्ध करनेवाली प्राचीन व सर्वभौम भाषा है । इस भाषा के पास ऐसी शक्तियां है कि इसमें साहित्य और विज्ञान दोनो को समान रूप से अभिव्यक्ति मिली है । सम्प्रति इसके प्रचार के लिए बाल-साहित्य के रूप में चित्र कथाओं की रचना की जानी चाहिए । - पूर्वमहमहिम, राष्ट्रपति डॉ० शंकरदायलाल शर्मा

🚩वैदिक मंत्रोच्चार की ध्वनि इतनी प्रभावी होती है कि श्रवणमात्र से ही मन सात्विक हो जाता है। - पूर्वमहामहिम उपराष्ट्रपति, डॉ० कृष्णकांत शर्मा

🚩संस्कृत भाषा में संग्रहित ज्ञान-विज्ञान के विषयों के माध्यम से मानव संस्कृति का समुचित विकास संभव है । - पूर्वमहामहिम उपराष्ट्रपति, श्री भौरवसिंघ शेखावत

🚩अपनी संस्कृति जीवन मूल्यों तथा विज्ञान के तत्वों की जानकारी प्राप्त करने के लिए संस्कृति की सीखना व उसका अध्ययन करना आवश्यक है। - पूर्वलोक सभा अध्यक्ष श्री रविराह

🚩संस्कृत भारतीय जन मानस की भाषा है जिसमें भारत का अंग प्रत्यंग स्पंदित होता है।  संस्कृत ने "वसुधैव कुटुम्बकम" के आदर्शों को समाज में आत्मसात करने का निरंतर प्रयास किया है । - पूर्वप्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर

🚩सर्वोच्च न्यायालय के संस्कृत संबंधी फैसले के बाद उन लोगो की आंखे जरूर खुली होंगी जो संस्कृत भाषा के विरोधी हैं । - पूर्वप्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी

🚩संस्कृत साहित्य के कारण भारत विश्व में अग्रणी रहा है। संस्कृत वाड्मय से ही प्रेरणा लेकर अन्य साहित्य विकसित हुए । - पूर्वप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री भारत सरकार, श्री लालकृष्ण आडवाणी

🚩संस्कृत सम्पूर्ण ब्रह्मांड की भाषा है। और संस्कृत ज्ञान-विज्ञान का भंडार है । आज का वैज्ञानिक संस्कृत साहित्य की ओर देख रहा है और उसके वैज्ञानिक तत्वों पर शोध करना चाहता है । - पूर्वमानव संसाधन एवं विकास मंत्री भारत सरकार डॉ० मुरली मनोहर जोशी

🚩मैंने अनुभव किया है कि संस्कृत ही केवल ऐसी भाषा है जिससे मन-मस्तिष्क सुसंस्कृत एवं परिमार्जित होता है। - डॉ० अक्षय कुमार जैन


🚩सैकड़ों वर्षों के दमन के बावजूद भी जो संस्कृत भाषा अपने शुद्ध स्वरूप में विद्यमान है । उसकी उपयोगिता और वैज्ञानिकता के विषय में शंका का प्रश्न ही नहीं होना चाहिए। -पूर्वसंसद सदस्य, श्री रीतलाल प्रसाद वर्मा

🚩संस्कृत भाषा भारतवर्ष की राष्ट्रभाषा के रुप में दीर्घकाल तक जनमानस के हृदय में विराजमान रही । इसलिए जीवन-मूल्यों से जुड़े हुए सारे बिंदु इसके साहित्य उपलब्ध होते हैं । -चिकित्साशास्त्री, कविराज स्वजान चंद

🚩आज के इस बढ़ते हुए विघटनकारी वातावरण में जिसकी न केवल भारत को बल्कि सम्पूर्ण विश्व को आवश्यकता है, उस अहिंसा के संबंध में समूचा संस्कृत साहित्य ऐसे आयामों के वर्णन से परिपूर्ण है, जहाँ न केवल मानव का मानव के प्रति सद्भावना का उल्लेख मिलता है, अपितु लताओं, वृक्षों, पशु-पक्षियों के प्रति भाई-बहन व संतान-सदृश स्नेह करना बताया गया है। - बौद्धभिक्षु धम्म विरर्यू

🚩संस्कृत हमारे देश की आत्मा है और हमारी संस्कृति की पहचान है । इसे जीवित रखने के लिए हम सबको संस्कृत सिखने का प्रयत्न करना चाहिए -वरिष्ठ परामर्शदाता गृहमंत्रालय, भारत सरकार, श्री एस० बालाकृष्णन

🚩संस्कृत भूत, भविष्य और वर्तमान भारत के लोकमानस की अभिव्यक्ति है । -पूर्व रक्षा सचिव, भारत सरकार, डॉ० के० पी०ए० मेनन

🚩विश्व का समग्र शोध, चिंतन एवं लेखन संस्कृत साहित्य पर आधारित है, अतः भारत का गौरव संस्कृत के प्रचार पर ही निर्भर है ।  -पूर्वमुख्य सचिव, दिल्ली सरकार, श्री उमेश सौगल

🚩मानव सभ्यता के स्वस्थ मूल्यों का उदघोष संस्कृत भाषा और इसके साहित्य के माध्यम से ही हुआ है, जिसने भारत को जगत में विश्वगुरु का गौरव प्रदान किया। - पूर्वमुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय श्री रंगनाथ मिश्र

🚩संस्कृत के छात्र, शिक्षक और विद्वान ही देश के स्वरूप और समाज के दृष्टिकोण को बदल सकते हैं । - सदस्य दिल्ली, विधानसभा, श्री रूपचंद

🚩जो विज्ञान, गणित, अभियांत्रिकी आदि विषय व्यावसायिक शिक्षा के आधार है, उनका मूलज्ञान संस्कृत भाषा में ही है । सदस्य दिल्ली विधानसभा, श्री मालाराम गंगवाल

🚩संस्कृत भाषा के माध्यम से ही संस्कृति की रक्षा की जाती है। - पूर्व सचिव (भाषा, कला एवं संस्कृति, नीता बाली)

🚩रामायण जैसे संस्कृत काव्यों की उपयोगिता और सार्थकता आज के समाज के लिए उसी प्रकार है, जैसे कि त्रेता में थी। -पूर्वसद्स्य दिल्ली विधानसभा, श्री मोतीलाल बाकोलिया

🚩संस्कृत भाषा की प्रेरणा से अनेक भाषाओं के साहित्य का विकास हुआ है । संस्कृत साहित्य के बिना किसी भी विषय का अनुसन्धान पूर्ण नहीं माना जा सकता है । -पूर्वसद्स्य, दिल्ली विधानसभा, श्रीमती दर्शना, संकुमार

🚩प्रशासनिक अधिकारी को संस्कृत साहित्य का अध्ययन करना चाहिए, इससे भारत के सर्वागीण विकास में वह योगदान दे सकेगा । - श्री एन० गोपाल स्वामी (आई० ए० एस०)

🚩संस्कृत साहित्य न केवल आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण है, बल्कि विज्ञान ज्योतिष, चिकित्सा, भूगोल जैसे विषय भी संस्कृत भाषा में है । -माननीय उपराष्ट्रपति जी के पूर्व विशेषकार्य, डॉ० के० एल० गांधी

🚩संस्कृत साहित्य के लिए यह भाषाओं की अपेक्षा गूढ़ एवं गहन स्वाध्याय की आवश्यकता होती है । अतः शिक्षा में संस्कृत का समावेश आवश्यक है । -सदस्य, दिल्ली विधानसभा, श्री अमरीश गौतम

🚩संस्कारों और संस्कृति की शिक्षा के लिए शिक्षानीति में संस्कृत को अनिवार्य रूप से लागू करने की आवश्यकता है - सदस्य, दिल्ली विधानसभा, श्री मोतीलाल सोढ़ी

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