Wednesday, September 18, 2019

सुप्रीम कोर्ट : समान नागरिक संहिता अभीतक क्यों लागू नही किया?

18 अप्रैल 2019 

🚩 *“समान नागरिक संहिता” ऐसी होनी चाहिये जिसका मुख्य आधार केवल भारतीय नागरिक होना चाहिये और कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म, जाति व सम्प्रदाय का हो सभी को सहज स्वीकार हो। जबकी विडम्बना यह है कि एक समान कानून की मांग को साम्प्रदायिकता का चोला पहना कर हिन्दू कानूनों को अल्पसंख्यकों पर थोपने के रुप में प्रस्तुत किया जाने का कुप्रचार किया जा रहा है। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि 1947 में हुए धर्माधारित विभाजन के पश्चात भी हम आज लगभग 71 वर्ष बाद भी उस विभाजनकारी व समाजघाती सोच को समाप्त न कर सकें बल्कि उन समस्त कारणों को अल्पसंख्यकवाद के मोह में फंस कर प्रोत्साहित ही करते आ रहे है। हमारे मौलिक व संवैधानिक अधिकारो व साथ में पर्सनल लॉ की मान्यताए कई बार विषम परिस्थितियां खड़ी कर देती है, तभी तो उच्चतम न्यायालय “समान नागरिक संहिता” बनाने के लिए सरकार से बार-बार आग्रह कर रहा है।*

🚩 *समान नागरिक संहिता अर्थात देश के हर धर्म-समुदाय के नागरिक के लिए एक समान क़ानून। ये मुद्दा है जो हमेशा से भारतीय जनता पार्टी के मूल एजेंडे में रहा है। चरमपंथियों तथा कथित लिबरलों को छोड़ दें तो देश की ज्यादातर जनता भी इस कानून की पक्षधर है कि जब भारत एक सेक्युलर राष्ट्र है तब देश के सभी नागरिकों के लिए समान क़ानून क्यों नहीं है? सामान नागरिक संहिता कब लागू होगी, इस पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इससे पहले माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर ऐसी टिप्पणी की है, जिसे सुन चरमपंथी चौंक गये हैं।*

🚩 *खबर के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट ने 13 सितंबर को देश के नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता (UCC) तैयार किए जाने पर जोर दिया। इसके साथ ही उसने अफसोस जताया कि उसके प्रोत्साहन के बाद भी एक भी बार इस मकसद को हासिल करने की कोई कोशिश नहीं की गई। न्यायालय ने कहा कि संविधान निर्माताओं को आशा और उम्मीद थी कि राज्य पूरे भारतीय सीमा क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित कराने की कोशिश करेगा, लेकिन अभी तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।*

🚩 *सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि गोवा एक बेहतरीन उदाहरण है जहां समान नागरिक संहिता है और धर्म की परवाह किए बिना सब पर लागू है सिवाय कुछ सीमित अधिकारों की रक्षा करते हुए। गोवा के मामले का जिक्र करते हुए कहा, “जिन मुस्लिम पुरुषों की शादियां गोवा में पंजीकृत हैं, वे बहुविवाह नहीं कर सकते। इसके अलावा इस्लाम के अनुयायियों के लिए भी मौखिक तलाक का कोई प्रावधान नहीं है."न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि यह गौर करना दिलचस्प है कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से जुड़े भाग चार में संविधान के अनुच्छेद 44 में निर्माताओं ने उम्मीद की थी कि राज्य पूरे भारत में समान नागरिक संहिता के लिए प्रयास करेगा लेकिन आज तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है।*

🚩 *सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू कानून तो 1956 में वजूद में आया, लेकिन देश के सभी नागरिकों पर समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। पीठ ने यह भी कहा, 1985 में शाह बानो मामला, 1995 में सरला मुद्गल व अन्य बनाम भारत सरकार मामला और 2003 में जॉन वेल्लामैटम बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता की हिमायत की थी, लेकिन अफ़सोस अब तक इसे लेकर कोई प्रयास नहीं किया गया।*- सुदर्शन न्यूज़

🚩 *भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत सरकार का ये कर्तव्य है कि पूरे देश में Uniform Civil Code लागू करें, मतलब सभी नागरिक कानून के सामने समान हो और सबको एक जैसे अधिकार मिले ।*

🚩 *पर वास्तविकता कुछ और ही है । आज़ादी के 71 साल के बाद भी आज तक Uniform Civil Code लागू नहीं हुआ है । अगर ये अनुच्छेद 44 मौलिक अधिकारों में डाल दिया होता तो इसको लागू करने के लिए आम आदमी अदालत का दरवाजा खटखटा सकता था । पर इस अनुच्छेद को नेहरु ने जान बुझकर नीति निर्देशक तत्वों (Directive Principles of State Policy) में डाल दिया ताकि कोई अदालत में जाकर इसे लागू कराने के लिये फरियाद ना करें ।*

🚩 *वास्तव में ये अंग्रेज़ों की "फूट डालो और राज करो" की नीति का हिस्सा था । इसलिए Uniform Civil Code को मौलिक अधिकार नहीं बनाया ।*

🚩 *यह अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले 30- 35 वर्षो में 5 -6 बार उच्चतम न्यायालय ने समाज में घृणा, वैमनस्यता व असमानता दूर करने के लिए समान कानून को लागू करना आवश्यक माना है फिर भी अभी तक कोई सार्थक पहल नही हो पायी । लगभग 15-20 वर्ष पूर्व में किये गए एक सर्वे के अनुसार भी 84 % जनता इस कानून के समर्थन में थी । इस सर्वे में अधिकांश मुस्लिम माहिलाओं व पुरुषो ने भी भाग लिया था । संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी सन 2000 में समान नागरिक व्यवस्था के लिये भारत सरकार को परामर्श दिया था। क्या यह राष्ट्रीय विकास के लिए अनिवार्य नहीं ? क्या “सबका साथ व सबका विकास ” के लिए एक समान कानून व्यवस्था बनें तो इसमें आपत्ति कैसी ?*

🚩 *विश्व में किसी भी देश में धर्म के आधार पर अलग अलग कानून नहीं होते सभी नागरिकों के लिए एक सामान व्यवस्था व कानून होते है। केवल भारत ही एक ऐसा देश है जहां अल्पसंख्यक समुदायों के लिए पर्सनल लॉ बनें हुए है। जबकि हमारा संविधान अनुच्छेद 15 के अनुसार धर्म, लिंग, क्षेत्र व भाषा आदि के आधार पर समाज में भेदभाव नहीं करता और एक समान व्यवस्था सुनिश्चित करता है। परंतु संविधान के अनुच्छेद 26 से लेकर 31 तक से कुछ ऐसे व्यवधान है जिससे हिंदुओं के सांस्कृतिक -शैक्षिक-धार्मिक संस्थानों व धार्मिक ट्रस्टो को विवाद की स्थिति में शासन द्वारा अधिग्रहण किया जाता आ रहा है । जबकि अल्पसंख्यकों के संस्थानों आदि में विवाद होने पर शासन कोई हस्तक्षेप नही करता….यह विशेषाधिकार क्यों ? इसके अतिरिक्त एक और विचित्र व्यवस्था संविधान में की गई कि अल्पसंख्यको को अपनी धार्मिक शिक्षाओं को पढ़ने की पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी । जबकि संविधान सभा ने बहुसंख्यक हिन्दूओं के लिए यह धारणा मान ली कि वह तो अपनी धर्म शिक्षाओं को पढ़ाते ही रहेंगे। अतः हिन्दू धर्म शिक्षाओं को पढ़ाने को संविधान में लिखित रुप में प्रस्तुत नही किये जाने का दुष्परिणाम आज तक हिन्दुओं को भुगतना पड़ रहा है।*

🚩 *“राष्ट्र सर्वोपरि” की मान्यता मानने वाले सभी यह चाहते है कि एक समान व्यवस्था से राष्ट्र स्वस्थ व समृद्ध होगा और भविष्य में अनेक संभावित समस्याओं से बचा जा सकेगा। यह भी कहना उचित ही होगा कि भविष्य में असंतुलित जनसंख्या अनुपात के संकट से भी बचने के कारण राष्ट्र का धर्मनिरपेक्ष स्वरुप व लोकतांन्त्रिक व्यवस्था भी सुरक्षित रहेगी और जिहादियों का बढ़ता दुःसाहस भी कम होगा ।*

🚩 *अब सरकार का दायित्व है कि इसको लाने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति के साथ संविधान की मूल आत्मा व सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों के आधार पर एक प्रारुप तैयार करके राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक परिचर्चा के माध्यम से इस कानून का निर्माण करवायें। निःसंदेह आज देश की एकता, अखंडता, सामाजिक व साम्प्रदायिक समरसता के लिए “समान नागरिक संहिता” को अपना कर विकास के रथ को गति देनी होगी।*

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विदेश के लोग आते है भारत अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए

17 सितंबर 2019
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🚩हिन्दू धर्म में एक अत्यंत सुरभित पुष्प है कृतज्ञता की भावना, जो कि बालक में अपने माता-पिता के प्रति स्पष्ट परिलक्षित होती है। हिन्दू धर्म का व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा तो करता ही है, उनके देहावसान के बाद भी उनके कल्याण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है।

🚩‘श्राद्ध’ पितृऋण चुकाने के लिए अत्यंत आवश्यक माना जाता है। श्राद्धविधि में किए जानेवाले मंत्रोच्चारण में पितरों को गति देने की सूक्ष्म शक्ति समाई हुई होती है। श्राद्ध में पितरों को तर्पण करने से वे संतुष्ट होते हैं। श्राद्धविधि करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और हमारा जीवन भी सुसह्य हो जाता है।
🚩अपने पुर्वजों के लिए हिन्दू धर्म में किया जानेवाला ये विधी विदेशी लोगों को भी ज्ञात है और शायद यही कारण है कि, कई विदेशी लोग अपने पुर्वजों को मुक्ति दिलाने की यह विधि करने के लिए भारत आते है एवं पूरे श्रद्धा से यह विधि करते हैं । पिछले साल यह विधि करने के लिए रूस के नताशा सप्रबनोभआ, सरगे और एकत्रिना ने धर्मनगरी गया आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था।
🚩गया में पिंडदान किया रुसी नागरिकों ने:
इन लोगों ने ऐतिहासिक विष्णुपद मंदिर, फल्गु के देवघाट, प्रेतशिला और रामशिला वेदी पर पिंडदान किया और पूर्वजों के लिए स्वर्गलोक की कामना की। इन लोगों ने विष्णुपद मंदिर में पूजा अर्चना की। मीडिया से बात करते हुए इन लोगों ने कहा कि, सनातन धर्म के बारे में पढ़ा था जिसमें पिंडदान को काफी महत्वपूर्ण माना गया है और इस परंपरा को भारतीय वेशभूषा में संपन्न करने के बाद उनकी आकांक्षा आज पूरी हो गयी है !
🚩बता दें कि वर्ष 2017 में मोक्ष स्थली गया में पितरों की मुक्ति के महापर्व पितृपक्ष मेला के दौरान देवघाट पर अमेरिका, रूस, जर्मनी और स्पेन के 20 विदेशी नागरिकों ने अपने पितरों की मुक्ति की कामना को लेकर पिंडदान व तर्पण किया था। इनमें से एक जर्मनी की इवगेनिया ने कहा था कि, भारत धर्म और अध्यात्म की धरती है। गया आकर मुझे आंतरिक शांति की अनुभूति हो रही है। मैं यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आई हूं।
🚩इन विदेशियों को हिन्दू धर्म के अनुसार आचरण करते देख, हिन्दू धर्म की महानता हमारे ध्यान में आती है। माता-पिता तथा अन्य निकट संबंधियों की मृत्युपरांत की यात्रा सुखमय एवं क्लेशरहित हो तथा उन्हें सद्गति मिले, इस हेतु किया जानेवाला संस्कार है ‘श्राद्ध’। श्राद्धविधि करने से पितरों की कष्ट से मुक्ति हो जाती है और हमारा जीवन भी सुसह्य हो जाता है। परंतु दुर्भाग्यवश आज हिन्दुआें को धर्म मे बताए गए एेसे विधी करना पिछडापन लगता है। उनके मॉडर्न जिवनशैली को श्राद्ध करने जैसी कृति अंधश्रद्धा लगती है।
🚩हिन्दू समाज की यह दु:स्थिती धर्मशिक्षा का महत्त्व दर्शाती है। आज हिन्दूआें को धर्मशिक्षा न मिलने के कारण ही उनका इस प्रकार अध:पतन हो रहा है। आज एैसी स्थिती है कि, विदेशों से आकर श्रद्धालु हिन्दू धर्म तथा अध्यात्म के बारे में जानकारी प्राप्त कर हिन्दू धर्म के अनुसार आचरण करने लगे है। वही हिन्दू धर्म के उगमस्थान तथा पुण्यभूमी भारतवर्ष के कर्इ हिन्दूआें को ही आज धर्माचरण करना पिछड़ेपन जैसे लगता है।
https://www.hindujagruti.org/hindi/news/146611.html
🚩मृत्यु के बाद जीवात्मा को उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ कर्मानुसार स्वर्ग नरक में स्थान मिलता है। पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुनः मृत्युलोक (पृथ्वी) में आता है। स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना यह देवयान मार्ग है।
🚩पितृयान मार्ग से जाने वाले जीव पितृलोक से होकर चन्द्रलोक में जाते हैं। चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं। यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है। अतः कृष्ण पक्ष में वंशजों को उनके लिए आहार पहुँचाना चाहिए, इसीलिए श्राद्ध एवं पिण्डदान की व्यवस्था की गयी है। शास्त्रों में आता है कि अमावस के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना चाहिए।
*🚩भगवान श्रीरामचन्द्रजी भी श्राद्ध करते थे।
जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान एवं धर्म के संस्कारों का सिंचन किया उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध से प्रसन्न करने के दिन ही हैं श्राद्धपक्ष। इस दिनों में पितृऋण से मुक्त होने के लिए हमे श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।*
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Monday, September 16, 2019

जिन मठों को मुगल, अंग्रेज तोड़ नहीं पाए उन्हें स्वयं सरकार तोड़ रही है

16 सितंबर 2019

🚩जगन्नाथ पुरी  में 12 वीं शताब्दी से अविरत धर्म कार्य की धुरी बने कई महत्वपूर्ण मठ-मंदिरों को तोड़ा जा रहा है। इसे कुछ भी कर के तत्काल रोका जाना चाहिए।  भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर की सुरक्षा के बहाने  उन्हीं मठों को निशाना बनाया जा रहा है जिन्होंने भगवान जगन्नाथ मंदिर को औरंगज़ेब और कई आतताइयों से बचाया था। उसके लिए यही मठ मंदिर ढाल बने। उसमें रहने वाले साधु और भक्तों ने बलिदान दिए। उनकी उपस्थिति का अर्थ मंदिर की चिर काल तक सुरक्षा थी । परंतु जिन्होंने शताब्दियों तक जगन्नाथ मंदिर को बचाया, आज दुर्भाग्य से उन्हीं मठों को बचाने वाला कोई नहीं है !
🚩उसे तोड़ने वाली स्वयं उड़ीसा सरकार है। जिन मठों को दर्जनों देशों से आए आक्रमणकारी तोड़ नहीं पाए,  जिसे शतकों तक यहाँ राज करने वाले मुग़ल और ब्रिटिश तोड़ नहीं पाए, उन्हें आज स्वयं सरकार तोड़ रही है। वह भी क़ानून के डंडे से; विकास के नाम पर और सुरक्षा का बहाना बना कर। बाक़ायदा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीपी दास की समिति  बना कर, उसकी सिफारिशों के आधार पर। वास्तव में, क़ानूनी दिखाने वाला यह अभियान क़ानूनी नहीं बल्कि सुल्तानी है। दुश्मनों के हमलों से भी ज़्यादा ख़तरनाक है। क्रूर, निष्ठुर और अन्यायी है। करोड़ों हिन्दुओं की आस्था पर सरकारी हमला है।

🚩जगन्नाथ पुरी हिंदुस्थान के उन चुनिंदा धर्म स्थलों में से एक है जहाँ विदेशी पर्यटक सबसे अधिक आते हैं।

देशी पर्यटक भी ज़्यादा आते हैं।  जीवन में एक बार भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन करें , यही हर हिंदू की श्रद्धा और अपेक्षा होती है। कई सुविधाओं के अभाव के प्रभाव के बग़ैर शताब्दियों से करोड़ों भक्त पुरी में जाते रहे हैं।  आज भी जा रहे हैं।  ओडिशा की पर्यटन आय के साथ ही इस क्षेत्र के लोगों की आय का यह बड़ा केंद्र है। भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा विश्व प्रसिद्ध है। संपूर्ण भारत वर्ष और संसार के कोने-कोने में रहने वाले श्रद्धालु इस यात्रा को पर्व की तरह मनाते हैं। लाखों-करोड़ों श्रद्धालु इस पुनीत भव्य रथयात्रा में भागीदारी करते हैं। श्रद्धालुओं के अतिरिक्त  बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। यह यात्रा 100 से अधिक देशों में भी निकली जाती है।

🚩इस धर्म नगरी में जब सरकारें भी नहीं थी, तब भी और जब सत्तायें धर्म विरोधी थी तब भी; इन्हीं मठों ने करोड़ों भक्तों को सेवा, सुरक्षा और आश्वस्ति दी है। इसमें कई शताब्दी पुराने ऐसे मठ हैं, जिन्हें स्वयं सरकार को धरोहर संपत्ति के तौर पर विकसित करना चाहिए। परंतु आज वही मठ अज्ञान और षड्यंत्रों की बलि चढ़ रहे हैं , जिनके चौखट पर कई देशी-विदेशी महात्माओं ने माथा टेका है, उसे ख़ाली करने और तोड़ने के लिए जूते पहने सिपाहियों की फ़ौज रौंद रही है, जिसके दीवारों से हाथी आश्रय लेते थे, उन्हीं दीवारों को बुलडोज़र से तोड़ा जा रहा है।

🚩इन मठों के विराट गौरवशाली और प्रेरणादायी अतीत है। इसमें ऐसे मठ हैं, जिसकी स्थापना 900 वर्ष पूर्व परम पूजनीय रामानुजाचार्य जी ने की थी। 1866 की बाढ़ में इसी मठ ने पूरे ओडिशा को खाना खिलाया था, जिसमें सम्पूर्ण ओडिशा को तीन दिनों तक राशन देने की क्षमता आज भी है। कई आपदाओं में सैकड़ों बार यही मठ सहायता के लिए आगे आए हैं।

🚩इसी मठ से कई विद्यालय और महाविद्यालय चलाए जाते हैं।  आज भी लाखों लोगों के लिए यहाँ अन्न क्षेत्र चलाते हैं।  1921 में ओड़िया संस्कृति को बचाने के लिए बनायी गयी रघुनन्दन पुस्तकालय को भी तोड़ा गया है। चौदहवीं शताब्दी में बना लिंगुली मठ, दसनामी नागा सम्प्रदाय मठ को भी तोड़ा गया है।

🚩धर्म और अध्यात्म में पुरातन मान्यताओं को ही परम्परा मान कर उसे संजोया जाता है। उसके संरक्षण की ज़िम्मेवारी सरकार और सत्ता की होती है, परंतु वही उसे तोड़ने पर उतारू हो जाए तो कौन बचाए?
इन्हीं मठों ने ईसाई मिशनरियों के चंगुल से ओडिशा के ग़रीब अशिक्षित आदिवासियों को बचाया। उनकी सेवा और सहायता के मोह जाल में फंसने नहीं दिया। उनके विदेशी धन पर इनका स्वदेशी धन लगाया गया। परंतु  उन्हीं के षड्यंत्र के सामने वही मंदिर-मठ धराशयी हो गए हैं।

🚩यह सब करने के लिए जो कारण बताए गए वह भ्रामक है। 500 करोड़ का विकास करने के लिए खुली-खुली जगह ही क्यों चाहिए? विश्व भर के पुराने स्थान छोटे गलियों में हैं।  उतनी छोटी गालियाँ यह पहले से नहीं है। 75 मीटर तक का परिसर ख़ाली करना, वहां तक वीआईपी वाहन जाना मठ से ज़्यादा जरूरी नहीं है। आख़िर विकास की परिभाषा क्या है? अन्य देश अपने ऐसे क्षेत्र को संरक्षित-सुरक्षित करने के लिए उसे तोड़ते नहीं।  अमेरिका ने वाशिंगटन ग्राम को एक इंच भी तोड़े बिना वहां वाशिंगटन डीसी शहर बसाया। विश्व के सबसे आधुनिक और प्रगतिशील समझे जाने वाले पेरिस की पुरातन गलियां संकरी है, तो उन्होंने गाड़ियों को अंदर जाने से पाबंदी लगायी, परंतु तोड़ा नहीं।

🚩सुरक्षा के नाम पर तोड़-फोड़ तो सबसे बड़ा बहाना है, पाखंड है। हमलावर जब सबसे सुरक्षित संसद भवन, या सेना के बेस पठानकोट पर हमला कर सकते हैं, तो कही पर भी कर सकते हैं ! यह कोई पुराना ज़माना नहीं कि क़िले के पहले गहरे खंडहर बनाए जाए। अक्षरधाम मंदिर पर हमले के बाद उसकी सुरक्षा के लिए क्या-क्या तोड़ा गया? संसद के पास के राष्ट्रपति भवन को तोड़ा? प्रधानमंत्री का घर भी खुले में नहीं है। उसके लिए तो एक साधारण मज़ार नहीं हटायी गयी। 75 मीटर खुले क्षेत्र का उलटा सुरक्षा के लिए छल है। परंतु अपने देश में सुरक्षा के बहाने कुछ भी करने का खेल खेला जाता है।

🚩इसमें एक और बहुत बड़ा दुःखद पहलु है। जो मठ मंदिर तोड़े जा रहे हैं, वह अधिकतर दक्षिण भारत के हैं । कुछ लोगों को विशेषकर ओड़िया दल बीजू जनता दल को प्रादेशिक अस्मिता का सुरक्षा कवच भी मिला है, तोड़ फोड़ में! परंतु धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में इस प्रकार का तुच्छ खेल भगवान या भक्त को कभी स्वीकार्य नहीं होगा। इसी मंदिर कि रक्षा के लिए सुदूर पश्चिम से छत्रपति शिवाजी ने व्यवस्था की, इंदौर की महारानी आहिल्या बाई ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया। मैं आशा करता हूँ, स्थानीय लोग इस प्रादेशिक षड्यंत्र को समझ कर इसके विरुद्ध खड़े होंगे।

🚩कुछ मठ मंदिरों को पुरुषार्थी मुखिया नहीं मिले हैं , तो कइयों पर राजनीति सवार है। कइयों पर पैसे के लालची विश्वस्त हैं जो मुंहमांगी राशि लेकर कहीं पर भी जाने को तैयार है।

🚩इस परिस्थिति में अखंड हिंदू समाज को आगे आकर इस तथाकथित विकास के आतंकवाद का विरोध करना चाहिए। मैं तो इसके लिए खुल कर साम- दाम- दंड- भेद के लिए तैयार  हूँ ही , जो आएगा उसके साथ, जो नहीं आएगा।  उसके सिवा और जो विरोध करेगा उसके विरोध को तोड़ कर हमें इन प्राचीनतम मठों और मंदिरों को बचाना है - सुरेश चव्हाणके

🚩इस प्रकरण में पुरी पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु निश्‍चलानंद सरस्वतीजी ने कहा है कि ओडिशा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी.पी. दास के नेतृत्व में समिति ने मंदिर की चारों ओर 75 मीटर क्षेत्र को खाली करने का परामर्श दिया था; परंतु श्री. दास ने मेरे साथ इस संदर्भ में कभी चर्चा नहीं की । श्री जगन्नाथ मंदिर के साथ इन मठों की परंपरा जुड़ी है । इन मठों का संचालन स्वतंत्ररूप से होना चाहिए । सरकार ने जो बड़ी संख्या में मठों को तोड़ने का निर्णय लिया, उनका विस्थापन कैसे किया जाए इसका नियोजन करना चाहिए था । विकास के नामपर प्राचीन मठों को तोड़ने का षड्यंत्र रचा जा रहा है ।

🚩श्री जगन्नाथ मंदिर क्षेत्र में स्थित मठ और मंदिरों को अवैध प्रमाणित कर उन्हें गिराने की अयोग्य कार्यवाही तुरंत रोकनी चाहिए ।

🚩अबतक जिन प्राचीन मठों को तोड़ा गया है, उनका ओडिशा सरकार द्वारा पुनर्निर्माण किया जाए और इससे हुई हानि की भरपाई की जाए, साथ ही प्राचीन मूर्तियां और परंपराआें के संवर्धन हेतु प्रयास किए जाए ।

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Sunday, September 15, 2019

इन बड़ी खबरें को मीडिया ने नहीं बताया, मीडिया आपको सच्चाई से दूर रखती है

15 सितंबर 2019
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🚩जब कोई हिंदू साधु संत पर झूठे आरोप लगते हैं तब मीडिया कई दिनों तक खूब हल्ला करती है और जब वे निर्दोष बरी हो जाते हैं तब चुप हो जाती है और ठीक उससे उलट जब ईसाई पादरी पर सबूत के साथ दुष्कर्म के आरोप लगते हैं या सजा हो जाती तब मीडिया चुप रहती है, ऐसे दोगलेपन से लगता है कि कुछ मीडिया को हिन्दू धर्म व हिन्दू धर्मगुरुओं से नफ़रत है या उनके खिलाफ खबरें चलाने के पैसे मिलते हैं ।
🚩ऑस्ट्रेलिया की अदालत से बरी हुए आनंद गिरी जी-
विश्व प्रसिद्ध संगत तट के बड़े हनुमान जी मंदिर के व्यवस्थापक व अंतर्राष्ट्रीय योग गुरु आनंद गिरि कई देशों में योग प्रशिक्षण देने के लिए जाया करते हैं । जून में वे आस्ट्रेलिया गए हुए थे और सिडनी शहर में योग प्रशिक्षण के लिए एक शिविर में मौजूद थे। ऑस्ट्रेलिया में दो महिलाओं ने उनपर यौन शोषण का आरोप लगाया। उसके बाद उनको ऑस्ट्रेलिया की जेल में रखा गया और 4 महीने जेल में रहने के बाद स्वामी आनंद गिरि जी को डनी की कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया । अदालत ने योग गुरू का पासपोर्ट तत्काल रिलीज करने और भारत जाने की अनुमति दे दी है।
http://sudarshannews.in/samachar/international/austrelia-court-decision-about-yog-guru-anand-giri/
🚩झारखंड में फादर गिरफ्तार:
झारखंड के कैथोलिक स्कूल में काम करने वाले एक फादर और एक नर्स को 9 साल की बच्ची के साथ यौन शोषण के आरोप में हिरासत में रखा गया है।
🚩जिला पुलिस प्रमुख अमन कुमार ने कहा कि कोराडीह में जेसुइट द्वारा संचालित डी नोबिली स्कूल के वाइस प्रिंसिपल जूलियन एक्का और नर्स, एमर्सनिया लोमगा को गिरफ्तार किया गया।
🚩Ucanews.com ने बताया कि दोनों कोर्ट  में पेश हुए और उन्हें आगे की पूछताछ के लिए हिरासत में भेज दिया गया।  उन पर बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से जुड़े कड़े कानून के कई धाराओं का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है।
🚩पुलिस के अनुसार, मध्य अगस्त में चौथी कक्षा की लड़की को पेट दर्द की शिकायत के बाद बीमार कमरे में ले जाया गया। फादर और नर्स कमरे में मौजूद थे, और पुलिस का कहना है कि एक चिकित्सा परीक्षा ने साबित किया कि बच्चे का यौन उत्पीड़न किया गया था।  कुमार ने कहा, "परिस्थितिजन्य साक्ष्य" के आधार पर, दोनों को कुछ हफ्तों बाद अधिकारियों के साक्षात्कार के बाद गिरफ्तार किया गया।
https://www.ncronline.org/news/accountability/indian-church-leaders-child-rape-charges-concocted-against-priest-nurse
🚩यूएस में ईसाई पादरी ने कई बच्चों का रेप किया:
यूए, डिस्ट्रीक जज मार्था ने रेप आरोपी पादरी आर्थर पेराल्ट के बारे में कहा कि उसे सिर्फ अपनी सेक्शुएल जरुरतों से मतलब है। जज ने आगे कहा कि तुमने एक पादरी का जीवन चुना, उम्मीद थी कि तुम लोगों की मदद करोगे ना कि उन्हें बर्बाद करोगे । जज ने कहा कि तुमने जो अपराध किया है वह अक्षम्य है।
🚩जानकारी के मुताबिक़, बच्चों का बलात्कारी यह ईसाई पादरी यूएस में कई दिनों तक बच्चों को अपना शिकार बनाता रहा, लेकिन बाद में मोरक्को भाग गया। साल 1960,1970 और 1980 में इस पादरी ने कई बच्चों का रेप किया। न्यू मैक्सिको में भी एक बच्चे के यौन शोषण के मामले में दोषी पाया गया था। जब उसके यह अपराध सार्वजनिक किये गये तब वो देश छोड़ कर भाग गया। घटना के 25 साल बाद उसे मोरक्को से पकड़ा गया और फिर यूएस लाया गया। 81 साल के इस पादरी को अब अपनी सारी जिंदगी जेल में गुजारनी होगी।  उसने इस बच्चे के साथ साल 1991 और 1992 में किर्टलैंड एयर फोर्स बेस समेत कई जगहों पर यौन शोषण किया था।
http://sudarshannews.in/samachar/international/30-years-imprisonment-to-rapist-padri/
🚩ईसाई पादरी हजारों बच्चों-बच्चियों के रेप करते है, दोषी भी पाए जाते है पर मीडिया इसपर मौन रहती है जबकि षड्यंत्र के तहत कई हिन्दू साधु-संतों पर झूठे आरोप लगते है फिर वे निर्दोष बरी हो जाते है फिर भी मीडिया केवल आरोप लगने पर ही खबरे दिखाकर जनता को गुमराह करती है पर जब निर्दोष बरी हो जाते है तब चुप रहती है।
🚩हिंदू साधु-संत भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करके हमारी संस्कृति को मजबूत बनाते हैं और जनता को जागरूक करते हैं । वे राष्ट्र विरोधी ताकतों को रास नहीं आता है इसलिए उनको बदनाम करते हैं, झूठे आरोप लगाते हैं पर उन बिचारे निर्दोष मासूम बच्चों का रेप करते हैं पादरी उन पर सब ख़ामोश रहते ।
🚩हिंदू धर्म व धर्मगुरुओं पर हो रहे षड्यंत्र को समझें और उसका डटकर विरोध करें ।
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