Thursday, April 23, 2020

भारत को आज परशुरामजी की ही जरूरत है

23 अप्रैल 2020

🚩भगवान परशुरामजी का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी क्षत्राणी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के छठे अंशावतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुरामजी कहलाये।

🚩शक्तिधर परशुरामजी का चरित्र एक ओर जहाँ शक्ति के केन्द्र सत्ताधीशों को त्यागपूर्ण आचरण की शिक्षा देता है वहीं दूसरी ओर वह शोषित पीड़ित क्षुब्ध जनमानस को भी उसकी शक्ति और सामर्थ्य का एहसास दिलाता है। शासकीय दमन के विरूद्ध वह क्रान्ति का शंखनाद है। वह सर्वहारा वर्ग के लिए अपने न्यायोचित अधिकार प्राप्त करने की मूर्तिमंत प्रेरणा है। वह राजशक्ति पर लोकशक्ति का विजयघोष है।

🚩आज स्वतंत्र भारत में सैकड़ों-हजारों सहस्रबाहु देश के कोने-कोने में विविध स्तरों पर सक्रिय हैं। ये लोग कहि साधु-संतों की हत्या करते है या अपमानित करते है या कहीं न कहीं न्याय का आडम्बर करते हुए भोली जनता को छल रहे हैं, कहीं उसका श्रम हड़पकर अबाध विलास में ही राजपद की सार्थकता मान रहे हैं, तो कहीं अपराधी माफिया गिरोह खुलेआम आतंक फैला रहे हैं। तब असुरक्षित जन-सामान्य की रक्षा के लिए आत्म-स्फुरित ऊर्जा से भरपूर व्यक्तियों के निर्माण की बहुत आवश्यकता है। इसकी आदर्श पूर्ति के निमित्त परशुराम जैसे प्रखर व्यक्तित्व विश्व इतिहास में विरले ही हैं।  इस प्रकार परशुरामजी का चरित्र शासक और शासित दोनों स्तरों पर प्रासंगिक है।

🚩शस्त्र शक्ति का विरोध करते हुए अहिंसा का ढोल चाहे कितना ही क्यों न पीटा जाये, उसकी आवाज सदा ढोल के पोलेपन के समान खोखली और सारहीन ही सिद्ध हुई है। उसमें ठोस यथार्थ की सारगर्भिता कभी नहीं आ सकी। सत्य हिंसा और अहिंसा के संतुलन बिंदु पर ही केन्द्रित है। कोरी अहिंसा और विवेकहीन पाश्विक हिंसा, दोनों ही मानवता के लिए समान रूप से घातक हैं। आज जब हमारे साधु-संत और राष्ट्र की सीमाएं असुरक्षित हैं, कभी कारगिल, कभी कश्मीर, कभी बंग्लादेश तो कभी देश के अन्दर नक्सलवादी शक्तियों के कारण हमारी अस्मिता का चीरहरण हो रहा है तब परशुरामजी जैसे वीर और विवेकशील व्यक्तित्व के नेतृत्व की आवश्यकता है।

🚩गत शताब्दी में कोरी अहिंसा की उपासना करने वाले हमारे नेतृत्व के प्रभाव से हम जरुरत के समय सही कदम उठाने में हिचकते रहे हैं। यदि सही और सार्थक प्रयत्न किया जाये तो देश के अन्दर से ही प्रश्न खड़े होने लगते हैं। परिणाम यह है कि हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों और व्यवस्थापकों की धमनियों का लहू इतना सर्द हो गया है कि देश की जवानी को व्यर्थ में ही कटवाकर भी वे आत्मसंतोष और आत्मश्लाघा का ही अनुभव करते हैं। अपने नौनिहालों की कुर्बानी पर वे गर्व अनुभव करते हैं, उनकी वीरता के गीत तो गाते हैं किन्तु उनके हत्यारों से बदला लेने के लिए उनका खून नहीं खौलता। प्रतिशोध की ज्वाला अपनी चमक खो बैठी है । शौर्य के अंगार तथाकथित संयम की राख से ढंके हैं । शत्रु-शक्तियां सफलता के उन्माद में सहस्रबाहु की तरह उन्मादित हैं लेकिन परशुरामजी अनुशासन और संयम के बोझ तले मौन हैं।

🚩राष्ट्रकवि दिनकर ने सन् 1962 ई. में चीनी आक्रमण के समय देश को ‘परशुराम की प्रतीज्ञा’ शीर्षक से ओजस्वी काव्यकृति देकर सही रास्ता चुनने की प्रेरणा दी थी। युग चारण ने अपने दायित्व का सही-सही निर्वाह किया। किन्तु राजसत्ता की कुटिल और अंधी स्वार्थपूर्ण लालसा ने हमारे तत्कालीन नेतृत्व के बहरे कानों तक उसकी पुकार ही नहीं आने दी। पांच दशक बीत गये। इस बीच एक ओर साहित्य में परशुराम के प्रतीकार्थ को लेकर समय पर प्रेरणाप्रद रचनाएं प्रकाश में आती रही और दूसरी ओर सहस्रबाहु की तरह विलासिता में डूबा हमारा नेतृत्व राष्ट्र-विरोधी षड़यंत्रों को देश के भीतर और बाहर दोनों ओर पनपने का अवसर देता रहा । परशुरामजी पर केन्द्रित साहित्यिक रचनाओं के संदेश को व्यावहारिक स्तर पर स्वीकार करके हम साधारण जनजीवन और राष्ट्रीय गौरव की रक्षा कर सकते हैं।

🚩महापुरूष किसी एक देश, एक युग, एक जाति या एक धर्म के नहीं होते। वे तो सम्पूर्ण मानवता की, समस्त विश्व की, समूचे राष्ट्र की विभूति होते हैं । उन्हें किसी भी सीमा में बाँधना ठीक नहीं। दुर्भाग्य से हमारे यहां स्वतंत्रता में महापुरूषों को स्थान, धर्म और जाति की बेड़ियों में जकड़ा गया है। विशेष महापुरूष विशेष वर्ग के द्वारा ही सत्कृत हो रहे हैं। एक समाज विशेष ही विशिष्ट व्यक्तित्व की जयंती मनाता है। अन्य जन उसमें रूचि नहीं दर्शाते, अक्सर ऐसा ही देखा जा रहा है। यह स्थिति दुभाग्यपूर्ण है । महापुरूष चाहे किसी भी देश, जाति, वर्ग, धर्म आदि से संबंधित हो, वह सबके लिए समान रूप से पूज्य है, अनुकरणीय है।

🚩इस संदर्भ में भगवान परशुरामजी जो उपर्युक्त विडंबनापूर्ण स्थिति के चलते केवल ब्राह्मण वर्ग तक सीमित हो गए हैं, समस्त शोषित वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत क्रान्तिदूत के रूप में स्वीकार किये जाने योग्य हैं और सभी शक्तिधरों के लिए संयम के अनुकरणीय आदर्श हैं ।

🚩भा माना -अध्यात्म
रत माना - उसमें रत रहने वाले
"जिस देश के लोग अध्यात्म में रत रहते हैं उसका नाम है भारत।"

🚩भारत की गरिमा उसकी संस्कृति व साधु-संतों से ही रही है सदा । भगवान भी बार-बार जिस धरा पर अवतरित होते आये हैं वो भूमि भारत की भूमि है। किसी भी देश को माँ कहकर संबोधित नहीं किया जाता पर भारत को "भारत माता" कहकर संबोधित किया जाता है क्योंकि यह देश आध्यात्मिक देश है, संतों महापुरुषों का देश है। भौतिकता के साथ-साथ यहाँ आध्यात्मिकता को भी उतना ही महत्व दिया गया है। पर आज के पाश्चात्य कल्चर की ओर बढ़ते कदम इसकी गरिमा को भूलते चले जा रहे हैं । संतों महापुरुषों का महत्व, उनके आध्यात्मिक स्पन्दन भूलते जा रहे हैं।

🚩संत और समाज में खाई खोदने में एक बड़ा वर्ग सक्रीय है। ईसाई मिशनरियां सक्रीय हैं । मीडिया सक्रीय है । विदेशी कम्पनियाँ सक्रीय हैं । विदेशी फण्ड से चलने वाले NGOs सक्रीय हैं । जिहादी सक्रिय हैं।  कई राजनैतिक दल व नेता सक्रीय हैं। क्योंकि इनका उद्देश्य है भारतीय संस्कृति को मिटाकर पश्चिमी सभ्यता लाने का जिससे विदेशी कंपनियों की प्रोडक्ट की बिक्री भारी मात्रा में होगी और धर्मान्तरण भी जोरो शोरो से होगा फिर उनका वोटबैंक बढ़ जायेगा और देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ लेंगे।

🚩इतने सब वर्ग जब एक साथ सक्रीय होंगे तो किसी के भी प्रति गलत धारणाएं समाज के मन में उत्पन्न करना बहुत ही आसान हो जाता है और यही हो रहा है हमारे संत समाज के साथ ।

🚩पिछले कुछ सालों से एक दौर ही चल पड़ा है हिन्दू संतों को लेकर। किसी संत की हत्या कर दी जाती है या किसी संत को झूठे केस में सालों जेल में रखा जाता है फिर विदेशी फण्ड से चलने वाली मीडिया उनको अच्छे से बदनाम करके उनकी छवि समाज के सामने इतनी धूमिल कर देती है कि समाज उन झूठे आरोपों के पीछे की सच्चाई तक पहुँचने का प्रयास ही नहीं करता ।

🚩अब समय है कि समाज को जागना होगा, भारतीय संस्कृति व साधु-संतों के साथ हो रहे अन्याय को समझने के लिए। अगर अब भी हिन्दू मौन दर्शक बनकर देखता रहा तो हिंदुओं का भविष्य खतरे में हैं।

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Wednesday, April 22, 2020

भारत के योग की ताकत : खत्म कर दिया कोरोना वायरस

22 अप्रैल 2020

🚩भारत के ऋषि-मुनियों ने हमें आसन-प्राणायाम दिये लेकिन हम उसकी महत्ता भूल गए, कुछ लोग तो मजाक उड़ाने लगे पर कोरोना वायरस से पूरी दुनिया डरी हुई है और उसका कोई इलाज आज तक बड़े-बड़े वैज्ञानिक और डॉक्टर नही ढूंढ पाए वही भारतीय आसन-प्राणयाम से 5 बार पोजेटिव आया कोरोना वाला व्यक्ति भी ठीक हो गया।

🚩योग का जन्म भारतवर्ष में ही हुआ मगर दुखद यह रहा की आधुनिक कहाने वाले समय में अपनी दौड़ती-भागती जिंदगी से लोगों ने योग को अपनी दिनचर्या से हटा लिया है। जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर हुआ। मगर आज भारत में ही नहीं विश्व भर में योग का बोलबाला है और निःसन्देह उसका श्रेय भारत के ही साधु-संतों को जाता है, जिन्होंने योग को फिर से पुनर्जीवित किया।

🚩आपको बता दे कि 47 साल के अश्विनी गर्ग मर्चेंट नेवी में थे। अश्विनी 21 मार्च को सिंगापुर से नई दिल्ली एयरपोर्ट उतरे थे। उस दौरान वहां भारी भीड़ थी। उन्हें वहां 12 घंटे इंतजार करना पड़ा। उन्हें तभी संक्रमित होने का अंदेशा हो गया था। वह मेरठ में अपने घर पर ही क्वारंटीन में रहे।  27 तारीख को गले में दर्द और बुखार हुआ। 28 मार्च को टेस्ट कराया गया, अगले दिन उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। रिपोर्ट कुल 5 बार पाजिटिव आई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

🚩अश्विनी ने बताया कि जर्मनी में रहने वाले अपने भाई की सलाह पर 9 अप्रैल से योग एवं प्राणायाम शुरू किया। इससे उनके सांस लेने की क्षमता बढ़ने लगी और मानसिक रूप से भी वे खुद को मजबूत महसूस करने लगे। उन्होंने बताया कि अस्पताल में इलाज के दौरान वे प्रतिदिन कम से कम तीन घंटे योग प्राणायाम का अभ्यास करते थे। 12 अप्रैल को भी उनका टेस्ट पॉजिटिव आया, लेकिन ब्लड टेस्ट में सुधार दिखने लगा था। योग शुरू करने के छह दिन बाद 15 अप्रैल को उनका पांचवा टेस्ट निगेटिव आया। उनका दावा है कि दो हफ्ते तक योगाभ्यास करने से रक्त में डब्ल्यूबीसी बढ़ जाता है। मानसिक ताकत भी बढ़ गई। शुक्रवार की रात उन्हें मेरठ मेडिकल कॉलेज से डिस्चार्ज कर दिया गया।

🚩जो लोग आसान-प्रणायाम, सूर्यनमस्कार आदि की महत्ता नही समझ रहे थे, जो लोग मजाक भी उड़ाने लगे थे, जो हमारे ऋषि-मुनियों की बात को कपोल कल्पित समझते थे और वैज्ञानिको को ही सबकुछ समझते थे आज उनके मुंह पर एक तमाचा है की भारत के महापुरुषों ने हमारे लिए कितनी महान खोजे की है और हमे सहज में ही दे दी और आज पूरी दुनिया के वैज्ञानिक, डॉक्टर, बुद्धिजीवी लोग कोरोना का उपचार नही ढूढ पा रहे है वही हमारे ऋषि-मुनियों ने पहले से ऐसी रहन-सहन पद्धति बताई है कि हमारी रोगप्रतिकारक शक्ति इतनी रहेगी कि कोरोना जैसे भयंकर वायरस भी आपका कुछ बिगाड़ नही सकता ।

🚩योग शास्त्रों की परम्परानुसार चौरासी लाख आसन हैं और ये सभी जीव जंतुओं के नाम पर आधारित हैं। इन आसनों के बारे में कोई नहीं जानता इसलिए चौरासी आसनों को ही प्रमुख माना गया है और वर्तमान में बत्तीस आसन ही प्रसिद्ध हैं। आसनों का अभ्यास शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वास्थ्य लाभ व उपचार के लिए किया जाता है।

🚩योगासन से क्या-क्या लाभ होते हैं?

▪️(1) योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है।

▪️(2) योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।

▪️(3) आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियाएं करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करनेवाली क्रियाएं भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है।

▪️(4) योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती है।

▪️(5) योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन-संस्थान में गड़बड़ियां उत्पन्न नहीं होतीं।

▪️(6) योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं।

▪️(7) योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तंदरुस्त होता है।

▪️(8) योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता, गति और सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं।

▪️(9) योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्म-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं।

▪️(10) योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं अत: मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है।

▪️(11) योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं।

▪️(12) योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इससे शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं।

▪️(13) आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं।

▪️(14) आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्में की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

▪️(15) योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। आसन शरीर के पांच मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णत: स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं हो पाता। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल बाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जबकि योगसन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं।

🚩आपको भारतीय योगासनों के यहाँ कुछ ही फायदे बताये बल्कि इससे भी कई अधिक फायदें है और प्राणायम के तो ओर अधिक फायदें है अतः इसका आप भी लाभ उठाएं, स्वस्थ्य रहिये ओरो को फायदा बताकर सभी को रोगमुक्त करिये।

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Tuesday, April 21, 2020

क्या ये साधु-संतों पर पहला हमला है? लंबी लिस्ट है, कुछ यहाँ बता रहे है....

21 अप्रैल 2020

🚩महाराष्ट्र पालघर मे दो साधुओं की निर्मम हत्या के बाद हिंदुओं में भारी आक्रोश है, लेकिन क्या ये पहला मामला है जो साधुओं पर अत्याचार हुआ है? नही यह पहला मामला नही है बॉलीवुड, ईसाई मिशनरियां, तथाकथित बुद्धिजीवी साहित्यकार, मीडिया, वामपंथी, जिहादी सभी हिंदू धर्म के पीछे पड़े है और सालों से भगवा आतंकवाद की झूठी थ्योरी बना रहे है, साधुओं के खिलाफ जहर भर रहे है पर हिंदू चुपचाप देखते गए अब बड़ी घटना सामने आई तब थोड़ा बहुत समझ मे आ रहा है, और हाँ सोशल मीडिया नही होता तो ये घटना भी दबा दी जाती चोर को मारा गया है वो मीडिया, तथाकथित बुद्धिजीवी, वामपंथी और सरकार बता देती।

🚩कई समय से षड्यंत्र चल रहे है मुख्य रूप से कुछ घटनायें है जो आपको बता रहे है।

▪️1. शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती जी धर्मान्तरण प्रवृति का विरोद्ध करते थे उनके ऊपर खून का झूठा आरोप लगा कर कानून के तहत रात को 12 बजे गिरफ्तार करके झूठे केस में फ़साकर जेल में डाल दिया, अत्याचार किये और जहर देकर निर्दोष छोड़ दिया था जिसके कारण वे हमेशा बीमार रहते थे।

▪️2. स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती 2008 जन्माष्टमी की पावन रात को 4 अनुयायियों के साथ ईसाई माओवादियों द्वारा अत्यंत अमानुषिक ढंग से हत्या । वे पिछले करीब 50 वर्षों से धर्मान्तरित लोगों का घर वापसी कार्य में लगे थे। उन्हें गोली मारकर कुल्हाड़े से काट डाला था । हत्यारे अभी भी निरंकुश हैं ।

▪️3. हिन्दू साध्वी प्रज्ञा ठाकुर धर्म का प्रचार करती थी उन पर बॉम्ब ब्लास्ट के झूठे आरोप थोप कर वर्षो तक उनसे जेल में अमानुषी अत्याचार किये गए ।

▪️4. शंकराचार्य अमृतानन्द को झूठे केस में जेल भेज दिया और भयंकर यातनाएं दी और 9 साल तक जेल में रखा गया।

▪️5. स्वामी श्यामानंद (राजस्थान) आश्रम की जमीन हड़पने के लिये पेय में नशीली वस्तु मिलाकर पिलाया था । तत्पश्चात खरीदी हुई लड़की के साथ नशे की हालत में अश्लील हरकतों की फिल्म बनाकर बदनाम किया । भक्तों ने उस महिला की ठौर पा कर उस से सच उगलवाया ।

▪️6. स्वामी असीमानन्द जी को झूठे केस में गिरफ्तार करके अमानवीय यातनाएं देकर सालों तक जेल में रखा गया।

▪️7. साध्वी उमा भारती- सन 2004 में सांप्रदायिकता भड़काने के आरोप में गिरफ़्तारी वारंट के पश्चात् मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा ।

▪️8. माता अमृतानंदमयी (अम्मा)- रेडलाईट एरिया से संबंधित बताकर उनकी पावन छवि को कलंकित करने का पाप प्रयास किया गया था।

▪️9. स्वामी नित्यानंदजी- दक्षिण भारत के इस संत को Computerised sex scandal के तहत बदनाम किया गया । आज भी कई पातकी प्रेस वाले उन्हें ‘सेक्स-गुरु’ नाम से संबोधित करते हैं ।

▪️10.  श्री कृपालुजी महाराज- 85 वर्ष की उम्र में बलात्कार का आरोप लगया, जो कि मिथ्या प्रमाणित हुआ था ।

▪️11. सत्य साईं बाबा- 90 वर्ष से भी अधिक उम्र वाले वृद्ध संत पर (कुछ वर्ष पहले) मिशनरियों ने इंडिया टुडे पत्रिका के संपादक को खरीद कर समलैंगिकता का गन्दा आरोप लगाया था । फिर 2008-09 में कम्प्युटराइज्ड छवियों से उनको पाखंडी करार देकर दिन-रात ‘स्टार’ तथा ‘इंडिया टीवी’ के जरिये बदनाम किया । संत जब मृत्यु शय्या पर वेंटिलेटर में थे तब कांग्रेस सरकार के कर्मचारियों को उनके कोषाध्यक्षता के लिये भेजा गया तथा मृत्यु के पश्चात् सब कुछ नियंत्रण में ले लिया गया ।

▪️12. 85 वर्षीय आशारामजी बापू और नारायण साई ऊपर बलात्कार के झूठे आरोप लगाकर जेल भेजा गया है। धर्मांतरण विरोधी कार्य करनेवाले देश समाज और संस्कृति की सेवा करनेवाले इन महापुरुषो और उनके आश्रमो के विरुद्ध षड्यंत्र करके बहुत पीड़ाएँ दी है।

▪️13. सौराष्ट्र (गुजरात) के श्री केशवानन्द स्वामी ऊपर यौन शोषण का झूठा आरोप थोप कर बारह साल की जेल की सजा दी। सात साल जेल भोगने के बाद निर्दोष साबित हुए, पर अखबार में नहीं आया।

▪️14. श्री स्वाध्याय परिवार के जयश्री दीदी के ऊपर झूठे आरोप लगा कर परेशान किया। सम्पति पर कब्जा कर लिया पांडुरंग दादाजी के धर्मकार्यो में अनेको विक्षेप किये ।

▪️15. शिवमोगा और बैंगलोर मठ के शंकराचार्य राघवेश्वर भारती जी पर भी एक गायिका को 3 करोड़ नही देने पर 167 बार बलात्कार करने का आरोप लगाया था । उनको भी कोर्ट ने निर्दोष बरी कर दिया ।

▪️16 . महर्षि महेश योगी के दूर के भतीजे ब्रह्मचारी गिरीश वर्मा जी पर बलात्कार का आरोप लगा जेल गए और मीडिया ने 'ब्रह्मचारी की भोग साधना' जैसे शीर्षक देकर बदनाम किया आखिर वे निर्दोष बरी हुए।

🚩यहां आपको कुछ ही घटनाएं बताई, बाकी कई अनगिनत किस्से है जो साधु-संतों के साथ अत्याचार किया जा रहा है इसमें सबसे मुख है ईसाई मिशनरी क्योंकि उनको भारत मे धर्मान्तरण करवाना है फिर अपनी वोट बैंक बनाकर भारत की सत्ता हासिल करनी है दूसरा है विदेशी कम्पनियों का खेल उनको अपना सामान यहाँ बिक्री करना है, लेकिन साधु-संत धर्मान्तरण नही होने देते, दूसरा स्वदेशी अपनाने की बात करते है तीसरा वे करोड़ो लोगो को सनातन धर्म की महिमा बताकर धर्म के मार्ग पर चलाते है जिसके कारण ईसाई मिशनरियां धर्मान्तरण नही करवा पाती और विदेशी कम्पनियों के समान कम बिकने पर अरबो रुपये का नुकसान होता है, तीसरा कारण की लव जिहाद अधिक बच्चे पैदा करना, मदरसों में जिहादी शिक्षा देना आदि राष्ट्र विरोधी गतिविधियां चलाने वाले इस्लामिक स्टेट का भंडाफोड़ करते है, वामपंथी तो पहले से ही राष्ट्र विरोधी है ही जिसके कारण ये सभी साधु-संतों से चिढ़े रहते है उनका मिशन के आड़े साधु-संत आते है इसलिए उनको बॉलीबुड, मीडिया आदि द्वारा बदनाम करवाया जाता है फिर उनको झूठे केस में जेल भिजवाया जाता है कुछ साधुओं की हत्या भी कर दी जाती है इसलिए यह सिलसिला बहुत पुराना है अभी भी समय है इन षड्यंत्र से सावधान रहना होगा और डटकर करना चाहिए।

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Monday, April 20, 2020

साधुओं की हत्या किसने की ? हत्या के पीछे किसका हाथ ?

20 अप्रैल 2020

🚩पालघर (महाराष्ट्र ) में 16 अप्रैल की रात को दो निर्दोष साधुओं और एक ड्राइवर की बेरहमी से पीटकर संतों की हत्या कर दी गई लेकिन आखिर सवाल उठता है कि हत्या के पीछे कौन थे जो अचानक इतने लोग इकट्ठे हो गए और पुलिस के सामने ही बेहरमी से पीटने लगे और पुलिस भी कुछ नही कर सकी और कुछ ही मिनिटों में हत्या हो गई?

🚩अभी सबका सवाल उठता होगा कि ये लोग कौन थे? क्या आदिवासी हिंदू थे? मुस्लिम थे? या फिर ईसाई थे जो साधुओं की हत्या कर रहे थे?

कुछ तथ्य से जाने कौन थे हत्यारे?

🚩ऑपइंडिया ने अखाड़ों के कई संतो से बात की तो उन्होंने अंदेशा जताया कि यह कृत्य सामान्य ग्रामीणों का नहीं है बल्कि इसमें नक्सल और मुस्लिम पक्ष की मौजूदगी का दावा किया जा रहा है। गंगा सेना के संत श्री आनंद गिरी ने तो साफ कहा कि संत समाज के दो संतों को बेरहमी से मारकर कहीं न कहीं तबलीगी जमात का बदला लिया गया है। उनका दावा है कि उन इलाकों में मुस्लिम समुदाय के लोगों की भी उपस्थिति है।

🚩हत्यारी भीड़ के साथ मौजूद थे NCP और CPM के नेता

🚩साधुओं की हत्या करने वाले वीडियो में काशीनाथ चौधरी भीड़ को निर्देशित करता हुआ दिखता है। काशीनाथ चौधरी शरद पवार की NCP का जिला सदस्य है। हत्यारी भीड़ में CPM के पंचायत सदस्य व उसके साथ विष्णु पातरा, सुभाष भावर और धर्मा भावर भी शामिल थे। हत्यारी भीड़ में एनसीपी और सीपीएम नेताओं की मौजूदगी कई सवाल खड़े करती है।

🚩संबित पात्रा ने कहा कि ये घटना और इससे जुड़े खुलासे एक बहुत बड़ी साज़िश की ओर इंगित करते हैं। उन्होंने कहा कि उस जगह पर राजनेताओं की मौजूदगी का क्या अर्थ समझा जाए? वो क्या कर रहे थे? पात्रा ने पूछा कि कहीं वो भीड़ को भड़का तो नहीं रहे थे? उन्होंने ये भी याद दिलाया कि वहाँ उन्हीं पार्टियों के लोग मौजूद हैं, जो भाजपा से घृणा करते हैं, भगवा से घृणा करते हैं।

🚩सुदर्शन न्यूज चेनल के संपादक सुरेश जी ने लिखा कि ज़बरदस्त गति से बढ़ता इसाई धर्मांतरण, ग़ैर क़ानूनी मदरसे और सरकारी ज़मीन पर बढ़ती मस्जिदों का गढ़ बनते आदिवासी पालघर में साधुओं की निर्मम हत्या कोई सामान्य घटना नहीं, मैं इसकी उच्चस्तरीय जाँच की माँग करता हूँ। https://t.co/ALY6vxyYOO

🚩आपको बता दे कि 2008 में कंधमाल में माओवादियों ने स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती सहित तीन और साधुओं की हत्या गोली मार कर दी थी। लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या इसलिए हुई थी क्योंकि स्वामी जी कंधमाल में निर्दोष आदिवासियों के धर्म परिवर्तन का विरोध कर रहे थे। आज यह हत्या उसी घटना की याद दिलाती है। और कहीं न कहीं इसकी आड़ में भी किसी साजिश या हत्यारों को बचाने की बू आ रही है।

🚩आपको यह भी बता दे कि विश्व हिंदू परिषद द्वारा एक प्रेसनोट जारी करके बताया गया है कि भले 110 लोगो को गिरफ्तार किया गया हो लेकिन उसमे मुख्य आरोपी आज भी फरार हैं।

🚩मीडिया की पोल और सोशल मीडिया पर आक्रोश

🚩संतों की हत्या हुए आज तीसरा दिन है और जिस तरह से मीडिया गिरोह इसकी लीपापोती में लगा है। बल्कि इस पूरे घटना को ही हवा में उड़ा देने के लिए या तो पूरी तरह मौन है या फेक नैरेटिव की आड़ में दोषियों और महाराष्ट्र सरकार पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है। आपको याद होगा जब तबरेज़ अंसारी की चोरी करने के कारण मॉब लिंचिंग हुई थी तब मीडिया ने ना सिर्फ तबरेज को निर्दोष साबित किया बल्कि इस हत्या के सारे आरोप हिंदुओं पर मढ़ दिए।

🚩साथ वामपंथी-लिबरल गिरोह पूरी दुनियाँ मे हिंदुओं और देश का नाम खराब करने में पूरी तरह सक्रिय हो गई थी तुरंत ही बिना ये जाने कि मामला क्या है? क्योंकि वहाँ जिसे पीटा गया था वह एक मुस्लिम था। यही इस गिरोह के नैरेटिव के लिए पर्याप्त है वह क्या कर रहा था, चोर था आदि, इसे मीडिया ने ख़ारिज कर दिया था लेकिन अब जब दो निर्दोष साधुओं की हत्या हुई जिसमें कहा जा रहा है कि लूट-पाट का विरोध करना भी एक कारण है तो उल्टा खबरों में यह चलाया गया कि चोरी की शक में हत्या हुई है। और ना जाने क्या क्या आरोप लगाए जा रहे हैं ताकि लोगों को न सिर्फ सच से दूर रखा जाए बल्कि आरोपितों को बचाने में सक्रीय है यहाँ यह गिरोह।

🚩जूना अखाड़े के संतों की हत्या पर मीडिया गिरोह लीपापोती पर उतारू है और उसे बच्चा चोरी जैसे नैरेटिव की आड़ में मॉबलिंचिंग को एक सामान्य घटना बनाकर पेश करते हुए उन हत्यारों का बचाव कर रही है ।

🚩द हिंदू ने भी अपनी रिपोर्ट के शीर्षक में किसी जगह पर साधू शब्द का इस्तेमाल करना उचित नहीं समझा। इन्होंने भी 3 लोगों की लिंचिंग को ही अपनी खबर में प्राथमिकता दी।

🚩इसी प्रकार टाइम्स ऑफ इंडिया की भी खबर इसी एंगल पर चली। इसके बाद हिंदुस्तान टाइम्स ने भी 200 लोगों की भीड़ का उल्लेख कर पूरी घटना की, NDTV का भी वही हाल है, भर्त्सना को जरा सा दर्शाया लेकिन मुख्य बात यानी साधुओं की हत्या की बात उनके शीर्षक से भी नदारद रही।

🚩किन तीन लोगों की हत्या हुई? वे कौन थे? वे बताने के बदले बल्कि उसे और हलका करने के लिए यह लिखा जा रहा है कि आक्रोशित भीड़ ने बच्चा चोर समझ कर तीन लोगों को पीट दिया जिससे बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इस नैरेटिव की आड़ में आज घटना घटे तीन दिन होने के बाद भी हर छोटी बात पर बवाल काटने वाली वामपंथी लिबरल गैंग मौन है।

🚩सोशल मीडिया पर संतों के शवों को बेकदरी से डम्पर में डालकर ले जाने पर भी आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर जारी तस्वीरों में देखा जा सकता है कि किस तरह से बिना कफ़न या किसी कपड़े के लावरिसो की तरह यूँ ही उनका शरीर लोड कर पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाया गया।


🚩इन सबसे पता चलता है की भारत मे जिस तरह से ईसाई मिशनरियां धर्मान्तरण करवा रही है ओर नक्सलवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है और कुछ मीडिया उनके पक्ष लेकर खड़ी रहती है और हिंदू साधु-संतों को जिस तरह से बदनाम कर रही है इससे साफ पता चलता है कि भारतीय संस्कृति को तोड़ने के लिए कार्य को जोरो-शोरो से किया जा रहा है और उसके बचाने के लिए सबसे ज्यादा आगे साधु-संत आते है इसलिए वे सबसे ज्यादा टारगेट पर है क्योंकि वे आदिवासियों को जीवनुपयोगी सामग्री, मकान आदि देते है जिससे मिशनरियां के प्रभाव में वे लोग न आये और धर्मपरिवर्तन न करे दूसरा जिनका धर्मपरिवर्तन हो चुका है उनकी घरवापसी करवाते है इन सभी कारणों से मिशनरियां और इस्लाम स्टेट चिढ़ते है और साधु संतों को झूठे केस में फंसकर मीडिया से बदनाम करवाकर जेल भिजवाते है या हत्या कर देते है और आम जनता को साधुओं के खिलाफ करते है जिससे उनका काम आसानी हो सके और भारत की भोली जनता उनके बहकावे में आ जाये और निर्दोष लोगों की हत्या तक करने को तैयार हो जाये।

🚩अभी भी हिंदुओं के लिए समय है चेत जाए एकजुट होकर राष्ट्रवादी सरकार को वोट दे और बिकाऊ मीडिया का सोशल मीडिया पर पर्दाफाश करे और धर्मान्तरण पर रोक लगाकर साधु-संतों की रक्षा करे।

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