Friday, November 13, 2020

दीपावली का पर्व कबसे मनाया जाता है? इसदिन लक्ष्मी प्राप्ति के लिए क्या करें?

13 नवम्बर 2020


दीपावली हिन्दू समाज में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्यौहार है। दीपावली को मनाने का उद्देश्य भारतीय संस्कृति के उस प्राचीन सत्य का आदर करना है, जिसकी महक से आज भी लाखों लोग अपने जीवन को सुवासित कर रहे हैं। दिवाली का उत्सव पर्वों का पुंज है। भारत में इस उत्सव को मनाने की परंपरा कब से चली, इस विषय में बहुत सारे अनुमान किये जाते हैं। 




बताया जाता है कि भगवान श्रीराम जी का राज्याभिषेक इसी अमावस के दिन हुआ था और राज्याभिषेक के उत्सव में दीप जलाये गये थे, घर-बाजार सजाये गये थे, गलियाँ साफ-सुथरी की गयी थीं, मिठाइयाँ बाँटी गयीं थीं, तबसे दिवाली मनायी जा रही है।

यह भी बताया जाता है कि भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण करके राजा बलि से दान में तीन कदम भूमि माँग ली और विराट रूप लेकर तीनों लोक ले लिए तथा सुतल का राज्य बलि को प्रदान किया। सुतल का राज्य जब बलि को मिला और उत्सव हुआ, तबसे दिवाली चली आ रही है।

कही ये भी बताया जाता है कि सागर मंथन के समय क्षीरसागर से महालक्ष्मी उत्पन्न हुईं तथा भगवान नारायण और लक्ष्मी जी का विवाह-प्रसंग था, तबसे यह दिवाली मनायी जा रही है।

यह भी पुराणों में आता है कि श्रीकृष्ण ने आसुरी वृत्ति के नरकासुर का वध कर जनता को भोगवृत्ति, लालसा, अनाचार एवं दुष्टप्रवृत्ति से मुक्त किया एवं प्रभुविचार (दैवी विचार) देकर सुखी किया तबसे ‘दीपावली’ मनाई जाती है।

सिखों का कहना है कि गुरु गोविन्दसिंह इस दिन से विजययात्रा पर निकले थे। तबसे सिक्खों ने इस उत्सव को अपना मानकर प्रेम से मनाना शुरू किया।

जैनी बताते है कि 'महावीर ने अंदर का अँधेरा मिटाकर उजाला किया था। उसकी स्मृति में दिवाली के दिन बाहर दीये जलाते हैं। महावीर ने अपने जीवन में तीर्थंकरत्व को पाया था, अतः उनके आत्म उजाले की स्मृति कराने वाला यह त्यौहार हमारे लिए विशेष आदरणीय है।

इस प्रकार पौराणिक काल में जो भिन्न-भिन्न प्रथाएँ थीं, वे प्रथाएँ देवताओं के साथ जुड़ गयीं और दिवाली का उत्सव बन गया।

यह उत्सव कब से मनाया जा रहा है, इसका कोई ठोस दावा नहीं कर सकता, लेकिन है यह रंग-बिरंगे उत्सवों का गुच्छ..... यह केवल सामाजिक, आर्थिक और नैतिक उत्सव ही नहीं वरन् आत्मप्रकाश की ओर जाने का संकेत करने वाला, आत्मोन्नति कराने वाला उत्सव है।

किसी अंग्रेज ने आज से 900 वर्ष पहले भारत की दिवाली देखकर अपनी यात्रा-संस्मरणों में इसका बड़ा सुन्दर वर्णन किया है तो दिवाली उसके पहले भी होगी।

संसार की सभी जातियाँ अपने-अपने उत्सव मनाती हैं। प्रत्येक समाज के अपने उत्सव होते हैं जो अन्य समाजों से भिन्न होते हैं, परंतु हिंदू पर्वों और उत्सवों में कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं, जो किसी अन्य जाति के उत्सवों में नहीं हैं। हम लोग वर्षभर उत्सव मनाते रहते हैं। एक त्यौहार मनाते ही अगला त्यौहार सामने दिखाई देता है। इस प्रकार पूरा वर्ष आनन्द से बीतता है।

 दीपावली टिप्स

1. दिवाली की रात कुबेर भगवान ने लक्ष्मी जी की आराधना की थी जिससे वे धनाढ्यपतियों के भी धनाढ्य कुबेर भंडारी के नाम से प्रसिद्ध हुए , ऐसा इस काल का महत्व है ।

दीपावली की रात का लाख गुना फलदायी होता है । ये सिद्ध रात्रियाँ कहलाती हैं व भाग्य की रेखा बदलने वाली रात्रियाँ हैं । अधिक से अधिक जप करके इन रात्रियों का लाभ उठाना चाहिए ।

दीपावली की रात्रि जप करने योग्य लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र "रात्रि को दीया जलाकर इस सरल मंत्र का यथाशक्ति जप करें : ' ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा"

2. घर के बाहर हल्दी और चावल के मिश्रण या केवल हल्दी से स्वस्तिक अथवा ॐकार बना दें । यह घर को बाधाओं से सुरक्षित रखने में मदद करता है । द्वार पर अशोक और नीम के पत्तों का तोरण ( बंदनवार ) बाँध दें | उससे पसार होनेवाले की रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी ।


3. लक्ष्मी प्रात्ति हेतु दीपावली की संध्या को तुलसी जी के निकट दीया जलाएँ , इससे लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने में मदद मिलती है ।

4. लक्ष्मी प्राप्ति की साधना :- दीपावली के दिनघर के मुख्य दरवाजे के दायीं और बायीं ओर गेहूँ की छोटी-छोटी ढेरी लगाकर उस पर दो दीपक जला दें । हो सके तो वे रात भर जलते रहें, इससे आपके घर में सुख - सम्पति की वृद्धि होगी ।

5. लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गुरुदेव के श्रीचित्र पर विशेष तिलक :- दीपावली के दिन लौंग और इलायची को जलाकर राख कर दें और उससे भगवान अथवा गुरुदेव (श्रीचित्र) को तिलक करें । ऐसा करने से लक्ष्मी प्राप्ति में मदद मिलती है और काम - धंधे में बरकत आती है ।

6. आनंद व प्रसन्नतावर्धक नारियल - खीर प्रयोग :- दीपावली के रात्रि को थोड़ी खीर को कटोरी में डालकर और नारियल लेकर घूमना और मन में 'लक्ष्मी-नारायण' जप करना ; स्वीर ऐसी जगह रखना जहाँ किसीका पैर ना पड़े और गाय, कौए आदि स्वा जाएँ । नारियल अपने घर के मुख्य दरवाजे पर फोड़ देना और उसकी प्रसादी बांटना । इससे घर में आनंद और सुख-शांति रहेगी ।

7. परिवार की तीनों तापों से रक्षा के लिए-कपूर :- दीपावली के दिन चाँदी की कटोरी में अगर कपूर को जलाएँ, तो परिवार में तीनों तापों से रक्षा होती है ।

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Thursday, November 12, 2020

चांदी के वर्क वाली मिठाई का सच जानकर आप भी खाना छोड़ देंगे..

12 नवंबर 2020


 हिन्दू त्यौहार में मिठाईयां खूब खाई जाती हैं, उसमें भी मेहमानों को आकर्षित करने के लिए चांदी के वर्क वाली मिठाईयां ख़रीद के खाई जाती हैं और खिलाई जाती हैं।




 देशभर में दीपावली की धूम मची है, उसमे भी वर्क वाली मिठाईयों का खूब उपयोग किया जा रहा है, लेकिन ये मिठाई खाने जैसी है कि नहीं, क्या भगवान को वर्क वाली मिठाई का भोग लगाना उचित है या नहीं, ये जानना बेहद जरूरी है।

कुछ लोग खूबसूरती के लिए ये मिठाईयां घर लाते हैं तो कुछ लोग सेहत के लिए फायदेमंद समझकर खरीदते हैं।

 मिठाईयों पर लगे चाँदी के वर्क का सच जानने के बाद आप मिठाई खाने से पहले सौ बार सोचेंगे। हो सकता है खाना ही छोड़ दें। क्या आपको पता है कि आपको वर्क के नाम पर मांसाहारी मिठाई परोसी जा रही है ?

चांदी के वर्क वाली मिठाई दिखने में जितनी सुंदर है। उसी चांदी के वर्क के बनने की कहानी बेहद ही घिनौनी है। सालों से लोग वर्क लगी मिठाई को शाकाहारी समझ कर खा रहे हैं, लेकिन सजावट के लिए लगाया जाने वाला चांदी का वर्क असलियत में जानवर की खाल से बनता है।

बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि यह वर्क गाय-बैल की आंतों से तैयार किया जाता है ।

जिस चांदी के वर्क लगी मिठाई को शाकाहारी समझ कर आप बरसों से खा रहे हैं, वो दरअसल शाकाहारी नहीं है जानवर के अंश का इस्तेमाल करके चांदी का वर्क बनाया जाता है ।

बता दें कि देश में चांदी के वर्क की सालाना मांग करीब 275 टन की है । चांदी के वर्क का कारोबार फिलहाल भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में है जो कि पूरी तरह असंगठित क्षेत्र के हाथ में है । यही वजह है कि इसके कारोबार का सही-सही आंकड़ा किसी के पास नहीं है ।

 चांदी का बाजार !!

परंपरागत रूप से देश में चांदी का वर्क बूचड़खानों से ली गई जानवरों की खालों और उनकी आंतों को हथौड़ों से पीटकर तैयार किया जाता है ।

इसके अलावा विदेशी मशीनों से भी चांदी का वर्क तैयार होता है, इसमें एक स्पेशल पेपर और पॉलिएस्टर कोटेड शीट के बीच चांदी को रखकर उसके वर्क का पत्ता तैयार होता है । इसमें जानवर के अंश का इस्तेमाल नहीं किया जाता । चूंकि ये मशीनें महंगी हैं और देश में गिनी चुनी कंपनियों के पास ही हैं, ऐसे में इनका चांदी का वर्क महंगा भी पड़ता है और कम भी । एक अनुमान के मुताबिक भारत में अधिकतर चांदी का वर्क पुराने तरीके से, जानवरों के अंश का इस्तेमाल करके बनता है।

सरकारी आदेश का असर !!

सरकार ने कुछ साल पहले चांदी के वर्क को बनाने में जानवर के अंश का इस्तेमाल नहीं करने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया है । फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व सदस्य और फूड एक्सपर्ट बिजॉन मिश्रा का भी कहना है कि चांदी के वर्क बेचते समय बताना चाहिए कि ये मांसाहारी है या शाकाहारी । इसके पैकेट पर हरा और लाल निशान होना चाहिए ।

आपको बता दें कि पैकेट पर हरा निशान मतलब की शाकाहारी है और लाल निशान मतलब की वो वस्तु मांसाहारी है ।

 दो साल पहले मेनका गांधी ने मीडिया को बताया कि मिठाई व पान ही नहीं सेब जैसे फल को आकर्षक बनाने के लिए उनके ऊपर जो चांदी का वर्क लगाया जाता है वह मांसाहार की श्रेणी में आता है।

उनका कहना है कि यह वर्क जिंदा बैलों का कत्ल कर उनकी आंत के सहारे तैयार किया जाता है । वर्क लगी मिठाइयों के बढ़ते आकर्षण के कारण प्रति वर्ष हजारों गौवंशीय पशुओं की हत्या की जाती है।

उन्होंने बताया कि गौवंशीय पशु की आंत से बनी वर्क में चांदी, एल्यूमिनियम अथवा उस जैसी धातु का बड़ा टुकड़ा डाला जाता है । फिर उसे लकड़ी के हथौड़े से पीट कर पतला करके आकार दिया जाता है ।

बैल की आंत पीटते रहने से फटती नहीं है । चांदी के वर्क के चक्कर में कुछ लोग एल्यूमिनियम भी बेच देते हैं।

मेनका गाँधी का कहना है कि इस कारोबार से जुड़े लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पशु हत्या, गाय की हत्या में भी संलिप्त कहे जा सकते हैं । 'पांच साल पहले इंडियन एयरलाइंस ने यह महसूस किया कि चांदी वर्क मांसाहार है, और अपने कैटरर को विमान में परोसी जाने वाली मिठाइयों पर वर्क न लगाने के निर्देश दिए थे । साथ ही पत्र भेज कर बैल की आंतों के सहारे तैयार कराए जाने वाले वर्क पर रोक लगाने को कहा था ।

स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कराई गई जांच में भी वर्क के मांसाहार होने की पुष्टि हुई ।

केंद्र अब कानून के जरिये इस पर प्रतिबंध की तैयारी में है ।

इस आशय का 19 अप्रैल 2016 को राजपत्र भी आम राय के लिए वेबसाइट पर डाला था ।

आप गाय के दूध से बनी घरेलू मिठाई ही खायें और बैल के वर्क से बनी मिठाइयों, सुपारी, लडडू, इलायची आदि से सावधान रहें ।

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Wednesday, November 11, 2020

शिक्षा दिवस पर विशेष लेख : भारतीय शिक्षा का विकृतीकरण किसने किया?

11 नवंबर 2020


स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की याद में देश 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाते है। लेकिन ये कोई नही जानता है कि मौलाना आज़ाद ने शिक्षा को कितना विकृत कर दिया जिसके कारण आज भी भारतवासियों को नुकसान झेलना पड़ रहा हैं।




11 नवम्बर 1888 को पैदा हुए मक्का में, वालिद का नाम था " मोहम्मद खैरुद्दीन" और अम्मी मदीना (अरब) की थीं। नाना शेख मोहम्मद ज़ैर वत्री ,मदीना के बहुत बड़े विद्वान थे। मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे। ये सज्जन जब दो साल के थे तो इनके वालिद कलकत्ता आ गए। सब कुछ घर में पढ़ा और कभी स्कूल कॉलेज नहीं गए। बहुत ज़हीन मुसलमान थे। इतने ज़हीन कि इन्हे मृत्युपर्यन्त "भारत रत्न " से भी नवाज़ा गया। इतने काबिल कि कभी स्कूल कॉलेज का मुंह नहीं देखा और बना दिए गए भारत के पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री। इस शख्स का नाम था "मौलाना अबुल कलम आज़ाद ।"
इन्होने इस बात का ध्यान रखा कि विद्यालय हो या विश्वविद्यालय कहीं भी इस्लामिक अत्याचार को ना पढ़ाया जाए. इन्होने भारत के इतिहास को ही नहीं अन्य पुस्तकों को भी इस तरह लिखवाया कि उनमे भारत के गौरवशाली अतीत की कोई बात ना आए। आज भी इतिहास का विद्यार्थी भारत के अतीत को गलत ढंग से समझता है।

हमारे विश्वविद्यालयों में - गुरु तेग बहादुर, गुरु गोबिंद सिंह, बन्दा बैरागी, हरी सिंह नलवा, राजा सुहेल देव पासी, दुर्गा दास राठौर के बारे में कुछ नहीं बताया जाता..
आज की तारीख में इतिहास हैं। 1 ) हिन्दू सदैव असहिष्णु थे 2) मुस्लिम इतिहास की साम्प्रदायिकता को सहानुभूति की नज़र से देखा जाये।

भारतीय संस्कृति की रीढ़ की हड्डी तोड़ने तथा लम्बे समय तक भारत पर राज करने के लिए 1835 में ब्रिटिश संसद में भारतीय शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त करने के लिए मैकाले ने क्या रणनीति सुझायी थी तथा उसी के तहत Indian Education Act- 1858 लागु कर दिया गया।
अंग्रेज़ों ने " Aryan Invasion Theory" द्वारा भारतीय इतिहास को इसलिए इतना तोडा मरोड़ा कि भारतियों कि नज़र में उनकी संस्कृति निकृष्ट नज़र आये और आने वाली पीढ़ियां यही समझें कि अंग्रेज बहुत उत्कृष्ट प्रशासक थे।  आज जो पढाया जा रहा है उसका सार है -

1) हिन्दू आर्यों की संतान हैं और वे भारत के रहने वाले नहीं हैं। वे कहीं बाहर से आये हैं और यहाँ के आदिवासियों को मार मार कर तथा उनको जंगलों में भगाकर उनके नगरों और सुन्दर हरे-भरे मैदानों में स्वयं रहते हैं।

2) हिन्दुओं के देवी देवता राम, कृष्ण आदि की बातें झूठे किस्से कहानियां हैं। हिन्दू महामूर्ख और अनपढ़ हैं।
 
3) हिन्दुओं का कोई इतिहास नहीं है और यह इतिहास अशोक के काल से आरम्भ होता है।

4) हमारे पूर्वज जातिवादी थे. मानवता तो उनमे थी ही नहीं..

5) वेद, जो हिन्दुओं की सर्व मान्य पूज्य पुस्तकें हैं ,गड़रियों के गीतों से भरी पड़ी हैं।

6) हिन्दू सदा से दास रहे हैं --कभी शकों के, कभी हूणों के, कभी कुषाणों के और कभी पठानों तुर्कों और मुगलों के।

7) रामायण तथा महाभारत काल्पनिक किस्से कहानियां हैं-

15 अगस्त 1947, को आज़ादी मिली, क्या बदला ????? रंगमंच से सिर्फ अंग्रेज़ बदले बाकि सब तो वही चला। अंग्रेज़ गए तो सत्ता उन्ही की मानसिकता को पोषित करने वाली कांग्रेस और नेहरू के हाथ में आ गयी। नेहरू के कृत्यों पर तो किताबें लिखी जा चुकी हैं पर सार यही है की वो धर्मनिरपेक्ष कम और मुस्लिम हितैषी ज्यादा था। न मैकाले की शिक्षा नीति बदली और न ही शिक्षा प्रणाली। शिक्षा प्रणाली जस की तस चल रही है और इसका श्रेय स्वतंत्र भारत के प्रथम और दस वर्षों (1947-58) तक रहे शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलम आज़ाद को दे ही देना चाहिए बाकि जो कसर बची थी वो नेहरू की बिटिया इन्दिरा गाँधी ने तो आपातकाल में विद्यालयों में पढ़ाया जाने वाला इतिहास भी बदल कर पूरी कर दी। जिस आज़ादी के समय भारत की 18.73% जनता साक्षर थी उस भारत के प्रधानमंत्री ने अपना पहला भाषण "tryst With Destiny" अंग्रेजी में दिया था आज का युवा भी यही मानता है कि यदि अंग्रेजी न होती तो भारत इतनी तरक्की नहीं कर पाता। और हम यह सोचने के लिए मजबूर हो जाते हैं कि पता नहीं जर्मनी, जापान,चीन इजराइल ने अपनी मातृभाषाओं में इतनी तरक्की कैसे कर ली।

आज तक हम इससे उबर नहीं सके हैं... 2018 में NCERT की वे किताबें हैं जो 2005 का संस्करण हैं.--
यह पढाया जा रहा है विद्यार्थियों को --
ICSE एक सरकारी परीक्षा संस्थान है जो CBSE की तरह पूरे भारत में मान्य है. संयोग से इसकी 2016 की इतिहास की पुस्तकें देखी...
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नमूना देखें --

कक्षा 6 -
1● इतिहास की घटनाओं के समय का माप केवल ईसा के जन्म से पूर्व (BC बिफोर क्राईस्ट) या ईसा के बाद (AC आफ्टर क्राईस्ट) ! जैसे भारत का तो कोई समय था ही नहीं ?

2● सिंधु घाटी में एक महान सभ्यता अस्तित्व में थी, जिसे आक्रान्ता आर्यों ने तहस नहस कर दिया।

३● आक्रमण के बाद आर्य भ्रमित थे कि वे अपने वेदों के साथ यहाँ बसें या यहाँ से चले जाएँ ।
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4● उसके बाद सम्राट अशोक आते हैं !! हर जगह बौद्ध धर्म का उल्लेख । उस समय तक मानो हिन्दू थे ही नहीं !

5● गुप्तकाल। मानो समुद्रगुप्त पहला हिंदू शासक हो । क्योंकि वह सहिष्णु था और वह भी अपवादस्वरुप ।
पल्लव, चोल, चेर या तो वैष्णव थे अथवा शैव, हिन्दू नहीं । पूरी किताब में हिंदुओं का उल्लेख सिर्फ तीन बार ।

6● मुखपृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक छठवीं क्लास के आईसीएसई के इतिहास में हिन्दू कहीं मौजूद ही नहीं है।

कुछ है तो आर्यों द्वारा किया गया सभ्यताओं का सफाया तथा बौद्धों पर जाति थोपने का उल्लेख ।

इन 40 पृष्ठों में 5000 से अधिक वर्षों पुरानी धार्मिक सभ्यता का उल्लेख तक नहीं है । पूरे 300 वर्ष के राजवंशों का इतिहास एक पैरा में निबटा दिया गया ।
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कक्षा 7 संक्षेप में --

कक्षा 7 की इतिहास की पुस्तक में ईसामसीह का प्रचार है और वह केवल इसी के लिए ही लिखी गई है ।

दुनिया भर में इस्लाम का खूनी विजय अभियान, अरबों द्वारा किया गया "एकीकरण" का प्रयास था, जिसने अनेक लेखक, विचारक और वैज्ञानिक दिए ।

तुर्की के आक्रमण से पहले भारत क्या था, इसका उल्लेख केवल दो पृष्ठों में हैं । जबकि हर क्रूर मुग़ल बादशाह पर पूरा अध्याय है

भारत पर अरब आक्रमण एक अच्छी बात थी, उन्होंने हमें सांस्कृतिक पहचान दी । महमूद लूटने इसलिए आया क्योंकि उसे पैसे की जरूरत थी !

जिस कट्टरपंथी कुतबुद्दीन ऐबक ने 27 मंदिरों को नष्ट कर कुतुब मीनार बनवाई वह एक दयालु और उदार आदमी था !

बाबर ने अपने शासनकाल में धार्मिक सहिष्णुता की प्रवृत्ति शुरू की !

औरंगजेब एक रूढ़िवादी और भगवान से डरने वाला मुस्लिम संत था जो अपने जीवन यापन के लिए टोपियां सिलता था। वह अदूरदर्शी शासक अवश्य था ।

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कक्षा 8 से 10 तक*
संक्षेप में बताया जाता है कि मराठा साम्राज्य अस्तित्व में आने के पूर्व ही समाप्त हो गया ।

यहाँ भी ईसाई उत्पीड़न घुसाने का प्रयास, बाइबल पढ़ने वाले गुलामों को निर्दयतापूर्वक दंडित किया जाता था !
सिखाया जाता है कि गोरों का राष्ट्रवाद एक अच्छी बात है, किन्तु जब भारतीय राष्ट्रवादी हों तो वे अतिवादी हैं ।

जाटों का उल्लेख महज सात लाइनों में, और राजपूतों का 12 में मिलता है ! पंजाब का उल्लेख सीधे गुरु गोबिंद सिंह से शुरू होता है ।

उम्मीद के मुताबिक़ हैदर अली और टीपू सुल्तान को बेहतर दिखाया गया है । मैसूर किंगडम की शुरूआत हैदर अली से !
मराठाओं को बस एक पेज में लपेट दिया, शिवाजी को महज एक पंक्ति में । संभाजी कौन ? तो बस एक कमजोर उत्तराधिकारी!
मराठों सिर्फ एक क्षेत्रीय शक्ति थे, जबकि मुगलों और ब्रिटिश साम्राज्य थे।

मुगल साम्राज्य के पतन से अराजकता और अव्यवस्था फैली !
जिन महाराजा रणजीत सिंह का साम्राज्य पंजाब, कश्मीर और पार तक था, उनका उल्लेख केवल 4 लाइनों में हो गया ।
कसाई टीपू को मैसूर का टाइगर बताया गया गया । एक प्रबुद्ध शासक जो अपने समय से आगे का विचार करता था!
तो औरंगजेब एक संत था और कुतबुद्दीन ऐबक एक दयालु, उदार व्यक्ति ! और टीपू तो निश्चित रूप से धर्मनिरपेक्ष, उदार और सहिष्णु था ही !!
मुरदान खान और खलील जैसे ठग देवी काली के उपासक थे जिन्होंने 2 लाख से अधिक लोगों की हत्याएं कीं !!

भारतीय समाज गड्ढे में पड़ा हुआ था इसलिए दमनकारी था। 1843 में अंग्रेजों ने यहाँ गुलामी को अवैध घोषित किया ! (है ना हैरत की बात ?उन्होंने भारत में गुलामी को अवैध घोषित किया अफ्रीका में नहीं !!

भारतीय शिक्षा ??

मिशनरियों के आने के पूर्व केवल कुछ गिने चुने शिक्षक अपने घर में ही पढाया करते थे ।
जबकि सच्चाई यह है कि अकेले बिहार में ब्रिटेन से कहीं ज्यादा स्कूल और विश्वविद्यालय थे । बिटिश ने अपनी स्वयं की शिक्षा प्रणाली भारत के अनुसार बनाई ।

हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने वाली सुधारक केवल एनी बेसेंट थीं !!

संयोग से एक सच्चाई जरूर सामने आ गई, वह यह कि ह्यूम ने कांग्रेस का गठन 1857 जैसी घटनाएँ रोकने के लिए किया था, और यह काम कांग्रेस ने बहुत अच्छी तरह से किया भी !

युवाओं ने अभिनव भारत जैसी गुप्त गतिविधियों का संचालन किया, जिन्होंने भारत के बाहर काम किया, यहाँ भी वीर सावरकर का उल्लेख नहीं।
क्रांतिकारी आंदोलन का उल्लेख केवल एक पेज से भी कम में किया गया है। क्योंकि असली नायकों (नेहरू) को ज्यादा स्थान की जरूरत है ।

नेताजी और आजाद हिंद फौज का उल्लेख मात्र एक चौथाई पृष्ठ में मिलता है !
तो यह है हमारी आज की इतिहास शिक्षा का कच्चा चिट्ठा !

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और उनकी सेना को एक चौथाई पेज, शिवाजी को एक लाइन, लेकिन चाचा जी का स्तवन भरपूर ।


और हाँ क्रिकेट तो भूल ही गए । इस औपनिवेशिक खेल को पूरे दो पृष्ठ, आखिर बोस, भगत सिंह और मराठा साम्राज्य की तुलना में यह अधिक महत्वपूर्ण जो है।

केंद्र सरकार को भारत में अब गीता, रामायण और राष्ट्र भक्त जैसे कि चंद्रशेखर आज़ाद, शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप आदि का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाए और मौलाना आजाद की शिक्षा को दूर करना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

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Tuesday, November 10, 2020

इस दीपावली पर भारतीय इस बात का खास ध्यान रखें...

10 नवंबर 2020


 दीप आनंद का प्रतीक है। व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र का जीवन आनंदमय हो, साथ ही सभी का जीवन आनंद से परिपूर्ण हो जाए। इसलिए हम आकाशदीप लगाते हैं । दीप लगाने से अंधकार का नाश होता है। ‘दीपावली के त्योहार द्वारा अन्यों को आनंद प्राप्त हो, क्या ऐसे कार्य हम करते हैं’, हमें इसका चिंतन करना चाहिए । दुर्भाग्यवश इसका उत्तर ‘नहीं’ ही है । दीपावली के निमित्त हमारे किसी कृत्य द्वारा अन्यों को दुःख होगा, तो हम पाप के भागी होंगे। अतएव ये सब रोक कर देवता की कृपा संपादन करें ।




 पटाखों के माध्यम से होनेवाला देवता का अनादर रोकने का निश्चय करें !

दीपावली में कुछ लोग देवताओं के छायाचित्र वाले पटाखे फोडते हैं । देवता का छायाचित्र प्रत्यक्ष देवता ही हैं । जिस समय हम पटाखे फोडते हैं, उस समय उस छायाचित्र के टुकडे होते हैं, अर्थात हम उस देवता का अनादर ही करते हैं । श्रीलक्ष्मी के छायाचित्र वाले, साथ ही राष्ट्रभक्तों के छायाचित्र वाले पटाखे फोडना, इससे हमें पाप लगता है । इस दीपावली को हम ऐसे पटाखे खरीदेंगे ही नहीं। साथ ही ऐसे पटाखे खरीदने वालों का प्रतिरोध कर उनका प्रबोधन करेंगे, वास्तव में यह देवता की भक्ति है । ऐसा करने से हम पर देवता की कृपा होगी । बच्चो, क्या हमारे माता-पिता के छायाचित्र वाले पटाखे हम फोडेंगे ? नहीं न ! देवता हम सभी की रक्षा करते हैं । हमें शक्ति एवं बुद्धि प्रदान करते हैं। अतएव इस दीपावली को हम यह अनादर रोकने का निश्चय करें।

चीनी पटाखों के कारण होने वाला वायुप्रदूषण एवं भारत के पैसे चीन में नही जाए और चीन की घुसपैठ को ध्यान में लेकर प्रशासन को स्वयं ही इन पटाखों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए !

बता दें कि दीवाली को पटाखे फोडने के पीछे कोई भी शास्त्रीय आधार नहीं है । यह एक अनुचित किंतु प्रचलित प्रथा है । इसके विषय में हम चिंतन करेंगे । क्या पटाखे फोडने से अन्यों को आनंद की प्राप्ति होती है ? ऐसा बिल्कुल नहीं । तो ऐसी प्रथाओं का हम अनुकरण क्यों करें ? इसके विपरीत ऐसी प्रथाओं के कारण लोग अपने त्योहारों से त्रस्त हो गए हैं तथा त्योहार के विषय में भ्रांत धारणा बन गई है । उसे दूर करना, वास्तव में यही खरी दीपावली है । इसी कारण लोगों को धर्मशिक्षा प्रदान करनी चाहिए ।

 चित्रविचित्र रंगोली बनाने की अपेक्षा शास्त्रानुसार रंगोली बनाएं !

दीपावली में हम घरों के सामने रंगोली बनाते हैं । रंगोली के माध्यम से हम देवता का आवाहन करते हैं । शास्त्रानुसार रंगोली किस प्रकार बना सकते हैं, यह सनातन के `सात्त्विक रंगोलियां’ नामक ग्रंथ में उल्लेखित है । हम शास्त्र से अपरिचित हैं, अतएव आधुनिक प्रथा अथवा परिवर्तित रूप में लडकियां चित्रविचित्र रंगोली बनाती हैं, इसे हमें रोकना ही चाहिए । लडकियों, हम इस दीपावली में शास्त्रानुसार रंगोली बनाने का निश्चय करेंगे ।

दीपावली में बिजली का प्रकाश अथवा तमोगुणी मोमबत्ती का उपयोग करने की अपेक्षा तेल के दिये का उपयोग करेंगे !

दीपावली में वातावरण में ईश्वरीय चैतन्य अधिक मात्रा में होता है । तेल के दीए के माध्यम से हमारे घरों में उस चैतन्य का प्रक्षेपण होता है एवं हमारे घर का वातावरण आनंदी होता है । तेल का दीया रज-तम का नाश करता है एवं सत्त्वगुण की वृद्धि करता है, तो बिजली के प्रकाश एवं मोमबत्ती द्वारा वातावरण में रज-तम की वृद्धि होती है । ऐसा नहीं हो। अतः बच्चो, दीवाली में तेल का दीया जलाएं तथा बिजली के प्रकाश से घर को प्रकाशित ना करें !

भैयादूज के दिन बहन को हिंदु संस्कृतिनुसार वस्त्रालंकार प्रदान करें !

भैयादूज के दिन बहन भाई का औक्षण करती है, तब बहन को वस्त्रालंकार प्रदान करते समय भाई जीन्स पैंट एवं टी-शर्ट ऐसे ईसाईयों की वेशभूषावाले वस्त्र देते हैं । ऐसी भेंट देना, अर्थात अपनी बहन को हिंदु संस्कृति से दूर लेकर जाने के समान ही है । अतः हम अपनी बहन को घाघरा-चोली(परकर पोलके), सलवार-कमीज, साडी जैसे सात्त्विक वस्त्र प्रदान कर हिंदु संस्कृति की रक्षा करेंगे !

मित्रो, अब हमें हर त्योहार के पीछे क्या शास्त्र है, यह ज्ञात करना आवश्यक है । हमें प्रत्येक त्योहार शास्त्रानुसार मनाना चाहिए । साथ ही हम धर्म एवं संस्कृति के विषय में जानकारी प्राप्त कर राष्ट्र एवं संस्कृति की रक्षा हेतु तत्पर रहें ! – श्री. राजेंद्र पावसकर (गुरुजी), पनवेल

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Monday, November 9, 2020

भाई मतिदास और दो भाइयों ने धर्म के लिए प्राण दिए पर धर्मपरिवर्तन नहीं किया

09 नवम्बर 2020


औरंगज़ेब के शासनकाल में उसकी इतनी हठधर्मिता थी कि उसे इस्लाम के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा तक सहन नहीं थी। मुग़ल आक्रांता औरंगजेब ने मंदिर, गुरुद्वारों को तोड़ने और मूर्ति पूजा बंद करवाने के फरमान जारी कर दिए थे, उसके आदेश के अनुसार कितने ही मंदिर और गुरूद्वारे तोड़े गए, मंदिरों की मूर्तियों को तोड़ कर टुकड़े कर दिए गए और मंदिरों में गायें काटीं गयीं, औरंगज़ेब ने सबको इस्लाम अपनाने का आदेश दिया, संबंधित अधिकारी को यह कार्य सख्ती और तत्परता से करने हेतु सौंप दिया।




औरंगजेब ने हुक्म दिया कि किसी हिन्दू को राज्य के कार्य में किसी उच्च स्थान पर नियुक्त न किया जाये तथा हिन्दुओं पर जजिया कर लगा दिया जाये। उस समय अनेकों कर केवल हिन्दुओं पर लगाये गये। इस भय से असंख्य हिन्दू मुसलमान हो गये। हिन्दुओं के पूजा आरती आदि सभी धार्मिक कार्य बंद होने लगें। मंदिर गिराये गये, मस्जिदें बनवायी गयीं और अनेकों धर्मात्मा व्यक्ति मरवा दिये गये। उसी समय की उक्ति है -
"सवा मन यज्ञोपवीत रोजाना उतरवा कर औरंगजेब रोटी खाता था।"

औरंगज़ेब ने कहा - "सबसे कह दो या तो इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को गले लगा लें।"

इस प्रकार की ज़बर्दस्ती शुरू हो जाने से अन्य धर्म के लोगों का जीवन कठिन हो गया। हिंदू और सिखों को इस्लाम अपनाने के लिए सभी उपायों, लोभ लालच, भय दंड से मजबूर किया गया। जब गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया तो उनको औरंगजेब के हुक्म से गिरफ्तार कर लिया गया था। गुरुजी के साथ तीन सिख वीर दयाला, भाई मतीदास और सतीदास भी दिल्ली में कैद थे।

क्रूर औरंगजेब चाहता था कि गुरुजी मुसलमान बन जायें, उन्हें डराने के लिए इन तीनों वीरो को तड़पा तड़पा कर मारा गया, पर गुरुजी विचलित नहीं हुए।

मतान्ध औरंगजेब ने सबसे पहले 9 नवम्बर सन 1675 ई. को भाई मतिदास को आरे से दो भागों में चीरने को कहा, लकड़ी के दो बड़े तख्तों में जकड़कर उनके सिर पर आरा चलाया जाने लगा, जब आरा दो तीन इंच तक सिर में धंस गया, तो काजी ने उनसे कहा -

"मतिदास अब भी इस्लाम स्वीकार कर ले, शाही जर्राह तेरे घाव ठीक कर देगा, तुझे दरबार में ऊँचा पद दिया जाएगा और तेरी पाँच शादियाँ कर दी जायेंगी।

भाई मतिदास ने व्यंग्यपूर्वक पूछा - "काजी, यदि मैं इस्लाम मान लूँ, तो क्या मेरी कभी मृत्यु नहीं होगी." काजी ने कहा कि - "यह कैसे सम्भव है, जो धरती पर आया है उसे मरना तो है ही।"

भाई मतिदास ने हँसकर कहा - "यदि तुम्हारा इस्लाम मजहब मुझे मौत से नहीं बचा सकता, तो फिर मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म में रहकर ही मृत्यु का वरण क्यों न करूँ।"

उन्होंने जल्लाद से कहा कि - "अपना आरा तेज चलाओ, जिससे मैं शीघ्र अपने प्रभु के धाम पहुँच सकूँ।"

यह कहकर वे ठहाका मार कर हँसने लगे, काजी ने कहा कि - "यह मृत्यु के भय से पागल हो गया है।"

भाई मतिदास ने कहा - " मैं डरा नहीं हूँ, मुझे प्रसन्नता है कि मैं धर्म पर स्थिर हूँ। जो धर्म पर अडिग रहता है, उसके मुख पर लाली रहती है, पर जो धर्म से विमुख हो जाता है, उसका मुँह काला हो जाता है।"

कुछ ही देर में उनके शरीर के दो टुकड़े हो गये। अगले दिन 10 नवम्बर को उनके छोटे भाई सतिदास को रुई में लपेटकर जला दिया गया। भाई दयाला को पानी में उबालकर मारा गया।

ग्राम करयाला, जिला झेलम वर्तमान पाकिस्तान तत्कालीन अविभाजित भारत निवासी भाई मतिदास एवं सतिदास के पूर्वजों का सिख इतिहास में विशेष स्थान है। उनके परदादा भाई परागा छठे गुरु हरगोविन्द के सेनापति थे। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध युद्ध में ही अपने प्राण त्यागे थे। उनके समर्पण को देखकर गुरुओं ने उनके परिवार को ‘भाई’ की उपाधि दी थी।

भाई मतिदास के एकमात्र पुत्र मुकुन्द राय का भी चमकौर के युद्ध में बलिदान हुआ था। भाई मतिदास के भतीजे साहबचन्द और धर्मचन्द गुरु गोविन्दसिंह के दीवान थे। साहबचन्द ने व्यास नदी पर हुए युद्ध में तथा उनके पुत्र गुरुबख्श सिंह ने अहमदशाह अब्दाली के अमृतसर में हरमन्दिर साहिब पर हुए हमले के समय उसकी रक्षार्थ प्राण दिये थे।

इसी वंश के क्रान्तिकारी भाई बालमुकुन्द ने 8 मई सन 1915 ई. को केवल 26 वर्ष की आयु में फाँसी पायी थी। उनकी पत्नी रामरखी ने पति की फाँसी के समय घर पर ही देह त्याग दी। लाहौर में भगतसिंह आदि सैकड़ों क्रान्तिकारियों को प्रेरणा देने वाले भाई परमानन्द भी इसी वंश के तेजस्वी नक्षत्र थे।

किसी ने ठीक ही कहा है –
सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत
पुरजा-पुरजा कट मरे, तऊँ न छाड़त खेत।।

अफ़सोस की बात ये है कि इसके बाद भी इतिहास में भाई मतिदास, भाई सतिदास तथा भाई दयाला को जगह नहीं दी गई तथा उनके बलिदान की गौरवगाथा को हिंदुस्तान के लोगों से छिपाकर रखा गया। बहुत कम लोग होंगे जो इनके बलिदान तथा त्याग के बारे में जानते होंगे।

हिंदुस्तान में आज जो हिन्दू बचे हैं वे भी ऐसे महापुरुषों के कारण ही है क्योंकि उन्होंने अपने धर्म के लिए प्राण दिए पर लालच में आकर धर्मपरिवर्तन नहीं किया, नही तो वे भी बड़ा ऊंचा पद लेकर अपनी आराम से जिंदगी जी सकते थे पर उन्होंने ऐशो आराम को ठुकरा कर धर्म के लिए शरीर को तड़पाकर प्राण त्याग दिए इन महापुरुषों के कारण आज हिन्दू धर्म जीवित है। आज जो लालच में आकर धर्म परिवर्तन कर लेते है उनको भाई मतिदास से सिख लेनी चाहिए।

ऐसे महापुरुषों के बलिदान दिवस पर शत-शत नमन।

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Sunday, November 8, 2020

मद्रास हाईकोर्ट : मंदिर की जमीन का केवल धार्मिक कार्यों में उपयोग होना चाहिए

08 नवंबर 2020


वर्तमान में देश भर में 4 लाख से अधिक मंदिरों पर सरकारी कब्जा है। एक भी चर्च या मस्जिद पर नहीं। कम से कम 15 राज्य सरकारें उन लाखों मंदिरों पर नियंत्रण रखती हैं। मंदिरों के प्रशासक नियुक्त करती है। वे जैसे ठीक समझें व्यवस्था चलाते हैं। राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार अलग। इस बीच, जैसा सरकारी विभागों में प्रायः होता है, मंदिरों के कोष और संपत्ति के मनमाने उपयोग, दुरूपयोग के समाचार आते रहते हैं।




आपको बता दें कि मद्रास उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि राज्य सरकार धार्मिक कार्यों के अलावा किसी भी अन्य उद्देश्य के लिए मंदिर की भूमि का उपयोग नहीं कर सकती है। तमिलनाडु में दो मंदिरों की भूमि को अलग करने के संबंध में भक्तों द्वारा की गई शिकायतों का जवाब देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि मंदिर की भूमि का उपयोग केवल मंदिर के लाभकारी उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

उच्च न्यायालय ने यह भी माना कि तमिलनाडु में मंदिर न केवल प्राचीन संस्कृति की पहचान का स्रोत हैं बल्कि यह कला, विज्ञान और मूर्तिकला के क्षेत्र में प्रतिभा के गौरव और ज्ञान का प्रमाण भी है।

अदालत ने हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्त विभाग को निर्देश दिया कि वह समय-समय पर रिपोर्ट दर्ज करने के लिए एक अधिकारी की नियुक्ति कर सभी मंदिर भूमि की पहचान और अतिक्रमणकारियों से उनकी सुरक्षा करे।

हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग तमिलनाडु सरकार के विभागों में से एक है जो राज्य के भीतर मंदिर प्रशासन के प्रबंधन और विनियमन के लिए जिम्मेदार है।

बता दें यह मामला नीलकंरई के पास श्री शक्ति मुथम्मन मंदिर और सलेम में कोट्टई मरियम्मन मंदिर की भूमि के अतिक्रमण से संबंधित है। अदालत ने मंदिर के भूमि के अतिक्रमण के खिलाफ भक्तों द्वारा दायर कई याचिकाओं के जवाब में अपने आदेशों की घोषणा की।

गौरतलब है कि यह याचिका राज्य के मत्स्य विभाग द्वारा श्री शक्ति मुथम्मन मंदिर से संबंधित कुछ भूमि पर एक आधुनिक मछली बाजार, मछली भोजनालय और कार्यालय भवन विकसित करने के बाद दायर की गई थी। विभाग ने भक्तों द्वारा की गई आपत्तियों की अवहेलना की थी।

इसी तरह, अरुलमिघु कोट्टई मरियम्मन थिरुकोइल से संबंधित कुछ जमीन बिना किसी लिखा पढ़ी के क्षेत्रीय परिवहन विभाग को हस्तांतरित कर दी गई। साथ ही पुल बनाने के लिए मंदिर की कुछ जमीनों को राजमार्ग विभाग ने भी अपने कब्जे में ले लिया था।

धार्मिक संस्थानों को ठीक से बनाए रखा जाना चाहिए : मद्रास HC

न्यायमूर्ति आर महादेवन ने अपने आदेश में निर्देश दिया कि धार्मिक संस्थानों, विशेष रूप से मंदिरों की संपत्तियों का रखरखाव ठीक से किया जाना चाहिए। अदालत ने तमिलनाडु सरकार को फटकार लगाते हुए कहा, एचआर एंड सीई डिपार्टमेंट, जो मंदिर की संपत्तियों का संरक्षक है, ने मंदिर की संपत्तियों का रखरखाव ठीक से नहीं किया, यह विषय इस विभाग के दायरे में आता है। इस तरह का रवैया बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

न्यायाधीशों ने मंदिर की भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया, उन्होंने मत्स्य विभाग को भी बुलाया, जिसने एचआर और सीई विभाग के साथ एक समझौते के तहत नीलकंरई के पास एक इमारत का निर्माण किया है, जिसके लिए किराया एकत्र किया जाएगा।

इसके अलावा न्यायमूर्ति आर महादेवन ने एचआर एंड सीई डिपार्टमेंट के आयुक्त को सभी अतिक्रमणों को वापस से हटाने और भूमि पुनः प्राप्त करने के लिए कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “एचआर और सीई विभाग भूमि की सुरक्षा के लिए एक दीवार लगाकर निर्माण शुरू करने के लिए कदम उठाएगा। मंदिर संबंधी उद्देश्यों को छोड़कर भूमि का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाएगा। एचआर और सीई विभाग के कमिश्नर द्वारा प्राधिकृत अधिकारी मंदिरों और इसके गुणों के वित्तीय पहलुओं के संबंध में एक उचित रजिस्टर बनाए रखेगा और नियमित अंतराल पर संबंधित प्राधिकरण के समक्ष उसे दाखिल करेगा।”

किसी चर्च अथवा मस्जिद को सरकार कभी नहीं छूती। क्या इस से बड़ा धार्मिक अन्याय और संविधान में मौजूद ‘नागरिक समानता’ का मजाक संभव है? जो दलीलें हिन्दू मंदिरों पर सरकारी कब्जा रखने के पक्ष में दी जाती हैं, वह सब मस्जिदों, चर्चों पर भी लागू हैं। किन्तु केवल हिन्दू मंदिरों पर कब्जा है, शेष सभी समुदाय अपने-अपने धर्म-स्थान स्वयं चलाने के लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं। हिंदू मंदिरों को भी सरकारी नियंत्रण मुक्त करना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

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