Friday, February 26, 2021

नेताओं ने किया वादा से मुकरने की आदत और संतों का सामर्थ्य

26 फरवरी 2021


1965 में भारत के लाखों संतों ने गोहत्याबंदी और गोरक्षा पर कानून बनाने के लिए एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया गया था। 1966 में अपनी इसी मांग को लेकर सभी संतों ने दिल्ली में एक बहुत बड़ी रैली निकाली। उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। गांधीवादी बड़े नेताओं में विनोबा भावे थे। विनोबाजी का आशीर्वाद लेकर लाखों साधु-संतों ने करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में बहुत बड़ा जुलूस निकाला।




इंदिरा गांधी स्वामी करपात्रीजी और विनोबाजी को बहुत मानती थीं। इंदिरा गांधी के लिए उस समय चुनाव सामने थे। कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने करपात्रीजी महाराज से आशीर्वाद लेने के बाद वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्लखाने बंद हो जाएंगे, जो अंग्रेजों के समय से चल रहे हैं।

इंदिरा गांधी चुनाव जीत गईं। ऐसे में स्वामी करपात्री महाराज को लगा था कि इंदिरा गांधी मेरी बात अवश्य मानेंगी। उन्होंने एक दिन इंदिरा गांधी को याद दिलाया कि आपने वादा किया था कि संसद में गोहत्या पर आप कानून लाएंगी। लेकिन कई दिनों तक इंदिरा गांधी उनकी इस बात को टालती रहीं। ऐसे में करपात्रीजी को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा।

★ संपूर्ण घटनाक्रम :

करपात्रीजी महाराज शंकराचार्य के समकक्ष देश के मान्य संत थे। करपात्री महाराज के शिष्यों अनुसार जब उनका धैर्य चुक गया तो उन्होंने कहा कि गोरक्षा तो होनी ही चाहिए। इस पर तो कानून बनना ही चाहिए। लाखों साधु-संतों ने उनके साथ कहा कि यदि सरकार गोरक्षा का कानून पारित करने का कोई ठोस आश्वासन नहीं देती है, तो हम संसद को चारों ओर से घेर लेंगे। फिर न तो कोई अंदर जा पाएगा और न बाहर आ पाएगा। 

संतों ने 7 नवंबर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया। इस धरने में मुख्य संतों के नाम इस प्रकार हैं- शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ, स्वामी करपात्रीजी महाराज और रामचन्द्र वीर। रामचन्द्र वीर तो आमरण अनशन पर बैठ गए थे।

गोरक्षा महाभियान समिति के संचालक व सनातनी करपात्रीजी महाराज ने चांदनी चौक स्थित आर्य समाज मंदिर से अपना सत्याग्रह आरंभ किया। करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में जगन्नाथपुरी, ज्योतिष पीठ व द्वारका पीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय की सातों पीठों के पीठाधिपति, रामानुज संप्रदाय, माधव संप्रदाय, रामानंदाचार्य, आर्य समाज, नाथ संप्रदाय, जैन, बौद्ध व सिख समाज के प्रतिनिधि, सिखों के निहंग व हजारों की संख्या में मौजूद नागा साधुओं को पं. लक्ष्मीनारायणजी चंदन तिलक लगाकर विदा कर रहे थे। लाल किला मैदान से आरंभ होकर नई सड़क व चावड़ी बाजार से होते हुए पटेल चौक के पास से संसद भवन पहुंचने के लिए इस विशाल जुलूस ने पैदल चलना आरंभ किया। रास्ते में अपने घरों से लोग फूलों की वर्षा कर रहे थे। हर गली फूलों का बिछौना बन गई थी।

कहते हैं कि नई दिल्ली का पूरा इलाका लोगों की भीड़ से भरा था। संसद गेट से लेकर चांदनी चौक तक सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे। लाखों लोगों की भीड़ जुटी थी जिसमें 10 से 20 हजार तो केवल महिलाएं ही शामिल थीं। हजारों संत थे और हजारों गोरक्षक थे। सभी संसद की ओर कूच कर रहे थे। 

कहते हैं कि दोपहर 1 बजे जुलूस संसद भवन पर पहुंच गया और संत समाज के संबोधन का सिलसिला शुरू हुआ। करीब 3 बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। स्वामी रामेश्वरानंद ने कहा कि यह सरकार बहरी है। यह गोहत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा। मैं यहां उपस्थित सभी लोगों से आह्वान करता हूं कि सभी संसद के अंदर घुस जाओ और सारे सांसदों को खींच-खींचकर बाहर ले आओ, तभी गोहत्याबंदी कानून बन सकेगा।

कहा जाता है कि जब इंदिरा गांधी को यह सूचना मिली तो उन्होंने निहत्थे करपात्री महाराज और संतों पर गोली चलाने के आदेश दे दिए। पुलिसकर्मी पहले से ही लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी और अश्रुगैस चलाना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने संतों और गोरक्षकों की भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई। लोग मर रहे थे, एक-दूसरे के शरीर पर गिर रहे थे और पुलिस की गोलीबारी जारी थी। माना जाता है कि एक नहीं, उस गोलीकांड में सैकड़ों साधु और गोरक्षक मर गए। दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया। संचार माध्यमों को सेंसर कर दिया गया और हजारों संतों को तिहाड़ की जेल में ठूंस दिया गया।

गुलजारी लाल नंदा का इस्तीफा : इस हत्याकांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा ने अपना त्यागपत्र दे दिया और इस कांड के लिए खुद एवं सरकार को जिम्मेदार बताया। इधर, संत रामचन्द्र वीर अनशन पर डटे रहे, जो 166 दिनों के बाद समाप्त हुआ था। देश के इतने बड़े घटनाक्रम को किसी भी राष्ट्रीय अखबार ने छापने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह खबर सिर्फ मासिक पत्रिका 'आर्यावर्त' और 'केसरी' में छपी थी। कुछ दिन बाद गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका 'कल्याण' ने अपने गौ अंक विशेषांक में विस्तारपूर्वक इस घटना का वर्णन किया था।

करपात्रीजी का श्राप : इस घटना के बाद स्वामी करपात्रीजी के शिष्य बताते हैं कि करपात्रीजी ने इंदिरा गांधी को श्राप दे दिया कि जिस तरह से इंदिरा गांधी ने संतों और गोरक्षकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करवाकर मारा है, उनका भी हश्र यही होगा। कहते हैं कि संसद के सामने साधुओं की लाशें उठाते हुए करपात्री महाराज ने रोते हुए ये श्राप दिया था।

'कल्याण' के उसी अंक में इंदिरा को संबोधित करके कहा था- 'यद्यपि तूने निर्दोष साधुओं की हत्या करवाई है फिर भी मुझे इसका दु:ख नहीं है, लेकिन तूने गौहत्यारों को गायों की हत्या करने की छूट देकर जो पाप किया है, वह क्षमा के योग्य नहीं है। इसलिए मैं आज तुझे श्राप देता हूं कि 'गोपाष्टमी' के दिन ही तेरे वंश का नाश होगा। आज मैं कहे देता हूं कि गोपाष्टमी के दिन ही तेरे वंश का भी नाश होगा।' जब करपात्रीजी ने यह श्राप दिया था तो वहां प्रमुख संत 'प्रभुदत्त ब्रह्मचारी' भी मौजूद थे। कहते हैं कि इस कांड के बाद विनोबा भावे और करपात्रीजी अवसाद में चले गए।
 
इसे करपात्रीजी के श्राप से नहीं भी जोड़ें तो भी यह तो सत्य है कि श्रीमती इंदिरा गांधी, उनके पुत्र संजय गांधी और राजीव गांधी की अकाल मौत ही हुई थी। श्रीमती गांधी जहां अपने ही अंगरक्षकों की गोली से मारी गईं, वहीं संजय की एक विमान दुर्घटना में मौत हुई थी, जबकि राजीव गांधी लिट्‍टे द्वारा किए गए धमाके में मारे गए थे। 
 
गोहत्याबंदी का कानून की मांग का इतिहास : स्वाधीन भारत में विनोबाजी ने पूर्ण गोवधबंदी की मांग रखी थी। उसके लिए कानून बनाने का आग्रह नेहरू से किया था। वे अपनी पदयात्रा में यह सवाल उठाते रहे। कुछ राज्यों ने गोवधबंदी के कानून बनाए।
 
इसी बीच हिन्दू महासभा के अध्यक्ष निर्मलचन्द्र चटर्जी (लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के पिता) ने एक विधेयक 1955 में प्रस्तुत किया था। उस पर जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा में घोषणा की कि 'मैं गोवधबंदी के विरुद्ध हूं। सदन इस विधेयक को रद्द कर दे। राज्य सरकारों से मेरा अनुरोध है कि ऐसे विधेयक पर न तो विचार करे और न कोई कार्यवाही।'
 
1956 में इस विधेयक को कसाइयों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उस पर 1960 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। धीरे-धीरे समय निकलता जा रहा था। लोगों को लगा कि अपनी सरकार अंग्रेजों की राह पर है। वह आश्वासन देती रही और गोवध एवं गोवंश का नाश का होता गया। इसके बाद 1965-66 में प्रभुदत्त ब्रह्मचारी स्वामी करपात्रीजी और देश के तमाम संतों ने इसे आंदोलन का रूप दे दिया। गोरक्षा का अभियान शुरू हुआ। देशभर के संत एकजुट होने लगे। लाखों लोग और संत सड़कों पर आने लगे। इस आंदोलन को देखकर राजनीतिज्ञ लोगों के मन में भय व्याप्त होने लगा।

इसकी गंभीरता को समझते हुए सबसे पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 21 सितंबर 1966 को पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि 'गोवध बंदी' के लिए लंबे समय से चल रहे आंदोलन के बारे में आप जानती ही हैं। संसद के पिछले सत्र में भी यह मुद्दा सामने आया था। और जहां तक मेरा सवाल है, मैं यह समझ नहीं पाता कि भारत जैसे एक हिन्दू बहुल देश में, जहां गलत हो या सही, गोवध के विरुद्ध ऐसा तीव्र जन-संवेग है, गोवध पर कानूनन प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा सकता?'
 
इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण की यह सलाह नहीं मानी। परिणाम यह हुआ कि सर्वदलीय गोरक्षा महाभियान ने दिल्ली में विराट प्रदर्शन किया। दिल्ली के इतिहास का वह सबसे बड़ा प्रदर्शन था। तब प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, पुरी के शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ ने गोरक्षा के लिए प्रदर्शनकारियों पर पुलिस जुल्म के विरोध में और गोवधबंदी की मांग के लिए 20 नवंबर 1966 को अनशन प्रारंभ कर दिया। वे गिरफ्तार किए गए। प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का अनशन 30 जनवरी 1967 तक चला। 73वें दिन डॉ. राममनोहर लोहिया ने अनशन तुड़वाया। अगले दिन पुरी के शंकराचार्य ने भी अनशन तोड़ा। उसी समय जैन संत मुनि सुशील कुमार ने भी लंबा अनशन किया था।

12 अप्रैल 1978 को डॉ. रामजी सिंह ने एक निजी विधेयक रखा जिसमें संविधान की धारा 48 के निर्देश पर अमल के लिए कानून बनाने की मांग थी। 21 अप्रैल 1979 को विनोबा भावे ने अनशन शुरू कर दिया। 5 दिन बाद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने कानून बनाने का आश्वासन दिया और विनोबा ने उपवास तोड़ा। 10 मई 1979 को एक संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जो लोकसभा के विघटित होने के कारण अपने आप समाप्त हो गया।
 
इंदिरा गांधी के दोबारा शासन में आने के बाद 1981 में पवनार में गोसेवा सम्मेलन हुआ। उसके निर्णयानुसार 30 जनवरी 1982 की सुबह विनोबा ने उपवास रखकर गोरक्षा के लिए सौम्य सत्याग्रह की शुरुआत की। वह सत्याग्रह 18 साल तक चलता रहा। आज भी गोवध पर केंद्र सरकार किसी भी तरह का कानून नहीं ला पाई है। गोरक्षकों का आंदोलन जारी है।


★ कौन थे करपात्रीजी महाराज?

स्वामी करपात्रीजी महाराज का मूल नाम हरनारायण ओझा था। वे हिन्दू दशनामी परंपरा के भिक्षु थे। दीक्षा के उपरांत उनका नाम 'हरीन्द्रनाथ सरस्वती' था किंतु वे 'करपात्री' नाम से ही प्रसिद्ध थे, क्योंकि वे अपनी अंजुली का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे। वे ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के शिष्य थे। धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें 'धर्मसम्राट' की उपाधि प्रदान की गई।
 
अखिल भारतीय राम राज्य परिषद भारत की एक परंपरावादी हिन्दू पार्टी थी। इसकी स्थापना स्वामी करपात्रीजी ने सन् 1948 में की थी। इस दल ने सन् 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थीं। सन् 1952, 1957 एवं 1962 के विधानसभा चुनावों में हिन्दी क्षेत्रों (मुख्यत: राजस्थान) में इस दल ने दर्जनों सीटें हासिल की थीं।  स्त्रोत : वेब दुनिया

अधिकतर नेता वोट पाने के लिए साधु-संतों के पास जाते हैं, कई वादा भी करते हैं पर जब संतों के आशीर्वाद से चुनाव जीत जाते हैं तब वे अपने वादा भूल जाते है और संतों का अनादर करने लग जाते हैं फिर उनको परिणाम भी भयंकर मिलते हैं। नेताओं को सावधान होना चाहिए और गौहत्या पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए।


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Thursday, February 25, 2021

चीफ जस्टिस का केस बंद हो सकता है, आम जनता व साधु-संतों का क्यों नही?

25 फरवरी 2021


 सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर 19 अप्रैल 2019 को यौन उत्पीड़न के आरोप लगाया गया, उसके बाद सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक समिति बनाई गई । जिसमें जस्टिस बोबड़े, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल थी, जिन्होंने जांच करके 6 मई 2019 को मुख्य न्यायाधीश को क्लीनचिट दे दी गई।




आरोपों के बाद जस्टिस गोगोई ने कहा था कि शिकायतकर्ता के पीछे कुछ बड़ी ताकतें हैं जो सुप्रीम कोर्ट को अस्थिर करना चाहती हैं।

क्लीनचिट के बाद मामला अब बंद किया

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व चीफ जस्टिस (CJI) रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में खुद के नोटिस (स्वत: संज्ञान) पर शुरू की गई सुनवाई गुरुवार को बंद कर दी। अदालत ने कहा कि पूर्व जस्टिस एके पटनायक की जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है। उनकी रिपोर्ट के आधार पर यह केस बंद किया जा रहा है। उन्हें साजिश की जांच करने का काम सौंपा गया था।

कोर्ट ने कहा कि केस को दो साल बीत चुके हैं, ऐसे में साजिश की जांच के लिए जरूरी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड हासिल करने की संभावना बहुत कम रह गई है। सुप्रीम कोर्ट के वकील उत्सव बैंस ने जस्टिस गोगोई पर लगे यौन शोषण के आरोपों के पीछे साजिश होने का दावा किया था। रिपोर्ट में साजिश को स्वीकार किया गया है अदालत ने कहा कि इस मामले में साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता।

पूर्व चीफ जस्टिस की बात को नकार नहीं सकते कि यह एक षड्यंत्र है, क्योंकि देशहित में जो भी कार्य कर रहे हैं उनको फंसाने के लिए बलात्कार कानून का अंधाधुंध उपयोग किया जा रहा है, यह बात हम तो सालों से बता रहे हैं पर इस पर ध्यान किसी का नहीं जा रहा। लेकिन सवाल ये ही कि जैसे आम जनता में किसी अथवा हिंदुनिष्ठ अथवा हिंदू साधु-संतों पर जूठे रेप केस जब लगते है तब उनको सीधा जेल भेज दिया जाता है और उनको निर्दोष होने के प्रमाण इकट्ठे करने के लिए जमानत तक नही दी जाती है यहाँ गलत हो रहा है कानुन समान है तो सबके लिए एक जैसा व्यवहार भी होना चाहिए।


बता दे कि पिछले कुछ सालों से देश में रेप केस की बाढ़ सी आ गई है, एक तरफ इंटरनेट, टीवी, फिल्मों, चलचित्रों व अखबारों द्वारा ऐसी अश्लीलता भरी सामग्री परोसी जा रही है, जिससे रेप केस बढ़ रहे हैं दूसरी ओर कड़े कानून बनाए जा रहे हैं, अब तो ऐसा हो रहा है कि जो वास्तविकता में पीड़िता होती है उसको न्याय नही मिल पाता और बलात्कार के कड़े कानून का कुछ मनचली महिलाओं द्वारा बदला लेने या पैसे ऐठने या प्रसिद्ध व्यक्ति को फंसाने के लिए षडयंत्र के तरत भयंकर दुरुपयोग किया जा रहा है, ये समाज के लिए बहुत खरतनाक ट्रेंड है।

बलात्कार के कड़े कानून के शिकार सबसे पहले हिंदू संत आशाराम बापू हुए, उन पर शाहजहांपुर (उ.प्र) की रहने वाली, छिंदवाड़ा (म.प्र)में पढ़ने वाली, जोधपुर (राजस्थान) की घटना बताकर  दिल्ली में FIR दर्ज करवाती है, वो भी घटना के 5 दिन बाद, लेकिन उस FIR की रिकॉर्डिंग गायब कर दी गई, हेल्पलाइन रजिस्टर के कई पन्ने फाड़ दिए गए, मेडिकल जांच में एक खरोंच का भी निशान नहीं और बड़ी बात कि घटना की रात लड़की किसी संदिग्ध व्यक्ति से लगातार संपर्क में थी, उस संदिग्ध व्यक्ति की कॉल डिटेल को कोर्ट में पेश भी किया गया फिर भी बापू आसारामजी को उम्रकैद की सजा दी गई । इससे साफ पता चलता है कि उनके खिलाफ कोई बड़ी साजिश रची गई है क्योंकि उन्होंने धर्मान्तरण पर रोक लगाई और देश-विदेश में हिन्दू धर्म का बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार किया था।

अब सवाल उठता है कि जैसे चीफ जस्टिस पर आरोप लगे और तुरंत जांच कमेटी बनाई और 17 दिन में ही क्लीनचिट मिल गई, महिला झूठी साबित हुई वैसे ही हर नागरिक, हिंदुनिष्ठ, हिंदू साधु-संतों पर जो झूठे आरोप लग रहे हैं उसके लिए भी स्पेशल जांच कमेटी बनाकर जांच करनी चाहिए । बिना सबूत सालों से जेल में रखना फिर उनको उम्रकैद दे देना वो भी बिना किसी सबूत के, क्या ये उनके साथ अन्याय नहीं ???

जैसे चीफ जस्टिस पर आरोप लगने के बाद मीडिया को इस मामले में संयम बरतने को कहा गया वैसे ही हिन्दू साधु-संतों के खिलाफ जो मीडिया 24 घंटे डिबेट चलाकर खबरें दिखाती है उसपर भी रोक लगनी चाहिए ।

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Wednesday, February 24, 2021

निर्दोष व्यक्ति ने 20 साल जेल में बिताए, अब किया बरी, आप भी रहना सावधान

24 फरवरी 2021

नारियों की सुरक्षा हेतु बलात्कार-निरोधक नये कानून बनाये गये । परंतु दहेज विरोधी कानून की तरह इसका भी भयंकर दुरुपयोग हो रहा है । कुछ दिन पहले प्रतापगढ़ जिला एवं सेशन न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह ने बताया कि दलालों द्वारा प्रतिवर्ष काफी संख्या में बालिकाओं तथा महिलाओं द्वारा दुष्कर्म के प्रकरण दर्ज कराए जाते हैंं। जिसमें अनुसंधान के बाद अभियुक्तों के विरूद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किए जाते हैं। न्यायालय में गवाही के दौरान 90 प्रतिशत मामलों में पीडि़ताएं मुकर जाती हैं। जिसमें खेत, सम्पत्ति व रास्ते की रंजिश पारिवारिक अथवा अन्य कारणों से अथवा अभियुक्त को ब्लेकमेल कर रुपए ऐंठने के लिए झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाई गई थी ऐसी स्थिति बताती है। पीड़िताएं न्यायालय में स्वयं के द्वारा दी गई रिपोर्ट का भी समर्थन नहीं करती हैं । ऐसी ही एक ताजा मामला आपको यहाँ बता रहे हैं।




● इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्दोष करार दिया

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 20 साल से दुष्कर्म के आरोप में जेल में बंद एक शख्स को निर्दोष करार दिया है। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि गंभीर आरोप न होने पर भी वो 20 साल से जेल में बंद है। राज्य सरकार ने सजा के इतने साल बीतने पर भी उसकी रिहाई के कानून पर विचार नहीं किया। जेल में दाखिल अपील भी 16 सालों तक दोषपूर्ण रही है। वहीं इसकी सुनवाई तब हुई है जब विधिक सेवा समिति के वकील ने 20 साल जेल में कैद रहने के आधार पर सुनवाई की अर्जी दी। अब जस्टिस जे. के. ठाकर और जस्टिस गौतम चौधरी की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए दुष्कर्म का आरोप सिद्ध न होने पर शख्स को तत्काल जेल से रिहा करने के आदेश दिए हैं। 

दरअसल, ललितपुर के रहने वाले विष्णु की अपील को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने ये आदेश दिया है। विष्णु पर 16 सितंबर 2000 को घर से खेत जा रही अनुसूचित जाति की महिला को झाड़ी में खींचकर दुराचार करने का आरोप था।
कोर्ट ने देखा कि रेप का आरोप साबित ही नहीं हुआ। मेडिकल रिपोर्ट में जबरदस्ती करने के कोई साक्ष्य नहीं थे। पीड़िता 5 माह से गर्भवती थी। ऐसे कोई निशान नहीं थे जिससे यह कहा जाये कि जबरदस्ती की गई। रिपोर्ट भी पति व ससुर ने घटना के तीन दिन बाद लिखायी थी।
 
जिला कोर्ट ने दुराचार के आरोप में 10 साल और एससी/एसटी एक्ट के अपराध में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और वो वर्ष 2000 से जेल में था।

जिस हिसाब से ऐसे फर्जी छेड़खानी, घरेलू हिंसा , दहेज उत्पीड़न, वैवाहिक बलात्कार जैसे केसों का धड़ल्ले से दुरूपयोग हो रहा है इससे साफ स्पष्ट है कि आने वाले कुछ ही दिनों मे भारत से पुरुष नामक प्रजाति विलुप्त के कगार पर पहुँच जायेगी।  आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महिलावाद एक धंधा बन चुका है जिसका सालाना टर्न ओवर "कई हजार करोड़" के ऊपर जा रहा है।

पुट्टपर्थी सत्य साईं बाबा पर नाबालिग लड़की के साथ यौन शोषण का झूठा आरोप एक  प्रसिद्ध  पत्रिका द्वारा लगाया गया l यौन शोषण के मामलों में जगत गुरु कृपालुजी  महाराज, स्वामी केशवानंद, स्वामी नित्यानंद कई वर्षो तक जेल में रहे बाद में वे निर्दोष बरी हुए l स्वामी नित्यानंद को प्रचार तंत्र ने राक्षस बना दिया था कई वर्षो बाद उनके  मामले में ईसाई धर्मान्तरण के षड्यंत्रकारियों का स्पष्ट खुलासा हुआ था l शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ,साध्वी प्रज्ञा को कई वर्षों बाद जेल से निर्दोष बरी किया गया l जिनका स्वास्थ्य हमेशा के लिए ख़राब हो गया l धर्मांतरण पर रोक लगाने व समाज, देश, राष्ट्र की 50 साल से सेवा करने वाले हिंदु संत आशारामजी बापू को भी 7+ साल से कारावास में रखा गया है केवल एक लड़की के कहने पर बाकी करोड़ो महिला चीख चीख के बोल रही हैं कि वे निर्दोष हैं और उनको षडयंत्र के तहत फँसाने के कई प्रमाण भी हैं फिर भी एक दिन की जमानत भी नहीं मिल पा रही है। और सरकार ने दोषियों को षड्यंत्रकारियो को आज तक दण्डित नहीं किया l

गरीब व्यक्ति, आम नागरिक और भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ साधू संतो महापुरुषों को शिकार बनाया जा रहा है l कानून का दुरूपयोग करके फँसायें गए हिन्दू संतो के मामलों  में उनकी बदनामी होने से उनके लाखों करोड़ों अनुयायी जिसमे महिलाएँ भी शामिल हैं, उनको परिवार और समाज में प्रताड़ित और तिरस्कृत होना पड़ रहा है l 

आम जनता के अलावा राष्ट्रहित में क्रांतिकारी पहल करने वाली सुप्रतिष्ठित हस्तियों, संतों-महापुरुषों एवं समाज के लिए आगे आने वाले  के खिलाफ बलात्कार कानूनों का राष्ट्र एवं संस्कृति विरोधी ताकतों द्वारा कूटनीतिपूर्वक अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है।
इसमे जो खामियां है उसको दूर करना चाहिए ।

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Tuesday, February 23, 2021

होली के लिए अभी तक ये दो कार्य नहीं किया हो तो शीघ्र करें

23 फरवरी 2021


होली का नाम आते ही दो बातें तुरंत ध्यान में आती हैं... एक तो रात में होलिका दहन करना और दूसरा धुलेंडी खेलना ..।

इसके पीछे बड़ा वैज्ञानिक महत्व छुपा है, हमारे ऋषि-मुनियों ने ऐसे ही कोई त्यौहार नहीं बनाया है।




होली राष्ट्रीय, सामाजिक और आध्यात्मिक पर्व है पर कुछ नासमझ लोग इस पवित्र त्यौहार को विकृत करने में लगे हैं और होलिका दहन लकड़ियों से करने लगे जिससे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने लगा दूसरा कि धुलेंडी खेलते समय केमिकल रंगों का उपयोग करने लगे जिसके कारण होली में स्वास्थ्य लाभ होने की बजाय बीमारियां होने लगी।

होली पर पर्यावरण को शुद्ध करने एवं आपका स्वास्थ्य बढ़िया रहे इसलिए हम आपको दो अच्छे उपाय बता रहे है उसके लिए अभी आप तैयारी करें।

1. देशी गाय के गोबर के कंडों से होलिका दहन

एक गाय करीब रोज 10 किलो गोबर देती है । 10.. किलो गोबर को सुखाकर 5 कंडे बनाए जा सकते हैं ।

एक कंडे की कीमत करीब 10 रुपए रख सकते हैं । इसमें 2 रुपए कंडे बनाने वाले को, 2 रुपए ट्रांसपोर्टर को और 6 रुपए गौशाला को मिल सकते है । यदि किसी एक शहर में होली पर 10 लाख कंडे भी जलाए जाते हैं तो 1 करोड़ रुपए कमाए जा सकते हैं । औसतन एक गौशाला के हिस्से में बगैर किसी अनुदान के करीब 60 लाख रुपए तक आ जाएंगे । लकड़ी की तुलना में हमें कंडे सस्ते भी पड़ेंगे ।

केवल 2 किलो सूखा गोबर जलाने से 60 फीसदी यानी 300 ग्राम ऑक्सीजन निकलती है । वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि गाय के एक कंडे में गाय का घी डालकर धुंआ करते हैं तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।

गाय के गोबर के कण्डों से होली जलाने पर गौशालाओं को स्वाबलंबी बनाया जा सकता है, जिससे गौहत्या कम हो सकती है, कंडे बनाने वाले गरीबों को रोजी-रोटी मिलेगी, और वातावरण में शुद्धि होने से हर व्यक्ति स्वस्थ रहेगा ।

दूसरा कि वृक्षों को काटना नही पड़ेगा जिससे वातावरण में संतुलन बना रहेगा।

वातावरण अशुद्ध होने पर कोरोना जैसे भयंकर वायरस आ जाते हैं, अगर देशी गाय के गोबर के कंडे से होली जलाई जाए तो कोरोना जैसे एक भी वायरस वातावरण में नही रहेगा और हमारा स्वास्थ्य उत्तम हो जायेगा जिससे देश के करोड़ो रूपये बच जाएंगे।

2. पलाश के रंग से खेलें होली

पलाश को हिंदी में ढाक, टेसू, बंगाली में पलाश, मराठी में पळस, गुजराती में केसूड़ा कहते हैं ।

केमिकल रंगों से होली खेलने से उसके पैसे चीन देश में जायेंगे और बीमारियां भी होंगी लेकिन पलाश के फूलों से होली खेलने से कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, वायु तथा रक्तदोष का नाश होता है। साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है ।

रासायनिक रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामूहिक प्राकृतिक-वैदिक होली में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. से कम पानी लगता है ।

इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है । पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले आदिवासियों को रोजी-रोटी मिल जाती है ।पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है ।

इतना ही नहीं, पलाश के फूलों का रंग रक्त-संचार में वृद्धि करता है, मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ-साथ मानसिक शक्ति व इच्छाशक्ति को बढ़ाता है । शरीर की सप्तधातुओं एवं सप्तरंगों का संतुलन करता है ।  (स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद पत्रिका)

आपने देशी गाय के गोबर के कंडों से होलिका दहन और पलाश के रंगों से होली खेलने का फायदे देखें। अब आप गाय के गोबर के कंडे के लिए नजदीकी गौशाला में संपर्क करें एवं पलाश के फूलों के लिए नजदीकी में कोई आदिवासी भाई हो उनसे संपर्क जरूर करें।

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Monday, February 22, 2021

अंग्रेजों के विरुद्ध सबसे पहले युद्ध का आरंभ करने वाली रानी चेन्नम्मा

22 फरवरी 2021


देश में वामपंथियों ने जो इतिहास लिखा है उसमें से अधिकतर असली इतिहास गायब कर दिया है और क्रूर आक्रमणकारी, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों का और देश की संपत्ति लूट ले जाने वाले अंग्रेजो का महिमामण्डन किया है लेकिन देश की आज़ादी में उनके खिलाफ लड़कर अपने प्राणों का बलिदान देने वालों का इतिहास लिखा ही नहीं गया ।




रानी चेन्नम्मा भारत की स्वतंत्रता हेतु सक्रिय होने वाली पहली महिला थी । सर्वथा अकेली होते हुए भी उसने ब्रिटिश साम्राज्य पर कड़ा धाक जमाए रखा । अंग्रेंजों को भगाने में रानी चेन्नम्मा को सफलता तो नहीं मिली, किंतु ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध खड़ा होने हेतु रानी चेन्नम्मा ने अनेक स्त्रियों को प्रेरित किया । कर्नाटक के कित्तूर संस्थान की वह चेन्नम्मा रानी थी । आज वह कित्तूर की रानी चेन्नम्मा के नाम से जानी जाती है । आइए, इतिहास में थोड़ा झांककर उनके विषय में अधिक जान लेते हैं ।

रानी चेन्नम्मा का बचपन

रानी चेन्नम्मा का जन्म ककती गांव में (कर्नाटक के उत्तर बेलगांव के एक देहात में ) 1778 में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लगभग 56 वर्ष पूर्व हुआ । बचपन से ही उसे घोडे पर बैठना, तलवार चलाना तथा तीर चलाना इत्यादि का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ । पूरे गांव में अपने वीरतापूर्ण कृत्यों के कारण से वह परिचित थी ।

रानी चेन्नम्मा का विवाह कित्तूर के शासक मल्लसारजा देसाई से 15 वर्ष की आयु में हुआ । उनका विवाहोत्तर जीवन 1816 में उनके पति की मृत्यु के पश्चात एक दुखभरी कहानी बनकर रह गया । उनका एक पुत्र  था, किंतु दुर्भाग्य उनका पीछा कर रहा था । 1824 में उनके पुत्र ने अंतिम सांस ली, तथा उस अकेली को ब्रिटिश सत्ता से लडने हेतु छोडकर चला गया ।

रानी चेन्नम्मा एवं ब्रिटिश सत्ता

ब्रिटिशों ने स्थानिक संस्थानों पर ‘व्यय समाप्ति का नियम’ (डॉक्ट्रीन ऑफ लैप्स) लगाया । इस घोषणानुसार, स्थानिक शासनकर्ताओं को यदि अपनी संतान न हो तो, बच्चा गोद लेने की अनुमति नहीं थी । इससे उनका संस्थान ब्रिटिश साम्राज्य में अपने आप समाविष्ट हो जाता था ।

अब कित्तूर संस्थान धारवाड जिलाधिकारी श्री. ठाकरे के प्रशासन में आ गया । श्री. चॅपलीन उस क्षेत्र के कमिश्नर थे । दोनों ने नए शासनकर्ता को नहीं माना, तथा सूचित किया कि कित्तूर को ब्रिटिशों का शासन स्वीकार करना होगा ।

ब्रिटिशों के विरुद्ध युद्ध

ब्रिटिशों के मनमाने व्यवहार का रानी चेन्नम्मा तथा स्थानीय लोगों ने कड़ा विरोध किया । ठाकरे ने कित्तूर पर आक्रमण किया । इस युद्ध में सैंकडों ब्रिटिश सैनिकों के साथ ठाकरे मारा गया । एक छोटे शासक के हाथों अवमानजनक हार स्वीकार करना ब्रिटिशों के लिए बडा कठिन था । मैसूर तथा सोलापुर से प्रचंड सेना लाकर उन्होंने कित्तूर को घेर लिया ।

रानी चेन्नम्मा ने युद्ध टालने का अंत तक प्रयास  किया, उसने चॅपलीन तथा बॉम्बे प्रेसिडेन्सी के गवर्नर से बातचीत की, जिनके प्रशासन में कित्तूर था । उसका कुछ परिणाम नहीं निकला । युद्ध घोषित करना चेन्नम्मा को अनिवार्य किया गया । 12 दिनों तक पराक्रमी रानी तथा उनके सैनिकों ने उनके किले की रक्षा की, किंतु अपनी आदत के अनुसार इस बार भी देशद्रोहियों ने तोपों के बारुद में कीचड एवं गोबर भर दिया । 1824 में रानी की हार हुई ।

उन्हे बंदी बनाकर जीवनभर के लिए बैलहोंगल के किले में रखा गया । रानी चेन्नम्मा ने अपने बचे हुए दिन पवित्र ग्रंथ पढने में तथा पूजा-पाठ करने में बिताए । 1829 में उनकी मृत्यु हुई ।

कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ब्रिटिशों के विरुद्ध युद्ध भले ही न जीत सकी, किंतु विश्व के इतिहास में कई शताब्दियों तक उसका नाम अजरामर हो गया । ओंके ओबवा, अब्बक्का रानी तथा केलदी चेन्नम्मा के साथ कर्नाटक में उसका नाम शौर्य की देवी के रुप में बडे आदरपूर्वक लिया जाता है ।

रानी चेन्नम्मा एक दिव्य चरित्र बन गई है । स्वतंत्रता आंदोलन में, जिस धैर्य से उसने ब्रिटिशों का विरोध किया, वह कई नाटक, लंबी कहानियां तथा गानों के लिए एक विषय बन गया । लोकगीत एवं लावनी गान वाले कवि, शाहीर जो पूरे क्षेत्र में घूमते थे, स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में जोश भर देते थे ।

एक आनंद की बात है कि, कित्तूर की चेन्नम्मा का पुतला नई देहली के संसद भवन के परिसर में 11 सितंबर 2007 को स्थापित किया गया । एक पराक्रमी रानी को यही खरी श्रद्धांजलि है । भारत में ब्रिटिशों के विरुद्ध सबसे पहले युद्ध का आरंभ करने वाले शासकों में से वह एक थी । स्तोत्र : हिन्दू जन जागृति

आपने पराक्रमी हिन्दू रानी चेन्नम्मा के बारे में पढ़ा, पति और पुत्र का स्वर्गवास हो गया, सामने अंग्रेजो की बड़ी सेना थी उसके बाद भी वो अंग्रेजो से लडी भले किसी ने गद्दारी की और वो हार गई लेकिन वे मन से कभी नहीं हारी आखिरी समय जेल में बिताना पड़ा फिर भी दुःखी नही हुई और सनातन हिन्दू धर्मग्रंथों का पठन करती रही । यही भारतीय संस्कृति है कि सामने कितनी भी विकट परिस्थिति आ जाये लेकिन हारना नहीं है धैर्य पूर्वक सामना करते रहना चाहिए ।

रानी चेन्नम्मा से हर भारतवासी को प्रेरणा लेनी चाहिए "अत्याचार करना तो पाप है लेकिन अत्याचार सहन करना दुगना पाप है" इस सूत्र को ध्यान में लेकर जहां भी देश, संस्कृति के खिलाफ कोई कार्य हो रहा है उसका विरोध करना चाहिए। और महिलाओं को अपने आप को अबला नहीं मानना चाहिए और पाश्चात्य संस्कृति की ओर नही जाना चाहिए भारतीय नारी में अथाह सामर्थ्य है वे अपने आपको पहचाने भारतीय संस्कृति का अनुसरण करके।

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Sunday, February 21, 2021

अल्लाह-हू-अकबर नारे के साथ PFI ने RSS को हथकड़ी लगाकर निकाली रैली

21 फरवरी 2021


कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने केरल में एक रैली निकाली। इस रैली में कुछ लोगों ने RSS की यूनिफॉर्म पहनी थी। परेड में आरएसएस की यूनिफार्म में शामिल लोगों को जंजीर से भी बाँधा गया था। इस रैली के कई वीडियो और फोटो सामने आए हैं, जिसमें देखा जा सकता है कि इस दौरान अल्लाह-हू-अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह जैसे कई अन्य इस्लामी नारे लगाए गए।




रैली केरल के मलप्पुरम जिले के तेनियापलम शहर में आयोजित की गई थी और वीडियो में शहर के मुख्य वाणिज्यिक केंद्र चेलारी से गुजरने वाले जुलूस को दिखाया गया है।

जुलूस के दौरान कुछ नारे काफी भड़काऊ और उत्तेजक थे। इसमें आरएसएस के यूनिफार्म वाले सदस्यों को जंजीर में बँधा हुआ दिखाना भी शामिल है। रैली में आरएसएस की यूनिफार्म में लोगों के साथ कुछ लोग ब्रिटिश अधिकारियों की भी भेष-भूषा में थे। इन लोगों के हाथ में भी रस्सी बँधी और इसका दूसरा छोर लूँगी और जालीदार टोपी (skullcaps) पहने लोगों के हाथ में थी। आरएसएस और ब्रिटिश अधिकारियों का कपड़ा पहने लोग जालीदार टोपी और लूँगी पहने लोगों का अनुसरण कर रहे थे। उनके हाथ में लाठियाँ भी थी।

कुछ सूत्रों का कहना है कि पीएफआई की रैली आज ‘1921 मालाबार हिंदू नरसंहार’ या मोपला नरसंहार की शताब्दी को ‘मनाने’ के लिए की गई थी, जिसे इतिहास में 1921 के मालाबार विद्रोह के रूप में जाना जाता है। मोपला नरसंहार में तकरीबन 10,000 हिंदुओं को मौत के घाट उतारा गया। यह माना जाता है कि दंगों के मद्देनजर 1,00,000 हिंदुओं को केरल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। इस दौरान हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया गया। जबरन धर्मांतरण हुए और कई प्रकार के ऐसे अत्याचार हिंदुओं पर किए गए, जिन्हें शब्दों में बयान कर पाना लगभग नामुमकिन है।

जंजीरों मे कौन हैं?

गजवा ए हिन्द की इस्लामिक भविष्यवाणी के अनुसार पूरी दुनिया में इस्लाम का शासन तभी सफल होगा जब हिन्द का शासक बेड़ियों मे जकड़ कर मुस्लिम खलीफा के सामने होगा। इसलिए भारत के शासक के प्रतीक RSS के गणवेश धारी व यूरोप (ब्रिटेन/फ्रांस) के शासक के प्रतीक लाल टोपी व लाल सफेद कपड़ों वालों बेड़ियों मे जकड़े दिखाया गया है। तुर्की का टेलीविज़न नाटक अरतुगरुल गाजी से प्रभावित होकर यह खलीफ़ा को दोबारा खड़ा करना चाहते हैं।  

मोपला द्वारा हिन्दू नरसंहार की स्मृतियाँ

1981 में डॉ मैरी विठ्ठिल Dr. Mary Vithithil केरल की मलयालम पत्रिका शब्दधाम नामक पत्रिका की सम्पादिका मालाबार गई और 1921 के हिंदू नरसंहार में भाग लेने वाले कई लोगों का साक्षात्कार लिया। उन्होंने श्रृंखला का शीर्षक दिया, "मोपला लाहला का एक उदासीन स्मरण। "... (“A nostalgic remembrance of the Mopallah Lahala”).

उन्ही दंगाइयों में से एक साक्षात्कार उन्होंने 81 साल के अब्दुल्ला कुट्टी के साथ किया था। ये उसके शब्द हैं ...।

“जब दंगे शुरू हुए तो हमारे बीच बहुत उत्साह था। रोज हम सड़कों पर खड़े होकर दंगाइयों के आने और उनके साथ आने का इंतजार करते। हम उनके साथ गए लेकिन हमने किसी को नहीं मारा दंगाइयों ने करिपथ इलम (ब्राह्मण घर) Karipath Illam( Brahmin House) पर हमला किया और सभी निवासियों को मार डाला। उन्होंने सारी दौलत ले ली और फिर उस इल्म को एक ऐसी जगह में बदल दिया, जहां असहाय हिंदुओं को लाया जाता था और जबरदस्ती धर्मांतरण या हत्या कर दी जाती थी।

हमने मांस पकाया और उन्हें बलपूर्वक खिलाया .. इस की गंध के कारण उनको कई दिन तक उल्टी हुई । इस तरह के लोगों को हमने लात मारकर गिरा दिया गया। कईयों ने कई दिन तक कुछ भी खाने से मना कर दिया।

जब हमने 25 हिंदुओं को इकट्ठा किया ... उन्हें कुएं के किनारे ले जाया गया। तब दीनवालों ने उनसे पूछा ... ईस्लाम कबूल करेंगे या आप इंग्लैंड जाना चाहते हैं (मतलब मौत)।

अधिकांश ने मौत चुनी और इसलिए उनकी गर्दन काटकर उन्हे कुएं में फेंक दिया । कई लोग तुरंत नहीं मरे, लेकिन घंटों और कभी-कभी दिनों तक तड़पते रहे।

हर रोज हम पालतू पशुओं को लाते और चावल के साथ पकाते ... हम अच्छी तरह से खाते थे और इसने हमें और अधिक और दंगों में सक्रिय कर दिया।

पकड़े गए इन हिंदुओं में से हमें एक आदिवासी लड़का मिला जिसने तीर और धनुष बनाया। वह परिवर्तित हो गया और जल्द ही दंगों में शामिल हो गया। उनके दीन का नाम अली रख दिया। ...

एक और शख्स जो हमसे जुड़ गया वो था बिरन कुट्टी। वह ब्रिटिश सेना से सेवानिवृत्त हुए थे और इसलिए उनके पास एक बंदूक थी। उन्होंने दंगों में इस बंदूक का इस्तेमाल किया।

जैसे-जैसे दंगे अधिक से अधिक हिंसक होते गए ... क्षेत्र के कुएं शवों से भर गए ... "

अब्दुल्ला कुट्टी ने इन सभी गंभीर घटनाओं को बहुत याद किया और उन्होंने कहा कि यह गोरखा रेजिमेंट के अंदर आने के बाद ही रुका है।

अधिकतम संख्या में हिंदुओं को टुकड़े टुकड़े करके या उनकी गर्दन काट कर कुएं मे फेंक दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि इस तरह मारे गए हिंदुओं के कंकाल गर्मियों में आने पर कुएं में देखे जा सकते हैं और कुएं सूख जाते हैं।

यह याद रखना अच्छा होगा कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट सरकारों ने बाद में इन दंगाइयों को 1980 के दशक में इन नरसंहार करने वाले मोपला मुस्लिमों को स्वतंत्रता सेनानी पेंशन दी। दूसरी तरफ जो हिंदू सब कुछ खो चुके थे जीवन, सम्मान, परिवार, स्थिति, घर, संपत्ति और धन ऐसी किसी भी पेंशन से इनकार कर दिया गया था।
यह लेख मूलतः मलयालम पत्रिका के विवरण के आधार पर इंग्लिश मे था। अनुवाद किया है इंग्लिश से हिन्दी में अनुवादित।

अभी भी हिन्दू आपस में एकजुट नहीं  हुए तो क्या हाल होगा देख लीजिए।

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Saturday, February 20, 2021

राष्ट्र-संस्कृति के हित में और खिलाफ कार्य करने वालों का कैसा हाल है?

20 फरवरी 2021


जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमला हुआ और हमारे 40 जवान शहीद हो गये , क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि इतने बड़े कारनामे को अंजाम बिना किसी खुफिया जानकारी के नहीं दिया जा सकता ? इस साजिश को अंजाम तक पहुंचाने में अपने ही देश के लोगों का हाथ होने के कारण ही आतंकवादी सफल हो गए होंगे और देश में कुछ गद्दार लोग उनका समर्थन भी करते पाए गए। इसका मतलब साफ है कि वे देश विरोध में खड़े हैं ।




देश में ऐसा क्यों हो रहा है इसके पीछे का कारण आपको जानना जरूरी है...

आपने देखा होगा कि JNU में देश को टुकड़े करने के नारे लगे थे उसमें मुख्य आरोपी हैं उमर खालिद और कन्हैया कुमार, लेकिन वे आज भी बाहर आराम से घुम रहे हैं ।

दिल्ली के इमाम बुखारी पर देशद्रोह और बलात्कार जैसे संगीन आरोप हैं और 65 गैर जमानती वारंट निकले हैं पर उनकी गिरफ्तारी नहीं की जा रही है  और इसका कारण बताया जा रहा है कि देश में दंगा हो जाएगा, क्या ये बचकानी बात नहीं है?

संजय दत्त को आतंकवादियों के हथियार घर में रखने के जुर्म में सजा हुई फिर भी बार-बार पेरोल मिलती रही और जल्दी जेल से बाहर कर दिया ।

सोनिया गांधी और राहुल गांधी आदि पर अरबों रुपयों के घोटाले के आरोप हैं पर उनकी गिरफ्तारी नहीं हो रही है ।

पत्रकार तरुण तेजपाल ने एक लड़की का बलात्कार किया पुख्ता सबूत होते हुए भी बाहर घूम रहा है ।

ईसाई धर्मगुरु बिशप फ्रैंको पर 13 बार बलात्कार का आरोप लगा, नन चीख-चीख के कह रही है फिर भी सबूत होते हुए भी उसे जमानत मिल गई ।

आतंकवादी अफजल को फांसी की सजा हुई, वो आतंकवादी है ये जानते हुए भी उसकी सजा रोकने के लिए आधी रात को न्यायालय खुलता है, क्या ये हास्यास्पद नहीं है ?

अब आपको तो पता चल ही गया होगा कि इन अपराधियों को कौन बढ़ावा दे रहा है । इस अपराधियों को खुली छूट देने के पीछे  सरकार, न्यायालय और मीडिया का हाथ ही आएगा, क्योंकि सरकार और न्यायालय का काम है उनको जेल भेजना और मीडिया का काम है इनके खिलाफ बोलना, लेकिन कलयुग का प्रभाव देखिए यहां सब इसके विपरीत हो रहा है ।

अब एक नज़र डालते हैं देशभक्तों की हालत पर..

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को 9 साल
डीजी वंजारा जी को 8 साल
स्वामी असीमानंद को 8 साल
कर्नल पुरोहित को 7 साल
बिना सबूत जेल में प्रताड़ित किया गया।
उड़ीसा के स्वामी लक्ष्मणानंद की तो हत्या तक कर दी गई ।

अभी वर्तमान में 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू को 7+ सालों के कारावास में 1 दिन भी जमानत नहीं दी गई क्योंकि वे 50 साल से सतत हिन्दू संस्कृति और देश हित कार्यों में लगे थे।

इतनी उम्र होने के कारण उनका स्वास्थ्य भी खराब होता जा रहा है और उनकी धर्मपत्नी लक्ष्मीदेवी को हार्ट अटैक आया था फिर भी जमानत नहीं दी गई । इससे तो साफ सिद्ध होता है कि सरकार, न्यायालय और मीडिया चाहती है कि आप देश के खिलाफ कार्य करो आपको जमानत मिल जायेगी, लेकिन आप हिन्दू संस्कृति और समाज व देश हित का कार्य करोगे तो आपको जेल भेजा जायेगा या हत्या कर दी जायेगी।

आइये जानते हैं क्या था आशारामजी बापू का अपराध ?

1). ईसाई मिशनरियों को खुली चुनौती दिया, लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया ।

2) . कत्लखाने में जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया ।

3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।

4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया ।

5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र की दीक्षा देकर, तेजस्वी बनाया ।

6). पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया ।

7). वैलेंटाइन डे का विरोध करके "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया ।

8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय, तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया ।

9). लाखों-करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया ।

10). नशा मुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसन-मुक्त करया ।

11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाए ।

12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोठी पीठ के "शंकराचार्य श्री #जयेंद्र सरस्वतीजी" बाबा रामदेव, मोरारी बापूजी, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया ।

कहीं इन महान कार्यों को करने के कारण तो उनको अंदर नहीं रखा गया है ? क्योंकि राष्ट्र विरोधी शक्तियां नहीं चाहती होंगी कि वे बाहर आये, अगर वे बाहर आएंगे तो उनकी दुकानें बंद होने लगेगी ।

सरकार और न्यायलय को चाहिए कि देश के गद्दारों को जेल भेजें और देशभक्तों को जेल से बाहर करें और मीडिया भी देशभक्तों का समर्थन करें विदेश का फंड लेकर उनके खिलाफ अभियान न चलायें ।

हिंदुस्तानियों को भी सावधान होना पड़ेगा, ऐसे महापुरुषों पर हो रहे अन्याय को रोकना होगा नहीं तो विधर्मी एक के बाद एक निर्दोष हिंदुनिष्ठ को जेल भिजवाकर हमारी संस्कृति को खत्म करके देश को  फिर से गुलाम बनाने की साज़िश में सफल हो जाएंगे ।

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