Wednesday, March 3, 2021

जानिए वैदिक गुरुकुलों की पुनः स्थापना से हमारा और राष्ट्र की कैसे उन्नति होगी?

03 मार्च 2021


English Education Act, 1835 के तहत जब से भारत में ‘मैकाले शिक्षा पद्धति’ शुरु हुई है तब से अब तक की शिक्षा पद्धति को ‘आधुनिक शिक्षा पद्धति’ कहते हैं । इस शिक्षा पद्धति को भारत में शुरु करने का एकमात्र कारण यह था कि दुनिया के अन्य सभी हिस्सों में रहनेवाले लोग अंग्रेज साम्राज्य के गुलाम बन गए थे यानि उन्होंने अंग्रेजों की अधिनता आसानी से स्वीकार कर ली थी, परन्तु एक भारत ही था जहाँ उन्हें बहुत मशक्कत करनी पड़ रही थी क्योंकि यहाँ के गुरुकुलों के आचार्य विद्यार्थियों के स्वास्थ्यबल, प्राणबल, चारित्र्यबल एवं विवेचना-शक्ति को इतना प्रबल बना देते थे कि भारत का विद्यार्थी स्वावलंबी बन जाता था, वह अपने आचार्य के सिवाय किसी की आधिनता स्वीकार नहीं करता था । उसका जीवन उसके आचार्य द्वारा दिये गये उच्च आदर्शों एवं चारित्र्य के संस्कारों से ओतप्रोत होता था । तब मैकाले ने भारत में जगह-जगह घूमकर देखा और पाया कि इनकी तो जीवन शैली बहुत ऊँची है और यहाँ के लोग दृढ़ चरित्रबल वाले हैं । इन्हें आसानी से अपना गुलाम बनाना बहुत मुश्किल है । उसने इन सब बातों पर गहन विचार किया तो निष्कर्ष निकाला कि इनकी जो शिक्षा पद्धति है वो उच्च आदर्शों से सम्पन्न है । इसलिए हमें इनकी शिक्षा पद्धति पर ही कुठाराघात करना चाहिए, ताकि ये भी हमारे गुलाम बन सकें । तब सन् 1835 में मैकाले ने एक रिपोर्ट तैयार करके इंग्लेंड की सरकार को भेजी जिसमें उसने कहा –





"I have travelled across the length and breadth of India and I have not seen one person who is a beggar, who is a thief such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country unless we break the very backbone of this nation which is her spiritual and cultural heritage and therefore I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self-esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation."

अर्थात्
“मैं पूरा भारत घूमा, वहाँ पर ना ही मुझे कोई भिखारी दिखा और ना ही मुझे कोई चोर मिला, मुझे किसी भी तरह से ना ही कोई धन की कमी दिखाई दी । वहाँ पर लोगों की मोरल वैल्यूज बहुत ऊँची हैं, लोग बहुत इंटेलीजेंट हैं व उनका कैलिबर इतना ज्यादा है कि हम उन्हें नहीं जीत सकते; जब तक कि हम उनकी रीढ़ की हड्डी, उनके एजुकेशन सिस्टम को न तोड़ दें यानि उनकी आध्यात्मिक व सांस्कृतिक विरासत को खत्म न कर दें, भारत को जीतना मुश्किल ही नहीं असंभव है । इसलिए मेरा (लार्ड मैकाले) प्रस्ताव है कि उनके पुराने एजुकेशन सिस्टम व उनकी सांस्कृतिक विरासत को पहले खत्म किया जाए और उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि ये सिस्टम सही नहीं है । उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि इंग्लिश अच्छी है और उनके पुराने एजुकेशन सिस्टम से बेहतर है ताकि उनका स्वाभिमान (आत्म-सम्मान) खत्म हो जाये और वे अपनी मूल संस्कृति से भटक जाएँ । तभी जो हम चाहते हैं वो हो सकता है, यानि तभी हम उन पर हावी हो सकते हैं; अन्यथा नहीं ।”
तब English Education Act, 1835 के तहत कोंवेंट स्कूलों एवं कॉलेजों को खोला गया और उनका खूब प्रचार-प्रसार किया गया ताकि ‘भारत के लोग शरीर से तो भारतीय रहें परंतु सोच-विचार से अंग्रेजों के गुलाम हो जाएँ यानि अंग्रेजों को ही अपना आदर्श मानकर उनका अनुसरण करें’ । तो यह अंग्रेजों की आधुनिक शिक्षा पद्धति की ही देन है जो आजकल के युवा भारतीय संस्कृति के उच्च आदर्शों को भूलकर अंग्रेजों का ही अनुकरण कर रहे हैं, अपने माता-पिता व गुरुजनों का अनादर कर रहे हैं, लिव इन रिलेशन, गे-सेक्स आदि कुरीतियों को अपना रहे हैं, ज्योइन्ट फैमिली (संयुक्त परिवार) न्यूक्लियर फैमिली (एकाकी परिवार) में परिणत हो रहे हैं, हृदय की जो व्यापकता होनी चाहिए जिस पर एक आदर्श समाज टिका है, उस व्यापकता के स्थान पर लोगों के मन-बुद्धि में संकीर्णता बढ़ रही है, यानि मानव जाति कुल मिलाकर पशुता की ओर अग्रसर हो रही है जिससे जीवन में तनाव, खिंचाव, आपसी वैर-वैमनस्य, कलह, अशांति, बिमारियाँ दिन पर दिन बढ़ रहे हैं ।
आधुनिक शिक्षा पद्धति में अक्षर-ज्ञान तो दिया जाता है परन्तु वो व्यक्ति को एक संपूर्ण मानव बनाने की जिम्मेदारी नहीं लेती । वो उसे एक चलती-फिरती मशीन जरुर बना देगी या फिर अक्षरस्थ एक पशु जरुर तैयार हो जायेगा, परन्तु एक आदर्श मनुष्य की कल्पना आधुनिक शिक्षा पद्धति नहीं कर सकती ।

आधुनिक शिक्षा पद्धति व्यक्ति को परावलंबी बना देती है । ऐसा व्यक्ति अपने जीवन की निजी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी पूरा जीवन मल्टीनेशनल कंपनियों का नौकर बना रहता है और बाद में कंपनीवाले उसे कहीं जॉब से निकाल न दें, कहीं कंपनी बंद न हो जाए आदि-आदि चिंताएँ उसके मन में बनी रहती है यानि कुल मिलाकर वह व्यक्ति एक स्वावलंबी जीवन व्यतीत कभी नहीं कर सकेगा ।

आधुनिक शिक्षा पद्धति व्यक्ति के चरित्र निर्माण पर जोर नहीं देती तो क्या वह एक उच्च आदर्शवादी समाज का निर्माण कर पायेगी ? मित्रों ! भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसमें परिवार व्यवस्था देखी जाती है । बाकी विदेशों में परिवार व्यवस्था की कोई अहमियत नहीं है, क्यों ? क्योंकि एक उत्तम परिवार निर्माण के लिए जीवन में संयम, सदाचार, चरित्र बल, नैतिक बल आदि उन्नत आदर्शों की आवश्यकता होती है और कई उन्नत परिवार मिलकर ही एक उन्नत समाज की रचना करते हैं और कई उन्नत समाज मिलकर एक उन्नत राष्ट्र की परिकल्पना कर सकते हैं जो आधुनिक शिक्षा पद्धति से कदापि संभव नहीं है ।
आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़ा हुआ विद्यार्थी अपने माता-पिता और गुरुजनों का आदर नहीं करता, वह उन्हें तुच्छ और अपने आपको बुद्धिमान समझता है । आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़ा हुआ विद्यार्थी भारतीय संस्कृति को गौण और पाश्चात्य संस्कृति को महान समझता है । आधुनिक शिक्षा पद्धति विद्यार्थी को अपने मन पर अनुशासन करने की कला नहीं सिखाती; अपितु मन का गुलाम बना देती है । इसलिए मनमाना निर्णय करके अपने को सुखी करने के चक्कर में व्यक्ति उल्टा दुःखी ही होता है । आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़े हुए विद्यार्थी के जीवन में संयम का कोई स्थान नहीं होता जो उसे चरित्रहीन एवं विलासी बना देता है । इसलिए ऐसे लोग कई ला-इलाज एडस् जैसी बिमारियों एवं अन्य मानसिक रोगों के शिकार हो जाते हैं ।

‘आज का विद्यार्थी पड़ोस की बहन को बहन नहीं कह सकता, विद्यार्थिनी पड़ोस के भाई को अपने भाई के नजरों से नहीं देख सकती’ ऐसा बुरा हाल आधुनिक शिक्षा पद्धति ने बना दिया है तो उत्तम समाज का निर्माण कैसे संभव है ? आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़े हुए विद्यार्थी के मन में उसे पढ़ानेवाले आचार्यों के प्रति कोई सद्भाव नहीं होता क्योंकि वह शिक्षा उन्होंने अपने ही शिक्षकों की निंदा करते-करते पाई होती है । वे अपने आपको तीसमारखा समझते हैं, अपने सामने किसी को कुछ नहीं गिनते । इसलिए उनका हाल – “Jack of all, Master of None” जैसा हो जाता है ।
संक्षेप में कहा जाए तो आधुनिक शिक्षा पद्धति में पढ़ा हुआ विद्यार्थी एक आदर्श मानव नहीं; अपितु एक जीवित, पढ़ा-लिखा पशु अवश्य बन जाता है । और तो और जो वह अपने पूर्वजों को बंदर समझता है और अपने को सुधरा हुआ मानव मानता है, तो आखिर ऐसी आधुनिक शिक्षा पद्धति से अपेक्षा ही क्या की जा सकती है ?…

जनता की मांग है कि सरकार फिर से वैदिक गुरुकुल खोले और उसमे वैदिक शिक्षा पढ़ाई जानी चाहिए तभी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उन्नति हो पायेगी।

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Tuesday, March 2, 2021

अंडे के ऐसे नुकसान जो आपके पहुंचा देंगे बिस्तर पर, भूलकर भी ना करें सेवन

03 मार्च 2021


टीवी चैनलों में विज्ञापन देखकर कुछ लोग अपने शारीरिक विकास के लिए अंडे को सबसे फायदेमंद आहार मानकर सेवन करते हैं। अंडे के तथाकथित फायदों की तो आपने लंबी लिस्ट देखी ही होगी, लेकिन आज हम आपको अंडे के सेहत पर पड़ने वाले ऐसे नुकसानों के बारे में बताने जा हैं जिन्हें जानने के बाद आप अंडो की तरफ देखने से कतराने लगेंगे।




वेटगेन

अंडे में काफी ज्यादा मात्रा में कैलोरी होती है जो कि सेहत को अनचाहे ही काफी नुकसानदेह है। हाल ही में एक रिसर्च में दावा किया गया है कि तीन अंडे खाने से तीन हफ्तों में लगभग 1 पाउंड वजन तक बढ़ सकता है। ओबेसिटी की परेशानी से तो सभी वाकिफ हैं। ऐसे में अगर आप ओवरवेट है तो अंडे के हर फायदे को किनारे कर इससे परहेज ही करें।

हाई कोलेस्ट्रॉल का खतरा

अगर आपको हाई ब्लड प्रेशर या हृदय संबंधी कोई परेशानी है तो आपको अंडे का पीला भाग खाने से परहेज करना चाहिए। क्योंकि इसमें काफी अधिक मात्रा में कोलेस्ट्रॉल होता है। जिससे हाई ब्लड प्रेशर या हृदय संबंधित परेशानी से जूझ रहे लोगों को समस्या हो सकती है।

फूड पॉइजनिंग का बना रहता है खतरा

कच्चे अंडे में से साल्मोनेला का खतरा रहता है। जिससे आपको फूड पॉइजनिंग की समस्या हो सकती है। साथ ही इससे उल्टी, दस्त व पेट दर्द की परेशानी हो सकती है।

मुर्गी के अंडों का उत्पादन बढ़े इसके लिए उसे जो हार्मोन्स दिये जाते हैं उनमें स्टील बेस्टेरोलनामक दवा महत्त्वपूर्ण है । इसदवावाली मुर्गी के अंडे खाने से स्त्रियों को स्तनका कैंसर, हाई ब्लडप्रेशर, पीलिया जैसे रोग होने की सम्भावना रहती है । यह दवापुरुष के पौरुषत्व को एक निश्चित अंश में नष्ट करती है ।

डॉ. पी.सी.सेन, स्वास्थ्य मंत्रालय, भारतसरकार ने भी चेतावनीदी है कि अंडों से कैंसर होता है क्योंकि अंडों में भोजन तंतु नहीं पाये जाते हैं तथा इनमें डी.डी.टी. विष पाया जाता है ।

अंडा शाकाहारी नहीं होता है, लेकिन क्रूर व्यावसायिकता के कारण एवं ऊलजलूल तर्क देकर उसे शाकाहारी सिद्ध किया जा रहा है । मिशिगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पक्के तौर पर साबित कर दिया है कि दुनिया में कोई भी अंडा चाहे वह सेया हुआ हो या बिना सेया हुआ हो, निर्जीव नहीं होता । अफलित अंडे की सतह पर प्राप्त ‘इलेक्ट्रिक एक्टिविटी’ कोपोलीग्राफ पर अंकित कर वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि अफलित अंडा भी सजीव होता है । अंडा शाकाहार नहीं, बल्कि मुर्गी का वैनिक (रज) स्राव है ।

संतुलित शाकाहारी भोजन लेने वाले को अंडा या अन्य मांसाहारी आहार लेने की कोई जरूरत नहीं है ।शाकाहारी भोजनसस्ता, पचने में आसान और आरोग्य की दृष्टि से दोषरहित होता है । कुछ दशक पहले जब भोजन में अंडे का कोई स्थान नहीं था, तब भी हमारे बुजुर्ग तंदुरुस्त रहकर लम्बी उम्र तक जीते थे । अतः अंडे के उत्पादकों और भ्रामक प्रचार की चपेट में न आकर हमें उक्त तथ्यों को ध्यान में रख कर ही अपनी इस शाकाहारी आहार संस्कृति की रक्षा करनी होगी ।

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Monday, March 1, 2021

बिहार में 1057 मस्जिदों में मौलवियों को 15000 सैलरी मिलेंगी

01 मार्च 2021


पूर्व में मुग़लों एवं अंग्रेजों ने भारत के मंदिरों को लूटा, अरबों-खरबों रुपए लेकर चले गए । मंदिर में भक्त इसलिए दान देते हैं कि गरीबों, गायों के रक्षण में, धार्मिक कार्यों में, मंदिर की देखभाल एवं समाज और देश की सेवा के लिए काम आ सके, लेकिन आज उससे विपरीत हो रहा है, बड़े-बड़े मंदिरों को सरकार ने अपने अधीन करके रखा है उसके पैसे मंदिरों, गरीबों एवं देश की सेवा के लिए नहीं बल्कि चर्च, मस्जिद एवं मौलवी और इमाम के लिए खर्च किये जा रहे हैं । एक तरफ तो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश कहा जाता है लेकिन वहीं दूसरी तरफ हिंदू मदिरों को लूटकर चर्च और मस्जिदों का विकास किया जा रहा है फिर देश धर्मनिरपेक्ष कहाँ से हुआ?




आपको बता दे कि बिहार स्टेट सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड में पंजीकृत पेशइमाम (नमाज पढ़ाने वाला मौलवी) और मोअज्जिन (अजान देने वालों) के लिए फ़रवरी 2021 का महीना जाते-जाते खुशखबरी दे गया। बिहार स्टेट सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड अब 1057 मस्जिदों के उन सभी मोअज्जिनों और पेशइमामों को मानदेय देने जा रहा है, जो उसके तहत पंजीकृत हैं।
पेशइमाम को 15,000 रुपए प्रतिमाह और मोअज्जिन को 10,000 रुपए प्रतिमाह दिए जाएँगे। बिहार की राजधानी पटना में भी ऐसे 100 मस्जिदें हैं, जो बोर्ड के अंतर्गत रजिस्टर्ड हैं।

मानदेय देने के लिए अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की सचिव सफीना एएन, विभाग के निदेशक एएए फैजी, बोर्ड के अध्यक्ष मोहम्मद इरशादुल्लाह और सीईओ खुर्शीद सिद्दीकी ने समीक्षा बैठक भी की, जिसमें ये निर्णय लिया गया। इस सम्बन्ध में शनिवार (मार्च 6, 2021) को बड़ी बैठक होगी, जिसमें इस पर आधिकारिक मुहर लग जाएगी।

‘दैनिक भास्कर’ के पटना संस्करण में प्रकाशित खबर 

मानदेय देने का प्रस्ताव विभाग को उसी बैठक के बाद भेजा जाएगा। उधर बिहार स्टेट शिया वक़्फ़ बोर्ड भी 105 मस्जिदों के पेशइमाम और मोअज्जिनों को मानदेय दे रहा है। उसके अंतर्गत पेशइमाम को 4000 तो मोअज्जिन को 3000 रुपए प्रतिमाह की दर से मानदेय दिया जाता है।
सुन्नी बोर्ड से पूरे बिहार में 1057 मस्जिद रजिस्टर्ड हैं। पटना जंक्शन इमाम मस्जिद, फकीरबाड़ा, करबिगहिया जामा मस्जिद और कुम्हरार मस्जिद इनमें प्रमुख हैं। फ़िलहाल इन मस्जिदों के कर्मचारियों को स्थानीय मस्जिद कमिटी ही मानदेय या वेतन देती है। इसके तहत लोगों से ही 50-100 रुपए चंदा के रूप में लेकर इन्हें दिया जाता है।

उनका कहना है कि उन्हें जो मिलना चाहिए, उतना मानदेय नहीं हो पाता। फिर भी पेशइमाम को 6-8 हजार और मोअज्जिनों को 4-5 हजार रुपए प्रतिमाह मिल जाते हैं। दोनों स्थानीय मुस्लिमों के बच्चों को तालीम भी देते हैं। निकाह, मिलाद व अन्य मजहबी कार्यक्रमों से भी उनकी कमाई होती है।

सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष मोहम्मद इरशादुल्लाह ने कहा कि पेशइमाम को 15,000 रुपए प्रतिमाह और मोअज्जिन को 10,000 रुपए प्रतिमाह मानदेय के रूप में दिए जाने से उनका भला हो जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार भी मानदेय देना चाहती है। बोर्ड की बैठक से प्रस्ताव पारित करा कर विभाग को भेजा जाएगा। पश्चिम बंगाल, हरियाणा, केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों में वहाँ के सुन्नी बोर्ड ऐसे मानदेय दे रहे हैं।

हिंदुस्तान में हिंदू मंदिरों व हिंदुओं के टेक्स से हिंदू साधु-संतों को सेलरी नही देकर मौलवियों को सेलरी दी जा रही है ऐसा किसी भी देश मे नही है।

जनता की मांग है कि मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से दूर करे और साधु-संतों को सेलरी मिले।

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Sunday, February 28, 2021

जापान में होती है हिंदू देवी-देवताओं की पूजा,भारतवासी कब महत्व समझेंगे ?

28 फरवरी 2021


भारत में कुछ लोग पाश्चात संस्कृति की अंधानुकरण करने के कारण देवी-देवताओं का महत्व नहीं समझ रहे हैं और कुछ वोट बैंक के लिए दलितों को उकसा रहे हैं और बोल रहे हैं कि आप हिन्दू नहीं हो इसलिए आपको हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा नहीं करनी चाहिए, लेकिन वास्तव में देखें तो हमारे पुराणों में दलित शब्द है ही नहीं । अंग्रेजों द्वारा आपस में लड़ाने के लिए जाति-पाति बांटी गई जबकि भारतीय संस्कृति में वर्ण व्यवस्था जो है वो कर्म के अनुसार बनाई है, इसलिए किसी के बहकाव में आकर देवी-देवताओं की पूजा नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि विदेशों में देवी-देवताओं का महत्व समझकर उनकी पूजा की जा रही है और उसके लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं । और भारत मे जो देवी-देवताओं की मजाक उड़ा रहे हैं उनको भी जापान से सबक सीखना चाहिए।




जापान में हिंदू देवी देवताओं की पूजा की जाती है। जापान में कई हिंदू देवी-देवताओं को जैसे ब्रह्मा, गणेश, गरुड़, वायु, वरुण आदि की पूजा आज भी की जाती है। कुछ समय पहले नई देहली में फोटोग्राफ़र बेनॉय के बहल के फोटोग्राफ़्स की एक प्रदर्शनी हुई, जिससे जापानी देवी-देवताओं की झलक मिली।

बेनॉय के अनुसार हिंदी के कई शब्द जापानी भाषा में सुनाई देते हैं। ऐसा ही एक शब्द है ‘सेवा’ जिसका मतलब जापानी में भी वही है जो हिंदी में होता है। बेनॉय कहते हैं कि जापानी किसी भी प्रार्थना का अनुवाद नहीं करते। उनको लगता है कि ऐसा करने से इसकी शक्ति और प्रभाव कम हो जाएगा ।

★ लिम्का वर्ल्ड रिकॉर्ड

भारतीय सभ्यता के रंग जापान में देखने को मिलते हैं। सरस्वती के कई मंदिर भी जापान में देखने को मिलते हैं। संस्कृत में लिखी पांडुलिपियां कई जापानी घरों में मिल जाती है। बेनॉय का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में ‘मोस्ट ट्रेवल्ड फोटोग्राफ़र’ के रूप में दर्ज है।

★ आधार ही संस्कृत

जापान की राजधानी टोक्यो में पांचवी शताब्दी की सिद्धम स्क्रिप्ट को आज भी देखा जा सकता है। इसे गोकोकुजी कहते हैं। बेनॉय का कहना है कि ये लिपि पांचवी शताब्दी से जापान में चल रही है और इसका नाम सिद्धम है। भारत में ऐसी कोई जगह नहीं, जहां ये पाई जाती हो ।

आज भी जापान की भाषा ‘काना’ में कई संस्कृत के शब्द सुनाई देते हैं । इतना ही नहीं काना का आधार ही संस्कृत है। बहल के अनुसार जापान की मुख्य दूध कंपनी का नाम सुजाता है। उस कंपनी के अधिकारी ने बताया कि ये उसी युवती का नाम है जिसने बुद्ध को निर्वाण से पहले खीर खिलाई थी।
स्त्रोत : बीबीसी

भातीय सभ्यता अपनाकर, हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करके एवं संस्कृत व हिन्दी भाषा का प्रयोग करके जापान दुनिया मे टेक्नोलॉजी में नंबर एक पर है, आज उस देश के सामने कोई भी देश आंख नहीं दिखा सकता लेकिन भारत में ऐसी विडंबना है कि भारतवासी अपने ही हिन्दू देवी-देवताओं को भूल रहे हैं, कई तो देवी-देवताओं को गालियां तक दे रहे हैं । अपनी संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं, अपनी महान संस्कृत एवं हिन्दी भाषा को भूलकर अंग्रेजी भाषा को अपना रहे हैं, कितनी विडंबना है, हमारी संस्कृति को भूलने के कारण ही आज हम पीछे रह गये और जापान हमारी संस्कृति को अपनाकर महान बन रहे हैं ।

दुनिया का सबसे प्राचीन हिन्दू धर्म अपनी उदारता, व्यापकता और सहिष्णुता की वजह से पूरी दुनिया के लोगों को ध्यान खींच रहा है। ऑस्ट्रेलिया और आयरलैंड जैसे देश में तो सबसे तेजी से बढ़ने वाला धर्म बन गया है।

एक तरफ विदेशी भी हिन्दू धर्म की महिमा जानकर हिन्दू धर्म और संस्कृति की तरफ आकर्षित हो रहे हैं, दूसरी ओर हिन्दू बाहुल देश भारत में ही ईसाई मिशनरियां और कुछ मुस्लिम समुदाय के लोग हिन्दू धर्म को मिटाकर अपना धर्म बढ़ाना चाहते हैं इसलिए लालच देकर एवं जबरन धर्मान्तरण, लव जिहाद आदि करके हिन्दू धर्म को तोड़ रहे हैं ।

हिन्दू धर्म में रहने वाले भी कुछ लोग हिन्दू धर्म की महिमा समझते नही हैं और बोलते हैं कि सर्व धर्म समान । सर्व धर्म सम्मान तो हो सकता है पर सर्व धर्म समान नहीं हो सकते ।  महान सनातन हिन्दू धर्म को किसी धर्म के साथ जोड़ना मूर्खता है।

हिन्दू संस्कृति की आदर्श आचार संहिता ने समस्त वसुधा को आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति से पूर्ण किया, जिसे हिन्दुत्व के नाम से जाना जाता है।

हिन्दू धर्म का यह पूरा वर्णन नही हैं इससे भी कई गुणा ज्यादा महिमा है क्योंकि हिन्दू धर्म सनातन धर्म है इसके बारे में संसार की कोई कलम पूरा वर्णन नही कर सकती । आखिर में हिन्दू धर्म का श्लोक लिखकर विराम देते हैं ।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत।
ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः

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Saturday, February 27, 2021

संत रविदास को सदना पीर बनाने आया था मुसलमान, खुद बन गया हिन्दू

27 फरवरी 2021


 सिकंदर लोदी के शासनकाल की बात है । सदना पीर उन दिनों एक जाना-माना पीर था । सिकंदर लोदी के दरबार में भी उसकी प्रसिद्धि हो चुकी थी । परंतु हिन्दू समाज में संत रविदास की बहुत प्रतिष्ठा थी।

 


एक दिन सदना पीर ने सोचा कि ‘आजकल रविदास का बड़ा नाम हो रहा है... मीराबाई जैसी रानी भी इनको मानती हैैै । मैं इनको समझाऊँ कि काफिरों की परंपरा छोड़ दें और कुरानशरीफ पढ़ें, कलमा पढ़ें । यदि ये मान गये तो सिकंदर लोदी से इनका बहुमान करा दूँगा । फिर इनको माननेवाले हजारों हिन्दू मुसलमान बन जायेंगे, जिससे हमारी जमात बढ़ जायेगी ।’

 ऐसा सोचकर वह संत रविदास के पास गया और बोला : ‘‘आप काफिरों की तरह यह क्या बुतपरस्ती (मूर्तिपूजा) करते हैं ? पत्थर की मूर्ति के आगे बैठकर ‘राम-राम’ रटते रहते हैं ? आप हमारे साथ चलिये, कुरानशरीफ पढ़कर उसका फायदा उठाइये । हम आपको सुलतान से पीर की पदवी दिलवायेंगे ।’’

 सदना पीर ने हिन्दू धर्म की निन्दा में कुछ और भी बातें कहीं । जब वह कह चुका तब रविदासजी ने कहा : ‘‘मैंने तेरी सारी बातें सुनीं, सदना पीर ! अगर तेरे में साधुताई है, पीरपना है तो तुझे मेरी बात सुननी ही चाहिए । 

 किसी व्यक्ति, किसी पीर-पैगंंबर या ईश्वर के बेटे द्वारा बनाया हुआ धर्म, धर्म नहीं एक संप्रदाय है । किंतु सनातन धर्म कोई संप्रदाय नहीं है । इसमें सभी मनुष्यों की भलाई के सिवाय कोई बात नहीं है ।

खुदा कलाम कुरान बताओ, फिर क्यों जीव मारकर खाओ?
खुदा नाम बलिदान चढ़ाओ, सो अल्लाह को दोष लगाओ ?

दिनभर रोजा नमाज गुजारें, संध्या समय पुनः मुर्गी मारें ?
भक्ति करे फिर खून बहावे, पामर किस विधि दोष मिटावे ?

जिसमें जीव हिंसा लिखी, वह नहीं खुदा कलाम ।
दया करे सब जीव पर, सो ही अहले इसलाम ।।

 आप कहते हैं कि ‘हिन्दू बुतपरस्ती करते हैं, मूर्तिपूजक हैं, मूर्ख हैं । खुदाताला निराकार है ।’ तो भाई ! सुन लो :

निराकार तुम खुदा बताओ, कुरान खुदा का कलाम ठहराओ ।
कलाम कहै तो बनै साकारा, फिर कहाँ रहा खुदा निराकारा ?
कलमा को खुदाताला के वचन कहते हो तो ये वचन तो साकार के हैं । निराकार क्या बोलेगा ?’’ 

 सदना पीर व रविदास के बीच इस्लाम धर्म और सनातन धर्म की चर्चा लम्बे समय तक होती रही । सदना पीर की समझ में रविदास की बात आ गयी कि जीते-जी मुक्ति और अपना आत्मा-परमात्मा ही सार है । जिस सार को मंसूर समझ गये, उन्हें अनलहक की अनुभूति हुई, वही सनातन धर्म सर्वोपरि सत्य है ।

 संत रविदास की रहस्यमयी बातें सुनकर सदना पीर को सद्बुद्धि प्राप्त हुई । सदना पीर ने कहा : ‘‘मरने के बाद कोई हमारी खुशामद करेगा और बाद में हमें मुक्ति मिलेगी, यह हम मान बैठे थे । हम सदा मुक्तात्मा हैं, इस बात का हमें पता ही नहीं था । अब आप हमें सनातन धर्म की दीक्षा दीजिये ।’’

उसने संत रविदास से दीक्षा ली और उसका नाम रखा गया - रामदास ।

 सिकंदर लोदी को जब इस बात का पता चला तो उसने संत रविदास को बुलवाकर पहले तो खूब डाँटा, फिर प्रलोभन देते हुए कहा : ‘‘अभी भी रामदास को फिर से सदना पीर बना दो तो हम आपको ‘रविदास पीर’ की ऊँची पदवी दे देंगे । सदना पीर आपका चेला और आप उनके गुरु । मेरे दरबार में आप दोनों का सम्मान होगा और हम आपको मुख्य पीर का दर्जा देंगे ।’’

 ‘‘मुख्य पीर का दर्जा तुम दोगे तो हमें तो तुम्हारी आधीनता स्वीकारनी पड़ेगी । जो सारे विश्व को बना-बनाके, नचा-नचाके मिटा देता है उस परमेश्वर से तुम्हारा प्रताप ज्यादा मानना पड़ेगा तो यह मुक्ति हुई कि गुलामी ? सुन ले भैया ! 

वेद धर्म है पूरन धर्मा, वेद अतिरिक्त और सब भर्मा । 
वेद धर्म की सच्ची रीता, और सब धर्म कपोल प्रतीता ।।
वेदवाक्य उत्तम धरम, निर्मल वाका ज्ञान ।
यह सच्चा मत छोड़कर, मैं क्यों पढ़ूँ कुरान ?

और धर्म तो पीर-पैगंबरों ने बनाये हैं लेकिन वैदिक धर्म सनातन है । ऐसा धर्म छोड़कर मैं तुम्हारी खुशामद क्यों करूँगा ? 

 तुम मुझे मुसलमान बनाना चाहते हो लेकिन मैं मनुष्य का बनाया हुआ मुसलमान क्यों बनूँ ? ईश्वर द्वारा बनाया हुआ मैं जन्मजात सनातन हिन्दू हूँ । ईश्वर के बनाये पद को छोड़कर मैं इंसान के बनाये पद पर क्यों गिरूँ ? नश्वर के लिए शाश्वत को क्यों छोड़ूँ ?

श्रुति शास्त्र स्मृति गाई, प्राण जायँ पुनि धर्म न जाई ।
कुरान बहिश्त न चाहिए, मुझको हूर हजार ।।
वेद धर्म त्यागूँ नहीं, जो गल चलै कटार ।
वेद धर्म है पूरण धर्मा, करि कल्याण मिटावै भर्मा ।।
सत्य सनातन वेद हैं, ज्ञान धर्म मर्याद ।
जो ना जाने वेद को, वृथा करै बकवाद ।।

 तुम चाहो तो मेरा सिर कटवा दो, पत्थर बाँधकर मुझे यमुनाजी में फिंकवा दो । ऐसा करोगे तो यह शरीर मरेगा लेकिन मेरा आत्मा-परमात्मा तो अमर है ।’’

 यह सुन सिकंदर लोदी आगबबूला होकर बोलाः ‘‘हद हो गयी, फकीर ! अब आखिरी निर्णय कर । या तो गला कटवाकर तेरा कीमा बनवा दूँ या तो मुसलमान बन जा तो पूजवा दूँ । सिकंदर तेरे भाग्य का विधाता है ।’’

 ‘‘मैंने तुम्हारी बातें सुनीं, अब तुम मेरी बात भी सुनो : तुम्हारी धमकियों से मैं डरने वाला नहीं हूँ ।

मैं नहीं दब्बू बाल गँवारा, गंगत्याग महूँ ताल किनारा ।।
प्राण तजूँ पर धर्म न देऊँ । तुमसे शाह सत्य कह देऊँ ।।
चोटी शिखा कबहुँ नहीं त्यागूँ । वस्त्र समान देह भल त्यागूँ ।।
कंठ कृपाण का करौ प्रहारा । चाहै डुबावो सिंधु मंझारा ।।
तुम भले मुझे गंगा में डलवा दो या पत्थर बाँधकर तालाब में फिंकवा दो ।’’

 ‘‘इतना बेपरवाह ! इतना निर्भीक ! तू मौत को बुला रहा है ? सिपाहियो ! इसके पैरों में जंजीरें और हाथों में हथकड़ियाँ डालकर इसे कैदखाने में ले जाओ । इसका कीमा बनवायें या जल में डुबवायें, इसका निर्णय बाद में करेंगे ।’’

 रविदासजी को कैद किया गया पर उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी । वे तो हरिनाम जपते रहे, अपने अमर आत्मा के भाव में मस्त रहे और सब कुछ प्रभु के भरोसे छोड़ते हुए बोले : ‘प्रभु ! यदि तेरी यही मर्जी है तो तेरी मर्जी पूरण हो ।’ शरीर तो उनका कैदखाने में है लेकिन मन है प्रभु में ! 

भगवान ने सोचा कि ‘जिसने मेरी मर्जी में अपनी मर्जी को मिला दिया है, उसको अगर सिकंदर लोदी कुछ कष्ट पहुँचायेगा तो सृष्टि के नियम में गड़बड़ हो जायेगी ।’ 

 सिकंदर लोदी सुबह-सुबह नमाज पढ़ने गया तो उसने देखा कि सामने रविदास खड़े हैं । वह बोला : ‘ऐ काफिर ! तू यहाँ कहाँ से आ गया ?’ उसने मुड़कर देखा तो रविदास ! दो-दो रूप ! फिर तीसरी ओर देखा तो वहाँ भी रविदास ! जिस भी दिशा में देखता, रविदास-ही-रविदास दिखायी देते । वह घबरा गया ।

 उसने आदेश दिया : ‘‘सिपाहियों ! संत रविदास को बाइज्जत ले आओ ।’’

 संत रविदास की जंजीरें खोल दी गयीं । सिकंदर उनके चरणों में गिरकर, गिड़गिड़ाकर माफी माँगने लगा : ‘‘ऐ फकीर ! गुस्ताखी माफ करो । अल्लाह ने आपको बचाने के लिए अनेकों रूप ले लिये थे । मैं आपको नहीं पहचान पाया, मैंने बड़ी गलती की । आप मुझे बख्श दें ।’’

संत रविदास : ‘‘कोई बात नहीं, भैया ! ईश्वर की ऐसी ही मर्जी होगी ।’’
जिसने जंजीरों में जकड़कर कैदखाने में डाल दिया, उसी के प्रति महापुरुष के हृदय से आशीर्वाद निकल पड़े कि ‘भगवान तुम्हारा भला करे ।’
कैसे हैं सनातन हिन्दू धर्म के संत !

(स्त्रोत: संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से )

 आज जो राष्ट्रविरोधी ताकतों द्वारा राजनीति फायदा के लिए जो नये नेता उभर रहे हैं और दलितों के मसीहा बोलते हैं और संत रविदास के नाम लेकर दलितों को हिन्दू धर्म से दूर कर रहे हैं उनको संत रविदास की आत्मा धिक्कार दे रही होगी, संत रविदास जी की आत्मा बोल रही होगी कि हमने तो सनातन हिन्दू धर्म को बचाने के लिए अनेक यातनाएं सही लेकिन हिन्दू धर्म का त्याग नहीं किया लेकिन आज कुछ नेता अपने फायदे के लिए जो हिन्दू धर्म में बंटवारा करके देश के टुकड़े करना चाहते हैं उनको तो नर्क में भी जगा नही मिल पायेंगी।

 दलित समाज से विनती है कि आप किसी भी नेता के बहकावे न आएँ । महान संत रविदास जी के मार्ग पर चलकर अपना कल्याण करें और देश व सनातन धर्म की अखंडता बनाये रखें यही बड़ी सेवा है ।

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Friday, February 26, 2021

नेताओं ने किया वादा से मुकरने की आदत और संतों का सामर्थ्य

26 फरवरी 2021


1965 में भारत के लाखों संतों ने गोहत्याबंदी और गोरक्षा पर कानून बनाने के लिए एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया गया था। 1966 में अपनी इसी मांग को लेकर सभी संतों ने दिल्ली में एक बहुत बड़ी रैली निकाली। उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। गांधीवादी बड़े नेताओं में विनोबा भावे थे। विनोबाजी का आशीर्वाद लेकर लाखों साधु-संतों ने करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में बहुत बड़ा जुलूस निकाला।




इंदिरा गांधी स्वामी करपात्रीजी और विनोबाजी को बहुत मानती थीं। इंदिरा गांधी के लिए उस समय चुनाव सामने थे। कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने करपात्रीजी महाराज से आशीर्वाद लेने के बाद वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्लखाने बंद हो जाएंगे, जो अंग्रेजों के समय से चल रहे हैं।

इंदिरा गांधी चुनाव जीत गईं। ऐसे में स्वामी करपात्री महाराज को लगा था कि इंदिरा गांधी मेरी बात अवश्य मानेंगी। उन्होंने एक दिन इंदिरा गांधी को याद दिलाया कि आपने वादा किया था कि संसद में गोहत्या पर आप कानून लाएंगी। लेकिन कई दिनों तक इंदिरा गांधी उनकी इस बात को टालती रहीं। ऐसे में करपात्रीजी को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा।

★ संपूर्ण घटनाक्रम :

करपात्रीजी महाराज शंकराचार्य के समकक्ष देश के मान्य संत थे। करपात्री महाराज के शिष्यों अनुसार जब उनका धैर्य चुक गया तो उन्होंने कहा कि गोरक्षा तो होनी ही चाहिए। इस पर तो कानून बनना ही चाहिए। लाखों साधु-संतों ने उनके साथ कहा कि यदि सरकार गोरक्षा का कानून पारित करने का कोई ठोस आश्वासन नहीं देती है, तो हम संसद को चारों ओर से घेर लेंगे। फिर न तो कोई अंदर जा पाएगा और न बाहर आ पाएगा। 

संतों ने 7 नवंबर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया। इस धरने में मुख्य संतों के नाम इस प्रकार हैं- शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ, स्वामी करपात्रीजी महाराज और रामचन्द्र वीर। रामचन्द्र वीर तो आमरण अनशन पर बैठ गए थे।

गोरक्षा महाभियान समिति के संचालक व सनातनी करपात्रीजी महाराज ने चांदनी चौक स्थित आर्य समाज मंदिर से अपना सत्याग्रह आरंभ किया। करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में जगन्नाथपुरी, ज्योतिष पीठ व द्वारका पीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय की सातों पीठों के पीठाधिपति, रामानुज संप्रदाय, माधव संप्रदाय, रामानंदाचार्य, आर्य समाज, नाथ संप्रदाय, जैन, बौद्ध व सिख समाज के प्रतिनिधि, सिखों के निहंग व हजारों की संख्या में मौजूद नागा साधुओं को पं. लक्ष्मीनारायणजी चंदन तिलक लगाकर विदा कर रहे थे। लाल किला मैदान से आरंभ होकर नई सड़क व चावड़ी बाजार से होते हुए पटेल चौक के पास से संसद भवन पहुंचने के लिए इस विशाल जुलूस ने पैदल चलना आरंभ किया। रास्ते में अपने घरों से लोग फूलों की वर्षा कर रहे थे। हर गली फूलों का बिछौना बन गई थी।

कहते हैं कि नई दिल्ली का पूरा इलाका लोगों की भीड़ से भरा था। संसद गेट से लेकर चांदनी चौक तक सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे। लाखों लोगों की भीड़ जुटी थी जिसमें 10 से 20 हजार तो केवल महिलाएं ही शामिल थीं। हजारों संत थे और हजारों गोरक्षक थे। सभी संसद की ओर कूच कर रहे थे। 

कहते हैं कि दोपहर 1 बजे जुलूस संसद भवन पर पहुंच गया और संत समाज के संबोधन का सिलसिला शुरू हुआ। करीब 3 बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। स्वामी रामेश्वरानंद ने कहा कि यह सरकार बहरी है। यह गोहत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा। मैं यहां उपस्थित सभी लोगों से आह्वान करता हूं कि सभी संसद के अंदर घुस जाओ और सारे सांसदों को खींच-खींचकर बाहर ले आओ, तभी गोहत्याबंदी कानून बन सकेगा।

कहा जाता है कि जब इंदिरा गांधी को यह सूचना मिली तो उन्होंने निहत्थे करपात्री महाराज और संतों पर गोली चलाने के आदेश दे दिए। पुलिसकर्मी पहले से ही लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी और अश्रुगैस चलाना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने संतों और गोरक्षकों की भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई। लोग मर रहे थे, एक-दूसरे के शरीर पर गिर रहे थे और पुलिस की गोलीबारी जारी थी। माना जाता है कि एक नहीं, उस गोलीकांड में सैकड़ों साधु और गोरक्षक मर गए। दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया। संचार माध्यमों को सेंसर कर दिया गया और हजारों संतों को तिहाड़ की जेल में ठूंस दिया गया।

गुलजारी लाल नंदा का इस्तीफा : इस हत्याकांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा ने अपना त्यागपत्र दे दिया और इस कांड के लिए खुद एवं सरकार को जिम्मेदार बताया। इधर, संत रामचन्द्र वीर अनशन पर डटे रहे, जो 166 दिनों के बाद समाप्त हुआ था। देश के इतने बड़े घटनाक्रम को किसी भी राष्ट्रीय अखबार ने छापने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह खबर सिर्फ मासिक पत्रिका 'आर्यावर्त' और 'केसरी' में छपी थी। कुछ दिन बाद गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका 'कल्याण' ने अपने गौ अंक विशेषांक में विस्तारपूर्वक इस घटना का वर्णन किया था।

करपात्रीजी का श्राप : इस घटना के बाद स्वामी करपात्रीजी के शिष्य बताते हैं कि करपात्रीजी ने इंदिरा गांधी को श्राप दे दिया कि जिस तरह से इंदिरा गांधी ने संतों और गोरक्षकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करवाकर मारा है, उनका भी हश्र यही होगा। कहते हैं कि संसद के सामने साधुओं की लाशें उठाते हुए करपात्री महाराज ने रोते हुए ये श्राप दिया था।

'कल्याण' के उसी अंक में इंदिरा को संबोधित करके कहा था- 'यद्यपि तूने निर्दोष साधुओं की हत्या करवाई है फिर भी मुझे इसका दु:ख नहीं है, लेकिन तूने गौहत्यारों को गायों की हत्या करने की छूट देकर जो पाप किया है, वह क्षमा के योग्य नहीं है। इसलिए मैं आज तुझे श्राप देता हूं कि 'गोपाष्टमी' के दिन ही तेरे वंश का नाश होगा। आज मैं कहे देता हूं कि गोपाष्टमी के दिन ही तेरे वंश का भी नाश होगा।' जब करपात्रीजी ने यह श्राप दिया था तो वहां प्रमुख संत 'प्रभुदत्त ब्रह्मचारी' भी मौजूद थे। कहते हैं कि इस कांड के बाद विनोबा भावे और करपात्रीजी अवसाद में चले गए।
 
इसे करपात्रीजी के श्राप से नहीं भी जोड़ें तो भी यह तो सत्य है कि श्रीमती इंदिरा गांधी, उनके पुत्र संजय गांधी और राजीव गांधी की अकाल मौत ही हुई थी। श्रीमती गांधी जहां अपने ही अंगरक्षकों की गोली से मारी गईं, वहीं संजय की एक विमान दुर्घटना में मौत हुई थी, जबकि राजीव गांधी लिट्‍टे द्वारा किए गए धमाके में मारे गए थे। 
 
गोहत्याबंदी का कानून की मांग का इतिहास : स्वाधीन भारत में विनोबाजी ने पूर्ण गोवधबंदी की मांग रखी थी। उसके लिए कानून बनाने का आग्रह नेहरू से किया था। वे अपनी पदयात्रा में यह सवाल उठाते रहे। कुछ राज्यों ने गोवधबंदी के कानून बनाए।
 
इसी बीच हिन्दू महासभा के अध्यक्ष निर्मलचन्द्र चटर्जी (लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के पिता) ने एक विधेयक 1955 में प्रस्तुत किया था। उस पर जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा में घोषणा की कि 'मैं गोवधबंदी के विरुद्ध हूं। सदन इस विधेयक को रद्द कर दे। राज्य सरकारों से मेरा अनुरोध है कि ऐसे विधेयक पर न तो विचार करे और न कोई कार्यवाही।'
 
1956 में इस विधेयक को कसाइयों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उस पर 1960 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। धीरे-धीरे समय निकलता जा रहा था। लोगों को लगा कि अपनी सरकार अंग्रेजों की राह पर है। वह आश्वासन देती रही और गोवध एवं गोवंश का नाश का होता गया। इसके बाद 1965-66 में प्रभुदत्त ब्रह्मचारी स्वामी करपात्रीजी और देश के तमाम संतों ने इसे आंदोलन का रूप दे दिया। गोरक्षा का अभियान शुरू हुआ। देशभर के संत एकजुट होने लगे। लाखों लोग और संत सड़कों पर आने लगे। इस आंदोलन को देखकर राजनीतिज्ञ लोगों के मन में भय व्याप्त होने लगा।

इसकी गंभीरता को समझते हुए सबसे पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 21 सितंबर 1966 को पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि 'गोवध बंदी' के लिए लंबे समय से चल रहे आंदोलन के बारे में आप जानती ही हैं। संसद के पिछले सत्र में भी यह मुद्दा सामने आया था। और जहां तक मेरा सवाल है, मैं यह समझ नहीं पाता कि भारत जैसे एक हिन्दू बहुल देश में, जहां गलत हो या सही, गोवध के विरुद्ध ऐसा तीव्र जन-संवेग है, गोवध पर कानूनन प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा सकता?'
 
इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण की यह सलाह नहीं मानी। परिणाम यह हुआ कि सर्वदलीय गोरक्षा महाभियान ने दिल्ली में विराट प्रदर्शन किया। दिल्ली के इतिहास का वह सबसे बड़ा प्रदर्शन था। तब प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, पुरी के शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ ने गोरक्षा के लिए प्रदर्शनकारियों पर पुलिस जुल्म के विरोध में और गोवधबंदी की मांग के लिए 20 नवंबर 1966 को अनशन प्रारंभ कर दिया। वे गिरफ्तार किए गए। प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का अनशन 30 जनवरी 1967 तक चला। 73वें दिन डॉ. राममनोहर लोहिया ने अनशन तुड़वाया। अगले दिन पुरी के शंकराचार्य ने भी अनशन तोड़ा। उसी समय जैन संत मुनि सुशील कुमार ने भी लंबा अनशन किया था।

12 अप्रैल 1978 को डॉ. रामजी सिंह ने एक निजी विधेयक रखा जिसमें संविधान की धारा 48 के निर्देश पर अमल के लिए कानून बनाने की मांग थी। 21 अप्रैल 1979 को विनोबा भावे ने अनशन शुरू कर दिया। 5 दिन बाद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने कानून बनाने का आश्वासन दिया और विनोबा ने उपवास तोड़ा। 10 मई 1979 को एक संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जो लोकसभा के विघटित होने के कारण अपने आप समाप्त हो गया।
 
इंदिरा गांधी के दोबारा शासन में आने के बाद 1981 में पवनार में गोसेवा सम्मेलन हुआ। उसके निर्णयानुसार 30 जनवरी 1982 की सुबह विनोबा ने उपवास रखकर गोरक्षा के लिए सौम्य सत्याग्रह की शुरुआत की। वह सत्याग्रह 18 साल तक चलता रहा। आज भी गोवध पर केंद्र सरकार किसी भी तरह का कानून नहीं ला पाई है। गोरक्षकों का आंदोलन जारी है।


★ कौन थे करपात्रीजी महाराज?

स्वामी करपात्रीजी महाराज का मूल नाम हरनारायण ओझा था। वे हिन्दू दशनामी परंपरा के भिक्षु थे। दीक्षा के उपरांत उनका नाम 'हरीन्द्रनाथ सरस्वती' था किंतु वे 'करपात्री' नाम से ही प्रसिद्ध थे, क्योंकि वे अपनी अंजुली का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे। वे ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के शिष्य थे। धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें 'धर्मसम्राट' की उपाधि प्रदान की गई।
 
अखिल भारतीय राम राज्य परिषद भारत की एक परंपरावादी हिन्दू पार्टी थी। इसकी स्थापना स्वामी करपात्रीजी ने सन् 1948 में की थी। इस दल ने सन् 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थीं। सन् 1952, 1957 एवं 1962 के विधानसभा चुनावों में हिन्दी क्षेत्रों (मुख्यत: राजस्थान) में इस दल ने दर्जनों सीटें हासिल की थीं।  स्त्रोत : वेब दुनिया

अधिकतर नेता वोट पाने के लिए साधु-संतों के पास जाते हैं, कई वादा भी करते हैं पर जब संतों के आशीर्वाद से चुनाव जीत जाते हैं तब वे अपने वादा भूल जाते है और संतों का अनादर करने लग जाते हैं फिर उनको परिणाम भी भयंकर मिलते हैं। नेताओं को सावधान होना चाहिए और गौहत्या पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए।


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Thursday, February 25, 2021

चीफ जस्टिस का केस बंद हो सकता है, आम जनता व साधु-संतों का क्यों नही?

25 फरवरी 2021


 सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर 19 अप्रैल 2019 को यौन उत्पीड़न के आरोप लगाया गया, उसके बाद सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक समिति बनाई गई । जिसमें जस्टिस बोबड़े, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस इंदू मल्होत्रा शामिल थी, जिन्होंने जांच करके 6 मई 2019 को मुख्य न्यायाधीश को क्लीनचिट दे दी गई।




आरोपों के बाद जस्टिस गोगोई ने कहा था कि शिकायतकर्ता के पीछे कुछ बड़ी ताकतें हैं जो सुप्रीम कोर्ट को अस्थिर करना चाहती हैं।

क्लीनचिट के बाद मामला अब बंद किया

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व चीफ जस्टिस (CJI) रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में खुद के नोटिस (स्वत: संज्ञान) पर शुरू की गई सुनवाई गुरुवार को बंद कर दी। अदालत ने कहा कि पूर्व जस्टिस एके पटनायक की जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है। उनकी रिपोर्ट के आधार पर यह केस बंद किया जा रहा है। उन्हें साजिश की जांच करने का काम सौंपा गया था।

कोर्ट ने कहा कि केस को दो साल बीत चुके हैं, ऐसे में साजिश की जांच के लिए जरूरी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड हासिल करने की संभावना बहुत कम रह गई है। सुप्रीम कोर्ट के वकील उत्सव बैंस ने जस्टिस गोगोई पर लगे यौन शोषण के आरोपों के पीछे साजिश होने का दावा किया था। रिपोर्ट में साजिश को स्वीकार किया गया है अदालत ने कहा कि इस मामले में साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता।

पूर्व चीफ जस्टिस की बात को नकार नहीं सकते कि यह एक षड्यंत्र है, क्योंकि देशहित में जो भी कार्य कर रहे हैं उनको फंसाने के लिए बलात्कार कानून का अंधाधुंध उपयोग किया जा रहा है, यह बात हम तो सालों से बता रहे हैं पर इस पर ध्यान किसी का नहीं जा रहा। लेकिन सवाल ये ही कि जैसे आम जनता में किसी अथवा हिंदुनिष्ठ अथवा हिंदू साधु-संतों पर जूठे रेप केस जब लगते है तब उनको सीधा जेल भेज दिया जाता है और उनको निर्दोष होने के प्रमाण इकट्ठे करने के लिए जमानत तक नही दी जाती है यहाँ गलत हो रहा है कानुन समान है तो सबके लिए एक जैसा व्यवहार भी होना चाहिए।


बता दे कि पिछले कुछ सालों से देश में रेप केस की बाढ़ सी आ गई है, एक तरफ इंटरनेट, टीवी, फिल्मों, चलचित्रों व अखबारों द्वारा ऐसी अश्लीलता भरी सामग्री परोसी जा रही है, जिससे रेप केस बढ़ रहे हैं दूसरी ओर कड़े कानून बनाए जा रहे हैं, अब तो ऐसा हो रहा है कि जो वास्तविकता में पीड़िता होती है उसको न्याय नही मिल पाता और बलात्कार के कड़े कानून का कुछ मनचली महिलाओं द्वारा बदला लेने या पैसे ऐठने या प्रसिद्ध व्यक्ति को फंसाने के लिए षडयंत्र के तरत भयंकर दुरुपयोग किया जा रहा है, ये समाज के लिए बहुत खरतनाक ट्रेंड है।

बलात्कार के कड़े कानून के शिकार सबसे पहले हिंदू संत आशाराम बापू हुए, उन पर शाहजहांपुर (उ.प्र) की रहने वाली, छिंदवाड़ा (म.प्र)में पढ़ने वाली, जोधपुर (राजस्थान) की घटना बताकर  दिल्ली में FIR दर्ज करवाती है, वो भी घटना के 5 दिन बाद, लेकिन उस FIR की रिकॉर्डिंग गायब कर दी गई, हेल्पलाइन रजिस्टर के कई पन्ने फाड़ दिए गए, मेडिकल जांच में एक खरोंच का भी निशान नहीं और बड़ी बात कि घटना की रात लड़की किसी संदिग्ध व्यक्ति से लगातार संपर्क में थी, उस संदिग्ध व्यक्ति की कॉल डिटेल को कोर्ट में पेश भी किया गया फिर भी बापू आसारामजी को उम्रकैद की सजा दी गई । इससे साफ पता चलता है कि उनके खिलाफ कोई बड़ी साजिश रची गई है क्योंकि उन्होंने धर्मान्तरण पर रोक लगाई और देश-विदेश में हिन्दू धर्म का बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार किया था।

अब सवाल उठता है कि जैसे चीफ जस्टिस पर आरोप लगे और तुरंत जांच कमेटी बनाई और 17 दिन में ही क्लीनचिट मिल गई, महिला झूठी साबित हुई वैसे ही हर नागरिक, हिंदुनिष्ठ, हिंदू साधु-संतों पर जो झूठे आरोप लग रहे हैं उसके लिए भी स्पेशल जांच कमेटी बनाकर जांच करनी चाहिए । बिना सबूत सालों से जेल में रखना फिर उनको उम्रकैद दे देना वो भी बिना किसी सबूत के, क्या ये उनके साथ अन्याय नहीं ???

जैसे चीफ जस्टिस पर आरोप लगने के बाद मीडिया को इस मामले में संयम बरतने को कहा गया वैसे ही हिन्दू साधु-संतों के खिलाफ जो मीडिया 24 घंटे डिबेट चलाकर खबरें दिखाती है उसपर भी रोक लगनी चाहिए ।

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