Saturday, May 6, 2023

न्यायालय पहले हेट-स्पीच पहले परिभाषित तो करें ...

6  May 2023

http://azaadbharat.org


🚩हाल में सुप्रीम कोर्ट ने घृणा-फैलाने वाले वक्तव्यों (‘हेट-स्पीच’) पर सभी राज्यों को आदेश दिया है कि वे ऐसे वक्तव्यों पर स्वयं संज्ञान लेकर प्राथमिकी  दर्ज कराएं। पर कोर्ट ने स्पष्ट नहीं किया कि हेट स्पीच की पहचान या सीमाएं क्या हैं ? ऐसी स्थिति में यह तंत्र को एक और हैंडल थमा देने जैसा है कि जिस किसी व्यक्ति, अखबार, संस्था, आदि को घृणा-फैलाने वाला बताकर दंडित करें। अपने आदेश में ‘रिलीजन’ और ‘सेक्यूलरिजम’ का हवाला देकर कोर्ट ने और भी अनुचित किया। मानो, हेट केवल किसी खास रिलीजन से संबंधित विषय हो! उसे कष्ट उठाकर पहले हेट-स्पीच को परिभाषित करना चाहिए।


🚩क्योंकि यहाँ दशकों से आम दृश्य है कि विशेष समूहों, दलों की ओर से जाति, वर्ग, धर्म, आदि संबंधित कितने भी उत्तेजक भाषण क्यों न हों, उस पर तीनों शासन अंग चुप रहते हैं। जैसे, ब्राह्मणों के विरुद्ध अपशब्द कहना आज एक फैशन है जिस में हमारे सभी राजनीतिक दल शामिल हैं। हमारे देवी-देवताओं को गंदा कहना, किसी महान हिन्दू ग्रंथ को जलाना तक बरोकटोक चलता है। किन्तु अन्य किसी समुदाय या पुस्तक को कुछ कहते ही सभी नाराज होने लगते हैं।


🚩ऐसी चुनी हुई चुप्पियाँ और चुना हुआ आक्रोश दिखाना क्या न्याय है ? क्या इस से सामाजिक सौहार्द बनता है ? सच तो यह है कि वोट-बैंक राजनीति की एक स्थाई तकनीक ही एक के विरुद्ध बोलकर दूसरे को लुभाना रहा है। किन्तु इस पर विधायिका और न्यायपालिका, दोनों ही बैरागी-साधु बन जाते हैं कि उन्हें इस से क्या लेना-देना!



🚩इसी क्रम में भारतीय दंड संहिता 153-ए तथा 295-ए का उपयोग, उपेक्षा, तथा दुरुपयोग भी आता है। पहली धारा धर्म, जाति, भाषा, आदि आधारों पर विभिन्न समुदायों के बीच द्वेष, शत्रुता, दुर्भाव फैलाना दंडनीय बताती है। दूसरी धारा किसी समुदाय की धार्मिक भावना जान-बूझ कर ठेस पहुँचाने, या उसे अपमानित करने को दंडनीय कहती है। लेकिन गत कई दशकों से एक समुदाय विशेष के नेता खुल कर दूसरे समुदाय के देवी-देवताओं, महान ज्ञान-ग्रंथों, आदि का अपमान करते रहे हैं। जिन पर न्यायपाल कभी ध्यान नहीं देते।


🚩आज यू-ट्यूब, सोशल-मीडिया, और इंटरनेट के कारण ऐसे दर्जनों भाषण सुने जा सकते हैं। सांसद, विधायक जैसे बड़े लोग भगवान राम, तथा माता कौशल्या पर गंदी छींटाकशी करते रहे हैं। वे खुले आम एक समुदाय को कायर, लाला, बनिया-बुद्धि का कहते हैं जो केवल पुलिस भरोसे बचा है, जिसे ‘दस मिनट के लिए हटाते’ ही उस की ऐसी-तैसी कर दी जाएगी, आदि। क्या इस पर न्यायाधीशों ने कभी स्वयं संज्ञान लिया? उलटे शिकायत आने पर भी न्यायपाल और कार्यपाल सब कुछ अनसुना और रफा-दफा कर देते हैं। जिस से वस्तुतः वैसी दबंगई को परोक्ष प्रोत्साहन ही मिलता है। इस से एक समुदाय में अपने दबंग होने, और दूसरे में अपने अपमान व नेतृत्वहीनता का दंश होता है।


🚩दूसरी ओर, कुछ मतावलंबियों की मूल किताबों में ही दूसरे मत मानने वालों के विरुद्ध तरह-तरह की घृणित बातें, और उन्हें अपमनानित करने, उन से टैक्स वसूलने, और मार डालने तक के आवाहन लिखे हुए हैं। वे अपनी ऐसी किताबों को दैवी, पवित्र मानते हैं और दूसरों के धर्म, मत, देवी-देवताओं को ‘झूठा’ बताते हैं। तब अपने प्रति वैसी बातों, आवाहनों पर दूसरे समुदायों को आलोचना भी करने का अधिकार है या नहीं? वस्तुतः विडंबना और भी गहरी है कि शासन-सत्ताएं उन्हीं किताबों के पठन-पाठन समेत, संबंधित समुदाय को नियमित रूप से विशेष शैक्षिक स्वतंत्रता एवं अनुदान देती है। इस तरह, दूसरों के विरुद्ध नियमित घृणा फैलाने को किसी समुदाय की ‘शिक्षा’ का अंग मानकर परोक्ष रूप से राजकीय सहायता तक मिलती है। इस पर विचार करने की जिम्मेदारी किस की है? हमारे न्यायपाल, सांसद, तथा कार्यपाल, तीनों ही इस से पल्ला झाड़ते हैं। ऐसी बेपरवाही, भेद-भाव, और मनमानी यहाँ ब्रिटिश राज में भी नहीं थी!


🚩उपर्युक्त सभी बातें राई-रत्ती परखी जा सकती हैं। किन्तु ऐसा नहीं किया जाता। बल्कि इस के लिए प्रमाणिक उदाहरणों के साथ आवेदन देने पर न्यायालय कभी-कभी आवेदक को ही जुर्माना कर देता है! दो साल पहले वासिम रिजवी की याचिका पर यही हुआ था। जब कि किसी ने नहीं बताया कि उस याचिका में कौन सी शिकायत गलत थी! तब यही संदेश गया कि उन शिकायतों को गलत बताना न्यायाधीशों के बस से बाहर था। चूँकि वे ऐसे मामले सुनना नहीं चाहते, इसलिए आवेदक को दंडित कर के सब को चेताया कि चुप रहें।


🚩वस्तुतः, ऐसे दोहरेपन ही तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा करते हैं। उसी की अभिव्यक्ति समय-समय पर किसी क्षुब्ध व्यक्ति के असंयत वक्तव्यों में होती है। आखिर, यदि देश के शासक, न्यायपाल, और विधिनिर्माता किसी समुदाय विशेष के प्रति सदा-बैरागी, और दूसरे के लिए सदा-संवेदनशील रहेंगे, तब कोई तो यह कहेगा ही। एक सेक्यूलर राज्यतंत्र में नियमित दो-नीतियाव्यवहार सदैव स्वीकार नहीं होगा। इसे दमन की धमकी से चुप कराने की कोशिश विपरीत फलदायी होगी।


🚩यह शासन के तीनों अंगों में आई मानसिक गिरावट का भी संकेत है। वह अपनी आँखों के सामने घटते घटनाक्रम का आकलन करने में भी अयोग्य है। कई बार अनेक बड़ी-बड़ी घटनाओं में यह दिखा कि विभिन्न समुदायों के हितों, भावनाओं, धर्म, संस्कृति के प्रति विषम व्यवहार पर हेठी झेलने वाले समूह में असंतोष जमा होता है। उस से आपसी द्वेष बढ़ते, और हिंसा-विध्वंस तक होता है। अंततः वह चुनावी उथल-पुथल में भी व्यक्त होता है। फिर भी, हमारे नेता, बौद्धिक, तथा न्यायपाल वही दोहरापन जारी रखते हैं। कानूनी रूप से भी, और कानून की उपेक्षा करके, दोनों रूपों में।


🚩उन्हें ध्यान देना चाहिए, कि असुविधाजनक सचाइयों को तहखाने में दबाकर लोक-स्मृति से हटा देने की संभावना अब बहुत घट गई है। नए मीडिया ने लगभग सभी सेंसरशिप विफल कर दी है। हर उचित-अनुचित, चाहे वह जिस ने भी कही या की हो, वह बिना खर्च घर-घर पहुँच सकती है। अतः अन्यायपूर्ण, अपमानपूर्ण कथनी-करनी पर दो-टूक समानता बनानी ही होगी। इस से बचने की कीमत समाज में निर्दोष लोगों को चुकानी पड़ती है। हरेक वर्ग, समूह, जाति, संप्रदाय के सामान्य लोगों को अपने समुदाय के उद्धत/मूर्ख नेताओं की चुनी हुई बयानबाजी और चुनी हुई चुप्पियों के कारण दूसरों के संदेह का शिकार होना पड़ता है। इसे केवल समदर्शी शासन ही रोक सकता है। लोगों को उपदेश या धमकी देकर दोहरापन जारी रखना कोई उपाय नहीं है।


🚩इसलिए, हेट-स्पीच को कड़ाई और निष्पक्षता से पहले परिभाषित करें। ताकि वर्तमान या अतीत, लिखित प्रकाशित या मौखिक, किसी भी बात, किताब, या मत-विश्वास को अपवाद न बताया जा सके। ताकि केवल एक रंग के लोगों को दंडित करने, अथवा, खास रंग के लोगों को सदा छूट रहने का सुभीता न बने। विशेषकर सांसदों, विधायकों, संगठनों, संस्थाओं के द्वेषपूर्ण सांप्रदायिक या जातिवादी बयानों पर अधिक सख्ती व फुर्ती से कार्रवाई हो। तभी समाज के सभी समुदायों में भरोसा पैदा होगा। आम लोग किसी भी समुदाय के नेताओं को सहज न्यायदृष्टि से देखने के लिए तैयार रहते हैं।


🚩अच्छा हो, हमारी संसद सभी वर्गों के विवेकशील प्रतिनिधियों को लेकर समरूप आचार-संहिता और दंड-नीति बनवाएं। जिस से शिक्षा, धर्म, तथा राजनीतिक व्यवहार पर सभी समुदायों को समान अधिकार एवं सुरक्षा प्राप्त हो। किसी समुदाय को विशेष अधिकार या विशेष वंचना न हो। किसी भी नाम पर विशेषाधिकारों का दावा खारिज हो। सभी निरपवाद रूप से मानें कि ‘‘दूसरों के साथ वह व्यवहार न करें जो अपने लिए नहीं चाहते”। यह व्यवस्था आज न कल करनी ही होगी। शुभस्य शीघ्रम्! - डॉ. शंकर शरण


🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Friday, May 5, 2023

मथुरा पहुँचे नेपाल के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने की माँग, बोले "हिन्दू राष्ट्र बने भारत"

5  May 2023

http://azaadbharat.org


🚩भारत एक हिन्दू बाहुल्य देश है, एक हिन्दू कभी किसी अन्य धर्म के लोगों के लिए खतरे का विषय नहीं बन सकता है और ना ही हिन्दुओं से किसी अन्य धर्म के लोगों को कोई खतरा ही हो सकता है, किन्तु यदि भारत को हिन्दू राष्ट्र न घोषित किया गया तो इससे हिन्दुओं को जरुर खतरा हो सकता है।

न्यायमूर्ति एस.आर. सेन जी की बात विचारणीय है । यदि हिन्दू बाहुल्य देश में हिन्दुओं का भरोसा जीतना हो तो मोदी सरकार को शीघ्र ही भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए।


🚩नेपाल के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोपाल परांजलि ने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की वकालत की है। परांजलि ने कहा है कि भारत के हिंदू राष्ट्र बनने से पूरी दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने यह बात सोमवार (1 मई, 2023) को मथुरा में कही।



🚩दरअसल, नेपाल के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोपाल परांजलि प्रतिनिधि मंडल के साथ मथुरा के गोवर्धन में स्थित मंदिरों के दर्शन करने पहुँचे थे। प्रतिनिधि मंडल में उनके साथ पशुपतिनाथ विकास कोष काठमांडू के प्रमुख सदस्य एवं संहिता शास्त्री अर्जुन प्रसाद वास्तोला एवं 10 अन्य लोग उनके साथ थे।


🚩मंदिरों के दर्शन के बाद उन्होंने श्रीआद्य शंकराचार्य आश्रम जाकर गोवर्धनपुरी के पीठाधीश्वर स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ से आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने भारत-नेपाल संबंधों पर चर्चा करते हुए कहा है कि नेपाल सैद्धांतिक रूप से पहले से ही हिंदू राष्ट्र है। ऐसे में यदि भारत को भी हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाएगा तो इससे पूरी दुनिया पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। परांजलि ने आगे कहा है कि भारत के हिंदू राष्ट्र बन जाने के बाद दुनिया भर में रह रहे 178 करोड़ से अधिक हिंदुओं को भी गौरव की अनुभूति होगी और उनका आत्मबल भी बढ़ेगा।


🚩इस दौरान वास्तोला पशुपतिनाथ विकास कोष काठमांडू के प्रमुख सदस्य एवं संहिता शास्त्री अर्जुन प्रसाद वास्तोला ने कहा है कि आज से 2530 साल पहले आद्य शंकराचार्य ने विधर्मियों द्वारा छिन्न-भिन्न की जा चुकी वैदिक सनातन संस्कृति की फिर से स्थपना की थी। अब एक बार फिर शंकराचार्य के विचारों से ही सबका कल्याण होगा।


🚩वास्तोला ने यह भी कहा है कि दुनिया में ईसाई, मुस्लिमों और बौद्धों के भी देश हैं। यहाँ तक कि यहूदियों का भी एक देश है। ऐसे में दुनिया के सबसे अधिक हिन्दू आबादी वाले भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित किया चाहिए। भारत एक दिव्य देश है। यहाँ हमेशा ही ज्ञान की धारा बहती रही है। इसके हिन्दू राष्ट्र घोषित हो जाने से दुनिया के करोड़ों सनातनियों का आत्मबल मजबूत होगा। साथ ही दुनिया का कल्याण होगा।


🚩पुरे विश्व में एकमात्र भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ हिन्दुओं की बहुलता है, इसे ध्यान में रखा जाए तो भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए । यदि इसका दूसरा पक्ष देखें तो अब से 71 साल पहले 1947 में जब भारत आजाद हुआ था तो साथ ही उसका विभाजन भी किया गया था और एक नया देश पाकिस्तान बनाया गया; चूँकि पाकिस्तान मुस्लिमों की मांग के कारण बनाया गया था इसलिए उसे तुरंत ही इस्लामिक देश घोषित कर दिया गया, लेकिन भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित न कर उसे धर्म निरपेक्ष ही बना रहने दिया गया ।


🚩दुनिया मे ईसाईयों के 157 देश है और मुसलानों के 52 देश है जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दू ही सनातन धर्म है जबसे सृष्टि का उदगम हुआ तब से है फिर भी एक भी हिन्दू देश नही है।


🚩हिंदुस्तान का अर्थ ही है ऐसा स्थान जहाँ हिन्दुओं का निवास हो तो कायदे से देखा जाए तो हिंदुस्तान में रहने वाला हर शख्स हिन्दू ही है फिर इस देश में हिन्दू राष्ट्र घोषित करने में इतनी देर क्यों ? जनता माननीय श्री नरेद्र मोदी जी से अपील करती हैं कि अल्पसंख्यकों के हक में तो बहुत फैसले ले लिए अब कुछ फैसले हिन्दुओं के हक में भी ले लीजिये ताकि 2024 में आपको वापस हम सब प्रधानमंत्री के पद पर देख पाएं ।

देश, धर्म और संस्कृति बचाने के लिए हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता है ।


🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Thursday, May 4, 2023

भगवान बुद्ध को बदनाम करने के लिए इस तरीके से रचा गया था षड्यंत्र

 भगवान बुद्ध को बदनाम करने के लिए इस तरीके से रचा गया था षड्यंत्र 


4  May 2023

http://azaadbharat.org


🚩भगवान बुद्ध का जन्म 483 और 563 ईस्वी पूर्व के बीच शाक्यगणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकटलुंबिनी, नेपाल में हुआ था । लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित था ।


🚩कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी को अपने नैहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और वहीं उन्होंने एक बालक को जन्म दिया । शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया ।


🚩कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन का युवराज था सिद्धार्थ! यौवन में कदम रखते ही विवेक और वैराग्य जाग उठा। युवान पत्नी यशोधरा और नवजात शिशु राहुल की मोह-ममता की रेशमी जंजीर काटकर महाभीनिष्क्रमण (गृहत्याग) किया। एकान्त अरण्य में जाकर गहन ध्यान साधना करके अपने साध्य तत्त्व को प्राप्त कर लिया।



🚩एकान्त में तपश्चर्या और ध्यान साधना से खिले हुए इस आध्यात्मिक कुसुम की मधुर सौरभ लोगों में फैलने लगी। अब सिद्धार्थ भगवान बुद्ध के नाम से जन-समूह में प्रसिद्ध हुए। हजारों हजारों लोग उनके उपदिष्ट मार्ग पर चलने लगे और अपनी अपनी योग्यता के मुताबिक आध्यात्मिक यात्रा में आगे बढ़ते हुए आत्मिक शांति प्राप्त करने लगे। असंख्य लोग बौद्ध भिक्षुक बनकर भगवान बुद्ध के सान्निध्य में रहने लगे। उनके पीछे चलने वाले अनुयायियों का एक संघ स्थापित हो गया।


🚩चहुँ ओर नाद गूँजने लगे :

बुद्धं शरणं गच्छामि।

धम्मं शरणं गच्छामि।

संघं शरणं गच्छामि।


🚩श्रावस्ती नगरी में भगवान बुद्ध का बहुत यश फैला। लोगों में उनकी जय-जयकार होने लगी। लोगों की भीड़-भाड़ से विरक्त होकर बुद्ध नगर से बाहर जेतवन में आम के बगीचे में रहने लगे। नगर के पिपासु जन बड़ी तादाद में वहाँ हररोज निश्चित समय पर पहुँच जाते और उपदेश-प्रवचन सुनते। बड़े-बड़े राजा महाराजा भगवान बुद्ध के सान्निध्य में आने जाने लगे।


🚩समाज में तो हर प्रकार के लोग होते हैं। अनादि काल से दैवी सम्पदा के लोग एवं आसुरी सम्पदा के लोग हुआ करते हैं। बुद्ध का फैलता हुआ यश देखकर उनका तेजोद्वेष करने वाले लोग जलने लगे। और जैसा कि संतों के साथ हमेशा से होता आ रहा है ऐसे उन दुष्ट तत्त्वों ने बुद्ध को बदनाम करने के लिए कुप्रचार किया। विभिन्न प्रकार की युक्ति-प्रयुक्तियाँ लड़ाकर बुद्ध के यश को हानि पहुँचे ऐसी बातें समाज में वे लोग फैलाने लगे। उन दुष्टों ने अपने षड्यंत्र में एक वेश्या को समझा-बुझाकर शामिल कर लिया।


🚩वेश्या बन-ठनकर जेतवन में भगवान बुद्ध के निवास-स्थान वाले बगीचे में जाने लगी। धनराशि के साथ दुष्टों का हर प्रकार से सहारा एवं प्रोत्साहन उसे मिल रहा था। रात्रि को वहीं रहकर सुबह नगर में वापिस लौट आती। अपनी सखियों में भी उसने बात फैलाई।


🚩लोग उससे पूछने लगेः “अरी! आजकल तू दिखती नहीं है?कहाँ जा रही है रोज रात को?”

वैश्या बोली “मैं तो रोज रात को जेतवन जाती हूँ। वे बुद्ध दिन में लोगों को उपदेश देते हैं और रात्रि के समय मेरे साथ रंगरलियाँ मनाते हैं। सारी रात वहाँ बिताकर सुबह लौटती हूँ।”


🚩वेश्या ने पूरा स्त्रीचरित्र आजमाकर षड्यंत्र करने वालों का साथ दिया । लोगों में पहले तो हल्की कानाफूसी हुई लेकिन ज्यों-ज्यों बात फैलती गई त्यों-त्यों लोगों में जोरदार विरोध होने लगा। लोग बुद्ध के नाम पर फटकार बरसाने लगे। बुद्ध के भिक्षुक बस्ती में भिक्षा लेने जाते तो लोग उन्हें गालियाँ देने लगे। बुद्ध के संघ के लोग सेवा-प्रवृत्ति में संलग्न थे। उन लोगों के सामने भी उँगली उठाकर लोग बकवास करने लगे।


🚩बुद्ध के शिष्य जरा असावधान रहे थे। कुप्रचार के समय साथ ही साथ सुप्रचार होता तो कुप्रचार का इतना प्रभाव नहीं होता।


🚩शिष्य अगर निष्क्रिय रहकर सोचते रह जाएं कि ‘करेगा सो भरेगा… भगवान उनका नाश करेंगे..’ तो कुप्रचार करने वालों को खुला मैदान मिल जाता है।


🚩संत के सान्निध्य में आने वाले लोग श्रद्धालु, सज्जन, सीधे सादे होते हैं, जबकि दुष्ट प्रवृत्ति करने वाले लोग कुटिलतापूर्वक कुप्रचार करने में कुशल होते हैं। फिर भी जिन संतों के पीछे सजग समाज होता है उन संतों के पीछे उठने वाले कुप्रचार के तूफान समय पाकर शांत हो जाते हैं और उनकी सत्प्रवृत्तियाँ प्रकाशमान हो उठती हैं।


🚩कुप्रचार ने इतना जोर पकड़ा कि बुद्ध के निकटवर्ती लोगों ने ‘त्राहिमाम्’ पुकार लिया। वे समझ गये कि यह व्यवस्थित आयोजन पूर्वक षड्यंत्र किया गया है। बुद्ध स्वयं तो पारमार्थिक सत्य में जागे हुए थे। वे बोलतेः “सब ठीक है, चलने दो। व्यवहारिक सत्य में वाहवाही देख ली। अब निन्दा भी देख लें। क्या फर्क पड़ता है?”


🚩शिष्य कहने लगेः “भन्ते! अब सहा नहीं जाता। संघ के निकटवर्ती भक्त भी अफवाहों के शिकार हो रहे हैं। समाज के लोग अफवाहों की बातों को सत्य मानने लग गये हैं।”

🚩बुद्धः “धैर्य रखो। हम पारमार्थिक सत्य में विश्रांति पाते हैं। यह विरोध की आँधी चली है तो शांत भी हो जाएगी। समय पाकर सत्य ही बाहर आयेगा। आखिर में लोग हमें जानेंगे और मानेंगे।”


🚩कुछ लोगों ने अगवानी का झण्डा उठाया और राज्यसत्ता के समक्ष जोर-शोर से माँग की कि बुद्ध की जाँच करवाई जाये। लोग बातें कर रहे हैं और वेश्या भी कहती है कि बुद्ध रात्रि को मेरे साथ होते हैं और दिन में सत्संग करते हैं।


🚩बुद्ध के बारे में जाँच करने के लिए राजा ने अपने आदमियों को फरमान दिया। अब षड्यंत्र करनेवालों ने सोचा कि इस जाँच करने वाले पंच में अगर सच्चा आदमी आ जाएगा तो अफवाहों का सीना चीरकर सत्य बाहर आ जाएगा। अतः उन्होंने अपने षड्यंत्र को आखिरी पराकाष्ठा पर पहुँचाया। अब ऐसे ठोस सबूत खड़ा करना चाहिए कि बुद्ध की प्रतिभा का अस्त हो जाये।


🚩षडयंत्रकारियों ने वेश्या को दारु पिलाकर जेतवन भेज दिया। पीछे से गुण्डों की टोली वहाँ गई। वेश्या के साथ बलात्कार आदि सब दुष्ट कृत्य करके उसका गला घोंट दिया और लाश को बुद्ध के बगीचे में गाड़कर पलायन हो गये।


🚩लोगों ने राज्यसत्ता के द्वार खटखटाये थे लेकिन सत्तावाले भी कुछ लोग दुष्टों के साथ जुड़े हुए थे। ऐसा थोड़े ही है कि सत्ता में बैठे हुए सब लोग दूध में धोये हुए व्यक्ति होते हैं।


🚩राजा के अधिकारियों के द्वारा जाँच करने पर वेश्या की लाश हाथ लगी। अब दुष्टों ने जोर-शोर से चिल्लाना शुरु कर दिया।


🚩”देखो, हम पहले ही कह रहे थे। वेश्या भी बोल रही थी लेकिन तुम भगतड़े लोग मानते ही नहीं थे। अब देख लिया न? बुद्ध ने सही बात खुल जाने के भय से वेश्या को मरवाकर बगीचे में गड़वा दिया। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। लेकिन सत्य कहाँ तक छिप सकता है? मुद्दामाल हाथ लग गया। इस ठोस सबूत से बुद्ध की असलियत सिद्ध हो गई। सत्य बाहर आ गया।”


🚩लेकिन उन मूर्खों को पता नहीं कि तुम्हारा बनाया हुआ कल्पित सत्य बाहर आया, वास्तविक सत्य तो आज ढाई हजार वर्ष के बाद भी वैसा ही चमक रहा है। आज बुद्ध भगवान को लाखों लोग जानते हैं, आदरपूर्वक मानते हैं। उनका तेजोद्वेष करने वाले दुष्ट लोग कौन-से नरकों में जलते होंगे क्या पता!


🚩वर्तमान में जिन संतों के ऊपर आरोप लग रहे हैं उनके भक्त अगर सच्चाई किसी को बताने जाएंगे तो दुष्ट प्रकृति के लोग तो बोलेंगे ही, लेकिन जो हिंदूवादी और राष्ट्रवादी कहलाने वाले लोग है वे भी यही बोलेंगे की कि बुद्ध तो भगवान थे, आजकल के संत ऐसे ही है, उनको इतने पैसे की क्या जरूत है? लड़कियों से क्यों मिलते हैं..??? ऐसे कपड़े क्यों पहनते हैं..??? आदि आदि…।


🚩पर उनको पता नही है कि पहले ऋषि मुनियों के पास इतनी सम्पत्ति होती थी कि राजकोष में धन कम पड़ जाता था तो ऋषि मुनियों से लोन लिया जाता था और रही कपड़े की बात तो कई भक्तों की भावना होती है तो पहन लेते हैं और लड़कियां दुःखी होती हैं तो उनके मां-बाप लेकर आते हैं तो कोई दुःख होता है तो मिल लेते हैं,उनके घर थोड़े ही बुलाने जाते हैं और भी कई तर्क वितर्क करेगे लेकिन भक्तों को दुःखी नहीं होना चाहिए। सबके बस की बात नही है कि महापुरुषों को पहचान पाये, आप अपने गुरूदेव का प्रचार प्रसार करते रहें, एक दिन ऐसा आएगा कि निंदा करने वाले भी आपके पास आयेंगे और बोलेंगे कि मुझे भी अपने गुरु के पास ले चलो।


🚩विदेशी फंडेड मीडिया ने हिंदू साधु-संतों की झूठी कहानी बनाकर समाज को परोसी, जिससे समाज गुमराह हो गया और सच्चाई न जानकर झूठ को ही सच मान बैठे, कुछ स्वार्थी नेता राष्ट्रविरोधी ताकतों से मिलकर झूठे केस में संतो को जेल भिजवा रहे हैं पर उसका भी देर सवेर खुलासा होगा क्योंकि सत्य को परेशान किया जाता है पराजित कभी नहीं…।


🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Wednesday, May 3, 2023

समलैंगिक विवाह की कल्पना मानवता के लिए अभिशाप


3  May 2023

http://azaadbharat.org


🚩समलैंगिक विवाह की सोच से शुभ विवाह जैसा पवित्र माँगिलक संस्कार कलंकित होकर मानवता के लिए अमंगलकारक होगा। यह सोच न केवल भारत जैसे राष्ट्र की दिव्य वैदिक मान्यताओं व परम्पराओं के लिए अभिशाप होगी बल्कि पारिवारिक, सामाजिक व नौतिक मूल्यों तथा संस्कारों के लिए पतन कारक व मानवीय अस्तित्व के लिए अनिष्टकारी होगी,इसलिए सरकार इस पर रोक लगाए-परमहंस डॉ. अवधेशपुरी जी महाराज (उज्जैन)


🚩समलैंगिक विवाह को वैध करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही हैं।


🚩बता दे की समलैंगिक प्रथा विदेशो में चलती है भारत एक आध्यत्मिक देश है यहाँ अप्राकृतिक संबध बनाना पाप माना जाता है, ये भगवान, शास्त्र विरुद्ध कार्य है जो मनुष्य को ही भयंकर नुकसान पहुँचाता है ।



🚩‘द चिल्ड्रंस सोसायटी’ ने साल 2015 में 14 साल के करीब 19 हजार किशोरों से मिली जानकारी का विश्लेषण किया । संस्था की रिपोर्ट बताती है कि समान लिंग के प्रति आकर्षण रखने वाले किशोरों और बाकी किशोरों के बीच खुशी के मामले में काफी अंतर था । एक चौथाई से ज्यादा समलैंगिक किशोर अपने जीवन से कम संतुष्ट थे । वहीं सर्वे में शामिल सभी लोगों के बीच यह आंकड़ा महज 10 फीसदी तक था ।


🚩करीब 40 फीसदी किशोरों में अत्यधिक डिप्रेशन के लक्षण पाए गए. रिपोर्ट कहती है कि कि सभी किशोरों में से करीब 15 फीसदी ने पिछले साल खुद को नुकसान पहुंचाया। वहीं समलैंगिक किशोरों में ऐसे लोगों की संख्या लगभग 50 फीसदी के बराबर थी ।


🚩हिन्दू धर्म में समलैंगिक संबंधों पर प्रतिबंध है इसे नैतिक पतन का लक्षण माना जाता है । इसलिए यहाँ पकड़े जाने पर समलैंगिकों को हमेशा कठोर सजा दी जाती थी ।


🚩आज धीरे-धीरे कर देश में कुछ लोग इस तरह के एक ही शारीरिक सम्बन्ध की शादियों को स्वीकार करने लगे है । समलैंगिकता को अब कानूनी दर्जा भी मिल सकता है । एक ही सेक्स के दो लोग शादी रचाकर एक साथ रहने के लिए आजाद है, लेकिन ये शादी ना केवल समाज के नियमों को तोड़ती है बल्कि प्रकृति के नियमों का भी उल्लघंन करती है ।


🚩यह प्राकृतिक कानून का उल्लंघन है :- 

शादी दो इंसानों के बीच का संबंध है, जिसे समाज द्वारा जोड़ा जाता है और उसे प्रकृति के नियमों के साथ आगे चलाया जाता है । समाज में शादी का उद्देश्य शारीरिक संबंध बनाकर मानव श्रृखंला को चलाना है । यहीं नेचर का नियम है । जो सदियों से चलता आ रहा है, लेकिन समलैंगिक शादियां मानव श्रृंखला के इस नियम को बाधित करती है ।


🚩अधर में बच्चे का भविष्य:- 

सामान्यतः बच्चों का भविष्य मां-बाप के संरक्षण में पलता है । समलैगिंक विवाह की स्थिति में बच्चों का विकास प्रभावित होता है । वो या तो मां का प्यार पाते हैं या पिता का सहारा । मां-बाप का प्यार उन्हें एक -साथ नहीं मिल पाता जो उनके विकास को प्रभावित करता है । संडे टेलिग्राफ’ अखबार के मुताबिक समलैंगिक शादी उस मूलभूत विचार को बिल्कुल खत्म कर देगा कि हर बच्चे को मां और बाप दोनों चाहिए ।


🚩समलैंगिक जीवन शैली को बढ़ावा देता है:-

एक ही सेक्स में विवाह की कानूनी मान्यता जरूरी है । ये शादियां समाज के नियम के साथ-साथ पारंपरिक शादियों को नुकसान पहुंचाती है । लोगों के सोचने के नजरिए को प्रभावित करती है । बुनियादी नैतिक मूल्यों , पारंपरिक शादी के अवमूल्यन, और सार्वजनिक नैतिकता को कमजोर करता है ।


🚩नागरिक अधिकारों का गलत इस्तेमाल:-

समलैंगिक कार्यकर्ताओं को एक ही सेक्स में शादी करने का मुद्दा 1960 के दशक में नस्लीय समानता के लिए संघर्ष का मुद्दा बन गया था । एक औरत और एक मर्द के बीच उनके रुप-रंग, लंबाई-चौड़ाई को बिना ध्यान में रखे संबंध बनाया जा सकता है, लेकिन एक ही सेक्स में शादी प्रकृति का विरोध करता है । एक ही लिंग के दो व्यक्तियों, चाहे उनकी जाति का, धन, कद अलग हो संभव नहीं होता ।


🚩बांझपन को बढ़ावा देता है:- 

प्रकृतिक शादियों में महिलाएं बच्चे को जन्म देती हैं, लेकिन समलैंगिक शादियों में दंपत्ति प्रकृतिक तौर पर बांझपन का शिकार होता है ।


🚩सेरोगेसी के बाजार को मिलता है बढ़ावा:-

एक ही लिंग की शादियों में दंपत्ति बच्चा पैदा करने में प्रकृतिक तौर पर असमर्थ होता है । ऐसे में वो सेरोगेसी या किराए की कोख का इस्तेमाल कर अपनी मुराद को पूरा करना का प्रयास करता है । समलैंगिक विवाह के कारण सेरोगेसी के बाजार को बढ़ावा मिलता है ।


🚩भगवान भी होते हैं नाराज

यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है । यह शादी भगवान द्वारा स्थापित प्राकृतिक नैतिक आदेश का उल्लंघन करती है और भगवान नाराज होते हैं ।

🚩समाज पर दबाव:-

समलैंगिक शादियां समाज पर अपनी स्वीकृति के लिए दबाव डालती है । कानूनी मान्यता के कारण समाज को जबरन इन शादियों को मंजूर करना ही होता है । जिन देशों में समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता मिल चुकी है, उन देशों में समलैंगिक शादियों से पैदा हुए बच्चों को शिक्षा देनी ही होती है । अगर कोई व्यक्ति या अधिकारी इसका विरोध करता है तो उसे विरोध का सामना करना पड़ता है ।


🚩मनुष्य को इतने भयंकर नुकसान के कारण ही समलैंगिक संबध बनाना गैरकानूनी था, पर अभी पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण आज भारत के कुछ लोग भी पशुता की ओर जाने लगे है इससे सावधान रहना जरूरी है ।


🚩भारत मे गौमाता की रक्षा के लिए कानून नहीं बना पा रहे हैं और समलैंगिक संबध के लिए कानून बना रहे हैं, कितने दुर्भाग्य की बात है ।


🚩हमें इस तथ्य पर विचार करने की आवश्यकता है कि अप्राकृतिक सम्बन्ध समाज के लिए क्यों अहितकारक है। अपने आपको आधुनिक बनाने की हौड़ में स्वछन्द सम्बन्ध की पैरवी भी आधुनिकता का परिचायक बन गया है। सत्य यह है कि इसका समर्थन करने वाले इसके दूरगामी परिणामों की अनदेखी कर देते हैं। प्रकृति ने मानव को केवल और केवल स्त्री-पुरुष के मध्य सम्बन्ध बनाने के लिए बनाया है। इससे अलग किसी भी प्रकार का सम्बन्ध अप्राकृतिक एवं निरर्थक है। चाहे वह पुरुष-पुरुष के मध्य हो या स्त्री-स्त्री के मध्य हो। वह विकृत मानसिकता को जन्म देता है। उस विकृत मानसिकता कि कोई सीमा नहीं है। उसके परिणाम आगे चलकर बलात्कार (Rape) , सरेआम नग्न होना (Exhibitionism), पशु सम्भोग (Bestiality), छोटे बच्चों और बच्चियों से दुष्कर्म (Pedophilia), हत्या कर लाश से दुष्कर्म (Necrophilia), मार पीट करने के बाद दुष्कर्म (Sadomasochism) , मनुष्य के शौच से प्रेम (Coprophilia) और न जाने किस-किस रूप में निकलता हैं। अप्राकृतिक सम्बन्ध से संतान न उत्पन्न हो सकना क्या दर्शाता है? सत्य यह है कि प्रकृति ने पुरुष और नारी के मध्य सम्बन्ध का नियम केवल और केवल संतान की उत्पत्ति के लिए बनाया था। आज मनुष्य अपने आपको उन नियमों से ऊपर समझने लगा है। जिसे वह स्वछंदता समझ रहा है। वह दरअसल अज्ञानता है। भोगवाद मनुष्य के मस्तिष्क पर ताला लगाने के समान है। भोगी व्यक्ति कभी भी सदाचारी नहीं हो सकता। वह तो केवल और केवल स्वार्थी होता है। इसीलिए कहा गया है कि मनुष्य को सामाजिक हितकारक नियम पालन का करने के लिए बाध्य होना चाहिए। जैसे आप अगर सड़क पर गाड़ी चलाते हैं तब आप उसे अपनी इच्छा से नहीं अपितु ट्रैफिक के नियमों को ध्यान में रखकर चलाते हैं। वहाँ पर क्यों स्वछंदता के मौलिक अधिकार का प्रयोग नहीं करते? अगर करेंगे तो दुर्घटना हो जायेगी। जब सड़क पर चलने में स्वेच्छा की स्वतंत्रता नहीं है। तब स्त्री पुरुष के मध्य संतान उत्पत्ति करने के लिए विवाह व्यवस्था जैसी उच्च सोच को नकारने में कैसी बुद्धिमत्ता है?


🚩समलैंगिकता एक विकृत सोच है, मनोरोग है, बीमारी है। इसका समाधान इसका विधिवत उपचार है। ना कि इसे प्रोत्साहन देकर सामाजिक व्यवस्था को भंग करना है। इसका समर्थन करने वाले स्वयं अंधेरे में हैं, ओरो को भला क्या प्रकाश दिखायेंगे। कभी समलैंगिकता का समर्थन करने वालो ने भला यह सोचा है कि अगर सभी समलैंगिक बन जायेंगे तो अगली पीढ़ी कहाँ से आयेगी?


🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Tuesday, May 2, 2023

गुरू अर्जन देव आध्यात्मिक चिंतक एवं उपदेशक के साथ ही समाज सुधारक थे...

2  May 2023

http://azaadbharat.org


🚩गुरु अर्जन देव का जन्म सिख धर्म के चौथे गुरु, गुरु रामदासजी व माता भानीजी के घर वैशाख वदी 7, (संवत 1620 में 15 अप्रैल 1563) को गोइंदवाल (अमृतसर) में हुआ था। श्री गुरु अर्जन देव साहिब सिख धर्म के 5वें गुरु है। वे शिरोमणि, सर्वधर्म समभाव के प्रखर पैरोकार होने के साथ-साथ मानवीय आदर्शों को कायम रखने के लिए आत्म बलिदान करने वाले एक महान आत्मा थे। 


🚩गुरु अर्जन देव जी की निर्मल प्रवृत्ति, सहृदयता, कर्तव्यनिष्ठता तथा धार्मिक एवं मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण भावना को देखते हुए गुरु रामदासजी ने 1581 में पांचवें गुरु के रूप में उन्हें गुरु गद्दी पर सुशोभित किया। 



 

🚩इस दौरान उन्होंने गुरुग्रंथ साहिब का संपादन किया, जो मानव जाति को सबसे बड़ी देन है। संपूर्ण मानवता में धार्मिक सौहार्द पैदा करने के लिए अपने पूर्ववर्ती गुरुओं की वाणी को जगह-जगह से एकत्र कर उसे धार्मिक ग्रंथ में बांटकर परिष्कृत किया। गुरुजी ने स्वयं की उच्चारित 30 रागों में 2,218 शबदों को भी श्री गुरुग्रंथ साहिब में दर्ज किया है। 


🚩एक समय की बात है। उन दिनों बाला और कृष्णा पंडित सुंदरकथा करके लोगों को खुश किया करते थे और सबके मन को शांति प्रदान करते थे। एक दिन वे गुरु अर्जन देव जी के दरबार में उपस्थित हुए और प्रार्थना करने लगे- महाराज...! हमारे मन में शांति नहीं है। आप ऐसा कोई उपाय बताएं जिससे हमें शांति प्राप्त होगी? 


🚩तब गुरु अर्जन देवजी ने कहा- अगर आप मन की शांति चाहते हो तो जैसे आप लोगों को कहते हो उसी प्रकार आप भी करो, अपनी कथनी पर अमल किया करो। परमात्मा को संग जानकर उसे याद रखा करो। अगर आप सिर्फ धन इकट्‍ठा करने के लालच से कथा करोगे तो आपके मन को शांति कदापि प्राप्त नहीं होगी। बल्कि उलटा आपके मन का लालच बढ़ता जाएगा और पहले से भी ज्यादा दुखी हो जाओगे। अपने कथा करने के तरीके में बदलाव कर निष्काम भाव से कथा करो, तभी तुम्हारे मन में सच्ची शांति महसूस होगी। 


🚩एक अन्य प्रसंग के अनुसार- एक दिन गद्दी पर बैठने के बाद गुरु अर्जनदेवजी के मन में विचार आया कि सभी गुरुओं की बानी का संकलन कर एक ग्रंथ बनाना चाहिए। जल्द ही उन्होंने इस पर अमल शुरू कर दिया। उस समय नानकबानी की मूल प्रति गुरु अर्जन के मामा मोहनजी के पास थी। 

 

🚩उन्होंने वह प्रति लाने भाई गुरदास को मोहनजी के पास भेजा। मोहनजी ने प्रति देने से इंकार कर दिया। इसके बाद भाई बुड्ढा गए, वे भी खाली हाथ लौट आए। तब गुरु अर्जन स्वयं उनके घर पहुंच गए। सेवक ने उन्हें घर में प्रवेश से रोक दिया। गुरुजी भी धुन के पक्के थे। वे द्वार पर ही बैठकर अपने मामा से गा-गाकर विनती करने लगे। 

 

🚩एक अन्य प्रसंग के अनुसार- एक दिन गद्दी पर बैठने के बाद गुरु अर्जनदेवजी के मन में विचार आया कि सभी गुरुओं की बानी का संकलन कर एक ग्रंथ बनाना चाहिए। जल्द ही उन्होंने इस पर अमल शुरू कर दिया। उस समय नानकबानी की मूल प्रति गुरु अर्जन के मामा मोहनजी के पास थी। 

 

🚩उन्होंने वह प्रति लाने भाई गुरदास को मोहनजी के पास भेजा। मोहनजी ने प्रति देने से इंकार कर दिया। इसके बाद भाई बुड्ढा गए, वे भी खाली हाथ लौट आए। तब गुरु अर्जन स्वयं उनके घर पहुंच गए। सेवक ने उन्हें घर में प्रवेश से रोक दिया। गुरुजी भी धुन के पक्के थे। वे द्वार पर ही बैठकर अपने मामा से गा-गाकर विनती करने लगे। 

 

🚩इस पर मोहनजी ने उन्हें बहुत डांटा-फटकारा और ध्यान करने चले गए। लेकिन गुरु पहले की तरह गाते रहे। अंततः उनके धैर्य, विनम्रता और जिद को देखकर मोहनजी का दिल पसीजा और वे बाहर आकर बोले- बेटा, नानकबानी की मूलप्रति मैं तुम्हें दूंगा, क्योंकि तुम्हीं उसे लेने के सही पात्र हो। इसके बाद गुरु अर्जन ने सभी गुरुओं की बानी और अन्य धर्मों के संतों के भजनों को संकलित कर एक ग्रंथ बनाया, जिसका नाम रखा 'ग्रंथसाहिब' और उसे हरमंदिर में स्थापित करवाया।

 

🚩अपने ऐसे पवित्र वचनों से दुनिया को उपदेश देने वाले गुरुजी का मात्र 43 वर्ष का जीवनकाल अत्यंत प्रेरणादायी रहा। सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी वे डंटकर खड़े रहे। वे आध्यात्मिक चिंतक एवं उपदेशक के साथ ही समाज सुधारक भी थे।

 

🚩गुरु अर्जन देव जी ने 'तेरा कीआ मीठा लागे/ हरि नाम पदारथ नानक मागे' शबद का उच्चारण करते हुए सन्‌ 1606 में अमर शहीदी प्राप्त की। अपने जीवन काल में गुरुजी ने धर्म के नाम पर आडंबरों और अंधविश्वास पर कड़ा प्रहार किया। आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।


🚩शक्ति और शांति के पुंज, शहीदों के सरताज, सिखों के पांचवें गुरु अर्जुनदेवजी की शहादत अतुलनीय है। मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी गुरु अर्जुनदेवजी अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे। वह दिन-रात संगत की सेवा में लगे रहते थे। श्री गुरु अर्जुनदेवजी सिख धर्म के पहले शहीद थे।


🚩गुरुजी शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी थे। वे अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे । मानव-कल्याण के लिए उन्होंने आजीवन शुभ कार्य किए।


🚩आज भी हिन्दू संतों को सताया जा रहा है, कहीं हत्या की जा रही है तो कहीं झूठे केस बनाकर जेल भिजवाया जा रहा है; ऐसा लग रहा है कि अभी भी मुगल काल चल रहा है जो  हिन्दू साधु-संत

 ईसाई धर्मान्तरण रोकते हैं, विदेशी प्रोडक्ट बन्द करवाकर स्वदेशी अपनाने के लिए करोड़ों लोगो को प्रेरित करते है, विदेशों में जाकर हिन्दू धर्म की महिमा बताते हैं, करोड़ों लोगों का व्यसन छुड़वाते हैं, करोड़ों लोगों को सनातन हिन्दू संस्कृति के प्रति प्रेरित करते हैं, जन-जागृति लाते हैं, गरीबों में जाकर जीवनोपयोगी वस्तुओं का वितरण करते हैं, गौशालायें खोलते हैं उन महान संतों को विदेशी ताकतों के इशारे पर मीडिया द्वारा बदनाम करवाकर झूठे केस में जेल भिजवाया जा रहा है। इससे साफ पता चलता है कि मुगल तो मिट गये लेकिन आज भी उनकी नस्लें देश में हैं जो ये षड्यंत्र करवा रही हैं।


🚩वर्तमान में भी हिन्दू समाज को जगे रहना जरूरी है नहीं तो विदेशी ताकतें देश को गुलाम बनाने की ताक में बैठी हैं।


🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Monday, May 1, 2023

अब शिक्षा व्यवसाय बन गई है ???

30 Apirl 2023

http://azaadbharat.org


🚩शिक्षा का अधिकार अधिनियम 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य बनाता है। अब शिक्षा व्यवसाय बन गई है। अपने बच्चों के लिए अच्छी नौकरी पाने के बहाने मध्य वर्ग के पास भारी शुल्क और विशेष दुकानों से महंगी किताबें देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि सरकारी स्कूलों में कर्मचारियों और बुनियादी सुविधाओं की कमी है। शिक्षा को आम आदमी तक पहुंचाने के लिए मन मर्जी से फीस और खर्च में बढ़ोतरी पर रोक लगाने के लिए अध्यादेश पारित किया जाना चाहिए। इससे स्कूलों द्वारा मांगे जाने वाले मन माने खर्चों पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी और एनसीईआरटी (NCERT) को अनिवार्य किया जाना चाहिए। 


🚩अधिकारियों को अत्यधिक फीस वसूलने वाले और विशेष दुकानों से किताबें खरीदने के लिए मजबूर करने वाले स्कूलों के खिलाफ शिकंजा कसना चाहिए। किफायती और एक समान शुल्क संरचना होनी चाहिए।



🚩केवी में पांचवीं की पुस्तकों का सेट 600 रुपए का तो निजी स्कूल में 3000  का ।


🚩नवीन शिक्षा सत्र शुरू होते ही (CBSE) सीबीएसई स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं का अभिभावकों को लूटने का खेल शुरू हो गया है। पहले यह खेल स्कूलों से ही होता था, लेकिन अब स्कूल संचालकों ने अपनी दुकानें तय कर दी है। शासन के आदेश स्कूलों में (NCERT) एनसीइआरटी की पुस्तकें चलाने के बावजूद निजी प्रकाशकों की महंगे दामों की पुस्तकें अपने कोर्स में शामिल की गई है। इन पुस्तकों की कीमत अभिभावकों को चुकाना पड़ रही है।हालत यह है कि केंद्रीय विद्यालय में जहां पांचवी की पुस्तकों का पूरा सेट 600 रुपए में मिलता हैं तो वहीं सीबीएसई (CBSE) स्कूलों में यह पूरा सेट 3000 के लगभग पहुंच रहा हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि किस तरह से अभिभावकों की जेब हल्की हो रही है। पुस्तक विक्रेता इन पुस्तकों के साथ साल भर की कापियां और स्टेशनरी आदि थमा रहे हैं। कोई अभिभावक अकेले पुस्तक खरीदना चाहे तो उसके लिए मुश्किल होगा।


🚩 दुकानदार अकेले पुस्तक नहीं देते हैं। वहीं जिम्मेदार अधिकारी इन स्कूल संचालकों और पुस्तक विक्रेताओं पर लगाम कसने पर नाकाम नजर आ रहे हैं।


🚩हर साल बदल जाती है किताबें

निजी स्कूलों में हर साल किताबें बदल दी जाती है। किताबों में बदलाव सिर्फ चैप्टर भर में किया जाता है। 1- 2 चैप्टर पुस्तक में घटा या बड़ा दिए जाते हैं। पुस्तक पर नया कवर कर उसे पुन: बाजार में उतार दिया जाता है। इस स्थिति के चलते पुरानी पुस्तकों का उपयोग अन्य विद्यार्थी नहीं कर पाते हैं। इससे अभिभावकों पर भी आर्थिक बोझ बढ़ता है। जबकि एनसीइआरटी (NCERT) के पुस्तकों के साथ ऐसा नहीं होता है। इन पुस्तकों का आने वाले 3-4 सालों तक विद्यार्थी उपयोग कर सकते हैं। वहीं स्कूलों से बच्चों पर पुस्तकें खरीदने के लिए दबाव बनाया जाता हैं। मजबूरी में अभिभावक पुस्तक खरीदते हैं।


🚩NCERT (एनसीइआरटी) की पुस्तकें पढऩे के निर्देश

केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में प्रदेश के सभी निजी स्कूलों को एनसीइआरटी से संबंद्ध पाठ्यक्रमों की पुस्तकों से अध्ययन कराए जाने के निर्देश जारी किए थे, लेकिन इसका परिपालन कोई भी निजी स्कूल नहीं कर रहा है। निजी प्रकाशकों से कमीशन की सांठगाठ के चलते ज्यादातर प्रायवेट स्कूल निजी प्रकाशकों की पुस्तकें ही संचालित कर रहे हैं। जिसके कारण निजी प्रकाशकों और स्कूलों को मोटा मुनाफा मिल रहा है। यहां तक की कान्वेंट जैसे स्कूलों में भी निजी प्रकाशकों की पुस्तकें चलाई जा रही है।


🚩पुस्तकों के साथ स्टेशनरी भी थमा रहे

पुस्तक विक्रेता अभिभावकों को पुस्तकों के साथ कॉपियां और स्टेशनरी भी थमा देते हैं। जिसके कारण कॉपियों और स्टेशनरी का खर्चा पुस्तकों के साथ अलग से जुड़ जाता है। यदि स्टेशनरी या काफियां लेने से अभिभावक इनकार करते हैं तो पुस्तकें नहीं दी जाती है। बताया गया कि पुस्तकों के सेट छात्रों की दर्ज संख्या के आधार पर स्कूलों से ही बनते हैं। चूंकि स्कूलों में पुस्तक -कापियां बेचने पर प्रतिबंध हैं इसलिए दुकानदारों के माध्यम से पुस्तकें कमिशन के आधार पर बेची जाती है। इसमें दुकानदार अपनी तरफ से कॉपियां और स्टेशनरी की सामग्री भी अलग से जोड़कर बेच देते हैं।


🚩पुस्तकों की कीमतों में जमीन आसमान का अंतर

एनसीइआरटी और निजी प्रकाशको के पुस्तकों की कीमतों में जमीन आसमान का अंतर देखा जा सकता है। निजी स्कूलों में जहां कक्षा पहली की पुस्तकों की कीमत 1800 से 2100 रुपए तक में आ रही हैं। वहीं केंद्रीय विद्यालय में कक्षा पहली की पुस्तकें महज 500 रुपए में आती है।ऐसे में पुस्तकों की कीमत को लेकर यह अंतर ही अभिभावकों की जेबे हल्की कर रहा है। अभिभावकों का कहना था कि जब स्कूलों में एनसीइआरटी की पुस्तकें संचालित करने के निर्देश हैं तो फिर वे निजी प्रकाशकों की इतनी महंगी पुस्तकें क्यों खरीदवा

रहे हैं जिसका एक साल बाद कोई और बच्चा उपयोग ही नहीं कर पाए। पुस्तकें एक साल बाद किलो के रेट में रद्दी में बिक जाएंगी।


🚩पुस्तकों को लेकर सीबीएसई की क्या गाइड लाइन हैं इसे निकालकर नियमानुसार ही पुस्तकों की बिक्री कराई जाएगी। यदि कोई नियम का पालन नहीं कर रहा हैं तो कार्रवाई की जाएगी-डॉ अनिल कुशवाह, जिला शिक्षा अधिकारी


🚩सरकार को सस्ती शिक्षा देनी चाहिए


🚩सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य की जानी चाहिए। ये किताबें सस्ती हैं और खुले बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं। अगर सरकार ने सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य कर दी हैं, तो इससे भ्रष्टाचार को कम करने में मदद मिलती है। सरकार का प्राथमिक उद्देश्य निजी और सरकारी स्कूलों में सभी के लिए सस्ती शिक्षा होना चाहिए। हर स्कूल में एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य कर यह समान नागरिक संहिता की दिशा में उचित कदम है।


🔺 Follow on


🔺 Facebook

https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/


🔺Instagram:

http://instagram.com/AzaadBharatOrg


🔺 Twitter:

 twitter.com/AzaadBharatOrg


🔺 Telegram:

https://t.me/ojasvihindustan


🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg


🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

सभी माता पिता अपनी बेटियों को 'द केरल स्टोरी' फिल्म ज़रूर दिखाए, जिससे उन्हें कल पछताना न पड़े...

1  May 2023

http://azaadbharat.org


🚩'द केरल स्टोरी' फिल्म ट्रेलर को देखकर ऐसा लगता है कि यह फिल्म काफी दिलचस्प होने वाली है। 5 मई को रिलीज होने वाली फ़िल्म 'द केरल स्टोरी' का अभी से ही लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। फिल्म की ट्रेलर की शुरुआत में एक हंसता-खेलता परिवार नजर आ रहा है, जिसमें एक मां अपनी बेटी पर प्यार लुटाती नजर आ रही हैं लेकिन ये खुशी ज्यादा देर तक नहीं रहती है आगे ऐसे ऐसे सीन्स दिखाए गए हैं कि आप दंग रह जाएंगे। शालिनी उन्नीकृष्णन नामक लड़की जिसका धर्मांतरण हो जाता है और उसे इस्माल कुबूल करवाया जाता है बाद में वो आतंकवाद की दुनिया में एंट्री कर लेती है। इस मूवी के ट्रेलर को देखकर ऐसा लगता है कि मानों ये आज के केरल की असल कहानी बयां कर रहा है।


🚩द केरल स्टोरी में 32 हजार हिन्दू और ईसाई लड़कियों को ब्रेनवाश कर धर्मांतरित कराने, ISIS के लिए सेक्स स्लेव बनाकर जेहादी पैदा करने की मशीन बनाने के खतरनाक मॉड्यूल को दिखाया गया है। फिल्म से इतर बात करें तो केरल की कहानियां बहुत हद तक सच्ची हैं। केरल के कई मामले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर चुके हैं। ट्रेलर में भी मेकर्स ने केरल, लव जिहाद और इस्लामिक आतंकवाद के आसपास पूरे मॉड्यूल को दिखाया गया है। मेकर्स का दावा है कि तथ्य सही हैं। 





🚩केरल में लंबे वक्त से लव जिहाद बना हुआ है सामाजिक-राजनीतिक मुद्दा 

लव जिहाद का मसला भारतीय समाज में बहस का विषय है। खासकर केरल में यह एक बहुत बड़ा सामाजिक मुद्दा बन चुका है। केरल PFI का गढ़ भी है। आइए ट्रेलर के 4 सीन्स के बारे में बात करते हैं जो किसी को भी हिलाकर रखने के लिए पर्याप्त हैं। 


🚩1. कट्टरपंथी मौलाना कैसे गैर मुस्लिम लड़कियों को बनाते हैं शिकार'

द केरल स्टोरी का ट्रेलर वीडियो देखेंगे तो उसमें एक मौलाना ये कहता नजर आ रहा है कि उन्हें (गैर मुस्लिम लड़कियों को) करीब लाओ, जिस्मानी रिश्ते बनाओ, जरूरत पड़े तो उन्हें प्रेग्नेंट कर दो।  


🚩2. दूसरे धर्म को नीचा दिखाकर उठाते हैं फायदा

ट्रेलर में नजर या रहा कि तीन हिन्दू लड़कियां अपनी मुस्लिम दोस्त के साथ खाना खा रही हैं। मुस्लिम लड़की तीनों से पूछती है कि तुम लोग कौन से गॉड को मानते हो। तीनों में से एक लड़की कहती है कि शिव बड़े भगवान हैं। इसपर मुस्लिम लड़की कहती है कि जो भगवान अपनी पत्नी के मरने पर आम इंसान की तरह रोता हो भला वो भगवान कैसे हो सकता है'


🚩3. ब्रेनवाश के लिए तरह-तरह की फॉल्टलाइन का इस्तेमाल 

ट्रेलर के एक सीन में नजर या रहा है कि लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार होता है। इसके बाद मुस्लिम लड़की तीनों का ये कहकर ब्रेनवॉश करती है कि हिजाब पहनने वाली किसी भी लड़की के साथ ना तो कभी रेप होता है ना ही कोई छेड़ता है। क्योंकि अल्लाह उनकी सुरक्षा करता है।

 

4. 🚩 20 साल में केरल बन जाएगा इस्लामिक स्टेट


🚩ट्रेलर के एक सीन में दिखाया गया है कि एक किरदार कहती है कि हमारे एक्स सीएम ने भी बोला है कि अगले 20 सालों में केरल इस्लामिक स्टेट बन जाएगा।


🚩द केरल स्टोरी में अदा शर्मा ने शालिनी उन्नीकृष्णन का किरदार निभाया है। शालिनी का ब्रेनवाश कर उसे फातिमा बना दिया जाता है और धर्मांतरण और निकाह के बाद वह ISIS के कैंप पहुंच जाती है। फिल्म की कहानी में दिखाया गया है कि कैसे लव जिहाद का खतरनाक मॉड्यूल काम करता है।  


🚩एक्ट्रेस ने बताया कि फिल्म की कहानी सुनने के बाद वह कई रात तक सो नहीं सकी थीं।


🚩अदा शर्मा ने कहा था, जब मुझे कहानी सुनाई गई तो यह इतना डरावना था कि मैं इसके बारे में सोचते हुए कई रातों तक सो नहीं पाई। मैं आभारी हूं कि मुझे इस तरह की फिल्म में शामिल होने का मौका मिला, इस दिल दहला देने वाली कहानी को बताने का मौका मिला।


🚩फिल्म को लेकर चल रहे विवाद पर एक्ट्रेस ने कहा था कि निर्माता विपुल शाह और सुदीप्तो सेन ने कई प्रतिष्ठित फिल्में बनाई हैं और वे सभी आंकड़े पेश करेंगे। जब लोग फिल्म देखेंगे तो उनके सभी सवालों का जवाब दिया जाएगा और उनकी शंकाएं दूर हो जाएंगी।

 

🚩फिल्‍ममेकर Vipul Shah ने बताया की हमारी फिल्‍म पीड़‍ित लड़कियों की सच्‍ची कहानी है'वह कहते हैं, 'The Kerala Story एक लड़की की सच्ची कहानी पर आधारित है, जो धर्म परिवर्तन कर सीरिया जा रही थी। रास्ते में, उसे एहसास हुआ कि यह एक गलती थी और वह भाग निकली। आज, वह अफगानिस्तान की जेल में है। अफगानिस्तान की जेलों में कई लड़कियां हैं। कम से कम चार रिकॉर्ड में हैं। तो, इस तरह हमें इस कहानी के बारे में पता चला और फिर हमने अपनी र‍िसर्च शुरू की। अंत में हमने फिल्‍म में तीन ऐसी लड़कियों की कहानी ली है, जो चालाकी से धर्मांतरण की शिकार हो गईं और उनका जीवन व्यावहारिक रूप से बर्बाद हो गया। यह एक ऐसी कहानी है, जो कि सभी