Tuesday, June 13, 2023

मेघालय हाइकोर्ट ने क्यों कहा , कि " भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करें एवं इस्लामिक देश बनने से बचाएं...?

 मेघालय हाइकोर्ट ने क्यों कहा , कि " भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करें एवं इस्लामिक देश बनने से बचाएं...?

13June 2023

🚩पूरे विश्व में एकमात्र भारत ही ऐसा राष्ट्र है जहाँ हिन्दुओं की बहुलता है, इसे ध्यान में रखा जाए तो भारत को तुरंत हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए। यदि इसका दूसरा पक्ष देखें तो अब से 77 साल पहले 1947 में जब भारत आजाद हुआ था तो साथ ही उसका विभाजन भी किया गया था और एक नया देश पाकिस्तान बनाया गया। भारत के विभाजन की शर्त पर ही तो स्वतंत्रता मिली थी हमें... और यह विभाजन धर्म के आधार पर ही हुआ था ।


🚩चूँकि पाकिस्तान मुस्लिमों की मांग के कारण बनाया गया था, इसलिए इसे तुरंत ही इस्लामिक देश घोषित कर दिया गया, लेकिन भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित न कर उसे धर्म निरपेक्ष ही बना रहने दिया गया ।


🚩दुनिया में इसाइयों के 157 देश हैं और मुसलमानों के 52 देश हैं,परन्तु हिन्दुओं का 1 देश भी नहीं । जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दू धर्म ही सनातन धर्म है , जबसे सृष्टि का उद्गम हुआ प्रत्येक जन्मने वाला मनुष्य पहले तो वह सनातन का अंश है और बाद में ये थोपे हुए जाति , मत , पंथ व मजहब...जैसे इसाई, मुस्लिम, पारसी, यहूदी आदि-आदि ।





🚩भारत की धर्म निरपेक्षता उसके लिए ही गले की फांस बन जाएगी ये किसे मालूम था !!!


🚩आज भारत में अल्पसंख्यकों के नाम पर मुसलमानों,इसाइयों आदि को तो खूब सारी सुविधाएं दी जा रही हैं, लेकिन अपने ही देश में हिन्दू बेगाना हो गया है । आज हिन्दू बाहुल्य राष्ट्र में ही हिन्दू सबसे अधिक शोषित है...!

ऐसे में एक बात तो तय है , कि यदि हिन्दुओं की रक्षा करनी है तो यथाशीघ्र भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए ।


🚩पहले इस बात को सिर्फ हिन्दू संगठन ही कहा करते थे । आज बड़े-बड़े पदों पर आसीन बुद्धिजीवी भी इसका समर्थन करते हैं। मेघालय उच्च न्यायलय के न्यायधीश श्री एस.आर. सेन ने हिन्दुओं तथा गैर मुस्लिम समुदाय की गंभीर हालत को देखते हुए भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करने की अपील केंद्र सरकार से की थी ।


🚩आपको बता दें कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से आने वाले हिन्दू, पारसी, सिख आदि समुदायों को भारत की नागरिकता पाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है ।


🚩आश्चर्य की बात है , भारत एक ऐसा देश है जहाँ गैर हिन्दू या हिंदुस्तान को गालियां देने वाले और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले लोग तो काफी ऐशो आराम की ज़िन्दगी जीते हैं । लेकिन बहुसंख्यक समुदाय यानि की हिन्दुओं ( सिख तथा अन्य गैर मुस्लिम समेत सभी हिन्दू ) को अपने ही देश में रहने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।


🚩प्रधानमंत्री जी से मेघालय हाइकोर्ट की शीघ्र कानून बनाने की अपील 


🚩मेघालय हाईकोर्ट ने देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व संसद से ऐसा कानून लाने की सिफारिश की थी, जिससे पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान से आने वाले हिंदुओं , जैनो , सिखों व बौद्धों आदि को किसी बेवजह के सवालों के बिना सिर्फ़ आवश्यक दस्तावेजों के आधार पर भारत की नागरिकता मिल सके ।

गौरतलब है...कोर्ट ने फैसले में यह भी लिखा है कि " विभाजन के समय भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित कर दिया जाना चाहिए था, लेकिन हम धर्मनिरपेक्ष देश बने रहे ।

 

🚩दरअसल हुआ ये कि , अमन राणा नामक एक व्यक्ति ने एक याचिका दायर की थी । जिसमें उन्होंने बताया कि , उन्हें निवास प्रमाण-पत्र देने से मना कर दिया गया है । इसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने फैसला दिया । कोर्ट के फैसले में जस्टिस एस.आर. सेन ने कहा कि , " उक्त तीनों पड़ोसी देशों में उपरोक्त लोग आज भी प्रताड़ित हो रहे हैं और उन्हें सामाजिक सम्मान भी प्राप्त नहीं हो रहा है । कोर्ट ने कहा कि इन लोगों को कभी भी देश में आने की अनुमति दी जाए । सरकार इन्हें पुनर्वासित कर सकती है और भारत का नागरिक घोषित कर सकती है । "


🚩भारतीय इतिहास का किया उल्लेख :- 

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भारतीय इतिहास को उल्लेखित करते हुए कहा , कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश था । पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान का कोई वजूद नहीं था । ये सब भारत में शामिल थे और इन पर हिन्दू साम्राज्य का शासन था । कोर्ट ने कहा कि मुगल जब यहां आए तो उन्होंने भारत के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया । इसी दौरान बड़ी संख्या में धर्म परिवर्तन हुए । इसके बाद अंग्रेज यहां आए और शासन करने लगे । 


🚩भारत-पाक विभाजन के इतिहास के बारे में कोर्ट ने फैसले में लिखा...  " यह एक अविवादित तथ्य है , कि विभाजन के वक्त लाखों की संख्या में हिन्दू व सिख मारे गए थे । उन्हें प्रताड़ित किया गया था , उनकी सम्पत्ति पर जबरन कब्जे किए गए और महिलाओं का बलात्कार किया गया था ।

🚩कोर्ट ने लिखा कि , भारत का विभाजन ही धर्म के आधार पर हुआ था । विभाजन के साथ ही पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित कर दिया था । ऐसे में भारत को भी हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए था , लेकिन इसे धर्मनिरपेक्ष बनाए रखा गया । जिसका दण्ड हमें अभी तक भुगतना पड़ रहा है ।


🚩पीएम मोदी पर जताया भरोसा :-


🚩इतना कहने के पश्चात जज सेन ने मोदी सरकार को संबोधित करते हुए कहा , कि हमें विश्वास है , वो ( प्रधानमंत्री जी ) भारत को मुस्लिम राष्ट्र नहीं बनने देंगे । उन्होंने लिखा कि किसी भी व्यक्ति को भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए । जज ने उच्च न्यायालय में केंद्र की सहायक सॉलिसीटर जनरल ए. पॉल को फैसले की प्रति प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री व विधि मंत्री को शीघ्रता से अवलोकन करने के लिए सौंपने व समुदायों के हितों की रक्षा का कानून लाने को लेकर जरूरी कदम उठाने की बात कही है । 


🚩न्यायाधीश एस.आर. सेन की बात से यह तो साफ़ हो ही गया कि भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करना कितना आवश्यक है।


🚩भारत एक हिन्दू बाहुल्य देश है । एक हिन्दू कभी किसी अन्य धर्म के लोगों के लिए खतरे का विषय नहीं बन सकता है और ना ही हिन्दुओं से किसी अन्य धर्म के लोगों को कोई खतरा ही हो सकता है । किन्तु यदि भारत को हिन्दू राष्ट्र न घोषित किया गया , तो इससे हिन्दुओं को जरुर खतरा हो सकता है ।


🚩 न्यायमूर्ति एस.आर. सेन जी की बात विचारणीय है । यदि हिन्दू बाहुल्य देश में हिन्दुओं का भरोसा जीतना हो तो मोदी सरकार को शीघ्र ही भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए । 


🚩आज भारत का हिन्दू राष्ट्र घोषित होना ही अनेकों सामाजिक समस्याओं का एकमात्र हल है ।

...जिन्हें इस देश में हिन्दू राष्ट्र नहीं चाहिए, वे स्वेच्छा से पाकिस्तान जा सकते हैं ।


🚩हिन्दुस्तान का अर्थ ही है , ऐसा स्थान जहाँ हिन्दुओं का निवास हो... तो कायदे से देखा जाए तो हिन्दुस्तान में रहने वाला हर शख्स हिन्दू ही है । फिर इस देश को हिन्दू-राष्ट्र घोषित करने में इतनी देर क्यों ?

हम माननीय श्री नरेद्र मोदी जी से अपील करते हैं कि , " अल्पसंख्यकों के हक में तो बहुत फैसले ले लिए... अब कुछ फैसले हिन्दुओं के हक में भी ले लीजिए । ताकि 2024 में आपको वापस हम सब प्रधानमंत्री के पद पर देख पाएं ।


🚩देश, धर्म और संस्कृति बचाने के लिए हिन्दू-राष्ट्र की ही आवश्यकता है ।


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Monday, June 12, 2023

अपने बच्चों को कैसे महान बनाए यह राजमाता माता जीजाबाई सीखिए


12 June 2023

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🚩जननी जने तो भक्त जने या दाता या शूर । नहीं तो जननी बांझ रहे, काहे व्यर्थ गंवाए नूर । अर्थात : हे जननी, या तो भक्त को जन्म दे या फिर दानवीर या शूरवीर संतान को जन्म दे ! माँ तेरी कोख से जन्म लेने वाले बच्चे को ऐसे संस्कारों से ओतप्रोत कर दे कि वह भक्त, दानी और शूरवीरता से कुल और देश का नाम रोशन कर दे ! माता जीजा बाई ने अपने बेटे वीर शिवाजी को जन्म से ही ऐसे संस्कार दिए जिससे वह हिन्दू साम्राज्य का सम्राट बना, माँ की मार्गदिशा में उन्होंने हिन्दू साम्राज्य स्थापित करने की शुरुआत छोटी उम्र में ही कर दी थी । आज उस पवित्र संकल्प वाली  वीरांगना राजमाता जीजा बाई का पुण्यतिथि है।


🚩भारत के गौरव क्षत्रपति शिवाजी की माता जीजाबाई का जन्म सन् 1597 ई. में सिन्दखेड़ के अधिपति जाघवराव के यहां हुआ । जीजाबाई बाल्यकाल से ही धार्मिक तथा साहसी स्वभाव की थी । सहिष्णुता का गुण तो उनमें कूट-कूटकर भरा हुआ था । इनका विवाह मालोजी के पुत्र शाहजी भोंसले से हुआ । प्रारंभ में इन दोनों परिवारों में मित्रता थी, किंतु बाद में यह मित्रता कटुता में बदल गई; क्योंकि जीजाबाई के पिता मुगलों के पक्षधर थे।


🚩एक बार जाधवराव मुगलों की ओर से लड़ते हुए शाहजी का पीछा कर रहे थे । उस समय जीजाबाई गर्भवती थी । शाहजी अपने एक मित्र की सहायता से जीजाबाई को शिवनेर के किले में सुरक्षित कर आगे बढ़ गये । जब जाधवराव शाहजी का पीछा करते हुए शिवनेर पहुंचे तो उन्हें देख जीजाबाई ने पिता से कहा- "मैं आपकी दुश्मन हूं, क्योंकि मेरा पति आपका शत्रु है । दामाद के बदले कन्या ही हाथ लगी है, जो कुछ करना चाहो, कर लो ।"


🚩इस पर पिता ने उसे अपने साथ मायके चलने को कहा, किंतु जीजाबाई का उत्तर था- "आर्य नारी का धर्म पति के आदेश का पालन करना है ।"


🚩10 अप्रैल सन् 1627 को इसी शिवनेर दुर्ग में जीजाबाई ने शिवाजी को जन्म दिया । पति की उपेक्षा के कारण जीजाबाई ने अनेक असहनीय कष्टों को सहते हुए बालक शिवा का लालन-पालन किया । उसके लिए क्षत्रिय वेशानुरूप शास्त्रीय-शिक्षा के साथ शस्त्र-शिक्षा की व्यवस्था की । उन्होंने शिवाजी की शिक्षा के लिए दादाजी कोंडदेव जैसे व्यक्ति को नियुक्त किया । स्वयं भी रामायण, महाभारत तथा वीर बहादुरों की गौरव गाथाएं सुनाकर शिवाजी के मन में हिन्दू-भावना के साथ वीर-भावना की प्रतिष्ठा की । 


🚩वह प्राय: कहा करती- 

'यदि तुम संसार में आदर्श बनकर रहना चाहते हो स्वराज की स्थापना करो । देश से यवनों और विधर्मियों को निकालकर भारत की रक्षा करो।'


🚩शाहजी ने दूसरा विवाह कर लिया था । कई वर्षों बाद शाहजी ने जीजाबाई को शिवाजी सहित बीजापुर बुलवा लिया था, किंतु उन्हें पति का सहज स्वाभाविक प्रेम कभी प्राप्त नहीं हुआ । जीजाबाई ने अपने मान,अपमान को भुलाकर सारा ध्यान अपने पुत्र शिवाजी पर केन्द्रित कर दिया । शाह जी की मृत्यु पर पति-परायणा जीजाबाई सती होना चाहती थी, किंतु शिवाजी के यह कहने पर कि “माता! तुम्हारे पवित्र आदर्शों और प्रेरणा के बिना स्वराज्य की स्थापना संभव नहीं होगी । धर्म पर विधर्मियों का दबाव बढ़ जायेगा ।" माता ने पुत्र की भावना तथा भविष्य के प्रति जागरूक दृष्टि का परिचय देते हुए सती होने का विचार त्याग दिया ।


🚩औरंगजेब ने जब धोखे से शिवाजी को उनके पुत्र सहित बंदी बना लिया था, तब शिवाजी ने भी कूटनीति से मुक्ति पाई और वे जब संन्यासी के वेश में अपनी मां के सामने भिक्षा लेने पहुंचे तो मां ने उन्हें पहचान लिया और प्रसन्नचित होकर कहा- 'अब मुझे विश्वास हो गया है कि मेरा पुत्र स्वराज्य की स्थापना अवश्य करेगा । पद-पादशाही आने में अब कुछ भी विलंब नहीं है।'


🚩अंत में जीजाबाई की साधना सफल हुई । शिवाजी ने महाराष्ट्र के साथ भारत के एक बड़े भाग पर स्वराज्य की स्वतंत्र पताका फहराई, जिसे देखकर जीजाबाई ने शांतिपूर्वक परलोक प्रस्थान किया । 

वस्तुत: जीजाबाई स्वराज्य की ही देवी थीं ।


🚩बालक के निर्माण में माता-पिता दोनों का ही महत्त्व है परन्तु माता का महत्त्व पिता से बहुत अधिक है। माता के जैसे विचार होते हैं बालक पर निश्चित रुप से वैसा ही प्रभाव पड़ता है।


🚩आज माता और पिता दोनों ही गर्भ में बच्चे का निर्माण करनेवाली बात को भूल गये हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने बालकों के निर्माण के लिए सोलह संस्कारों का विधान किया था। इनमें से तीन तो बालक के उत्पन्न होने से पूर्व ही हो जाते थे। आज संस्कार समाप्त हो गये। विवाह का उद्देश्य कीड़े-मकोड़े उत्पन्न करना नहीं है। वैदिक धर्म में विवाह विलास के लिए भी नहीं होता था। परन्तु आज विवाह विलास और केवल विलास की वस्तु बन गई है। विवाह को उद्दाम भोग का 'पासपोर्ट' और नारी को बच्चा उत्पन्न करनेवाली मशीन समझ लिया गया है। इसका परिणाम आज खेल-खेल में बच्चे उत्पन्न हो रहे हैं। आज केबच्चे बिना बुलाये अतिथि (Uninvited guests) हैं। जब आदर्श सन्तान को बुलाने के लिए कोई तैयारी नहीं, कोई संकल्प नहीं कि कैसी सन्तान उत्पन्न करनी है तब श्रेष्ठ सन्तान उत्पन्न कैसे हो सकती है? सन्तान का निर्माण माता-पिता के हाथ में है। 


🚩निष्कर्ष यह है कि सन्तान को श्रेष्ठ बनाने के लिए गर्भाधान से पूर्व ही बहुत सावधानी और ध्यान देने की आवश्यकता है अन्यथा सन्तान सुसन्तान नहीं बन सकेगी।


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Sunday, June 11, 2023

अमरनाथ शिवलिंग की खोज किसने की ??? जानिए

11 June 2023

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🚩जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में स्थित है अमरनाथ मंदिर, जो हिन्दुओं की श्रद्धा का एक बड़ा प्रतीक है। अमरनाथ शिवलिंग को ‘बाबा बर्फानी’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि भगवान शिव का रूप बर्फ से ही यहाँ प्रकट होता है। ये एक स्वयंभू शिवलिंग है, अर्थात स्वयं प्रकट होने वाला। लिद्दर घाटी में स्थित इस गुफा के बारे में मान्यता है कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का ज्ञान दिया था। भगवान अमरनाथ की पूजा हिन्दू धर्म में सदियों से होती आ रही है।


🚩लेकिन, कुछ लोगों ने हिन्दुओं के ऊपर इस्लाम के अहसान गिनने के लिए ये कहना शुरू कर दिया कि अमरनाथ शिवलिंग की खोज बूटा मलिक नाम के एक चरवाहे ने की, उससे पहले इसके बारे में किसी को पता नहीं था। ये सरासर झूठ है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में अमरनाथ धाम का जिक्र है। कहानी कुछ यूँ कही जाती है कि गड़रिया बूटा मलिक एक बार इधर अपनी भेड़ें चराते हुए फँस गया था, तभी उसकी मुलाकात एक साधु से हुई।


🚩साधु ने उसे कोयले से भरा एक थैला दिया, लेकिन जब घर जाकर उसने थैले को खोला तो उसमें से हीरे निकले। इस चमत्कार को देख कर वो वापस इस गुफा में आया। लेकिन, जिस साधु को धन्यवाद देने को आया था वो नदारद था और वहाँ उसे एक शिवलिंग दिखाई दिया। इस कहानी के सामने आने के बाद अमरनाथ गुफा में चढ़ने वाले चढ़ावे का एक अंश बूटा मलिक के परिवार को दिए जाने की परंपरा चल पड़ी। हालाँकि, इस कहानी का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है।


🚩लेकिन, कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने बार-बार इसे इस तरह से दिखाना शुरू कर दिया कि ये सेकुलरिज्म का बहुत बड़ा उदाहरण है और मुस्लिमों ने हिन्दुओं पर एहसान किया। ‘हमारे बूटा मलिक ने तुम्हारे अमरनाथ मंदिर को खोजा’ – उनका मुख्य उद्देश्य हिन्दुओं को ये एहसास दिलाने का रहता है। जुलाई 1898 में स्वामी विवेकानंद ने भी अमरनाथ की यात्रा की थी। उन्होंने बताया था कि कैसे विभिन्न वेशभूषा वाले देश भर के लोग इस यात्रा में शामिल रहते थे।


🚩आपको सबसे पहले तो ये जानना चाहिए कि कल्हण द्वारा रचित ‘राजतरंगिणी’, जिसमें जम्मू कश्मीर के राजाओं का हजारों वर्षों का इतिहास वर्णित है, उसमें भी अमरनाथ मंदिर के बारे में बताया गया है। ‘राजतरंगिणी’ 12वीं शताब्दी में लिखी गई थी। इसमें कहीं बूटा मलिक की कहानी का जिक्र नहीं मिलता। इस पुस्तक में राजाओं के बारे में क्रमवार विवरण दिया गया है। इस पुस्तक में अमरनाथ की पथयात्रा का भी जिक्र है, जिसका अर्थ है कि गुफा के लिए यात्रा की परंपरा अति प्राचीन है।


🚩इस क्रम में शेषनाग झील के बारे में भी ‘राजतरंगिणी’ में बताया गया है। कहा जाता है कि इस झील का सीधा कनेक्शन पाताल लोक से है। अगर आप कल्हण द्वारा रचित श्लोक को देखेंगे तो पता चलेगा कि अमरनाथ शिवलिंग को ‘अमरेश्वर’ भी कहा जाता था। कल्हण बताते हैं कि सुस्रवास नामक नाग ने दूर पर्वत के नीचे एक झील का निर्माण कराया, जिसका जल दूध के समान सफ़ेद था। उन्होंने जो श्लोक था, वो इस प्रकार है:

दुग्धाब्धि धवकं तेन सरो दूरगिरौ कृतम्।

अमरेश्वरयात्रायां जनैरद्यापि दृश्यते।।

कल्हण बताते हैं कि इस अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले लोग इस झील का भी दर्शन करते हैं। इतना ही नहीं, इस पुस्तक में कश्मीर में शिवत्व की महिमा के बारे में भी बताया गया है। आज भले ही जम्मू कश्मीर को लोग आतंकवादी घटनाओं और इस्लामी कट्टरवाद के कारण जानते हों, लेकिन पहले ये ब्राह्मणों की भूमि हुआ करती थी। कल्हण लिखते हैं – ‘कश्मीर पार्वती तत्र राजा ज्ञेयः शिवांशकः’, अर्थात कश्मीर माँ पार्वती का स्वरूप है और शिव का अंश इस स्थान के शासक हैं।


🚩इससे साफ़ है कि कश्मीर को भगवान शिव की भूमि के रूप में प्राचीन काल से जाना जाता था। ‘राजतरंगिणी’ में ही कश्मीर के एक अन्य शासक सामदीमत का भी जिक्र है, जिसके बारे में बताया गया है कि वो वन में जाकर बर्फ के शिवलिंग की पूजा करता था। वो शिवभक्त था। बर्फ का शिवलिंग भारत में कहीं अन्यत्र नहीं मिलता, अर्थात साफ़ है कि कश्मीर के राजाओं के लिए अमरनाथ भगवान का महत्व पहले से रहा है। वामपंथियों ने बड़ी चालाकी से ये कोशिश की है कि हमें हमारा इतिहास ही न याद रहे और हम खुद को मुस्लिमों का एहसानमंद मानते रहे।


🚩इतना ही नहीं, कई विदेशी घुमंतुओं ने भी अमरनाथ यात्रा का जिक्र किया है, जिनमें दो प्रमुख हैं – बैरन चार्ल्स हुगेल और गॉडफ्रे विग्ने। जम्मू कश्मीर में 14वीं शताब्दी में मुस्लिम शासन आया और इसी शताब्दी के अंत में जबरन धर्मांतरण का दौर भी शुरू हो गया। सिकंदर बुतशिकन ने उस समय कश्मीर में हिन्दू प्रतिमाओं की तोड़फोड़ शुरू कर दी। फ्रेंच डॉक्टर फ्रांसिस बेर्नियर औरंगजेब के साथ कश्मीर गया था और उस दौरान उसने एक सुंदर गुफा और वहाँ जमे बर्फ के बारे में बताया था, जो अमरनाथ का ही विवरण है।

🚩वहीं विग्ने ने अपनी पुस्तक ‘रवेल्स इन कश्मीर, लद्दाख एन्ड इस्कार्डू’ में लिखा है कि श्रावण महीने की 15वीं तारीख़ को अमरनाथ यात्रा शुरू होती है। उन्होंने लिखा है कि कई जाति-संप्रदायों के लोग इसमें शामिल रहते हैं। वो 1840-41 के समय अमरनाथ गए थे, लेकिन खराब मौसम के कारण वो नहीं जा पाए थे। इससे पता चलता है कि यात्रा वर्षों से अनवरत चली आ रही थी। ये भी जान लीजिए कि प्राचीन ग्रन्थ ‘नीलमत पुराण’ में बह अमरनाथ यात्रा का जिक्र मिलता है।


🚩‘नीलमत पुराण’ में जो इसका विवरण है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि छठी-सातवीं शताब्दी के लोगों को इसकी जानकारी थी। तब तक इस्लाम भारत में आया ही नहीं था। छठी शताब्दी के अंत में इस्लाम की स्थापना ही हुई थी, ऐसे में कोई बूटा मलिक इसके बहुत बाद में ही हुआ होगा। गुफा के बगल से सिंधु की एक सहायक नदी अमरगंगा भी गुजरती थी। शिव श्रद्धालु इसकी मिट्टी को अपने शरीर में लगाते थे। इसी तरह, बर्नियर ने भी इस यात्रा का जिक्र किया है।


🚩अमित कुछ सिंह अपनी पुस्तक ‘अमरनाथ यात्रा’ में लिखते हैं कि ‘बर्नियर ट्रेवल्स’ पुस्तक की पृष्ठ संख्या 418 में अमरनाथ यात्रा का जिक्र है। भारत के ऑक्सफ़ोर्ड इतिहास के लेखक विंसेट ए स्मिथ ने ‘बर्नियर ट्रेवल्स’ का संपादन किया है, जिसमें लिखा है कि अमरनाथ गुफा आश्चर्यजनक है जहाँ छत से बूँद-बूँद पानी गिरता है और जम कर बर्फ के खंड का आकर लेता है और हिन्दू इसकी पूजा करते हैं। इतना ही नहीं, डॉक्टर स्टेन ने आकर का जिक्र भी किया है।


🚩उन्होंने बताया है कि शिवलिंग की ऊँचाई 2 फ़ीट और चौड़ाई 7-8 फ़ीट की होती है। इतना ही नहीं, अकबर का इतिहासकार अबुल फजल भी ‘आईने अकबरी’ में अमरनाथ को एक पवित्र स्थल बताता है। उसने लिखा है कि 15 दिन तक बढ़ते रहने वाला ये शिवलिंग 2 गज का हो जाता है। सन् 1866 में प्रकाशित ‘द इंडियन इनसाइक्लोपीडिया’ में भी कश्मीरी राजाओं के अमरनाथ यात्रा का विवरण है। वामपंथी इतिहासकारों ने झूठ बोल कर अमरनाथ यात्रा के बूटा मलिक की खोज के बाद शुरू होने की धारणा फैलाई।


🚩अब अंत में इस ‘मलिक’ सरनेम के पीछे की सच्चाई भी जान लीजिए। हुगेल लिखते हैं कि मलिक परिवार को वहाँ अकबर ने नियुक्त किया था। इससे पता चलता है कि ये उस समय सरनेम की जगह अकबर द्वारा नवाजा गया टाइटल हुआ करता था। इसका मतलब है कि सीमा की रखवाली करने वालों को अमरनाथ की खोज करने वाला और गुफा का रक्षक बता दिया गया। वो अकबर के कहने पर इस्लामी साम्राज्य की सीमा की रक्षा करता था, न कि अमरनाथ गुफा की।


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Saturday, June 10, 2023

जनसंख्या विस्फोट : जापान, स्पेन, यूरोप, नेपाल और भारत में भी कई गुणा बढ़ गई हैं, मुस्लिमों की आबादी....

 जनसंख्या विस्फोट : जापान, स्पेन, यूरोप, नेपाल और भारत में भी कई गुणा बढ़ गई हैं, मुस्लिमों की आबादी....

10 June 2023

🚩समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद 2005 में इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’ के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है । जो तथ्य निकल कर आए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं ।


🚩किसी देश में जब मुसलमान आबादी का हिस्सा 80% हो जाती हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है । अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100%  तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बांग्लादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत), गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत), ईराक (97 प्रतिशत), जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है।

🚩स्पेन में मुस्लिम जनसंख्या 10 गुणा बढ़े




🚩पिछले 30 वर्षों में स्पेन में मुस्लिमों की जनसंख्या 10 गुणा बढ़ गई है। ये जानकारी खुद स्पेन के ही ‘सेक्रेटरी ऑफ द इस्लामिक कमीशन’ ने अपनी एक रिपोर्ट में दी है। इसके साथ ही दक्षिण-पश्चिम यूरोप के इस देश में मुस्लिमों की जनसंख्या 25 लाख के पार चली गई है। मोहम्मद अजाना ने ‘Anadolu’ मीडिया संस्थान को बताया कि अनाधिकारिक आँकड़ों की मानें तो स्पेन में मुस्लिमों की जनसंख्या 30 लाख के भी पार चली गई है।


🚩ये जानकारी भी दी गई है कि स्पेन में फ़िलहाल 53 मुस्लिम संगठन हैं और मस्जिदों की संख्या 2000 के पार चली गई है। साथ ही 40 कब्रिस्तान भी हैं।


🚩जापान में 10 गुणा बढ़ गई मुस्लिम आबादी, मस्जिद 15 से बढ़कर हुए 113


🚩जापान में पिछले 2 दशक में अचानक से मुस्लिमों की संख्या में बढ़ौतरी हुई है। वहाँ मस्जिद जो पहले गिने-चुने होते थे वो भी अब गिनती में काफी बढ़ गए हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक इस डेमोग्राफिक चेंज के पीछे कारण जापान में आकर बसने वाले प्रवासी मुस्लिम हैं। 


🚩हैरान करने वाली बात है कि सन् 2000 में जापान में मुस्लिमों की संख्या सिर्फ 10 से 20 हजार थी लेकिन अब इनकी गिनती 2 लाख पार है। यानी एक ही पीढ़ी में ये लोग जापान में 10 गुना बढ़े हैं। वहीं 2010 तक जापान में मुस्लिम 110,000 हुए थे और अब ये 230,000 पहुँच गए।


🚩इसी तरह जापान में मस्जिद दिखना पहले आसान नहीं था। 1999 में केवल 15 मस्जिद थे। मगर अब वहाँ 113 मस्जिद हैं। बताया जा रहा है जो जगह कभी एक फैक्ट्री हुआ करती थी वहाँ भी मस्जिद खोल लिया गया जिसे इंडोनेशिया फंड देता है।


🚩इसके साथ ही दक्षिण-पश्चिम यूरोप के इस देश में मुस्लिमों की जनसंख्या 25 लाख के पार चली गई है। मोहम्मद अजाना ने ‘Anadolu’ मीडिया संस्थान को बताया कि अनाधिकारिक आँकड़ों की मानें तो स्पेन में मुस्लिमों की जनसंख्या 30 लाख के भी पार चली गई है।


🚩भारत में 1951 में मुसलमानों की आबादी 3.5 करोड़ थी जो कि 2022 में 17.2 करोड़ हो गई। ईसाइयों की जनसंख्‍या 80 लाख से बढ़कर 2.8 करोड़ पहुंच गई।


🚩नेपाल में मुस्लिम, ईसाई जनसंख्या बढ़ गई


🚩नेपाल में जातियों और विभिन्न जनजातियों की संख्या 142 के पार चली गई है। 2021 में हुई जनगणना के विवरण अब सामने आए हैं, जिसमें ये पता चला है। 2011 में हुई जनगणना में जातियों एवं जनजातियों की संख्या 125 थी। नेपाल के ‘National Statistics Office’ ने ये आँकड़े जारी किए हैं। इसे पहले ‘सेन्ट्रल ब्यूरो ऑफ स्टेटिस्टिक्स’ के नाम से जाना जाता था। नेपाल की जातियों, भाषा और धर्मों को लेकर सवालों का भी संस्था ने जवाब दिया है। नेपाल में 2.367 करोड़ हिन्दू हैं, जबकि मुस्लिम 23.945 लाख।


🚩2011 में हिन्दुओं की जनसंख्या 81.3% थी, अर्थात हिन्दुओं की जनसंख्या 0.19% कम हुई है। वहीं बौद्ध समाज जनसंख्या का 9% हिस्सा था, इस हिसाब से बौद्धों की संख्या भी 0.79% कम हुई है। वहीं मुस्लिमों की जनसंख्या 0.69% बढ़ गई है, क्योंकि वो 2011 में 4.4% हुआ करते थे। ईसाई पहले 0.5% ही थे, जो अब 1.26% ज़्यादा हो गए हैं। स्त्रोत:ओप इंडिया 


🚩जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है । मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है। शोधकर्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरन मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोड़ना, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है । जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।


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Friday, June 9, 2023

समस्त देशवासियों को बंदा बैरागी के महान बलिदान से प्रेरणा लेना चाहिए

9 June 2023

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🚩आज बन्दा बैरागी जी का बलिदान दिवस है।  कितने हिन्दू युवाओं ने उनके अमर बलिदान की गाथा सुनी है? बहुत कम। क्यूंकि वामपंथियों द्वारा लिखे गए पाठयक्रम में कहीं भी बंदा बैरागी का भूल से भी नाम लेना उनके लिए अपराध के समान है। फिर क्या वीर बन्दा वैरागी का बलिदान व्यर्थ जाएगा ? क्या हिन्दू समय रहते जाग पाएगा ?क्या आर्य हिन्दू जाति अपने पुर्वजों का ऋण उतारने के लिये संकल्पित होगी ?


🚩इस लेख के माध्यम से जाने बंदा बैरागी के अमर बलिदान की गाथा।



🚩बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, पुंछ में श्री रामदेव के घर में हुआ। उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास था। युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।


🚩इसी दौरान गुरु गोविन्दसिंह जी माधोदास की कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त मुस्लिम आतंक से जूझने को कहा। इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पाँच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा।


🚩बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब की ओर चल दिये। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया। जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था, बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी।


🚩उनके पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख फौज लेकर उन पर हमला किया और विश्वासघात से 17 दिसम्बर, 1715 को उन्हें पकड़ लिया। उन्हें लोहे के एक पिंजड़े में बन्दकर, हाथी पर लादकर सड़क मार्ग से दिल्ली लाया गया। उनके साथ हजारों सिख भी कैद किये गये थे। इनमें बन्दा के वे 740 साथी भी थे, जो प्रारम्भ से ही उनके साथ थे। युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले की नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का माँस नोचा जाता रहा।


🚩काजियों ने बन्दा और उनके साथियों को मुसलमान बनने को कहा; पर सबने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। दिल्ली में आज जहाँ हार्डिंग लाइब्रेरी है,वहाँ 7 मार्च, 1716 से प्रतिदिन सौ वीरों की हत्या की जाने लगी। एक दरबारी मुहम्मद अमीन ने पूछा - तुमने ऐसे बुरे काम क्यों किये, जिससे तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है ?

बन्दा ने सीना फुलाकर सगर्व उत्तर दिया - मैं तो प्रजा के पीड़ितों को दण्ड देने के लिए परमपिता परमेश्वर के हाथ का शस्त्र था। क्या तुमने सुना नहीं कि जब संसार में दुष्टों की संख्या बढ़ जाती है, तो वह मेरे जैसे किसी सेवक को धरती पर भेजता है।


🚩बन्दा से पूछा गया कि वे कैसी मौत मरना चाहते हैं ? बन्दा ने उत्तर दिया, मैं अब मौत से नहीं डरता; क्योंकि यह शरीर ही दुःख का मूल है। यह सुनकर सब ओर सन्नाटा छा गया। भयभीत करने के लिए उनके पाँच वर्षीय पुत्र अजय सिंह को उनकी गोद में लेटाकर बन्दा के हाथ में छुरा देकर उसको मारने को कहा गया।

बन्दा ने इससे इन्कार कर दिया। इस पर जल्लाद ने उस बच्चे के दो टुकड़ेकर उसके दिल का माँस बन्दा के मुँह में ठूँस दिया; पर वे तो इन सबसे ऊपर उठ चुके थे। गरम चिमटों से माँस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियाँ शेष थी। फिर 9 जून, 1716 को उस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया। इस प्रकार बन्दा वीर बैरागी अपने नाम के तीनों शब्दों को सार्थक कर बलिपथ पर चल दिये।


🚩बंदा बैरागी जैसे महान वीरों ने हमारे धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। खेदजनक बात यह है कि उनकी बलिदान से आज की हमारी युवा पीढ़ी अनभिज्ञ है। यह एक सुनियोजित षड़यंत्र है कि जिन जिन महापुरुषों से हम प्रेरणा ले सके उनके नाम तक विस्मृत कर दिए जाये। इस लेख को इतना शेयर कीजिये कि भारत का बच्चा बच्चा बंदा बैरागी के महान बलिदान से प्रेरणा ले सके।


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बिरसा मुंडा कौन थे, देश और हिन्दू धर्म के लिए उन्होंने क्या किया था,जानिए

9 June 2023

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🚩हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में सही इतिहास को स्थान ही नहीं दिया गया है। हमारे भारत में ऐसे महान क्रांतिकारी वीर हुए कि आपको भी अपने पूर्वजों पर गर्व होने लगेगा।


🚩बिरसा मुंडा का परिचय…….



🚩सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड प्रदेश में रांची के उलीहातू गांव में हुआ था। वे ‘बिरसा भगवान’ के नाम से लोकप्रिय थे। बिरसा का जन्म बृहस्पतिवार को हुआ था, इसलिए मुंडा जनजातियों की परंपरा के अनुसार उनका नाम ‘बिरसा मुंडा’ रखा गया। इनके पिता एक खेतिहर मजदूर थे। वे बांस से बनी एक छोटी-सी झोंपड़ी में अपने परिवार के साथ रहते थे।


🚩बिरसा बचपन से ही बड़े प्रतिभाशाली थे। बिरसा का परिवार अत्यंत गरीबी में जीवन-यापन कर रहा था। गरीबी के कारण ही बिरसा को उनके मामा के पास भेज दिया गया, जहां वे एक विद्यालय में जाने लगे। विद्यालय के संचालक बिरसा की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने बिरसा को जर्मन मिशन पाठशाला में पढ़ने की सलाह दी। वहां पढ़ने के लिए ईसाई धर्म स्वीकार करना अनिवार्य था। अतः बिरसा और उनके सभी परिवार वालों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया।


🚩हिंदुत्व की प्रेरणा……


🚩सन् 1886 से 1890 तक का समय बिरसा ने जर्मन मिशन में बिताया। इसके बाद उन्होंने जर्मन मिशनरी की सदस्यता त्याग दी , और ईसाई धर्म छोड़ दिया था और फिर वे भगवान विष्णु के भक्त आनंद पांडे के संपर्क में आये। 1894 में मानसून के छोटानागपुर में असफल होने के कारण भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की। बिरसा ने आनंद पांडेजी से हिन्दू धर्म की शिक्षा ग्रहण की। आनंद पांडेजी के सत्संग से उनकी रुचि भारतीय दर्शन और भारतीय संस्कृति के रहस्यों को जानने की ओर हो गयी। धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ उन्होंने रामायण, महाभारत, हितोपदेश,भगवद्गीता आदि धर्मग्रंथों का भी अध्ययन किया। इसके बाद वे सत्य की खोज के लिए एकांत स्थान पर कठोर साधना करने लगे। लगभग 4 वर्ष के एकांतवास के बाद जब बिरसा प्रकट हुए तो, वे एक हिंदु महात्मा की तरह पीला वस्त्र, लकड़ी की खड़ाऊं और यज्ञोपवीत धारण करने लगे थे।


🚩ईसाई मिशनरियों का विरोध……


🚩बिरसा ने हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार करना शुरू कर दियाऔर ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले वनवासी बंधुओं को उन्होंने समझाया कि ‘ईसाई धर्म हमारा अपना धर्म नहीं है। यह अंग्रेजों का धर्म है। वे हमारे देश पर शासन करते हैं, इसलिए ईसाई हमारे हिंदू धर्म का विरोध और ईसाई धर्म का प्रचार कर रहे हैं। ईसाई धर्म अपनाने से हम अपने पूर्वजों की श्रेष्ठ परंपरा से विमुख होते जा रहे हैं। अब हमें जागना चाहिए।’


🚩उनके विचारों से प्रभावित होकर बहुत-से वनवासी उनके पास आने लगे और उनके शिष्य बन गए



🚩वन अधिकारी, वनवासियों के साथ ऐसा व्यवहार करते थे, जैसे उनके सभी अधिकार समाप्त कर दिए गए हों। वनवासियों ने इसका विरोध किया और अदालत में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने अपने पुराने पैतृक अधिकारों को बहाल करने की मांग की। इस याचिका पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। बिरसा मुंडा ने वनवासी किसानों को साथ लेकर स्थानीय अधिकारियों के अत्याचारों के विरुद्ध याचिका दायर की। इस याचिका का भी कोई परिणाम नहीं निकला।


🚩वनवासियों का संगठन……


🚩बिरसा के विचारों का वनवासी बंधुओं पर गहरा प्रभाव पड़ा। धीरे-धीरे बड़ी संख्या में लोग उनके अनुयायी बनते गए। बिरसा उन्हें प्रवचन सुनाते और अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा देते। इस प्रकार उन्होंने वनवासियों का संगठन बना लिया। बिरसा के बढ़ते प्रभाव और लोकप्रियता को देखकर अंग्रेज मिशनरी चिंतित हो उठे। उन्हें डर था कि बिरसा द्वारा बनाया गया वनवासियों का यह संगठन आगे चलकर ईसाई मिशनरियों और अंग्रेजी शासन के लिए संकट बन सकता है। अतः बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया।


🚩अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने का संकल्प…


🚩बिरसा की चमत्कारी शक्ति और उनकी सेवाभावना के कारण वनवासी उन्हें भगवान का अवतार मानने लगे थे। अतः उनकी गिरफ्तारी से सारे वनांचल में असंतोष फैल गया।


🚩 वनवासियों ने हजारों की संख्या में एकत्रित होकर पुलिस थाने का घेराव किया और उनको निर्दोष बताते हुए उन्हें छोड़ने की मांग की। अंग्रेजी सरकार ने वनवासी मुंडाओं पर भी राजद्रोह का आरोप लगाकर उन पर मुकदमा चला दिया। बिरसा को 2 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गयी और फिर हजारीबाग की जेल में भेज दिया गया। बिरसा का अपराध यह था कि उन्होंने वनवासियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने हेतु संगठित किया था। जेल जाने के बाद बिरसा के मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा और बढ़ गयी और उन्होंने अंग्रेजी शासन को उखाड फेंकने का संकल्प लिया।🚩दो वर्ष की सजा पूरी करने के बाद बिरसा को जेल से मुक्त कर दिया गया। उनकी मुक्ति का समाचार पाकर हजारों की संख्या में वनवासी उनके पास आये। बिरसा ने उनके साथ गुप्त सभाएं कीं और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष के लिए उन्हें संगठित किया। अपने साथियों को उन्होंने शस्त्र संग्रह करने, तीर कमान बनाने और कुल्हाड़ी की धार तेज करने जैसे कार्यों में लगाकर उन्हें सशस्त्र क्रान्ति की तैयारी करने का निर्देश दिया। सन 1899 में इस क्रांति का श्रीगणेश किया गया। बिरसा के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने रांची से लेकर चाईबासा तक की पुलिस चौकियों को घेर लिया और ईसाई मिशनरियों तथा अंग्रेज अधिकारियों पर तीरों की बौछार शुरू कर दी। रांची में कई दिनों तक कर्फ्यू जैसी स्थिति बनी रही। घबराकर अंग्रेजों ने हजारीबाग और कलकत्ता से सेना बुलवा ली।


🚩राष्ट्र हेतु सर्वस्व अर्पण…


🚩अब बिरसा के नेतृत्व में वनवासियों ने अंग्रेज सेना से सीधी लड़ाई छेड़ दी। अंग्रेजों के पास बंदूक, बम आदि आधुनिक हथियार थे, जबकि वनवासी क्रांतिकारियों के पास उनके साधारण हथियार तीर-कमान आदि ही थे। बिरसा और उनके अनुयायियों ने अपनी जान की बाजी लगाकर अंग्रेज सेना का मुकाबला किया। अंत में बिरसा के लगभग चार सौ अनुयायी मारे गए। इस घटना के कुछ दिन बाद अंग्रेजों ने मौका पाकर बिरसा को जंगल से गिरफ्तार कर लिया। उन्हें जंजीरों में जकड़कर रांची जेल भेज दिया गया, जहां उन्हें कठोर यातनाएं दी गयीं। बिरसा हंसते-हंसते सब कुछ सहते रहे और अंत में 9 जून 1900 को कारावास में उनका देहावसान हो गया।


🚩इस तरह बिरसा मुंडा ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को नयी दिशा देकर भारतीयों, विशेषकर वनवासियों में हिन्दू धर्म के प्रति भक्ति, स्वदेश के प्रति प्रेम की भावना जाग्रत की।


🚩बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है। उन्होंने वनवासियों को संगठित कर उन्हें अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए तैयार किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय संस्कृति की रक्षा करने के लिए धर्मांतरण करने वाले ईसाई मिशनरियों का विरोध किया। ईसाई धर्म स्वीकार करनेवाले हिन्दुओं को उन्होंने अपनी सभ्यता एवं संस्कृति की जानकारी दी और अंग्रेजों के षड्यन्त्र के प्रति सचेत किया। आज भी झारखण्ड, उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के वनवासी लोग बिरसा को भगवान के रूप में पूजते हैं। अपने पच्चीस वर्ष के अल्प जीवनकाल में ही उन्होंने वनवासियों में स्वदेशी तथा भारतीय संस्कृति के प्रति जो प्रेरणा जगाई वह अतुलनीय है। धर्मांतरण, शोषण और अन्याय के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति का संचालन करने वाले महान सेनानायक थे- ‘बिरसा मुंडा’।


🚩आज भी भारत में वेटिकन सिटी के इशारे पर भारत में ईसाई मिशनरियों द्वारा पुरजोश से धर्मान्तरण किया जा रहा है, लेकिन जनता को बिरसा मुंडा के पथ पर चलना चाहिए। हिन्दू संस्कृति को तोड़ने के लिए ईसाई मिशनरियों ने भारत में धर्मान्तरण रूपी जो जाल बिछाया है,इसमें भोले-भाले हिन्दू फंस जाते हैं और कोई हिन्दूनिष्ठ , संत उनका विरोध करते है,तो उनकी हत्या करवा दी जाती है या मीडिया द्वारा बदनाम करवाकर झूठे केस बनाकर जेल में भिजवाया जाता है।


🚩हिन्दुस्तानियों को इन षड्यंत्रों को समझने और बिरसा मुंडा के पथ पर चलने की बहुत जरूरत है।


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Thursday, June 8, 2023

यह है भारत का न्यायतंत्र : राष्ट्रहित कार्य करने पर रखा है सालों से जेल में....

 यह है भारत का न्यायतंत्र : राष्ट्रहित  कार्य करने पर रखा है सालों से जेल में....

8 June 2023

🚩भारत मे इस कहावत का सबसे बड़ा मजाक बनाकर रख दिया है “कानून सबके लिए समान है” लेकिन जब न्याय की बात आती है, तो न्यायालय द्वारा ही पक्षपात किया जाता है, ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं पर अभी एक ताजा उदाहरण आपके सामने पेश कर रहे हैं।


🚩जालंधर के ईसाई पादरी बिशप फ्रैंको मलक्कल पर केरल की नन के साथ 2014 से 2016 के बीच कई बार बलात्कार करने का आरोप हैं। नन ने मलक्कल पर आरोप लगाया था कि मई 2014 में कुरविलांगड़ के एक गेस्ट हाउस में उनसे बलात्कार किया गया और बाद में कई मौकों पर उनका यौन शोषण किया । नन ने कहा कि चर्च के अधिकारियों ने जब पादरी के खिलाफ उनकी शिकायत पर कोई कदम नहीं उठाया तो उन्होंने पुलिस का रुख किया।

 जब जनता का प्रेशर हुआ तब मलक्कल को गिरफ्तार भी किया लेकिन 21 दिन में मलक्कल को जमानत मिल गई थी।



🚩समान कानून की बात करने वाली इसी न्यायालय ने एक लड़की के षड्यंत्र के तहत 87 वर्षीय हिंदू संत आशाराम बापू को जेल करा दी और पिछले 10 सालों  से बापूजी को 1 दिन की  भी जमानत नही दी,जबकि उनके केस में ट्रायल 5 साल तक चला था, ट्रायल के समय भी उनको जमानत नही दी, जबकि बीच मे उनके बहन-भांजे आदि की मौत भी हुई और उनकी धर्मपत्नी और उनकी स्वयं की तबियत भी बहुत ज्यादा खराब हुई थी , फिर भी उन्हें जमानत नही दी गई।

 

🚩बिशप फ्रेंको मलक्कल और हिंदू संत आशाराम बापू में इतना ही फर्क था कि मलक्कल वेटिकन सिटी के फंड लेकर भारत में धर्मान्तरण करवा रहा था और बापू आशारामजी धर्मान्तरण को रोक रहे थे, बापूजी ने मानव उत्थान के कई  अभियान चलाये, करोड़ों लोगों को सनातन धर्म की महिमा बताई, लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई, आदिवासी क्षेत्रों में जाकर उनको घर व जीवनोपयोगी सामग्री दी, पैसे दिए इसके कारण धर्मान्तरण का धंधा कम होने लगा जिसके कारण उनको जेल में जाना पड़ा और न्यायालय ने 1 दिन भी जमानत नही दी, अगर बापू आशारामजी धर्मान्तरण रोकने का गुनाह नही करते तो वे भी आज बाहर होते।

 

🚩कानून को देखो राहूल गांधी, नेता सोनिया गांधी, अभिनेता सलमान खान, पत्रकार तरुण तेजपाल, टुकड़े टुकड़े गैंग के कन्हैया कुमार, उमर खालिद दिल्ली दंगा भड़काने में मुख्य साजिशकर्ता सफूरा जरगर, कोरोना फैलाने वाले मौलाना साद को तुंरत जमानत हासिल हो जाती है, लेकिन धर्मान्तरण पर रोक लगाने वाले दारा सिंह 22 साल से ओडिशा की जेल में बंद हैं। 87 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू 10 साल से जोधपुर जेल में बंद है जबकि उनको षडयंत्र तहत फसाने के कई प्रमाण भी हैं फिर भी उनको आज तक जमानत हासिल नही हुई क्या हिंदुस्तान में हिंदू हित की बात करना भी अपराध हो गया है???

 https://www.youtube.com/watch?v=zTBJJ1lbf4I

🚩आपको बता दें कि जिस केस में हिंदू संत आशारामजी बापू को सेशन कोर्ट ने सजा सुनाई है, लेकिन जब उनके केस पढ़ते है तो उसमें साफ है कि जिस समय आरोप लगाने वाली लड़की ने तथाकथित घटना बताई है उससे तो साफ होता है कि वे उस समय वह अपने मित्र से फोन पर बात कर थी, उसकी कॉल डिटेल भी है और आशारामजी बापू एक कार्यक्रम में थे वहां पर 60-70  लोग भी मौजूद थे, उन्होंने भी गवाही दी है और मेडिकल रिपोर्ट में भी लड़की को एक खरोच तक नही आई है और सबसे बड़ी बात FIR (एफआईआर) में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नही है, केवल छेड़छाड़ का आरोप है।

 

🚩आपको ये भी बता दें कि बापू आशारामजी आश्रम में एक फेक्स भी आया था, उसमें उन्होंने साफ लिखा था कि 50 करोड़ दो नही तो लड़की के केस में जेल जाने के लिए तैयार रहो।

https://twitter.com/SanganiUday/status/1053870700585377792?s=19

 

🚩बता दें कि स्वामी विवेकानंद जी के 100 साल बाद शिकागो में विश्व धर्मपरिषद में भारत का नेतृत्व हिंदू संत आसाराम बापू ने किया था। बच्चों को भारतीय संस्कृति के दिव्य संस्कार देने के लिए देश मे 17000 बाल संस्कार खोल दिये थे, वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस शुरू करवाया, क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन दिवस शुरू करवाया, वैदिक गुरुकुल खोलें, करोड़ो लोगों को व्यसनमुक्त किया, ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं। इसके कारण आज वे जेल में हैं और जमानत हासिल नही हो रही है अब हिन्दू समाज को जागरूक होकर उनकी रिहाई करवानी चाहिए।


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