Saturday, February 12, 2022

बगाल में महाभयंकर आतंक क्यों? उसके पीछे के असली कारण क्या हैं?

05 मई 2021

azaadbharat.org


असम में घुसपैठ के खिलाफ चले आंदोलन के कारण 1981 के बाद घुसपैठिये असम की बजाय प.बंगाल और उत्तर प्रदेश में जाकर बसने लगे। 1981 से 1991 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम जनसंख्या वृद्धिदर 32.90 प्रतिशत थी पर प. बंगाल के जलपाईगुड़ी जिला में यह 45.12 प्रतिशत, दार्जिलिंग जिला में 58.55 प्रतिशत, कोलकाता जिला में 53.75 प्रतिशत तथा मेदनीपुर जिला में 53.17 प्रतिशत थी। पश्चिम बंगाल की ही तरह उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिला में यह 46.77 प्रतिशत, मुजफ्फरनगर जिला में 50.14 प्रतिशत, गाजियाबाद जिला में 46.68, अलीगढ़ में 45.61, बरेली में 50.13 प्रतिशत तथा हरदोई जिला में 40.14 प्रतिशत थी। सबसे आश्चर्यजनक उप्र के सीतापुर जिले का हाल है, जहां मुस्लिम जनसंख्या वृद्धिदर 129.66 प्रतिशत था।



1991 से 2011 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या वृद्धि दर 44.39 प्रतिशत, हिंदू वृद्धि दर 40.51 प्रतिशत तो मुस्लिम जनसंख्या वृद्धिदर 69.53 प्रतिशत थी, पर अरुणाचल में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 126.84 प्रतिशत, मेघालय में 112.06, मिजोरम में 226.84, सिक्किम में 156.35, दिल्ली में 142.64, चण्डीगढ़ में 194.36 तथा हरियाणा में 133.22 प्रतिशत थी। मुस्लिम जनसंख्या में हुई यह अप्रत्याशित वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि बांग्लादेश और म्यांमार से मुस्लिम घुसपैठिये भारतीय राज्यों में बस रहे हैं। 


1961 में देश की जनसंख्या में मुस्लिम जनसंख्या 10.7 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 14.22 प्रतिशत हो गई है। यानी 50 वर्ष में मुस्लिम जनसंख्या में 3.52 प्रतिशत की वृद्धि तब हुई है जबकि इसमें घुसपैठियों को भी शामिल किया गया है। इसी दौर में प. बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 20 प्रतिशत से बढ़कर 27.01 प्रतिशत, तो बिहार के पूर्णिया, किशनगंज, अररिया और कटिहार जिला में 37.61 प्रतिशत से बढ़कर 45.93 प्रतिशत हो गई है।


जसे ही यह मुद्दा उठता है- वामदल, तृणमूल कांग्रेस से लेकर शहरी नक्सली आदि यथासंभव शोर मचाने लगते हैं। उन्हें लगता है कि अवैध शरणार्थी उनके वोट बैंक हैं। यह सत्य है कि अनेक नेताओं ने अवैध शरणार्थियों के राशन कार्ड ,आधार कार्ड एवं वोटर कार्ड बनवाकर उन्हें देश में बसाने के लिए पुरजोर प्रयास किये हैं। इन लोगों ने देश को सराय बना डाला है क्यूंकि ये लोग अपनी कुर्सी के लिए केवल तात्कालिक लाभ देखते हैं। भविष्य में यही अवैध शरणार्थी एकमुश्त वोट-बैंक बनकर इन्हीं नेताओं की नाक में दम कर देंगे। इससे भी विकट समस्या यह है कि बढ़ती मुस्लिम जनसँख्या भारत के गैर मुसलमानों के भविष्य को लेकर भी एक बड़ी चुनौती उपस्थित करेगी। क्यूंकि इस्लामिक सामाज्यवाद की मुहीम के तहत जनसँख्या समीकरण के साथ मुसलमानों का गैर मुसलमानों के साथ व्यवहार में व्यापक परिवर्तन हो जाता है।

https://bit.ly/3nMSQQ4


जिस तरह पांच राज्यों में हुए चुनाव का परिणाम आया उससे समझ जाना चाहिए कि देश में किस तरह हिन्दू अल्पसंख्यक बन रहे हैं? भारत के 8 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक बन चुके हैं, दूसरे राज्यों में भी काफी कम होते जा रहे हैं, इसमें मुख्य कारण है- हिंदू बच्चे कम पैदा कर रहे हैं, दूसरा जाति में बंट रहे हैं, इसके कारण तेजी से हिंदू कम हो रहे हैं और मुस्लिम अनेक शादियां कर रहे हैं, 12-12 बच्चे पैदा कर रहे हैं, दूसरी ओर बांग्लादेश आदि से घुसपैठ कर रहे हैं- इसके कारण मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। बाद में क्या होगा- कश्मीरी पंडितों का इतिहास पढ़ लेना, सब समझ में आ जायेगा। इसलिए अभी भी समय है- एक बनो, बच्चे अधिक पैदा करो और एक दूसरे के मददगार बनो, बच्चों को धर्म का संस्कार दो तभी अस्तित्व बच पायेगा और सुरक्षित रह पाएंगे।


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पहले भी आई थी भयंकर महामारी, स्वामी विवेकानंद ने ऐसे की थी रोकथाम...

04 मई 2021

azaadbharat.org

महामारी और संक्रमणों ने सम्पूर्ण इतिहास में अनेकों बार मानव जाति को बर्बाद किया है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान के आधुनिक दिनों तक हमने इतिहास के माध्यम से कई महामारियों और चिकित्सा आपात स्थितियों का अनुभव किया है। कुछ ने तो ऐसा भयावह रूप लिया था कि चारों ओर सिर्फ विनाश ही विनाश दिखाई दिया था, जैसे- ‘बुबोनिक प्लेग’ जो चौदहवीं शताब्दी में आया था और उसे ब्लैक डेथ के रूप में भी जाना जाता है।



जिसमें लाखों मनुष्यों की मृत्यु हुई थी और इसे मानव इतिहास के सबसे घातक महामारियों में से एक माना जाता है। 


पिछले एक साल में और विशेष रूप से पिछले एक महीने में कुछ इसी तरह की स्थितियाँ विकसित हुई हैं- चीन के वुहान में पैदा हुई महामारी कोविड-19 के कारण।

खासकर जब दुनिया भर में मरनेवालों की संख्या तीस लाख से अधिक हो गई है और एक नए संस्करण जिसे हम अभी ”डबल म्यूटेंट वेरिएंट” के नाम से जानते हैं उसका भारी प्रकोप दिखने को मिल रहा है। भारत में भी जहाँ एक तरफ टीकाकरण अभियान को 100 दिन पूर्ण हो गए हैं और अब 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए यह अभियान 1 मई से शुरू हो चुका है वहीं दूसरी तरफ नागरिकों और सरकारों के लिए अभी चुनौतियाँ कम नहीं हुई है।


इस दौर में हमें मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से मजबूत करने के लिए कुछ ऐसा चाहिए जिसे हम इन परिस्थितयों से जोड़कर भी देख सकें और वह हमें हर रूप से मजबूत भी करे।

1898 के बंगाल में आई प्लेग महामारी के दौरान योद्धा संन्यासी स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित 122 वर्ष पुराने 'प्लेग मैनिफेस्टो' पर हमारी खोज रूक सकती है।


यह मार्च 1898 का समय था, स्वामी विवेकानंद कलकत्ता प्रवास पर थे और वह नीलांबर मुखर्जी के बाग घर बेलूर में एक मठ में रुके हुए थे। उन्हें स्वास्थ्य संबंधी अनेकों समस्याएं हो रही थीं और सुधार के कोई संकेत नहीं थे, बल्कि यह लगातार बिगड़ रहा था। जिसको देखते हुए उनके गुरु भाइयों ने उन्हें दार्जिलिंग में प्रवास करने के लिए कहा क्योंकि वहाँ की पिछली यात्रा में हुए जलवायु परिवर्तन से स्वामी विवेकानंद को शारीरिक लाभ हुआ था।

स्वामी विवेकानंद 30 मार्च 1898 को दार्जिलिंग के लिए रवाना हुए और लगभग एक महीना वहाँ बिताया। हालाँकि वहाँ तक पहुँचने के लिए उन्हें पहाड़ पर अत्यधिक चढ़ाई करनी पड़ी और उस वर्ष जल्दी बारिश होने के कारण उन्हें बुखार हो गया और बाद में खाँसी और जुकाम भी रहा।

अप्रैल के अंत में स्वामी विवेकानंद ने वापस कलकत्ता लौटने की योजना बनाई लेकिन वह ऐसा नहीं कर सके क्योंकि उन्हें फिर से बुखार और फिर इन्फ्लुएंजा का संक्रमण हो गया था। इस बीच 29 अप्रैल को उनके गुरुभाई स्वामी ब्रह्मानंद ने उन्हें सूचित किया कि कलकत्ता में प्लेग महामारी फैल गई है, कलकत्ता से बहुत से लोग पलायन कर रहे हैं और यदि आपका स्वास्थ्य अभी ठीक नहीं है तो डॉक्टर से सलाह लें और कुछ दिनों के बाद ही वापसी करें।

जैसे ही स्वामी विवेकानंद को खबर मिली, वे बीच में किसी भी स्थान पर रुके बिना कलकत्ता जाने के लिए तैयार हो गए। कलकत्ता पहुँचते ही वह राहत उपायों को आयोजित करके प्लेग और भगदड़ दोनों से निपटने के मिशन में खुद को झोंक दिया। विवेकानंद ने सबसे पहले कलकत्ता के लोगों को एक पत्र लिखा, जिसको हम सब ‘प्लेग मैनिफेस्टो’ के नाम से जानते हैं।


स्वामी विवेकानंद ने मूल रूप से अंग्रेजी में प्रारूपित तथा हिंदी और बंगाली में अनुवादित अपने पत्र ‘प्लेग मैनिफेस्टो’ में बंगाल के लोगों को ‘डर से मुक्त रहने के लिए कहा क्योंकि भय सबसे बड़ा पाप है।’ स्वामी को पता था कि महामारी के वातावरण ने मानव को कमजोर कर दिया है। इसीलिए उन्होंने लोगों से आह्वान किया- ‘मन को हमेशा खुश रखो। एक दिन तो मृत्यु होती ही है सबकी। कायरों को बार-बार मौत की वेदना का सामना करना पड़ता है, केवल अपने मन में भय के कारण।’

उन्होंने इस डर को दूर करने का आग्रह किया, ”आओ, हम इस झूठे भय को छोड़ दें और भगवान की असीम करुणा पर विश्वास रखें, कमर कस लो और कार्रवाई के क्षेत्र में प्रवेश करो। हमें शुद्ध और स्वच्छ जीवन जीना चाहिए। रोग, महामारी का डर आदि, ईश्वर की कृपा से समाप्त हो जाएगा।”


अपने प्रेरणादायक शब्दों के बाद वह इन परिस्थितियों में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए- इन बिंदुओं पर प्रकाश डालते हैं। वह स्वच्छ रहने के लिए घर और उसके परिसर, कमरे, कपड़े, बिस्तर, नाली आदि को हमेशा साफ रखने के लिए कहते हैं। वह आगे लिखते हैं कि बासी, खराब भोजन न करें; इसके बजाय ताजा और पौष्टिक भोजन लें। कमजोर शरीर में बीमारी की आशंका अधिक होती है। यह सुनिश्चित किया गया था कि कलकत्ता के हर घर में प्लेग मैनिफेस्टो की प्रतियाँ पहुँचे।


परभावितों के लिए स्वामी विवेकानंद राहत अभियान शुरू करने के लिए

यार थे। जब उनके गुरुभाई ने उनसे पैसे के स्रोत के बारे में पूछा तो स्वामी जी ने कहा, “क्यों, यदि आवश्यक हो, तो हम नए खरीदे गए मठ-मैदानों को बेच देंगे। हम संन्यासी हैं और भिक्षा पर रहते हैं तथा पहले की तरह फिर से पेड़ के नीचे सोना शुरू कर देंगे।”

ऐसी नौबत नहीं आई और उन्हें काम के लिए पर्याप्त धन मिल गया था। भूमि का एक व्यापक भूखंड सरकारी अधिकारियों के साथ समन्वय करके किराए पर लिया गया था जहाँ आइसोलेशन सेंटर स्थापित किए गए थे। राहत कार्य युद्ध स्तर पर किया गया और स्वामी विवेकानंद द्वारा अपनाए गए उपायों ने लोगों को विश्वास दिलाया कि वे महामारी से लड़ सकते हैं। लोगों ने देखा कि संन्यासियों का काम केवल वेदांत का प्रचार करना नहीं है, बल्कि अपने देशवासियों के लिए वेदांत की शिक्षाओं को मूर्त रूप में लाना है।


अगले वर्ष मार्च महीने में कलकत्ता में दूसरी बार प्लेग ने दस्तक दी। स्वामी विवेकानंद ने बिना समय गँवाते हुए राहत कार्य के लिए एक समिति का गठन किया जिसमें भगिनी निवेदिता को सचिव और उनके गुरुभाई स्वामी सदानंद को पर्यवेक्षक और स्वामी शिवानंद, नित्यानंद, और आत्मानंद को सदस्य बनाया गया। सभी ने कलकत्ता के लोगों को सेवा देने के लिए दिन-रात कार्य किया।


विवेकानंद ने आग्रह किया, “भाई, अगर आपकी मदद करने वाला कोई नहीं है, तो बेलूर मठ में श्री भगवान रामकृष्ण के सेवकों को तुरंत सूचना भेजें। हर संभव मदद पहुँचाई जाएगी। माता की कृपा से मौद्रिक सहायता भी संभव हो जाएगी।” शामबाजार, बागबाजार और अन्य पड़ोसी इलाकों में मलिन बस्तियों की सफाई के साथ मार्च 1899 में राहत कार्य शुरू हुआ, वित्तीय सहायता के लिए समाचार पत्रों के माध्यम से गुहार भी लगाई गई।


भगिनी निवेदिता ने स्वामी विवेकानंद के साथ प्लेग पर अनेकों व्याख्यान दिए। 21 अप्रैल को उन्होंने ‘द प्लेग एंड द ड्यूटी ऑफ स्टूडेंट्स’ पर क्लासिक थिएटर में छात्रों से बात की। सिस्टर निवेदिता ने पूछा, “आपमें से कितने लोग स्वेच्छा से आगे आएँगे और झोपड़ियों की सफाई में मदद करेंगे?” भगिनी और स्वामी के शक्तिशाली शब्दों को सुनने के बाद लगभग पंद्रह छात्रों का एक समूह प्लेग सेवा के कार्य के लिए सामने आया।


एक दिन जब सिस्टर निवेदिता ने देखा कि स्वयंसेवकों की कमी है, तो उन्होंने स्वयं गलियों की सफाई शुरू कर दी। गोरी चमड़ी की महिला को अपनी गलियों में सफाई करते देखकर इलाके के युवकों को शर्म महसूस हुई और उन्होंने झाड़ू उठाकर उनका समर्थन किया।


भगिनी निवेदिता ने खुद को अस्थायी रूप से एक ऐसी बस्ती में स्थानांतरित कर लिया था जो प्लेग महामारी से सबसे अधिक प्रभावित थी, जहाँ वह दिन-रात दीवारों को सफ़ेद रंग करने में लगी रहती थी और उन बच्चों की देखभाल करती थी जिनकी माताओं का महामारी से देहांत हो चुका था। संभावित खतरे को नजरअंदाज करते हुए भी वह अपने कार्य में संलग्न रही। उन्होंने अपनी एक अंग्रेजी मित्र, मिसेज कूलस्टन को लिखा, “अंतहीन काम है। केवल यहाँ रहना ही अपने आप में काम है।” अंततः रामकृष्ण मिशन की टोली ने इस बीमारी को नियंत्रित करने में कामयाबी हासिल की।


इसलिए एक जागरूक नागरिक के रूप में हमें आस-पास की अफवाहों पर ध्यान नहीं देना चाहिए और कोरोना महामारी के बचाव के अनुकूल व्यवहार का पालन करते हुए अपने आस-पास के लोगों के लिए अधिक से अधिक मदद करने का और वातावरण को सकारात्मक बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि सरकार बहुत कुछ कर सकती है लेकिन सब कुछ नहीं कर सकती।



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राष्ट्रपति के नाम पर महिलाओं ने दिया ज्ञापन; आशाराम बापू का मामला...

3 मई 2021

azaadbharat.org


आशाराम बापू जोधपुर जेल में करीब 8 साल से बंद हैं। देशभर में काफी महिलाओं ने राष्ट्रपति को उनके नाम पर ज्ञापन दिया। जानिए उस ज्ञापन में क्या लिखा था?



माननीय महामहिम राष्ट्रपति महोदय,

         भारत सरकार, नई दिल्ली 

     मा.जिलाधीश महोदय, 

मान्यवर, जय हिन्द... वन्दे मातरम् ...

हमारी भारतीय संस्कृति की महानता को पूरे विश्व के मनीषियों ने स्वीकार किया है और इस संस्कृति के आधारस्तम्भ हैं- ब्रह्मज्ञानी संत-महापुरुष ।

ब्रह्मज्ञानी संत कबीरजी ने ठीक ही कहा है : 

आग लगी आकाश में झर-झर गिरे अंगार।

 संत न होते जगत में तो जल मरता संसार।।


चराचर जगत में व्याप्त परात्पर ब्रह्म परमात्मा को आत्मरुप में जाननेवाले संत ब्रह्मज्ञानी कहलाते हैं। ऐसे महापुरुषों के द्वारा ही प्राणी मात्र का वास्तविक कल्याण होता है। धर्म का अभ्युदय करने, अलौकिक ईश्वरीय ज्ञान, आनंद और शांति का प्रसाद बाँटने के लिए ऐसे ब्रह्मज्ञानी संतों का धरती पर अवतरण होता है। जात-पात-मजहब-देश की संकीर्णता से ऊपर उठाकर मानवमात्र को एकसूत्र में बाँधने का सामर्थ्य ऐसे ब्रह्मज्ञानी संतों में होता है। ब्रह्मज्ञानी संत श्री आशारामजी बापू से जुड़े हुए करोड़ों लोगों का अनुभव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। 

पिछले 55 वर्षों से इन दूरदर्शी महापुरुष ने देश में करोड़ों की संख्या में संयम-सदाचार प्रेरक सत्साहित्य पहुँचाया, देश की जनता को ओजस्वी-तेजस्वी, बहुप्रतिभा-सम्पन्न बनाने हेतु योग व ब्रह्मविद्या का प्रशिक्षण दिया, मानवता, परदुःखकातरता, ईश्वरीय शांति व निर्विकारी सुख की गंगा बहायी, हजारों “बाल संस्कार केन्द्रों” और “युवा सेवा संघों” के माध्यम से बाल और युवा पीढ़ी में सच्चरित्रता व नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना कर राष्ट्र की रीढ़ मजबूत की, ‘महिला उत्थान मंडल’ की स्थापना की एवं महिलाओं के सर्वांगीण विकास हेतु विभिन्न प्रकल्प चलाये, अनगिनत लोगों को ईश्वर-भक्ति व जनसेवा के रास्ते लगाकर आध्यात्मिक क्रांति का उद्घोष किया; इनके मार्गदर्शन से कई सामाजिक व राष्ट्रीय समस्याओं का असरकारक समाधान मिला है; इनके उपदेशों व समाजोत्थान के सेवाकार्यों से विभिन्न मत-पंथ-सम्प्रदायों के देश-विदेश के करोड़ों लोग लाभान्वित हुए हैं; इन्होंने देशवासियों के हृदय में देश व संस्कृति के प्रति निष्ठा सुदृढ़ की है, देश की एकता और अखंडता को मजबूत किया है, लोगों में प्राणिमात्र के लिए सद्भाव जगाया है, नशामुक्ति अभियान चलाकर एवं समाज से कुरीतियाँ दूर करके आपसी सौहार्द व भाईचारे को बढ़ावा देते हुए स्वस्थ व सुंदर समाज का निर्माण किया है; इन्होंने कर्तव्यपालन, ईमानदारी, मितव्ययिता की बहुमूल्य शिक्षा देकर, पर्यावरण सुरक्षा, आयुर्वेदिक, प्राकृतिक आदि स्वदेशी चिकित्सा-पद्धतियों को बढ़ावा देकर तथा स्वदेशी उत्पादों व गौ संरक्षण-संवर्धन की ओर लोगों को मोड़कर देश के अर्थतंत्र को मजबूती दी है। 


यह हमारा बड़ा दुर्भाग्य है कि जिन ब्रह्मज्ञानी संतों ने देश के सभी धर्मों, मतों, पंथों व संप्रदायों के बीच प्रेम, शांति, सद्भाव एवं अध्यात्म-ज्ञान का संचार किया, उन्हें राष्ट्र व मानवता विरोधी ताकतों द्वारा षड्यंत्र का शिकार बनाया जा रहा है। भारत के जिस ब्रह्मज्ञानी संत ने निःस्वार्थ भाव से अपना पूरा जीवन विश्व मानवता को ऊँचा उठाने में समर्पित कर दिया, आज उनको ही झूठे आरोप लगाकर कानूनी जटिलताओं एवं त्रुटियों का दुरुपयोग कर जेल में डाल दिया गया है। ऐसे भारतीय संस्कृति के संरक्षक व निष्काम कर्मयोग के प्रेरणापुंज ब्रह्मनिष्ठ पूज्य संत श्री आशारामजी बापू पिछले 7.5 वर्षों से कारावास में हैं। 


जब समाज-विघातक कार्य करनेवालों, आतंकवादियों के भी मानवाधिकारों का ख्याल हमारे देश में व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रखा जाता है तो 85 वर्षीय ऐसे महान ब्रह्मज्ञानी संत, जिन्होंने स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद सन् 1993 में शिकागो की ‘विश्व धर्म संसद’ में सनातन धर्म का सुसफल एवं बहुप्रशंसित प्रतिनिधित्व करके अपने देश-धर्म की शान बुलंद की तथा समाज में मानवीय संवेदना, परोपकार, संस्कृति-प्रेम, अनेकता में एकता के सुसंस्कारों का सिंचन किया और समाजहितकारी सत्प्रवृत्तियों में अथकरूप से लगकर अपने जीवन की होली करके भी जरूरतमंदों को जीवनोपयोगी चीज-वस्तुएँ एवं सभीको भगवद्भक्ति, ज्ञान, शांति का प्रसाद बाँटकर उनके जीवन में दिवाली कर दी, उन लोकमांगल्यकारी महान विभूति के मानवाधिकारों का ख्याल तो अवश्य ही रखा जाना चाहिए।


नारियों की सुरक्षा के लिए बनाये गये सख्त कानूनों के बड़े स्तर पर हो रहे दुरुपयोग से आज वे नारियों के लिए ही कष्टप्रद बन रहे हैं। आज राष्ट्र व समाज विरोधी ताकतें स्त्रियों को मोहरा बनाकर समाजहित में लगे प्रतिष्ठित लोगों के खिलाफ इन कानूनों का दुरुपयोग


रही हैं। जब किसी स्त्री द्वारा मिथ्या आरोप लगाया जाता है तो इससे न सिर्फ एक पुरुष प्रताड़ित होता है बल्कि उस पुरुष से जुड़ी उसकी माँ, बहन, बेटी आदि कई महिलाएँ भी उसका शिकार बन जाती हैं। उनका पारिवारिक, सामाजिक जीवन तहस-नहस हो जाता है। पूज्य बापूजी को जेल में रखे जाने से पूज्य बापूजी से जुड़ी लाखों-लाखों महिलाएँ भी व्यथित हैं, पीड़ित हैं। 


आदरणीय भूतपूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री अटल विहारी वाजपेयीजी ने पूज्य बापूजी के बारे में लखनऊ के सत्संग कार्यक्रम में कहा था, “देशभर की परिक्रमा करते हुए जन-जन के मन में अच्छे संस्कार जगाना, यह एक ऐसा परम राष्ट्रीय कर्तव्य है, जिसने हमारे देश को आज तक जीवित रखा है और इसके बल पर हम उज्ज्वल भविष्य का सपना देख रहे हैं। उस सपने को साकार करने की शक्ति-भक्ति एकत्र कर रहे हैं। पूज्य बापूजी सारे देश में भ्रमण करके जागरण का शंखनाद कर रहे हैं, सर्वधर्म-समभाव की शिक्षा दे रहे हैं,  संस्कार दे रहे हैं तथा अच्छे और बुरे में भेद करना सिखा रहे हैं। हमारी जो प्राचीन धरोहर थी और हम जिसे लगभग भूलने का पाप कर बैठे थे, बापूजी हमारी आँखों में ज्ञान का अंजन लगाकर उसको फिर से हमारे सामने रख रहे हैं।"

इसके अलावा अनेक धर्माचार्यों, संतों-महंतों, केन्द्र-राज्य सरकारों, धार्मिक-राष्ट्रीय संगठनों, उच्च पदस्थ लोकप्रिय जनप्रतिनिधियों, शिक्षाविदों, समाजसेवकों आदि ने भी राष्ट्र निर्माण में पूज्य बापूजी के अमूल्य योगदान की बहुत सराहना की है। ऐसे महान ब्रह्मज्ञानी संत की रिहाई की मांग सब ओर से उठ रही है। 

 

राष्ट्रोत्थान चाहनेवाले आप जैसे महानुभाव निश्चय ही इस बात पर गौर करेंगे कि राष्ट्र के गरीब, आदिवासी, पिछड़े एवं सुदूर क्षेत्रों के उपेक्षित जातियों के लोगों में भी जात-पात-धर्म-सम्प्रदाय किसी भी भेद को देखे बगैर सबमें छुपी एक आत्मचेतना का दर्शन करते हुए उन सबका हित चाहने व सक्रिय रूप से करनेवाले इन महापुरुष का समाज में होना राष्ट्रोत्थान में कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। उनका जेल में होना समाजहित के कार्यों में एक बड़ी भारी क्षति है। 


आज पूरा विश्व जिन आपदाओं का सामना कर रहा है उससे विश्वमानव की रक्षा करने का सामर्थ्य ब्रह्मज्ञानी संत श्री आशारामजी बापू में है। इतिहास साक्षी है कि समाज ब्रह्मज्ञानी संत-महापुरुषों की महानता को उनके जीवन काल में समझ नहीं पाता और जब उनका साकार श्रीविग्रह नहीं रहता तब पश्चाताप करता है। पर ऐसे महापुरुषों के सान्निध्य लाभ से वंचित रहने से समाज को हुए गंभीर नुकसान की क्षतिपूर्ति कोई नहीं कर पाता। आज पूज्य बापूजी के 85 वें अवतरण दिन चैत्र वद 6 (गुजरात-महाराष्ट्र के अनुसार) तदनुसार 2 मई  के अवसर पर ऐसे महान ब्रह्मज्ञानी संत के प्रत्यक्ष सांन्निध्य लाभ से वंचित करोडों हृदयों की वेदना आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं ।  

यह मुद्दा देश के लाखों-करोड़ों नागरिकों के जीवन से, हितों से जुड़ा है, अतः श्री योग वेदांत सेवा समिति के माध्यम से सभी नागरिक महामहिमजी से करबद्ध प्रार्थना करते हैं कि ऐसी आपातकालीन परिस्थितियों में आप संविधान प्रदत्त अपने विशेषाधिकारों का सदुपयोग करके राष्ट्रहित में ब्रह्मज्ञानी संत श्री आशारामजी बापू की रिहाई हेतु शीघ्रातिशीघ्र उचित कार्यवाही करवायें। 

जय हिन्द... भारत माता की जय... धन्यवाद...


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आशाराम बापू कौन हैं, कैसे बने संत? उनकी संस्था क्या कार्य करती है?

आशाराम बापू कौन हैं, कैसे बने संत? उनकी संस्था क्या कार्य करती है?

02 मई 2021

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रविवार को हिन्दू संत आशारामजी बापू का जन्मदिन था, शनिवार को ट्वीटर पर टॉप ट्रेंड कर रहा था #2May_विश्व_सेवा_दिवस क्योंकि उनके  अनुयायी उनका जन्मदिन विश्व सेवा दिवस के रूप में मनाते हैं।



बापू आशारामजी के बचपन का नाम आसुमल था। उनका जन्म अखंड भारत के सिंध प्रांत के बेराणी गाँव में चैत्र कृष्ण षष्ठी विक्रम संवत् 1994 के दिन हुआ था। उनकी माता महँगीबा व पिताजी थाऊमल नगरसेठ थे।

https://youtu.be/oMmfhuvLQzM


बालक आसुमल को देखते ही उनके कुलगुरु ने भविष्यवाणी की थी, "आगे चलकर यह बालक एक महान संत बनेगा, लोगों का उद्धार करेगा।"


बापू आशारामजी का बाल्यकाल संघर्षों की एक लंबी कहानी है। 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के कारण अथाह सम्पत्ति को छोड़कर बालक आसुमल का परिवार गुजरात, अहमदाबाद शहर में आ बसा। उनके पिताजी द्वारा लकड़ी और कोयले का व्यवसाय आरम्भ करने से आर्थिक परिस्थिति में सुधार होने लगा। तत्पश्चात् शक्कर का व्यवसाय भी आरम्भ हो गया।


माता-पिता के अतिरिक्त बालक आसुमल के परिवार में एक बड़े भाई तथा दो छोटी बहनें थीं।

     

बालक आसुमल को बचपन से ही प्रगाढ़ भक्ति प्राप्त थी। प्रतिदिन सुबह 4 बजे उठकर ठाकुरजी की पूजा में लग जाना उनका नित्य नियम था।


दस वर्ष की नन्हीं आयु में बालक आसुमल के पिताजी थाऊमलजी देहत्याग कर स्वधाम चले गये।


पिता के देहत्यागोपरांत आसुमल को पढ़ाई (तीसरी कक्षा) छोड़कर छोटी-सी उम्र में ही कुटुम्ब को सहारा देने के लिये सिद्धपुर में एक परिजन के यहाँ नौकरी करनी पड़ी। 3 साल तक नौकरी के साथ-साथ साधना में भी प्रगति करते रहे। 3 साल बाद वे वापिस अहमदाबाद आ गए और भाई के साथ शक्कर की दुकान पर बैठने लगे।


लकिन उनका मन सांसारिक कार्यों में नहीं लगता था, ज्यादातर जप-ध्यान में ही समय निकालते थे। 21 साल की उम्र में घर वाले आसुमल जी की शादी करना चाहते थे लेकिन उनका मन संसार से विरक्त और भगवान में तल्लीन रहता था। इसलिए वे घर छोड़कर भरुच के अशोक आश्रम चले गए; पर घरवालों ने उन्हें ढूंढकर जबरदस्ती उनकी शादी करवा दी।


लकिन मोह-ममता का त्याग कर ईश्वर प्राप्ति की लगन मन में लिए शादी के बाद भी तुरंत पुनः घर छोड़ दिया और आत्म-पद की प्राप्ति हेतु जंगलों-बीहड़ों में घूमते और साधना करते हुए ईश्वर प्राप्ति के लिए तड़पते रहे। नैनीताल के जंगल में योगी ब्रह्मनिष्ठ संत साईं लीलाशाहजी बापू को उन्होंने सद्गुरु के रूप में स्वीकार किया।


 ईश्वरप्राप्ति की तीव्र तड़प देखकर सद्गुरु लीलाशाहजी बापू का हृदय छलक उठा और उन्हें 23 वर्ष की उम्र में सद्गुरु की कृपा से आत्म-साक्षात्कार हो गया। तब सद्गुरु लीलाशाहजी ने उनका नाम आसुमल से आशारामजी रखा ।


अपने गुरु लीलाशाहजी बापू की आज्ञा शिरोधार्य कर संत आसारामजी बापू समाधि-अवस्था का सुख छोड़कर तप्त लोगों के हृदय में शांति का संचार करने हेतु समाज के बीच आ गये।


सन् 1972 में अहमदाबाद में साबरमती के तट पर आश्रम स्थापित किया।

उसके बाद देश-विदेश में बढ़ते गए आश्रम।आज उनके आश्रम करीब 450 हैं और समितियां 1400 से अधिक हैं जो देश-समाज और संस्कृति के उत्थान कार्य कर रही हैं। भारत की राष्ट्रीय एकता, अखंडता और विश्व शांति के लिए हिन्दू संत आशारामजी बापू ने राष्ट्र के कल्याणार्थ अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।


आशारामजी बापू द्वारा किए गए कार्य:



1). लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर धर्म के संस्कार, मकान, जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया  ।


2). कत्लखाने में जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।


3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।

https://youtu.be/fQ7DtN1dc0Q


4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया ।


5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी- तेजस्वी बनाया ।


6). लंदन, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया  ।


7). वैलेंटाइन डे का कुप्रभाव रोकने हेतु "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया।


8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया।


9). करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया।


10). नशामुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसनमुक्त कराया।


11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल वाए।


12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोटि पीठ के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी" बाबा रामदेव, मोरारी बापूजी, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया।


13. बच्चों के लिए "बाल संस्कार केंद्र", युवाओं के लिए "युवा सेवा संघ", महिलाओं के लिए "महिला उत्थान मंडल" खोलकर उनका जीवन धर्ममय व उन्नत बनाया।


कहा जाता है कि हिन्दू संत आशारामजी बापू का बहुत बड़ा साधक-समुदाय है। लगभग करीब 8 करोड़ लोग देश-विदेश में हैं और इतने सालों से जेल में होते हुए भी उनके अनुयायियों की श्रद्धा टस से मस नहीं हुई है। उन करोड़ों भक्तों का एक ही कहना है कि हमारे गुरुदेव (संत आशारामजी बापू) निर्दोष हैं उन्हें षड़यंत्र के तहत फंसाया गया है। वे जल्द से जल्द निर्दोष छूटकर हमारे बीच शीघ्र ही आयेंगे।

http://ashram.org/Pujya-Bapuji


गौरतलब है- संत आशारामजी बापू का जन्म दिवस गत वर्ष 13 अप्रैल को था। अभी उनका 85वाँ साल चल रहा है, पिछले 8 साल से जेल में बन्द होने पर भी उनके करोड़ों अनुयायियों द्वारा देश-विदेश में एक अनोखे अंदाज में मनाया जाता है- ये दिन "विश्व सेवा दिवस" के नाम पर।


वसे तो हर साल इस दिन देशभर में जगह-जगह पर निकाली जाती हैं- भगवन्नाम संकीर्तन यात्रायें और वृद्धाश्रमों,अनाथालयों व अस्पतालों में निशुल्क औषधि, फल व मिठाई वितरित की जाती है। गरीब व अभावग्रस्त क्षेत्रों में होता है- विशाल भंडारा जिसमें वस्त्र,अनाज व जीवन उपयोगी वस्तुओं का वितरण किया जाता है। उस दिन जगह जगह पर छाछ, पलाश व गुलाब के शरबत के प्याऊ लगाये जाते हैं एवं सत्साहित्य आदि का वितरण किया जाता है।

www.ashram.org/seva


कोरोना महामारी में लॉकडाउन होने के कारण इसबार देशभर में अनेक स्थानों पर ज़रूरतमंद लोगों में भोजन प्रसादी, राशनकिट, जीवनुपयोगी सामग्री आदि का वितरण किया जा रहा है।


मीडिया ने दिन-रात हिन्दू संत आशारामजी बापू के खिलाफ समाज को भ्रमित करने और उनकी छवि को धूमिल करने का भरसक प्रयास किया लेकिन उनको मानने वाले करोड़ों अनुयायियों की आज भी अटल श्रद्धा है उनमें। जनता भी प्रश्न कर रही है कि बापू निर्दोष हैं तो उनकी रिहाई क्यों नहीं की जा रही है? सरकार को उसपर ध्यान देना चाहिए।


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बापू आशारामजी के जन्मदिवस पर देश की लाखों महिलाओं की माँग

01 मई 2021

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विश्व में प्रतिदिन अनगिनत क्रियाकलाप होते हैं लेकिन उनमें से गिने-चुने ही जन, समाज के मांगल्य और परोपकार की भावना से भरे होते हैं। हमारे ही बीच समाज का एक ऐसा बड़ा तबका है जो दुनियाभर में ऐसी अनेक वार्षिक परियोजनाओं को चलाता तो है ही, साथ ही हर साल उसका नूतनीकरण दिन भी मनाता है! इस दिन आनेवाले साल के लिए विश्वसेवा का नया संकल्प लिया जाता है। आप न जानते हों तो आपको बता दें कि वह दिन कोई और नहीं बल्कि संत आशारामजी बापू का अवतरण दिन है ।



बापू का अवतरण दिन, जो कि दुनियाभर में ‘विश्व सेवा-सत्संग दिवस’ के नाम से मशहूर है, वह इस साल 2 मई को मनाया जायेगा। बापू के शिष्यों, भक्तों, सत्संगियों और समाजसेवी लोगों में इस निमित्त उत्साह का ऐसा तूफान देखने को मिलता है कि वे महीनाभर पहले ही आयोजनों में जोर-शोर से लग जाते हैं।

इस साल अवतरण दिन के निमित्त किये जानेवाले विभिन्न आयोजन 2 अप्रैल से ही शुरू हो गये हैं। अभी के इस कोरोना काल में चिकित्साकर्मियों को आयुर्वेदिक चाय प्रदान करने, जनता में संक्रमण से सुरक्षा हेतु मास्क वितरण करने तथा मरीजों को फल, बिस्कुट व औषधि वितरण करने से लेकर इस विकट समय में भुखमरी व अभावग्रस्तता का शिकार हो रहे लोगों की अनाज व रोजमर्रा की वस्तुओं की आपूर्ति करने तक की विभिन्न सेवाएँ की जा रही हैं। 


इनके अलावा जरूरतमंदों, अनाथों, लाचारों को भोजन-प्रसाद, वस्त्र, बर्तन आदि जीवनोपयोगी वस्तुएँ व ‘राशन किट’ देने के साथ आर्थिक सहायता प्रदान करना, हर महीने राशन कार्ड द्वारा अनाज वितरण, जगह-जगह निःशुल्क शीतल शरबत, विशेषकर रोगप्रतिरोधक क्षमतावर्द्धक आँवला-चुकंदर शरबत व छाछ वितरण, सत्साहित्य वितरण, विद्यार्थियों में नोटबुक वितरण, गायों को हरा चारा और गुड़ खिलाने जैसे कई सेवाकार्य सम्पन्न हो रहे हैं।


85 वर्षीय बापू के जेल में होने से आहत हुए उनके अनुयायी एवं उन्हें जानने-माननेवाले देश के नागरिक, विशेषकर महिलाएँ अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं। महिला कल्याण के क्षेत्र में काम करनेवाले ‘महिला उत्थान मंडल’, जिसकी शाखाएँ एवं स्वयंसेविकाएं देश-विदेश में फैली हुई हैं, उसके सदस्यों का कहना है कि यह सदी का सबसे बड़ा अन्‍याय है कि महाराजश्री को उनके जीवन और जीवनकार्यों के सर्वथा विपरीत, आधारहीन, अनर्गल मामला खड़ा करके पिछले करीब 8 वर्षों से समाज से दूर रखा गया है। ऐसी स्थितियों में भी हम बापूजी के द्वारा धरोहर के रूप में मिले समाजसेवा के कार्यों में लगे हुए हैं पर यदि बापूजी बाहर होते तो देश और विश्व में अनेक गुना लोकहितकारी कार्य होते। इन लोकसेवी संत की अनुपस्थिति समाजसेवा की वृद्धि में बड़ा भारी अवरोध बन रही है।


मडल के प्रवक्ता ने बताया कि बापूजी के सत्संग-मार्गदर्शन से जिन्हें लाभ हुआ है एवं जिन्होंने बापू के देश, धर्म व संस्कृति की रक्षा एवं सेवा हेतु किये जानेवाले कार्यों से प्रेरणा एवं बल प्राप्त किया है ऐसे विश्वभर में फैले धर्म व संस्कृति प्रेमी नारी-वर्ग का कहना है कि इन वयोवृद्ध, परदुःखकातर संत को झूठे आरोपों के चलते करीब 8 वर्षों से समाज से दूर रखा जाना समाज के साथ घोर अन्याय है। उनको शीघ्र रिहा किया जाना चाहिए। इस मुद्दे को लेकर महिलाएँ एकजुट होती जा रही हैं।



महिलाओं का कहना है कि बापू ने नारियों को अपनी दिव्यता में जगने की राह दिखायी, नारी-उत्थान के लिए महिला आश्रमों एवं महिला उत्थान मंडलों की स्थापना की और इनके माध्यम से अनेक लोक-उत्थान के सेवाकार्य चलाये हैं।  


पाश्चात्य विचारधारा नारी को मात्र भोग की एक वस्तु मानती है और पाश्चात्य शिक्षा-पद्धति भी नारियों को ऐसी ही शिक्षा देती है जिससे उन्हें भोग्या होने में ही गौरव महसूस हो। पाश्चात्य देशों से यह विचारधारा भारत में भी प्रवेश कर जड़ें जमाती जा रही हैं। उसे रोकने और महिला-वर्ग को फिर से अपनी पवित्र संस्कृति की ओर मोड़ने का महान कार्य बापू ने किया है। नारी के बारे में भारतीय संस्कृति के संरक्षक-पोषक आशारामजी बापू की ज्ञानधारा यह उद्घोष करती है- ‘‘नारी ! तू नारायणी... जाग हे कल्याणी!’’ बापू की प्रेरणा से संचालित महिला उत्थान मंडल महिलाओं को भारतीय संस्कृतिरूपी वह आईना दिखा रहा है जो उन्हें अपनी उज्ज्वल, तेजोमयी गरिमा दिखाने में सक्षम है।


2 मई को बापू का जन्मदिवस है। उम्र के 85वें वर्ष में पदार्पण कर रहे बापू आशारामजी को न्याय दिलाने की मुहिम उनकी उम्र के इस पड़ाव पर और तेज हो गयी है। बापू की रिहाई की माँग को लेकर ‘महिला उत्थान मंडल’ के तत्त्वावधान में इन महिलाओं द्वारा देशभर में अनेकानेक स्थानों पर राष्ट्रपति के नाम संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं । कई स्थानों पर धरना-प्रदर्शन, ‘संत एवं संस्कृति रक्षा यात्राओं’ और जगह-जगह ‘संत व संस्कृति रक्षा संकल्प


र्यक्रमों’ के आयोजन प्रारम्भ हो गये हैं। देश के कई महिला संगठन ‘महिला उत्थान मंडल’ की माँग के समर्थन में उतरते जा रहे हैं एवं बापू आशारामजी की रिहाई की माँग को बुलंद कर रहे हैं।


गौरतलब है कि ये महिलाएँ अब सोशल मीडिया पर भी अपना ‘सत्याग्रह आंदोलन’ विश्वव्यापी बनाने में पीछे नहीं रह रही हैं। बापू की निर्दोषता और महानता का बयान करते हुए और बापू जल्द-से-जल्द जेल से बाहर होने चाहिए- इस संकल्प को लेकर महिलाओं के असंख्य सेल्फी विडियोज- यूट्यूब, वॉट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक, टेलीग्राम आदि माध्यमों पर साझा किये जा रहे हैं। सोशल मीडिया में भी देखने में यह आ रहा है कि ‘निर्दोष बापूजी को रिहा करो !’ की आवाज जनता में जोर पकड़ने लगी है।


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अपनी मृत्यु डरावनी लगती है, बाकी की मौत का उत्सव मनाता है मनुष्य...

30 अप्रैल 2021

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मौत के स्वाद के चटखारे लेता मनुष्य कहता है कि मुझे बकरे का, भैंसे का, तीतर का, मुर्गे का, हलाल का, बिना हलाल का, ताजे बच्चे का, भुना हुआ, छोटी मछली, बड़ी मछली, हल्की आंच पर सींका हुआ आदि-आदि दीजिये। न जाने कितने, बल्कि अनगिनत स्वाद हैं- मौत के!



क्योंकि मौत पशु-पक्षी की और स्वाद हमारा।


सवाद का कारोबार बन गई मौत। 


मर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पॉल्ट्री फार्म्स। 

नाम "पालन" और मक़सद "हत्या"। स्लॉटर हाऊस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली-गली में खुले नॉनवेज रेस्टॉरेंट मौत के कारोबार नहीं तो और क्या हैं? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नहीं है।


जो हमारी तरह बोल नहीं सकते, अभिव्यक्त नहीं कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया?

कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं?

या उनकी आहें नहीं निकलतीं?


डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते हैं- बेटा कभी किसी का दिल नहीं दुखाना! किसी की आहें मत लेना! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आने चाहिए!


बच्चों में झूठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ में वो हड्डी दिखाई नहीं देती, जो इससे पहले एक शरीर थी जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...!!

जिसे काटा गया होगा! 

जो कराहा होगा! 

जो तड़पा होगा!

जिसकी आहें निकली होंगी!

जिसने बद्दुआ भी दी होगी!


 कसे मान लिया कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे?


क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं? क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है?


आज कोरोना वायरस उन जानवरों के लिए ईश्वर के अवतार से कम नहीं है। 


जब से इस वायरस का कहर बरपा है, जानवर स्वच्छंद घूम रहे हैं। पक्षी चहचहा रहे हैं। उन्हें पहली बार इस धरती पर अपना भी कुछ अधिकार-सा नज़र आया है। पेड़-पौधे ऐसे लहलहा रहे हैं, जैसे उन्हें नई जिंदगी मिली हो! धरती को भी जैसे सांस लेना आसान हो गया हो।


सष्टि के निर्माता द्वारा रचित करोड़-करोड़ योनियों में से एक कोरोना ने हमें हमारी औकात बता दी। घर में घुसके मारा है और मार रहा है। और उसका हमसब कुछ नहीं बिगाड़ सकते। अब घंटियां बजा रहे हो, इबादत कर रहे हो, प्रेयर कर रहे हो और भीख मांग रहे हो उससे कि हमें बचा ले।


धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, क्रिसमस पर पशुओं की हत्या करते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो। कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो। 


किसे ठग रहे हो? अल्लाह को?  जीसस को? भगवान को? या खुद को?


मंगलवार को नानवेज नहीं खाता ...!!!

आज शनिवार है इसलिए नहीं...!!!

अभी रोज़े चल रहे हैं ...!!!

नवरात्रि में तो सवाल ही नहीं उठता...!!!


झूठ पर झूठ...फिर कुतर्क सुनो...फल सब्जियों में भी तो जान होती है ...? ...तो सुनो, फल सब्जियाँ संसर्ग नहीं करतीं, ना ही वो किसी प्राणी को जन्म देती हैं। 

इसीलिए उनका भोजन उचित है जो ईश्वर ने मनुष्य के लिए बनाया है।


ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हें दी ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको! लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया।


आज कोरोना के रूप में मौत हमारे सामने खड़ी है। तुम्हीं कहते थे कि हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमें लौटायेगी। मौतें दी हैं प्रकृति को, तो मौतें ही लौट रही हैं।

बढो...!!! आलिंगन करो मौत का....!!!


यह संकेत है- ईश्वर का। 

प्रकृति के साथ रहो।

प्रकृति के होकर रहो।

वर्ना... ईश्वर अपनी ही बनाई कई योनियों को धरती से हमेशा के लिए विलुप्त कर चुके हैं। उन्हें एक क्षण भी नहीं लगेगा।


ईश्वर के बनाये हुए वेद के सिद्धांतों पर चलो, अन्यथा इससे भी भयंकर सजा के लिए तैयार रहना। ईश्वर सर्वसमर्थ है प्राण दे सकता है तो ले भी सकता है; इसलिए उनकी शरण जाओ और उनके अनुसार चलो- यही आखिरी उपाय है।


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वायरस को रोकने का रामबाण इलाज- "अग्निहोत्र"; अमेरिका जैसे अनेक देशों ने स्वीकारा👍

 29 अप्रैल 2021

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वदकाल से भारत में यज्ञकर्म किए जाते हैं। भारतीय संस्कृति में यज्ञ-यागों का आध्यात्मिक लाभ तो है ही, परंतु वैज्ञानिक स्तर पर भी अनेक लाभ होते हैं- यह अब विज्ञान द्वारा सिद्ध हो रहा है।



इसमें एक सहज सरल और प्रतिदिन किया जानेवाला यज्ञ है- ‘अग्निहोत्र’! हिन्दू धर्म द्वारा मानवजाति को दी हुई यह एक अमूल्य देन है। अग्निहोत्र नियमित करने से वातावरण की बड़ी मात्रा में शुद्धि होती है। इतना ही नहीं, उसे करनेवाले व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि भी होती है। साथ ही वास्तु और पर्यावरण की भी रक्षा होती है।


अग्निहोत्र प्राचीन वेद-पुराणों में वर्णित एक साधारण धार्मिक संस्कार है, जो प्रदूषण को अल्प करने तथा वायुमंडल को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने हेतु किया जाता है।


अग्निहोत्र के कारण निर्मित होनेवाले औषधियुक्त वातावरण के कारण रोगकारक कीटाणुओं के बढ़ने पर प्रतिबंध लगता है तथा उनका अस्तित्व नष्ट करने में सहायता होती है। इसलिए वर्तमान में जगभर में उत्पात मचानेवाले ‘कोरोना वायरस’ के संकट पर ‘अग्निहोत्र’ एक रामबाण उपाय हो सकता है। इस पार्श्‍वभूमि पर सभी हिन्दू बंधु सभी प्रकार की वैद्यकीय जांच, उपचार, प्रतिबंधात्मक उपाय इत्यादि करते हुए देश में ‘कोरोना’ का प्रादुर्भाव रोकने के लिए तथा समाज को अच्छा आरोग्य और सुरक्षित जीवन देने के लिए सूर्यादय और सूर्यास्त के समय ‘अग्निहोत्र’ करें।


अग्निहोत्र करने के लिए किसी भी पुरोहित को बुलाने की, दानधर्म करने की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए कोई भी बंधन नहीं है। सामान्य व्यक्ति यह विधि घर, खेत, कार्यालय में मात्र 10 मिनट में कहीं भी कर सकता है। इसका खर्च भी अत्यल्प है। अग्निहोत्र नित्य करने से धर्माचरण तो होगा ही, प्रत्युत पर्यावरण के साथ ही समाज की भी रक्षा होगी।


‘अग्निहोत्र’ के संदर्भ में अनेक वैज्ञानिक प्रयोग किए गए हैं । उसकी विपुल जानकारी इंटरनेट के माध्यम से हम प्राप्त कर सकते हैं ।


फ्रान्स के ट्रेले नाम के वैज्ञानिक द्वारा हवन पर किए अनुसंधान में हवन करने से वातावरण में 96 प्रतिशत घातक विषाणु और कीटाणु कम होना दिखाई दिया है; उस विषय में ‘एथ्नोफार्माकोलॉजी 2007’ के जर्नल में शोध-निबंध प्रकाशित हुआ था।

‘नेशनल केमिकल लेबोरेटरी’ नामक संस्था के निवृत्त वरिष्ठ शास्त्रज्ञ डॉ. प्रमोद मोघे द्वारा किए गए अनुसंधान के अनुसार अग्निहोत्र के कारण वातावरण में सूक्ष्म कीटाणुओं की वृद्धि 90 प्रतिशत से कम हुई है; प्रदूषित हवा के घातक सल्फर डाईऑक्साईड का परिमाण दस गुना कम होता है; पौधों की वृद्धि नियमित की अपेक्षा अधिक होती है; अग्निहोत्र की भभूति (भस्म) कीटाणुनाशक होने से घाव, त्वचारोग इत्यादि के लिए अत्यंत उपयुक्त है; पानी के कीटाणु और क्षार का परिमाण 80 से 90 प्रतिशत कम करती है। 

इसलिए अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रान्स जैसे 70 देशों ने अग्निहोत्र को स्वीकार किया है ।उन्होंने विविध विज्ञान मासिकों में उसका निष्कर्ष प्रकाशित किया है। स्त्रोत : हिंदु जन जागृति


अपनी संस्कृति को हम भूल गए हैं इसलिए आज हमें घरों में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है, नहीं तो आज अगर घर-घर हवन होता, तुलसी, पीपल आदि होते, देशी गाय होती, महापुरुषों के अनुसार अपना रहन-सहन बनाया होता तो कोरोना जैसे भयंकर वायरस हमें छू भी नहीं सकते थे!!

हमारी संस्कृति इतनी महान है, बस! अब शीघ्र उसपर लौटने की आवश्यकता है, नहीं तो इससे भी अधिक भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।


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