Saturday, February 12, 2022

सुरेश चव्हाणके : 21की सदी की सबड़े बड़ी घटना, जिसके करोड़ो कार्यकर्ता तैयार हुए

12 मई 2021

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सुदर्शन न्यूज़ चैनल के मुख्य सम्पादक श्री सुरेश चव्हाणके ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि व्यवस्था करना नेता का काम है संस्कार देना संत का काम है। आज़ादी के बाद सबसे ज्यादा प्रताड़ित अगर किसी को किया गया है तो संत आशाराम बापू को किया गया है। मैं उनके लिए कल भी आवाज़ उठाता था आज भी उठा रहा हूँ और कल भी उठाता रहूंगा।



समाज को उनके ऊपर हुए षडयंत्र समझना चाहिए। मैं आज भी भाषण में कहा न्यायपालिका के भी धर्म के ऊपर कैसे आक्रमण किया जा सकता है। इसके सैकड़ो उदारण है। मैं अपनी चैनल के माध्यम से कई बार कह चुका हूं। सत्य केवल न्यायपालिका से ही आता है ऐसा नहीं है। हम तो ईश्वर को माननेवाले व्यक्ति है। सत्य को देखने का नजरिया केवल न्यायपालिका से नहीं ईश्वर की दृष्टि से मिलता है उसको ध्यान देना चाहीये।


बापू आशारामजी पर षड्यंत्र यानी  समस्त हिन्दू संतों पर षड्यंत्र है।


मैं एक बात कई बार कह चुका हूं और आज इस भूमि पर दौहराना चाहूंगा। कोई घटनाएं क्यों होती है वो हमको पता नहीं होता। हमें पुरुषार्थ के साथ उनको बदलना चाहीये लेकिन बापूजी के साथ इस शताब्दि के सबसे बड़ा प्रताड़ना का जो विषय हुआ ये केवल एक व्यक्ति और एक संत का नहीं है। ये समस्त हिन्दू संतों का है। क्योंकि जिस गति से जिस लेवल से जिस रुट लेवल पर बापूजी काम कर रहें थे तो ये होना था। ये ऐसा धर्म की रक्षा करनेवालों पर अटेक होना ही है। हम पे भी हुआ है। और वो भगवान ने बचा लिया है। और बचाता जाएगा।


बापू आशारामजी पर षड्यंत्र से करोड़ो हिन्दू संस्कृति के कार्यकर्ता बन गए।


मैं बापू आशारामजी के बारे में एक बात हमेशा बोलता हूं साधकों के बारे में कि हिन्दुस्तान में खास करके धर्म रक्षा के विषय में कट्टर कार्यकर्ता तैयार होने में बहुत टाइम लगता है एक एक कार्यकर्ता तैयार होने में संविनय भी देखिए शाखा में जाता है फिर शिविरों में जाता है फिर भाषण सुनता है कार्यो में जॉइन होता है आंदोलनों में जाता है तब जाके कहि कार्य करता है। राजनीति कार्य तो इतना पुख्ता नहीं होता लेकिन जो सामाजिक क्षेत्र में क्रांतिकारी जो कार्य करता है उसमें तैयार होने में बहुत लंबा टाइम लगता है।


मैं भारत की नहीं पूरे विश्व की बात कर रहा हूँ। पूरे विश्व में एक ऐसी घटना है बापूजी की गिरफ्तारी जिसके बाद लोग भले ही आकड़े पर कम-ज्यादा हो लेकिन कम से कम एक दिन में एक करोड़ लोग हिन्दू कार्यकर्ता बन गए ऐसी ये घटना है। इसलिए मैं कम से कम आंकड़ा कह रहा हूँ क्योंकि लोग कहेंगे इतने तो 6 करोड़ नही हो सकते है। एक से तो कोई असहमत हो ही नहीं सकता। हमारा शत्रु भी नही हो सकता। तो एकदम से वो activate बन गए जो खुद केवल गुरु और भगवान इस लिंक में थे।


आध्यात्मिक व्यक्ति ज्यादा इधर उधर देखता नहीं समाज में क्या हो रहा है। लेकिन एकदम से वो अपने गुरु के न्याय के लिए संघर्ष करने लगा। तो उसको पता चला कि न्यायपालिका कितनी भ्रष्ट है। तो उसको पता चला कि पुलिस प्रशासन, सरकार, राजनैतिक दल सामान्य कार्य कर्ता तथाकथित हिन्दू संगठन अन्य साधु-संत ये बिखरे हुए होना कमजोर होना ये हमारे लिए निंदा का नहीं चिंता का विषय है। हम इसलिए उनका उल्लेख कर रहें है इसलिए ये घटना पता चली और उससे जो कार्यकर्ता बना है।


अब मैं जिस जगत से हूँ मीडिया जगत से हमारे क्षेत्र के भी कई लोग अब ये मानने लगे है कि ये ठीक है कि FIR हुआ जो भी हुआ लेकिन ये अधिक हो गया। ये अब लोग मानने लगे है यहाँ तक कि जो गैर धर्मी है वो भी अब ये कहने लगे कि हाँ अब ये ज्यादा हो गया। तो इसका मतलब है कि हिंदुस्तान को जिस मुद्दे को लेकर आपने जितने तमाम महापुरुषों के नाम लिए वो जिस मुद्दे को लेकर जगाने निकले थे। वो सारे जगाने का परिपत क्या होता है ये बापूजी की घटना ना केवल इस दशक में बल्कि आने वाले शतकों तक बताती रहेगी और मैं मानता हूं कि हिन्दू को जगाने संगठित करने और प्रेरित करने की सबसे बड़ी घटना भी रहेगी।


जनता की भी मांग है कि हिन्दू संत आशारामजी बापू को शीघ्र रिहा करना चाहिए।


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कम्युनिस्टों की जहरीली कलम देश का कर रही है नुकसान

11 मई 2021

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पश्चिमी बंगाल मे हिंदुओं (विशेष रूप से दलित हिन्दू) का अमानुषिक उत्पीड़न 2 मई की रात से लगातार जारी है। सम्पूर्ण मीडिया इसपर चुप है। राज्य सरकार अपराधियों का साथ दे रही है तो केन्द्र सरकार चुप है। बड़ी संख्या में बंगाल से भाग कर असम में शरण लिए लोगों की खबरे आ रही हैं। परंतु मीडिया और सभी राजनैतिक दल इस पर चुप हैं। 



परसिद्ध अमेरिकी लेखक हावर्ड फास्ट ने अमेरिका की कम्युनिस्ट पार्टी में 16 वर्ष काम किया था। वह लिखते हैं कि पार्टी से सहानुभूति रखने वाले बाहरी बुद्धिजीवियों में प्राय: पार्टी सदस्यों से भी अधिक अंधविश्वास दिखता है। कम्युनिज्म के सिद्धांत-व्यवहार के ज्ञान या अनुभव के बदले वे अपनी कल्पना और प्रवृत्ति से अपनी राय बना लेते हैं। यह बात दुनिया भर के कम्युनिस्ट समर्थकों के लिए सच है।


चोर तबरेज आलम की पिटाई के कारण मरने पर रविश कुमार 33 घंटे चिल्लाया और पालघर के सन्यासियों के क्रूर संहार पर 33 सेकंड। बंगाल के नरसंहार और सामूहिक बलात्कार पर पूरी तरह चुप। 


भारत में इसी तरह का एक उदाहरण है- अरुंधती राय, जिसने कुछ समय से नक्सली कम्युनिस्टों के समर्थन का झंडा उठा रखा है। कुछ समय पहले इसने एक लेख “वाकिंग विद द कामरेड्स” लिखा। लेख का अंतिम निष्कर्ष यह है कि सन् 1947 से ही भारत एक औपनिवेशिक शक्ति है, जिसने दूसरों पर सैनिक आक्रमण करके उनकी जमीन हथियाई। इसी तरह भारत के तमाम आदिवासी क्षेत्र स्वाभाविक रूप से नक्सलवादियों के हैं, जिनपर इंडियन स्टेट ने सैनिक बल से अवैध कब्जा किया हुआ है। इस साम्राज्यवादी युद्धखोर ‘अपर कास्ट हिंदू स्टेट’ ने मुस्लिमों, ईसाईयों, सिखों, कम्युनिस्टों, दलितों, आदिवासियों और गरीबों के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है।


महाश्वेता देवी उच्चतम कोटि की लेखिका थीं, वामपंथीं थीं, नक्सलियों की हमदर्द थीं, इन देशद्रोहियों के मानवाधिकार का पुरजोर समर्थन करती थीं, अपनी एकपक्षीय काल्पनिक कहानियों में देश के प्रहरियों को अत्याचारी और बलात्कारी साबित करती थीं, सैकड़ों बेगुनाह सुरक्षाकर्मियों के नक्सलियों द्वारा मारे जाने पर होंठ सी लेती थीं, जंगलों में राष्ट्रभक्त आदिवासियों की नक्सलवादियों द्वारा कंगारू कोर्ट लगाकर निर्मम हत्या पर इनकी दोनों आंखों में मोतियाबिंद पककर उतर जाता था, जातिवादी नक्सली कमांडरों द्वारा लगातार किये जा रहे महिला नक्सलियों के यौन शोषण पर इनकी लेखनी को लकवा मार देता था। 


नक्सलियों के मारे जाने को सुरक्षा बलों की हिंसा बता इसका विरोध करती थीं और फटाफट-फटाफट इसपर लेख , कहानियां लिख डालती थीं, लेकिन नक्सलियों द्वारा की जा रही जवानों की हत्याओं पर इनका 'सिंगल लाइनर' आ जाता था, "मैं हिंसा के पक्ष में नहीं हूं।" नक्सली हिंसा और अपराध के विरोध में कभी कुछ नहीं लिखा। लिखतीं तो यह पोस्ट भी निरर्थक होती। सुरक्षा बलों का मानवाधिकार इनके लिये बेमानी था।


कभी नक्सली हत्या के विरूद्ध नहीं लिखा। नक्सलवाद में मौजूद जातिवाद और आदिवासी नक्सल महिलाओं के यौन शोषण और उनकी जघन्य हत्याओं से आंखें फेर लीं। निर्दोष नागरिकों और सुरक्षादल के जवानों की हत्या पर उनका साहित्यिक दिल कभी भी नहीं पसीजा। 


लगभग सौ साल पहले रूसी कम्युनिस्टों को सार्वजनिक लेखन-भाषण की तकनीक सिखाते हुए लेनिन ने कहा था कि जो भी तुम्हारा विरोधी या प्रतिद्वंद्वी हो, पहले उस पर ‘प्रमाणित दोषी का लेबल चिपका दो. उस पर मुकदमा हम बाद में चलाएंगे.’ तबसे सारी दुनिया के कम्युनिस्टों ने इस आसान, पर घातक तकनीक का जमकर उपयोग किया है। अपने अंधविश्वास, संगठन बल और दुनिया को बदल डालने के रोमांटिक उत्साह से उनमें ऐसा नशा रहा है कि प्राय: किसी पर प्रमाणित दोषी का बिल्ला चिपकाने और हर तरह की गालियां देने के बाद वे मुकदमा चलाने की जरूरत भी नहीं महसूस करते!


इसी मानसिकता से लेनिन-स्तालिन-माओवादी सत्ताओं ने दुनिया भर में अब तक दस करोड़ से अधिक निर्दोष लोगों की हत्याएं कीं। भारत के माओवादी उनसे भिन्न नहीं रहे हैं। जिस हद तक उनका प्रभाव क्षेत्र बना है, वहां वे भी उसी प्रकार निर्मम हत्याएं करते रहे हैं। अरुंधती ने भी नोट किया है कि नक्सलियों ने गलती से निर्दोषों की भी हत्याएं की हैं। किंतु ध्यान दें, यहां निर्दोष का मतलब- माओवादी-लेनिनवादी समझ से निर्दोष, न कि हमारी-आपकी अथवा भारतीय संविधान या कानून की दृष्टि से। दूसरे शब्दों में, जिसे माओवादियों और उनके अरुंधती जैसे अंध-समर्थकों ने ‘दोषी’ बता दिया, उसे तरह-तरह की यंत्रणा देकर मार डालना बिलकुल सही।


कछ साल पहले हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के केंन्द्रीय विश्वविद्यालय के अंग्रेजी और विदेशी भाषा विभाग ने महाश्वेता देवी की लघु कथा 'द्रौपदी' पर आधारित नाटक का मंचन किया। इस कथा में द्रौपदी नाम की आदिवासी महिला की सुरक्षादलों के हाथों मुठभेड़ें मारे जाने का एकतरफा वर्णन है। नाटक में वर्दीधारी सुरक्षा दलों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों और बलात्कार को दिखाया जा रहा था। ध्यान दें कि जब सारा देश उरी में हुये सेना के जवानों के बलिदान से दुखी था, आक्रोशित था, पाकिस्तान को सबक सिखाने को तत्पर था, इस निंदक नाटक का मंचन जनता और सैन्य दलों के मनोबल को तोड़ने का सोचा समझा षड़यंत्र था। स्थानीय नागरिकों द्वारा गठित 'सैनिक सम्मान संघर्ष समिति' नेे इस नाट्य-मंचन का विरोध किया और पुलिस को सूचितकर इसे बंद करवाया। https://bit.ly/3oeCVuk


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बरिटिश शासन के खिलाफ 1857 का संग्राम क्यों शुरू हुआ था- जानना जरूरी है

10 मई 2021

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1857 का संग्राम ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ी और अहम घटना थी। इस क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई, जो धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गई। क्रांति की शुरूआत तो एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई, लेकिन समय के साथ उसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया, जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया। 



आइये आजादी की पहली लड़ाई के इस वर्षगांठ के मौके पर इससे जुड़ी खास बातें जानते हैं...


19वीं सदी की पहली आधी सदी के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा हो चुका था। जैसे-जैसे ब्रिटिश शासन का भारत पर प्रभाव बढ़ता गया, वैसे-वैसे भारतीय जनता के बीच ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष फैलता गया। पलासी के युद्ध के एक सौ साल बाद ब्रिटिश राज के दमनकारी और अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ असंतोष विद्रोह के रूप में भड़कने लगा जिसने भारत में ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की बात करें तो इससे पहले देश के अलग-अलग हिस्सों में कई घटनाएं घट चुकी थीं। जैसे कि 18वीं सदी के अंत में उत्तरी बंगाल में संन्यासी आंदोलन और बिहार एवं बंगाल में चुआड़ आंदोलन हो चुका था। 19वीं सदी के मध्य में कई किसान आंदोलन हुए।


19वीं सदी के पहले 5 दशकों में कई जनजातीय विद्रोह भी हुए, जैसे- मध्य प्रदेश में भीलों का, बिहार में संथालों और ओडिशा में गोंड़ एवं खोंड़ जनजातियों का विद्रोह अहम था। लेकिन इन सभी आंदोलनों का प्रभाव क्षेत्र बहुत सीमित था यानी ये स्थानीय प्रकृति के थे। अंग्रेजों के खिलाफ जो संगठित पहला विद्रोह भड़का वह 1857 में था। शुरू में तो यह सिपाहियों के विद्रोह के रूप में भड़का लेकिन बाद में यह जनव्यापी क्रांति बन गया।


विद्रोह के कौन-कौन से कारण थे?


राजनीतिक कारण


1857 के विद्रोह का प्रमुख राजनीतिक कारण ब्रिटिश सरकार की 'गोद निषेध प्रथा' या 'हड़प नीति' थी। यह अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति थी जो ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के दिमाग की उपज थी। कंपनी के गवर्नर जनरलों ने भारतीय राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने के उद्देश्य से कई नियम बनाए। उदाहरण के लिए, किसी राजा के निःसंतान होने पर उसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन जाता था। राज्य हड़प नीति के कारण भारतीय राजाओं में बहुत असंतोष पैदा हुआ था। रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र को झांसी की गद्दी पर नहीं बैठने दिया गया। हड़प नीति के तहत ब्रिटिश शासन ने सतारा, नागपुर और झांसी को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। अब अन्य राजाओं को भय सताने लगा कि उनका भी विलय थोड़े दिनों की बात रह गई है। इसके अलावा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहेब की पेंशन रोक दी गई जिससे भारत के शासक वर्ग में विद्रोह की भावना मजबूत होने लगी।


आग में घी का काम उस घटना ने किया जब बहादुर शाह द्वितीय के वंशजों को लाल किले में रहने पर पाबंदी लगा दी गई। कुशासन के नाम पर लार्ड डलहौजी ने अवध का विलय करा लिया जिससे बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, अधिकारी एवं सैनिक बेरोजगार हो गए। इस घटना के बाद जो अवध पहले तक ब्रिटिश शासन का वफादार था, अब विद्रोही बन गया।


सामाजिक एवं धार्मिक कारण


भारत में तेजी से पैर पसारती पश्चिमी सभ्यता को लेकर समाज के बड़े वर्ग में आक्रोश था। 1850 में ब्रिटिश सरकार ने हिंदुओं के उत्तराधिकार कानून में बदलाव कर दिया और अब क्रिस्चन धर्म अपनाने वाला हिंदू ही अपने पूर्वजों की संपत्ति में हकदार बन सकता था। इसके अलावा मिशनरियों को पूरे भारत में धर्म परिवर्तन की छूट मिल गई थी। लोगों को लगा कि ब्रिटिश सरकार भारतीय लोगों को क्रिस्चन बनाना चाहती है। भारतीय समाज में सदियों से चली आ रही कुछ प्रथाओं, जैसे- सती प्रथा आदि को समाप्त करने पर लोगों के मन में असंतोष पैदा हुआ।


आर्थिक कारण


भारी टैक्स और राजस्व संग्रहण के कड़े नियमों के कारण किसान और जमींदार वर्गों में असंतोष था। इन सबमें से बहुत से ब्रिटिश सरकार की टैक्स मांग को पूरा करने में असक्षम थे और वे साहूकारों का कर्ज चुका नहीं पा रहे थे जिससे अंत में उनको अपनी पुश्तैनी जमीन से हाथ धोना पड़ता था। बड़ी संख्या में सिपाहियों का इन किसानों से संबंध था और इसलिए किसानों की पीड़ा से वे भी प्रभावित हुए।


इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद भारतीय बाजार ब्रिटेन में निर्मित उत्पादों से पट गए। इससे भारत का स्थानीय कपड़ा उद्योग खासतौर पर तबाह हो गया। भारत के हस्तशिल्प उद्योग ब्रिटेन के मशीन से बने सस्ते सामानों का मुकाबला नहीं कर पाए। भारत कच्ची सामग्री का सप्लायर और ब्रिटेन में बने सामानों का उपभोक्ता बन गया। जो लोग अपनी आजीविका के लिए शाही पर आश्रित थे, सभी बेरोजगार हो गए। इसलिए अंग्रेजों के खिलाफ उनमें काफी गुस्सा भरा हुआ था।


सन्य कारण


भारत में ब्रिटिश सेना में 87 फीसदी से ज्यादा भारतीय सैनिक थे। उनको ब्रिटिश सैनिकों की तुलना में कमतर माना जाता था। एक ही रैंक के भारतीय सिपाही को यूरोपीय सिपाही के मुकाबले कम वेतन दिया जाता था। इसके अलावा भारतीय सिपाही को सूबेदार रैंक के ऊपर प्रोन्नति नहीं मिल सकती थी। इसके अलावा भारत में ब्रिटिश शासन के विस्तार के बाद भारतीय सिपाहियों की स्थिति बुरी तरह प्रभावित हुई। उनको अपने घरों से काफी दूर-दूर सेवा देनी पड़ती थी। 1856 में लार्ड कैनिंग ने एक नियम जारी किया जिसके मुताबिक सैनिकों को भारत के बाहर भी सेवा देनी पड़ सकती थी।


बंगाल आर्मी में अवध के उच्च समुदाय के लोगों की भर्ती की गई थी। उनकी धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, उनका समुद्र (कालापानी) पार करना वर्जित था। उनलोगों को लार्ड कैनिंग के नियम से शक हुआ कि ब्रिटिश सरकार उनलोगों को क्रिस्चन बनाने पर तुली हुई है। अवध के विलय के बाद नवाब की सेना को भंग कर दिया गया। उनके सिपाही बेरोजगार हो गए और ब्रिटिश हुकूमत के कट्टर दुश्मन बन गए।


तात्कालिक कारण


1857 के विद्रोह के तात्कालिक कारणों में यह अफवाह थी कि 1853 की राइफल के कारतूस की खोल पर सूअर और गाय की चर्बी लगी हुई है। यह अफवाह हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों धर्म के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रही थी। ये राइफलें 1853 के राइफल के जखीरे का हिस्सा थीं।


मगल पांडे

29 मार्च, 1857 ई. को मंगल पांडे नाम के एक सैनिक ने 'बैरकपुर छावनी' में अपने अफसरों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, लेकिन ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों ने इस सैनिक विद्रोह को सरलता से नियंत्रित कर लिया और साथ ही उसकी बटालियन '34 एन.आई.' को भंग कर दिया। 24 अप्रैल को 3 एल.सी. परेड मेरठ में 90 घुड़सवारों में से 85 सैनिकों ने नए कारतूस लेने से इंकार कर दिया। आज्ञा की अवहेलना के कारण इन 85 घुड़सवारों को कोर्ट मार्शल द्वारा 5 वर्ष का कारावास दिया गया। 'खुला विद्रोह' 10 मई, दिन रविवार को सांयकाल 5 व 6 बजे के मध्य प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम पैदल टुकड़ी '20 एन.आई.' में विद्रोह की शुरूआत हुई, उसके बाद '3 एल.सी.' में भी विद्रोह फैल गया। इन विद्रोहियों ने अपने अधिकारियों के ऊपर गोलियां चलाई। मंगल पांडे ने 'ह्यूसन' को गोली मारी थी, जबकि 'अफसर बाग' की हत्या कर दी गई थी। मंगल पांडे को 8 अप्रैल को फांसी दे दी गई। 9 मई को मेरठ में 85 सैनिकों ने नई राइफल इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया जिनको नौ साल जेल की सजा सुनाई गई।


विद्रोह का प्रसार


इस घटना के बाद मेरठ छावनी में विद्रोह की आग भड़क गई। 9 मई को मेरठ विद्रोह 1857 के संग्राम की शुरूआत का प्रतीक था। मेरठ में भारतीय सिपाहियों ने ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या कर दी और जेल को तोड़ दिया। 10 मई को वे दिल्ली के लिए आगे बढ़े। 11 मई को मेरठ के क्रांतिकारी सैनिकों ने दिल्ली पहुंचकर, 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इन सैनिकों ने मुगल सम्राट बहादुरशाह द्वितीय को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया। शीघ्र ही विद्रोह लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, बनारस, बिहार और झांसी में भी फैल गया। अंग्रेजों ने पंजाब से सेना बुलाकर सबसे पहले दिल्ली पर अधिकार किया। 21 सितंबर, 1857 ई. को दिल्ली पर अंग्रेजों ने पुनः अधिकार कर लिया, परन्तु संघर्ष में 'जॉन निकोलसन' मारा गया और लेफ्टिनेंट 'हडसन' ने धोखे से बहादुरशाह द्वितीय के दो पुत्रों 'मिर्जा मुगल' और 'मिर्जा ख्वाजा सुल्तान' एवं एक पोते 'मिर्जा अबूबक्र' को गोली मरवा दी। लखनऊ में विद्रोह की शुरुआत 4 जून, 1857 ई. को हुई। यहां के क्रांतिकारी सैनिकों द्वारा ब्रिटिश रेजिडेंसी के घेराव के बाद ब्रिटिश रेजिडेंट 'हेनरी लॉरेन्स' की मृत्यु हो गई। हैवलॉक और आउट्रम ने लखनऊ को दबाने का भरकस प्रयत्न किया, लेकिन वे असफल रहे। आखिर में कॉलिन कैंपवेल' ने गोरखा रेजिमेंट के सहयोग से मार्च, 1858 ई. में शहर पर अधिकार कर लिया। वैसे यहां क्रांति का असर सितंबर तक रहा।


बगावत को कुचलना


1857 का संग्राम एक साल से ज्यादा समय तक चला। इसे 1858 के मध्य में कुचला गया। मेरठ में विद्रोह भड़कने के चौदह महीने बाद 8 जुलाई, 1858 को आखिरकार कैनिंग ने घोषणा किया कि विद्रोह को पूरी तरह दबा दिया गया है।


विद्रोह की असफलता के कारण


सीमित आंदोलन

हालांकि, बहुत कम समय में आंदोलन देश के कई हिस्सों तक पहुंच गया लेकिन देश के एक बड़े हिस्से पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। खासतौर पर दोआब क्षेत्र में इसका असर रहा। दक्षिण के प्रांतों ने इसमें कोई हिस्सा नहीं लिया। अहम शासकों, जैसे- सिंधिया, होल्कर, जोधपुर के राणा और अन्यों ने विद्रोह का समर्थन नहीं किया।


परभावी नेतृत्व का अभाव


विद्रोह के लिए असरदार नेतृत्व का अभाव था। नाना साहेब, तांत्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई की

पर कोई शक नहीं है लेकिन वे आंदोलन को पूरे देश में असरदार नेतृत्व नहीं दे सके। इसके अलावा विद्रोहियों में अनुभव, संगठन क्षमता व मिलकर कार्य करने की शक्ति की कमी थी। विद्रोही क्रांतिकारियों के पास ठोस लक्ष्य एवं स्पष्ट योजना का अभाव था। उन्हें अगले क्षण क्या करना होगा और क्या नहीं- यह भी निश्चित नहीं था। वे मात्र भावावेश एवं परिस्थितिवश आगे बढ़े जा रहे थे। सैनिक दुर्बलता का विद्रोह की असफलता में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। बहादुरशाह जफर और नाना साहब एक कुशल संगठनकर्ता अवश्य थे, पर उनमें सैन्य नेतृत्व की क्षमता की कमी थी, जबकि अंग्रेजी सेना के पास लॉरेन्स ब्रदर्स, निकोलसन, हेवलॉक, आउट्रम एवं एडवर्ड जैसे कुशल सेनानायक थे।


सीमित संसाधन


विद्रोहियों के पास न संख्याबल था और न पैसा। उसके उलट ब्रिटिश सेना के पास बड़ी संख्या में सैनिक, पैसा और हथियार थे जिसके बल पर वे विद्रोह को कुचलने में सफल रहे।


मध्य वर्ग का हिस्सा नहीं लेना


1857 ई. के इस विद्रोह के प्रति 'शिक्षित वर्ग' पूर्ण रूप से उदासीन रहा। व्यापारियों एवं शिक्षित वर्ग ने कलकत्ता एवं बंबई में सभाएं कर अंग्रेजों की सफलता के लिए प्रार्थना भी की थी। अगर इस वर्ग ने अपने लेखों एवं भाषणों द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया होता, तो निःसंदेह ही क्रांति के इस विद्रोह का परिणाम कुछ ओर ही होता।


विद्रोह के परिणाम


विद्रोह के समाप्त होने के बाद 1858 ई. में ब्रिटिश संसद ने एक कानून पारित कर ईस्ट इंडिया कंपनी के अस्तित्व को समाप्त कर दिया और अब भारत पर शासन का पूरा अधिकार महारानी विक्टोरिया के हाथों में आ गया। इंग्लैंड में 1858 ई. के अधिनियम के तहत एक 'भारतीय राज्य सचिव' की व्यवस्था की गयी, जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक 'मंत्रणा परिषद्' बनाई गई। इन 15 सदस्यों में 8 की नियुक्ति सरकार द्वारा करने तथा 7 की 'कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स' द्वारा चुनने की व्यवस्था की गई।

https://bit.ly/2QZWrP6


हड़प नीति की समाप्ति


ब्रिटिश सरकार की हड़प नीति को समाप्त कर दिया गया। कानूनी वारिस के तौर पर पुत्र गोद लेने के अधिकार को स्वीकार किया गया। 

1857 का विद्रोह इसलिए भी अहम था क्योंकि भारत की आजादी की लड़ाई के लिए इसकी वजह से मार्ग प्रशस्त हुआ। स्त्रोत : नवभारत टाइम्स


इस आंदोलन से हमें समझना चाहिए कि वर्तमान में जिस तरह देश की स्थिति है उसमें भी कहीं न कहीं आज़ादी को खतरा है- ऐसा लग रहा है, इसलिए देश में रहते हुए देश के साथ गद्दारी करनेवालों की पहचान होनी चाहिए और उनके फन कुचलने चाहिए जिससे हमारा देश सुरक्षित रहे।


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दो दिन से ट्वीटर पर टॉप में कौन-से ट्रेंड चल रहे हैं और क्यों चल रहे हैं?

09 मई 2021

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शनिवार और रविवार दो दिन से ट्वीटर पर खास टॉप ट्रेंड चल रहे हैं। दरअसल बात यह है कि 85 वर्षीय हिंदू संत आशाराम बापू का स्वास्थ्य बिगड़ने पर जनता उनकी रिहाई की सतत मांग कर रही है। शनिवार को ट्रेंड चल रहा था- #जनता_मांगे_बापू_की_रिहाई

और रविवार को ट्रेंड चल रहा था- 

#ReleaseAsharamBapu



🚩आईए जानते हैं उसमें जनता ने क्या कहा ट्वीट करके...।


★अश्विनी जायसवाल ने लिखा कि कहते हैं कानून सबके लिए समान है, पर Sant Shri Asharamji Bapu के केस में तो अन्याय की सारी हदें पार हुईं... पिछले 8 सालों से एक झूठे केस में जेल में बंद #Bapuji को आज इतनी गम्भीर बीमारी में भी जमानत नहीं... और अभी भी तारिख पे तारिख...

We demand justice for Bapuji

 #ReleaseAsharamBapu https://t.co/6tAc0mksyf


★ जनार्दन मिश्रा ने लिखा कि इमाम बुखारी और मौलाना साद धड़ल्ले से बाहर घूम रहे हैं तो हिन्दू संत #आसारामजी को जमानत भी क्यों नहीं?

@narendramodi जी आसारामजी की आयु 85 वर्ष है, अब उन्हें जेल में कैद रखना कितना उचित है?? और कुछ नहीं तो कम से कम उनकी 85 वर्ष की आयु का लिहाज करके उन्हें जेल से मुक्त करना चाहिए...

https://twitter.com/janardanmis/status/1390570060121395204?s=19


★ धैर्य कुमार ने लिखा कि धर्म की रक्षा के लिए जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को समर्पित कर दिया, उन्हें आज इतनी प्रताड़ना दी जा रही! क्या यही भारत का संविधान है कि जो देश की सेवा करे उसके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है? निर्दोष को प्रताड़ना और दोषी को जमानत!

#ReleaseAsharamBapu  https://t.co/H697Pl5Nxi


★ मनीषा पटेल ने लिखा कि Sant Shri Asharamji Bapu केस में जो भी तथ्य मिले उनके आधार पर वे निर्दोष हैं, उनकी Medical Report के अनुसार वे Corona positive हैं औऱ उनकी सेहत बेहद खराब है इस वक्त। करोड़ों देशवासियों की मांग है 

#ReleaseAsharamBapu

https://twitter.com/manishapatel342/status/1391348640128536584?s=19


★ नेति लिखती है कि 

Sant Shri Asharamji Bapu को क्यों बनाया जा रहा है निशाना❓कयोंकि बापूजी हिंदुत्व की रक्षा के लिए और धर्मांतरण को रोकने में सबसे आगे हैं। जो ईसाई मिशनरियों के आँख को नहीं भाया। इसलिए आज उन्हें झूठे आरोप में जेल भेज दिया।

#ReleaseAsharamBapu https://t.co/UVxac8X4i6


★ रविंद्र ने लिखा कि इस घातक बीमारी की चपेट में जोधपुर जेल के कई कैदी आ चुके हैं और वहीं करोड़ों लोगों की आस्था के केन्द्र निर्दोष #Bapuji भी कोरोना संक्रमित पाए गए हैं। जबकि एक भी सबूत नहीं, सिर्फ POCSO एक्ट के दुरुपयोग के कारण Sant Shri Asharamji Bapu जेल में हैं।

Justice for Bapuji

#ReleaseAsharamBapu

https://twitter.com/RvQuotes/status/1391348244450480133?s=19


★आँचल ने लिखा है कि Sant Shri Asharamji Bapu को देश, धर्म उत्थान सेवाकार्यों से हटाने हेतु उन्हें रेप केस में फंसा कर जेल दी गई, अब उनकी सेहत बेहद खराब है वे Corona Positive हैं। कोने-कोने से देशवासियों की मांग है, #ReleaseAsharamBapu तुरन्त।

https://twitter.com/AnchalJagga/status/1391348209037897729?s=19


★ लवीना ने लिखा कि नेताओं अभिनेताओं को आरोप सिद्ध होने के बाद भी बेल/पैरोल मिल जाती है।

पर लोकसेवक संत Sant Shri Asharamji Bapu के लिए ना बेल है, ना पैरोल

8 वर्षों से वे न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं...! #ReleaseAsharamBapu

https://twitter.com/LavinaMulchand4/status/1391348110195138563?s=19


★दिव्या शर्मा ने लिखा कि अपने दम पर Sant Shri Asharamji Bapu ने धर्मान्तरणकारियों से लोहा लिया, उन्हें ही फर्जी केस में जेल? गम्भीर स्वास्थ्य दिक्कतें जिनमे उन्हें कोविड भी है, तब भी सरकार बेल क्यों नहीं दे रही उन्हें? करोड़ों लोगों की एक ही मांग है !!

#ReleaseAsharamBapu https://t.co/Aliq64YmRC


★असावरी पाटिल ने लिखा कि Sant Shri Asharamji Bapu वर्षों से BOGUS CASE में सताए जा रहे हैं भयानक बीमारियों के चलते भी उन्हें न सही इलाज और न ही BAIL दी जा रही है। लाखों लोगों की एक ही मांग है अब BAPUJI को BAIL दो जल्दी।

#ReleaseAsharamBapu

https://twitter.com/AsavariPatil8/status/1391347969853587459?s=19


★पार्थ चौहान ने लिखा कि सत्य न कभी दबाया जा सकता है, न छुपाया जा सकता है, आज समाज के बड़े पदाधिकारी, आर्मी officers, बड़े बड़े संत व सनातन सभाओं के अध्यक्ष सभी Sant Shri Asharamji Bapu की निर्दोषता के समर्थन में हैं व उनकी मांग है संत को रिहाई दे सरकार।

#ReleaseAsharamBapu https://t.co/NmczNO8PcV


★ कृष्णा ने लिखा कि भारत हित में Sant Shri Asharamji Bapu ने अनेकों देशसेवाएँ चलाईं, बाल संस्कार केंद्र खुलवाए, व्यसनमुक्ति अभियान चलाए; बदले में मिला कटुफल, फर्जी


में आजीवन जेल, एक दिन बेल नहीं दी गई उन्हें, हमारी मांग बीमार वयोवृद्ध संत को रिहाई दो।

#ReleaseAsharamBapu

https://t.co/lBGbUH3ETB


★ अश्विनी ने लिखा कि संत जिन्हें भारतीय संस्कृति का नींव कहा गया है पर देश की दुर्भाग्यता तो देखो कैसे निर्दोष Sant Shri Asharamji Bapu को षड्यंत्रकारियों ने एक झूठे केस में आजीवन कारावास करवा दिया जिन्हें आज गम्भीर बीमारी में भी बेल नहीं मिल रही जबकि कई कैदियों को तुरंत जमानत मिली।

#ReleaseAsharamBapu https://t.co/OitI5ddweX


★ श्रद्धा ने लिखा कि जो कानून बने हौसला बढ़ाने के लिए उन्हींको हथियार बनाकर आज निर्दोषों को फंसाया जा रहा है। कानून के दुरुपयोग का प्रत्यक्ष उदाहरण Sant Shri Asharamji Bapu पर किया गया फर्जी केस  #जनता_मांगे_बापू_की_रिहाई

#मानवाधिकार_से_वंचित_निर्दोष_संत https://t.co/Jl0mHQeV71


★ नवीन ने लिखा कि Sant Shri Asharamji Bapu गलत तरीके से दोषी करार दिए गए हैं उनके केस में आज तक उनके विरुद्ध 1 भी प्रूफ नहीं मिल सका, उनकी Serious Health Conditions को सरकार नजरअंदाज क्यों कर रही है❓ Bapuji को न्याय दो BAIL दो।

#जनता_मांगे_बापू_की_रिहाई

https://twitter.com/navingujrati/status/1391292516960333829?s=19


★ विश्वकर्मा ने लिखा कि यौन शोषण का आरोप तो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर भी लगा था पर साजिश है कहकर उनकी केस खारिज कर दी गई। ठीक वही साजिश Sant Shri Asharamji Bapu पर हुई है तो उनका केस खारिज क्यों नहीं? 

बापूजी को रिहा करो #जनता_मांगे_बापू_की_रिहाई


★ सोनू साहू ने लिखा कि क्या सरकार को संत के कार्य दिखाई नहीं देते🤔 जो बिना सबूत के समाज हितैषी Sant Shri Asharamji Bapu को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। आज पूज्यश्री का स्वास्थ्य corona संक्रमण से बिगड़ गया है। क्या सरकार एक संत के कार्य को देखते हुए उन्हें रिहा नहीं कर सकती❓

#जनता_मांगे_बापू_की_रिहाई

https://twitter.com/SonuSah29330189/status/1391268618973847554?s=19


गौरतलब है कि हिंदू संत आशाराम बापू पिछले 8 साल से जोधपुर जेल में बंद हैं, उनकी रिहाई की सतत मांग उठती रही है, अब देखते हैं- न्यायालय और सरकार उनको कब रिहा करती है?


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वास्तव में वैज्ञानिक ऋषि-मुनि ही थे.. जानिए उनके दिव्य आविष्कार !!

08 मई 2021 

azaadbharat.org


भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि के नाम से पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से पटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किये व युक्तियां बताई। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।



कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।


★ भास्कराचार्य :- आधुनिक युग में धरती की #गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने #‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।


★ आचार्य कणाद :- कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी #जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।

उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ।


★ ऋषि विश्वामित्र :- ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।

ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग करना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।


★ ऋषि भारद्वाज :- आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।


★ गर्ग मुनि :- गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।

ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ।  कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।


★ महर्षि सुश्रुत :- ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।

जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।


★ आचार्य चरक :- ‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी।


★ पतंजलि :- आधुनिक दौर में

बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।


★ बौद्धयन :- भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोर के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’₹ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।


★ महर्षि दधीचि :- महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर महर्षि दधीचि पूजनीय व स्मरणीय हैं।इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए।देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया।

विश्वरूप, त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।


ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए अस्थियों का वज्र बनाने का उपाय बताकर देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी अस्थियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।


★ महर्षि अगस्त्य :- वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।


★ कपिल मुनि :- भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की चाहत की। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है।

इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर के द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।


★ शौनक ऋषि :- वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों की तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।


★ ऋषि वशिष्ठ :- वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।


★ कण्व ऋषि :- प्राचीन ऋषियों-मुनियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।

(स्त्रोत : हिन्दू जन जागृति)


विश्व में जितनी भी खोजे हुई हैं वो हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान की गहराई में जाकर खोजी हैं जिनकी आज के वैज्ञानिक कल्पना भी नही करते हैं ।


आज ऋषि-मुनियों की परम्परा अनुसार साधु-संत चला रहे हैं । उनको राष्ट्र विरोधी तत्वों द्वारा षडयंत्र के तहत बदनाम किया जा रहा है और जेल भिजवाया जा रहा है । अतः देशवासी षडयंत्र को समझें और उसका विरोध करें।


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कोरोना महामारी में सरकार व न्यायालय को इसपर ध्यान देना जरूरी है

07 मई 2021

azaadbharat.org


कोरोना वायरस ने भयंकर तांडव मचाया है। कोरोना वायरस सबसे ज्यादा 60 साल से ऊपर के उम्रवालों पर जल्दी हमला करता है और अभी तक जितनी भी मौतें हुई हैं उनमें अधिकतर 60 साल से ऊपर की उम्रवाले हैं, फिर सुप्रीम कोर्ट और सरकारें उन बुजर्गों को जेल से क्यों रिहा नहीं कर रही हैं? और सबसे बड़ी बात है कि अधिक उम्रवाले रिहा करने पर बाहर आकर कोई अपराध भी नहीं करेंगे इसलिए सरकार को चाहिए कि जिनकी 60 साल से ऊपर की उम्र है और जो गर्भवती महिलाएं हैं उनको शीघ्र रिहा करने की व्यवस्था करनी चाहिए- ऐसी जनता की मांग है।



आपको ये भी बता दें कि बापू आशारामजी की उम्र 85 वर्ष की है, उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है और उनके निर्दोष होने के प्रमाण होते हुए भी 8 साल से जेल में हैं लेकिन आजतक एक दिन भी जमानत नहीं दी गई।

जब मौलाना साद, ईमाम बुखारी, बिशप फ्रेंको, सलमान खान, तरुण तेजपाल, लालू प्रसाद यादव आदि को भी जमानत मिल सकती है तो 85 वर्षीय हिंदू संत आशाराम बापू को क्यों नहीं मिल सकती?


वर्तमान में हिंदू संत आशाराम बापू की उम्र 85 साल की हो गई है और उन्होंने 57 साल से अधिक समाज, देश और संस्कृति की सेवा में अतुल्य योगदान दिया है तो क्यों न सरकार पहले उनको रिहा करे!


आपको बता दें कि उनके निर्दोष होने और उन्हें षड्यंत्र के तहत फ़ंसाने के पुख्ता सबूत भी हैं। आरोप लगाने वाली लड़की की मेडिकल में एक खरोंच भी नहीं आया है। लड़की की कॉल डिटेल से स्पष्ट हुआ कि घटना की रात लड़की किसी संदिग्ध व्यक्ति से फोन द्वारा संपर्क में थी। तथाकथित घटना के समय बापू आशारामजी मँगनी कार्यक्रम में व्यस्त थे, लड़की कुटिया में गई ही नहीं।


आपको बता दें कि बापू आशारामजी के अहमदाबाद आश्रम में एक Fax आया था जिसमें 50 करोड़ की फिरौती की मांग की गई थी और न देने पर धमकी दी गई थी कि अगर बापू ने 50 करोड़ नहीं दिए तो झूठी लड़कियां तैयार करके झूठे केस में फंसा देंगे और वे कभी बाहर नहीं आ पाएंगे पर कोर्ट ने इनके ऊपर कोई एक्शन नहीं लिया।


आशारामजी बापू द्वारा किए गए कार्य:



1). लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर धर्म के संस्कार, मकान, जीवनोपयोगी सामग्री दी, जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया।


2). कत्लखाने जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।


3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।


4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथिक के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया।


5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी- तेजस्वी बनाया।


6). लंदन, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया।


7). वैलेंटाइन डे का कुप्रभाव रोकने हेतु "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया।


8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया।


9). करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया।


10). नशामुक्ति अभियान के द्वारा लाखों लोगों को व्यसनमुक्त कराया।


11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाए।


12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोटि पीठ के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी", बाबा रामदेव, मोरारी बापू, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया।


13. बच्चों के लिए "बाल संस्कार केंद्र", युवाओं के लिए "युवा सेवा संघ", महिलाओं के लिए "महिला उत्थान मंडल" खोलकर उनका जीवन धर्ममय व उन्नत बनाया।


ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं।


हिंदू संत आशाराम बापू पर जिस तरह से षड्यंत्र हुआ है उसको देखते हुए और उनके द्वारा किए गये राष्ट्र-संस्कृति व समाज उत्थान के सेवाकार्य तथा उनकी उम्र का ध्यान रखते हुए न्यायालय और सरकार को शीघ्र रिहा करना चाहिए।


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हिन्दू युवा वाहिनी और जनता ने आशाराम बापू को लेकर ये कहा...

06 मई 2021

azaadbharat.org


हिंदू संत आशाराम बापू की उम्र 85 वर्ष की है, वे 8 साल से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। बुधवार को उनका अचानक स्वास्थ्य बिगड़ने पर जोधपुर में महात्मा गांधी अस्पताल में भर्ती करवाया गया उसके बाद काफी नागरिक और संगठन उनकी तुरंत रिहाई की मांग करने लगे हैं।



जनता का कहना है कि सेशन कोर्ट का निर्णय अंतिम निर्णय नहीं होता है, निचली अदालत का फैसला ही अंतिम मानकर किसी व्यक्ति को अपराधी नहीं मान सकते हैं। निचली कोर्ट के निर्णय माननीय हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ने कई बार बदले हैं और आरोपियों को निर्दोष बरी किये हैं। सेशन कोर्ट का ही सही निर्णय माना जाता तो फिर हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था ही क्यों की गयी?


सशन कोर्ट के फैसले को सही मानकर पिछले 8 साल से ऐसे महान संत को कारावास में रखा है। किसी न किसी कारणवश हाईकोर्ट में सुनवाई नहीं हो रही। इस दौरान इस भीषण महामारी में एक ऐसे संत जिनमें करोड़ों लोगों की आस्था और विश्वास है, अगर उनको कुछ हो जाएगा तो क्या न्यायालय अथवा सरकार जवाब दे पाएगी? और क्या ऐसे महान संत की कमी पूरी कर पाएगी?  जब ऊपरी कोर्ट उन्हें निर्दोष रिहा करेगी तो उनका अनमोल समय वापस लौटा पाएगी?


अगर हिंदू संत आशाराम बापू के तथाकथित अपराध को सही माना जा रहा है तो उनके द्वारा पिछले 57 सालों से समाज, देश, व धर्म और संस्कृति के उत्थान के लिए किये जा रहे सेवाकार्यों पर नजर डाली जाए तो उसका पलड़ा कई गुना भारी है। उसको कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है?


मकेश खन्ना के नामवाले ट्वीटर हैन्डल से एक ट्वीट किया गया- उसमें पूछा गया कि क्या सरकारें और न्यायालय केवल हिन्दू साधू संतों पर ही कानून की सख्ती की हेकड़ी झाड़ते फिरते हैं?

जैसी सख्ती आशाराम बापू पर दिखाई, क्या कभी किसी मौलाना या पादरी पर दिखाई? नहीं न, जबकि आशाराम बापू के निर्दोषता के कई सबूत हैं।

पर अल्पसंख्यकों को खुश रखने के लिए हिन्दू हमेशा बली का बकरा बना है।

https://twitter.com/TheMukeshK_/status/1389535875281743879?s=19


हिन्दू युवा वाहिनी ने भी आवाज उठाई


हिन्दू युवा वाहिनी ने अपना एक पत्र जारी करके बताया कि वृद्ध हिन्दू संत श्री आशारामजी बापू को बुधवार देर रात कोरोना संक्रमण के चलते जेल प्रशासन ने जोधपुर के निचले स्तर के महात्मा गांधी अस्पताल में भर्ती करवाया है, जबकि वहाँ AIIMS अस्पताल भी सुचारु रूप से चल रहा है, जो कि हर प्रकार के आधुनिक उपकरणों एवं सुविधाओं से युक्त है। क्या AIIMS अस्पताल सिर्फ राजनेताओं, उनके परिवार और उनकी सिफ़ारिश से आने वाले मरीज़ों के लिए ही बनाए गये हैं? एक मामूली अस्पताल में जोधपुर प्रशासन द्वारा विश्व विख्यात हिन्दू संत को इलाज के लिए रखा जाना किसी षड्यंत्र की ओर इशारा कर रहा है।

हिन्दू युवा वाहिनी एक सामाजिक एवं धार्मिक संगठन होने के नाते अनुरोध करता है कि इस विकट परिस्थिति में मरीज़ के साथ प्रशासन ज़ोर ज़बरदस्ती ना करे एवं उनके अनुरूप ही उपचार कुशल डॉक्टरों की देख-रेख में AIIMS या उसके समकक्ष आयुर्वेदिक अस्पताल में करवाया जाए। 


यदि चिकित्सकों को लगता है कि उनके अंदर कोरोना के गंभीर लक्षण नहीं हैं, तो वयोवृद्ध हिन्दू संत को उनके निजी आश्रम में क्वारंटाइन की व्यवस्था कर के स्वास्थ्य लाभ लेने दिया जाए। इस महामारी के समय में मानवता को सर्वोपरि रखते हुए लाखों लोगों के संत के स्वस्थ होने के लिए जिस भी व्यवस्था की ज़रूरत हो उनको पूरा किया जाए। जैसा कि हिन्दू युवा वाहिनी के संज्ञान में है, हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में भी कहा है कि वृद्ध हिन्दू संत का उपचार AIIMS के माध्यम से ही करवाया जाए। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पूर्णत : पालन होना चाहिए अन्यथा यह सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना होगी।


आपको बता दें कि बापू आशारामजी को साजिश के तहत फंसाने के कई प्रमाण भी मिले हैं और उनके राष्ट्र, संस्कृति व समाज उत्थान के कार्य को देखते हुए तथा उनकी उम्र का ख्याल रखते हुए उनको जमानत तो मिलनी ही चाहिए- ऐसी जनता की मांग है। 


जनता ने ये भी बताया कि भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को न्याय लेने का हक है। 85 वर्षीय वयोवृद्ध भारतीय संत हैं, उनको भी न्याय लेने का हक है। कोरोना की दूसरी कातिल लहर चल रही है। बापू आशारामजी का स्वास्थ्य भी बिगड़ता रहता है तो उचित इलाज के लिए उनको पेरोल अथवा जमानत मिलनी चाहिए, उसके लिए सरकार और न्यायालय को उचित व्यवस्था करनी चाहिए- यही समय की मांग है।


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