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Monday, December 21, 2020

क्यों हो रहे हैं साधु-सन्त बदनाम और व्यभिचारी को दुआ-सलाम ?

21 दिसंबर 2020


जब चौपाल में साधु संतों की चर्चा होती है तो मन में एक मैली छवि उभर आती है - दाढ़ी वाले बाबा, ढोंगी बाबा, पाखंडी बाबा, बलात्कारी, अंधविश्वासी आदि।




आखिर जिस देश की विरासत और सियासत, दोनों ही ऋषि-मुनियों की ऋणी है वहीं पर इनकी छवि इतनी घिनौनी कैसे हो गई? 200 साल तक हम अंग्रेजों की गुलामी में रहे और अन्ततः 1947 में हम आजाद हुए लेकिन देश और धर्म विरोधी ताकतों की गुलामी चालू रही।

स्वत्ंत्रता के ७० वर्षों में भी हमारी मूल संस्कृति पर विधर्मियों के कुठाराघात होते रहे। इससे हम गुलामी की मानसिकता से उबर नही पाए और हम अपने संस्कार, अपनी रीति-रिवाज़ो को ही अपनी गुलामी का कारण मानने लगे। ऊपर से विदेशी मीडिया द्वारा संस्कृति के सतत् पाश्चात्यानुकरण से हम अपने धर्म और संतों को ही हेय-दृष्टि से देखने लगे।

समाज की इस दशा में सबसे बड़ा योगदान किसका है? सच पूछे तो टीवी, पत्रकारिता और फिल्मों का है, जिसे हम प्रचलित भाषा में मीडिया कहते हैं। आज़ादी के बाद से फिल्म जगत का समाज पर प्रभाव दशक-दर-दशक बढ़ता ही रहा। शुद्ध मनोरंजन के नाम पर अनैतिक दृश्यांकन बढ़ते रहे। आपराधिक, अश्लील एवं मर्यादाहीन दृश्यों से युवा और बाल-समाज का बड़ा ह्रास हुआ है। जो 80-90 के दशक में पले-बढ़े युवक हैं उनको सिगरेट-शराब के व्यसन एक सभ्य-समाज की पहचान दिखते हैं। देर रात तक क्लबों में रहना, लम्बी गाड़ियाँ में घूमना और चिकने मकानों से ही वे अपनी प्रगति समझते हैं। ये सभी चिन्ह टीवी, विज्ञापनों और फिल्मों में हम दशकों से देखते आ रहें हैं।

वास्तविकता से अनभिज्ञ हिंदू समाज इसमें मनोरंजन देखता रहा लेकिन इसी मनोरंजन ने समाज को धर्म-संस्कृति और ऋषि मुनियों  के आदर्शों से दूर कर दिया। धर्म विरुद्ध प्रसंगों से मनोरंजन करने की जो आदत लगी है उससे समाज की बड़ी हानि हुई है।

सन 2000 से तो साधु-संतों को काल्पनिक प्रसंगों में इनके स्वभाव के विपरीत ही आचरण करते दर्शाया गया है। फिरौती लेना, व्यभिचार करना या अन्य अनैतिक कर्मों मे लिप्त रहना - ऐसे दृष्टांत दे दे कर साधु समाज की प्रतिष्ठा ही नष्ट कर दी। फिर भी हम मनोरंजन के नाम पर अपना समय-पैसा खर्च करके इसको स्वीकारते रहे, इन काल्पनिक प्रसंगों पर चुटकुले बना कर ताली पीटते रहे।

परिणाम यह हुआ कि अपनी संस्कृति के तिरस्कार पर मज़ा लेने वाला समाज आज उन्ही सामाजिक बुराईयों से त्रस्त है। नैतिक-पतन के चलते अब कोई भी किसी पर विश्वास नही करता। हर वह पद जो किसी समय पर समाज में आदर का पात्र था - वकील, पत्रकार या प्रशासनिक अधिकारी आज सबको भ्रष्ट ही समझा जाता है। इन सभी पदों की गरिमा नैतिकता से ही थी जो हमने महापुरुषों से पाई थी। जब नैतिकता के स्त्रोत संत-समाज को ही निंदित कर दिया तो समाज किससे सीख लेता। जब मर्यादित जीवन को पिछड़ा समझा जाने लगा तो फिर कौन मर्यादा पुरुषोत्तम से सीख लेता।

प्रिय पाठकों, आज पूरा बॉलीवुड हिंदू-विरोधी बन चुका है, ड्रग्स और आतंकवाद का गढ़ बन चुका है। हाल ही में एक नई फिल्म बनाने को लेकर अभिनेता सैफ ने कहा कि वे रावण के चरित्र का ऐसा पक्ष उजागर करेंगे जिससे जनता परिचित नही। आप नीचे दिये लिंक पर क्लिक कर देख सकते हैं।

अब एक धर्म-विरोधी यवन हमारे आराध्य श्रीराम की विवेचना करेगा? वह अपने प्रभाव से सिद्ध करेगा कि रावण – माता सीता का छलपूर्वक हरण करने वाला, साध्वी वेदवती को हठपूर्वक अपवित्र करने वाला, अपनी बहन के पति की हत्या करने वाला - एक शुद्ध चरित्र था? आज समाज में अपराध, व्यभिचार, प्रेम-प्रसंग आदि साधारण विषय हो गए हैं। युवाओं का अशुद्ध खान-पान व दुर्व्यसन के प्रति बेरोकटोक लगाव एवम् पाश्चात्य अंधानुकरण से वे पथभ्रष्ट हो गए हैं। अपने जीवन का मूल्य सिखाने वाले धर्म गुरुओं के प्रति ही शंका एवं घृणा रखने लगे हैं।

दूसरी ओर भारत को खंडित करने वाले मिशनरी व जिहादी मिलकर हिन्दू साधु-संतों व सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में लगी संस्थाओं पर झूठे आरोप लगाते हैं। षडयंत्रपूर्वक हत्याएं करवा कर, मीडिया में साधु-समाज को बदनाम करने पर तुले हुए हैं। ऐसे में राष्ट्र्वादी चिंतकों के लिए भारतवर्ष की सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत को बचाना भारी चुनौती बन गया है।

स्मरण रहे, यदि संतों का सम्मान करना नहीं सीखा तो देश और समाज को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि जहाँ वन्दनीयों का क्रंदन हो और निंदनियों का वंदन हो वहाँ रोग, भय और मृत्यु का तांडव होता ही है।

हमारे ऋषि-मुनि, साधु-संत, शास्त्र व दैवी परम्पराएँ हमारी विरासत है, इनका अस्तित्व हमारे व्यक्तित्व के लिए नितांत आवश्यक है। जब तक इनका आदर-पूजन है तभी तक भारत का अस्तित्व है, अखंडता है वरना हमारी क्या पहचान है? -कमल किशोर कुमावत, राजस्थान

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Sunday, December 13, 2020

क्रिसमस पर कई देशों ने लगा रखा है बेन, फिर भारत में क्यों मना रहे हैं ??

13 दिसंबर 2020


भारत एक ऐसा देश है जहां जिन आक्रमणकारी अंग्रेजों ने 200 साल तक देश को गुलाम बनाये रखा, भारत की संपत्ति लूटकर ले गये, अत्याचार किये, बहन-बेटियों की इज्जत लूटी, जिनसे भारत आज़ाद कराने में न जाने कितने देशवासियों ने अपने प्राणों को आहुति दे दी, उसकी कद्र किये बिना आज भी उन अंग्रेजो के बनाये त्यौहार क्रिसमस को मनाया जा रहा है ।




दुनिया में कई देशों में क्रिसमस पर प्रतिबंध लगा दिया है, उन देशों ने कारण बताया है कि हमारे देश की संस्कृति के विरुद्ध है, फिर भारत जहां की संस्कृति नष्ट करने के लिए ईसाई मिशनरियां अरबों खरबों रुपए लगा रही है वो क्यो ये त्यौहार मना रहे हैं ??

ब्रुनई देश में क्रिसमस पर प्रतिबंध

ब्रुनई देश के सुलतान ने 2015 से क्रिसमस पर बेन लगा दिया है, सुलतान ने तो क्रिसमस मानने वालों के लिए सख्त कानून बना दिया है, सुलतान ने कहा कि "यहां कोई भी क्रिसमस मनाते पकड़ा गया तो पांच साल तक कैद में डाल दिया जाएगा। यहाँ तक क़ि किसी को भी इस मौके पर बधाई देते हुए भी पाया गया या किसी ने सैंटा टोपी भी पहनी तो कैद की सजा भुगतनी होगी।"

उन्होंने कहा क़ि, क्रिसमस उत्सव के दौरान लोग क्रॉस धारण करते हैं, कैंडल जलाते हैं, क्रिसमस ट्री बनाते हैं, उनके धार्मिक गीत गाते हैं, क्रिसमस की बधाई देते हैं और उनके धर्म की प्रशंसा करते हैं। ये सारी गतिविधियाँ हमारे देश के विरूद्ध हैं। क्रिसमस के उत्सव से हमारी आस्था प्रभावित होती है।’ 

सोमालिया देश में क्रिसमस पर प्रतिबंध

सोमालिया देश की सरकार ने भी 2015 से क्रिसमस का जश्न मनाने पर रोक लगा दी है। सरकार ने चेताया कि इससे देश की जनता की आस्थाओं को खतरा हो सकता है।

उत्तर कोरिया में क्रिसमस पर प्रतिबंध

उत्तर कोरिया के तानाशाह शासक किम जोंग ने क्रिसमस मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। किम जोंग ने क्रिसमस की जगह अपनी दादी किम जोंग सुक का जन्मदिन मनाने का फरमान सुनाया।

2014 में भी उत्तर कोरिया में क्रिसमस पर बैन लगा दिया गया था। यही नहीं बड़े क्रिसमस ट्री को भी हटाने का फैसला किया था। दक्षिणी कोरिया की ओर से लगाए गए बड़े क्रिसमस ट्री को हटाया गया। खुद किम जोंग क्रिसमस पर लगाए जाने वाले इन पेड़ों से नफरत करते हैं। प्योंगयांग में किसी भी दुकान या रेस्त्रां से इन्हे हटा दिया जाता है। कोरिया में सबसे ज्यादा ईसाई लोग प्योंगयांग में ही रहते हैं। यहां पर मानव अधिकार की बात करने वाले 50 हजार से 70 हजार ईसाइयों को जेलों के अंदर बंद कर दिया गया था।

चीनी विश्वविद्यालय में क्रिसमस पर प्रतिबंध, 

चीन के पूर्वोत्तर प्रांत लिआओनिंग में स्थित शेनयांग फार्मास्युटिकल विश्वविद्यालय ने 2017 में छात्रों को जारी अपने नोटिस में उनसे परिसर में किसी भी तरह का पश्चिमी त्यौहार जैसे क्रिसमस आयोजित नहीं करने के लिए कहा।

छात्र संगठन यूथ लीग ने कारण बताते हुए कहा कि कुछ नौजवान पश्चिमी त्यौहार को लेकर आंख मूंद कर उत्साहित रहते हैं, खासकर क्रिसमस संध्या या क्रिसमस के दिन और पश्चिमी संस्कृति से बचने की जरूरत है। 

चीन में यह पहली बार नहीं है जब किसी शैक्षणिक संस्थान क्रिसमस पर प्रतिबंध लगाया है। चीन में ऐसा मानना है कि पश्चिमी या विदेशी संस्कृति चीन की प्राचीन संस्कृति का क्षय कर देगी।

धन्यवाद है उन देशों को जिन्होंने इतनी छोटी आबादी वाले देश में भी क्रिसमस न मनाने का आदेश जारी किया ।

एक हमारा भारत देश जहाँ धर्म निरपेक्षता के नाम पर हिन्दू धर्म की ही जड़े काटी जा रही है।

सभी धर्म का सम्मान हो सकता है लेकिन सभी धर्म समान नही हो सकते।

हिन्दू धर्म सनातन धर्म है। ये कब से शुरू हुआ कोई नही जानता। भगवान राम भी इसी सनातन धर्म में प्रगटे और भगवान श्री कृष्ण भी।

उन देशों में क्रिसमस मनाने से वहाँ की संस्कृति नष्ट होने की आशंका है तो भारत में हम क्यों ये क्रिसमस मनाये। जबकि भारत तो ऋषि-मुनियों का देश है।

देशवासियों को सावधान होना होगा, दारू पीने वाली, गौ-मास खाने वाले, पराई स्त्रियों के साथ डांस और शारिरिक संबंध बनाने वाले पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करके उनका त्यौहार क्रिसमस न मानकर उस दिन तुलसी पूजन करें।

क्रिसमस ट्री बनाने में सामग्री व्यर्थ न गंवाएं, क्योंकि क्रिसमस ट्री यदि पेड़ों को काटकर बनाएगे तो करोड़ों पेड़ कटते हैं, यदि प्लास्टिक ट्री  हो तो करोड़ों किलोग्राम कैंसरकारक नष्ट नहीं हो सकने वाला रासायनिक कचरा बनता है। 

अतः 25 दिसम्बर को 24 घण्टे ऑक्सीजन देने वाली तुलसी पूजन करें ।

गौरतलब है कि अपने सनातन धर्म की गरिमा से जन-जन को अवगत कराने और देश में सुख, सौहार्द, स्वास्थ्य, शांति का वातावरण बनें और जन-मानस का जीवन मंगलमय हो इस लोकहितकारी उद्देश्य से हिन्दू संत आसारामजी बापू ने वर्ष 2014 से 25 दिसम्बर को ‘तुलसी पूजन' दिवस शुरू करवाया जो कि पिछले छ सालों से इस पर्व की लोकप्रियता विश्वस्तर पर देखी गयी है।

सभी लोग संकल्प लें कि 25 दिसम्बर को क्रिसमस डे न मनाकर 'तुलसीपूजा के रूप में मनायेगे।

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Monday, November 2, 2020

मीडिया ट्रायल पर न्यायालय की फटकार, लेकिन एकतरफा क्यों?

02 नवंबर 2020


अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में रिपब्लिक चैनल के तरीके को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, ‘सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की या उसकी हत्या हुई?, इस मामले की जांच जब चल रही थी तो आप अपने चैनल पर चिल्ला-चिल्लाकर उसे हत्या कैसे करार दे रहे थे। किसकी गिरफ्तारी होनी चाहिए और किसकी नहीं, इस बात को लेकर आप लोगों से राय या जनमत कैसे मांग रहे थे? क्या यह सब आपके अधिकार क्षेत्र की बात है?’




अदालत ने रिपब्लिक टीवी के वकील से कहा, ‘क्या आपको नहीं पता कि हमारे संविधान में जांच का अधिकार पुलिस को दिया गया है? आत्महत्या के मामले के नियम क्या आप लोगों को नहीं पता हैं? यदि नहीं पता हैं तो सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) के नियमों को पढ़ लीजिये।’

अदालत ने बेहद सख़्त लहजे में कहा कि एक मृत व्यक्ति को लेकर भी आप लोगों के मन में कोई भावना नहीं है! जांच भी आप करो, आरोप भी आप लगाओ और फ़ैसला भी आप ही सुनाओ! तो अदालतें किसलिए बनी हैं? अदालत ने कहा, ‘हम पत्रकारिता पर रोक लगाना भी नहीं चाहते लेकिन दायरे में रहकर।’

आपको बता दें कि न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (NBSA) ने भी इंडिया टुडे समूह के हिंदी भाषा समाचार चैनल आजतक, ज़ी न्यूज़, न्यूज़ 24 और इंडिया टीवी को अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की असंवेदनशील और सनसनीखेज रिपोर्टिंग के लिए माफी माँगने का आदेश दिया था जिसका चैनलों ने अनुपालन किया है और अपने चेनलों पर माफी मांगी।

अब बड़ा सवाल आता है कि जब आम जनता अथवा हिंदूनिष्ठ पर मीडिया ट्रायल चलता है तब कोई न्यायालय उसको फटकार नही लगाते हैं और न ही ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी माफी मांगने को बोलती है।

उसका उदाहरण है आरुषि मर्डर केस जिसमे मीडिया ट्रायल के दबाव में आकर सेशन कोर्ट ने तलवार दंपति को उम्रकैद की सजा सुना दी । लेकिन हाईकोर्ट ने 9 साल बाद निर्दोष बरी किया।

दूसरा ममाला है हिंदू संत आशारामजी बापू के गुजरात अहमदबाद गुरुकुल में पढ़ने वाले दो बच्चों की 2008 में संदिग्ध मौत हो गई, उसको लेकर बिकाऊ मीडिया ने तांत्रिक विद्या से मारा ऐसा करके खूब उछाला, सीआईडी ने और सुप्रीम कोर्ट ने उनको क्लीन चिट दे दी कि उनके वहाँ कोई भी तांत्रिक विद्या नही होती है उसके बाद भी मीडिया ट्रायल चलता रहा।

इस प्रकरण में निष्‍पक्ष जांच का भरोसा देते हुए गुजरात सरकार ने जांच के लिए सेवानिवृत्त न्‍यायाधीश डीके त्रिवेदी आयोग का गठन किया। ग्‍यारह साल बाद आई इस रिपोर्ट में बच्‍चों की मौत डूबने से होना बताया है तथा बच्‍चों पर तंत्र विधि तथा आश्रम में तांत्रिक क्रियाओं के कोई सबूत नहीं मिलना बताया है। आयोग ने साफ बताया कि बच्‍चों के शरीर से अंग गायब होने के भी सबूत नहीं मिले हैं।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी जाँच आयोग में बयानों के दौरान संत श्री आसारामजी आश्रम पर झूठे, मनगढ़ंत आरोप लगानेवाले लोगों के झूठ का भी विशेष जाँच में पर्दाफाश हो गया है ।

दूसरा की हिंदू संत आशारामजी बापू के खिलाफ जोधपुर केस हुआ है उसमें भी लड़की ने साफ बताया है कि मेरे साथ बलात्कार नही हुआ है और मेडिकल के रिपोर्ट में भी साफ आया है कि उसके साथ कोई भी टच भी नही किया गया है लेकिन मीडिया ने इस बात को नही बताया और "बलात्कारी बाबा" कहकर अनेक झूठी अफवाहों को फैलाया गया लेकिन किसी न्यायालय ने मीडिया को फटकार नही लगाई यहाँ तक कि फटकार लगाना तो दूर की बात मीडिया के दबाव में आकर सेशन कोर्ट ने उनको आजीवन उम्रकैद सुना दी जबकि उनके पास निर्दोष होने के प्रमाण होते हुए भी यह बात उनके वकील सज्जनराज सुराणा ने मीडिया में खुलकर बताई थी।

बापू आशारामजी के आश्रम में एक फेक्स भी आया था कि 50 करोड़ दो नही तो लड़कियों के झूठे केस में फंसने के लिए तैयार रहो दूसरा की भोलानन्द उर्फ विनोद गुप्ता ने भी बताया कि मीडिया में मुझे बापू आशारामजी के खिलाफ बोलने के लिए करोड़ो रूपये का ऑफर दिया गया था।

यह सब प्रमाण होते हुए भी आजतक बापू आशारामजी के खिलाफ षडयंत्र करने वालों पर कार्यवाही नहीं हुई और न ही मीडिया ट्रायल को रोका गया लेकिन सुशांत हत्या के मामले में तुंरत फटकार दिया व माफी मंगवाई।

वैसे कई जज बोल चुके हैं कि मीडिया ट्रायल के कारण जजों पर प्रभाव पड़ता है और फ़ैसला निष्पक्ष नही दे पाते हैं और स्वर्गीय श्री अशोक सिंघल ने भी बताया था कि मीडिया ट्रायल एक षडयंत्र है। जो हमारे साधु-संतों को बदनाम करने के लिए विदेश से भारी फंडिग आती है उस पर रोक लगानी चाहिए।

आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद जी के 100 साल बाद हिंदू संत आशारामजी बापू ने शिकागो में विश्व धर्मपरिषद में भारत का नेतृत्व किया था। बच्चों को भारतीय संस्कृति के दिव्य संस्कार देने के लिए देश में 17000 बाल संस्कार खोल दिये थे, वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू करवाया, क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन शुरू करवाया, वैदिक गुरुकुल खोलें, करोड़ो लोगो को व्यसनमुक्त किया, ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं। इसके कारण उन पर मीडिया ट्रायल किया गया और षड्यंत्र के तहत आज वे जेल में हैं।

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Tuesday, October 20, 2020

मंदिरों पर राजकीय कब्जा क्यों? हिन्दू आज भी जजिया भर रहे हैं (भाग-2)

 

20 अक्टूबर 2020

 
पारंपरिक भारत में किसी हिन्दू राजा ने मंदिरों पर अपना अधिकार, या नियंत्रण नहीं जताया था, न कभी टैक्स वसूला था। भारतीय परंपरा में राजा को धर्म या धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप करने का कभी कोई उदाहरण नहीं मिलता। वें तो सहायता व दान देते थे, न कि लेते थे जो स्वतंत्र भारत की राजसत्ता कर रही है। यह जबरदस्ती मुगल काल के अवशेष हैं जब मंदिरों को तरह-तरह के राजकीय अत्याचार या नियंत्रण को झेलना पड़ता था। फिर अंग्रेज शासकों ने 1817 ई. में उसी तरह के कुछ नियंत्रण बनाए। उस का लाभ क्रिश्चियन मिशनरियों ने उठाया, जिन की धर्मांतरण योजनाओं को मंदिरों को कमजोर करने से कुछ मदद मिली। हालाँकि बाद में, 1863 ई. तक यहाँ अंग्रेज शासकों ने कई मंदिर हिन्दू न्यासियों को वापस भी सौंप दिए। क्योंकि उसे कुछ कारणों से इंग्लैंड में पसंद नहीं किया गया।




लेकिन फिर 1925 ई. में अंग्रेज शासकों ने भारत में धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण करने का कानून बनाया। लेकिन क्रिश्चियनों और मुसलमानों द्वारा तीव्र विरोध के कारण 1927 ई. में वह कानून संशोधित किया गया, और उन्हें उस कानून से छूट दे दी गई। इस प्रकार, केवल हिन्दू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण रखने का कानून रहा। प्रायः दक्षिण भारत में, क्योंकि विशाल, समृद्ध, संपन्न मंदिर वहीं थे। उत्तर भारत तो पिछले इस्लामी शासकों की बदौलत लगभग मंदिर-विहीन हो चुका था। यह भी ध्यातव्य है कि ‘फूट डालो, राज करो’ की नीति का उपाय करते हुए जहाँ 1925 ई. में हिन्दुओं को मंदिरों के संचालन से वंचित किया गया, सिखों को विशेष शक्ति-संपन्न बनाया गया। उसी साल अंग्रेजों ने सिख गुरुद्वारा एक्ट बनाकर गुरुद्वारों का संचालन एक विशेष समूह को सौंप दिया। यह बहुत बड़ा निर्णय साबित हुआ, जिस से सिखों के एक पंथ को विशिष्ट, एकाधिकारी शक्ति प्राप्त हो गई। उस से पहले गुरुद्वारे तरह-तरह के पंथों द्वारा चलते थे।

फिर, 1935 ई. में एक और कानून बनाकर अंग्रेज सरकार ने किसी भी मंदिर को चुन कर अपने नियंत्रण में लेने का प्रावधान किया। इस तरह, अंग्रेजों ने अपने-अपने धर्म-संस्थान संचालन के लिए क्रिश्चियनों-मुसलमानों, हिन्दुओं, और सिखों के लिए तीन तरह के कानून बना दिए। ताकि अपने हितों के लिए वे सहज ही अलग-अलग महसूस करें। दुर्भाग्यवश, स्वतंत्र भारत की देशी सरकार ने भी शुरू में ही (1951 ई.) हिन्दू धार्मिक संस्थानों को अपने नियंत्रण में रख सकने का कानून बनाया। उद्देश्य यह बताया गया ताकि उस की ‘सुचारू व्यवस्था’ की जा सके। यह किसी ने नहीं पूछा कि वही व्यवस्था मस्जिद या चर्च की होनी क्यों अनावश्यक है? यह व्यवस्था कैसी रही है, यह इसी से समझा जा सकता है कि 1986-2005 ई. के बीच बीस वर्षों में तमिलनाडु में मंदिरों की हजारों एकड़ जमीन ‘चली’ गई। अन्य हजारों एकड़ पर भी अवैध अतिक्रमण हो चुका है! यह सरकारी कब्जे की सुचाऱू व्यवस्था का एक नमूना है।

दूसरा नमूना यह कि अनेक मंदिरों से अनेकानेक बहुमूल्य मूर्तियाँ चोरी होती रही हैं, जो अनमोल होने के साथ-साथ देश की सांस्कृतिक विरासत भी है। किन्तु आज तक किसी को उस का जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। किसी भी गैर-सरकारी नियंत्रण में ऐसा होना असंभव है कि इतनी बड़ी चोरियों पर किसी की जिम्मेदारी न बने। न किसी को दंड मिले! तीसरे, कई प्रतिष्ठित मंदिरों की पारंपरिक पुरोहित व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई है। सरकारी अमलों ने उस की परवाह नहीं की, या उस में हस्तक्षेप कर जाने-अनजाने बिगाड़ा। कई मामलों की तरह कांग्रेस के ‘स्यूडो सेक्यूलरिज्म’ और भाजपा के ‘रीयल सेक्यूलरिज्म’ में इस बिन्दु पर भी कोई अंतर नहीं है। राजस्थान में भाजपा राज में मंदिरों की कुछ संपत्ति पर भी कब्जा किया गया था। हरियाणा में भी समाचार हैं कि हिसार जिले के दो महत्वपूर्ण मंदिरों को कब्जे में लेने पर सत्ताधारी सोच रहे हैं।

आश्चर्य की बात यह भी है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एटॉर्नी जेनरल वेणुगोपाल ने भी कहा था कि मंदिरों के संचालन में राज्य का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। उन्होंने संकेत किया कि एक पंथ-निरपेक्ष राज्य प्रणाली में सरकार द्वारा मंदिरों पर नियंत्रण रखना उपयुक्त नहीं है। यह सब कहे जाने के बाद से साल भर से भी ज्यादा बीत चुका। मगर चूँकि मामला हिन्दू धर्म-समाज का है, इसीलिए इस पर हर प्रकार के सत्ताधारियों की उदासीनता एक सी है। कोर्ट में पिटीशन या कार्यपालिका को निवेदन, सब ठंडे बस्ते में पड़े रहते हैं।

प्रश्न हैः भारतीय राज्यसत्ता हिन्दुओं को अपने मंदिरों, धार्मिक संस्थाओं के संचालन करने के अधिकार से जब चाहे क्यों वंचित करती है? जबकि मुस्लिमों, ईसाइयों की संस्थाओं पर कभी हाथ नहीं डालती। यह हिन्दू-विरोधी धार्मिक भेद-भाव नहीं तो और क्या है? केरल से लेकर तिरूपति, काशी, बोधगया और जम्मू तक, संपूर्ण भारत के अधिकांश प्रसिद्ध हिन्दू मंदिरों पर राजकीय कब्जा कर लिया गया है। इन में हिन्दू जनता द्वारा चढ़ाए गए सालाना अरबों रूपयों का मनमाना उपयोग किया जाता है।

जिस प्रकार, चर्च, मस्जिद और दरगाह अपनी आय का अपने-अपने धार्मिक विश्वास और समुदाय को आगे बढ़ाने के लिए उपयोग करते हैं – वह अधिकार हिन्दुओं से छिना हुआ है! कई मंदिरों की आय दूसरे धर्म-समुदायों के क्रियाकलापों को बढ़ावा देने के लिए उपयोग की जाती है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से हिन्दू मंदिरों की आय से मुसलमानों की हज सब्सिडी देने की बात कई बार जाहिर हुई है।

यह किस प्रकार का सेक्यूलरिज्म है? यह तो स्थाई रूप से हिन्दू-विरोधी धार्मिक भेद-भाव है, जो सहज न्याय के अलावा भारतीय संविधान के भी विरुद्ध है। सामान्य मानवीय समानता के विरुद्ध तो है ही। यह अन्याय राजसत्ता के बल से हिन्दू जनता पर थोपा गया है। इस पर कोई राजनीतिक दल आवाज नहीं उठाता।

कुछ लोग तर्क करते हैं कि हिन्दू मंदिरों, धार्मिक न्यासों पर राजकीय नियंत्रण संविधान-सम्मत है। संविधान की धारा 31A के अंतर्गत धार्मिक संस्थाओं, न्यासों की संपत्ति का अधिग्रहण हो सकता है। काशी विश्वनाथ मंदिर के श्री आदिविश्वेश्वर बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (1997) के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “किसी मंदिर के प्रबंध का अधिकार किसी रिलीजन का अभिन्न अंग नहीं है।” अतः यदि हमारे देश में राज्य ने अनेकानेक मंदिरों का अधिग्रहण कर उस का संचालन अपने हाथ में ले लिया, तो यह ठीक ही है।

वस्तुतः आपत्ति की बात यह है कि संविधान की धारा 31(ए) का प्रयोग केवल हिन्दू मंदिरों, न्यासों पर हुआ है। किसी चर्च, मस्जिद या दरगाह की संपत्तियाँ कितने भी घोटाले, विवाद, हिंसा या गड़बड़ी की शिकार हों, उन पर राज्याधिकारी हाथ नहीं डालते। जबकि संविधान की धारा 26 से लेकर 31 तक, कहीं किसी रिलीजन का नाम लेकर छूट या विशेषाधिकार नहीं दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों में भी ‘किसी धार्मिक संस्था’ या ‘ए रिलीजन’ की बात की गई है। मगर व्यवहारतः केवल हिन्दू मंदिरों, न्यासों पर राज्य की वक्र-दृष्टि उठती रही है। चाहे बहाना सही-गलत कुछ हो।

इस प्रकार, स्वतंत्र भारत में केवल हिन्दू समुदाय है जिसे अपने धार्मिक-शैक्षिक-सांस्कृतिक संस्थान चलाने का वह अधिकार नहीं, जो अन्य को है। यह अन्याय हिन्दू समुदाय को अपने धर्म और धार्मिक संस्थाओं का, अपने धन से अपने धार्मिक कार्यों, विश्वासों का प्रचार-प्रसार करने से वंचित करता है। उलटे, हिन्दुओं द्वारा श्रद्धापूर्वक चढ़ाए गए धन का हिन्दू धर्म के शत्रु मतवादों को मदद करने में दुरुपयोग करता है। यह हमारी राज्यसत्ता द्वारा और न्यायपालिका के सहयोग से होता रहा है – इस अन्याय को कौन खत्म करेगा? (जारी...) - डॉ. शंकर शरण

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Sunday, August 23, 2020

राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष से सबक लेना चाहिए कि आखिर मंदिरों का विध्वंस क्यों होता रहा ?

23 अगस्त 2020


अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के शुभारंभ का उत्सव मनाते हुए हमें यह भी विचार करना चाहिए कि आखिर मंदिरों का विध्वंस क्यों होता रहा? सही उत्तर पाए बिना मंदिरों की सुरक्षा संदिग्ध बनी रहेगी। आज भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया आदि देशों में मंदिरों, चर्चों के विध्वंस की घटनाएं घट रही हैं। पाकिस्तानी क्षेत्र में 1947 के बाद से सैकड़ों मंदिरों का विध्वंस हुआ।



कश्मीर में असंख्य मंदिर तोड़े गए, मंदिरों का विध्वंस कम्युनिज्म ने भी बड़े पैमाने पर किया।

बीते कुछ दशकों में कश्मीर में भी असंख्य मंदिर तोड़े गए। यह सब एक ही समस्या की विभिन्न अभिव्यक्तियां हैं। नोट करें कि चर्चों, मंदिरों का ध्वंस कम्युनिज्म ने भी बड़े पैमाने पर किया। चीन और तिब्बत में हजारों बौद्ध मठ-मंदिरों को तोड़ा गया। स्टालिन युग में रूस और पूर्वी यूरोप में असंख्य चर्चों को ध्वस्त कर वहां स्वीमिंग पूल आदि बना डाले गए थे। इसका कारण मतवादी दुराग्रह ही था। इसीलिए कम्युनिज्म के खात्मे पर उन्हीं स्थानों पर फिर चर्च बनाए गए।

इस्लामी हमलावरों ने जो काम सदियों पहले किया वही तालिबान, आइएस कर रहे हैं।

इस्लामी हमलावरों द्वारा भी दुनिया भर में चर्च, मंदिर आदि तोड़ने का कारण उनका यह मतवाद है कि इस्लाम के सिवा किसी मत को रहने नहीं देना है। इसीलिए गजनवी औरंगजेब जैसे तमाम हमलावरों एवं शासकों ने जो सदियों पहले किया वही तालिबान, जैसे मुहम्मद, आइएस आदि अभी भी कर रहे हैं। इसके पीछे मतांधता ही है। इसकी अनदेखी करने के दुष्परिणामों का अनुमान कठिन नहीं है। अभी तुर्की में इसी की झलक मिली।

ओटोमन सुल्तान मुहम्मद ने 1453 में हागिया सोफिया चर्च को जबरन मस्जिद में बदला।

चूंकि ईसाई देशों ने हागिया सोफिया को पुन: चर्च बनाने की फिक्र न की इसलिए उसे फिर मस्जिद में बदल डाला गया। इस्लाम के जन्म से भी पहले बना यह चर्च लगभग एक हजार साल तक विश्व का महत्वपूर्ण चर्च था। ओटोमन सुल्तान मुहम्मद ने 1453 में हागिया सोफिया को जबरन मस्जिद में बदला। महान तुर्क नेता मुस्तफा कमाल पाशा ने इस्लामी खलीफत खत्म करने के बाद 1935 में उसे संग्रहालय बना दिया। उसी को अभी फिर मस्जिद कर दिया गया। विस्मरण और स्मरण समानता से हो तभी विश्व में विभिन्न धर्मावलंबी साथ रह सकते हैं। किसी मतवाद को विशेषाधिकार देने पर ऐसे विध्वंस रुकने के बजाय बढ़ेंगे। यही समस्या की मूल गुत्थी है। इसे न छूने से ही भारत में मंदिरों की मुक्ति का प्रश्न लटका रह गया।

गांधी जी ने इस्लामी मतवाद पर चुप रहने की घातक परंपरा बनाई। इसलिए उसके कार्यों को रोकना कठिन हो गया। रूस में तोड़े गए चर्चों की पुर्नस्थापना इसीलिए हुई कि उससे पहले कम्युनिस्ट मतवाद पर प्रश्न उठाकर उसे पराजित किया गया। तुर्की में पाशा ने भी खलीफत, शरीयत खत्म करके ही हागिया सोफिया को संग्रहालय बनाया। इसलिए अन्य हिंदू मंदिरों की मुक्ति मुस्लिमों को राष्ट्रवाद या हिंदू भावनाओं को आदर देने जैसी बातों से नहीं हो सकती। ऐसी बचकानी दलीलें सदैव निष्प्रभावी रहेंगी।

वैश्विक साम्राज्य की चाह रखने वाले मतवादों को बचकानेपन से नहीं झुकाया जा सकता।

विश्व इतिहास से समझना चाहिए कि वैश्विक साम्राज्य की चाह रखने वाले मतवादों को बचकानेपन से नहीं झुकाया जा सकता। मानवीय समानता का यह नियम सामने रखना होगा कि दूसरों के विरुद्ध वह काम न करो जो तुम अपने विरुद्ध दूसरों से नहीं चाहते। इस समानता और सत्यनिष्ठा में ही उपाय है। राजनीतिक इस्लाम के एकमात्र सत्य होने के दावे को कसौटी पर कसकर उसकी असलियत दिखानी होगी।

अगर इस्लामी दावा असत्य है तो मुसलमानों को भी उसे छोड़कर सत्य अपनाना चाहिए।

अगर इस्लामी दावा और विशेषत: उसका मूल राजनीतिक भाग असत्य है तो मुसलमानों को भी उसे छोड़कर सत्य अपनाना चाहिए। यही समान और सत्यनिष्ठ समाधान है। आज नहीं तो कल बहस इसी पर आएगी। इस्लामी संगठन तो सदैव अपने बिंदु पर टिके रहे हैं। आश्चर्यजनक रूप से दूसरे ही इससे बचते हैं। मुस्लिम ब्रदरहुड, इस्लामिक स्टेट, तालिबानी, तब्लीगी आदि तमाम संगठन, शासक और उलेमा इस्लाम की सत्यता के दावे पर ही अपने सारे काम करते हैं। उनकी मार झेलने वाले उस दावे को चुनौती देना छोड़ बाकी सब कुछ करते रहे।

रामजन्मभूमि मंदिर: मुस्लिम पक्ष बार-बार पैंतरा बदलता रहा, हिंदुओं को स्थान न देने पर अड़ा रहा।

युद्ध, बमबारी, उदारतापूर्वक धन देना, अपीलें करना आदि, मगर जिस एक टेक पर राजनीतिक इस्लाम खड़ा है उसे खारिज नहीं करते। तब समाधान हो तो कैसे? हमें रामजन्मभूमि मंदिर के मुक्ति संघर्ष से शिक्षा लेनी चाहिए। मुस्लिम पक्ष बार-बार पैंतरा बदलता रहा, लेकिन हिंदुओं को वह स्थान न देने पर अड़ा रहा, जबकि उसका मुसलमानों के लिए कोई महत्व न था। इसकी तुलना में हिंदुओं के लिए रामजन्मभूमि और अयोध्या सदियों से पवित्र महान तीर्थों में अग्रगण्य है। इसे कुछ कथित सेक्युलर, लिबरल स्वीकार करने से अभी भी बच रहे हैं।

असल लड़ाई संपत्ति की नहीं, वरन साम्राज्यवादी मतवाद बनाम सत्य की है।

अनुभव बताता है कि अन्य हिंदू श्रद्धास्थलों की मुक्ति के लिए फिर वैसा अभियान चलाने के बजाय मूल बिंदु पर आना होगा। असल लड़ाई संपत्ति की नहीं, वरन साम्राज्यवादी मतवाद बनाम सत्य की है। समस्या यह नहीं कि कुछ मुसलमान दूसरों के तीर्थों पर कब्जा रखना चाहते हैं। समस्या वह मतवादी विश्वास है जो उन्हें इसके लिए प्रेरित करता है। जब तमाम इस्लामी संगठन दूसरों को मुसलमान बनाना अपना अधिकार समझते हैं तो उन्हें अधर्म से हटाकर सन्मार्ग पर लाना दूसरों का अधिकार है। इस्लाम को एकमात्र सत्य कहने का उत्तर उसे असत्य साबित करना है। मुसलमानों को राजनीतिक इस्लाम की गलती दिखाना एक शांतिपूर्ण कार्य है। कमाल पाशा ने ठीक यही किया था। उन्होंने इस्लामी मतवाद को पुराना एवं मृत कहकर तुर्की से निकाल बाहर किया था। यह प्रक्रिया अभी भी चल रही है।

वैचारिक चुनौती से ही चर्च की और कम्युनिज्म की तानाशाही पराजित हुई।

दुनिया भर में इस्लाम छोड़ने वाले मुसलमान यानी मुलहिद बढ़ रहे हैं। यह कम्युनिस्ट मतवाद और चर्च मतवाद के साथ पहले हो चुका है। वैचारिक चुनौती से ही मध्ययुग में चर्च की और हाल में कम्युनिज्म की तानाशाही पराजित हुई। कोई युद्ध नहीं हुआ। इस्लामी मतवाद के साथ यह और आसान है, क्योंकि आधुनिक सूचना संसाधनों के युग में सत्य-असत्य की परख करना सबके हाथ में हैं।

दुनिया में मुस्लिम आबादी का बाह्य विस्तार भले हो रहा हो, किंतु भीतर से सांस्कृतिक रिक्तता बढ़ रही है।

अब इस्लाम और शेष विश्व के इतिहास, दर्शन, साहित्य में योगदान को कोई मुस्लिम स्वयं परख सकता है। दुनिया में मुस्लिम आबादी, संस्थानों का बाह्य विस्तार भले हो रहा हो, किंतु भीतर से सांस्कृतिक रिक्तता बढ़ रही है। इमामों, अयातुल्लाओं की सेंसरशिप इंटरनेट ने बेकार कर दी है। विश्व के महान विद्वानों ने इस्लाम की समीक्षाएं की हैं। उनमें मुस्लिम भी हैं। अब वह इंटरनेट की बदौलत सुदूर गांवों तक सहज उपलब्ध है। उसे जानना और मुस्लिमों को जानने के लिए कहना चाहिए। अभी तक ऐसा न करने से ही कट्टरपंथियों ने मुसलमानों को अपनी मुट्ठी में कैद रखा है। यह कैद टूटनी चाहिए। - लेखक राजनीतिशास्त्र प्रोफेसर शंकर शरण

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Friday, June 26, 2020

राष्ट्रद्रोहीयों को आसानी से जमानत, राष्ट्रहित करने वाले आज भी जेल में, कमी राष्ट्रवादीयों की है!

26 जून 2020

🚩इतना तो पक्का हो गया कि अगर आप राष्ट्र और संस्कृति के लिये कार्य करेंगे तो आपकी गिरफ्तारी भी होगी, जमानत भी नही होगी, मीडिया न्यायालय पर प्रेशर भी बनायेगा और बाद में आपको आजीवन तक की सजा भी दी जा सकती है और राष्ट्रवादी लोग आपके लिए कोई आवाज नही उठाएंगे और आपने राष्ट्र एवं भारतीय संस्कृति विरोधी कार्य किये होंगे तो जमानत भी मिलेगी, मीडिया भी वाहवाही करेगी और राष्ट्रविरोधी गुट आपके लिए समर्थन भी करेंगे।

🚩आइए कुछ उदाहरणों से जानते है-

🚩दिल्ली हाई कोर्ट ने जामिया कोआर्डिनेशन कमेटी की सदस्य सफूरा जरगर को जमानत दे दी है। बता दें कि दिल्ली दंगा भड़काने में सफूरा जरगर मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक है। जफूरा के कई वीडियो उपलब्ध हैं, जिसमें वो कश्मीर को आजादी, केरल को आजादी, बिहार को आजादी और इंकलाब की बातें करती है।

🚩इसके अलावा जफूरा के खिलाफ सबूत हैं कि ये जाफराबाद से महिलाओं की टोली को शाहीनबाग लाती थी और दंगे से पहले जाफराबाद में जो जाम लगा था, वहाँ भी ये सक्रिय रूप से उपस्थित थी और लोगों को उकसा रही थी।

🚩ऐसे लोग जब हार जाएँगे तो सबूत के साथ छेड़छाड़ करने की संभावना बढ़ जाती है। इसके बावजूद इसे बैल दी गई। दिल्ली पुलिस की तरफ से सरकार का पक्ष रख रहे सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्वयं कहा कि उन्हें इसमें कोई आपत्ति नहीं है, इसे बैल दे दी जाए। बताया गया गर्भवती होने के कारण जमानत दी गई लेकिन आपको बता दें कि इससे पहले कई गर्भवती महिलाओं को गिरफ्तार किया था और उसी जेल में 39 बच्चों को जन्म भी दिया गया है और इन पर तो राष्ट्रद्रोह जैसा गंभीर आरोप भी हैं फिर भी जमानत दी गई हैं।

🚩इससे पहले संजय दत्त, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, वाड्रा, लालू यादव, तरुण तेजपाल, माल्या, सलमान खान, कन्हैया कुमार, उमर खालिद, इमाम बुखारी, मुक़व्वल फ्रेंको आदि नेता-अभिनेता, पत्रकार, धनी, अन्य पंथ के धर्मगुरु और राष्ट्रद्रोह आदि अपराधों में जमानत मिलती रही हैं।

🚩लेकिन वहीं साध्वी प्रज्ञाजी को 9 साल, डीजी वंजाराजी को 8 साल, स्वामी असीमानन्दजी को 8 साल, कर्नल पुरोहित 7 साल, केशवानन्दजी महाराज, शंकराचार्य आदि को सालों तक जेल में रखा गया, अमानवीय यातनाएं दी गई लेकिन जमानत नही दी गई।

🚩ओडीशा में धर्मान्तरण का विरोध करने वाले दारा सिंह को सालो से जेल में रखा गया है, अपनी मां की अंतेष्टि करने के लिए भी पेरोल नही दी गई।

🚩जोधपुर जेल में 7 साल से बंद 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी को एक दिन भी जमानत अथवा पेरोल नही दी गई इसके पीछे के कारण नीचे जानिए।

1). लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री, मकान, पैसे, दवाइयां आदि दी जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया।

2). कत्लखानों में जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।

3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।

4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथी के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया।

5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी- तेजस्वी बनाया।

6). लंदन, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया, पाकिस्तान में तो कराची में गाजी दरगाह में दोपहर की अजान के समय भी वे हरि कथा करते रहे।

7). वैलेंटाइन डे का विरोध करके "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया।

8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय, तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया।

9). करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया।

10). नशा मुक्ति अभियान के द्वारा करोड़ों लोगों को व्यसन-मुक्त कराया।

11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाएं।

12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोटि पीठ के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी", बाबा रामदेव, मोरारी बापूजी, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया।

🚩ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं।

🚩डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने तो यह भी बताया कि हिन्दू संत आशारामजी बापू ने लाखों हिंदुओं की घर वापसी की और करोड़ो लोगों को सनातन धर्म की तरफ ले आये इसके कारण वेटिकन सिटी ने सोनिया गाँधी को कहकर झूठे केस में फँसाया गया। उनके आश्रम में फेक्स भी आया था कि 50 करोड़ दो नहीं तो जेल जाने को तैयार रहो इससे साफ होता है कि उन पर अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र हुआ है।

🚩इससे साफ पता चलता है कि सफूरा जरगर जैसे जो देश को तोड़ने की बात करते है वे किसी भयंकर अपराध में गिरफ्तार हो भी जाये तो उनको तुरंत जमानत मिल जाती है क्योंकि उनके लिए आवाज उठाने के लिए राष्ट्रविरोधी लोग तुरंत इकट्ठे हो जाते है, मीडिया उनके पक्ष में बोलने लगती है जबकि कोई राष्ट्रवादी षडयंत्र तहत जेल जाता है तो राष्ट्रवादी लोग आवाज नही उठाते है सोचते है कि हमारे पडोश में आग लगी है न हमारे घर मे तो नही आई है न लेकिन पडोस में लगी है तो आपके वहाँ भी आयेगी इसलिए सभी राष्ट्रवादी, हिन्दूनिष्ठ इक्कट्ठे होकर आवाज उठानी चाहिए तभी सभी बच पायेंगे नही तो एक के बाद एक कि बारी तय है।

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Thursday, June 25, 2020

आसाराम बापू अभी भी जेल में क्यों हैं? सवाल आपका - जवाब हमारा...

25 जून 2020

🚩हिंदुस्तान में अधिकतर लोगों में एक धारणा बनी रहती है कि कोई व्यक्ति जेल में है तो समझो की वे अपराधी होगा लेकिन ये बात सभी जगह लागू नही होती कुछ व्यक्ति जेल में होते है तो उसके पीछे ओर भी बहुत कारण होते हैं। कई बार राष्ट्र और संस्कृति का कार्य करने पर जेल भेजा हैं।

1.) स्वदेशी अभियान आंदोलन 
🚩इसके अंतर्गत बापू आसारामजी आयुर्वेद विज्ञान को लोगों की जीवनशैली में वापस लाए और गरीबों को उच्च गुणवत्ता वाली और सस्ती दवाइयां उपलब्ध करवाई।

2.) 50 से भी ज्यादा सनातन धर्म शैली के गुरुकुलों की शुरूआत की जिससे छोटी उम्र में ही बच्चे वैदिक संस्कृति से जुड़ने लगें । इनके गुरुकुल इतने लोकप्रिय हो गए हैं कि सभी स्थानीय कॉन्वेंट स्कूलों में प्रवेश में गिरावट आने लगी।

3.) 10,000 से ज्यादा गायों को कत्लखाने जाने से बचाकर, स्व-निर्भर गौशालाओं की शुरुआत की, जो बिना किसी बाहरी दान के चलायी जाती हैं । जहाँ गौ सेवा अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर की जा रही है। इनके गौमूत्र से बने अर्क, गौवटी और गोधूप इतने लोकप्रिय हो गए हैं कि अन्य बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं पड़ी और इससे 100 से ज्यादा अलग-अलग जगहों पर आदिवासी परिवारों को रोजगार मिलने लगा।

4.) जो लोग उनके सत्संग को सुनते और उनके संपर्क में आने लगे, वे गर्व से कहने लगे कि हिंदू होने पर वे अपने आपको बहुत भाग्यशाली मानते हैं।

5.)  बापू आसारामजी ने कई संस्थाओं के मार्गदर्शक बनकर उन्हें भी प्रेरित किया और खुद भी जनजातीय क्षेत्र में बहुत से सेवा और रोजगार के अवसरों का नेतृत्व किया और सनातन धर्म के मार्ग को खोने वाले लाखों धर्मान्तरित हिंदुओं की घरवापसी करवाई। 

6.) बापू आशारामजी के प्रत्येक आश्रम (450 आश्रम) को एक आत्मनिर्भर इकाई के रूप में बनाया गया ताकि उन्हें किसीके सामने धनराशि के लिए प्रार्थना न करनी पड़े और वे आसानी से व्यसन मुक्ति अभियान, मातृपितृ पूजन दिवस, संस्कार सिंचन अभियान, वैदिक मंत्र विज्ञान प्रचार, संस्कृति रक्षक सम्मेलन, संकीर्तन यात्राएं और सत्संग जैसे सेवाकार्यों द्वारा समाज में जागृति लाये।

7.) किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी युवा होते हैं। हिंदू संत आशारामजी बापू ने युवाधन सुरक्षा अभियान (दिव्य प्रेरणा प्रकाश) द्वारा युवाओं को संयमित जीवन का महत्व समझाया। आज बापू आसारामजी के कारण आधुनिक अश्लीलता भरे वातावरण में भी करोड़ों युवा ब्रह्मचर्यं का महत्व समझ रहे हैं और अपनी प्राचीन विरासत पर गर्व करने लगे हैं।

8.) बापू आसारामजी ने देश विदेश में 17,000 से भी अधिक बाल संस्कार केंद्र शुरू करवाये जहां बच्चों को अपने माता-पिता का आदर करना, स्मृति क्षमता में वृद्धि और अपने जीवन को कैसे ऊर्जावान बनाया जाये, ये शिक्षा दी जाने लगी। उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति, पराक्रम जैसे सद्गुणों से बच्चे विद्यार्थी जीवन से ही उन्नत, विचारवान और संस्कृति प्रेमी बनने लगे।

9.) हमारी खोई हुई गरिमा और संस्कृति की महिमा को जनमानस के हृदय में पुनः स्थापित करने के लिए समाज में वैश्विक आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया गया 14 फरवरी वेलेंटाइन डे को "मातृपितृ पूजन दिवस" और  25 दिसंबर क्रिसमस डे को "तुलसी पूजन दिवस" और करोड़ो लोग इस दिन 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस और 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाने लगें।

🚩इन सभी गतिविधियों को आम व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा शुरू नहीं किया जा सकता है। यह केवल किसी महापुरुष द्वारा किया जा सकता है जो आत्मनिर्भर और दिव्य हैं। ऐसे संतों से लाभान्वित होना न होना ये समाज पर निर्भर करता है। विकल्प हमारा है क्योंकि आत्मरामी संतों को हमसे किसी चीज की आवश्यकता नहीं है और न ही उनको कोई घाटा है पर उनकी उपेक्षा करने से समाज को आने वाले समय में बहुत बड़े नुकसान का सामना करना पड़ेगा।

🚩तो अब सवाल यह है पिछले पचास साल से देश और संस्कृति की सेवा करनेवाले बापू आसाराम जी को जेल क्यों भेजा गया ?

🚩सब जानते हैं कि भारत को 1947 में आजादी मिली पर पर्दे के पीछे का सत्य कोई नहीं जानता। केजीबी जासूस के मुताबिक़ अंतर्राष्ट्रीय मिशनरियों के पास भारत की संस्कृति को ध्वस्त करने का लक्ष्य है। असल में वे दुनिया पर शासन करना चाहते हैं पर किसी भी देश को नष्ट करने के लिए सबसे पहले उस देश की संस्कृति को नष्ट करना होता है और इसलिए वे उस देश की संस्कृति को नष्ट करने के लिए देश के प्रति वफादार नेताओं और संतों पर हमला करते हैं।

🚩जैसे सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, राजीव दीक्षित और संत लक्ष्मणानंदजी आदि आदि की कैसे मृत्यु हुई आज तक पता नही चला।

🚩कुछ साल पहले यूरी बेज़मेनोव, जो पूर्व केजीबी जासूस है, उनके इन्टरव्यू के अंश एक अद्भुत अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

"किसी भी देश की पूरी आबादी की सोच और व्यवहार को बदलने के लिए चार कदम हैं।

1. अनैतिकता

2. अस्थिरता

3. संकट

4. सामान्यीकरण

हम युवाओं को शिक्षण के द्वारा गुमराह करके अनैतिक बना देते हैं। भारत में अनैतिकता प्रक्रिया मूल रूप से पहले ही पूरी हो चुकी है।"

🚩अब यह स्पष्ट होना चाहिए कि आशाराम बापू अभी भी जेल में क्यों हैं?
कुछ लोग कहते हैं, कांग्रेस (विशेष रूप से सोनिया गांधी का षड्यंत्र) आशाराम बापू पर बनाये गये मामले के पीछे छिपी हुई है लेकिन अब जब मोदी सत्ता में हैं, तब भी आशाराम बापू जेल में हैं।

🚩वास्तविक सत्य यह है: यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साजिश है। बड़े शक्तिशाली लोग जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों और मिशनरियों से जुड़े हुए हैं, जिन्होंने भारतीय मीडिया कई समूहों को खरीद रखा है, यहां भारतीय मीडिया पूरी तरह से दूषित है और खरीदने में मुश्किल नहीं है, वे भ्रष्ट अधिकारी और राजनेता को खरीदते हैं। वे हमेशा किसी भी चेहरे के पीछे काम करते हैं, जैसे उन्होंने सोनिया गांधी के चेहरे के पीछे किया था। भारतीय लोगों को मीडिया द्वारा आसानी से बेवकूफ़ बना दिया जाता है और बाकि भ्रष्ट राजनेता और अधिकारी केस को लंबा बनाते हैं।

🚩जब हम आसाराम बापू पर की गई FIR पढ़ते हैं तो सबकुछ स्पष्ट होता है। FIR में कोई बलात्कार का जिक्र नहीं है, लेकिन मीडिया ब्रेकिंग न्यूज 24X7 में "रेप" शब्द बोलता है और लड़की की कॉल डिटेल के अनुसार लड़कीं ने जिस समय पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया है उस समय वहाँ थी ही नही और आशारामजी बापू किसी कार्यक्रम में व्यस्त थे वहां 60 लोग भी मौजूद थे इससे स्पष्ट होता है कि सोची समझी साजिश के तहत जेल भिजवाया हैं।

🚩बापू आशारामजी के आश्रम में फैक्स भी किया था उसमे लिखा था कि 50 करोड़ दे दीजिए नही तो लड़की के केस में जेल जाने को तैयार रहिये लेकिन बापू आशारामजी ने इसपर ध्यान ही नही दिया वे देश व संस्कृति की सेवा में लगे रहे पैसे गरीबों और गायों की सेवा में लगाते रहे जिसके कारण वे आज भी जेल में है और अगर उनको बाहर निकालेंगे तो फिर से धर्मान्तरण वालो और मल्टीनेशनल कंपनियों की दुकानें बंद हो जायेगी।

🚩अगर देश को बचाना चाहते हैं तो भारतीयों को एकजुट होना चाहिए। लेकिन केजीबी के जासूसी प्रभावित लोगों का मीडिया द्वारा ब्रेनवोश किया गया है, इसलिए वे कभी भी सच नहीं पढ़ते और ना बोलते हैं।

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