Wednesday, January 11, 2017

स्वामी विवेकानन्द जी जयंती 12 जनवरी !!

🚩स्वामी विवेकानन्द जी जयंती 12 जनवरी!!

🚩स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी सन 1863  (विद्वानों के अनुसार #मकर संक्रान्ति संवत 1920) को #कलकत्ता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम #नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे।
स्वामी विवेकानन्द जी जयंती 12 जनवरी

  🚩दुर्गाचरण दत्ता, (नरेंद्र के दादा) संस्कृत और फारसी के विद्वान थे उन्होंने अपने #परिवार को 25 वर्ष की उम्र में छोड़ दिया और साधु बन गए।

🚩उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थी। उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेंद्र के पिता और उनकी माँ के धार्मिक, #प्रगतिशील व तर्कसंगत रवैये ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में मदद की ।



🚩बचपन से ही #नरेन्द्र अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के तो थे ही नटखट भी थे। अपने साथी बच्चों के साथ वे खूब शरारत करते और मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे। उनके घर में नियमपूर्वक रोज पूजा-पाठ होता था धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवी को पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था। संत इनके घर आते रहते थे। नियमित रूप से #भजन-कीर्तन भी होता रहता था। #परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से #बालक नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे होते गये। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही #ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी। ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुकता में कभी-कभी वे ऐसे प्रश्न पूछ बैठते थे कि इनके माता-पिता और कथावाचक पण्डितजी तक चक्कर में पड़ जाते थे।

🚩स्वामी विवेकानन्द जी की शिक्षा..!!

🚩सन् 1871 में, आठ साल की उम्र में नरेंद्रनाथ ने #ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में दाखिला लिया जहाँ वे स्कूल गए। 1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया। 1879 में कलकत्ता में अपने परिवार की वापसी के बाद, वह एकमात्र छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीजन अंक प्राप्त किये ।

🚩वे दर्शन, धर्म, इतिहास, सामाजिक विज्ञान, कला और साहित्य सहित विषयों के एक #उत्साही पाठक थे।इनकी वेद, उपनिषद, भगवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराणों के अतिरिक्त अनेक हिन्दू शास्त्रों में गहन रूचि थी। नरेंद्र को #भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित किया गया था और ये नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम में व खेलों में भाग लिया करते थे। नरेंद्र ने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्ययन जनरल असेंबली इंस्टिटूशन (अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में किया। 1881 में इन्होंने ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की, और 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी कर ली। 

🚩नरेंद्र ने डेविड ह्यूम, इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोजा, जोर्ज डब्लू एच हेजेल, आर्थर स्कूपइन्हार , ऑगस्ट कॉम्टे, जॉन स्टुअर्ट मिल और चार्ल्स डार्विन के कामों का अध्यन किया। उन्होंने स्पेंसर की किताब एजुकेशन (1861) का बंगाली में अनुवाद किया।  ये हर्बर्ट स्पेंसर के विकासवाद से काफी मोहित थे।  #पश्चिम दार्शनिकों के अध्यन के साथ ही इन्होंने संस्कृत ग्रंथों और बंगाली साहित्य को भी सीखा।विलियम हेस्टी (महासभा संस्था के प्रिंसिपल) ने लिखा, "नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस है। मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है लेकिन उनकी जैसी प्रतिभा वाला एक भी बालक कहीं नहीं देखा यहाँ तक कि जर्मन #विश्वविद्यालयों के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं।" अनेक बार इन्हें श्रुतिधर( विलक्षण स्मृति वाला एक व्यक्ति) भी कहा गया है।

🚩स्वामी विवेकानन्द जी की आध्यात्मिक शिक्षुता - ब्रह्म समाज का प्रभाव!!

🚩1880 में नरेंद्र ईसाई से हिन्दू धर्म में रामकृष्ण के प्रभाव से परिवर्तित केशव चंद्र सेन की नव विधान में शामिल हुए, नरेंद्र 1884 से पहले कुछ बिंदु पर, एक फ्री मसोनरी लॉज और साधारण #ब्रह्म समाज जो ब्रह्म समाज का ही एक अलग गुट था और जो केशव चंद्र सेन और देवेंद्रनाथ टैगोर के नेतृत्व में था। 1881-1884 के दौरान ये सेन्स बैंड ऑफ़ होप में भी सक्रीय रहे जो धूम्रपान और शराब पीने से युवाओं को हतोत्साहित करता था।

🚩यह नरेंद्र के परिवेश के कारण पश्चिमी आध्यात्मिकता के साथ परिचित हो गया था। उनके प्रारंभिक विश्वासों को ब्रह्म समाज ने (जो एक निराकार ईश्वर में विश्वास और मूर्ति पूजा का प्रतिवाद करते थे) ने प्रभावित किया और सुव्यवस्थित, युक्तिसंगत, अद्वैतवादी अवधारणाओं , धर्मशास्त्र ,वेदांत और उपनिषदों के एक चयनात्मक और आधुनिक ढंग से अध्ययन पर प्रोत्साहित किया।

🚩स्वामी विवेकानन्द जी की निष्ठा..!!

🚩एक बार किसी #शिष्य ने #गुरुदेव की #सेवा में घृणा और निष्क्रियता दिखाते हुए नाक-भौं सिकोड़ीं। यह देखकर विवेकानन्द को क्रोध आ गया। वे अपने उस गुरु भाई को सेवा का पाठ पढ़ाते और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर पी गये । #गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे अपने गुरु के शरीर और उनके दिव्यतम आदर्शों की उत्तम सेवा कर सके। गुरुदेव को समझ सके और स्वयं के अस्तित्व को गुरुदेव के स्वरूप में विलीन कर सके। और आगे चलकर समग्र विश्व में #भारत के अमूल्य आध्यात्मिक भण्डार की महक फैला सके।

 🚩ऐसी थी उनके इस #महान व्यक्तित्व की नींव में गुरुभक्ति, गुरुसेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा जिसका परिणाम सारे संसार ने देखा। 

🚩स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने #गुरुदेव #रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। उनके गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और #कुटुम्ब की नाजुक हालत व स्वयं के भोजन की चिन्ता किये बिना वे गुरु की सेवा में सतत संलग्न रहे।

🚩विवेकानन्द बड़े स्‍वप्न‍दृष्‍टा थे। #उन्‍होंने एक ऐसे समाज की कल्‍पना की थी जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्‍य-मनुष्‍य में कोई भेद न रहे। उन्‍होंने वेदान्त के सिद्धान्तों को इसी रूप में रखा। अध्‍यात्‍मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धान्त का जो आधार विवेकानन्‍द ने दिया उससे सबल बौद्धिक आधार शायद ही ढूँढा जा सके। #विवेकानन्‍द को युवकों से बड़ी आशाएँ थी। 
आज के युवकों के लिये इस ओजस्‍वी सन्‍यासी का जीवन एक आदर्श है। 

🚩स्वामी विवेकानन्द जी यात्राएँ!!

🚩25 वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया था । तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे #भारतवर्ष की यात्रा की। सन्‌ 1893 में शिकागो (अमरीका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे। यूरोप-अमरीका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे।

🚩वहाँ लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। परन्तु एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला। उस परिषद् में उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये। फिर तो अमरीका में उनका अत्यधिक स्वागत हुआ। वहाँ उनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय बन गया। तीन वर्ष वे #अमरीका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान की। उनकी वक्तृत्व-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया।

🚩"अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जायेगा" यह स्वामी विवेकानन्द का दृढ़ विश्वास था। अमरीका में उन्होंने #रामकृष्ण मिशन की अनेक #शाखाएँ स्थापित कीं। अनेक अमरीकी विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। वे सदा अपने को 'गरीबों का सेवक' कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशान्तरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया।

🚩स्वामी विवेकानन्दजी का योगदान !!

🚩39 वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी #विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

🚩तीस वर्ष की आयु में स्वामी #विवेकानन्द ने #शिकागो, अमेरिका के #विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवायी।

🚩 गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था-"यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।"

🚩रोमारोला ने उनके बारे में कहा था-"उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असम्भव है, वे जहाँ भी गये, सर्वप्रथम ही रहे। हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता था। वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी। 

🚩हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देख ठिठक कर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा-‘शिव!’ यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के #आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो।"


🚩वे केवल सन्त ही नहीं, एक #महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। अमेरिका से लौटकर उन्होंने #देशवासियों को आह्वान करते हुए कहा था-"नया भारत निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूँजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पडे झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से।" और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी। #गान्धीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानन्द के आह्वान का ही फल था। 

🚩इस प्रकार वे #भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा-स्रोत बने। उनका विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यहीं बड़े-बड़े महात्माओं व ऋषियों का जन्म हुआ, यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं-केवल यहीं-आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिये जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है। 

🚩उनके कथन-"‘उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।"

🚩उन्नीसवीं सदी के आखिरी वर्षोँ में विवेकानन्द लगभग सशस्त्र या हिंसक क्रान्ति के जरिये भी देश को आजाद करना चाहते थे। परन्तु उन्हें जल्द ही यह विश्वास हो गया था कि परिस्थितियाँ उन इरादों के लिये अभी परिपक्व नहीं हैं। इसके बाद ही विवेकानन्द जी ने ‘एकला चलो‘ की नीति का पालन करते हुए एक परिव्राजक के रूप में भारत और दुनिया को खंगाल डाला।

🚩उन्होंने कहा था कि #मुझे बहुत से युवा संन्यासी चाहिये जो भारत के ग्रामों में फैलकर देशवासियों की सेवा में खप जायें।  विवेकानन्दजी पुरोहितवाद, धार्मिक आडम्बरों, कठमुल्लापन और रूढ़ियों के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने धर्म को मनुष्य की सेवा के केन्द्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया था। उनका हिन्दू धर्म अटपटा, लिजलिजा और वायवीय नहीं था। 

🚩विवेकानन्द जी इस बात से आश्वस्त थे कि #धरती की गोद में यदि ऐसा कोई देश है जिसने मनुष्य की हर तरह की बेहतरी के लिए ईमानदार कोशिशें की हैं, तो वह भारत ही है।

🚩उन्होंने पुरोहितवाद, ब्राह्मणवाद, धार्मिक कर्मकाण्ड और रूढ़ियों की खिल्ली भी उड़ायी और लगभग आक्रमणकारी भाषा में ऐसी विसंगतियों के खिलाफ युद्ध भी किया। उनकी दृष्टि में हिन्दू धर्म के #सर्वश्रेष्ठ चिन्तकों के विचारों का निचोड़ पूरी दुनिया के लिए अब भी ईर्ष्या का विषय है। #स्वामीजी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को जरूरत भी है लेकिन हमें याचक नहीं बनना चाहिये। हमारे पास उससे ज्यादा बहुत कुछ है जो हम पश्चिम को दे सकते हैं और पश्चिम को उसकी बेसाख्ता जरूरत है।

🚩यह स्वामी विवेकानन्द का अपने देश की धरोहर के लिये दम्भ या बड़बोलापन नहीं था। यह एक वेदान्ती #साधु की भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तटस्थ, वस्तुपरक और मूल्यगत आलोचना थी। बीसवीं सदी के इतिहास ने बाद में उसी पर मुहर लगायी।

🚩स्वामी विवेकानन्द जी की महासमाधि!!

🚩विवेकानंद #ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि #विश्व भर में है। जीवन के अन्तिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा-"एक और विवेकानन्द चाहिये, यह समझने के लिये कि इस #विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है।" उनके शिष्यों के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो तीन घण्टे ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर #महासमाधि ले ली। बेलूर में #गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी। #इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था।

🚩उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक #मन्दिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु #रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की।

🚩स्वामी विवेकानन्द जी की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ!!

🚩12 जनवरी 1863 -- कलकत्ता में जन्म

🚩1879 -- प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश

🚩1880 -- जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश

🚩नवंबर 1881 -- रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेंट

🚩1882-86 -- रामकृष्ण परमहंस से सम्बद्ध

🚩1884 -- स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण; पिता का स्वर्गवास

🚩1885 -- रामकृष्ण परमहंस की अन्तिम बीमारी

🚩16 अगस्त 1886 -- रामकृष्ण परमहंस का निधन

🚩1886 -- वराहनगर मठ की स्थापना

🚩जनवरी 1887 -- वराह नगर मठ में संन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा

🚩1890-93 -- परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण

🚩25 दिसम्बर 1892 -- कन्याकुमारी में

🚩13 फ़रवरी 1893 -- प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकन्दराबाद में

🚩31 मई 1893 -- मुम्बई से अमरीका रवाना

🚩25 जुलाई 1893 -- वैंकूवर, कनाडा पहुँचे

🚩30 जुलाई 1893 -- शिकागो आगमन

🚩अगस्त 1893 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो॰ जॉन राइट से भेंट

🚩11 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान

🚩27 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अन्तिम व्याख्यान

🚩16 मई 1894 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण

🚩नवंबर 1894 -- न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना

🚩जनवरी 1895 -- न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरम्भ

🚩अगस्त 1895 -- पेरिस में

🚩अक्टूबर 1895 -- लन्दन में व्याख्यान

🚩6 दिसम्बर 1895 -- वापस न्यूयॉर्क

🚩22-25 मार्च 1896 -- फिर लन्दन

🚩मई-जुलाई 1896 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान

🚩15 अप्रैल 1896 -- वापस लन्दन

🚩मई-जुलाई 1896 -- लंदन में धार्मिक कक्षाएँ

🚩28 मई 1896 -- ऑक्सफोर्ड में मैक्समूलर से भेंट

🚩30 दिसम्बर 1896 -- नेपाल से भारत की ओर रवाना

🚩15 जनवरी 1897 -- कोलम्बो, श्रीलंका आगमन

🚩जनवरी, 1897 -- रामनाथपुरम् (रामेश्वरम) में जोरदार स्वागत एवं भाषण

🚩6-15 फ़रवरी 1897 -- मद्रास में

🚩19 फ़रवरी 1897 -- कलकत्ता आगमन

🚩1 मई 1897 -- रामकृष्ण मिशन की स्थापना

🚩मई-दिसम्बर 1897 -- उत्तर भारत की यात्रा

🚩जनवरी 1898 -- कलकत्ता वापसी

🚩19 मार्च 1899 -- मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना

🚩20 जून 1899 -- पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा

🚩31 जुलाई 1899 -- न्यूयॉर्क आगमन

🚩22 फरवरी 1900 -- सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की स्थापना

🚩जून 1900 -- न्यूयॉर्क में अन्तिम कक्षा

🚩26 जुलाई 1900 -- यूरोप रवाना

🚩24 अक्टूबर 1900 -- विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा

🚩26 नवम्बर 1900 -- भारत रवाना

🚩9 दिसम्बर 1900 -- बेलूर मठ आगमन

🚩10 जनवरी 1901 -- मायावती की यात्रा

🚩मार्च-मई 1901 -- पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थयात्रा

🚩जनवरी-फरवरी 1902 -- बोध गया और वाराणसी की यात्रा

🚩मार्च 1902 -- बेलूर मठ में वापसी

🚩4 जुलाई 1902 -- महासमाधि!!


Tuesday, January 10, 2017

राष्ट्र भाषा हिन्दी विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली बनी भाषा..!!!

राष्ट्र भाषा हिन्दी विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली बनी भाषा..!!!

भारत में भले अंग्रेजों ने हमारी भारतीय संस्कृति को मिटाने के लिए हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी को हटाकर गुलाम बनाने वाली अंग्रेजी भाषा थोपने की कोशिश की थी। लेकिन आज के ताजे आकंड़े देखकर ताजुब हो जायेगा कि हिंदी भाषा दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जा रही है ।

दुनिया में हिंदी बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 

2015 के आंकड़ों के अनुसार हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है।

2005 में दुनिया के 160 देशों में हिंदी बोलने वालों की अनुमानित संख्या 1,10,29,96,447 थी। उस समय चीन की मंदारिन भाषा बोलने वालों की संख्या इससे कुछ अधिक थी। लेकिन 2015 में दुनिया के 206 देशों में करीब 1,30,00,00,000 (एक अरब तीस करोड़) लोग हिंदी बोल रहे हैं और अब हिंदी बोलने वालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो चुकी है।

मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय अपनी पुस्तक "हिंदी का विश्र्व संदर्भ" में सारणीबद्ध आंकड़े देते हुए कहते हैं कि भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। यहां के पेशेवर युवा दुनिया के सभी देशों में पहुंच रहे हैं और दुनिया भर की बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में निवेश के लिए आ रही हैं। इसलिए एक तरफ हिंदी भाषी दुनिया भर में फैल रहे हैं, तो दूसरी ओर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना व्यवसाय चलाने के लिए अपने कर्मचारियों को हिंदी सिखानी पड़ रही है। तेजी से हिंदी सीखने वाले देशों में चीन सबसे आगे है।

फिलहाल चीन के 20 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। 2020 तक वहां हिंदी पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों की संख्या 50 तक पहुंच जाने की उम्मीद है। यहां तक कि चीन ने अपने 10 लाख सैनिकों को भी हिंदी सिखा रखी है। 

उपाध्याय के अनुसार अंतरराष्ट्रीय मंच पर बढ़ी भारत की साख के कारण भी दुनिया के लोगों की हिंदी और हिंदुस्तान में रुचि बढ़ी है।

देश में 78 फीसद लोग बोलते हैं हिंदी..!!

-डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने अपनी पुस्तक में दिए आंकड़ों में डॉ. जयंतीप्रसाद नौटियाल द्वारा 2012 में किए गए शोध अध्ययन के अलावा, 1999 की जनगणना, द वर्ल्ड आल्मेनक एंड बुक ऑफ फैक्ट्स, न्यूज पेपर एंटरप्राइजेज एसोसिएशन अंक, न्यूयार्क और मनोरमा इयर बुक इत्यादि को आधार बनाया है।

- पुस्तक के अनुसार हिंदी के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा चीन की मंदारिन है। लेकिन मंदारिन बोलने वालों की संख्या चीन में ही भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या से काफी कम है।

- चीनी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल 70 फीसद चीनी ही मंदारिन बोलते हैं। जबकि भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या करीब 78 फीसद है। दुनिया में 64 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है। जबकि 20 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा, एवं 44 करोड़ लोगों की तीसरी, चौथी या पांचवीं भाषा हिंदी है।

- भारत के अलावा मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, गयाना, ट्रिनिडाड और टोबैगो आदि देशों में हिंदी बहुप्रयुक्त भाषा है। भारत के बाहर फिजी ऐसा देश है, जहां हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।

- हिंदी को वहां की संसद में प्रयुक्त करने की मान्यता प्राप्त है। मॉरीशस में तो बाकायदा "विश्व हिंदी सचिवालय" की स्थापना हुई है, जिसका उद्देश्य ही हिंदी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित करना है।


आपको बता दें कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अपनी सिफारिशों में सरकारी और निजी दोनों संस्थानों में से धीरे-धीरे अंग्रेजी को हटाने और भारतीय भाषाओं को शिक्षा के सभी स्तरों पर शामिल करने पर जोर दिया है। साथ ही आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी जैसे अंग्रेजी भाषाओं में पढ़ाई कराने वाले संस्थानों में भी भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने की सुविधा देने पर जोर दिया गया है। 
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हिंदी भाषा इसलिये दुनिया में प्रिय बन रही है क्योंकि इस भाषा को देवभाषा संस्कृत से लिया गया है जिसमें मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक है। जबकि अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द केवल 10,000 ही हैं ।

हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है। 

आज मैकाले की वजह से ही हमने मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । लेकिन आज दुनिया में हिंदी भाषा का महत्व जितना बढ़ रहा है उसको देखकर समझकर हमें भी हिंदी भाषा का उपयोग अवश्य करना चाहिए ।

अपनी मातृभाषा की गरिमा को पहचानें । अपने बच्चों को अंग्रेजी (कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा(गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुँमुखी विकास में सहभागी बनें ।

Monday, January 9, 2017

बैंकों के कर्ज से परेशान होकर 80 फीसदी किसानों ने की खुदकुशी..!!!

बैंकों के कर्ज से परेशान होकर 80 फीसदी किसानों ने की खुदकुशी..!!!

कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या करने वाले किसानों की बात जब उठती है तो साहूकारों और महाजनों को अपराधी के तौर पर पेश किया जाता है। साहूकारों और महाजनों पर आरोप लगाया जाता है कि वो कर्ज वसूलने के लिए किसानों को इस कदर परेशान करते हैं कि वो आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाते हैं। 

हालांकि साहूकार भी किसानों को कम परेशान नही करते हैं,
लेकिन एनसीआरबी के ताजा सर्वे में चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं!!!

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एनसीआरबी के आकड़ों के मुताबिक कर्ज न चुका पाने के कारण खुदकुशी करने वालों किसानों में से 80 फीसदी ने बैंकों से कर्ज लिया था ।

 एनसीआरबी के आकड़ों के मुताबिक 2014 की तुलना में 2015 में किसानों के आत्महत्या करने की दर में 41.7 फीसदी का इजाफा हुआ है। 1995 से  31 मार्च 2013 तक के आंकड़े बताते हैं कि अब तक 2,96 438 किसानों ने आत्महत्या की है ।

सरकारी सूत्रों के अनुसार 2014 में 5650 और 2015 में 8000 से अधिक मामले सामने आए। 

योजना आयोग के पूर्व सदस्य अभिजीत सेन ने बताया कि बैंक लोन वसूलने में लचीला रुख नहीं अपनाते हैं। उन्होंने बताया कि कर्ज वसूलने में माइक्रो फानैन्स कंपनियों का ज्यादा बुरा हाल है। यहां तक कि वो लोन वसूलने के लिए गुडों का भी इस्तेमाल करते हैं।

माल्या जैसों का हजारों करोड़ माफ, किसानों का क्यों नही..???

2014 में देश की जनता ने केंद्र में भाजपा को बहुमत देकर देश की सत्ता सौंपी तो देश के किसानों और मजदूरों ने सोचा था कि उनके अच्छे दिन आ सकते हैं।  लेकिन आकंड़े देखकर तो लगता है कि सरकार से किसानो को कोई राहत नही मिल पा रही है ।


बैंकों से लिए कर्ज के कारण मरने को मजबूर हो जाता है किसान..!!

गरीब किसान बैंकों से कर्ज लेकर खेती करता है और जब बे मौसम बरसात, ओले और तेज हवाओ और सूखे से उसकी फसल नष्ट हो जाती है तो वो कर्ज नहीं चुका पाता है तो बैंक उससे कर्ज वसूलने के लिए उसके खेतों को नीलाम करके अपना कर्ज वसूलती है। जिसकी वजह से वो आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है। 

हजारों करोड़ के डिफाल्टर गरीबों का कर्ज माफ..!!

वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने विजय माल्या समेत 63 डिफाल्टरों का तकरीबन सात हजार करोड़ रुपए का बकाया लोन माफ करने का फैसला किया है। डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, एसबीआई ने बकाया वसूल नहीं कर पाने पर शीर्ष 100 विलफुल डिफाल्टरों में से 63 पर 7016 करोड़ रुपए का लोन माफ करने का फैसला किया है।

बताते चलें कि 63 डिफाल्टरों की ये राशि कुल 100 डिफाल्टरों का 80 फीसदी है। यह छूट बैंक की प्रक्रिया बैड लोन के अंतर्गत की गई है। सभी कंपनियों को बैंक ने विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर दिया।

विजय माल्या के अलावा किंगफिशर एयरलाइंस का तकरीबन 1201 करोड़ रुपए, केएस ऑयल का 596 करोड़ रुपए, सूर्या फार्मास्यूटिकल का 526 करोड़ रुपए, जीईटी पावर का 400 करोड़ रुपए और साई इंफो सिस्टम का 376 करोड़ रुपए शामिल है। डीएनए की रिपोर्ट के मुताबिक, उसने इस बारे में एसबीआई के अधिकारियों से जानकारी मांगनी चाही तो उसे कोई जवाब नहीं मिला।

सिर्फ गरीब किसान के कर्ज माफी के लिए नहीं है केंद्र सरकार के पास पैसा..!!

एक तरफ जहाँ बैंक अमीर डिफाल्टरों के हजारों करोड़ यूँ ही माफ कर देता है और दूसरी तरफ गरीब किसानों का उतना कर्ज भी माफ नहीं कर पा रही है जो इन डिफाल्टरों का 20 फीसदी भी नहीं होगा।

कुछ दिनों पहले केंद्र सरकार ने अडानी ग्रुप के ऊपर लगे 200 करोड़ के जुर्माने को भी माफ कर दिया ।

केंद्र सरकार का ये दोगलापन किसानों के साथ कब तक जारी रहेगा.???

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि महाराष्ट्र में एक मंडी में किसान टमाटर लेकर आया तो एक किलो टमाटर की कीमत केवल पांच पैसे लगाई गई जिससे किसान ने उसे वापिस लाकर अपने खेतों में डाल दिया ऐसे ही कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ की एक मंडी ने टमाटर की कीमत 2 रूपये किलो लगाई तो उसने सड़कों पर टमाटर फेंक दिए जिससे सड़कें लाल हो गई थी । 

मध्य प्रदेश में भी कुछ दिन पहले मंडी में प्याज का भाव नही दिया गया तो सड़कों पर प्याज डाल दी गई । 

ये तो एक उदाहरण तौर पर बताया गया है लेकिन किसान दिन-रात मेहनत करता है जब फसल लेकर मंडी में आता है तो उसको निराश होने पड़ता है क्योंकि सिंचाई के पानी, खाद्य, बीज, कीटनाशक दवाइयों आदि का पैसा भी फसल की बिक्री से नही निकल पाता है । जो किसान ने कड़ी मेहनत की उसको तो वो गिनता ही नही।

पूर्व सरकार से ही किसानों का बहुत शोषण होता रहा है । किसानों के बढ़ते संकट का निवारण करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को ध्यान देना चाहिए।

अब केंद्र सरकार को अन्नदाता किसानों को कर्ज से मुक्त कर देना चाहिए और उनके लिए पानी, बिजली, बीज, खाद्य, दवाइयां आदि सस्ते भाव देकर उनको राहत देनी चाहिये जिससे किसान भी अपना जीवन परिवार के साथ खुशहाली से जी सके ।

Sunday, January 8, 2017

सावरकर टाइम्स ने उठाये सवाल! क्यों हुए बापू आसारामजी षड़यंत्र के शिकार..??

सावरकर टाइम्स ने उठाये सवाल!
क्यों हुए बापू आसारामजी षड़यंत्र के शिकार..???

सावरकर टाइम्स अखबार में लिखा है कि बापू आसारामजी हिन्दू धर्म के एक महान संत हैं, जिन्होंने हिन्दू धर्म की महत्ता के बारे में पूरे हिन्दू समाज को जागरूक किया  और हिंदुओं के हो रहे धर्म परिवर्तन को रोकने के बहुत ही सराहनीय कार्य किये, लेकिन हिन्दू विरोधी लोगो को आसारामजी बापू सुई की तरह चुभने लगे ।

संत आसारामजी बापू ने जो सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य किया वो था जयेन्द्र सरस्वतीजी की सहायता, जो हिन्दू धर्म के महान शंकराचार्य हैं ।
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जब उन पर झूठे केस डाले गए तो बापू आसारामजी ने इस कबराना कार्य की पुरजोर निंदा की और आंदोलन में भाग लिया । विश्व हिंदू परिषद् ने जयेन्द्र सरस्वती की गिरफ्तारी के विरोध में आंदोलन किया लेकिन जब विश्व हिंदू परिषद का आंदोलन कमजोर पड़ने लगा तब कमजोर पड़ते आंदोलन को बापू आसारामजी ने सहयोग दिया और कामयाब आंदोलन में बदल दिया और आसारामजी बापू का यत्न रंग लाया और जयेन्द्र सरस्वती बच गये लेकिन बापू आसारामजी खुद कुछ हिन्दू विरोधी लोगों की आँखों में चुभने लगे।

जयेन्द्र सरस्वती वाले आंदोलन के बाद बापू आशारामजी पर कई प्रकार के इल्जाम लगने शुरू हो गये, जैसे कि बापूजी पानी का ज्यादा इस्तेमाल करके पानी को खराब करते हैं ऐसे कई प्रकार के छोटे छोटे इल्जाम लगने शुरू हुए लेकिन षड़यंत्रकारियों ने देखा कि हमारे लगाये इल्जामों का तो बापूजी की छवि पर कोई असर नहीं हो रहा है तो उन्होंने बापूजी पर घटिया इल्जाम यौन शोषण का लगा दिया, जो अभी तक सच साबित नहीं हुआ। 
फिर दूसरा इल्जाम लगाया गया कि बापूजी के जम्मू स्थित आश्रम में बच्चे-बच्चियों की लाश दबी हुई है वह इल्जाम भी झूठा साबित हुआ और दोषियों ने अपनी गलती मानी । 

उसमें आगे लिखा है कि बापूजी ने धार्मिक क्षेत्र के अलावा दूसरे क्षेत्रों में भी सराहनीय कार्य किये हैं...!!

जैसे...

1. महान गऊ पालक - बापू आसारामजी एक महान गऊ पालक भी हैं, उन्होंने हजारों बेसहारा गायों को जो दूध नहीं देती, उनको कत्लखानो से बचा कर रखा है। उनमें से बहुत सी गाय अच्छी नस्ल की गाय है ।

2. महिलाओं के लिए कार्य - बापूजी महिलाओं के लिए शिक्षा,भोजन व अन्य भी कई तरह की सहायता करते रहे हैं ।

3. शिक्षा के क्षेत्र - शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने बहुत से सराहनीय कार्य किये हैं, गरीब लोगों के बच्चों को किताबें मुफ्त में दी जाती हैं आदि।

4. गरीब और बेसहारों के लिए कार्य - जब - जब कहीं भूकंप आता है तो बापूजी वहां अपना सहयोग देते हैं, जैसे भोजन,कपड़ा दवाईया आदि व केम्प भी लगाये जाते हैं ।

5. अमरनाथ यात्रा - अमरनाथ यात्रा के लिये भी बापूजी ने अनुचित फीस हटाने की फारुख अब्दुल्ला से मांग की थी और फिर उसको पत्र भी लिखा था ।

6. बच्चों को संस्कार देना -  बापूजी ने बच्चों की शिविरों द्वारा उन्हें अच्छे संस्कार भी दिए । जैसे सुबह जल्दी उठना,माता-पिता को प्रणाम करना और मातृ-पितृ पूजन दिवस भी शुरू करवाया ।

धर्म परिवर्तन के खिलाफ समाज को जागरूक कर इसको रोकने का यत्न किया । 

मीडिया इन सब बातों का प्रचार कभी नहीं करती क्योंकि यह अच्छे कार्य हैं, इसीलिए हिन्दू यूनाइटेड फ्रंट ने बापूजी के इन कार्यो को देखते हुए तीन जिलों में सेमिनार आयोजित किये और भारत के राष्ट्रपति को ज्ञापन भेज कर मांग की कि बापू आसारामजी के खिलाफ षड़यंत्र रचने वालों पर केस दर्ज किया जाए । 
-लवलीन कुमार ( कनवीनर) हिन्दू यूनाइटेड फ्रंट

आपको बात दें कि बापू आसारामजी के ऐसे तो समाज उत्थान के अनेकों कार्य हैं जिस पर कभी भी मीडिया का कैमरा नही गया है बल्कि धर्मान्तरण पर रोक लगाने और विदेशी कंपनियों को घाटा आने पर मीडिया द्वारा बदनाम जरूर करवाया गया है ।

गौरतलब है कि बापू आसारामजी बिना आरोप सिद्ध हुए तीन साल से जोधपुर जेल में बन्द है । उनके लिए उनके अनुयायियों और अनेक हिन्दू सगठनों द्वारा देश भर में आंदोलन जारी हैं एवं सोशल मीडिया द्वारा और राज्य सभा में भी जमानत की लगातार आवाज उठती रही है लेकिन फिलहाल सरकार की लापरवाही से उनको सामान्य जमानत तक भी नही मिल पायी है। जबकि दूसरी ओर हमारा कानून आतंकवादी को भी जमानत देने की उदारता रखता है। 

क्या सच में कानून सबके लिए समान है ?

सोचो हिन्दू !!!