Friday, November 20, 2020

गोपाष्टमी पर्व क्यों मनाया जाता है?, उस दिन हमें क्या करना चाहिए?

 

20 नवम्बर 2020


 वर्ष में जिस दिन गायों की पूजा-अर्चना आदि की जाती है वह दिन भारत में ‘गोपाष्टमी’ के नाम से जाना जाता है । इस साल गोपाष्टमी 22 नवम्बर को मनाई जाएगी।

गोपाष्टमी का इतिहास:-




गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है । गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी एक अंगुली पर धारण किया था । गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोगों ने ही गोवर्धन को धारण किया है । उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा । तब सभी ने एक साथ शरणागति की पुकार लगायी और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया ।

उधर देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को मानव श्रीकृष्ण नहीं झेल पायेंगे परंतु जब लगातार सात दिन तक प्रलयकारी वर्षा के बाद भी श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब आठवें दिन इन्द्र की आँखें खुली और उनका अहंकार दूर हुआ । तब वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आए और क्षमा मांगकर उनकी स्तुति की । कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान का एक नाम ‘गोविंद’ पड़ा । वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था । उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है ।

कैसे मनायें गोपाष्टमी पर्व ?

इस साल 22 नवम्बर को गोपाष्टमी है उस दिन गायों को स्नान कराएं । तिलक करके पूजन करें व गोग्रास दें । गायों को अनुकूल हो ऐसे खाद्य पदार्थ खिलाएं, सात परिक्रमा व प्रार्थना करें तथा गाय की चरणरज सिर पर लगाएं । इससे मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है ।

गोपाष्टमी के दिन सायंकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें कुछ खिलायें और उनकी चरणरज को मस्तक पर धारण करें, इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है ।

भारतवर्ष में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है । विशेषकर गौशालाओं तथा पिंजरापोलों के लिए यह बड़े महत्त्व का उत्सव है । इस दिन गौशालाओं में एक मेला जैसा लग जाता है । गौ कीर्तन-यात्राएँ निकाली जाती हैं । यह घर-घर व गाँव-गाँव में मनाया जानेवाला उत्सव है । इस दिन गाँव-गाँव में भंडारे किये जाते हैं ।

विश्व के लिए वरदानरूप : गोपालन

देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए वरदानरूप हैं । दूध स्मरणशक्तिवर्धक, स्फूर्तिवर्धक, विटामिन्स और रोगप्रतिकारक शक्ति से भरपूर है । घी ओज-तेज प्रदान करता है । इसी प्रकार गोमूत्र कफ व वायु के रोग, पेट व यकृत (लीवर) आदि के रोग, जोड़ों के दर्द, गठिया, चर्मरोग आदि सभी रोगों के लिए एक उत्तम औषधि है । गाय के गोबर में कृमिनाशक शक्ति है । जिस घर में गोबर का लेपन होता है वहाँ हानिकारक जीवाणु प्रवेश नहीं कर सकते । पंचामृत व पंचगव्य का प्रयोग करके असाध्य रोगों से बचा जा सकता है । ये हमारे पाप-ताप भी दूर करते हैं । गाय से बहुमूल्य गोरोचन की प्राप्ति होती है ।

देशी गाय के दर्शन एवं स्पर्श से पवित्रता आती है, पापो का नाश होता है । गोधूलि (गाय की चरणरज) का तिलक करने से भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं । ‘स्कंद पुराण’ में गौ-माता में सर्व तीर्थों और सभी देवताओं का निवास बताया गया है ।

गायों को घास देने वाले का कल्याण होता है । स्वकल्याण चाहनेवाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि गौ-सेवा में लगे हुए पुरुष को धन-सम्पत्ति, आरोग्य, संतान तथा मनुष्य-जीवन को सुखकर बनानेवाले सम्पूर्ण साधन सहज ही प्राप्त हो जाते हैं ।

विशेष : ये सभी लाभ देशी गाय से ही प्राप्त होते हैं, जर्सी व होल्सटीन से नहीं ।
(स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित "गाय" साहित्य से)

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Thursday, November 19, 2020

जानिए अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस कब से और किसलिए मनाया जाता है?

19 नवम्बर 2020


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) की तरह हर साल 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस (International Men's Day) मनाया जाता है। हालांकि, जिस उत्साह और सपोर्ट के साथ महिला दिवस मनाया जाता है, उस तरह का एक्‍साइटमेंट व क्रेज पुरुष दिवस के लिए देखने को नहीं मिलता। यह दिन मुख्य रूप से पुरुषों को भेदभाव, शोषण, उत्पीड़न, हिंसा और असमानता से बचाने और उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिए मनाया जाता है। आपको बता दें कि 80 देशों में 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है और इसे युनेस्को का भी सहयोग प्राप्त है।




ऐसे हुई पुरुष दिवस की शुरुआत:

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस का इतिहास:

1923 में कई पुरुषों द्वारा 8 मार्च को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की तर्ज पर अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाए जाने की मांग की गई थी। इसके चलते पुरुषों ने आंदोलन भी किया था। उस वक्त पुरुषों ने 23 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाने की मांग की थी। इसके बाद 1968 में अमेरिकन जर्नलिस्ट जॉन पी. हैरिस ने एक आर्टिकल लिखते हुए कहा था कि सोवियत प्रणाली में संतुलन की कमी है। उन्होंने लिखा था कि सोवियत प्रणाली महिलाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाती है लेकिन पुरुषों के लिए वो किसी प्रकार का दिन नहीं मनाती। फिर 19 नवंबर 1999 में त्रिनिदाद और टोबैगो के लोगों द्वारा पहली बार अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया गया। डॉ. जीरोम तिलकसिंह ने जीवन में पुरुषों के योगदान को एक नाम देने का बीड़ा उठाया था। उनके पिता के बर्थडे के दिन विश्व पुरुष दिवस मनाया जाता है। धीरे धीरे दुनियाभर में इसे 19 नवंबर को मनाया जाने लगा।

भारत ने साल 2007 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया। इसके बाद से ही भारत में हर साल 19 नंवबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस का महत्व :
अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मुख्य रूप से पुरुष और लड़कों के स्वास्थ्य पर ध्यान देने, लिंग संबंधों में सुधार, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और पुरुष रोल मॉडल्स को उजागर किए जाने के लिए मनाया जाता है।

InternationalMensDay की वेबसाइट के मुताबिक, दुनिया में महिलाओं से 3 गुना ज्यादा पुरुष सुसाइड करते हैं। 3 में से एक पुरुष घरेलू हिंसा का शिकार है। महिलाओं से 4 से 5 साल पहले पुरुष की मौत होती है। महिलाओं से दोगुना पुरुष दिल की बीमारी के शिकार होते हैं। पुरुष दिवस पुरुषों की पहचान के सकारात्मक पहलुओं पर काम करता है।

पुरुष दिवस मनाने के मुख्य उद्देश्य :

- पुरुष रोल मॉडल को बढ़ावा देना।
- समाज, समुदाय, परिवार, विवाह, बच्चों की देखभाल और पर्यावरण के लिए पुरुषों के सकारात्मक योगदान का जश्न मनाना।
- पुरुषों के स्वास्थ्य और भलाई पर ध्यान केंद्रित करना; सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक और आध्यात्मिक तौर पर।
- पुरुषों के खिलाफ भेदभाव को उजागर करना।
- लिंग संबंधों में सुधार और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना।
- एक सुरक्षित, बेहतर दुनिया बनाना।

आज पुरुषों की दुर्दशा:

19 नवम्बर को विश्व पुरूष दिवस मनाया जाता है उनके अधिकारों की रक्षा के लिए पर जिस तरह आज देश मे झूठे दहेज व रेप केस की बाढ़ आ गई है उसको रोकना होगा नही तो निर्दोष पुरुष बलि चढ़ते रहेंगे।

महिलाओं कि सुरक्षा के लिए कानून जरूरी है परंतु आज साजिश या प्रतिशोध की भावनाओं से निर्दोष लोगों को फँसाने के लिए बलात्कार के आरोप लगाकर कानून का भयंकर दूरुपयोग हो रहा है।

न्यायाधीश निवेदिता शर्मा ने बताया कि पुरूषों के खिलाफ रेप के झूठे मामलों से बचाने के लिए ऐसे कानून बनाये जाये जो उन्हें बचा सके।

निर्दोष लोगों को फँसाने के लिए बलात्कार के नये कानूनों का व्यापक स्तर पर हो रहा इस्तेमाल आज समाज के लिए एक चिंतनीय विषय बन गया है । राष्ट्रहित में क्रांतिकारी पहल करनेवाली सुप्रतिष्ठित हस्तियों, संतों-महापुरुषों एवं समाज के आगेवानों के खिलाफ इन कानूनों का राष्ट्र एवं संस्कृति विरोधी ताकतों द्वारा कूटनीतिपूर्वक अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है । इसको रोकने के लिए कानून में संशोधन करना अत्यंत जरूरी है ।

बदला लेने के लिए अथवा पैसे एठने के लिए कुछ मनचली लड़कियां या गिरोह कार्य कर रहे है जो निर्दोष पुरुषों पर झूठे दहेज या रेप के आरोप लगा देते है इसके कारण निर्दोष पुरुषों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है, उसको जेल जाना पड़ता है, समय व पैसे की बर्बादी होती है और इज्जत चली जाती है वो अलग और उसके साथ उसकी माँ-बहन, पत्नी-बेटी भी जुड़ी होती है तो उनपर भी अत्याचार होता है क्योंकि घर मे उनका पालन पोषण करने वाला पुरुष होता है उसको झूठे केस में जेल भेज देंगे तो उन पर क्या बीतेगी?

सरकार को अब महिला आयोग की तरह पुरूष आयोग भी बनाना चाहिए, जो महिलाएं झूठे केस करती है उनको भी सजा का प्रावधान होना चाहिए नही तो एक के बाद एक निर्दोष पुरुष बलि चढ़ते ही रहेंगे।

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Wednesday, November 18, 2020

मुम्बई में उल्हासनगर बन रहा है ईसाई नगर, 2 लाख हिन्दू बनाये गए ईसाई

18 नवंबर 2020


हिन्दू बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं का इस प्रकार से खुलेआम धर्मांतरित होना, यह अभीतक के शासनकर्ताओं द्वारा हिन्दुओं को धर्मशिक्षा न देने का ही गंभीर परिणाम है ! यह अबतक के शासनकर्ताओं के लिए लज्जाप्रद है ! इस स्थिति को बदलने के लिए अब हिन्दू राष्ट्र ही चाहिए ।




जिस सिंधी समुदाय ने अखंड हिन्दुस्तान के विभाजन के समय हिन्दू धर्म जीवित रहे; इसके लिए पाकिस्तान में स्थित अपनी भूमि, संपत्ति और सबकुछ त्याग दिया, वही सिंधी समुदाय अब ईसाईयों के लालच की बलि चढ़ रहा है और उच्चवर्गीय सिंधीवर्ग अब मिशनरियों का प्रचार कर रहा है, यह दुर्भाग्यजनक स्थिति बन गई है ।

उल्हासनगर में धर्मांतरण की घटनाओं को रोकना अब स्थानीय हिन्दुओं के नियंत्रण के बाहर जा चुका है । यदि ऐसी ही स्थिति बनी रही, तो आनेवाले कुछ वर्षों में यहां के सिंधी अर्थात हिन्दू नष्ट होकर उल्हासनगर को महाराष्ट्र के पहले ईसाई नगर के रूप में घोषित होने में समय नहीं लगेगा ।

मुंबई : ठाणे जनपद का उल्हासनगर अब ईसाई मिशनरियों के लिए धर्मांतरण का अड्डा बन गया है । विगत 5-6 वर्षों से षड्यंत्र के अंतर्गत यहां के लाखों हिन्दुओं का धर्मांतरण किया गया है । स्थानीय सिंधी संगठन और प्रतिनिधियों ने यह चौंका देनेवाली जानकारी दी है कि मिशनरियों ने यहां के बहुसंख्यक सिंधी समुदाय को अपना लक्ष्य बनाया है और विगत 5-6 वर्षों में यहां के 28 हजार परिवारों के डेढ़ लाख से भी अधिक सिंधी लोगों का धर्मांतरण किया गया है । यहां के सिंधी समुदाय के इस धर्मांतरण को अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र कहा जा रहा है ।

स्थानीय लोगों ने यह जानकारी दी कि, उल्हासनगर में जमीन के भाव बहुत अधिक होते हुए भी इस परिसर में 18 बड़े चर्चों का निर्माण किया गया है । नगर में ईसाई मिशनरियों ने अपना इतना बड़ा जाल बनाया है कि इस क्षेत्र में कुल 25 से भी अधिक छोटे-बड़े चर्च और 100 से भी अधिक प्रार्थनास्थल बनाए गए हैं । वर्ष 1947 में देश के विभाजन के समय, इसके लिए सिंधी समुदाय भारत में आ गया । ईसाई मिशनरियों द्वारा विगत कुछ वर्षों से सिंधी समुदाय का अत्यंत नियोजनतापूर्वक तथा गुप्त पद्धति से धर्मांतरण किया जा रहा है । इस विषय में यहां के पत्रकार और सूचना अधिकार कार्यकर्ता श्री. सत्यम पुरी ने यहां की भयावह वास्तविकता बताते हुए कहा कि, उल्हासनगर के अधिकांश परिवार का न्यूनतम एक तो व्यक्ति ईसाई बन ही गया है ।

ईसाईयों द्वारा बांटी गई पत्रिकाएं-

1. यहां के अनेक लोगों ने यह बताया कि ये धर्मांतरित सिंधी लोग अपने समुदाय के अन्य लोगों को भी धर्मांतरित होने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं । यहां के जो व्यापारी और उनके परिवार ईसाई बन गए हैं, वे ईसाई पंथ के प्रचार हेतु अपने प्लैट, जमीन, साथ ही अपनी गाड़ियाँ भी ईसाई मिशनरियों को उपलब्ध करा रहे हैं ।

2. धर्मांतरित सिंधी व्यापारी वर्ग और उच्चस्तर के सिंधी लोग अपने परिजन और समुदाय के अन्य लोगों को भी धर्मांतरण के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं ।

3. स्थानीय हिन्दू इन धर्मांतरण की घटनाओं के विरुद्ध वैधानिक पद्धति से संघर्ष कर रहे हैं; परंतु उनके प्रयास कम पड़ रहे हैं ।

धर्मांतरित सिंधी स्वयं का नाम न बदलकर सिंधी लड़कियों से विवाह कर उनसे कर रहे हैं धोखाधड़ी-

श्री. सत्यम पुरी ने बताया कि सिंधी समुदाय में लड़कियों की संख्या लड़कों की संख्या की अपेक्षा कम है । ये लड़कियां इन धर्मांतरित सिंधी लड़कों के साथ विवाह करने राजी नहीं होती; इसलिए ईसाई प्रिस्ट इन धर्मांतरित सिंधी युवकों को अपना पहले का ही नाम चालू रखने के लिए कहते हैं । उसके कारण उनसे विवाह करनेवाली लड़कियों को विवाह के पश्‍चात उसके पति द्वारा ईसाई पंथ का स्वीकार करने की बात ज्ञात होती है । तत्पश्‍चात ये धर्मांतरित युवक अपनी पत्नी पर धर्मांतरण के लिए दबाव बनाते हैं । इस प्रकार की घटनाएं आज घर-घर में हो रही हैं।

झूठे चमत्कार बताकर किया जाता है धर्मांतरण-
उल्हासनगर के निकट ही ताबोर आश्रम नामक एक ईसाई संस्था की स्थापना की गई है । यह तथाकथित आश्रम धर्मांतरण का बड़ा केंद्र बन गया है । साथ ही, नगर के विविध स्थानोंपर अंधविश्‍वास फैलानेवाले कार्यक्रम निरंतर चालू रहते हैं । ऐसे कार्यक्रमों के प्रचार के अंतर्गत विविध स्थानों पर ‘अपाहिज व्यक्ति चल सकेगा, अंधा देख पाएगा और इसके लिए ईसा मसीह के शरण में आएं’, ऐसे वाक्य छपे हुए पोस्टर्स लगाए हुए दिखाई देते हैं । (क्या महाराष्ट्र की अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति को यह अंधश्रद्धा नहीं दिखाई देती ?  या उन्हें ईसाईयों के विरुद्ध कुछ बोलना नहीं है ? – संपादक) ऐसा होते हुए भी प्रशासन की ओर से ऐसे अंधविश्‍वास फैलानेवाले कार्यक्रमों के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्यवाही होते हुए नहीं दिखाई देती । विविध चैनलों से इन कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण भी किया जाता है ।

धर्मांतरित धनवान लोगों द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में धर्मांतरण का मिशनरियों का षड्यंत्र-

 मिशनरियों द्वारा धनवान सिंधी लोगों का धर्मांतरण कर उन्हें आसपास के गांवों में वहां के आदिवासी और निर्धन लोगों के धर्मांतरण के लिए भेजा जाता है । उल्हासनगर के धनवान लोगों द्वारा किए गए धर्मांतरण का उदाहरण प्रस्तुत कर ये धर्मांतरित सिंधी लोग निर्धन लोगों का धर्मांतरण करते हैं ।

धर्मांतरण का विरोध करनेवालों को झूठे अपराधों के प्रकरणों में फंसाया जा रहा है-

जानकारी के लिए बता दें कि यहां के एक बस्ती में जब धर्मान्तरण चल रहा था, तब वहां के स्थानीय हिन्दुओं ने उसका वैधानिक पद्धति से विरोध किया । तब ईसाई लोगों ने पुलिस थाने में हिन्दुओं के विरुद्ध उनका कार्यक्रम बिखेर देने का तथा हिन्दुओं द्वारा गालीगलोच किए जाने का झूठा परिवाद प्रविष्ट कर हिन्दुओं पर दबाव बनाने का प्रयास किया ।

विविध हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन यहां के धर्मांतरण की इन गंभीर घटनाओं का वैधानिक पद्धति से विरोध कर रहे हैं । स्थानीय हिन्दुत्वनिष्ठ धर्मांतरण के कार्यक्रम के विषय में पुलिस थाने में परिवाद प्रविष्ट करना, जिस स्थानपर ये कार्यक्रम किए जाते हैं, उस स्थान के मालिकों का उद्बोधन करना जैसे प्रयास कर रहे हैं; परंतु उसकी अनदेखी कर धर्मांतरण की घटनाएं चल ही रही हैं । आज इस समस्या ने अत्यंत गंभीर रूप धारण किया है ।

सरकार का इसपर ध्यान न देना मतलब खुद का भी वोट बैंक कम करना हुआ, ईसाई बन जायेंगे तो हिंदू पार्टी को ही वोट कम जाएंगे।

 स्वामी विवेकानंद कहते थे कि एक हिंदू अगर धर्मान्तरित होता है तो एक हिंदू कम हुआ नही बल्कि हिंदू समाज का एक दुश्मन बढ़ा इसलिए सरकार इस पर सख्त कमद उठाना चाहिये और ईसाई मिशनरियों का गोरखधंधा बंद करवा देना चाहिए ।

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Tuesday, November 17, 2020

"आश्रम" वेब सीरीज बनाने के पीछे के षड्यंत्र का पर्दाफाश…

 

17 नवंबर 2020


वैसे तो ये कोई नई बात नहीं है कि बॉलीवुड द्वारा हिंदू विरोधी पहली फ़िल्म बनाई गयी हो, यह सिलसिला पिछले कई दशकों से चल रहा है और समाज को सबसे ज्यादा अगर गुमराह किया हो तो वह बॉलीबुड ने किया है। बॉलीवुड ने समाज को यही दिया कि शादी करती हुई लड़की को मंडप से उठा लेना, बलात्कार, चोरी, डकैती, अधनंगे कपड़े पहनना, मां-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ देना, लव जिहाद को बढ़ावा देना, भारतीय संस्कृति को हीन बताना, साधु-संतों, देवी देवताओं मदिरों और पंडितों का मजाक उड़ाना ओर पाश्चात्य संस्कृति को महान बताना यही तो ये लोग करते आये हैं।




आश्रम वेब सीरीज फ़िल्म निर्माता प्रकाश झा ने बनाई है लेकिन उसके पीछे बड़ा रहस्य है, प्रकाश झा की इतनी हैसियत नहीं है कि वे करोड़ो रूपये की फ़िल्म बना ले फिर करोड़ो रूपये खर्च करके उसका प्रोमोशन करे क्योंकि विज्ञापन से कुछ लाख रुपये ही आयेंगे लेकिन उसको जिस तरह प्रमोट किया जा रहा है उससे लग रहा है कि उसमे कई करोड रुपये खर्च किये है इसके पीछे कही न कही राष्ट्र व भारतीय संस्कृति को तोडने वाली ताकते लगी हुई है। क्योंकि "आश्रम" नाम पवित्र शब्द है उस पर करोडों लोग श्रद्धा करते है, वहाँ पर जाकर शांति पाते हैं इसके कारण धर्मांतरण कराने वाली मिशनरी और विदेशी प्रोडक्ट बेचने वाली कंपनियों को भारी नुकसान हो रहा है क्योंकि साधु-संतों के प्रति श्रद्धा रखने वाले आश्रम में जाते है और वहाँ उनको भारतीय संस्कृति के अनुसार जीने का सही तरीका मिलता है फिर वे अपने धर्म के प्रति आस्थावान हो जाते हैं जिसके कारण वे ईसाई मिशनरियों के चुंगल में नहीं आते हैं औऱ वे विदेशी प्रोडक्ट भी नहीं खरीदते जिसके कारण ईसाई मिशनरियों का जो लक्ष्य है भारत में धर्मांतरण करके अपनी वोटबैंक बढ़ाकर सत्ता हासिल करना ओर जो विदेशी कंपनियों के सामान नहीं बिकने पर उनको अरबो-खबरों रूपये का घाटा होता इसके कारण ये लोग अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचकर हिंदुओं की आश्रम व साधु-संतों के प्रति आस्था को नष्ट करने के लिए साज़िशें रच रहे हैं और प्रकाश झा जैसे जयचंद गद्दारी करके अपने ही धर्म के खिलाफ फिल्में बनाते है असली कारण यही है।

देखा जाए तो चर्चो में बलात्कार के हजारों किस्से आ चुके हैं, मदरसों में भी यौन शोषण के कई किस्से आ चुके है पर अभी तक उस पर फ़िल्म कोई न बनाता है और न ही कोई हिम्मत करता है क्योंकि उसके लिए न फंडिंग मिलेगी और उपर से कमलेश तिवारी की तरह हत्या हो जाएगी इसलिए वास्तविक में जहाँ पर गड़बड़ी हो रही है उस पर वे ध्यान नहीं देते है पर हिंदी सहिष्णु है और उनके खिलाफ षड्यंत्र रचने के लिए भारी फंडिंग मिलती है इसके कारण प्रकाश झा जैसे जयचंद हिंदू विरोधी फिल्में बनाते हैं।

प्रकाश झा के खिलाफ शिकायत दर्ज

करणी सेना की तरफ से वेब सीरीज को बैन करने की मांग की है। सेना के लोगों का कहना है कि सीरीज के जरिए, साधु संतों को बदनाम करने की कोशिश की गई है। उनकी छवि खराब करने की कोशिश की गई है। करणी सेना के महामंत्री सुरजीत सिंह ने इस मामले पर कहा कि हमने प्रकाश झा के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है। हमें सीरीज के टाइटल को लेकर अपनी आपत्ति जताई है। हम चाहते है कि इसे लेकर पुलिस उचित करवाई करे। करनी सेना की हिंदुनिष्ठ लोग सरहाना कर रहे हैं क्योंकि अब इसके पीछे का षड्यंत्र हिंदुस्तानी लोग समझने लगें हैं।

वास्तविकता तो यह है कि कितने साधु-संतों ने घोर तपस्या की है फिर वे समाज में आकर उनको सही मार्ग दिखाते हैं, समाज को व्यसनमुक्त बनाने का प्रयास करते हैं, संयमी और सदाचारी समाज को बनाते हैं, गरीबों-आदिवासियों को सहायता करते हैं। गौ माता की रक्षा करते हैं। बच्चों, युवाओं व महिलाओं के उत्थान के लिए केंद्र खोलते हैं। धर्मान्तरण पर रोक लगाते हैं। चिंता, टेंशन में रह रहे लोगों को शांति देते हैं, स्वदेशी का प्रचार करते हैं, सभी को स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला सिखाते हैं। राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देते हैं।

वैसे आपको बता दें कि ऐसी फिल्में देखकर श्रद्धालुओं में तो तनिक भी फर्क नही पड़ा है उपर से हिंदू लोग प्रकाश झा के खिलाफ हो गए हैं।

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Monday, November 16, 2020

मीडिया ने आसाराम बापू की इस बड़ी खबर को कर दिया गायब, जानिए कोनसी खबर है

16 नवंबर 2020


 टीआरपी और पैसे की अंधीदौड़ में अधिकितर मीडिया कई बार झूठी खबरें दिखा देती है और सहीं खबरें छुपा देती है। इसके कारण आज मीडिया ने विश्वसनीयता खो दी है।




 दीपावली के पावन पर्व पर एक तरफ हम मिठाई खाते हैं, नये कपड़े पहनते हैं, खुशियां मनाते हैं, लेकिन उन गरीबों का क्या जिनके पास पैसे नहीं हैं वो कैसे दीपावली मनायेंगे? गरीब भी अच्छी दिवाली मना जा सकें इस निमित्त हिंदू संत आशाराम बापू के अनुयाइयों ने देशभर में आदिवासी क्षेत्रों में जाकर मिठाई, कपड़े, खजूर, चप्पल, बर्तन आदि जीवनोपयोगी सामग्री एवं नगद पैसे और शिरा पुलाव आदि का
 इस अभियान से आदिवासी लोगों की दीपावली अच्छी मनी और दूसरा कि जो मिशनरियां धर्मांतरण करवाती थीं उनका धंधा चौपट हो गया और आदिवासियों की हिंदू धर्म के प्रति आस्था बढ़ी, लेकिन खेद की बात है कि जो मीडिया चिल्ला चिल्लाकर हिंदू संत आशाराम बापू के खिलाफ झूठी कहानियां बनाकर बदनाम कर रही थी उसने यह खबर कहीं भी नहीं दिखाई।

 आपको बता दें कि बापू आशारामजी द्वारा 50 सालों से समाज उत्थान के कार्य कर रहे हैं । उन्होंने सत्संग के द्वारा देश व समाज को तोड़ने वाली ताकतों से देशवासियों को बचाया। कत्लखाने जा रही हजारों गायों को कटने से बचाया, कई गौशालाओं की व्यवस्था की। लाखों लोगो को धर्मान्तरण से बचाया व धर्मान्तरित लाखों हिंदुओं को अपने धर्म में वापसी कराई । गरीब आदिवासी क्षेत्रों में जहाँ खाने की सुविधा तक नहीं थी वहाँ "भोजन करो, भजन करो दक्षिणा पाओ", गरीबों में राशन कार्ड के द्वारा अनाज का वितरण, कपड़े, बर्तन व जीवन उपयोगी सामग्री एवं मकान आदि का वितरण किया जाता है ।
 
 प्राकृतिक आपदाओं में जहाँ प्रशासन भी नहीं पहुँच सका वहाँ बापू आशारामजी की के शिष्यों द्वारा कई सेवाकार्य (निःशुल्क भोजन भंडार, कम्बल, कपड़े का वितरण व स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं) होते हैं । इसके अलावा महिला सुरक्षा (WOMEN SAFETY & EMPOWERMENT) के कई अभियान चलाए, नारी जाति के सम्मान व उनमें पूज्यभाव के लिए सबको प्रोत्साहित किया, बड़ी कंपनीयों में काम कर रही महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई, महिला संगठन बनाया।

 परिवार में सुख-शांति व परस्पर सद्भाव से जीना सिखाया, पारिवारिक झगड़ों से मुक्ति दिलायी, महिलाओं के मार्गदर्शन व सर्वांगीण विकास हेतु देशभर में ‘महिला उत्थान मंडलों’ की स्थापना की तथा नारी उत्थान हेतु कई अभियान चलाये। बापू आसारामजी ने बाल व युवा पीढ़ी में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के सिंचन हेतु हजारों बाल संस्कार केन्द्रों, युवा सेवा संघों व गुरुकुलों की स्थापना की, आज की युवापीढ़ी को माता पिता का सम्मान सिखाकर वैलेंटाइन के बदले में मातृ-पितृ पूजन दिवस मानना सिखाया । 25 दिसम्बर को संस्कृति की रक्षा के लिए तुलसी पूजन दिवस अभियान एक नई पहल की। केमिकल रंगों से बचा कर प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की पहल की, जिससे पानी व स्वास्थ्य की रक्षा हो। व्यसन मुक्ति के अभियान चलाकर करोड़ों लोगों को व्यसन मुक्त कराया। बच्चों, युवाओं व महिलाओं में अच्छे संस्कार के लिए ढेरों अभियान चलाये जाते हैं । World's Religions Parliament, शिकागो अमेरिका में 1993 में स्वामी विवेकानन्दजी के बाद यदि कोई दूसरे संत ने प्रतिनिधित्व किया है तो वे बापू आसारामजी, जिन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर सनातन संस्कृति का परचम लहराया। इन सेवाकार्यों से देश-विदेश के करोड़ों लोग किसी भी तरह के धर्म- जाति -मत - पंथ -सम्प्रदाय-राज्य व लिंग के हो भेदभाव के बिना लाभान्वित हो रहे हैं ।

 मीडिया ने हिंदू संत आशारामजी बापू द्वारा देश व धर्म के हित में हो रहे अनेक सेवाकार्य को नहीं दिखाया, पर उनके खिलाफ अनेक झूठी कहानियां बनाकर जनता को गुमराह किया ।

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Sunday, November 15, 2020

जानिए भाईदूज का इतिहास, इस दिन भाई को यमपाश से कैसे छुड़ाये?

15 नवंबर 2020


भाई दूज महत्वपूर्ण पर्व है जो भारत और नेपाल में मनाया जाता है। दीपावली के पर्व का पांचवां दिन भाईदूज भाइयों की बहनों के लिए और बहनों की भाइयों के लिए सदभावना बढ़ाने का दिन है। इस साल 16 नवंबर को भाईदूज पर्व मनाया जायेगा।

भाईदूज का इतिहास




यमराज, यमुना, तापी और शनि ये भगवान सूर्य की संताने कही जाती हैं। किसी कारण से यमराज अपनी बहन यमुना से वर्षों दूर रहे। एक बार यमराज के मन में हुआ कि 'बहन यमुना को देखे हुए बहुत वर्ष हो गये हैं।' अतः उन्होंने अपने दूतों को आज्ञा दीः "जाओ जा कर जाँच करो कि यमुना आजकल कहाँ स्थित है।"

यमदूत विचरण करते-करते धरती पर आये तो सही किंतु उन्हें कहीं यमुना जी का पता नहीं लगा। फिर यमराज स्वयं विचरण करते हुए मथुरा आये और विश्रामघाट पर बने हुए यमुना के महल में पहुँचे।

बहुत वर्षों के बाद अपने भाई को पाकर बहन यमुना ने बड़े प्रेम से यमराज का स्वागत-सत्कार किया और यमराज ने भी उसकी सेवा सुश्रुषा के लिए याचना करते हुए कहाः "बहन ! तू क्या चाहती है? मुझे अपनी प्रिय बहन की सेवा का मौका चाहिए।"

यमुना जी ने कहाः ''भैया ! आज नववर्ष की द्वितीया है। आज के दिन भाई बहन के यहाँ आये या बहन भाई के यहाँ पहुँचे और जो कोई भाई बहन से स्नेह से मिले, ऐसे भाई को यमपुरी के पाश से मुक्त करने का वचन को तुम दे सकते हो।"

यमराज प्रसन्न हुए और बोलेः "बहन ! ऐसा ही होगा।"

पौराणिक दृष्टि से आज भी लोग बहन यमुना और भाई यम के इस शुभ प्रसंग का स्मरण करके आशीर्वाद पाते हैं व यम के पाश से छूटने का संकल्प करते हैं।

यह पर्व भाई-बहन के स्नेह का द्योतक है। कोई बहन नहीं चाहती कि उसका भाई दीन-हीन, तुच्छ हो, सामान्य जीवन जीने वाला हो, ज्ञानरहित, प्रभावरहित हो। इस दिन भाई को अपने घर पाकर बहन अत्यन्त प्रसन्न होती है अथवा किसी कारण से भाई नहीं आ पाता तो स्वयं उसके घर चली जाती है।

बहन भाई को इस शुभ भाव से तिलक करती है कि 'मेरा भैया त्रिनेत्र बने। बहन तिलक करके अपने भाई को प्रेम से भोजन कराती है और बदले में भाई उसको वस्त्र-अलंकार, दक्षिणादि देता है। बहन निश्चिंत होती है कि 'मैं अकेली नहीं हूँ.... मेरे साथ मेरा भैया है।'

दीपावली के तीसरे दिन आने वाला भाईदूज का यह पर्व, भाई की बहन के संरक्षण की याद दिलाने वाला और बहन द्वारा भाई के लिए शुभ कामनाएँ करने का पर्व है।

इस दिन बहन को चाहिए कि अपने भाई की दीर्घायु के लिए यमराज से अर्चना करे और इन अष्ट चिरंजीवीयों के नामों का स्मरण करेः मार्कण्डेय, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा और परशुराम। 'मेरा भाई चिरंजीवी हो' ऐसी उनसे प्रार्थना करे तथा मार्कण्डेय जी से इस प्रकार प्रार्थना करेः
मार्कण्डेय महाभाग सप्तकल्पजीवितः।
चिरंजीवी यथा त्वं तथा मे भ्रातारं कुरुः।।

'हे महाभाग मार्कण्डेय ! आप सात कल्पों के अन्त तक जीने वाले चिरंजीवी हैं। जैसे आप चिरंजीवी हैं, वैसे मेरा भाई भी दीर्घायु हो।' (पद्मपुराण)

इस प्रकार भाई के लिए मंगल कामना करने का तथा भाई-बहन के पवित्र स्नेह का पर्व है भाईदूज।
(स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य "पर्वो का पुंज दीपावली")

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Saturday, November 14, 2020

दीपावली के दूसरे दिन नूतन वर्ष, बलि प्रतिपदा, गोवर्धन पूजन में क्या करें?

14 अक्टूबर 2020


दीपावली वर्ष का आखिरी दिन है और नूतन वर्ष प्रथम दिन है। यह दिन आपके जीवन की डायरी का पन्ना बदलने का दिन है।

दीपावली का दूसरा दिन अर्थात् नूतन वर्ष का प्रथम दिन (गुजराती पंचांग अनुसार) जो वर्ष के प्रथम दिन हर्ष, दैन्य आदि जिस भाव में रहता है, उसका संपूर्ण वर्ष उसी भाव में बीतता है। 'महाभारत' में पितामह भीष्म महाराज युधिष्ठिर से कहते है-




यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां युधिष्ठिर।
हर्षदैन्यादिरूपेण तस्य वर्षं प्रयाति वै।।

'हे युधिष्ठिर ! आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है, उसका पूरा वर्ष शोक में ही व्यतीत होता है।'

अतः वर्ष का प्रथम दिन हर्ष में बीते, ऐसा प्रयत्न करें। वर्ष का प्रथम दिन दीनता-हीनता अथवा पाप-ताप में न बीते वरन् शुभ चिंतन में, सत्कर्मों में प्रसन्नता में बीते ऐसा यत्न करें।

आज के दिन से हमारे नूतन वर्ष का प्रारंभ भी होता है। इसलिए भी हमें अपने इस नूतन वर्ष में कुछ ऊँची उड़ान भरने का संकल्प करना चाहिए।

बलि प्रतिपदा:-

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा, बलि प्रतिपदा के रूप में मनाई जाती है । इस दिन भगवान श्री विष्णु ने दैत्यराज बलि को पाताल में भेजकर बलि की अतिदानशीलता के कारण होनेवाली सृष्टि की हानि रोकी । बलिराजा की अतिउदारता के परिणामस्वरूप अपात्र लोगों के हाथों में संपत्ति जाने से सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई । तब वामन अवतार लेकर भगवान श्रीविष्णु ने बलिराजा से त्रिपाद भूमिका दान मांगा । उपरांत वामनदेव ने विराट रूप धारण कर दो पग में ही संपूर्ण पृथ्वी एवं अंतरिक्ष व्याप लिया । तब तीसरा पग रखने के लिए बलिराजा ने उन्हें अपना सिर दिया । वामनदेव ने बलि को पाताल में भेजते समय वर मांगने के लिए कहा । उस समय बलि ने वर्ष में तीन दिन पृथ्वी पर बलिराज्य होने का वर मांगा । वे तीन दिन हैं – नरक चतुर्दशी, दीपावली की अमावस्या एवं बलिप्रतिपदा । तब से इन तीन दिनों को ‘बलिराज्य’ कहते हैं ।

गोवर्धनपूजन

इस दिन गोवर्धनपूजा करने की प्रथा है । भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इस दिन इंद्रपूजन के स्थान पर गोवर्धनपूजन आरंभ किए जाने के स्मरण में गोवर्धन पूजन करते हैं । इसके लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा की तिथि पर प्रात:काल घर के मुख्य द्वार के सामने गौ के गोबर का गोवर्धन पर्वत बना कर उसपर दूर्वा एवं पुष्प डालते हैं । शास्त्र में बताया है कि, इस दिन गोवर्धन पर्वत का शिखर बनाएं । वृक्ष-शाखादि और फूलों से उसे सुशोभित करें । इनके समीप कृष्ण, इंद्र, गाएं, बछड़ों के चित्र सजाकर उनकी भी पूजा करते हैं एवं झांकियां निकालते हैं । परंतु अनेक स्थानों पर इसे मनुष्य के रूप में बनाते हैं और फूल इत्यादि से सजाते  हैं ।  चंदन, फूल इत्यादि से  उसका पूजन करते हैं और प्रार्थना करते हैं,

_गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक ।_
_विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव ।। – धर्मसिंधु_

इसका अर्थ है, पृथ्वी को धारण करनेवाले गोवर्धन ! आप गोकुलके रक्षक हैं । भगवान श्रीकृष्ण ने आपको भुजाओं में उठाया था । आप मुझे करोड़ों गौएं प्रदान करें । गोवर्धन पूजन के उपरांत गौओं एवं बैलों को वस्त्राभूषणों तथा मालाओं से सजाते हैं । गौओं का पूजन करते हैं । गौमाता साक्षात धरतीमाता की प्रतीकस्वरूपा हैं । उनमें सर्व देवतातत्त्व समाए रहते हैं । उनके द्वारा पंचरस प्राप्त होते हैं, जो जीवों को पुष्ट और सात्त्विक बनाते हैं । ऐसी गौमाताको साक्षात श्री लक्ष्मी मानते हैं । उनका पूजन करने के उपरांत अपने पापनाश के लिए उनसे प्रार्थना करते हैं । धर्मसिंधु में इस श्लोक द्वारा गौमाता से  प्रार्थना की है,

_लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ।_
_घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ।। – धर्मसिंधु_

इसका अर्थ है, धेनुरूप में विद्यमान जो लोकपालों की साक्षात लक्ष्मी हैं तथा जो यज्ञ के लिए घी देती हैं, वह गौमाता मेरे पापों का नाश करें । पूजन के उपरांत गौओं को विशेष भोजन खिलाते हैं । कुछ स्थानों पर गोवर्धन के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण, गोपाल, इंद्र तथा सवत्स गौओं के चित्र सजाकर उनका पूजन करते हैं और उनकी शोभायात्रा भी निकालते हैं ।

बता दें की दीपावली की रात्रि में वर्षभर के कृत्यों का सिंहावलोकन करके आनेवाले नूतन वर्ष के लिए शुभ संकल्प करके सोयें। उस संकल्प को पूर्ण करने के लिए नववर्ष के प्रभात में अपने माता-पिता, गुरुजनों, सज्जनों, साधु-संतों को प्रणाम करके तथा अपने सदगुरु के श्रीचरणों में और मंदिर में जाकर नूतन वर्ष के नये प्रकाश, नये उत्साह और नयी प्रेरणा के लिए आशीर्वाद प्राप्त करें। जीवन में नित्य-निरंतर नवीन रस, आत्म रस, आत्मानंद मिलता रहे, ऐसा अवसर जुटाने का दिन है 'नूतन वर्ष।'
(संदर्भ : सनातनका ग्रंथ ‘त्यौहार, धार्मिक उत्सव व व्रत’ एवं संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित साहित्य ऋषि प्रसाद से)

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