Tuesday, June 20, 2023

जीवन में योग का महत्व क्यों हैं ? योग दिवस क्यों मनाया जाता है ? जानिए

20 June 2023

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🚩योग जीवन के लिए उतने ही जरुरी है, जितना की एक मरीज को उसकी टेबलेट। किसी बीमारी में पड़कर फिर उसके इलाज के लिए इधर उधर भागना और बहुत खर्चा करना, इससे बेहतर हैं आज से ही योग के लिए वक्त निकालना। ना इसमें कोई खर्चा होता हैं और न ही कोई नुकसान। योग के बस फायदे होते हैं, जिन्हें दुनिया के सभी लोगो ने माना है, इसलिए देश में अन्तराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा हैं। दुनिया में बढ़ती हुई बीमारियों को देखते हुए यह बहुत अच्छा निर्णय हैं,जो विश्वस्तर पर लिया गया हैं। जरुरी नहीं हैं कि योग के लिए कई घंटो का वक्त निकाला जाए, 30 मिनिट भी आपके लिए फायदेमंद होंगे। योग केवल मोटे लोगो या बीमार लोगो के लिए ही जरुरी नहीं हैं। योग व्यक्ति का सर्वांगिक विकास करता हैं। शारीरिक विकास के साथ मनो विकास भी करता हैं। योग से जीवन के हर क्षेत्र में लाभ हैं इससे कई तकलीफों का अंत हैं। अतः सभी धर्म एवं जाति में योग के प्रति जागरूकता होनी चाहिये।



🚩योग के फायदे


🚩योग से शारीरिक तंदुरुस्ती तो आती ही हैं, लेकिन सबसे ज्यादा मानसिक शांति मिलती हैं। इससे मन शांत रहता हैं एवं तनाव कम होता हैं। साथ ही यह शरीर की सभी क्रियाओं को नियंत्रित भी करता हैं। योग से जीवन के सभी भाव नियंत्रित होते हैं।


🚩शरीर स्वस्थ रहता हैं :


🚩योग से शरीर का ब्लड का प्रवाह नियंत्रित रहता है, जिससे शरीर में चुस्ती आती है, जो कि हानिकारक टोक्सिंस को बाहर निकालती है, जिससे शरीर के विकार दूर होते हैं और रोगियों को इससे आराम मिलता हैं। साथ ही सकारात्मकता का भाव प्रवाहित होता हैं। जिससे शरीर स्वस्थ रहता हैं।


🚩स्ट्रा वजन कम होता हैं :


🚩योग की सबसे प्रभावशाली विद्या हैं सूर्य नमस्कार, जिससे शरीर में लचीलापन आता हैं। रक्त का प्रवाह अच्छा होता हैं। शरीर की अकड़न, जकड़न में आराम मिलता हैं। योग से वजन नियंत्रित रहता हैं। जिनका वजन कम है, वह बढ़ता हैं और जिनका अधिक हैं कम होता हैं।


🚩चिंता का भाव कम होता हैं :


🚩योग से मन एकाग्रचित्त रहता है, उसमे शीतलता का भाव आता है और चिंता जैसे विकारों का अंत होता हैं। योग से गुस्सा कम आता है, इससे ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है, जिससे शारीरिक एवं  मानसिक संतुलन बना रहता हैं।


🚩मानसिक शांति


🚩योग से मन शांत रहता हैं। यादशक्ति बढ़ती  है, जिससे सकारात्मक विचार का प्रवाह होता हैं। सकारात्मक भाव से जीवन उन्नत होता  हैं। मनुष्य को किसी भी वस्तु, अन्य इन्सान या जानवर में कुछ गलत दिखाई नहीं देता। किसी के लिए मन में बैर नहीं रहत। इस तरह योग से मनुष्य का मनोविकास होता हैं।


🚩मनोबल बढ़ता हैं :


🚩योग से मनुष्य में आत्मबल बढ़ता हैं, कॉन्फिडेंस आता हैं। जीवन के हर क्षेत्र में कार्य में सफलता मिलती हैं। मनुष्य हर परिस्थिती से लड़ने के काबिल होता हैं। साथ ही जीवन की चुनौतियों को उत्साह से लेता हैं।


🚩प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैं :


🚩योग से पाचन की क्रिया दुरुस्त होती हैं और श्वसन क्रिया संतुलित होती हैं जिससे मनुष्य में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती हैं। बड़ी से बड़ी बीमारी से लड़ने के लिए शक्ति का संचार होता हैं। योग एवं ध्यान में बड़ी से बड़ी बीमारी के लिए उपाय हैं।


🚩जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता :


🚩योग को आप जादू भी कह सकते है, नियमित योग करने से जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता हैं। आत्मबल बढ़ता हैं, सकारात्मक भाव आता है, साथ ही आत्म विश्वास में भी वृद्धी होती है, जिससे जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता हैं।


🚩उर्जा बढ़ती हैं :


🚩मनुष्य रोजाना कई गतिविधियाँ करता है और दिन के अंत में थक जाता है, लेकिन अगर वह नियमित योगा करता है, तो उसमे उर्जा का संचार होता हैं। थकावट या किसी भी काम के प्रति उदासी का भाव नहीं रहता। सभी अंगो को अपना कार्य करने के लिए पर्याप्त उर्जा मिलती है,क्योंकि योग से भोजन का सही मायने में पाचन होता हैं जो दैनिक उर्जा को बढ़ाता हैं।


🚩शरीर लचीला बनता हैं


🚩योग से शरीर की जकड़न खत्म होती हैं। शरीर में वसा की मात्रा कम होती हैं जिससे लचीलापन आता हैं। लचीले पन के कारण शरीर में कभी अनावश्यक दर्द नहीं रहता और शरीर को जिस तरह का होना चाहिये, उसकी बनावट धीरे-धीरे रोजाना योग करने से ठीक हो जाती हैं।


🚩भारत को योग का जनक क्यों कहते हैं ?


🚩अन्तराष्ट्रीय योग दिवस की बात हो रही है तो भारत की बात क्यों ना हो! क्योंकि योग का इतिहास भारत में ही है। माना जाता है की योग का इतिहास लाखों साल पुराना है। कहते हैं की महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र को लिखा था। योग संस्कृत से प्राप्त हुआ शब्द है, यही वजह है की एक समय यह सिर्फ हिन्दू धर्म के लोगों तक सीमित था। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के बारें में भी बताया, उन्ही की वजह से यह एक धर्म में ना रहकर सम्पूर्णदुनिया में फैलाया गया। आज विज्ञान भी योग के महत्व को बताती है। आज योग हमारे जीवन का अहम हिस्सा बना हुआ है चाहे वह स्वास्थ्य के लिए हो या आत्मशांति के लिए।


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Monday, June 19, 2023

गूढ़ रहस्य : महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ति में आखिर ऐसा क्या है , जो अभी तक कोई जान नहीं पाया...!?

19 June 2023

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🚩जगन्नाथपूरी के भव्य और दिव्य मंदिर के अति दिव्य रहस्य...

जहाँ मंदिर के गर्भ-गृह में विराजमान भगवान् श्री कृष्ण जगन्नाथ का हृदय बिल्कुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़कता रहता है ।आश्चर्य को भी आश्चर्य हो जाए ऐसा प्रत्यक्ष प्रमाण भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर धड़कता हुआ उनका हृदय...

जबकि ये बात बहुत कम लोगों को पता होगी !



🚩ऐसी मान्यता है , कि भगवान श्रीकृष्ण के शरीर त्यागने के बाद अग्नि संस्कार के उपरांत भी उनका हृदय बिल्कुल सुरक्षित और धड़कता हुआ मिला , जिसे बाद में भगवान जगन्नाथ की काष्ठ प्रतिमा के भीतर स्थापित कर दिया गया ।


🚩महाप्रभु का महा रहस्य


🚩महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है। पुरी (उड़ीसा) में जगन्नाथ स्वामी अपनी बहन देवी सुभद्रा और बल के धाम भाई श्रीबलराम के साथ निवास करते हैं ।

यहाँ रहस्य ऐसे -ऐसे हैं कि आज तक कोई तर्कवादी या खोजकर्ता उनका भेद न जान पाया। 


🚩हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है । उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है, यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है । लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को CRPF की सेना चारो तरफ से घेर लेती है,उस समय कोई भी मंदिर में नहीं जा सकता । मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है । पुजारी की आँखों पर पट्टी बंधी होती है और हाथों में दस्ताने होते हैं । वो पहले वाली पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालते हैं और नई मूर्ती में डाल देते हैं ।



🚩क्या है ये ब्रह्म पदार्थ...!?

यह आज तक किसी को नहीं पता , इसे आज तक किसी ने नहीं देखा , जो हज़ारों सालों से एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांस्फर किया जा रहा है । ऐसी मान्यता है , कि यह एक अलौकिक पदार्थ है , जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के शरीर के चिथड़े उड़ जाएंगे । कहते हैं इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है, मगर ये क्या है !? कोई नहीं जानता।


🚩भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के साथ और अन्य प्रतिमाएं उसी साल बदली जाती हैं, जब साल में आषाढ़ के 2 महीने आते हैं । इस बार 19 साल बाद यह अवसर आया है । वैसे कभी-कभी 14 साल में भी ऐसा होता है, इस मौके को नव-कलेवर कहते हैं। मगर आज तक कोई भी पुजारी ये नहीं बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ??

कुछ पुजारियों का कहना है , कि जब हमने उसे हाथ में लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था, आंखों पर पट्टी और हाथ में दस्ताने थे , तो हम सिर्फ महसूस कर पाए।


🚩आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते हैं । भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती । जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है , कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देगी । 


🚩आपने सभी मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे... लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता, झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशा में लहराता है । दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती ।


🚩भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज़ बदला जाता है । ऐसी मान्यता है , कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा। इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपको आपके मुंह की तरफ ही , मतलब सीधा ही दीखता है।


🚩भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं । भोग प्रसाद को लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है । आश्चर्य कि , सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान सबसे पहले पकता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता । लेकिन हैरान करने वाली बात ये है , कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं , वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है ।


🚩...और भी कितनी ही आश्चर्यजनक बातें हैं हमारे सनातन धर्म की , जो की पग-पग पर उस परम् सत्ता का प्रमाण देती हैं और साथ ही हमारे सनातन धर्म की महिमा और गहराई को भी उजागर करती हैं ।

ज़रूरत है तो बस हमारी जागरूकता की...

आज सचमुच ज़रूरत है , कि हम आधुनिकता की अंधी दौड़ को छोड़कर अपनी स्वयं की महिमा और अपनी गौरवशाली सनातन संस्कृति की महानता को जानें ।

🚩जय जगन्नाथ 💐🙏


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Sunday, June 18, 2023

रानी केवल 22 वर्ष और 7 महीने ही जीवित रहीं, पर ‘‘खूब लड़ी मरदानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी.....’’

18 June 2023

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🚩भारत में अंग्रेजी सत्ता के आने के साथ ही गाँव-गाँव में उनके विरुद्ध विद्रोह होने लगा; पर व्यक्तिगत या बहुत छोटे स्तर पर होने के कारण इन संघर्षों को सफलता नहीं मिली। अंग्रेजों के विरुद्ध पहला संगठित संग्राम 1857 में हुआ। इसमें जिन वीरों ने अपने साहस से अंग्रेजी सेनानायकों के दाँत खट्टे किये, उनमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम प्रमुख है।



🚩19 नवम्बर, 1835 को वाराणसी में जन्मी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मनु था। प्यार से लोग उसे मणिकर्णिका तथा छबीली भी कहते थे। इनके पिता श्री मोरोपन्त ताँबे तथा माँ श्रीमती भागीरथी बाई थीं। गुड़ियों से खेलने की अवस्था से ही उसे घुड़सवारी,  तीरन्दाजी, तलवार चलाना, युद्ध करना जैसे पुरुषोचित कामों में बहुत आनन्द आता था। नाना साहब पेशवा उसके बचपन के साथियों में थे।


🚩उन दिनों बाल विवाह का प्रचलन था। अतः सात वर्ष की अवस्था में ही मनु का विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधरराव से हो गया। विवाह के बाद वह लक्ष्मीबाई कहलायीं। उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा। जब वह 18 वर्ष की ही थीं, तब राजा का देहान्त हो गया। दुःख की बात यह भी थी कि वे तब तक निःसन्तान थे। युवावस्था के सुख देखने से पूर्व ही रानी विधवा हो गयीं।

उन दिनों अंग्रेज शासक ऐसी बिना वारिस की जागीरों तथा राज्यों को अपने कब्जे में कर लेते थे। इसी भय से राजा ने मृत्यु से पूर्व ब्रिटिश शासन तथा अपने राज्य के प्रमुख लोगों के सम्मुख दामोदर राव को दत्तक पुत्र स्वीकार कर लिया था; पर उनके परलोक सिधारते ही अंग्रेजों की लार टपकने लगी। उन्होंने दामोदर राव को मान्यता देने से मनाकर झाँसी राज्य को ब्रिटिश शासन में मिलाने की घोषणा कर दी। यह सुनते ही लक्ष्मीबाई सिंहनी के समान गरज उठी - मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी।


🚩अंग्रेजों ने रानी के ही एक सरदार सदाशिव को आगे कर विद्रोह करा दिया। उसने झाँसी से 50 कि.मी दूर स्थित करोरा किले पर अधिकार कर लिया; पर रानी ने उसे परास्त कर दिया। इसी बीच ओरछा का दीवान नत्थे खाँ झाँसी पर चढ़ आया। उसके पास साठ हजार सेना थी; पर रानी ने अपने शौर्य व पराक्रम से उसे भी दिन में तारे दिखा दिये।


🚩इधर देश में जगह-जगह सेना में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गये। झाँसी में स्थित सेना में कार्यरत भारतीय सैनिकों ने भी चुन-चुनकर अंग्रेज अधिकारियों को मारना शुरू कर दिया। रानी ने अब राज्य की बागडोर पूरी तरह अपने हाथ में ले ली; पर अंग्रेज उधर नयी गोटियाँ बैठा रहे थे।


🚩जनरल ह्यू रोज ने एक बड़ी सेना लेकर झाँसी पर हमला कर दिया। रानी दामोदर राव को पीठ पर बाँधकर 22 मार्च, 1858 को युद्धक्षेत्र में उतर गयी। आठ दिन तक युद्ध चलता रहा; पर अंग्रेज आगे नहीं बढ़ सके। नौवें दिन अपने बीस हजार सैनिकों के साथ तात्या टोपे रानी की सहायता को आ गये; पर अंग्रेजों ने भी नयी कुमुक मँगा ली। रानी पीछे हटकर कालपी जा पहुँची।

कालपी से वह ग्वालियर आयीं। वहाँ 17 जून, 1858 को ब्रिगेडियर स्मिथ के साथ हुए युद्ध में उन्होंने वीरगति पायी। रानी के विश्वासपात्र बाबा गंगादास ने उनका शव अपनी झोंपड़ी में रखकर आग लगा दी। रानी केवल 22 वर्ष और सात महीने ही जीवित रहीं। पर ‘‘खूब लड़ी मरदानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी.....’’ गाकर उन्हें सदा याद किया जाता है।


🚩ब्राह्मण कुल में जन्मी और महलों में पलने वाली भारत माता की सिंहनी ” वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ” ने अपनी वीरता, साहस, संयम, धैर्य तथा देशभक्ति के कारण सन् 1857 के महान क्रांतिकारियों की शृृंखला में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा दिया ।


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Saturday, June 17, 2023

बॉलीवुड के दूषित गर्भ से एक और अपमानजनक फ़िल्म का जन्म हुआ है, जिसका नाम आदिपुरूष है....

17 June 2023

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🚩भारत देश की सिनेमा इंडस्ट्री अर्थात बॉलीवुड के दोगलेपन से हम सब काफी समय से वाकिफ हैं। कला के नाम पे, ये अनगिनत अपमानजनक सामग्री बना कर बेच चुके हैं, ठीक वैसे ही जैसे किसी ने अपनी मर्यादा बेच दी हो। दूर से चमचमाता हुआ,ये कालसर्पी गटर बड़ा ही आकर्षक लगता है। बहुत ही गिने चुने व्यक्ति हैं, जो सामाजिक दृश्य की सही प्रस्तुति करते हैं, अपनी सिनेमा में । बॉलीवुड के दूषित गर्भ से एक और अपमानजनक फ़िल्म का जन्म हुआ है, जिसका नाम आदिपुरूष है।



🚩जी हाँँ, हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के शौर्य और शिक्षा को अमर्यादित रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश हैं । माता सीता की झलक ऐसी दिखाई गई है जैसे पुराने फिल्मों की मधुबाला । राम भक्त श्री हनुमान जी की भक्ति और तप का उपहास और शिव भक्त प्रकांड पंडित रावण की भी भर्त्सना की गई है।


🚩हनुमान चालीसा में ही अंजनीपुत्र के स्वरूप का वर्णन श्री तुलसीदास जी ने किया है। वो पंक्तियाँ हैं:

कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4॥ अर्थ- आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।हाथबज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥5॥अर्थ- आपके हाथ में बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।


🚩इस फ़िल्म में दर्शाए गए हनुमान जी के चरित्र का इससे दूर-दूर तक कोई सामंजस्य नहीं दिखता। विपरीत रूप में उन्हें चमड़े के वस्त्र और बिना गदा के दिखाया गया है।


🚩ये फ़िल्म अभी सिनेमाघरों में रिलीज हुई है, इसने सनातनी भावनाओं को आघात किया है। कला का सही मूल्य तभी है, जब वो जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए सच प्रदर्शित करे । इस फ़िल्म में ना ही श्रीराम की स्वर्णिम व्यक्तित्व की झलक मिलती है, ना हनुमान जी की प्रेमपूर्ण भक्ति। सात्विक स्वभाव के हमारे देवगणों को चमड़े के वस्त्रों में दिखाया गया हैं।


🚩वहीं पंडित रावण की वेशभूषा ऐसी प्रतीत होती है, जैसे कोई मध्यकालीन क्रूर शासक ओरंगजेब हो, जो भारत पे आक्रमण करने आया हो। रावण की स्वर्णरूपी नगरी लंका को भी एक काले खंडहर के रूप में दिखाया गया है। पुष्कप विमान की जगह किसी काले चमगादड़ को रावण की सवारी बना दी गई है। जैसा हमें ज्ञात है की शिव भक्त रावण को चारो वेद कंठस्त्य थे। शिवतांडव स्त्रोत की रचना रावण ने ही की थी। रावण अहंकारी जरूरी था, पर उतना ही ज्ञानी भी। रावण का वध तय था श्रीराम के हाथों, पर श्रीराम ने भी उसकी विद्वत्ता की सराहना की थी। रावण को तो फिल्म निर्माताओं ने छपरी हेयरकट और औरंगजेबी वेशभूषा दे दी है।


🚩ये पहली बार नहीं है,कि बॉलीवुड ने हिंदू विरोधी फिल्म कला या यह कहूँ की कलंक के नाम पर पेश की है। पिछले वर्ष ही तांडव नाम की कुप्रस्तुति की गई थी। इस फिल्म में सैफ अली खान था और इस पर बहुत बहस हुई थी। आज से कुछ वर्षो पहले आमिर खान की फिल्म पीके (PK) ने भी हिंदू समाज के गुरु की नकारात्मक छवि दिखाई थी। इसी पीके (PK) फिल्म में शिवजी के रूप का उपहास किया गया था, कहीं उन्हें मोबाइल फ़ोन पर बात करते भी दिखाया गया, सिर्फ हिंदू रीति रिवाजों का मजाक उड़ाया गया। अन्य कई फिल्में हैं, जो की लव जिहाद और हिंदू फोबिया को नॉर्मलाइज करती हैं।


🚩बॉलीवुड के गटर से निकले कुछ निर्देशक अब वेब सीरीज़ भी बनाते हैं। अलग-अलग ऑनलाइन प्लेटफार्म पे,ये गंदी वेब सीरीज़ का अंबार लगा रहे है। ठीक वैसे ही जैसे कूड़े का पहाड़ हो । ऐसी ही वेब सिरीज़ जो भारतीय संस्कृति के वार पे इस सुसंस्कृति को वासना से भर रही है। कला के नाम पे बस अश्लीतला बेची जा रही ही जाती है। नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई सुटेबल ब्वॉय में अगर एक मंदिर की मर्यादा को चोट पहुँचाने की कोशिश की गई तो वहीं नेटफ्लिक्स पर ही रिलीज़ हुई एक और फिल्म लुडो को लेकर भी सवाल उठे।


🚩इस फिल्म में चार कहानियों को एक में पिरोया गया,लेकिन अनुराग बासु अपनी एंटी हिंदू सोच का गटर यहाँ भी खोल गए। एक रिसर्च के मुताबिक:-

बॉलीवुड की फिल्मों में 58% भ्रष्ट नेताओं को ब्राह्मण दिखाया गया है। 62% फिल्मों में बेइमान कारोबारी को वैश्य सरनेम वाला दिखाया गया है। फिल्मों में 74% फीसदी सिख किरदार मज़ाक का पात्र बनाया गया। जब किसी महिला को बदचलन दिखाने की बात आती है तो 78 फीसदी बार उनके नाम ईसाई वाले होते हैं। 84 प्रतिशत फिल्मों में मुस्लिम किरदारों को मजहब में पक्का यकीन रखने वाला, बेहद ईमानदार दिखाया गया है, यहाँ तक कि अगर कोई मुसलमान खलनायक हो तो वो भी उसूलों का पक्का होता है।

🚩कट्टरपंथियों के कब्जे में फिल्म इंडस्ट्री:-कुल मिलाकर बॉलीवुड में एक खास धड़ा इसी पर काम कर रहा है, उन्हें पक्का यकीन है कि वो अगर हिंदू संस्कृति पर सवाल उठाएँगे तो ज़ाहिर है लिबरल सनातन समाज उन्हें कठघरे में नहीं खड़ा करेगा, जबकि मुस्लिम समुदाय कार्टून/कैरिकेचर बनने पर ही बवाल खड़े कर देता है। यही वजह है कि कुछ फिल्मों में हिंदू धर्म के प्रति पक्षपाती रवैया देखा गया।


🚩एक फिल्म निर्देशक का काम है सही रिसर्च करना अगर वो एक महाकाव्य पर फ़िल्म बनाने की इच्छा रखते हैं और सवाल यह है कि बॉलीवुड में सिर्फ हिंदू भावनाओं के साथ क्यों खिलवाड़ किया जाता आ रहा है। ख़ैर हमारी उम्मीद ही शायद गलत है। जिन लोगों की ख़ुद की ज़मीर ही नहीं न खुद की इज़्ज़त, वो दूसरो के धार्मिक भावनाओं का क्या ध्यान रखेंगे। समय आ गया है खुद के लिए आवाज़ उठाने का। अपनी आवाज़ बुलंद करे और पूर्ण रूप से इस अपमानजनक फिल्म का बहिष्कार करें। जब बॉलीवुड हमारे इतिहास और भावनाओं का सम्मान नही कर सकता तो उसे भी सम्मान नही मिलेगा।


🚩आदिपुरुष रिलीज होते ही दPIL दायर


🚩हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर ओम राउत की फिल्म आदिपुरुष से रावण, भगवान राम, हनुमान, माता सीता से संबंधित कुछ ‘आपत्तिजनक दृश्यों’ को हटाने की माँग की है।


🚩विष्णु गुप्त द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि फिल्म में धार्मिक चरित्रों का फिल्मांकन रामायण में किए गए चित्रण के विपरीत हैं। फिल्म के दृश्यों में हिंदू सभ्यता, हिंदू धार्मिक शख्सियतों और मूर्तियों का अपमान करते हुए धार्मिक चरित्रों को खराब स्वाद में दिखाया गया है।


🚩याचिका में कहा गया है, “हिंदुओं का भगवान राम, सीता और हनुमान की छवि के बारे में एक विशेष दृष्टिकोण है और फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों और अभिनेताओं द्वारा उनकी दिव्य छवि में किया गया बदलाव/छेड़छाड़ उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।” याचिकाकर्ता का कहना है कि इस फिल्म की वजह से देश की संस्कृति का मजाक बन रहा है।


🚩आगे कहा गया है, “महाकाव्यों में बनाई गई छवि के अनुसार हेयर स्टाइल, दाढ़ी और ड्रेसिंग को अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है। फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों और अभिनेताओं द्वारा कोई भी बदलाव निश्चित रूप से उपासकों, भक्तों और धार्मिक विश्वासियों की भावनाओं को ठेस पहुँचाएगा।”


🚩रावण को ब्राह्मण बताते हुए कहा गया है, “फिल्म में सैफ अली खान द्वारा निभाए गए रावण के किरदार का दाढ़ी वाला लुक हिंदू समुदाय की भावनाओं को आहत कर रहा है, क्योंकि ब्राह्मण रावण को गलत तरीके से भयानक चेहरा बनाते हुए दिखाया गया है, जो हिंदू सभ्यता, हिंदू धार्मिक हस्तियों एवं आदर्शों का घोर अपमान है।”


🚩याचिकाकर्ता ने कहा है कि फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों से फिल्म में ‘सुधारात्मक उपाय’ करने की माँग की गई है। इसमें कहा गया है, “आदिपुरुष फिल्म द्वारा हिंदू धार्मिक शख्सियतों का विकृत सार्वजनिक प्रदर्शन अंतरात्मा और अभ्यास की स्वतंत्रता का स्पष्ट उल्लंघन है। यह अनुच्छेद 26 के तहत धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता का भी उल्लंघन है।”


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Friday, June 16, 2023

समान नागरिक संहिता के लिए विधि आयोग ने माँगी जनता की राय , ऐसे भेजें अपने सुझाव

16 June 2023

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🚩समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code- UCC) को लेकर विधि आयोग (Law Commission) ने एक बार फिर से लोगों सेे रायशुमारी शुरू कर दी है। इसको लेकर देश के प्रबुद्ध लोगों तथा सभी धर्मों के मान्यता प्राप्त प्रमुख धार्मिक संगठनों से उनकी राय माँगी है।


🚩विधि आयोग ने बुधवार (14 जून 2023) को कहा कि 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बारे में मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचारों को जानने के लिए फिर से निर्णय लिया। आयोग ने कहा , कि जिन लोगों को इसमें रुचि है और अपनी राय देना चाहते हैं, वे राय दे सकते हैं।


🚩विधि आयोग ने कहा कि जो लोग अपनी राय रखना चाहते हैं , वे नोटिस जारी करने की तारीख के 30 दिनों के भीतर इससे संबंधित लिंक पर अपनी राय भेज सकते हैं। इसके अलावा, भारत सरकार के विधि आयोग को Membersecretary-lci@gov.in  पर ईमेल द्वारा भी राय भेज सकते हैं।


🚩कानूनी पैनल ने आगे कहा, “शुरुआत में भारत के 21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर विषय की जाँच की थी और 7 अक्टूबर 2016 को एक प्रश्नावली दी थी। इसके साथ ही, 19 मार्च 2018 एवं 27 मार्च 2018 और 10 अप्रैल 2018 की सार्वजनिक अपील/नोटिस देकर सभी हितधारकों को अपने विचार रखने का अनुरोध किया था।”


🚩विधि आयोग ने अपने बयान में कहा , कि इस अपील पर लोगों से उन्हें भारी प्रतिक्रिया मिली थी। इसके बाद 21वें विधि आयोग ने 31 अगस्त 2018 को ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ पर परामर्श पत्र जारी किया थी।


🚩पैनल ने कहा कि चूंकि परामर्श पत्र जारी किए हुए तीन साल से अधिक समय बीत चुका है। ऐसे में विषय की प्रासंगिकता और महत्व को ध्यान में रखते हुए तथा इस विषय पर विभिन्न अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए भारत के 22वें विधि आयोग ने इस पर पहल करना जरूरी समझा।


🚩क्या है समान नागरिक संहिता


🚩समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है, जो देश के हर समुदाय पर समान रूप लागू होता है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म का हो, जाति का हो या पंथ का हो, सबके लिए एक ही कानून होगा। अंग्रेजों ने आपराधिक और राजस्व से जुड़े कानूनों को भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) 1872, भारतीय अनुबंध अधिनियम (ICA) 1872, विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 आदि के माध्यम से सारे समुदायों पर लागू किया, लेकिन शादी-विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति, गोद लेने आदि से जुड़े मसलों को धार्मिक समूहों के लिए उनकी मान्यताओं के आधार पर छोड़ दिया।


🚩आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुओं के पर्सनल लॉ को खत्म कर दिया, लेकिन मुस्लिमों के कानून को ज्यों का त्यों बनाए रखा। हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं के तहत जारी कानूनों को निरस्त कर हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू नाबालिग एवं अभिभावक अधिनियम 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 लागू कर दिया गया। ये कानून हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख आदि पर समान रूप से लागू होते हैं।


🚩मुस्लिमों का कानून , पर्सनल कानून (शरिया), 1937 के तहत संचालित होता है। इसमें मुस्लिमों के निकाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, संपत्ति का अधिकार, बच्चा गोद लेना आदि आता है, जो इस्लामी शरिया कानून के तहत संचालित होते हैं। अगर समान नागरिक संहिता लागू होता है तो मुस्लिमों के निम्नलिखित कानून बदल जाएँगे।


🚩गोवा में लागू है UCC


🚩देश भर में समान नागरिक संहिता को लागू करने की माँग दशकों से हो रही है, लेकिन देश में गोवा अकेला ऐसा राज्य है जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है। गोवा में वर्ष 1962 में यह कानून लागू किया गया था।


🚩साल 1961 में गोवा के भारत में विलय के बाद भारतीय संसद ने गोवा में ‘पुर्तगाल सिविल कोड 1867’ को लागू करने का प्रावधान किया था। इसके तहत गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो गई और तब से राज्य में यह कानून लागू है।


🚩पिछले दिनों गोवा में लागू यूनिफॉर्म सिविल कोड की तारीफ सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. ए. बोबड़े ने भी की थी। सी.जे.आई. ने कहा था कि गोवा के पास पहले से ही वह है, जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने पूरे देश के लिए की थी।


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Thursday, June 15, 2023

हिंदू बच्चों के धर्मांतरण वाला गेम, क्या ये है आबादी का खेल ?

15 June 2023

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🚩केरल स्टोरी में हम सबने देखा है कि हिंदू लड़कियों को ट्रैप करने के लिए कैसे एक जाल बिछाया गया। मॉल में खरीदारी कर रही लड़कियों के साथ छेड़खानी और फिर उन्हें बचाने का ड्रामा। यानि एक सिचुएशन क्रिएट करो और फिर उस सिचुएशन का हल बनकर सामने आओ। बाद में फिल्म में ऐसी ही साजिश का शिकार हुई लड़की, आतंकी संगठन इस्लामिक इस्टेट की सदस्य तक बन जाती है। फिल्म के डायरेक्टर इसे मैन्यूप्लेटिव कनवर्जन बोलते हैं, लेकिन क्या मैन्यूप्लेटिव कनवर्जन सिर्फ फिल्मी दुनिया की बात है, सिर्फ एक फिल्म की बात है? इसलिए रील लाइफ से आगे बढ़कर अब आते हैं रियल लाइफ पर।



🚩कुछ हिंदू बच्चें ऑनलाइन गेम खेल रहें हैं। वो गेम हार जाते हैं तो सामने कोई चैट पर कहता है कि आयतें पढ़ो तो जीत जाओगे, यानि बच्चों के माइंड को मैन्यूप्लेट करने की साजिश। ऐसे ही ऑनलाइन रहते हुए ये लोग धीरे-धीरे चैटिंप ऐप में जाकिर नायक और तारिक जमील के वीडियो दिखाते थे। ऑनलाइन गेम में धर्मांतरण का गेम कुछ ऐसे खेला गया कि बच्चा पांच वक्त का नमाजी हो गया और मस्जिद जाना शुरू कर देता है। माता पिता पुलिस में शिकायत करते हैं, गाजियाबाद से एक मौलवी अब्दुल रहमान पकड़ा जाता है। मालूम चलता है ऑनलाइन गेमिंग का ट्रैप बिछाकर बच्चों का ब्रेनवॉश कर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है, वो भी अबोध बच्चों का ब्रेन वॉश करके।


🚩अभी तो लव जिहाद की बहस और उसकी शिकार हुई बेटियों की आत्मा इंसाफ मांग रही हैं। उसके बाद धर्मानन्तरण के इस गेम ने उन सभी पेरेंट्स को दहशत में डाल दिया है जिनके बच्चे ऑनलाइन गेम खेलते हैं। ये ऑनलाइन गेम का नशा होना, कोरोना और लॉकडाउन का एक और साइड इफेक्ट है। उस समय बच्चे बड़े सभी ने तमाम ऐसे गेम ऑनलाइन खेले होंगे जिसमें सामने वाले का नाम असली भी है या नहीं, हमें नहीं पता होता। वो किस देश किस धर्म से ताल्लुक रखते हैं हमें नहीं पता होता, लेकिन गेम खेलते खेलते कोई आपके साथ ही धर्म परिवर्तन का गेम खेलने लगे ऐसे भला किसने सोचा होगा...!!


🚩हिंदुओं की अगली पीढ़ियों के ब्रेनवॉश करने की कोशिश?


🚩पुलिस बता रही है कोविड के दौरान ही ये बच्चे ऐसे धर्मपरिवर्तन के गेम प्लानर के संपर्क में आए थे। सावधान हो जाइए " फोर्ट नाइट " नाम वाले इस गेम से और किसीभी* ऐसे गेम से जिसमें आपको सामने वाले की पहचान और नीयत का अहसास ही ना हो पाए। इस सहिष्णु देश में मां बाप अब इस हद तक विनम्र हो गए हैं कि ना तो बच्चों को पढ़ाई या करियर में तुमको यही बनना है कहकर फोर्स कर रहें हैं और ना ही धार्मिक आस्थाओं मान्यताओं के लिए बाध्य करते हैं।


🚩अटल बिहारी बाजपेयी की एक बात याद आती है। अटल जी ने कहा था... " भारत इसलिए धर्मनिरपेक्ष है, क्योंकि यहां 80 प्रतिशत हिंदू हैं। "

तो क्या ये कोशिश हो रही है , कि हिंदुओं की अगली पीढ़ियों को ब्रेनवॉश कर दिया जाए। ये सवाल इसलिए उठता है , क्योंकि कुछ तथ्य हमारे सामने भविष्य की भयावह तस्वीर बना रहे हैं। आइए समझें , कैसे...?


🚩बंटवारे के बाद से ही पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदु आबादी तुलनात्मक रूप से लगातार कम हुई है। 1947 में पाकिस्तान में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं की आबादी दो प्रतिशत थी और अब भी पाकिस्तान में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं की आबादी करीब दो ही प्रतिशत है।


🚩1971 में बांग्लादेश में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं की आबादी करीब 13 प्रतिशत थी। अब बांग्लादेश में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं की आबादी महज छह फीसदी है। इस तस्वीर का एक और पहलू है। भारत में विभाजन के समय जो मुस्लिम आबादी दस प्रतिशत थी वह आज बढ़कर 15 प्रतिशत हो गई है। लगातार आती लव जिहाद या जबरन धर्मांतरण की खबरें संदेह पैदा करती हैं कि क्या ये आबादी का खेल है, क्या कोई प्रायोजित तरीके से हिंदुस्तान में हिंदुओं की अगली पीढ़ी का ब्रेनवॉश कर देना चाहता है?


🚩ऑनलाइन गेम, कलावा बांधकर प्यार का छलावा...

मध्य प्रदेश के दमोह में गंगा जमुना हायर सेकेंडरी स्कूल से आई खबर इसी डर को बढ़ाती है। बवाल तब मचा जब हिंदू बच्चियों की तस्वीरें हिजाब में वायरल हुईं। मालूम चला बच्चों को श्लोक नहीं याद लेकिन कुरान की आयतें रटाई गई हैं। होमवर्क उर्दू में मिलता था और याद ना करने पर टीचर मारती थी। टीचर भी कौन वो जो खुद धर्म परिवर्तन कर हिंदू से मुस्लिम बनी। इस स्कूल में तीन टीचरों ने धर्म परिवर्तन करा है. ज़ाहिर है पढ़ाई के नाम पर क्या चल रहा है ! तो उस पर सवाल उठेंगे ही।


🚩ज़रा सोचिए...

ऑनलाइन गेम, कलावा बांधकर प्यार का छलावा या स्कूल से इस तरह की खबरें, इन सबके मूल में आखिर धर्म क्यूं है?🚩स्वयं विचार कीजिए...

क्यूं इतनी तेजी से बच्चों , खासकर लड़कियों को धर्म परिवर्तन के लिए बरलगाया , फुसलाया और या मजबूर तक किया जा रहा है। धर्म के नाम पर चल रहे इस अधर्म को कब तक हम सब धार्मिक एंगल से ना देखकर महज आपराधिक मामला कहकर नजरें चुराते फिरेंगे...!?



🚩यह मुद्दा गम्भीर है...

समय है, सचेत रहने का...

समय है सरकारों के जागने और समाज को जागने का...

वर्ना कहीं बहुत देर न हो जाए !!!


जय हिंद ! जय सत्य सनातन धर्म !


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Wednesday, June 14, 2023

देवरहा बाबा ,एक ऐसे संत जिसके पैरो के नीचे अपना सिर रखने नेता व अंग्रेज तक आते थे।

 देवरहा बाबा ,एक ऐसे संत जिसके पैरो के नीचे अपना सिर रखने नेता व अंग्रेज तक आते थे।

 14 June 2023

🚩देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहाँ तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपनी नश्वर देह त्याग कर व्यापने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं )

🚩भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष थे देवरहा बाबा । डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था। बाबा पूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत थे।

🚩श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी।

🚩श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है। जनश्रूति के मुताबिक, वह खेचरी मुद्रा सिद्धी की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे। लोग बोलते हैं , उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होता था।

🚩लोगों में विश्वास है , कि बाबा जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया। बाबा हर साल कुंभ के समय प्रयाग जाते थे।

🚩मार्कण्डेय सिंह के मुताबिक, वह किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे। कहते हैं कि , वह 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।

🚩लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई। वह अवतारी महापुरुष थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था। वह फोटो कैमरे और टीवी जैसी चीजों को देख अचंभित रह जाते थे। वह उनसे अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उनका फोटो नहीं बनता था। लोग तो यहा तक बोलते हैं कि वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। उनका निर्जीव वस्तुओं पर भी नियंत्रण था।

🚩अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई।अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था।

🚩देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था। उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं।.....

कोई 1987 की बात होगी, जून का ही महीना था,वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों में अफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई।

🚩आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है। बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा!

🚩वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि यह ऑर्डर दिल्ली से आए अफसरों का है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए। उन्होंने कहा कि यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता।

🚩इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा।... इसे क्या कहेंगे चमत्कार या संयोग !?

🚩बाबा की शरण में आने वाले कई विशिष्ट लोग थे। उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे। योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता, तो वह संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते।

🚩लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना सब कब और कैसे जान लिया। ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वो सिद्ध थे ही। धर्माचार्य, पंडित और वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे। उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था।

🚩देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गईं तो वह भी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं। उन्होंने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया। वहां से वापस आने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा निर्धारित कर दिया। इसके बाद 1980 में इंदिरा के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं।

🚩वहीं, यह भी मान्यता है कि इन्दिरा गांधी आपातकाल के समय कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती से आर्शीवाद लेने गयीं थी। वहां उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आर्शीवाद दिया और हाथ का पंजा पार्टी का चुनाव निशान बनाने को कहा।

🚩बाबा महान योगी और सिद्ध संत थे। उनके चमत्कार हज़ारों लोगों को झंकृत करते रहे। आशीर्वाद देने का उनका ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो गया। पेड़-पौधे भी उनसे बातें करते थे। उनके आश्रम में बबूल तो थे, मगर कांटेविहीन। इतना ही नहीं , बल्कि वो वृक्ष खुशबू भी बिखेरते थे।

🚩उनके दर्शनों को प्रतिदिन विशाल जनसमूह उमड़ता था। बाबा भक्तों के मन की बात भी बिना बताए जान लेते थे। उन्होंने पूरा जीवन अन्न नहीं खाया। दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था।

🚩देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे।

🚩ख्याति इतनी कि जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव लश्कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव तक उनके आश्रम तक पहुंच गया । दरअसल, इंग्लैंड से रवाना होते समय उसने अपने भाई से पूछा था , कि क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं।

🚩प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया- हां, कम से कम देवरहा बाबा से जरूर मिलना। जार्ज पंचम की यह यात्रा सन 1911 की बात है , तब विश्वयुद्ध के बादल मंडरा रहे थे । इसी माहौल में वह भारत को बरतानिया हुकूमत के पक्ष में युद्ध करने को राजी करने की मंशा से आया था । उससे हुई बातचीत बाबा ने अपने कुछ शिष्यों को बतायी भी थी, लेकिन कोई भी उस बारे में बातचीत करने को आज भी तैयार नहीं।

🚩डाक्टर राजेंद्र प्रसाद तब रहे होंगे कोई दो-तीन साल के, जब अपने माता-पिता के साथ वे बाबा के यहां गये थे। बाबा देखते ही बोल पड़े-यह बच्चा तो राजा बनेगा। बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन् 1954 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया।

🚩बाबा देवरहा 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।

🚩भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं और अपनी यह सम्पत्ति बाबा ने मुक्त हस्त लुटाई। जो भी आया बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वितरण में कोई विभेद नहीं। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा। मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है।

🚩कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है ...! दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्प्युटर से कहीं ज्यादा तेज़...

🚩बलिष्ठ कदकाठी भी थी उनकी । लेकिन देह त्याहगने के समय तक वे कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। उनका पूरा जीवन मचान में ही बीता। लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। जल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे।

🚩खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्तनगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना हासिल करने के लिए सैकडों लोगों की भीड़ हर जगह जुटती थी और फिर अचानक 11 जून 1990 को उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया ।

🚩लगा जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है। मौसम तक का मिज़ाज बदल गया। यमुना की लहरें तक बेचैन होने लगीं। मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे। डॉक्टरों की टीम ने थर्मामीटर पर देखा कि पारा अंतिम सीमा को तोड निकलने पर आमादा है। 19तारीख को मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी।

 🚩आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं । यमुना जैसे समुंदर को मात करने पर उतावली थी। लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा की पूण्यमई देह स्पंदनरहित हो गई । भक्तों की अपार भीड भी प्रकृति के साथ हाहाकार करने लगी।

🚩भारत में कई महान संत हो गए , आज भी हैं... लेकिन बस हमें पहचान करने की जरूरत है। यदि हम संतों के मार्गदर्शन में चलें तो व्यक्ति, समाज और देश की कई गुना उन्नति होगी।

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