Saturday, February 18, 2017

छत्रपति वीर शिवाजी जयंती - 19 फरवरी

छत्रपति वीर शिवाजी जयंती - 19 फरवरी 

आइये जाने वीर शिवाजी महाराज का इतिहास!!

शाहजी भोंसले की पत्नी जीजाबाई (राजमाता जिजाऊ) की कोख से शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। शिवनेरी का दुर्ग पूना (पुणे) से उत्तर की तरफ जुन्नर नगर के पास था। उनका बचपन उनकी माता जिजाऊ के मार्गदर्शन में बीता। वह सभी कलाओं में माहिर थे, उन्होंने बचपन में राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। ये भोंसले उपजाति के थे जो कि मूलतः कुर्मी जाति के थे, उनके पिता अप्रतिम शूरवीर थे और उनकी दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते थी । उनकी माता जी जीजाबाई जाधव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली थी और उनके पिता एक शक्तिशाली सामंत थे। शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। बचपन से ही वे उस युग के वातावरण और घटनाओं को भली प्रकार समझने लगे थे। शासक वर्ग की करतूतों पर वे झल्लाते थे और बेचैन हो जाते थे। उनके बाल-हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्ज्वलित हो गयी थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन किया। अवस्था बढ़ने के साथ विदेशी शासन की बेड़ियाँ तोड़ फेंकने का उनका संकल्प प्रबलतर होता गया। छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640  में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पुना में हुआ था।
छत्रपति वीर शिवाजी जयंती - 19 फरवरी 

सैनिक वर्चस्व का आरंभ!!

उस समय बीजापुर का राज्य आपसी संघर्ष तथा विदेशी आक्रमणकाल के दौर से गुजर रहा था। ऐसे साम्राज्य के सुल्तान की सेवा करने के बदले उन्होंने मावलों को बीजापुर के खिलाफ संगठित किया। मावल प्रदेश पश्चिम घाट से जुड़ा है और लगभग 150 किलोमीटर लम्बा और 30 किलोमीटर चौड़ा है। वे संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करने के कारण कुशल योद्धा माने जाते हैं। इस प्रदेश में मराठा और सभी जाति के लोग रहते हैं। शिवाजी महाराज ने इन सभी जाति के लोगों को लेकर मावलों (मावळा) नाम देकर सभी को संगठित किया और उनसे सम्पर्क कर उनके प्रदेश से परिचित हो गए थे। मावल युवकों को लाकर उन्होंने दुर्ग निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया था। मावलों का सहयोग शिवाजी महाराज के लिए बाद में उतना ही महत्वपूर्ण साबित हुआ जितना शेरशाह सूरी के लिए अफगानों का साथ।

उस समय बीजापुर आपसी संघर्ष तथा मुगलों के आक्रमण से परेशान था। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बहुत से दुर्गों से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों या सामन्तों के हाथ सौंप दिया था। जब आदिलशाह बीमार पड़ा तो बीजापुर में अराजकता फैल गई और शिवाजी महाराज ने अवसर का लाभ उठाकर बीजापुर में प्रवेश का निर्णय लिया। शिवाजी महाराज ने इसके बाद के दिनों में बीजापुर के दुर्गों पर अधिकार करने की नीति अपनाई। सबसे पहला दुर्ग था तोरण का दुर्ग।

दुर्गों पर नियंत्रण!!

तोरण का दुर्ग पूना के दक्षिण पश्चिम में 30 किलोमीटर की दूरी पर था। शिवाजी ने सुल्तान आदिलशाह के पास अपना दूत भेजकर खबर भिजवाई की वे पहले किलेदार की तुलना में बेहतर रकम देने को तैयार हैं और यह क्षेत्र उन्हें सौंप दिया जाये। उन्होंने आदिलशाह के दरबारियों को पहले ही रिश्वत देकर अपने पक्ष में कर लिया था और अपने दरबारियों की सलाह के मुताबिक आदिलशाह ने शिवाजी महाराज को उस दुर्ग का अधिपति बना दिया। उस दुर्ग में मिली सम्पत्ति से शिवाजी महाराज ने दुर्ग की सुरक्षात्मक कमियों की मरम्मत का काम करवाया। इससे कोई 10 किलोमीटर दूर राजगढ़ का दुर्ग था और शिवाजी महाराज ने इस दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया।

शिवाजी महाराज की इस साम्राज्य विस्तार की नीति की भनक जब आदिलशाह को मिली तो वह क्षुब्ध हुआ। उसने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने को कहा। शिवाजी महाराज ने अपने पिता की परवाह किये बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया और नियमित लगान बन्द कर दिया। 

राजगढ़ के बाद उन्होंने चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर लिया और उसके बाद कोंडना के दुर्ग पर। कोंडना (कोन्ढाणा) पर अधिकार करते समय उन्हें घूस देनी पड़ी। कोंडना पर अधिकार करने के बाद उसका नाम सिंहगढ़ रखा गया। शाहजी राजे को पूना और सूपा की जागीरदारी दी गई थी और सूपा का दुर्ग उनके सम्बंधी बाजी मोहिते के हाथ में था। शिवाजी महाराज ने रात के समय सूपा के दुर्ग पर आक्रमण करके दुर्ग पर अधिकार कर लिया और बाजी मोहिते को शाहजी राजे के पास कर्नाटक भेज दिया। उसकी सेना का कुछ भाग भी शिवाजी महाराज की सेवा में आ गया। इसी समय पुरन्दर के किलेदार की मृत्यु हो गई और किले के उत्तराधिकार के लिए उसके तीनों बेटों में लड़ाई छिड़ गई। दो भाइयों के निमंत्रण पर शिवाजी महाराज पुरन्दर पहुँचे और कूटनीति का सहारा लेते हुए उन्होंने सभी भाइयों को बन्दी बना लिया। इस तरह पुरन्दर के किले पर भी उनका अधिकार स्थापित हो गया। अब तक की घटना में शिवाजी महाराज को कोई युद्ध या खूनखराबा नहीं करना पड़ा था। 1647 ईस्वी तक वे चाकन से लेकर नीरा तक के भूभाग के भी अधिपति बन चुके थे। अपनी बढ़ी सैनिक शक्ति के साथ शिवाजी महाराज ने मैदानी इलाकों में प्रवेश करने की योजना बनाई।

एक अश्वारोही सेना का गठन कर शिवाजी महाराज ने आबाजी सोन्देर के नेतृत्व में कोंकण के विरुद्ध एक सेना भेजी। आबाजी ने कोंकण सहित नौ अन्य दुर्गों पर अधिकार कर लिया। इसके अलावा ताला, मोस्माला और रायटी के दुर्ग भी शिवाजी महाराज के अधीन आ गए थे। लूट की सारी सम्पत्ति रायगढ़ में सुरक्षित रखी गई। कल्याण के गवर्नर को मुक्त कर शिवाजी महाराज ने कोलाबा की ओर रुख किया और यहाँ के प्रमुखों को विदेशियों के खिलाफ युद्ध के लिए उकसाया।

शाहजी की बन्दी और युद्ध!!

बीजापुर का सुल्तान शिवाजी महाराज की हरकतों से पहले ही आक्रोश में था। उसने शिवाजी महाराज के पिता को बन्दी बनाने का आदेश दे दिया। शाहजी राजे उस समय कर्नाटक में थे और एक विश्वासघाती सहायक बाजी घोरपड़े द्वारा बन्दी बनाकर बीजापुर लाए गए। उन पर यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने कुतुबशाह की सेवा प्राप्त करने की कोशिश की थी जो गोलकोंडा का शासक था और इस कारण आदिलशाह का शत्रु। बीजापुर के दो सरदारों की मध्यस्थता के बाद शाहाजी महाराज को इस शर्त पर मुक्त किया गया कि वे शिवाजी महाराज पर लगाम कसेंगे। अगले चार वर्षों तक शिवाजी महाराज ने बीजीपुर के खिलाफ कोई आक्रमण नहीं किया। इस दौरान उन्होंने अपनी सेना संगठित की।

प्रभुता का विस्तार!!

शाहजी की मुक्ति की शर्तों के मुताबिक शिवाजी राजेने बीजापुर के क्षेत्रों पर आक्रमण तो नहीं किया पर उन्होंने दक्षिण-पश्चिम में अपनी शक्ति बढ़ाने की चेष्टा की। पर इस क्रम में जावली का राज्य बाधा का काम कर रहा था। यह राज्य सातारा के सुदूर उत्तर पश्चिम में वामा और कृष्णा नदी के बीच में स्थित था। यहाँ का राजा चन्द्रराव मोरे था जिसने ये जागीर शिवाजी से प्राप्त की थी। शिवाजी ने मोरे शासक चन्द्रराव को स्वराज में शमिल होने को कहा पर चन्द्रराव बीजापुर के सुल्तान के साथ मिल गया। सन् 1653 में शिवाजी ने अपनी सेना लेकर जावली पर आक्रमण कर दिया। चन्द्रराव मोरे और उसके दोनों पुत्रों ने शिवाजी के साथ लड़ाई की पर अन्त में वे बन्दी बना लिए गए पर चन्द्रराव भाग गया। स्थानीय लोगों ने शिवाजी के इस कृत्य का विरोध किया पर वे विद्रोह को कुचलने में सफल रहे। इससे शिवाजी को उस दुर्ग में संग्रहीत आठ वंशों की सम्पत्ति मिल गई। इसके अलावा कई मावल सैनिक मुरारबाजी देशपाडे भी शिवाजी की सेना में सम्मिलित हो गए।

मुगलों से पहली मुठभेड़!!

शिवाजी के बीजापुर तथा मुगल दोनों शत्रु थे। उस समय शहजादा औरंगजेब दक्कन का सूबेदार था। इसी समय 1 नवम्बर 16653 को बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु हो गई जिसके बाद बीजापुर में अराजकता का माहौल पैदा हो गया। इस स्थिति का लाभ उठाकर औरंगजेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया और शिवाजी ने औरंगजेब का साथ देने की बजाय उसपर धावा बोल दिया। उनकी सेना ने जुन्नार नगर पर आक्रमण कर ढेर सारी सम्पत्ति के साथ 200 घोड़े लूट लिये। अहमदनगर से 700 घोड़े, चार हाथी के अलावा उन्होंने गुण्डा तथा रेसिन के दुर्ग पर भी लूटपाट मचाई। इसके परिणामस्वरूप औरंगजेब शिवाजी से खफा हो गया और मैत्री वार्ता समाप्त हो गई। शाहजहाँ के आदेश पर औरंगजेब ने बीजापुर के साथ संधि कर ली और इसी समय शाहजहाँ बीमार पड़ गया। उसके व्याधिग्रस्त होते ही औरंगजेब उत्तर भारत चला गया और वहाँ शाहजहाँ को कैद करने के बाद मुगल साम्राज्य का शाह बन गया।

कोंकण पर अधिकार!!

दक्षिण भारत में औरंगजेब की अनुपस्थिति और बीजापुर की डवाँडोल राजनैतिक स्थिति को जानकर शिवाजी ने समरजी को जंजीरा पर आक्रमण करने को कहा। पर जंजीरा के सिद्दियों के साथ उनकी लड़ाई कई दिनों तक चली। इसके बाद शिवाजी ने खुद जंजीरा पर आक्रमण किया और दक्षिण कोंकण पर अधिकार कर लिया और दमन के पुर्तगालियों से वार्षिक कर एकत्र किया। कल्याण तथा भिवण्डी पर अधिकार करने के बाद वहाँ नौसैनिक अड्डा बना लिया। इस समय तक शिवाजी 40 दुर्गों के मालिक बन चुके थे।

बीजापुर से संघर्ष!!

इधर औरंगजेब के आगरा (उत्तर की ओर) लौट जाने के बाद बीजापुर के सुल्तान ने भी राहत की सांस ली। अब शिवाजी ही बीजापुर के सबसे प्रबल शत्रु रह गए थे। शाहजी को पहले ही अपने पुत्र को नियंत्रण में रखने को कहा गया था पर शाहजी ने इसमें अपनी असमर्थता जाहिर की। शिवाजी से निपटने के लिए बीजापुर के सुल्तान ने अब्दुल्लाह भटारी (अफजल खाँ) को शिवाजी के विरूद्ध भेजा। अफजल ने 120000 सैनिकों के साथ 1659 में कूच किया। तुलजापुर के मन्दिरों को नष्ट करता हुआ वह सतारा के 30 किलोमीटर उत्तर वाई, शिरवल के नजदीक तक आ गया। पर शिवाजी प्रतापगढ़ के दुर्ग पर ही रहे। अफजल खाँ ने अपने दूत कृष्णजी भास्कर को सन्धि-वार्ता के लिए भेजा। उसने उसके मार्फत ये संदेश भिजवाया कि अगर शिवाजी बीजापुर की अधीनता स्वीकार कर ले तो सुल्तान उसे उन सभी क्षेत्रों का अधिकार दे देंगे जो शिवाजी के नियंत्रण में हैं। साथ ही शिवाजी को बीजापुर के दरबार में एक सम्मानित पद प्राप्त होगा। हालांकि शिवाजी के मंत्री और सलाहकार अस संधि के पक्ष मे थे पर शिवाजी को ये वार्ता रास नहीं आई। उन्होंने कृष्णजी भास्कर को उचित सम्मान देकर अपने दरबार में रख लिया और अपने दूत गोपीनाथ को वस्तुस्थिति का जायजा लेने अफजल खाँ के पास भेजा। गोपीनाथ और कृष्णजी भास्कर से शिवाजी को ऐसा लगा कि सन्धि का षडयंत्र रचकर अफजल खाँ शिवाजी को बन्दी बनाना चाहता है। अतः उन्होंने युद्ध के बदले अफजल खाँ को एक बहुमूल्य उपहार भेजा और इस तरह अफजल खाँ को सन्धि वार्ता के लिए राजी किया। सन्धि स्थल पर दोनों ने अपने सैनिक चौकन्ने कर रखे थे मिलने के स्थान पर जब दोनों मिले तब अफजल खाँ ने अपने कट्यार से शिवाजी पे वार किया बचाव में शिवाजी ने अफजल खाँ को 10 नबम्बर 1659 मे अपने वस्त्रों वाघनखो से मार दिया ।

अफजल खाँ की मृत्यु के बाद शिवाजी ने पन्हाला के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। इसके बाद पवनगढ़ और वसंतगढ़ के दुर्गों पर अधिकार करने के साथ ही साथ उन्होंने रूस्तम खाँ के आक्रमण को विफल भी किया। इससे राजापुर तथा दावुल पर भी उनका कब्जा हो गया। अब बीजापुर में आतंक का माहौल पैदा हो गया और वहाँ के सामन्तों ने आपसी मतभेद भुलाकर शिवाजी पर आक्रमण करने का निश्चय किया। 2 अक्टूबर 1665 को बीजापुरी सेना ने पन्हाला दुर्ग पर अधिकार कर लिया। शिवाजी संकट में फंस चुके थे पर रात्रि के अंधकार का लाभ उठाकर वे भागने में सफल रहे। बीजापुर के सुल्तान ने स्वयं कमान सम्हालकर पन्हाला, पवनगढ़ पर अपना अधिकार वापस ले लिया, राजापुर को लूट लिया और श्रृंगारगढ़ के प्रधान को मार डाला। इसी समय कर्नाटक में सिद्दीजौहर के विद्रोह के कारण बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के साथ समझौता कर लिया। इस संधि में शिवाजी के पिता शाहजी ने मध्यस्थता का काम किया। सन् 1662 में हुई इस सन्धि के अनुसार शिवाजी को बीजापुर के सुल्तान द्वारा स्वतंत्र शासक की मान्यता मिली। इसी संधि के अनुसार उत्तर में कल्याण से लेकर दक्षिण में पोण्डा तक (250 किलोमीटर) का और पूर्व में इन्दापुर से लेकर पश्चिम में दावुल तक (150 किलोमीटर) का भूभाग शिवाजी के नियंत्रण में आ गया। शिवाजी की सेना में इस समय तक 30000 पैदल और 1000 घुड़सवार हो गए थे।

मुगलों से संघर्ष!!

उत्तर भारत में बादशाह बनने की होड़ खत्म होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियंत्रण रखने के उद्येश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का खाँ अपने 1,50,000 फौज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर पूना पहुँच गया। उसने 3 साल तक मावल में लूटपाट की। एक रात शिवाजी ने अपने 350 मावलों के साथ उनपर हमला कर दिया। शाइस्ता तो खिड़की के रास्ते बच निकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र, तथा चालीस रक्षकों और अनगिनत सैनिकों का कत्ल कर दिया गया। इस घटना के बाद औरंगजेब ने शाइस्ता को दक्कन के बदले बंगाल का सूबेदार बना दिया और शाहजादा मुअज्जम शाइस्ता की जगह लेने भेजा गया।

सूरत में लूट!!

इस जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। 6 साल शास्ताखान अपनी 1,50,000 फौज लेकर राजा शिवाजी का पूरा मुलुख जलाकर तबाह कर दिया था। इस लिए उसका हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरंभ किया। सूरत उस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। शिवाजी ने चार हजार की सेना के साथ छः दिनों तक सूरत के धनाढ्य व्यापारियों को लूटा आम आदमी को नहीं लूटा और फिर लौट गए। इस घटना का जिक्र डच तथा अंग्रेजों ने अपने लेखों में किया है। उस समय तक यूरोपीय व्यापारी भारत तथा अन्य एशियाई देशों में बस गये थे। नादिर शाह के भारत पर आक्रमण करने तक (1739) किसी भी यूूरोपीय शक्ति ने भारतीय मुगल साम्राज्य पर आक्रमण करने की नहीं सोची थी।

सूरत में शिवाजी की लूट से खिन्न होकर औरंगजेब ने इनायत खाँ के स्थान पर गयासुद्दीन खां को सूरत का फौजदार नियुक्त किया और शहजादा मुअज्जम तथा उपसेनापति राजा जसवंत सिंह की जगह दिलेर खाँ और राजा जयसिंह की नियुक्ति की गई। राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान, यूरोपीय शक्तियाँ तथा छोटे सामन्तों का सहयोग लेकर शिवाजी पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुगलों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएंगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के खिलाफ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे।

आगरा में आमंत्रण और पलायन!!

शिवाजी को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके खिलाफ उन्होंने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नजरकैद कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिये। कुछ ही दिनों बाद (18 अगस्त 1666 को) राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अजोड़ साहस और  युक्ति के साथ शिवाजी और सम्भाजी दोनों 17 अगस्त 1666 में वहां से भागने में सफल रहे । 

सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी बनारस, गया, पुरी होते हुए 2 सितंबर 1666 को सकुशल राजगढ़ पहुँच गए । इससे मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार संधि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया पर सिंहगढ़ और पुरन्दर पर मुगलों का अधिपत्य बना रहा। सन् 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लूटा। नगर से 132 लाख की सम्पत्ति शिवाजी के हाथ लगी और लौटते वक्त उन्होंने मुगल सेना को सूरत के पास फिर से हराया।

राज्याभिषेक!!

सन् 1674 तक शिवाजी ने उन सारे प्रदेशों पर अधिकार कर लिया था जो पुरन्दर की संधि के अन्तर्गत उन्हें मुगलों को देने पड़े थे। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु ब्राह्मणों ने उनका घोर विरोध किया। (संदर्भ दिजीए) शिवाजी के निजी सचिव बालाजी आव जी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और उन्होंने काशी में गंगाभ नामक ब्राह्मण के पास तीन दूतों को भेजा, किन्तु गंगा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया क्योंकि शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे उसने कहा कि क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा। बालाजी आव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड के सिसोदिया वंश से समबंद्ध के प्रमाण भेजे जिससे संतुष्ट होकर वह रायगढ़ आया ओर उसने राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक के बाद भी पूना के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से मना कर दिया विवश होकर शिवाजी को अष्टप्रधान मंडल की स्थापना करनी पड़ी । विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। काशी के पण्डित विशेश्वर जी भट्ट को इसमें विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था। पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण से 4 अक्टूबर 1674 को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। इसके बाद बीजापुर के सुल्तान ने कोंकण विजय के लिए अपने दो सेनाधीशों को शिवाजी के विरुद्ध भेजा पर वे असफल रहे।

दक्षिण में दिग्विजय!!

सन् 1677-78 में शिवाजी का ध्यान कर्नाटक की ओर गया। उन्होंने बम्बई के दक्षिण में कोंकण, तुंगभद्रा नदी के पश्चिम में बेलगाँव तथा धारवाड़ का क्षेत्र, मैसूर, वैलारी, त्रिचूर तथा जिंजी पर अधिकार जमाया।

स्वर्गवास (मृत्यु) और उत्तराधिकार!!

तीन सप्ताह की बीमारी के बाद शिवाजी का स्वर्गवास 3 अप्रैल 1680 में हुआ। उस समय शिवाजी के उत्तराधिकार शम्भाजी को मिला ।

शासन और व्यक्तित्व!!

छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा चलाया गया सिक्का!

शिवाजी को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाना जाता है। यद्यपि उनको अपने बचपन में पारम्परिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिली थी, पर वे भारतीय इतिहास और राजनीति से सुपरिचित थे। उन्होंने शुक्राचार्य तथा कौटिल्य को आदर्श मानकर कूटनीति का सहारा लेना कई बार उचित समझा था। अपने समकालीन मुगलों की तरह वह भी निरंकुश शासक थे, अर्थात शासन की समूची बागडोर राजा के हाथ में ही थी। पर उनके प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद थी जिन्हें अष्टप्रधान कहा जाता था। इसमें मंत्रियों के प्रधान को पेशवा कहते थे जो राजा के बाद सबसे प्रमुख हस्ती होते थे । अमात्य वित्त और राजस्व के कार्यों को देखता था तो मंत्री राजा की व्यक्तिगत दैनन्दिनी का ख्याल रखता था। सचिव दफतरी काम करते थे जिसमें शाही मुहर लगाना और सन्धि पत्रों का आलेख तैयार करना शामिल होते थे। सुमन्त विदेश मंत्री था। सेना के प्रधान को सेनापति कहते थे। दान और धार्मिक मामलों के प्रमुख को पण्डितराव कहते थे। न्यायाधीश न्यायिक मामलों का प्रधान था।

मराठा साम्राज्य तीन या चार विभागों में विभक्त था। प्रत्येक प्रान्त में एक सूबेदार था जिसे प्रान्तपति कहा जाता था। हरेक सूबेदार के पास भी एक अष्टप्रधान समिति होती थी। कुछ प्रान्त केवल करदाता थे और प्रशासन के मामले में स्वतंत्र। न्यायव्यवस्था प्राचीन पद्धति पर आधारित थी।

शुक्राचार्य, कौटिल्य और हिन्दू धर्मशास्त्रों को आधार मानकर निर्णय दिया जाता था। गाँव के पटेल फौजदारी मुकदमों की जाँच करते थे। राज्य की आय का साधन भूमिकर था पर चौथ और सरदेशमुखी से भी राजस्व वसूला जाता था। 'चौथ' पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा की गारंटी के लिए वसूले जाने वाला कर था। शिवाजी अपने को मराठों का सरदेशमुख कहते थे और इसी हैसियत से सरदेशमुखी कर वसूला जाता था।

राज्याभिषेक के बाद उन्होंने अपने एक मंत्री (रामचन्द्र अमात्य) को शासकीय उपयोग में आने वाले फारसी शब्दों के लिये उपयुक्त संस्कृत शब्द निर्मित करने का कार्य सौंपा। रामचन्द्र अमात्य ने धुन्धिराज नामक विद्वान की सहायता से 'राज्यव्यवहारकोश' नामक ग्रन्थ निर्मित किया। इस कोश में 1280 फारसी के प्रशासनिक शब्दों के तुल्य संस्कृत शब्द थे। इसमें रामचन्द्र ने लिखा है- कृते म्लेच्छोच्छेदे भुवि निरवशेषं रविकुला-वतंसेनात्यर्थं यवनवचनैर्लुप्तसरणीम्।नृपव्याहारार्थं स तु विबुधभाषां वितनितुम्।नियुक्तोऽभूद्विद्वान्नृपवर शिवच्छत्रपतिना ॥८१॥

धार्मिक नीति!!

शिवाजी एक समर्पित हिन्दू थे तथा वह धार्मिक सहिष्णु भी थे। उनके साम्राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान फकीरों को भी सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में मुसलमान सैनिक भी थे। शिवाजी हिन्दू संकृति को बढ़ावा देते थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल दिया जाता था। वह अपने अभियानों का आरंभ भी अकसर दशहरे के अवसर पर करते थे।

चरित्र

शिवाजी महाराज को अपने पिता से स्वराज की शिक्षा ही मिली जब बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी राजे को बन्दी बना लिया तो एक आदर्श पुत्र की तरह उन्होंने बीजापुर के शाह से सन्धि कर शाहजी राजे को छुड़वा लिया। इससे उनके चरित्र में एक उदार अवयव नजर आता है। उसके बाद उन्होंने पिता की हत्या नहीं करवाई जैसा कि अन्य सम्राट किया करते थे। शाहजी राजे के मरने के बाद ही उन्होंने अपना राज्याभिषेक करवाया हाँलांकि वो उस समय तक अपने पिता से स्वतंत्र होकर एक बड़े साम्राज्य के अधिपति हो गये थे। उनके नेतृत्व को सब लोग स्वीकार करते थे यही कारण है कि उनके शासनकाल में कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी प्रमुख घटना नहीं हुई थी।

वह एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे। कई जगहों पर उन्होंने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय युद्ध से भाग लिया था। लेकिन यही उनकी कूटनीति थी, जो हर बार बड़े से बड़े शत्रु को मात देने में उनका साथ देती रही।

शिवाजी महाराज की "गनिमी कावा" नामक कूटनीति, जिसमें शत्रु पर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, विलोभनियता से और आदरसहित याद की जाती है।

शिवाजी महाराज के गौरव में ये पंक्तियाँ प्रसिद्ध हैं-

शिवरायांचे आठवावे स्वरुप। शिवरायांचा आठवावा साक्षेप।शिवरायांचा आठवावा प्रताप। भूमंडळी ॥

कैसे कैसे वीर सपूत हुए इस धरा पर...जिन्होंने अपने जीवन काल में कभी दुश्मनों के आगे घुटने नही टेके बल्कि साम,दाम, दण्ड भेद की निति द्वारा दुश्मनों को हराया।

छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार थे । भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने शिवाजी के जीवनचरित्र से प्रेरणा लेकर भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर कर दिया।

जय माँ भवानी

Friday, February 17, 2017

चर्च के ईसाई पादरी करते हैं बच्चों का यौनशोषण, मध्यप्रदेश की महिला का किया बलात्कार

 चर्च के ईसाई पादरी करते हैं बच्चों का यौनशोषण, मध्यप्रदेश की महिला का किया बलात्कार

ईसाई पादरियों का पहले से ही असली चेहरा सामने आ चुका है भले ही प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नही बताये लेकिन सोशल मीडिया के जरिये कई जगह का हुआ पर्दाफाश!!

जहाँ चर्च के पादरी महिलाओं का एवं बच्चे-बच्चियों का बलात्कार करते हुए पकड़े गए । भले वेटिंकन सिटी के प्रभाव से उन पर सरकार या कानूनी कार्यवाही नहीं होती हो लेकिन अब पब्लिक जान चुकी है कि धर्म की आड़ में कई ईसाई पादरी कुकर्म करते हैं ।

ऐसे ही चर्च के पादरी द्वारा एक #आदिवासी #महिला के #बलात्कार का मामला सामने आया है। घटना मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के कानापुर की है। पादरी पर आरोप है कि, उसने शौच के लिए घर से बाहर निकली विवाहित आदिवासी महिला का बलात्कार किया। महिला ने रविवार को पुलिस में पादरी के खिलाफ मामला दर्ज कराया। घटना के बाद से ही #पादरी फरार है।पुलिस ने आरोपी के खिलाफ दुष्कर्म और SC-ST ऐक्ट के तहत मामला दर्ज किया है।
The pastor of the church sexually abused the  children, raped a woman in Madhya Pradesh

उन्होंने पीड़िता की शिकायत के हवाले से बताया कि, गत शनिवार-रविवार की मध्यरात्रि को पीड़िता घर से बाहर निकली थी, तभी पादरी वहां आया और जबरदस्ती उसे अपने कमरे में ले गया और उसके साथ #दुष्कर्म किया। महिला के शोर मचाने पर परिजन और आसपास के ग्रामीणों के जमा होने पर पादरी मोटरसाईकल से महाराष्ट्र की ओर भाग निकला।

महिला का शासकीय जवाहरलाल नेहरू जिला चिकित्सालय में स्वास्थ्य परीक्षण कराया गया है। आरोपी की खोज में पुलिस दल को अलग-अलग स्थानों पर भेजा जा रहा है। (स्त्रोत :हिन्दू जन जागृति - 14 फरवरी)

आस्ट्रेलियाई चर्च ने भरा 21.20 करोड़ डॉलर का मुआवजा!!

आपको बता दें कि अभी हाल ही में आस्ट्रेलिया की #कैथोलिक चर्च ने सेक्शुअल अब्यूज के मामले में करीब 21 करोड़ 20 लाख 90 हजार #अमेरिकी डॉलर (1426 करोड़ रुपए) का हर्जाना दिया है। 

पिछले 35 साल के दौरान #सेक्शुअल अब्यूज का शिकार हुए हजारों बच्चों को मुआवजे, इलाज और अन्य खर्च के तौर पर ये रकम दी गई है। संस्थागत उत्पीड़न को लेकर हुई जांच की जारी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई।

क्या रहा रॉयल कमीशन का अनुभव!!

- सरकार द्वारा बनाए गए रॉयल कमीशन की ओर से बैरिस्टर गैल फर्नेस ने कहा कि कथित उत्पीड़न और चर्च के खिलाफ किए गए दावे के बीच जांच में करीब 33 साल का वक्त लग गया।

- फर्नेस ने कहा, "रॉयल कमीशन का अनुभव है कि कई पीड़ितों को मुश्किलों को सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्होंने प्रशासन और संस्थाओं से उत्पीड़न की शिकायत नहीं की।"

-  #रॉयल_कमीशन #ऑस्ट्रेलिया के सबसे शक्तिशाली जांच आयोग में से है। इस आयोग का गठन 2013 में किया गया था, जो धार्मिक, सरकारी और खेल #संगठनों समेत कई संस्थाओं में बाल यौन उत्पीड़न की जांच कर रहा है।

- रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1980 से 2015 के बीच हुए 4445 #बाल #यौन_उत्पीड़न के दावों में से 3066 मामलों में मुआवजे और अन्य भुगतान किए गए। पुरुषों ने 40 फीसदी से ज्यादा दावे हासिल किए। 

 #चर्च की आड़ में चल रहे #यौन #शोषण के हजारों मामले सामने आ चुके हैं । 

सन् 2002 में #आयरलैंड के #पादरियों के यौन-शोषण के अपराधों के कारण 12 करोड़ 80 लाख डॉलर का दंड चुकाना पड़ा । 

मई 2009 में प्रकाशित #रॉयन #रिपोर्ट के अनुसार 30,000 बच्चों को इन संस्थाओं में ईसाई ननों और पादरियों द्वारा प्रताड़ित और उनका शोषण किया जाता रहा ।

फिलॉसफर नित्शे ने कहा था कि मैं ईसाई धर्म को एक अभिशाप मानता हूँ, उसमें आंतरिक विकृति की पराकाष्ठा है । वह द्वेषभाव से भरपूर वृत्ति है । इस भयंकर विष का कोई मारण नहीं । #ईसाईत गुलाम, क्षुद्र और चांडाल का पंथ है । 

ऐसे #कुकर्म करने वाले चर्च के #पादरी हिंदुओं को प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन करवाते है जो खुद पतित है वो दूसरों को क्या सन्मार्ग पर लेकर जायेगे..??

इनके मार्ग ( #धर्मपरिवर्तन ) में जो आड़े आते है उनको मीडिया द्वारा बदनाम करवा दिया जाता है । जिससे समाज सच्चाई से अनभिज्ञ रहें । 

अतः #हिन्दू सावधान रहें विदेशी प्रभाव से चलने वाली #मीडिया से और #ईसाई_पादरियों से । अपने धर्म में मरना भी श्रेष्ठ है दूसरों का धर्म भयावह है ।


Thursday, February 16, 2017

ABP न्यूज के अधिकारी 45 करोड़ की रिश्वत लेते पकड़े गए रंगे हाथ..!!

ABP न्यूज के अधिकारी 45 करोड़ की रिश्वत लेते पकड़े गए रंगे हाथ..!!

आपने मीडिया में अक्सर देखा होगा कि दूसरों की खबरें खूब उत्तेजित होकर दिखायी जाती हैं मीडिया वाले द्वारा।
जैसे- एक बड़ी खबर आ रही है कि फलाना व्यक्ति इतने करोड़ रूपये लेते फंस गया यहाँ तक तो ठीक है लेकिन कोई हिन्दू कार्यकर्ता या हिन्दू साधु-संतों के ऊपर केवल कोई आरोप लग जाता है तो दिन-रात ब्रेकिंग न्यूज द्वारा वो खबरें हाईलाइट होती रहती हैं ।
ABP News officer caught red handed while accepting a bribe of 45 million 

अभी हाल ही में गुजरात की साध्वी जयश्रीगिरी के पास से केवल सवा करोड़ रूपये मिले होंगे तो सभी न्यूज चैनल ब्रेकिंग न्यूज द्वारा उसे दिन-रात दिखा रहे हैं लेकिन खुद मीडिया का ही एक बड़ा भांडा फोड़ हुआ है ।

हम आपको बता रहे हैं कि जो एक न्यूज चैनल खुद पैसा लेते पकड़ा गया है उस पर सभी मीडिया वालों ने चुप्पी क्यों साध ली है..??

क्योंकि एक मीडिया दूसरी मीडिया की पोल नही खोल सकती इसलिए..??

या दोनों मित्र ही चोर हो तो कौन किसकी पोल खोले इसलिए...??

ये तो केवल एक चैनल की पोल खुली है लेकिन ऐसे तो करीब सभी चैनल कितने पैसे लेते होंगे ईश्वर जाने!

 लेकिन अब जनता समझ गई है कि मीडिया जो खबरें दिखा रही है वो सभी खबरें सच नही होती, पैसे लेकर बनाई गई तथा तोड़-मरोड़ कर बनाई गई होती हैं ।

ABP न्यूज के अधिकारी पकड़ें गए रंगे हाथ..!!


बुधवार(15 फरवरी 2017) को एबीपी (ABP) न्यूज के कार्यकारी अधिकारी राजीव मलिक को 45 करोड़ रूपये के साथ गुड़गांव हाइवे पर गिरफ्तार कर लिया गया है । 

आपको बता दें कि एबीपी न्यूज के इस अधिकारी के पास पहले से तैयार की गई समाचार की कॉपिया भी मिली । 

गौरतलब है कि ये वो समाचार थे जो 2 महीने बाद चैनल पर दिखाए जाने थे और जिसके लिए इतनी बड़ी रकम दी गई थी ।


वैसे सूत्रों के अनुसार ये रकम उत्तर प्रदेश के चुनावों को प्रभावित करने के उद्देश्य से ही दी जा रही थी और इससे पहले भी 100 करोड़ और 64 करोड़ की राशि इस चैनल तक पहुंचाई जा चुकी थी ।
इसके इलावा समाचार लिखे जाने तक मामले की छान-बीन भी जारी थी ।

 यानि एबीपी न्यूज वाले जिन चुनावों को लेकर बड़ा मुद्दा बनाने वाले थे, अब वो खुद ही उस मुद्दे में फंस गए हैं ।  http://tadkanews.net/rishabh/abp-news-exposed/

इतने बड़े सच का खुलासा हुआ क्या आपको एक मिनट के लिए भी ऐसी कोई न्यूज किसी चैनल द्वारा देखने को मिली ?
 
अब बड़ी खबर या ब्रेकिंग न्यूज क्यों नही बनती है..??

ऐसे तो पहले भी कई सारे बुद्धिजीवी लोग खुलासा कर चुके हैं कि सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार मीडिया में व्याप्त है लेकिन मीडिया वालें खुद की बुराई छुपाने के लिए दूसरे के विरुद्ध बड़ी-बड़ी खबरें बनाकर  दिखाते रहते हैं ।

जैसा कि हमने पहले भी कई बार खुलासा किया है कि भारतीय मीडिया हाउस पर विदेशी लोगों का दबदबा है। लगभग सभी मीडिया के मालिक विदेशी हैं इसलिये अधिकतर मीडिया की खबरें हिंदुत्व विरोधी होती हैं ।

मीडिया में अगर आपकी छवि को अच्छा बनाना है या किसी के विरुद्ध कोई खबर बनानी है तो पैसा दो या तो विज्ञापन दो ।
जैसे उदाहरण के तौर पर बाबा रामदेव को ले लीजिये। उनके खिलाफ मीडिया ने खूब बोला लेकिन जैसे ही उन्होंने विज्ञापन देना शुरू किया तो उनके खिलाफ न्यूज आनी बंद हो गई ।
दूसरा उदाहरण बापू आसारामजी का ले लीजिये जिन्होंने मीडिया को बोला था कि मैं अपने पैसे गरीबों में लगावऊगाँ पर मीडिया को नही दूँगा तो उनके खिलाफ हम देख रहे हैं कि आज तक बनावटी न्यूज बन रही है अगर बापू आसारामजी भी पैसे या विज्ञापन दे देते हैं तो उनके खिलाफ न्यूज दिखाना बन्द कर देंगे । 

यह खुलासा डीडी न्यूज वालों द्वारा भी हुआ था कि अगर बापू आसारामजी पैसा या विज्ञापन देना शुरू करेंगे तो उनके खिलाफ न्यूज बन्द हो जायेगी ।

यहाँ हमने दो उदाहरण आपके समक्ष रखे हैं पर ऐसे तो अनगिणत हैं ।

आपने टीवी या अखबार में देखा होगा कि कोई हिन्दू संस्कृति की या देश बचाने की बात करता है तो उनके खिलाफ न्यूज दिखाना शुरू हो जाते हैं । विवादित बयान करके लोगों के मन में उनके खिलाफ  माहौल बनाते है लेकिन वहीं दूसरी ओर ओवैसी, आजमखान जैसे लोग देश-विरोधी या हिन्दू संस्कृति के खिलाफ बोलते हैं तब चुप्पी साध लेते हैं ।

अगर आप गौर करें तो जब भी किसी हिन्दू साधु-संत या साध्वी पर आरोप लगते हैं तो मीडिया में दिन-रात दिखाया जाता है लेकिन जब वो निर्दोष बाहर आते हैं तो कोई खबर नही दिखाई जाती ।
पर दूसरी ओर अगर कोई ईसाई पादरी या मौलवी को कोर्ट सजा भी कर दे तो भी एक मिनट की न्यूज नहीं बनती है।

 आप समझ ही गए होंगे कि मीडिया का उपयोग करके हिन्दू संस्कृति एवं देश को तोड़ने का प्लान कर रही हैं विदेशी ताकतें । राष्ट्रविरोधी ताकतें देश को तोड़ने के लिए बड़ी चालाकी से काम कर रही हैं

अतः हिंदुस्तानी सावधान रहें!
विदेशी ताकतों के इशारे पर नाचने वाली मीडिया का बहिष्कार करें ।

जय हिंद!!

Wednesday, February 15, 2017

14 फरवरी को विश्वभर में छाया रहा #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस !!

14 फरवरी को विश्वभर में छाया रहा #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस !!
आज जहाँ एक ओर वैलेंटाइन डे का प्रभाव अंधाधुन बढ़ता आ रहा है तथा इसके कुप्रभाव व दुष्परिणाम समाज के सामने प्रत्यक्ष हो रहे हैं ।
एड्स, नपुसंकता, दौर्बल्य, छोटी उम्र में ही गर्भाधान (Teenage Pregnency), ऑपरेशन आदि गुप्त बिमारियों का सामना समाज को करना पड़ रहा है ।

वहीं दूसरी ओर समाज में युवावर्ग का चारित्रिक पतन होते देख तथा देश भर में वृद्धाश्रमों की माँग बढ़ते देख हिन्दू संत बापू आसारामजी ने 2006 से एक अनूठी मुहिम की तरफ युवावर्ग को आकर्षित किया। जो है #14 फरवरी_मातृ_पितृ_पूजन_दिवस 
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जिसका देश- विदेश की सभी सम्मानीय एवं प्रतिष्ठित हस्तियों ने स्वागत किया। और देश-विदेश में पिछले 11 वर्षों से 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे की जगह #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस मनाना शुरू किया गया।

जब इस विषय को लेकर सोशल साइट पर देखा गया तो देखने को मिला कि बापू आसारामजी के अनुयायियों ने जनवरी से ही 14 फरवरी #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस निमित्त देश-विदेश में मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम शुरू कर दिया था ।

ऐसे ही लगातार 15 दिन से Twitter, Facebook, Instagram, google, Whatsapp आदि पर भी उनके भक्तगण बहुत सक्रिय थे । 

सोशल मीडिया से लेकर ग्राउंड लेवल तक बड़े जोरों से #ParentsWorshipDay मनाया जा रहा है ।

विश्व भर में अमेरिका, दुबई, सऊदी अरब, केनेडा, पाकिस्तान, बर्मा, नेपाल, इटली, लन्दन आदि कई देशों में स्कूल, कॉलेज, जाहिर स्थल, वृद्धाश्रम, समाज सेवी संस्थाओं, घर, परिवार, मोहल्ले आदि में जगह-जगह पर #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस मनाया गया ।


माता-पिता अपने बच्चों सहित अपने-अपने क्षेत्रों में जहाँ-जहाँ ये कार्यक्रम आयोजित किये गए वहाँ वहाँ बड़ी संख्या में पधारे और एक नये उत्साह, एक नए जीवन, नये संस्कारों, एक नयी दिव्य अनुभूति, और एक अनोखे हर्ष के साथ सबके मुखमंडल प्रफुल्लित हो उठे।

सच में जिन्होंने भी इसे मनाया, अपने माता-पिता की पूजा की, अपनी दिव्य संस्कृति को अपनाया उनके जीवन में कुछ नया देखने को जरूर मिला ।

कुछ पाश्चात्य संस्कृति (VALENTINE DAY) मनाने वाले मनचले लोग तर्क-कुतर्क करने लगे कि माता-पिता की पूजा एक ही दिन क्यों ?
उन्हें हमारा जवाब इस तरह का है कि क्या आपने अपने जीवन में दिल से कभी अपने माता-पिता की पूजा की भी या नहीं ? जरा ईमानदारी से अपने दिल पर हाथ रखकर तो कहना ।
और अगर सच्चे ह्रदय से माँ-बाप की पूजा होती तो क्या आप #वैलेंटाइन-डे के इस कचरे को अपनाते ??

आज के कल्चर में वैलेंटाइन डे मनाने वाले आगे जाकर लड़कियों के चक्कर में क्या-क्या कर बैठते हैं ये दुनिया जानती है । फिर समाज में और घर-परिवार में मुँह दिखाने लायक नहीं रहते । फिर या तो घर से भाग जाते हैं या तो आत्महत्या के विचार कर बैठते हैं और इसको अंजाम देते हैं ।

कुछ समय पूर्व ही कई अखबारों में पढ़ने को मिला कि जवान लड़के-लड़कियाँ नदी में कूदकर अथवा ट्रेन से कूदकर जान दे बैठे।

क्या यही है आज का
#VELANTINE_DAY....???

अनादिकाल से भारत के महान संत ही समाज की रक्षा करते आये हैं । समाज को संवारने का दैवीकार्य महान ब्रह्मवेत्ता तत्वज्ञ संतों द्वारा ही होता आया है ।

और जब-जब समाज कुकर्म और पाप की गहरी खाई में गर्क हो रहा होता है, अधर्म बढ़ रहा होता है तो किसी न किसी महापुरुष को परमात्मा (ईश्वर) धरती पर प्रकटाते हैं या स्वयं भगवान् धरती पर अवतार लेते हैं और इस दिशाहीन समाज को एक नयी दिशा देकर, समाज को सुसंस्कारित कर, समाज में धर्म की स्थापना करते हैं जैसा कि भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है।

 महापुरुषों की गाथा सुज्ञ समाज अनंत काल तक गाता रहता है । ऐसे ही कई #महापुरुष जैसे संत कबीर, गुरु नानक जी, संत तुलसीदास जी, संत लीलाशाह जी महाराज, संत तुकाराम जी, संत ज्ञानेश्वर जी, स्वामी विवेकानंद जी, स्वामी अखंडानन्द जी आदि महान सन्तों का यश आज भी जीवित है ।
करोड़ो-अरबों लोग धरती पर आते हैं यूँ ही चले जाते हैं लेकिन किसी का नाम सुना नहीं लेकिन संतों का नाम,आदर,पूजन व यश सभी के हृदयों में अंकित है ।

ऐसे ही संत आज इस धरा पर हैं लेकिन बहिर्मुख व कृतघ्न समाज को दिखता कहाँ है!
 कहाँ पहचान पाते हैं हम उन संतों को!!

गुरुनानक जैसे महान संतों को जेल डलवा दिया जाता है ।  दो बार तो गुरुनानक जी को भी जेल जाना पड़ा । संत कबीरजी जैसों को वेश्याओं द्वारा बदनाम करवाया जाता है । स्वामी नित्यानंद जी के ऊपर यौन शोषण का आरोप लगाया गया था । लेकिन उनकी पूजा आज भी होती है क्योंकि
"धर्म की जय और अधर्म का नाश" ये प्राकृतिक सिद्धांत है ।

आज समाज को एक अद्भुत प्यारा सा पर्व देकर हिन्दू संत आसारामजी बापू ने सभी के दिलों में राज किया है । सबको प्रेम दिया है । सभी को सन्मार्ग पर ले चलने का बड़ा महान कार्य किया है ।

कई समाज के बुद्धिजीवी तो संत आसारामजी बापू के प्रति आभार व्यक्त कर रहे हैं। लेकिन भारत में ही विदेशी षड़यंत्र द्वारा ( क्रिश्चयन मिशनरीज, विदेशी कंपनियों के मुआवजे से ) उन्हें जेल भिजवा दिया जाता है और समाज देखता रहता है ।

गौरतलब है कि संत आसारामजी बापू 40 महीनों से जेल में है लेकिन उनके करोड़ो भक्त अभी तक उनसे जुड़े हैं । 

क्या ये उन महान संत की निर्दोषता का प्रमाण नहीं..??

क्या किसी बलात्कारी के पीछे करोड़ों का जन-समूह हो सकता है..??

आज का मानव बिना चमत्कार के किसी को नमस्कार नहीं करता वहीं इनके करोड़ों अनुयायी आज भी इनके लिए पलकें बिछाये बैठे हैं ।

बिना सत्य के बल के कोई करोड़ों के जनसमूह को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकता इतना तो हर समझदार इंसान समझ सकता है ।

लेकिन कई मुर्ख लोग मीडिया की बातों में आकर अपने ही संतों पर लांछन लगाने से पीछे नहीं हटते..!!

अगर मीडिया इतनी ही निष्पक्ष है तो क्यों संत आसारामजी बापू द्वारा किये गए और किये जा रहे समाज सेवा के कार्यों को क्यों छुपा रही है ??


हर सिक्के के दो पहलू होते हैं मीडिया ने कहा बापू रेपिस्ट आपने मान लिया पर कभी आपने ये जानने का प्रयास किया कि उन पर आज तक एक भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ है । पर न्यायालय से उनको जमानत तक नही मिल पा रही है। न उनकी उम्र का लिहाज किया जा रहा है और न उनके द्वारा हुए और हो रहे समाज उत्थान के सेवाकार्यों को दृष्टिगोचर किया जा रहा है ।

 एक ओर 80 वर्षीय वरिष्ठ संत बापू आसारामजी को जमानत का भी अधिकार नहीं दूसरी ओर ऐसे ही कई केस हमारे सामने हैं जिनमें सबूत मिलने पर भी वो मजे से बाहर घूम रहे हैं ।
जैसे तरुण तेजपाल आदि आदि।

क्या न्याय पालिका की नजर में हिन्दू संत होना ही गुनाह है..??

क्योंकि यही एक गुनाह है जो संत आसारामजी बापू द्वारा हुआ है ।

#ShameOnSystem

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Tuesday, February 14, 2017

सोशल मीडिया पर लाखों लोगों का एक ही नारा विदेशी वेलेंटाइन डे नहीं चाहिए

ग्राउंड लेवल के साथ-साथ सोशल मीडिया में भी धूम मची #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस की..!!

14 फरवरी आने से पूर्व ही विदेशी कम्पनियां अपने प्रोडक्ट बेचने के लिए मीडिया आदि द्वारा वेलेंटाइन डे का खूब प्रचार करवाती है ।

लेकिन अब जनता चौकन्नी हो गई है, 14 फरवरी को लाखों-करोड़ो लोग वेलेंटाइन डे की जगह #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस मना रहे हैं और उन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर अपलोड भी कर रहे है ।
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इन सब को देखते हुए वर्ल्ड न्यूज बीबीसी ने भी कवरेज करके लिखा है कि वेलेंटाइन डे को हटाकर उसकी जगह #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस मनाने का प्रचार करने वाली साइटें युवकों को मानो संदेश दे रही हैं कि बेटा, गुलाब माताजी के पूज्य चरणों में अर्पित कर दो, गर्लफ्रेंड के चक्कर में न पड़ो क्योंकि 'महान राष्ट्र भारत की युवा पीढ़ी में वासना का जहर भरने की विदेशी साजिश है उससे सावधान रहे!'

ये सच है कि वेलेंटाइन डे भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है, ये भी सच है कि वेलेंटाइंस डे के पीछे बाजार की ताकत है ।

वेलेंटाइन डे का विरोध करने वाले लोग ये मानते हुए दिखते हैं कि भारत की सभी समस्याओं का समाधान हिंदू धर्म की जड़ों में छिपा है, भारत जब पूरी तरह हिंदू हो जाएगा तो फिर से महान हो जाएगा, इसके लिए सतयुग की तरफ देश को लौटाने के सभी प्रयास किए जाने चाहिए ।

वेलेंटाइन डे के मामले में बजरंग दल के बल को खास कामयाबी नहीं मिलती देख, सोशल मीडिया के इस दौर में वैकल्पिक सांस्कृतिक धारा बहाने वाले लोग एक सूत्र में जुड़े हुए हैं ।

यह आइडिया कारागृह में बंद संत आसारामजी बापू का है, उन्होंने #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस की पूरी विधि, मंत्र, पूजन सामग्री, आरती और महात्म्य सब बताया है । इस पर्व की शुरुआत संत आसारामजी बापू ने 2006 से की है ।

हिन्दू संत आसारामजी बापू का ये आइडिया दो साल पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को बहुत पसंद आया, उन्हें मालूम था कि उनके शिखर पुरुषों को भी पसंद आएगा, इस तरह #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस राज्य में सरकार प्रायोजित कार्यक्रम बन गया ।

बिना सबूत 40 महीने से संत आसारामजी बापू जेल में बंद है लेकिन #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस का आयोजन लगातार जारी है, अगर आप गूगल सर्च करें तो आपको संत आसारामजी बापू द्वारा प्रेरित #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस के समर्थन में बाबा रामदेव, राजनाथ सिंह, गोविंद, योगी आदित्यनाथ, रमण सिंह, राजस्थान सरकार के कई मंत्रियों के वीडियो मिल जाएंगे जो 14 फरवरी की इस नवजात परंपरा को उत्साहपूर्वक आगे बढ़ा रहे हैं । (बीबीसी - http://bbc.in/2kEL21y)

आज ट्वीटर पर भी एक टॉप में ट्रेंड चल रहा था #HappyParentsWorshipDay हैशटैग के साथ
जिसके द्वारा आज लोखों लोगों की ट्वीटस देखने को मिली।

आइए देखते हैं कुछ ट्विटर यूजर्स के विचार...

मातृ_पितृ_पूजन_दिवस (MPPD) के एक विशेष हैंडल द्वारा ट्वीट की गई है कि...
#Valentine Day के नाम पर युवापीढ़ी का पतन हो ऐसे दिन को त्याग,भारतवासी ऋषियों की संतान #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस मनाएं। #HappyParentsWorshipDay https://t.co/IcYZ07KCNn


दिनेशजी का कहना है कि..
वेलेंटाइन मनाना मतलब 1 दिन के लिए हिन्दू धर्म छोड़ना!
#HappyParentsWorshipDay ही मनाये।


ममता लिखती है कि हमें आसारामजी बापू के कहे अनुसार मनाना है 14 फरवरी को माता पिता पूजन दिवस ।

आशुतोष ने लिखा है कि संत आसारामजी बापू की पावन प्रेरणा से हम युवा #HappyParentsWorshipDay मनाकर भौतिकवादी मूल्यों से हट कर सामाजिक मूल्यों की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।

कोमल ने लिखा कि भारत का भविष्य उज्ज्वल करना है, मातृ-पितृ-पूजन दिवस धूमधाम से मनाना है !


दीपक गंभीर लिखते हैं कि भौतिकवादी मूल्यों से हटकर सामाजिक मूल्यों की ओर बढ़ते कदम #HappyParentsWorshipDay
Asaram Bapu Ji की पावन प्रेरणा को विश्वस्तर पर अपनाया गया। 

नीलेश मकवाना का कहना है कि प्रेम-दिवस जरूर मनायें लेकिन प्रेम-दिवस से संयम व सच्चा विकास हो, जो माता-पिता के आदर से ही संभव है #HappyParentsWorshipDay



इस तरह से भारत के साथ-साथ विदेश से भी हजारों लोग बापू आसारामजी द्वारा प्रेरित #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस का समर्थन कर रहे थे ।

आओ हम भी अपनी संस्कृति अपनाएं ।
इस बार वैलेंटाइन डे नहीं #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस मनाएं ।

Monday, February 13, 2017

आखिर क्यों कई देश ‘वेलेंटाइन डे’ पर प्रतिबन्ध लगा रहे हैं..??

🚩आखिर क्यों कई देश ‘वेलेंटाइन डे’ पर प्रतिबन्ध लगा रहे हैं..??

🚩आज समाज में प्रेम-दिवस ( #वेलेन्टाइन डे) के नाम पर जो विनाशकारी कामविकार का विकास हो रहा है, वो आगे चलकर चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन, खोखलापन, बुढ़ापा और जल्द मौत लाने वाला साबित होगा।

🚩वर्तमान में भारत में भी पाश्चात्य कल्चर का #अंधानुकरण करनेवाले लोग वेलेंटाइन डे को पूरे एक #सप्ताह तक मनाने लगे हैं ।

🚩वेलेंटाइन डे जैसी कुप्रथाओं की ही वजह से आज भारत जैसे आध्यात्मिक देश में भी कई लोग #निर्लज्जता, #अश्लीलता, #स्वच्छंदता को #फैशन मानने लगे हैं ।
Why-Many-countries-are-banning-Valentines-Day

🚩वेलेंटाइन डे नाम की यह #दुराचार की महामारी प्रतिवर्ष तेजी से बढ़ती जा रही है । इसके पीछे एक बड़ा कारण है इसका बाजारीकरण ।
🚩‘#वाणिज्य एवं #उद्योग मंडल’ के एक #सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2015 में वेलेंटाइन डे से जुड़े सप्ताह के दौरान #फूल, #चॉकलेट आदि विभिन्न उपहारों की बिक्री का कारोबार करीब 22,000 करोड़ रुपये तक पहुँच जाने का अनुमान था ।'

🚩वर्ष 2013 एवं 2014 में क्रमशः 15,000व 16,000 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ ।

🚩वस्तुतः वेलेंटाइन डे बाजारीकरण और पाशविक वासनापूर्ति को बढ़ावा देनेवाला दिन है । स्वार्थी तत्त्वों द्वारा इसे बढ़ावा देकर बाल व युवा पीढ़ी को तबाही की ओर धकेला जा रहा है ।

🚩फूल, चॉकलेट और उपहारों के अलावा गर्भ-निरोधक साधन और दवाइयाँ ब्ल्यू फिल्म एवं अश्लील पुस्तकें यानि पॉर्नोग्राफी, उत्तेजक पॉप म्यूजिक, वायग्रा जैसी कामोत्तेजक दवाइयाँ तथा एड्स जैसे यौन-संक्रमित रोगों की दवाइयाँ बनानेवाली विदेशी कम्पनियाँ अपने आर्थिक लाभ हेतु समाज को चरित्रभ्रष्ट करने के लिए करोड़ों-अरबों रुपये खर्च कर रही हैं, जिनके शिकार सम्पूर्ण विश्व के लोग हो रहे हैं ।

🚩वेलेंटाइन डे के द्वारा वे बाल व युवा पीढ़ी के नैतिक, चारित्रिक एवं #सांस्कृतिक मूल्यों को नष्ट करके धन कमाना चाहती हैं ।

🚩वेलेंटाइन डे का दुष्प्रभाव देखते हुए
13 फरवरी 2017 को पाकिस्तान की इस्लामाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शौकत अजीज नेे एक केस की सुनवाई के दौरान यह फैसला लिया है कि देश में वैलेंटाइन डे नहीं मनाया जाएगा। इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि कोई भी प्रिंट या इलेक्ट्रोनिक मीडिया वैलेंटाइन डे का प्रचार नहीं करेगा।

🚩एक रिपोर्ट के अनुसार कई विकसित देश #यौन रोगियों, अविवाहित #गर्भवती #किशोरियों, #वृद्धाश्रमों तथा बेघर कर दिये गये वृद्ध मात-पिताओं की बढ़ती संख्या जैसी समस्याओं से ग्रसे जा रहे हैं #अमेरिका में तो #किशोर- #किशोरियों में यौन उच्छृंखलता के चलते प्रतिवर्ष लगभग 6 लाख किशोरियाँ गर्भवती हो जाती हैं ।

🚩वर्ष 2013 में #अमेरिका में 15 से 19 साल की किशोरियों ने 2,73,000 शिशुओं को जन्म दिया । अब यह गन्दगी भारत में भी तेजी से फैल रही है।

🚩कैलिफोर्निया (अमेरिका) के ‘सुसाइड प्रिवेन्शन सर्विस ऑफ द सेंट्रल कोस्ट’ की डायरेक्टर डायैन ब्राइस पिछले 23 सालों से एक ट्रेंड की साक्षी रही हैं, जिसमें वे बताती हैं कि ‘#वेलेंटाइन डे सबसे अधिक आत्महत्याओं की दर वाले समय की शुरुआत अंकित करता है ।’ 

🚩वेलेंटाइन डे की आड़ में #प्यार के झाँसे में फँसाकर धोखाधड़ी करनेवालों का कारोबार भी जोरों पर रहता है । #लंदन पुलिस (यू.के.) की ‘#नैश्नल फ्रौड इन्टेलिजेंस ब्यूरो’ के आँकड़े बताते हैं कि ‘वर्ष 2014 में #ब्रिटिश जनता ने अपने करीब 34 मिलियन पाउंड प्यार के नाम पर ठगी करनेवालों पर खो दिये ।’ यह #आँकड़ा 2013 के मुकाबले 33% और बढ़ा हुआ है । इस ‘रोमांस घोटाले’ के शिकार हुए लोगों में से आधे से ज्यादा के जीवन में भौतिक और वित्तीय कुशलता को लेकर गम्भीर भावनात्मक असर पड़ा है ।

🚩इन सबको देखते हुए #अमेरिका के 33% #स्कूलों में यौन शिक्षा के अंतर्गत 'केवल संयम' की शिक्षा दी जाती है। इसके लिए अमेरिका ने 40 करोड़ से अधिक डॉलर (20 अरब रूपये) खर्च किये हैं।

🚩थाईलैंड की रिपोर्ट अनुसार 15 से 19 साल की लड़कियां 1हजार में से 50 लड़कियां मां बन जाती हैं।
और 10 से 19 साल के युवाओं में यौन संबंधी रोग पांच गुना तक बढ़ गए हैं। थाईलैंड में करीब चार लाख 50 हजार लोग HIV रोग से पीड़ित हैं ।

🚩जापान में युवाओं को वेलेंटाइन डे से दूर रहने की सलाह दी गयी है तथा #दक्षिण-पूर्वी एशिया क्षेत्र में सबसे ज्यादा टीनेज #प्रेग्नेंसी वाले देश थाईलैंड में प्रशासन द्वारा एड्स और टीनेज प्रेग्नेंसी को रोकने के लिए युवाओं को 14फरवरी को #मंदिरों में जाने की सलाह दी गयी ।

🚩विश्व के कई देशों ने अपनी युवा पीढ़ी को वेलेंटाइन डे की गंदगी से बचाने के लिए कठोर कदम उठाये हैं । 

🚩गत वर्षों में #मलेशिया, #ईरान, #सउदी अरब, #इंडोनेशिया, रूस के बेल्गोरोद राज्य आदि में वेलेंटाइन डे पर प्रतिबंध लगाया गया था ।

🚩भारत में अपनी #संस्कृति से विमुख होकर पाश्चत्य सभ्यता का अंधानुकरण करके #चरित्रहीन होती अपनी युवापीढ़ी को देख हिन्दू संत बापू आसारामजी ने 2006 से 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन का विश्वव्यापी अभियान चलाया, जो #विश्वभर में अत्यधिक लोकप्रिय और कारागर साबित हुआ। बापूजी के करोड़ो अनुयायी देश भर में 14 फरवरी निमित्त जगह-जगह पर मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाकर अपनी संस्कृति की गरिमा से विश्वमानव को परिचित करा रहे हैं ।


🚩इसके लिए वे लोग बीच बीच में अलग-अलग हैशटैग द्वारा टॉप #ट्रेंड बना रहे है  आज भी ट्विटर पर उनका ट्रेंड चल रहा है इस हैशटैग के साथ। #Tomorrow_ParentsWorshipDay

🚩गौरतलब है कि संत #आशारामजी बापू की यह पहल सोशल मीडिया और आम जनता में बहुचर्चित है । सोशल मीडिया की गतिविधियाँ देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बापू के जेल जाने के बाद माता-पिता पूजन की इस पहल की लोकप्रियता और भी बढ़ गयी है ।

🚩उदाहरणत: बापूजी की गिरफ्तारी के ही कुछ महीनों बाद बीबीसी वर्ल्ड ने इस विषय पर ट्विटर हैश टैग छेड़ा और प्रमोशनल विडियो रिलीज किया था ।
वर्ष 2015 में भी इस पर्व का उल्लेख बीबीसी की वेबसाइट पर मिलता है ।

🚩अन्य अनेक क्षेत्रिय एवं राष्ट्रीय टीवी, अखबारों  में बड़े स्तर पर स्कूलों और सार्वजनिक स्थलों पर इस कार्यक्रम के आयोजन की खबरें भी देखने, पढ़ने में आयी हैं ।

🚩14 फरवरी के दिन देश-विदेश के बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता को तिलक करें, पुष्पों की माला पहनाएं। प्रणाम करें, प्रदीक्षणा करें, आरती करें एवं मिठाई खिलाएं तथा माता-पिता अपनी संतानों को प्रेम करें। संतान अपने माता-पिता के गले लगे। इससे वास्तविक प्रेम का विकास होगा। 

🚩भारतवासी सावधान हो और वैलेंटाइन डे जैसी कुरीति से अपने को बचाते हुए अपनी पवित्र संस्कृति का अनुसरण करते हुए माता-पिता की पूजा कर उनका शुभ आशीष पाकर अपना जीवन धन्य करें।


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