Monday, March 13, 2017

वर्ल्ड रिपोर्ट : भरोसा न करने लायक मीडिया की सूची में भारत दूसरे नंबर पर

वर्ल्ड रिपोर्ट : भरोसा न करने लायक मीडिया की सूची में भारत दूसरे नंबर पर

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ( World Economic Forum ) ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत को भरोसा न करने लायक मीडिया की सूची में दूसरे नंबर पर रखा है । इस सूची में पहले नंबर पर ऑस्ट्रेलिया की मीडिया है ।

World Report: India second in the list of unreliable media

एडेलमैन कम्युनिकेशन समूह पिछले 20 साल से लगातार यह पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि सरकार, मीडिया, एनजीओ व व्यवसाय में लोगों का कितना भरोसा है। इस सर्वेक्षण के लिए 28 देशों में 33 हजार लोगों की राय ली गई।

इस साल लेटेस्ट सर्वे के मुताबिक चौकाने वाले नतीजे सामने आये है । न केवल मीडिया के मामले में बल्कि सरकार, एनजीओ व व्यवसाय के मामले में भी आम लोगों का भरोसा टूटा है। 

लोगो का विश्वास इन व्यवसायों पर अब कम होता जा रहा है । इस साल के नतीजे बाकि सभी सालों से कम है। बड़े बड़े कंपनियों के चीफ ,जॉर्नलिस्टों की
विश्वसनीयता लोगों में कम होती जा रही है ।

उदाहरण के तौर पर लोगों को 37% Davos संस्था के प्रतिनिधियों पर विश्वास है जोकि पिछले सालों से 12 पॉइंट कम है।
कंपनी चीफों की विश्वनीयता हर देश में कम हुई है परन्तु सरकारी नेताओं के प्रति लोगों की उम्मीद उनसे ओर भी कम है सिर्फ  29% का मानना कि वह उनपर भरोसा करते हैं ।

मीडिया व्यवसाय की बात करें तो 43% लोगों का मानना है कि वह उन पर भरोसा करते हैं जो 5% पिछले सालों से कम हैं । मीडिया को 28 में से 17 देशों के लोगों ने पिछले सालों से सबसे कम वोट दिए गए हैं । भ्रष्ट मीडिया के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है।

हाल ही के दिनों में भारतीय मीडिया और इसकी झूठी रिपोर्टिंग के तरीकों पर लगातार सवाल उठाए जाते रहे हैं।

सोशल मीडिया पर आम लोग सक्रिय हो रहे हैं और मुख्यधारा की पत्रकारिता को इसके तरीकों को लेकर कठघरे में खड़ा करते आ रहे हैं।

अब जनता का नेताओं पर भी भरोसा टूटता जा रहा है, चुनाव के समय जनता को घर-घर जाकर मिलते हैं, बड़े-बड़े वादे करते हैं और जनता अपना काम, धंधा बन्द करके लाइन में खड़ी होकर वोट देती है लेकिन जैसे ही चुनाव जीत जाते हैं तो न जनता की सुनते हैं और न ही वादे पूरे करते हैं इस वजह से भी जनता का नेताओं से भरोसा उठ रहा है ।


मीडिया की बात करें तो आज सोशल मीडिया का जमाना है इसलिए इलोक्ट्रिनिक मीडिया या प्रिंट मीडिया कोई गलत रिपोटिंग करती है तो वहाँ की स्थानीय सच्चाई भरा रिपोर्ट सोशल मीडिया पर पब्लिक कर देती है उसके बाद देश, दुनिया में फैल जाता है जिससे जनता को सच्चाई का पता चल जाता है ।

ऐसे कई उदाहरण है जिसमे मीडिया ने पैसे और टीआरपी के लालच में गलत रिपोटिंग किया है इसमें भी खासकर हिंदुत्व की बात करें तो भारत की मीडिया हमेशा ही उनके खिलाफ ही दिखाती है ।

अभी कुछ समय रोहित वेमुला की आत्महत्या की बात करे तो उसके मुद्दे को मीडिया ने खूब उछाला की दलित था लेकिन जब रिपोर्ट आया तो रोहित वेमुला दलित नही था ।

तरुण तेजपाल ने भी कई खबरें छुपाई थी उसका भी जी न्यूज में खुलासा हुआ था ।

ऐसे ही हिन्दू साधु-संतों के बारे में बोले तो जैसे ही उनपर आरोप लगते हैं ,कार्ट में मामला चलने से पहले ही मीडिया उन्हें दोषी ठहरा देती है ।जैसी कि जयेंद्र सरस्वती, नित्यानंद स्वामी, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, स्वामी असीमानंद के ऊपर आरोप लगे थे तब दिन-रात मीडिया ने बढ़ा चढ़ा कर उनको बदनाम किया लेकिन जैसे ही वो निर्दोष बरी हुए तो एक मिनट की भी न्यूज नही दिखायी ।

ऐसे ही अभी का एक ताजा मामला सामने आया है संत आसारामजी बापू का जिस पर भरपूर मीडिया ट्रायल चल रहा है उनके खिलाफ 2008 में तांत्रिक विधि करने का आरोप लगाकर दिन रात मीडिया ने उन्हें बदनाम किया लेकिन जैसे ही उनको सुप्रीम कोर्ट ने क्लीनचिट दी तो कुछ नही दिखाया ।

अभी कुछ समय पहले ही उनके खिलाफ दैनिक भास्कर ने न्यूज छापा थी कि दिल्ली एम्स में मेडिकल चेकप कराते समय संत आसारामजी बापू नर्स को बोले कि तेरे गाल मक्खन जैसे हैं लेकिन बाद में एम्स ने लेटर पेड जारी किया कि संत आसारामजी बापू के चेकअप में कोई नर्स थी ही नहीं  और न ही उन्होंने ऐसा कोई शब्द बोला है ।
डॉ सुब्रमण्यम स्वामी भी बोले थे कि सबसे बड़ा भ्रष्टाचार मीडिया में है और भी कई हस्तियों ने 
मीडिया की गलत रिपोटिंग के खिलाफ आवाज उठाई है ।

कुछ समय पहले इण्डिया टीवी ने टेलीविजन रेटिंग पॉइंट में छेड़-छाड़ करके नंबर टॉप में आ गई जैसे ही उनके अधिकरियों को पता चला तो दो महीने के लिए टेलीविजन रेटिंग पॉइंट से बाहर कर दिया था ।

मीडिया टीआरपी और पैसे की लालच में अंधाधुंध खबरें छापते हैं। हर गांव में हर मौहल्ले में दिन भर में कुछ न कुछ तो खबर होती है लेकिन उसको नही दिखाते ,उनको जिस खबर का पैसा मिलता हो या टीआरपी मिलती हो उसी खबर को ही छापते और दिखाते हैं ।

अतः आप भी आँखें बंद करके इलेक्ट्रॉनिक या प्रिंट मीडिया पर भरोसा करते हो तो सावधान हो जाये!!
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Sunday, March 12, 2017

लोगों ने वैदिक होली के लिए भारी उत्साह सोशल मीडिया छाया

ट्वीटर पर टॉप में चला ट्रेंड, 
यूजर का कहना वैदिक होली ही खेलें...

होली का त्यौहार भारत के साथ कई अन्य देशों में भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। #होली की लोकप्रियता का विकसित होता हुआ अंतर्राष्ट्रीय रूप भी आकार लेने लगा है। 

होली रंगों का त्यौहार है, हँसी-खुशी का #त्यौहार है, लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते हैं । प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक संगीत की जगह फिल्मी गानों का प्रच इस आलनधुनिक रूप से होली खेलना बहुत नुकसान करता है ।
AzaadBharat - #HappyVedicHoli

होली पर बजाए जाने वाले ढोल, मंजीरें, फाग, धमार, चैती, ठुमरी आदि #वैदिक गानों से ही करनी चाहिए ।

रासायनिक रंगों के कुप्रभावों की जानकारी होने के बाद बहुत से लोग स्वयं ही #प्राकृतिक रंगों की ओर लौट रहे हैं। चंदन, गुलाबजल, टेसू (पलाश) के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा को बनाए हुए हैं ।

आज #HappyVedicHoli हैशटैग टॉप में ट्रेंड कर रहा था उसमें यूजर क्या ट्वीट कर रहे थे आईये जाने..

1- कृष्णा ने लिखा है कि केमिकल रंगों से होली खेलने से अनेक हानियाँ होती है ! अपनाये #पलाश के #रंगो द्वारा खेली जाने वाली सनातन #HappyVedicHoli

2 - सुयश ने लिखा कि इन दिनों में पलाश/केसुडे/गेंदे के फूलों के रंग से #होली खेलने से शरीर के 7 धातु संतुलन में रहते हैं ।

3 - जेनी ने लिखा कि पावन पर्व पर जहरीले रासायनिक रंगों से अपने स्वास्थ्य पर कुठाराघात न करें, बल्कि #प्राकृतिक रंगों से होली खेलें ।

4- प्रवीण ने लिखा कि जब कोमल त्वचा पर रासायनिक रंग लगाये जायेगें तो कैन्सर आदि का खतरा बढेगा। #इसलिए प्राकृतिक रंगों से होली खेलनी चाहिए ।

5 - गार्गी ने लिखा कि #संत #आसारामजी #बापू ने कहा है कि केमिकल रंगों से अपने शरीर को बचाएं और प्राकृतिक पलाश के रंगों को अपनाएँ। https://twitter.com/gargi088/status/840781714943180800

6 - मोतीराम ने लिखा कि #भारत के लोगों का अनुकरण विश्व करे, ऐसा परम्परागत त्यौहार है #वैदिक होली।

इस तरीके से हजारों यूजर बोल रहे थे कि हमको #आसारामजी #बापू ने बताया है कि केमिकल रंगों से घातक बीमारियाँ होती है और #पलाश आदि प्राकृतिक रूप से होली खलने से निरोगता, शांति बढ़ती है ।

#स्वास्थ्यप्रदायक #होली
रासायनिक रंगों का तन-मन पर बड़ा दुष्प्रभाव होता है । काले रंग में लेड ऑक्साइड पड़ता है, वह किडनी को खराब करता है । लाल रंग में कॉपर सल्फेट पड़ता है, वह कैंसर की बीमारी देता है । बैंगनी रंग से दमा और एलर्जी की बीमारी होती है । सभी रासायनिक रंगों में कोई-न-कोई खतरनाक बीमारी को जन्म देने का दुष्प्रभाव है । 

लेकिन पलाश की अपनी एक #सात्त्विकता है । #पलाश के फूलों का रंग रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है । #गर्मी को पचाने की, सप्तरंगों व सप्तधातुओं को संतुलित करने की क्षमता पलाश में है । पलाश के फूलों से जो होली खेली जाती है, उसमें पानी की बचत भी होती है । रासायनिक रंगों को मिटाने के लिए कई बाल्टियाँ पानी लगता है । सूखा रंग, काला रंग या सिल्वर रंग लगायें तो उसको हटाने के लिए साबुन और पानी बहुत लगता है लेकिन पलाश के फूलों के रंग के लिए न कई बाल्टियाँ पानी लगता है न कई गिलास पानी लगता है । और #पलाश वृक्ष की गुणवत्ता सर्वोपरि है । पित्त और वायु मिलकर हृदयाघात (हार्ट-अटैक) का कारण बनता है लेकिन जिस पर पलाश के फूलों का रंग छिड़क देते हैं उसका पित्त शांत हो जाता है तो हार्ट-अटैक कहाँ से आयेगा ? वायुसंबंधी 80 प्रकार की बीमारियों को भगाने की शक्ति इस पलाश के रंग में है ।

रासायनिक रंगो के नुकसान और प्राकृतिक रंग कैसे बनाये लिंक पर क्लिक करके देखे

होली पर नाचना, कूदना-फाँदना चाहिए जिससे जमे हुए कफ की छोटी-मोटी गाँठें भी पिघल जायें और वे ट्यूमर कैंसर का रूप न ले और कोई दिमाग या कमर का ट्यूमर भी न हो । तुम्हारे शरीर में जो कुछ अस्त-व्यस्तता है, वह गर्मी से तथा नाचने, कूदने-फाँदने से ठीक हो जाती है । 

पलाश के फूलों का रंग एक-दूसरे पर छिड़क के अपने चित्त को आनंदित व उल्लसित करना । 

#धुलेंडी के दिन पहले से ही शरीर पर नारियल या सरसों का तेल अच्छी प्रकार लगा लेना चाहिए, जिससे यदि कोई त्वचा पर रासायनिक रंग डाले तो उसका दुष्प्रभाव न पड़े और वह आसानी से छूट जाय। (स्त्रोत : ऋषि प्रसाद )

Saturday, March 11, 2017

जानिए होली का प्राचीन इतिहास, साल भर स्वथ्य रहने के लिए क्या करना चाहिए?

जानिए होली का प्राचीन इतिहास, साल भर स्वथ्य रहने के लिए क्या करना चाहिए?

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। #होली #भारत का अत्यंत प्राचीन #पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता है । वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव भी कहा गया है।

वैदिक, प्राचीन एवं विश्वप्रिय उत्सव
यह होलिकोत्सव प्राकृतिक, प्राचीन व वैदिक उत्सव है । साथ ही यह आरोग्य, आनंद और आह्लाद प्रदायक उत्सव भी है, जो प्राणिमात्र के राग-द्वेष मिटाकर, दूरी मिटाकर हमें संदेश देता है कि हो... ली... अर्थात् जो हो गया सो हो गया ।
History of Holi & What to do to stay healthy throughout the year?

यह वैदिक उत्सव है । #लाखों वर्ष पहले भगवान रामजी हो गये । उनसे पहले उनके पिता, पितामह, पितामह के पितामह दिलीप राजा और उनके बाद रघु राजा... रघु राजा के राज्य में भी यह महोत्सव मनाया जाता था । 


होली का प्राचीन इतिहास...
प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज #हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके भगवान ब्रह्माजीसे वरदान पा लिया कि, संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके । न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर । यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए ।

ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा । हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ । #प्रहलाद #भगवान #विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी ।

हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को आदेश दिया कि, वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे । प्रहलाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने का निश्चय किया । उसने प्रहलाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन प्रभु-कृपा से वह बचता रहा ।

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था । हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई ।

होलिका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से आग में जा बैठी । लेकिन परिणाम उल्टा ही हुआ । होलिका ही अग्नि में जलकर वहीं भस्म हो गई और भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया ।

तभी से #होली का #त्यौहार मनाया जाने लगा ।
तत्पश्चात् हिरण्यकश्यप को मारने के लिए #भगवान विष्णु #नरसिंह अवतार में खंभे से प्रगटे और गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला ।

होली पर #गौशालाओं को बनायें स्वावलंबी...

होली को लकड़ी से जलाने पर कार्बनडायोक्साईड निकलता है जो वातावरण को अशुद्ध करता है और जनता का स्वास्थ्य खराब होता है लेकिन #गाय के #कंडे जलाने पर ऑक्सीजन निकलता है जो वातावरण में शुद्धि लाता है जिससे व्यक्ति स्वस्थ रहता है ।
#वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के एक कंडे में 2 बूंद गाय का घी डालकर धुंआ करे तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।

गाय के कंडे से #होली जलाने से वातावरण की शुद्धि होगी, जनता का स्वास्थ्य सुधरेगा, साथ-साथ में गाय माता और कंडे बनाने वाले गरीबों का भी पालन-पोषण होगा इसलिए आप अपने गांव शहरों में होली गाय के कंडे से ही जलाए ।


पूरे साल स्वस्थ्य रहने के लिए क्या करें होली पर..??

1- होली के बाद 20-25 दिन तक बिना नमक का अथवा कम नमकवाला भोजन करना #स्वास्थ्य के लिए हितकारी है ।

2- इन दिनों में भुने हुए चने - ‘होला का सेवन शरीर से वात, कफ आदि दोषों का शमन करता है ।

3- एक महीना इन दिनों सुबह #नीम के 20-25 कोमल पत्ते और एक काली मिर्च चबा के खाने से व्यक्ति वर्षभर निरोग रहता है ।

4- होली के दिन चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य हुआ था । इन दिनों में #हरिनाम कीर्तन करना-कराना चाहिए । नाचना, कूदना-फाँदना चाहिए जिससे जमे हुए कफ की छोटी-मोटी गाँठें भी पिघल जायें और वे ट्यूमर कैंसर का रूप न ले पाएं और कोई दिमाग या कमर का ट्यूमर भी न हो । होली पर नाचने, कूदने-फाँदने से मनुष्य स्वस्थ रहता है ।

5 - लट्ठी-खेंच कार्यक्रम करना चाहिए, यह #बलवर्धक है । 

6 - होली जले उसकी #गर्मी का भी थोड़ा फायदा लेना, लावा का फायदा लेना ।

7 - मंत्र सिद्धि के लिए #होली की रात्रि को (इसबार 12 मार्च की रात्रि को) भगवान नाम का जप अवश्य करें ।

8- #पलाश के फूलों का #रंग एक-दूसरे पर छिड़क के अपने चित्त को आनंदित व उल्लासित करना । सभी रासायनिक रंगों में कोई-न-कोई खतरनाक बीमारी को जन्म देने का दुष्प्रभाव है । लेकिन पलाश की अपनी एक सात्त्विकता है । #पलाश के फूलों का रंग रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है । गर्मी को पचाने की, सप्तरंगों व सप्तधातुओं को संतुलित करने की क्षमता पलाश में है । पलाश के फूलों से जो होली खेली जाती है, उसमें पानी की बचत भी होती है ।

पलाश के रंग नही मिले तो अपने घर पर भी प्राकृतिक रंग बना सकते है नीचे लिंक पर देखें




हमारे ऋषि-मुनियों ने विविध त्यौहारों द्वारा ऐसी सुंदर व्यवस्था की जिससे हमारे जीवन में आनंद व उत्साह बना रहे ।

Friday, March 10, 2017

रासायनिक नहीं, प्राकृतिक रंगों से खेलें होली

रासायनिक नहीं, प्राकृतिक रंगों से खेलें होली...
आइये जानते हैं कैसे बनायें #प्राकृतिक #रंग?

#होली का त्यौहार पूरे देश में बड़े #उत्साह से मनाया जाता है। यह पर्व मूल में बड़ा ही स्वास्थ्यप्रद एवं मन की प्रसन्नता बढ़ाने वाला है लेकिन दुःख के साथ कहना पड़ता है कि इस पवित्र उत्सव में नशा, वीभत्स गालियाँ और केमिकल युक्त रंगों का प्रयोग करके कुछ लोगों ने ऋषियों की हितभावना,समाज की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और प्राकृतिक उन्नति की भावनाओं का लाभ लेने से समाज को वंचित कर दिया है।
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#प्राकृतिक रंगों से होली खेले बिना जो लोग ग्रीष्म ऋतु बिताते हैं,उन्हें गर्मीजन्य उत्तेजना, चिड़चिड़ापन, खिन्नता, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन), तनाव, अनिद्रा इत्यादि तकलीफों का सामना करना पड़ता है ।

प्राकृतिक रंग कैसे बनायें ?

1- केसरिया रंग : #पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें । सुबह इस #केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर, उसे ठंडा करके #होली का आनंद उठायें । 

लाल रंग : #पान पर लगाया जानेवाला एक चुटकी चूना और दो चम्मच हल्दी को आधा प्याला पानी में मिला लें । कम-से-कम 10 लीटर पानी में घोलने के बाद ही उपयोग करें ।

सूखा पीला रंग : 4 चम्मच बेसन में 2 चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें । सुगंधयुक्त कस्तूरी #हल्दी का भी उपयोग किया जा सकता है और बेसन की जगह गेहूँ का आटा, चावल का आटा, आरारोट का चूर्ण, मुलतानी मिट्टी आदि उपयोग में ले सकते हैं ।

https://youtu.be/DMVf3mo2Frs


गीला पीला रंग : (1) एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़नेवाले रंग जो खाने के काम में आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं। (2) अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी में भिगोकर रखें, सुबह उबालें।

रासायनिक रंगों से होने वाली हानि...

1 - काले #रंग
में लेड ऑक्साइड
पड़ता है जो
गुर्दे की बीमारी, दिमाग की कमजोरी
करता है ।

2 - हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है जो आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व
लाता है ।

3 - सिल्वर रंग में #एल्यूमीनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर करता है ।

4- नीले रंग में प्रूशियन ब्ल (कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस) से भयंकर #त्वचारोग
होता है ।

5 - लाल रंग जिसमें मरक्युरी सल्फाइड
होता है जिससे त्वचा का #कैंसर होता है ।

6- बैंगनी रंग में  क्रोमियम आयोडाइड
 होता है जिससे दमा, #एलर्जी
होती है । (यह लेख #संत #आसारामजी आश्रम से प्रकाशित ऋषि प्रसाद से लिया गया है)

त्वचा विशेषज्ञ #डॉ. आनंद कृष्णा कहते हैं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सारा साल हम जो त्वचा और बालों का ध्यान रखते हैं वह होली के अवसर पर भूल जाते हैं और केमिकल रंगों से इनको भारी नुकसान पहुँचाते हैं । 


मीडिया सूखे रंगों से होली खेलने की सलाह देती है लेकिन सूखे #केमिकल #रंगों से होली खेलने की सलाह देनेवाले लोग वस्तुस्थिति से अनभिज्ञ हैं । क्योंकि #डॉक्टरों का कहना है कि सूखे रासायनिक रंगों से होली खेलने से शुष्कता, एलर्जी एवं #रोमकूपों में #रसायन अधिक समय तक पड़े रहने से भयंकर त्वचा रोगों का सामना करना पड़ता है ।

दैनिक भास्कर की तो मुर्खानी की हद हो गई जो कई दिनों से केवल तिलक होली खेलेने का प्रचलन कर रहा है । 

लेकिन भास्कर को पता नही है कि जिन #ऋषि मुनियों ने #होली #त्यौहार बनाया है वो हमारे उत्तम स्वास्थ्य और शरीर में छुपे हुए रोगों को मिटाने के लिए बनाया है ।

केमिकल रंगों से होली खेलने के बाद भी बहुत अधिक पानी खर्च करना पडता है । एक-दो बार खूब पानी से नहाना पड़ता है क्योंकि रासायनिक रंग जल्दी नहीं धुलते । प्राकृतिक रंग जल्दी ही धुल जाते हैं ।

प्राकृतिक रंगो से होली खेलने से पानी की अधिक खपत का प्रलाप करने वाली #मीडिया को #शराब, #कोल्डड्रिंक्स, #गौहत्या के लिए हररोज बरबाद किया जा रहा #करोड़ों #लीटर पानी क्यों नही दिखता...???

महाराष्ट्र के नेता विनोद तावडे ने सबूतों के साथ पानी के आँकड़े पेश किये जिसमें #शराब बनाने वाली #कम्पनियां #अरबो लीटर #पानी की #बर्बादी करती हैं ।

‘डीएनए न्यूज’ की रिपोर्ट के अनुसार 1 लीटर कोल्डड्रिंक बनाने में 55 लीटर पानी बरबाद होता है ।

कत्लखाने में 1 किलो #गोमांस के लिए #15,000 लीटर पानी बरबाद होता है । #कोल्डड्रिंक्स और शराब के कारखानों में मशीनरी और बोतलें धोने में तथा बनाने की प्रक्रिया में #करोड़ों लीटर पानी बरबाद होता है ।

बड़े-बड़े #होटलों में आलीशान #स्विमिंग टैंक्स के लिए लाखों लीटर पानी की सप्लाई बेहिचक की जाती है।

हकीकत यह होते हुए भी मीडिया द्वारा कभी इसका विरोध नही किया गया ।

'प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ के अनुसार #रासायनिक रंगों से होली खेलना अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना है ।

डॉ. #फ्रांसिन पिंटो के अनुसार रासायनिक रंगों से होली खेलने के बाद उन्हें धोने के लिए प्रति व्यक्ति 35 से 500 लीटर तक पानी खर्च करता है ।

यह केमिकल युक्त पानी पर्यावरण के लिए घातक है । #घर भी रंगों से खराब हो जाते हैं । उन्हें धोने में कम-से-कम 100 लीटर पानी बरबाद हो जाता है ।


पलाश के फूलों से होली खेलने की परम्परा का फायदा बताते हुए #आशारामजी #बापू कहते हैं कि ‘‘ #पलाश  कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है । साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है । पलाश के फूलों में वायुसंबंधी 80 व पित्तसंबंधी 40 प्रकार की तथा अन्य #अनेक बीमारियों को भगाने की शक्ति होती है । इनमें मन, रक्तकणिकाओं, सप्तरंगों व सप्तधातुओं का संतुलन बनाने की भी अद्भुत क्षमता है इसीलिए हमारे #ऋषियों ने होली खेलने के लिए पलाश के फूलों के रंग को विशेष माना है ।

#रासायनिक रंगों से होली खेलने पर प्रति व्यक्ति पर लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामूहिक प्राकृतिक-वैदिक होली में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. से कम पानी लगता है ।

इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है । पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले #आदिवासियों को #रोजी-रोटी मिल जाती है । पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है ।

#केमिकल रंगों का और उससे फलने-फूलनेवाला अरबों रुपयों का दवाइयों का व्यापार संत आशारामजी बापू के कारण प्रभावित हो रहा था।

#संत #आशारामजी #बापू के सामूहिक #प्राकृतिक होली अभियान से शारीरिक मानसिक अनेक बीमारियों में लाभ होकर देश के अरबो रुपयों का स्वास्थ्य-खर्च बच रहा है । जिससे विदेशी कंपनियों को अरबो का घाटा हो रहा था इसलिए एक ये भी कारण है उनको फंसाने का । साथ ही उनके कार्यक्रमों में पानी की भी बचत हो रही है ।

पर मीडिया ने तो ठेका लिया है समाज को गुमराह करने का।  5-6 हजार लीटर प्राकृतिक रंग (जो कि लाखों रुपयों का स्वास्थ्य व्यय बचाता है) के ऊपर बवाल मचाने वाली #मीडिया को शराब, कोल्डड्रिंक्स उत्पादन तथा कत्लखानों में गोमांस के लिए प्रतिदिन हो रहे करोड़ों लीटर पानी की बरबादी जरा भी समस्या नही लगती। ऐसा क्यों ???

कुछ सालों से अगर गौर करें तो जब भी कोई #हिन्दू त्यौहार नजदीक आता है तो #दलाल मीडिया और भारत का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग हमारे हिन्दू त्यौहारों में खोट निकालने लग जाता है ।

जैसे #दीपावली नजदीक आते ही छाती कूट कूट कर पटाखों से होने वाले प्रदूषण का रोना रोने वाली मीडिया को 31 दिसम्बर को #आतिशबाजियों का प्रदूषण नही दिखता। आतिशबाजियों से क्या ऑक्सीजन पैदा होती है?

ऐसे ही #शिवरात्रि के पावन पर्व पर दूध की बर्बादी की दलीलें देने वाली मीडिया हजारों दुधारू गायों की हत्या पर मौन क्यों हो जाती है?


अब होली आई है तो #बिकाऊ मीडिया पानी बजत की दलीलें लेकर फिर उपस्थित होंगी । लेकिन पानी बचाना है तो साल में 364 दिन बचाओ पर होली अवश्य मनाओं ।


क्योंकि #बदलना है तो अपना व्यवहार बदलो....त्यौहार नहीँ ।

Thursday, March 9, 2017

इंदौर के युवाओं ने गौरक्षा के लिए शानदार पहल की

इंदौर के युवाओं ने गौरक्षा के लिए शानदार पहल की 

दो दिन के बाद इंदौर (मध्य प्रदेश) में छोटी-बड़ी 20 हजार से ज्यादा होलियां जलेंगी। इस दिन यदि लकड़ियों के बजाय गोबर के कंडों की होली जलाई जाए तो शहर की 150 गौशालाओं में पल रही लगभग 50 हजार गाएं अपना सालभर का खर्च खुद निकाल लेंगी।

इस बार गाय के गोबर के कंडो से जलेगी होली ...

कुछ तथाकथित पर्यावरणविदों द्वारा होली में लकड़ी बचाने, धुएं से पर्यावरण खराब होने और कई दिनों तक जलती लकड़ी के ताप से सड़कें खराब होने जैसी दलीलें लंबे समय से दी जा रही हैं लेकिन इंदौर के 50 व्यापारियों और कारोबारियों ने मिलकर ऐसी पहल की है, जिसमें सीख बाद में, फायदे का सौदा पहले है। दो साल के ट्रायल में नफा-नुकसान को कसौटी पर परखने के बाद अब वे घर, बाजार, मंडी, दफ्तरों में जाकर इसका गणित समझा रहे हैं। मध्यप्रदेश गौपालन एवं पशुसंवर्धन बोर्ड ने भी इसे तकनीकी रूप से सही ठहराया है।

इंदौर के युवाओं ने गौरक्षा के लिए शानदार पहल की


कंडे और होली का बहीखाता

-इंदौर की 30 किमी की सीमा में छोटी-बड़ी 150 गौशालाएं हैं, जिनमें लगभग 50 हजार गाएं हैं। जबकि प्रदेश में अनुदान प्राप्त 664 गौशालाएं हैं। इनमें लगभग 1 लाख 20 हजार गाएं रहती हैं।

- एक गाय रोज 10 किलो गोबर देती है। इस तरह इंदौर सहित प्रदेशभर में रोज 12 लाख किलो गोबर निकलता है। 10 किलो गोबर को सुखाकर 5 कंडे बनाए जा सकते हैं।

- होली पर इंदौर में 15-20 लाख कंडों की जरूरत होती है, जिसके पर्याप्त इंतजाम हैं।

गोबर से गाय अपना खर्च कैसे निकालेगी? 

अभियान से शुरू से जुड़े कारोबारी मनोज तिवारी, राजेश गुप्ता और गोपाल अग्रवाल बताते हैं कि एक कंडे की कीमत 10 रुपए है। इसमें 2 रुपए कंडे बनाने वाले को, 2 रुपए ट्रांसपोर्टर को और 6 रुपए गौशाला को मिलेंगे। यदि शहर में होली पर 20 लाख कंडे भी जलाए जाते हैं तो 2 करोड़ रुपए कमाए जा सकते हैं। औसतन एक गौशाला के हिस्से में बगैर किसी अनुदान के 13 लाख रुपए तक आ जाएंगे। लकड़ी की तुलना में लोगों को कंडे सस्ते भी पड़ेंगे। गौ सेवा से जुड़े अखिल भारतीय गो सेवा प्रमुख शंकरलाल जी का कहना है कि यह अभियान कोलकाता के कुछ हिस्सों में शुरू हुआ था, लेकिन बड़े पैमाने पर हो तो इसका व्यापक असर देखा जा सकता है।

100 रुपए खर्च और मिलते हैं 2 रुपए

पशु कल्याण के लिए सरकार ने 1962 में 28 सदस्यीय एनीमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया (#एडब्ल्यूबीआई) का गठन किया था जिसके लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के जरिये फंड भेजा जाता है। 2011-12 में #एडब्ल्यूबीआई के लिए 21.7  करोड़ रुपये का आबंटन हुआ था, 2015-16 में यह राशि घटकर 7.8 करोड़ हो गई है। देश भर में चार हजार से अधिक #गौशालाओं में साढ़े तीन करोड़ गौवंश हैं। एडब्ल्यूबीआई के #चेयरमैन आर.एम. खर्ब के मुताबिक, 'एक गाय पर रोज का खर्चा कम से कम सौ रुपये है, मगर #केंद्र_सरकार से जो अनुदान राशि मिल रही है, उससे गौशालाओं में संरक्षित एक गाय के हिस्से में सिर्फ दो रुपये आते हैं।'

 यह है गाय पर राजनीति करने वाली सरकार का असली चेहरा!

इसके ठीक उलट सरकार ने देश भर के #कसाईघरों को आधुनिक बनाने के वास्ते 2002 में दसवीं पंचवर्षीय योजना के तहत 5 हजार 137 करोड़ की राशि का आबंटन किया था, ताकि बीफ  एक्सपोर्ट में हम पीछे न रह जाएं। देश का दुर्भाग्य है कि कसाईघरों के आधुनिकीकरण पर हम हजारों करोड़ खा रहे हैं, मगर पशुओं के संरक्षण के वास्ते #सरकार के खजाने में पैसे नहीं हैं।

मोदी_सरकार आने के बाद पहला बजट जो पास किया गया उसमें कत्लखाने खोलने के लिए 15 करोड़ सब्सिडी प्रदान की जाती है ।

2014 में  4.8 अरब डॉलर का बीफ एक्सपोर्ट हुआ था । 2015 में भी #भारत, 2.4 मिलियन टन बीफ #एक्सपोर्ट कर #दुनिया में नंबर वन बन गया। 

गौशालाओं को बनायें स्वाबलंबी !!

कंडे की होली और गोबर खाद खरीदकर समाज में गौशालाओं को स्वाबलंबी बनाया जा सकता है। इसी प्रकार इंदौर के राजबाड़ा की सरकारी होली में भी इस बार सिर्फ एक बड़ी लकड़ी होगी । होलकरवंश से जुड़े उदयराव होलकर ने भी इस पर सहमति दे दी है। सरकारी होली में अभी तक आधी लकड़ी और आधे कंडे का इस्तेमाल होता था, लेकिन मान्यता के अनुसार होली जलने के बाद शहरवासी सरकारी होली की आग ले जाते हैं, इसलिए इस बार बीच में केवल एक बड़ी लकड़ी रखेंगे। केवल यही एक लकड़ी जलती रहेगी। शेष होली के लिए कंडों का इस्तेमाल होगा। केवल 2 किलो सूखा गोबर जलाने से 300 ग्राम ऑक्सीजन निकलती है । एक गाय रोज 10 किलो गोबर देती है। इसकी राख से 60 फीसदी यानी 300 ग्राम ऑक्सीजन निकलती है। वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि गाय के एक कंडे में गाय का घी डालकर धुंआ करते है तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।

गौमाता हमारे लिए कितनी उपयोगी है जानने के लिए नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें ।


भारत में प्रतिदिन लगभग 50 हजार गायें बड़ी बेरहमी से काटी जा रही हैं । 1947 में गोवंश की जहाँ 60 नस्लें थी,वहीं आज उनकी संख्या घटकर 33 ही रह गयी है । हमारी अर्थव्यवस्था का आधार गाय है और जब तक यह बात हमारी समझ में नहीं आयेगी तबतक भारत की गरीबी मिटनेवाली नहीं है । गोमांस विक्रय जैसे जघन्य पाप के द्वारा दरिद्रता हटेगी नहीं बल्कि बढ़ती चली जायेगी । गौवध को रोकें और गोपालन कर गोमूत्ररूपी विषरहित कीटनाशक तथा दुग्ध का प्रयोग करें । गोवंश का संवर्धन कर देश को मजबूत करें । भारतीय गायों के मूत्र में पूरी दुनियाँ की गायों से ज्यादा रोगप्रतिरोधक शक्ति है । ब्राजील और मेक्सिको में भारत के गोवंशों को आदर्श माना जाता है । वे भारतीय गोवंश का आयात कर इनसे लाभान्वित हो रहे हैं । 

आपने देखा कि केवल गौ माता के गोबर से ही गौ-पालन हो जाता है और गाय के दूध एवं मूत्र  में सुवर्णक्षार पाएं गये हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य में चार चांद लगा देते हैं ।

अगर परम उपयोगी गौ-माता का पालन सरकार नही करती तो आप ही करें ,औरों को भी प्रेरित करें एवं  इंदौर के युवाओं की तरह आप भी अपने गाँव-नगर में कंडो से ही होली जलाएं ।

Wednesday, March 8, 2017

विश्व महिला दिवस पर सोशल मीडिया पर बापू आसारामजी की रिहाई की उठी मांग !!

आज विश्व महिला दिवस पर ग्राउंड लेवल व सोशल मीडिया पर बापू आसारामजी की रिहाई की उठी मांग

आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस है जगह-जगह पर महिलाओं के सम्मान में समारोह हो रहा था लेकिन नारी उत्तम संस्कार देने वाले संगठन "महिला उत्थान मंडल" ने आज कुछ अलग ही अंदाज में InternationalWomenDay मनाया ।

आज ट्वीटर फेसबुक, वेबसाइट आदि पर देखा गया तो महिला उत्थान मंडल द्वारा देशभर में बापू आसारामजी की शीघ्र रिहाई की मांग करते हुए विभिन्न स्थानों पर रैलियां निकाली तथा कलेक्टर को ज्ञापन दिए जा रहे थे ।
Azaad Bharat- Women's Day

आज ट्वीटर पर भी #महिला_उत्थान_GreatInitiative हैश टैग टॉप पर ट्रेंड कर रहा था जिसमें महिला उत्थान मंडल के सेवाकार्यों की गतिविधियाँ एवं बापू आसारामजी की शीघ्र रिहाई की मांग की जा रही थी ।

महिला मंडल के सदस्यों ने कहा कि निर्भया कांड के बाद #नारियों की सुरक्षा हेतु बलात्कार-निरोधक नये #कानून बनाये गये ।परंतु दहेज विरोधी कानून की तरह इनका भी भयंकर दुरुपयोग हो रहा है ।

जैसे दहेज विरोधी अधिनियम में संशोधन किया गया ऐसे ही #POCSO कानून में भी संशोधन की सख्त आवश्यकता है।

कलेक्टर को ज्ञापन देते हुए उन्होंने कहा कि संत आसारामजी बापू सदा हर वर्ग, हर प्राणी को ईश्वरीय सुख-शांति, आत्मिक निर्विकारी आनंद पहुँचाने का अथक प्रयास करते रहे हैं । समाज, संस्कृति और विश्वसेवा के दैवी कार्य में बापूजी का योगदान अद्वितीय है । 

बापू आसारामजी के ओजस्वी जीवन एवं उपदेशों से असंख्य लोगों ने व्यसन, मांस आदि बड़ी सहजता से छोड़कर संयम-सदाचार का रास्ता अपनाया है ।

 एक 80 वर्षीय बुजुर्ग संत, जिन्हें करोड़ों लोगों के जीवन में संयम-सदाचार जागृत करने व उन्हें भगवान के रास्ते चलाने तथा करोड़ों दुःखियों के चेहरों पर मुस्कान लाने का श्रेय जाता है, उनको जमानत मिलनी चाहिए । 

सम्पादक, राजनेता, फिल्म स्टार, आतंकवादी आदि को भी जमानत मिल जाती है तो एक हिन्दू संत जिन पर 4 साल से एक भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ है और उन्हें जमानत तक भी नहीं मिल रही है ।

जब हमारा कानून एक आतंकवादी के प्रति भी उदारता का व्यवहार करता है तो एक निर्दोष संत को क्यों बेवजह सता रहा है ???

महिला उत्थान मंडल आपसे निवेदन करता है कि विश्व में भारतीय संस्कृति की ध्वजा फहरानेवाले, आध्यात्मिक क्रांति के प्रणेता, संयममूर्ति संत आसारामजी बापू की समाज को अत्यंत आवश्यकता है ।
 आज भी देश की असंख्य महिलाएँ उनकी निर्दोषता के समर्थन में सड़कों पर आकर उनकी रिहाई की माँग कर रही हैं तो आपको इस बात पर अवश्य विचार करना चाहिए कि आरोप लगानेवाली दो महिलाएँ सच्ची हैं या हम करोड़ों महिलाओं का अनेक वर्षों का अनुभव सच्चा है ! 

अतः हम आपसे निवेदन करती हैं कि उन्हें शीघ्रातिशीघ्र जमानत दी जाय, रिहा किया जाय।

उन्होंने आगे कहा कि आसारामजी बापू केस में आज तक न कोई ठोस सबूत मिला है और न ही कोई #मेडिकल आधार है...!!
बल्कि उन्हें #षड़यंत्र करके फंसाने के सैकड़ों प्रमाण सामने आये हैं ।
आरोप लगानेवाली #लड़की की मेडिकल जाँच करनेवाली #डॉ. #शैलजा वर्मा ने अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा कि “लड़की के शरीर पर जरा सा भी #खरोंच का निशान नहीं था और न ही प्रतिरोध के कोई निशान थे ।”

प्रसिद्ध न्यायविद् डॉ. #सुब्रमण्यम स्वामी ने केस अध्ययन कर बताया कि ‘‘लड़की के #फोन #रिकॉर्ड्स से पता लगा कि जिस समय पर वह कहती है कि वह कुटिया में थी, उस समय वह वहाँ थी ही नहीं और #बापूजी भी उस समय अपनी कुटिया में न होकर अपने भक्तों के बीच सत्संग कर रहे थे।

बापू आसारामजी पर आरोप लगाने वाली सूरत की महिला ने गांधीनगर कोर्ट में एक अर्जी डालकर बताया था कि उसने बयान डर और भय के कारण दिया था । अब वह केस वापिस लेना चाहती है ।

‘अखिल भारतीय नारी रक्षा मंच’ की अध्यक्षा श्रीमती रुपाली दुबे ने कहा : ‘‘ संत आसारामजी बापू से लाभान्वित हुए लोगों में महिलाओं की संख्या भी करोड़ों में है लेकिन विडम्बना है कि जिन बापूजी ने नारी सशक्तीकरण एवं महिला जागृति के लिए महिला उत्थान मंडलों की स्थापना की, गर्भपात रोको अभियान चलवाया, नारियों के शोषण के खिलाफ हमेशा आवाज उठायी, उन्हीं साजिशकर्ताओं का मोहरा बनी एक-दो महिलाओं के झूठे आरोपों के आधार पर 42 महीनों से एक निर्दोष संत को जेल में रखा गया है । 

संत आसारामजी बापू पर लगे आरोपों में से एक भी सिद्ध नहीं हुआ और न ही किसी जाँच में ऐसा कुछ सामने आया कि जिसके आधार पर 80 वर्ष की उम्र में ‘ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया’ की भयंकर बीमारी होने के बावजूद उनको जेल में रखा जाये। 
जमानत उनका संवैधानिक मौलिक अधिकार है लेकिन उन्हें यह भी नहीं मिल पाना बड़ा अपवाद और आपत्तिकारक है ।’’

धन्यवाद!!

गौरतलब है कि जब से संत आसारामजी बापू जेल में गए हैं तबसे उनके #करोड़ों #भक्त समय-समय पर सरकार से उनकी रिहाई की माँग कर रहे हैं । कभी POCSO  कानून के विरुद्ध #रैली निकाल कर तो कभी #सोशल मीडिया का सहारा ले ट्विटर पर ट्रेंड चला कर।

अब देखना ये है कि एक लड़की के कहने पर विश्विख्यात् संत आसारामजी बापू को जेल में रखने वाली #सरकार इन लाखों लड़कियों की गुहार कब सुनेगी ?

जिनकी सिर्फ एक ही मांग है कि..
 ‘निर्दोष संत आसारामजी बापू की शीघ्र रिहाई हो सह-सम्मान।'

Tuesday, March 7, 2017

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस का जानिए इतिहास

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस का जानिए इतिहास, महिला उत्थान मंडल सौंपेगा ज्ञापन

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं की उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।

अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर, यह दिवस सबसे पहले 28 फरवरी 1909 को मनाया गया।  इसके बाद यह फरवरी के आखरी इतवार के दिन मनाया जाने लगा। 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था, क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिला को वोट देने का अधिकार नहीं था।
History of International Women's Day

1917 में रूस की महिलाओं ने, 8 मार्च महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। जार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिया। उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनो की तारीखों में कुछ अन्तर है। जुलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखरी इतवार 23 फरवरी को था जब की ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च थी। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये 8 मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इसके बाद पूरे विश्व में महिला दिवस मनाने लगा ।


विश्व महिला दिवस पर महिला उत्थान मंडल द्वारा देश भर में सौंपें जायेंगें ज्ञापन

महिला उत्थान मंडल महिला कार्यकर्ताओं ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी का दर्जा प्रदान किया गया है ।

“यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता”
अर्थात जहा नारी की पूजा होती है वहां पर ईश्वर स्वय खुद निवास करते है

एक समय था जब हमारे देश में भारतीय नारी को देवी और लक्ष्मी का रूप मानकर देश की महिलाओं को पूजा जाता था लेकिन पश्चात् संस्कृति का अंधानुसरण करके टीवी, फिल्मों, मीडिया, अश्लील उपन्याय आदि के कारण इन्सान अपने चरित्र से इस कदर नीचे गिर गया है कि उसके लिए स्त्री एक पूजनीय और इज्जत का रूप न रहकर केवल उपभोग की वस्तु समझी जाने लगी है ।

उन्होंने आगे कहा कि महिलाओं को लेकर अनेक प्रकार के कुरीतियों का भी जन्म हुआ है जैसे दहेज, कन्या भ्रूण हत्या, उपभोग की वस्तु समझना ऐसी तमाम बुराईयाँ जन्म ले चुकी है इसे रोकने के लिए संत श्री आशारामजी बापू ने महिला सशक्तिकरण के लिए अनेक कार्य किये हैं । कॉल सेंटरों, ऑफिसों में हो रहे महिला शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की तथा महिलाओं में आत्मबल, आत्मविश्वास, साहस, संयम-सदाचार के गुणों को विकसित करने के लिए महिला उत्थान मंडलों का गठन किया है जिससे जुड़कर कई महिलाएँ उन्नत हो रही हैं ।

उन्होंने आगे कहा कि संत आसारामजी बापू द्वारा बनाये गए महिला उत्थान मंडल द्वारा महिलाओं के लिए महिला सर्वांगीण विकास शिविर व सेवा-साधना शिविरों का आयोजन, गर्भपात रोको अभियान, तेजस्विनी अभियान, युवती एवं महिला संस्कार सभाएं, दिव्य शिशु संस्कार अभियान, मुफ्त चिकित्सा सेवा, मातृ-पितृ पूजन दिवस, कैदी उत्थान कार्यक्रम, घर-घर तुलसी लगाओ अभियान, गौ रक्षा  अभियान व दरिद्रनारायण सेवा आदि समाजोत्थान के कार्य किये जाते हैं । बापूजी ने नारियों का आत्मबल जगाकर उनका वास्तविक उत्थान किया है । उनकी अनुपस्थिति के कारण उपरोक्त विश्वव्यापी सेवाकार्यों में अपूर्णीय क्षति हो रही है । उन्होंने महिलाओं की अस्मिता की रक्षा के लिए भोगवादी सभ्यता से लोहा लिया एवं अथकरूप से अनेक प्रयास किये, इसलिए उन्हें शीघ्र रिहा किया जाये ।

महिला जागृति, नारी सशक्तीकरण व महिलाओं के सर्वांगीण विकास हेतु देशभर में महिला उत्थान मंडलों का गठन किया गया है, जिनके अंतर्गत नारी उत्थान के अनेक प्रकल्प चलाये जा रहे हैं । 

उन्होंने कहा कि महिला सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का दुरूपयोग हो रहा है । कानून की आड़ में कई निर्दोष पुरुषों को फँसाया जा रहा है जिसके कारण उस पूरे परिवार को सजा भुगतनी पड़ती है । इसका विरोध करना बहुत जरूरी है ।

विश्व की 4 प्राचीन संस्कृतियों में से केवल भारतीय संस्कृति ही अब तक जीवित रह पायी है और इसका मूल कारण है कि संस्कृति के आधारस्तम्भ संत-महापुरुष समय-समय पर भारत-भूमि पर अवतरित होते रहे हैं लेकिन आज निर्दोष संस्कृति रक्षक संतों को अंधे कानूनों के तहत फँसाया जा रहा है ।  

निर्दोष संतों पर हो रहे षड्यंत्र की भर्त्सना करते हुए महिला कार्यकर्ताओं ने कहा कि ' संत आसारामजी बापू ने संस्कृति-रक्षा एवं संयम-सदाचार के प्रचार-प्रसार में अपना पूरा जीवन अर्पित कर दिया । मातृ-पितृ पूजन दिवस व वसुधैव कुटुम्बकम् की लुप्त हो रही परम्पराओं की पुनः शुरूआत कर भारतीय संस्कृति के उच्च आदर्शों को पुनर्जीवित किया है । दो महिलाओं के बेबुनियाद आरोपों को मुद्दा बनाकर ऐसे महान संत को 42 महीनों से जेल में रखा गया है, क्या यही न्याय है ? हम लाखों बहनें जो उनके समर्थन में खड़ी हैं हमारी आवाज को क्यों नहीं सुना जा रहा है ? 

मंडल की सदस्याओं का कहना है कि बढ़ रहे पाश्चात्य कल्चर के अंधानुकरण के कारण आज महिला वर्ग के जीवन में संस्काररूपी जड़ें खोखली होती नजर आ रही हैं । ऐसे में अब हमें पुनः अपने मूल की ओर लौटने की आवश्यकता है । इतिहास साक्षी है कि यह कार्य सदा संतों-महापुरुषों के द्वारा ही सम्पन्न होता रहा है । अपनी ही संस्कृति एवं देश के हित के लिए, बालकों, महिलाओं एवं युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए, समस्त देशवासियों की भलाई के लिए अपना जीवन होम देनेवाले पूज्य संत श्री आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा 8 मार्च विश्व महिला दिवस के निमित मंडल के महत्वपूर्ण मुदों पर ध्यान केंद्रित करने व बापूजी की रिहाई की मांग करते हुए देशभर में डी सी ऑफिस में ज्ञापन सौंपा जाएगा ।  


International Women Day