Sunday, July 16, 2017

पश्चिम बंगाल की हिंसा की जड में क्या है? आप भी जानिये पूरी सच्चाई...


जुलाई 16, 2017

पश्चिम बंगाल में तकी रोड पर जब आप कोलकाता से बांग्लादेश सीमा पर घोजाडांगा पोस्ट की आेर बढते हैं, तो इस व्यस्त हाइवे पर लगभग 50 किलोमीटर चलकर बेराचंपा से एक दोराहा आता है। बाएं की ओर 14 किलोमीटर आगे चलते हुए आप बदुरिया कस्बे पहुंच जाते हैं।

बदुरिया की जनसंख्या लगभग ढाई लाख है। हाल ही में यहां हुए सांप्रदायिक दंगों की वजह से इसकी चर्चा हो रही है। बदुरिया की हिंसा का असर न केवल पूरे देश के सांप्रदायिक माहौल को बिगाड सकता है, बल्कि ये मामला देश की सुरक्षा से भी जुडा है !
BENGAL RIOTS

16 साल पहले बांग्लादेशी बडी तादाद में अवैध घुसपैठ के चलते बदुरिया में आकर बस रहे थे। उस समय पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की सरकार थी। वामपंथी सरकार ने इस घुसपैठ की आेर से आंखें बंद की हुई थीं। वो बांग्लादेश से आए इन घुसपैठियों को वोटबैंक के तौर पर उपयोग कर रहे थे।

उस समय बदुरिया के लोग ममता बनर्जी को बडी उम्मीद की नजर से देखते थे। उन्हें लगता था कि ममता की सरकार बनी तो वो बांग्लादेशी घुसपैठियों पर लगाम लगाएंगी। उन्हें लगता था कि ममता के सत्ता में आने पर प्रशासन बेहतर होगा। हिंदू-मुसलमान के नाम पर भेदभाव नहीं होगा।

आज 16 वर्ष बाद बदुरिया के लोगों की उम्मीदें टूट चुकी हैं। आज ये क्षेत्र जंग का मैदान बन चुका है। 17 वर्ष के एक लडके की जिस फेसबुक पोस्ट की वजह से यहां पिछले सप्ताह जबरदस्त हिंसा हुई, वो तो बस बहाना थी। इस बार हमारे मेजबान बताते हैं कि जब हिंसा भडकी तो उन्हें बहुत डर लगा। इसीलिए वो बाकी देशवासियों को यहां के हालात के बारे में बताने को बेताब थे। उन्हें डर लग रहा था कि अगर कुछ किया न गया तो यहां बडा ‘हत्याकांड’ हो सकता है !

हालात बेहद खराब

स्थानीय लोग कहते हैं कि आज की तारीख में बदुरिया में हालात बेहद बिगड चुके हैं। यहां के 65 प्रतिशत वोटर मुसलमान हैं। यहां पर सबसे ज्यादा जो इमारतें बन रही हैं वो मदरसे और मस्जिद हैं !

बदुरिया आज बांग्लादेश का ही हिस्सा लग रहा है। स्थानीय लोग अपने ही क्षेत्र में अजनबी हो गए हैं। पुलिस अब लडकियों से छेडखानी की शिकायत तक नहीं सुनती ! 3 जुलाई को जो हिंसा भडकी वो तो बस एक बहाना थी। असल में घुसपैठिये यहां बचे हुए पुराने लोगों को ये इलाका छोडकर भाग जाने की धमकी दे रहे हैं !

आज ये हालात ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के कारण से उत्पन्न हुए हैं। यहां के ज्यादातर लोग भारतीय नागरिक तक नहीं हैं ! दंगाइयों और हिंसा भडकानेवालों (जो फेसबुक पोस्ट लिखने के आरोपी लडके को फांसी पर लटकाने की मांग कर रहे थे) के प्रति नरमी दिखाकर ममता ने साफ कर दिया है कि वो सांप्रदायिक ताकतों के आगे झुक गई हैं। तभी तो उन्होंने यहां तीन दिन तक दंगाइयों को खुली छूट दे रखी थी और सुरक्षाबलों को उनसे निपटने से रोक रही थीं !

जब ममता बनर्जी को दंगाइयों से सख्ती से निपटना चाहिए था। जब उनकी जिम्मेदारी थी कि वो सांप्रदयिक ताकतों के विरोध में कडे कदम उठातीं, तो वो केंद्र सरकार से झगडा करने लगीं। मदद के लिए भेजी गई सुरक्षा बलों की टुकडियों को लौटा दिया। इसके बाद वो राज्यपाल पर आरोप लगाने लगीं !

ममता ने उन्हें भाजपा का सडकछाप नेता कह दिया और उन पर अपमानित करने का आरोप भी लगाने लगीं। इससे ममता बनर्जी की नीयत साफ हो गई। जाहिर है कि उनकी ये सियासी नौटंकी कानून-व्यवस्था को लेकर अपनी नाकामी छुपाने के लिए ही थी। कानून का राज कायम करने के मोर्चे पर ममता बनर्जी बुरी तरह फेल हुई हैं !

इस हिंसा को राज्यपाल की ओर से ‘हस्तक्षेप’ की उपज बताने के उनके दांव को भले ही उनके समर्थक मान लें, परंतु इससे तो सांप्रदायिक ताकतों के हौसले बुलंद ही होंगे ! राज्य के दूसरे हिस्सों में भी दंगाइयों को ममता के रवैये से हौसला मिलेगा। बदुरिया में शरीयत के तहत सजा की मांग, केवल बंगाल ही नहीं, पूरे देश के लिए खतरे की घंटी है !

धर्म के नाम पर कत्ल करने पर उतारू भीड को सजा न मिलने से एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश होने के हमारे दावे पर दाग लगना तय है। किसी भी भीड का हिंसक तरीकों से अपनी मांग मंगवाना जायज नहीं। लोगों को कानून से खिलवाड की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए !

मीडिया पर भी सवाल

पश्चिम बंगाल की ताजा सांप्रदायिक हिंसा को लेकर वहां के मीडिया के रोल पर भी सवाल उठे हैं। सरकार के दबाव में या फिर चापलूसी की नीति के चलते किसी भी बडे मीडिया हाउस ने बदुरिया की हिंसा की घटना को प्रसिद्धि नहीं दी !

यूं लग रहा था कि मीडिया की इस शुतुरमुर्गी नीति से हालात खुद-ब-खुद ठीक हो जाएंगे। मगर ये उसी मीडिया की खामोशी थी, जो हाल के दिनों में देश के दूसरे हिस्सों में पीट-पीटकर हुई हत्याओं की घटनाओं पर खूब शोर मचा रहा था। गौरक्षकों की हिंसा को लेकर यही मीडिया छाती पीट रहा था। पश्चिम बंगाल के मीडिया को समझना होगा कि अपराधियों से निपटने के दो पैमाने नहीं हो सकते। अगर वो गौरक्षकों की हिंसा को लेकर शोर मचा रहे थे, तो उन्हें बदुरिया की सांप्रदायिक हिंसा पर भी आवाज उठानी चाहिए थी !

पाकिस्तान की तरह भारत अच्छे और बुरे आतंकवादी यानी अच्छे और बुरे दंगाइयों का फर्क नहीं कर सकता !

सवाल ये है कि, पश्चिम बंगाल में कालियाचक, धूलागढ़ और अब बदुरिया की सांप्रदायिक हिंसा क्या संकेत देती है ? पश्चिम बंगाल के बिगडते सांप्रदायिक माहौल के लिए यूं तो केवल ममता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। मगर मौजूदा सरकार होने की वजह से सबसे ज्यादा जवाबदेही उन्हीं की बनती है। इससे वो अपनी नौटंकीवाली सियासत करके पल्ला नहीं झाड सकतीं !

पूरे देश को मालूम है कि, वोट बैंक की राजनीति के चलते पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकारों ने बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों की आेर से आंखें मूंदे रखीं। उस दौर में भारत-बांग्लादेश की सीमा पर जानवरों के बदले इंसानों की अदला-बदली का कारोबार आम था। सीमा की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसियां ये अवैध कारोबार रोकने में नाकाम रहीं !

इससे ही साफ है कि, हम देश की सुरक्षा को लेकर कितने गंभीर हैं ! हमारी नाकामी की सबसे बडी मिवर्ष यही है कि हमें यही नहीं पता कि बांग्लादेश से कितने लोगों ने अवैध तरीके से हिंदुस्तान में घुसपैठ की। आज हालात ये हैं कि खुद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने चेताया है कि बांग्लादेश से आतंकी पश्चिम बंगाल में घुसकर पनाह ले रहे हैं। परंतु ममता ने शेख हसीना की चेतावनी को भी अनसुना कर दिया !

कोई भी सरकार जिसकी हालत पर नजर हो, जो देश की सुरक्षा को लेकर गंभीर हो, वो घुसपैठ को लेकर बेहद सतर्क होगी। परंतु पश्चिम बंगाल में ऐसा नहीं हुआ। घुसपैठियों की तादाद बढ़ती रही। मुसलमानों की जनसंख्या पश्चिम बंगाल में जितनी तेजी से बढ़ी है, उतनी तेजी से देश के किसी भी हिस्से में नहीं बढ़ी। फिर भी वहां की सरकारें सोई रहीं !

क्या है इस हिंसा की जड में ?

आज पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या, आजादी से पहले के स्तर पर पहुंच रही है। 1941 में पश्चिम बंगाल में 29 प्रतिशत मुसलमान जनसंख्या थी। आज ये आंकडा 27 प्रतिशत पहुंच गया है। जबकि देश के बंटवारे के बाद 1951 में पश्चिम बंगाल में केवल 19.5 प्रतिशत मुसलमान थे। बंटवारे के बाद बडी तादाद में मुसलमान, पाकिस्तान चले गए थे।

हम मुसलमानों की जनसंख्या में बढोतरी के आंकडों पर गौर करें तो चौंकानेवाली बातें सामने आती हैं ! 2001 से 20111 के बीच पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 1.77 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ी। जबकि देश के बाकी हिस्सों में मुस्लिम जनसंख्या 0.88 प्रतिशत की दर से बढ़ी !

यूं तो राजनीति में आंकडों की बहुत बात होती है। परंतु पश्चिम बंगाल की तेजी से बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या की आेर से सब ने आंखें मूंद रखी थीं। सियासी फायदे के लिए देशहित की कुर्बानी दे दी गई। अगर हम आंकडों पर ध्यान देते तो फौरन बात पकड में आ जाती कि जिस बंगाल में कारोबार ठप पड रहा था, उद्योग बंद हो रहे थे, वहां लोग रोजगार की नीयत से तो जा नहीं रहे थे !

आज की तारीख में हम घुसपैठ के सियासी असर की बात करें तो, पश्चिम बंगाल के तीन जिलों में मुसलमान बहुमत में हैं। लगभग 100 विधानसभा सीटों के नतीजे मुसलमानों के वोट तय करते हैं। यानी मुस्लिम वोट, पश्चिम बंगाल की सियासत के लिहाज से आज बेहद अहम हो गए हैं। इसीलिए राज्य में ममता बनर्जी जमकर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं। उनसे पहले वामपंथी दल यही कर रहे थे !

तुष्टीकरण की गंदी सियासत का नमूना हमने 2007 के चुनावों में देखा था। उस समय अपनी तरक्कीपसंद राजनीति के बावजूद वामपंथी सरकार ने बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को कोलकाता से बाहर जाने पर मजबूर किया। इसकी वजह ये थी कि बंगाल के कट्टरपंथी मुसलमान, तस्लीमा के शहर में रहने का विरोध कर रहे थे। आज का पश्चिम बंगाल सांप्रदायिक रूप से और भी संवेदनशील हो गया है !

ममता बनर्जी ने सांप्रदायिकता को अपना सबसे बडा सियासी हथियार बना लिया है। उनका आदर्शवाद सत्ता में रहते हुए उडन-छू हो चुका है। राज्य के 27 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या को लुभाने के लिए ममता किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखती हैं। इसीलिए वो नूर-उल-रहमान बरकती जैसे मौलवियों को शह देती हैं !

ये वही बरकती है जिसने पीएम मोदी के विरोध में फतवा दिया था। बरकती ने कई भडकाऊ बयान दिए। वो लालबत्ती पर रोक के बावजूद खुले तौर पर अपनी गाडी में लालबत्ती लगाकर चलता था। परंतु ममता ने उसके विरोध में कोई एक्शन नहीं लिया। बाद में कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के ट्रस्टियों ने बरकती को इमाम पद से जबरदस्ती हटाया।

इसी तरह ममता बनर्जी ने मालदा के हरिश्चंद्रपुर कस्बे के मौलाना नासिर शेख की आेर से आंखें मूंद लीं। इस मौलाना ने टीवी, संगीत, फोटोग्राफी और गैर मुसलमानों से मुसलमानों के बात करने पर पाबंदी लगा दी थी। राज्य के धर्मनिरपेक्ष नियमों के विरोध में जाकर ममता ने इमामों और मौलवियों को उपाधियां और पुरस्कार दिए हैं !

ममता ने मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी हदें तोड दी हैं ! तभी तो दुर्गा पूजा के बाद 4 बजे के बाद मूर्ति विसर्जन पर, मुहर्रम का जुलूस निकालने के लिए रोक लगा देती हैं। उन्हें आम बंगालियों की धार्मिक भावनाओं का खयाल तक नहीं आता। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ममता बनर्जी सरकार के इस फैसले को अल्पसंख्यकों का अंधा तुष्टीकरण कहा था !

क्या ममता बनर्जी को ये समझ में आएगा कि मुस्लिम तुष्टीकरण से बंगाल में अब काजी नजरुल इस्लाम जैसे लोग नहीं पैदा होगे। बल्कि इससे इमाम बरकती और नसीर शेख जैसे मौलवियों को ही ताकत मिलेगी ! ये वही लोग हैं जो मुसलमानों की नुमाइंदगी का दावा करते हैं, मगर उन्हीं के हितों को चोट पहुंचाते हैं। ये सांप्रदायिकता फैलाते हैं !

आज बदुरिया में जो हो रहा है वो तुष्टीकरण की नीतियों का ही नतीजा है। कल यही हाल कोलकाता का भी हो सकता है !

ममता बनर्जी सांप्रदायिकता की ऐसी आग से खेल रही हैं, जिस पर काबू पाना उनके बस में भी नहीं होगा !

🚩स्त्रोत : फर्स्ट पोस्ट

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बॉलीवुड डायरेक्टर : आसारामजी बापू को फंसाने में और अभी तक फंसाये रखने में पर्सनल किसी का हाथ है


जुलाई 15, 2017
🚩मुम्बई : बॉलीवुड में फाइट डायरेक्टर, स्टंट मास्टर मुम्बई के अजय ठाकुर ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि अभीतक बिना सबूत हिन्दू संत आसारामजी बापू को फंसाने में किसी का बहुत बड़ा हाथ है।
🚩आइये आपको बताते हैं क्या कहा अजय ठाकुर ने...
उन्होंने कहा कि 80 साल के संत को 4 साल हो गए अभी सिर्फ इल्जाम लगा है साबित नहीं हुआ है, अभी तक बेल नहीं मिल रही है । जो ट्रीटमेंट आम आदमी को जेल के अंदर मिलनी चाहिए वो नहीं मिल रही, जो फेसिलिटिस मिलनी चाहिए वो नहीं मिल रही । संत आसारामजी बापू को #मेडिकल #ट्रीटमेंट के लिए रोका जा रहा है इससे बुरा नहीं हो सकता पर पता चलता है कि पर्सनल किसी का हाथ है इसके पीछे !! उनको फंसाने में और अभी तक वहाँ पर फंसाये रखने में !!
Ajay Thakur

🚩सरकार को अपील की..
हमारे हिन्दू संतों पर आज से नहीं काफी सालों से ये चल रहा है और चलते ही आ रहा है तो हम कोशिश करेंगे कि जो #वर्तमान #सरकार है,कहा जाता है कि वो हिन्दुत्वादी है ।
संत आसारामजी बापू मैटर में मैं सरकार से आग्रह करूँगा कि 4 साल हो गए कुछ तो हल होना चाहिए जो भी हो उसको फास्ट #सर्विस करवाके जिस तरह से, जो हल निकलता है वो निकाले । कम से कम उनको एक बेसिक रेकवेरमेंट जो हर कैदी की होती है वो तो दिया जाय !! मेडिकल फेसिलिटिस उनको नहीं दी जाती है वो तो दिया जाए, वो तो मिलना चाहिए, वो तो उनका हक है..!!
🚩फंसाने में #ईसाई #मिशनरियों का बड़ा हाथ...
#संत #आसारामजी बापू ने सबसे बड़ा स्टार्टअप किया था वो है 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस , जो वैलेंटाइन का सबसे बड़ा subsidise  है । वेलेंटाइन क्या होता है ? #पैसे की बर्बादी, 2 लोग जाते है जबरदस्ती अपनी जिंदगी बर्बाद करते है । कितना बढ़िया subsidise है । प्यार ही करना है,अपने माता-पिता को कीजिए । वेलेंटाइन डे की गंदगी को, उस बुराई की जगह पर #मातृ-पितृ पूजन दिवस..! मुझे लगता है पूरे हिंदुस्तान में काफी अच्छी तरह से मनाया जा रहा है और इससे भी आगे बढ़ेगा ।
🚩मैं जब #कान्वेंट स्कूल में पढ़ता था । अब कान्वेंट स्कूल में #क्रिस्चियनिटी कल्चर थोपा जाता है, उसका मतलब आपको सुबह सुबह जबरदस्ती चर्च में ले जाया जाता है,जिसस के सामने प्रेयर कराई जाती है । मैं किसी धर्म के खिलाफ नहीं हूँ,थोपने का उनका तरीका जो है । वो ऐसा लगता था कि हिन्दू कल्चर क्या है हमें पता नहीं था पर हम क्रिस्चियन ज्यादा थे Name of father and other सब पता था । पर हमारी आरती या भजन क्या होता है वो पता नहीं । जब हम संत आशारामजी बापू से जुड़े तो हमने आरती करना शुरू किया, मंदिर जाना शुरू किया, नियम शुरू किया ।
🚩अब आपको लगता है जो अपना कल्चर तोड़ना चाहते हैं वो ये सब चीजें बर्दाश कर सकते हैं,"नहीं कर सकते ।" यही चीज संत #आशारामजी बापू के साथ में, उन लोगों को प्रॉब्लम हुआ है । जहाँ मिशन चल रहा है क्रिस्चियन में कन्वर्ट करें, आदिवासियों को कन्वर्ट करें, North & East कन्वर्ट कर दिया । कोई एक आदमी खड़ा होता है और उनके कल्चर को फिराने की कोशिश करता है तो वो बहुत obselly है । ईसाई मिशनरियों के पास खरबों रुपये है 2 मिनट लगाएंगे किसीको फंसाने में जो उनके काम में कोई बाधा डालता है ।
🚩तो ये कोई छुपी बात नहीं है,सरेआम है कि ये क्रिस्चियन कन्वर्जन है । सारे संतों पर उन्होंने आरोप लगाए जेल पहुँचाया कइयों को मार भी दिया है और संत आसारामजी बापू इतने बड़े संत हैं,उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी कि वो और कल्चर का ना फैलाव कर सकें उनको फंसा दिया सिंपल सी बात है ।
🚩न्यायव्यवस्था पर उठायें सवाल
#न्यायव्यवस्था हमारे #हिंदुस्तान में इस तरह ही है । जब कोई सिर्फ एक आरोप है सिर्फ और बंद कर दो 4-5 साल तक 10 साल तक केस चलता रहे,उसके बाद अगर क्लीन चिट मिल जाये उनको सजा साबित न हो तो उसके बाद उसका कोई मुआवजा नहीं है ।
🚩मुआवजा किसीकी जिंदगी का कर भी नहीं सकता है । जैसे बापूजी के 80 साल में 4 साल ऑलरेडी खराब कर चुके हैं और आज अभी तक एक भी आरोप साबित नहीं हुआ। #साध्वी ₹_प्रज्ञा है 9 साल के बाद इतना अत्याचार करने के बाद रीड की हड्डी तोड़ने के बाद इतना टॉर्चर करने के बाद बेक लैस है।  वो कुर्सी पर है और क्लीन चिट मिल गया है । ये न्यायव्यवस्था हमारे हिंदुस्तान का है,मैं आशा करता हूँ कि ये सुधरे, बहुत गड़बड़ी है ।
🚩जनता को व्यवस्था सुधारने की अपील की
आज जितने भी दर्शक हैं जो मुझे देख रहें हैं,मैं इतनी ही आप सब से विनती करता हूँ जो हो सके हम उतनी तो कोशिश करें.. हमारा जो सिस्टम है जो उतना करप्ट है इसको थोड़ा अच्छे रास्ते ला सकें और इतना अन्याय किसीके साथ न हो,ये ध्यान रखना सिर्फ हमारा कर्तव्य है । हम आज नहीं सुधरेंगे तो लगता नहीं जिंदगी में कभी सुधर पाएंगे । हम आज तो पछता लेंगे पर कल को हमारे बच्चों पछताएगे।
🚩सत्य की होगी जीत
🚩आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ गलत जीत गया हो "सत्य की जीत ये अटूट है" आज से नहीं रामजी से उससे भी पहले चलता आ रहा है, बुराई हावी होती है पर "आखिर में #सत्य, सत्य जीतेगा और #संत आसाराम बापू बाहर क्लीन चिट लेकर आएंगे "" !!
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धर्म परिवर्तन और दंगे कराने वाले विदेशी फंडेड एनजीओ पर जल्द गिरेगा सरकारी कहर


जुलाई 14, 2017

विदेशी चंदे से चलने वाले एनजीओ पर खतरे की तलवार लटक रही है। गृह मंत्रालय ने इन सभी एनजीओ को विदेशी #चंदे की फंडिंग को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया है। जिसके बाद सभी एनजीओ को 23 जुलाई तक अपने जवाब दाखिल करने होंगे। 
foreign ngos

अपने नोटिस में मंत्रालय ने पूछा है कि क्यों ना उनका फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट (एफसीआरए) #रजिस्ट्रेशन #कैंसिल कर दिया जाए। 

आपको बता दें कि लगभग 20 हजार एनजीओ एफसीआरए के तहत रजिस्टर हैं। इन्ही विदेशी पैसो से बहुत जगह देश में #धर्म परिवर्तन, #साम्प्रदायिकता, उन्माद फैलाया जाता है। इन बाहर से आने वाले #पैसों से गरीबों को पैसे का लालच दे उनका धर्म परिवर्तन कराया जाता है। कुछ मामलों में तो साम्प्रदायिकता नफरतें तक फैलाई जाती हैं । वहीं, लगभग 20 हजार एनजीओ #एफसीआरए के तहत रजिस्टर हैं। 

बता दे कि नवंबर 2016 में #सरकार ने 11,000 एनजीओ को निर्देश दिया था कि अपने रजिस्ट्रेशन के रिन्यूअल के लिए 28 फरवरी, 2017 तक आवेदन करें। इसके बाद फरवरी 2017 तक 3,500 से ज्यादा एनजीओ ने अपने रजिस्ट्रेशन के रिन्यूअल के लिए आवेदन किया। रिन्यूअल अप्लीकेशन न भरने के चलते लगभग 7000 हजार से ज्यादा #एनजीओ का #रजिस्ट्रेशन खत्म हो सकता है।

आपको बता दें कि #भारत में चलनेवाले #NGOs को 150 से ज्यादा देशों से हर साल 10,000 करोड़ रुपये से अधिक विदेशी चंदा प्राप्त होता है । इनमें #अमेरिका, यूरोप और संयुक्त अरब अमीरात से सबसे अधिक धन आता है ।


 #गृह मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2013-14 में 33,346 पंजीकृत #NGOs को विदेशों से लगभग 13,000 करोड़ रुपये प्राप्त हुए । विदेशों से मिलनेवाले चंदे के वार्षिक #रिटर्न्स (कर-विवरणी) न भरने पर वर्ष 2015  में सरकार द्वारा 31,000 से अधिक #NGOs  को नोटिस दिये गये थे ।

खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि कुछ# NGOs समाजसेवा की आड़ में भारत में गरीब आदिवासियों के #ईसाईकरण तथा देशविरोधी गतिविधियों में संलग्न हैं ।


खुफिया एजेंसियों ने इरोड (तमिलनाडु) की एक #NGO ट्रिनिटी चैरिटेबल ट्रस्ट के बारे में अपनी रिपोर्ट में बताया कि ‘इसके मुख्य पदाधिकारी ने यह संस्था चर्च-परिसर में शुरू की थी जिसके 80 सदस्यों में से 70 धर्मांतरित हैं । इसके 2 ट्रस्टी भी धर्मांतरित हैं ।’


गौरतलब है कि विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं मुख्य संरक्षक# श्री अशोक सिंघल जी जब हिन्दू संत आशारामजी बापू से मिलने जोधपुर आये थे तो उन्होंने #संत आसारामजी बापू को षड़यंत्र में फँसाये जाने की बात उजागर करते हुए दावा किया था कि "देश में विदेशी पैसों से चलनेवाले ऐसे लाखों #NGOs हैं जो भारत की संस्कृति व संतों के खिलाफ कार्य कर रहे हैं ।"

इन खुलासों के बाद यह बड़ा सवाल है कि #भारत को तोड़ने के लिए धन मुहैया करानेवाले लोग कौन हैं ? 

विदेशों से चंदा लेकर भारत में धर्मांतरण व साम्प्रदायिकता का धंधा करनेवाले# NGOs को कब बंद किया जायेगा ?

आपको बता दें कि देश में जितने भी बड़े-बड़े आंदोलन होते हैं, साम्प्रदायिकता उन्माद फैलाता है, हिन्दू कार्यकर्ताओं की हत्या होती है, हिन्दू संतों को बदनाम करके जेल भिजवाया जाता है, धर्मांतरण करवाया जाता है, हिन्दुओं को मीडिया द्वारा बदनाम करवाया जाता है, जो भी राष्ट्र विरोधी कार्य होते हैं  उनके पीछे कहीं न कहीं विदेशी फंड से चलने वाले NGOs का हाथ होता है । जो भारत को तोडने के लिए काम कर रहे हैं ।

सरकार को अब इन NGOs पर जल्दी लगाम लगानी चाहिए जिससे देश में सुख शांति बनी रहे ।

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शराब से होने वाली मौतों के लिए सरकार कितनी जिम्‍मेदार ?


जुलाई 13, 2017
🚩रेस्टोरेंट में कढ़ाई पनीर और बटर नान खाने से लेकर क्रेडिट कार्ड के बिल और खादी का कुर्ता सब जीएसटी के अन्दर आ चुका है। अब इस देश के एक आम आदमी को इनपर 5 प्रतिशत से 12 प्रतिशत तक टैक्स देना होगा। आज सरकार द्वारा जीएसटी के टैक्स स्लैब में लगभग सभी चीजों को शामिल कर लिया गया है मगर अब भी शराब इससे दूर है। इस लेख के लिखे जाने तक शराब जीएसटी से बाहर है। इसके पीछे तर्क यह है कि शराब से भारी कमाई होती है और हर राज्‍य को इससे अतिरिक्‍त कमाई का अधिकार है।



Why no inclusion of alcohol in GST

🚩अब अगर सरकार के इस फैसले पर गौर करें और इस फैसले के दूसरे पहलूओं पर विचार करें तो मिलता है कि जहां एक तरफ इससे सरकार को भारी राजस्व प्राप्त हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ इससे हो रही या इसके चलते हो रहीं मौतों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। टीवी और वेबसाइटों की स्क्रीन से लेकर अखबारों के पन्नों तक रोज हम ऐसा कुछ न कुछ जरूर पढ़ते हैं जिसमें या तो शराब से हुई मौतों का जिक्र होता है या फिर ये बताया जाता है कि कहीं शराब के प्रभाव से व्यक्ति ने हत्या, बलात्कार, लूट का प्रयास किया या वो सड़क हादसे से जुड़ी घटनाओं का शिकार हुआ।
🚩आज बात शराब पर निकली है तो आगे बढ़ाने से पहले हम आपको एक खबर से अवगत कराना चाहेंगे। खबर है कि उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में कच्ची शराब पीने से 21 लोगों की मौत हो गयी है। हो सकता है इस बता को पढ़कर आप चंद मिनटों के लिए उन लोगों की मौत पर अफसोस जताएं और फिर इसे एक आम घटना मान कर भूल जाएं।  मगर हम इसे एक आम घटना नहीं मानेंगे और यही कहेंगे कि ये एक गहरी चिंता का विषय है.ल।
🚩#शराब, #मौत, #सरकार
🚩चूंकि विषय शराब और उससे उत्पन्न होने वाला जोखिम है तो हम यहां कुछ आंकड़े भी प्रस्तुत करना चाहेंगे।  विश्व स्वास्थ्य संगठन ( #डब्लूएचओ ) द्वारा 2014 में शराब की खपत पर पेश की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 30 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं जिसमें से 11 प्रतिशत लोग हद से ज्यादा शराब पीते हैं। अब अगर बात शराब की सालाना खपत पर की जाए तो एक औसत भारतीय एक साल में 4.3 लीटर और एक #ग्रामीण #भारतीय 11.4 लीटर शराब पीता है।
🚩शराब से हुई #मौतों पर चर्चा की जाये तो डब्लूएचओ के आंकड़ों के अनुसार 2014 तक 3.3 मिलियन लोग शराब पीने से मर चुके हैं। ध्यान रहे कि  सिर्फ शराब पीने से ही 2009 में हुए एक हादसे में #गुजरात में 136 और 2015 में #महाराष्ट्र में 94 लोग मर चुके हैं और वर्तमान में  उत्तर प्रदेश के #आजमगढ़ में शराब पीने के चलते हुई 18 लोगों की मौत हमारे सामने है।
🚩अब तक हम डब्लूएचओ के आंकड़ों को आधार बनाकर बात कर रहे हैं अब हम आपको राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के डाटा से अवगत कराएंगे जो निश्चित तौर पर आपको हैरत में डाल देगा। #एनसीआरबी के डाटा के अनुसार #महिलाओं के साथ होने वाले 70 से 85 प्रतिशत अपराधों में कहीं न कहीं शराब या उसके प्रभावों का हाथ होता है। 2015 में एनसीआरबी द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार केवल 2014 में 2026 महिलाओं का यौन शोषण हुआ, 1423 महिलाओं के अपरहण का मामला प्रकास में आया, 1286 महिलाएं #बलात्कार का शिकार हुईं साथ ही 11,206 महिलाओं ने हिंसा और अपराध को किसी न किसी रूप में देखा। इस पूरे सर्वे की खास बात ये थी कि इन सभी मामलों में शराब सक्रिय रूप से जुड़ी हुई है।
🚩गौरतलब है कि शराब की बोतल से लेकर पान मसाले की पुडिया और सिगरेट के रैपर पर एक वैधानिक चेतावनी देखने को मिलती है जिसमें इसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते हुए मौत का कारण माना गया है। इनको खा पीकर लोगों का मरना आम बात हो गयी है और इस पूरे प्रकरण में सरकार की नाक के नीचे इनका विक्रय इस बात की ओर साफ #इशारा करता है कि सरकार को लोगों की मौत से कोई मतलब नहीं है और उसे बस अपने भारी #राजस्व की चिंता है।
🚩जिस तरह शराब बेचीं जा रही है उससे साफ पता चलता है कि सरकार को जनता की बिल्कुल भी परवाह नहीं है ।
🚩सरकारें इस बात को बेहतर ढंग से जानती हैं कि यदि उन्होंने शराब या उन उत्पादों के इस्तेमाल और उनके क्रय - विक्रय पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया तो उन्हें भारी नुकसान होगा। अब प्रश्न उठता है कि चूंकि ये सब सरकार की अगुवाही में हो रहा है और इससे लोग मर रहे हैं तो क्या इन मौतों की जिम्मेदार सरकार है ? अगर उत्तर प्रदेश, कर्नाटक या मध्य प्रदेश में शराब के सेवन से कोई मरता है तो क्या वहां के मुख्यमंत्री को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए क्या उस मौत पर उस राज्य के शासक पर #302 का #मुकदमा दर्ज होना चाहिए?
🚩बात बहुत सीधी सी है जिस तरह गुड टेररिज्म बैड टेररिज्म जैसा कुछ नहीं होता वैसे ही नशे में भी नहीं होता। कोई नशा न अच्छा होता है न बुरा नशा बस नशा होता है। यदि सरकार #शराब, पान मसाले और #सिगरेट को वैधानिक चेतावनी के साथ बेच सकती है तो फिर उसे #चरस, #गांजे, #भांग, #कोकेन, #हेरोइन, #ब्राउन #शुगर जैसी चीजों को भी खुले बाजार में बेचना चाहिए। क्यों सरकार इनके बेचने पर इतना हो हल्ला मचाती है।
🚩बहरहाल, जिस तरह आजमगढ़ में शराब पीने से 18 लोगों की मौत हुई वो न सिर्फ एक शर्मसार करने वाली घटना है बल्कि ये भी बताने के लिए काफी है कि न ही केंद्र को और न ही राज्य सरकारों को एम आम आदमी की मौत से कोई मतलब है। लोग पहले भी शराब पी कर मर रहे थे आगे भी मरेंगे। सरकार तब भी #पैसा कमा रही थी आगे भी कमाएगी। हम इस तरह राजस्व कमाने के लिए न तो सरकार की निंदा कर रहे हैं और न ही आलोचना।
🚩यदि सरकार नशे के अन्य उत्पादों पर प्रतिबंध लगा चुकी है तो उसे शराब को भी प्रतिबंधित करना चाहिए
हम बस इतना जानने के इच्छुक हैं कि आखिर आज तक उसने उन 33 लाख परिवारों के साथ क्या किया जिन्होंने शराब के चलते अपनी जान गंवाई है। हो सकता है इस बात से आप असहमत हों मगर सत्य यही है कि प्रत्येक नागरिक के लिए सरकार ही जिम्मेदार है। शराब पीने से मरता तो केवल एक व्यक्ति है मगर अब तक हमने कभी उन बिन्दुओं पर नहीं सोचा कि आखिर उस परिवार का क्या होता होगा जिसने एक बुरी लत के चलते किसी अपने को खोया है।
🚩शराब से या फिर उसके प्रभाव से हुई मौतों पर हम यही कहेंगे कि अगर सरकार इन मौतों पर अपना रुख साफ नहीं कर सकती है तो फिर उसे अपने को इन मौतों का दोषी मानते हुए कोर्ट के सामने हाजिर हो जाना चाहिए और ये कबूल कर लेना चाहिए कि इन मौतों पर उसकी जिम्मेदारी है।
🚩अंत में हम यही कहेंगे कि यदि सरकार वाकई लोगों के लिए गंभीर है तो फिर उसे शराब से लेकर हेरोइन कोकेन तक किसी भी तरह के नशे पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए और ये मान लेना चाहिए कि नशा सिर्फ नशा है इसमें अच्छा बुरा कुछ नहीं है और इससे विकास न होकर केवल विनाश ही होता है। ( स्रोत: ईचौक)
🚩मनुष्य जाति को अधिकाधिक हानि यदि किसी ने की हो, तो वे हैं #मादक #पदार्थ। उनसे मनुष्य के #धन, #आरोग्यता और #जीवन का नाश होता है। मादक पदार्थों का सेवन करने से भावी सन्तान दिनोंदिन निर्बल तथा निस्तेज बनती जाती है ।
🚩व्यसन करने से मनुष्य की #स्मरणशक्ति का नाश हो जाता है, #मानसिक रोगों को बढ़ावा मिलता है । इसके सेवन से फेफड़ों की बिमारी, पुरानी खाँसी, दमा, क्षयरोग, अर्धपागलपन, #अंधापन, #हार्टअटैक, मुँह व गले के #कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है । #पाचनशक्ति व सहनशक्ति कम होती है । इससे मनुष्य की आयु क्षीण होती रहती है ।
🚩नशे छोड़ने का उपाय :  (1) 100 ग्राम सौंफ, 100 ग्राम अजवायन और थोड़ा-सा काला नमक लेकर उसमें 2 बड़े नींबू निचोड़ लो । इस मिश्रण को तवे पर सेंककर रख लो । जब भी #गुटखा, #तम्बाकू, #बीड़ी, #सिगरेट की लत खींचने लगे तो इसमें से थोड़ा-सा मिश्रण लेकर चबाओ । इससे #गैस मिटती है, रक्त शुद्ध होता है, पाचनशक्ति बढ़ती है, भूख खुलकर लगती है ।
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