Tuesday, July 25, 2017

कश्मीरी पंडितों की मौत की जांच से सुप्रीम कोर्ट का इनकार



जुलाई 25, 2017

उच्चतम न्यायालय ने कश्मीर में 27 वर्ष पहले हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की दोबारा जांच के निर्देश देने से इनकार कर दिया है । न्यायालय में दायर याचिका में वर्ष 1989  में 700 कश्मीरी पंडितों की हत्या के मामले में दर्ज केसों में से 215 मामलों की दोबारा जांच के आदेश देने की मांग की गई थी ।
kashmir genocide

मुख्य न्यायाधीश जे. एस. खेहर और न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की बेंच ने ‘रूट्स इन कश्मीर’ की याचिका खारिज करते हुए कहा कि, इतने वर्ष बाद सबूत जुटाना बेहद मुश्किल होगा । ‘रूट्स इन कश्मीर’ कश्मीरी विस्थापित पंडितों की संस्था है ।

इतना ही नहीं उच्चतम न्यायालय ने याचिकाकर्ता को फटकार भी लगाई । न्यायालय ने पूछा कि, आखिर पिछले 27 वर्ष से आप कहां थे ? हम अब इस मामले को नहीं सुन सकते । हमे ऐसा लगता है कि, आप ने ये मांग मीडिया की सुर्खियों में आने के लिए की है ।

न्यायालय के इस सवाल पर याचिकाकर्ता के वकील विकास पडोरा ने कहा ‘माई लॉर्ड हम तो अपनी जान की हिफाजत के लिए भागे-भागे फिर रहे थे । राज्य सरकार कहां थी ? केंद्र सरकार कहां थी ? इन सरकारों को आना चाहिए था । उन्होंने कहा कि, न्यायालय भी तो स्वतः संज्ञान ले सकती थी । बहुत से मामलों में न्यायालय ऐसा करती है। वकील ने न्यायालय में कहा, ”आप पूछते हैं कि, 27 वर्ष से आप कहां थे, हम नहीं सुन सकते । जब आप 1984  दंगा का केस सुन सकते हैं तो कश्मीरी पंडितों का क्यों नहीं ?”

हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील पडोरा की तमाम दलीलों को दरकिनार करते हुए न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई से साफ इंकार कर दिया ।

आपको बता दें कि 1990 में सारे कश्मीरी मुस्लिम सड़कों पर उतर आये थे । उन्होंने कश्मीरी पंडितो के घरो को जला दिया, कश्मीर पंडित महिलाओं का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके नग्न शरीर को पेड़ पर लटका दिया था । कुछ महिलाओं को जिन्दा जला दिया गया और बाकियों को लोहे के गरम सलाखों से मार दिया गया । बच्चों को स्टील के तार से गला घोटकर मार दिया गया । कश्मीरी महिलाये ऊंचे मकानों की छतों से कूद कूद कर जान देने लगी और देखते ही देखते कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन हो गई और कश्मीरी पंडित अपने ही देश में विस्थापित होकर दरदर की ठोकर खाने को मजबूर हो गए ।

3,50,000 कश्मीरी पंडित अपनी जान बचा कर कश्मीर से भाग गए । यह सब कुछ चलता रहा लेकिन सेकुलर मीडिया चुप रही । देश- विदेश के लेखक चुप रहे, भारत का संसद चुप रहा, सारे सेकुलर चुप रहे । किसी ने भी 3,50,000 कश्मीरी पंडितो के बारे में कुछ नहीं कहा । और अभी सुप्रीम कोर्ट ने भी  सुनवाई करने से इनकार कर दिया ।

हिन्दुस्तान का हिन्दू आखिर जाये तो जाये कहाँ..???

नेता अपनी सत्ता की खातिर सेकुलरों के तलवे चाटने में मग्न हैं और इसलिए हिन्दू उन्हें दिखाई ही नहीं देते । हिन्दुस्तान के मिलार्ड भी आँख पर हरा चश्मा पहन चुके हैं, ट्रिपल तलाक पर उन्हें मजहब की चिंता रहती है पर दही हांड़ी और जलीकट्टू इन्हें मात्र खेल लगता है ।

एक अखलाक की मौत तो इन्हें दर्दनाक लगती है पर 700 कश्मीरी पंडितों की ह्त्या पर इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ।

हिन्दुओं का दुर्भाग्य है कि वो सेकुलर हिन्दुस्तान के नागरिक हैं ।

जलीकट्टू हो या दही हांडी की ऊंचाई, मिलार्ड सुनवाई के लिए तत्पर रहते हैं, लेकिन राममंदिर मामले में 'डे टू डे' हियरिंग की याचिका मिलार्ड समय का अभाव बताकर खारिज कर देते हैं, वहीं ट्रिपल तलाक वाला मामला छुट्टियों में चलाने के लिए मिलार्ड राजी हो जाते हैं ।

राजनीति से तो हिन्दुओं की उम्मीद टूट चुकी थी अब मिलार्ड भी सेकुलर निकले ।

न्यायपालिका बनी अन्याय पालिका...!!!

1990 में मुसलमानों के गुंडों द्वारा मार काट करके भगा दिया जाने वाला मामला पुराना बताकर खारिज कर दिया लेकिन वही दूसरी ओर मिलार्ड 1528 में तोड़े गये राम मंदिर के सबूत कैसे ढूंढ रहे हैं..???

हिन्दुस्तान सेकुलर देश होने की वजह से हिन्दू हर तरह से लाचार है ।

हिंदुस्तान में सेकुलर राजनीति सेकुलर नेता, सेकुलर लोकतंत्र, सेकुलर संविधान, सेकुलर न्यायापालिका हिन्दुस्तान में हिन्दुओं को किसी से भी उम्मीद रखने की जरूरत नही है।

आतंकवादी याकूब को फाँसी रोकने के लिए रात को 12 बजे कोर्ट खुल सकती है लेकिन वहीं दूसरी ओर 27 साल पुराना केस खारिज कर दिया जाता है ।

बाबरी मस्जिद का ढांचा भी तोड़े 25 साल हो गये फिर भी क्यों उसका केस चल रहा है? 

क्यों अभीतक राम मंदिर की परमिशन नही मिल रही है?


हिन्दुस्तान में हिंदुओं को सरकार, न्यायालय द्वारा इसलिए कोई सहायता या न्याय नही मिल रहा है क्योंकि हिंदुओं में एकता नही है, जिस दिन एकता हो जायेगी उस दिन हर जगह से न्याय मिलने लगेगा ।

अतः अब समय आ गया है हिंदुओं के एक होने का..!!

Monday, July 24, 2017

विश्वमें अबतक हुए युद्धोंमें जितना रक्तपात नहीं हुआ होगा जितना धर्म-परिवर्तन के कारण हुआ



धर्म-परिवर्तनकी समस्या अर्थात् हिंदुस्थान एवं हिंदु धर्मपर अनेक सदियोंसे परधर्मियोंद्वारा होनेवाला धार्मिक आक्रमण ! इतिहासमें अरबीयोंसे लेकर अंग्रेजोंतक अनेक विदेशियोंने हिंदुस्थानपर आक्रमण किए । साम्राज्य विस्तारके साथ ही स्वधर्मका प्रसार, यही इन सभी आक्रमणोंका सारांश था । आज भी इन विदेशियोंके वंशज यही ध्येय सामने रखकर हिंदुस्तानमें नियोजनबद्धरूपसे कार्यरत हैं । 

प्रस्तूत लेख द्वारा हम ‘धर्म-परिवर्तन’ के दुष्परिणाम समझ लेंगे ।
genocide for conversion

*सामाजिक दुष्परिणाम*

1 ‘धर्मांतरितोंके रहन-सहनमें विलक्षण परिवर्तन दिखाई देनेके कारण कंधमलमें (उडीसामें) ईसाई  बनी जनजातियां और वहांके परंपरागत समाजमें दूरियां बढ गई हैं ।’

2. नागभूमिमें (नागालैंडमें) ईसाइयोंके धार्मिक दिवस रविवारके दिन अन्य कार्यक्रम प्रतिबंधित हैं । उस दिन बसें भी बंद रहती हैं । कृषक अपने खेतोंमें रविवारको काम नहीं कर सकते । यदि वे करें, तो उन्हें 5 हजार रुपए दंड भरना पडता है एवं 25 कोडे खाने पडते हैं ।

3 . ‘मेघालय राज्यमें केंद्रशासनके नियमानुसार रविवारको छुट्टी रहती है । किंतु , इस विषयमें मेघालय शासनके ग्रामीण विकास विभागकी अप्पर सचिव श्रीमती एम्. मणीने एक लिखित उत्तरमें कहा, ‘हमारा राज्य ईसाई होनेके कारण रविवारको यहां सबकी छुट्टी रहती है ।’ ’

*सांस्कृतिक दुष्परिणाम*

1 ‘नागभूमिमें (नागालैंडमें) बाप्तिस्त मिशनरियोंने स्थानीय नाग लोगोंको ईसाई पंथकी दीक्षा देकर उनका नाग संस्कृतिसे संबंध तोडा । उनका लोकसंगीत, लोकनृत्य, लोककथा और धार्मिक परंपराओंका, दूसरे शब्दोंमें उनकी संस्कृतिका विनाश भी इन मिशनरियोंने किया । उन्होंने नाग लोगोंको पूर्णतः पश्चिमी मानसिकताके रंगमें रंग दिया ।’ 

2 . मिजोरममें, मिजो राजाके ढोल जैसा परंपरागत वाद्य बजानेपर वहांके ईसाई संगठनोंने प्रतिबंध लगा दिया है । वहांके ईसाइयोंने धमकी दी है, ‘यदि राजाने यह परंपरा जारी रखी, तो इसके परिणाम गंभीर होंगे’ ।

3. ‘धर्मांतरित हिंदु ‘हिंदुस्थान’को नहीं, अपितु ‘रोम’को पुण्यभूमि मान, हिंदुस्थानकी पवित्र नदियां, पर्वत, नागरिक, राष्ट्रभाषा, वेशभूषा और संस्कृतिका तिरस्कार करने लगे हैं ।’ – ईसाई स्वतंत्रता सेनानी राजकुमारी अमृत कौर

4. धर्म-परिवर्तनके कारण सांस्कृतिक जीवनसे संबंधित संकल्पना भी परिवर्तित होती है, यह नियम व्यक्तियोंपर ही नहीं, नगरोंपर भी लागू होता है । इस्लामी आक्रमणकारियोंने ‘औरंगाबाद’, ‘हैदराबाद’, ‘इलाहाबाद’, ‘फैजाबाद’ जैसे अनेक स्थानोंके हिंदुओंके साथ ही उन नगरोंके नामोंका भी इस्लामीकरण कर उनका सांस्कृतिक परिचय नष्ट कर दिया ।


*संस्कृति पूर्णतः नष्ट होना*

1. आग्निपूजक पारसी लोगोंके मूल स्थान ईरानमें इस्लामी आक्रमणकारियोंने उनपर अत्याचार कर उन्हें धर्म-परिवर्तनके लिए बाध्य किया तथा जिन्होंने ऐसा नहीं किया, उन्हें वहांसे भगा दिया । उन पारसियोंको हिंदुस्थानने आश्रय दिया । आज ईरानमें पारसी संस्कृतिका एक भी चिह्न शेष नहीं है ।

2. ईसाईकृत धर्मांतरणके कारण ही रोम और ग्रीक संस्कृतियां नष्ट हुर्इं ।

3. अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और रूसकी आदिवासी (मूल) संस्कृतियां नष्ट होना : ईसाई धर्मप्रचारकोंने अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और रूसके करोडों भोले-भाले आदिवासियोंका धर्म-परिवर्तन कर उनके चरित्र, जीवन-शैली, जीवन-मूल्य एवं उनकी संस्कृति और संस्थाओंका सर्वनाश कर दिया ।
*राष्ट्रीय दुष्परिणाम*

1. ‘अनेक व्यक्ति, जिनका धर्म-परिवर्तन हो चुका है, अब वे मानसिकता राष्ट्रविरोधी हो गए हैं ।’ – ईसाई स्वतंत्रता सेनानी, राजकुमारी अमृत कौर

2. ‘आज मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और मणिपुरका पर्वतीय भाग एवं अरुणाचल प्रदेशके कुछ भागोंमें धर्मांतरित जनजातियोंमें राष्ट्रविरोधी भावना तीव्र है ।’ 

धर्म-परिवर्तनसे राष्ट्र परिवर्तन

स्वातंत्र्यवीर सावरकरने अनेक वर्ष जनजाग्रति करते समय चेतावनी दी, ‘धर्म-परिवर्तन राष्ट्र परिवर्तन है ।’ उनकी यह चेतावनी कितनी अचूक थी, यह आगे दिए हुए सूत्रोंसे और स्पष्ट हो जाएगी ।

*नागालैंड*
‘हिंदुस्थान स्वतंत्र होनेके पश्चात् तुरंत ही ईसाई धर्ममें धर्मांतरित विद्रोहियोें ‘अंगामी जापो फीजो’ नामक ईसाईके नेतृत्वमें नाग विद्रोहियोंने भारतके विरुद्ध सशस्त्र विद्रोहकी घोषणा कर दी । ‘नागालैंड फॉर क्राईस्ट’, यह उनकी धर्मांध युद्धघोषणा थी । इन नाग विद्रोहियोंको शस्त्रोंकी और अन्य प्रकारकी सहायताका दुष्कर्म माइकल स्कॉट नामक ईसाई मिशनरीने किया । बौप्टस्ट मिशनरियोंके दबावमें आकर धर्मनिरपेक्ष शासनने इन फुटीर पृथकतावादियोंकी सर्व मांगें मान लीं और नागालैंड राज्यका निर्माण हुआ ।’
– श्री. विराग श्रीकृष्ण पाचपोर

४‘नागालैंडमें ‘Nagaland belongs to Jesus Christ ! Bloody Indian dogs get lost !’ !’ अर्थात् ‘नागालैंड ईसा मसीहकी भूमि है ।
मूर्ख भारतीय कुत्तों, यहांसे निकल जाओ !’ इस प्रकारकी घोषणाएं जगह-जगहपर लिखी हुई मिलती हैं ।’

‘स्वतंत्र ईसाई राज्य मिलनेके पश्चात् फुटीरतावादी ईसाइयोंने स्वतंत्र नागालैंड राष्ट्रकी मांग करनेके लिए देशके विरुद्ध सशस्त्र विद्रोहकी घोषणा की ।’

*कश्मीर*
हिंदुस्थानको स्वतंत्रता-प्रााप्तके पश्चात् कश्मीरमें बहुसंख्यक मुसलमानोंने कश्मीरके लिए पृथक संविधान एवं दंडविधान (कानून) बनानेका अधिकार प्राप्त कर लिया । कश्मीरके प्रथम मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्लाका ध्येय था, ‘स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्र’ । इसके लिए उन्होंने राष्ट्रविरोधी कृत्य कर पाकसे साठगांठ की । फलस्वरूप कश्मीरी मुसलमानोंमें फुटीरतावादी मानसिकता दृढ हुई । फुटीरतावादी ‘हुरियत कॉन्फ्रेंस’ संगठनने ‘आजाद कश्मीर’का प्रचार आरंभ किया । स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्रकी स्थापना हेतु, ‘जम्मू कश्मीर मुक्त मोर्चा’ (जेकेएल्एफ्) आदि आतंकवादी संगठनोंका जन्म हुआ । इस कारण, आज वहां राष्ट्रीय त्यौहारोंके दिन राष्ट्रध्वज फहराना भी कठिन हो गया है ।

*धार्मिक दुष्परिणाम*
1. ‘हिंदु समाजका एक व्यक्ति मुसलमान अथवा ईसाई बनता है, तो इसका अर्थ इतना ही नहीं होता कि एक हिंदु घट गया; इसके विपरीत हिंदु समाजका एक शत्रु और बढ जाता है ।’ – स्वामी विवेकानंद

2. तमिलनाडु राज्यमें धर्मांतरित हिंदुओंद्वारा ईसाई बने मछुआरे समाजने स्वामी विवेकानंदका स्मारक बनानेका विरोध किया ।

3. कालडी (केरल) नामक आदिगुरु शंकराचार्यके इस गांवमें उनके नामसे अभ्यास केंद्र बनानेका ईसाई बने वहांके ग्रामीणोंने विरोध किया है ।

4. इस्लामी आक्रमणोंके समय प्राणभयसे अथवा धनके लोभसे धर्मांतरण करनेवाले धर्मभ्रष्ट हिंदुओंने ही आगे कट्टरतापूर्वक हिंदुओंका नरसंहार किया और असंख्य हिंदुओंको मुसलमान बनाया । अलाउद्दीन खिलजीका सेनापति मलिक कपूर, जहांगीरका सेनापति महाबत खां, फिरोजशाहका वजीर मकबूल खां, अहमदाबादका सुलतान मुजफ्फरशाह और बंगालका काला पहाड मूलतः हिंदु थे । उन्होंने मुसलमान बननेके पश्चात् हिंदु धर्मपर कठोर आघात और हिंदुओंपर निर्मम अत्याचार किए ।

5. ‘मोहनदास गांधीके पुत्र हरिलालने मुसलमान बननेके पश्चात् अनेक हिंदुओंको मुसलमान बनाया । उसने यह प्रतिज्ञा की थी, ‘पिता मोहनदास और मां कस्तूरबाको भी मुसलमान बनाऊंगा ।’

6. इस्लामी आक्रमणकारियोंकी मार-काटमें अधिकांश कश्मीर घाटी हिन्दुओं से मुसलमान धर्मांतरित हुई । इन धर्मांतरित मुसलमानोंकी आगामी पीढियोंने वर्ष 1989 में हिंदुओंको चेतावनी दी, ‘धर्मांतरित हों अथवा कश्मीर छोडो ।’ फलस्वरूप साढेचार लाख हिंदुओंने कश्मीर छोडा, तथा 1 लाख हिंदु जिहादियोंद्वारा मारे गए । आज कश्मीरमें हिंदु पूर्णतः समाप्त होनेके मार्गपर हैं ।

*हिंदुओंका वंशनाश होनेका संकट* !

‘हिंदुओंका धर्मांतरण इसी गति से चलता रहा, तो जिस प्रकार 100 वर्षोंके पश्चात् आज हम कहते हैं, ‘किसी काल में पारसी पंथ था’, उसी प्रकार यह भी कहना पडेगा, ‘हिंदु धर्म था’; क्योंकि धर्मपरिवर्तनके कारण देशमें जब हिंदु अल्पसंख्यक हो जाएंगे, उस समय उन्हें ‘काफिर’ कहकर मार डाला जाएगा ।’ – डॉ. जयंत आठवले, संस्थापक, सनातन संस्था.

*वैश्विक अशांति*

1. ‘अनेक प्रकारके संघर्ष, जिनसे हम बच सकते हैं, धर्म-परिवर्तनके कारण ही उत्पन्न होते हैं ।’ – गांधीजी

2. ‘धर्म-परिवर्तन ही विश्वमें संघर्षका मूल कारण है । यदि विश्वमें धर्म-परिवर्तन न हो, तो निश्चित ही संघर्ष भी नहीं होगा ।’
– श्री. एम्.एस्.एन्. मेनन 

3. ‘मध्ययुगके अनेक युद्ध धर्म-परिवर्तनके कारण ही हुए हैं ।’ – (पत्रिका ‘हिन्दू-जागृति से संस्कृति रक्षा’)

4. ‘विश्वमें अबतक हुए युद्धोंमें जितना रक्तपात नहीं हुआ होगा, उससे कहीं अधिक रक्तपात ईसाई और मुसलमान इन दो धर्मियोंद्वारा किए गए धर्म-परिवर्तनके कारण हुआ ।’ – श्री. अरविंद विठ्ठल कुळकर्णी, ज्येष्ठ पत्रकार, मुंबई. स्त्रोत : हिंदु जनजागृति समिती

भारत में शीघ्र ही धर्मपरिवर्तन रोकना होगा नही तो बाद में बहुत पछताना पड़ेगा ।


🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻


🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk


🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt

🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf

🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX

🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

   🚩🇮🇳🚩 आज़ाद भारत🚩🇮🇳🚩

Sunday, July 23, 2017

1962 के बाद चीन भारत से 3 बार और युद्ध लड़ चुका है

23 जुलाई 2017

Add caption

🚩#1962 की लड़ाई #चीन द्वारा विश्वासघात के रूप में भारत को प्राप्त हुई, लेकिन चीन को 1962 के आगे के इतिहास को भी याद रखना चाहिए । 1967 में हमारे जांबाज सैनिकों ने चीन को जो सबक सिखाया था, उसे वह कभी भुला नहीं पाएगा ।
     
🚩चीन लगातार भारत पर 1962 के युद्ध के द्वारा दबाव बनाने की कोशिश में लगा हुआ है । चीनी सरकार के मुखपत्र #'ग्लोबल टाइम्स' द्वारा भारत को कभी युद्ध की धमकी दी जा रही है तो कभी 1962 जैसा परिणाम भुगतने की चेतावनी दी जा रही है । जहां तक 1962 की हार की बात है तो यह एक तरह की राजनीतिक पराजय थी, न कि सैन्य हार । भारत #पंचशील के स्वर्णिम स्वप्न में खोकर जब हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे में खोया हुआ था, तभी 1962 की लड़ाई चीन द्वारा विश्वासघात के रूप में भारत को प्राप्त हुई । परंतु चीन को 1962 के आगे के इतिहास को भी याद रखना चाहिए ।

🚩2017 में 1962 को स्मरण कराने वाले चीन को #1967 भी याद रखना चाहिए । 1962 के 5 वर्ष बाद इतिहास इसका भी गवाह है कि 1967 में हमारे जांबाज सैनिकों ने चीन को जो सबक सिखाया था, उसे वह कभी भुला नहीं पाएगा । यह सब भी उन महत्वपूर्ण कारणों में से एक है जो चीन को भारत के खिलाफ किसी दुस्साहस से रोकता है । 1967 को ऐसे साल के तौर पर याद किया जाता रहेगा जब हमारे सैनिकों ने चीनी दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देते हुए सैकड़ों चीनी सैनिकों को न सिर्फ मार गिराया था, बल्कि भारी संख्या में उनके बंकरों को ध्वस्त कर दिया था । रणनीतिक स्थिति वाले #नाथू ला दर्रे में हुई उस भीडंत की कहानी हमारे सैनिकों की जांबाजी की मिसाल है ।

🚩चीन को 1962 ही नहीं इसके आगे के इतिहास को भी याद कर लेना चाहिए

🚩#1967 की पहली लड़ाई

🚩#1967 के टकराव के दौरान भारत की 2 #ग्रेनेडियर्स बटालियन के जिम्मे नाथू ला की सुरक्षा जिम्मेदारी थी 
। नाथु ला दर्रे पर सैन्य गश्त के दौरान दोनों देशों के सैनिकों के बीच अक्सर धक्का मुक्की होते रहती थी । 11 सितंबर #1967 को धक्कामुक्की की एक घटना का संज्ञान लेते हुए नाथू ला से सेबु ला के बीच में तार बिछाने का फैसला लिया । जब बाड़बंदी का कार्य शुरु हुआ तो चीनी सैनिकों ने विरोध किया । इसके बाद चीनी सैनिक तुरंत अपने बंकर में लौट आए । कुछ देर बाद चीनियों ने #मेडियम मशीन गनों से गोलियां बरसानी शुरु कर दी।  प्रारंभ में भारतीय सैनिकों को नुकसान उठाना पड़ा. पहले 10 मिनट में 70 सैनिक मारे गए ।

🚩लेकिन इसके बाद भारत की ओर से जो जवाबी हमला हुआ,उसमें चीन का इरादा चकनाचूर हो गया । #सेबू ला एवं कैमल्स बैक से अपनी मजबूत रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाते हुए भारत ने जमकर #आर्टिलरी पावर का प्रदर्शन किया । कई चीनी बंकर ध्वस्त हो गए और खुद चीनी आकलन के अनुसार भारतीय सेना के हाथों उनके #400 से ज्यादा जवान मारे गए । भारत की ओर से लगातार तीन दिनों तक दिन रात #फायरिंग जारी रही । भारत चीन को कठोर सबक दे चुका था । चीन की मशीनगन यूनिट को पूरी तरह तबाह कर दिया गया था । 15 सितंबर को वरिष्ठ भारतीय सैन्य अधिकारियों के मौजूदगी में शवों की अदला बदली हुई ।

🚩#1967 की दूसरी लड़ाई-

🚩1 अक्टूबर 1967 को चीन की #पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने चाओ ला इलाके में फिर से भारत के सब्र की परीक्षा लेने का दुस्साहस किया, पर वहां मुस्तैद 7/11#गोरखा राइफल्स एवं 10 #जैक राइफल्स नामक भारतीय #बटालियनों ने इस दुस्साहस को नाकाम कर चीन को फिर से सबक सिखाया । इस बार चीन ने सितंबर के संघर्ष विराम को तोड़ते हुए हमला किया था । दरअसल, सर्दी शुरु होते ही भारतीय फौज करीब 13 हजार फुट ऊंचे चो ला पास पर बनी अपनी चौकियों को खाली कर देती थी । गर्मियों में जाकर सेना दोबारा तैनात हो जाती थी । चीन ने 1 अक्टूबर का हमला यह सोचकर किया था कि चौकियां खाली होंगी, लेकिन चीन की मंशा को देखते हुए हमारी सेना ने सर्दी में भी उन चौकियों को खाली नहीं किया था । इसके बाद आमने सामने की सीधी लड़ाई शुरु हो गई ।

🚩हमारी सेना ने भी इस बार चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए गोले दागने शुरू कर दिए । इस लड़ाई का नेतृत्व करने वाले थे 17 वीं #माउंटेन डिवीजन के मेजर #जनरल सागत सिंह । लड़ाई के दौरान ही नाथू ला और चो ला दर्रे की सीमा पर बाड़ लगाने का काम किया गया ताकि चीन फिर इस इलाके में घुसपैठ की हिमाकत नहीं कर सके ।

🚩इस तरह 1967 की इस लड़ाई में #भारतीय सेना ने #चीनी हमलों को नाकाम कर दिया । लड़ाई के बाद घायल #कर्नल राय सिंह को #महावीर चक्र, शहादत के बाद कैप्टन #डागर को #वीर चक्र और मेजर #हरभजन सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया । बताया जाता है कि लड़ाई के दौरान जब भारतीय सेना के जवानों की गोलियां खत्म हो गई तो बहादुर अफसरों एवं जवानों ने अपनी खुखरी से कई चीनी अफसरों एवं जवानों को मौत के घाट उतार दिया था ।

🚩1967 के ये दोनों सबक चीन को आज तक सीमा पर गोली बरसाने से रोकते हैं । तब से आज तक सीमा पर एक भी गोली नहीं चली है, भले ही दोनों देशों की फौज एक दूसरे की आंखों में आंख डालकर सीमा का गश्त लगाने में लगी रहती है । क्या ऐसे सबक के बाद भी चीन भारत के साथ दुस्साहस करेगा?

🚩चीन को याद रखना चाहिए जब 1962 के भारत एवं 1967 के भारत में इतना अंतर केवल 5 वर्षों में हो गया । ऐसे में 2017 के #परमाणु शक्ति संपन्न भारत से चीन की लड़ाई मुश्किल ही है । इस तरह चीन को अतीत की घटनाओं में 1967 को कभी भूलना नहीं चाहिए ।

🚩#1987 की तीसरी लड़ाई

🚩1967 के 20 वर्ष बाद भारत से चीन को फिर से गहरा झटका लगा, जिसकी बुनियाद 1986 में चीन की ओर से रखी जाने लगी ।इस बार फिर टकराव पर चीन ने भारत को कहा कि भारत को इतिहास का सबक नहीं भूलना चाहिए, पर लगता है कि चीन भी कुछ भूल गया है । 1986-87 में #भारतीय सेना ने शक्ति प्रदर्शन में #पीएलए को बुरी तरह से हिला दिया था । इस संघर्ष की शुरुआत तवांग के उत्तर में समदोरांग चू रीजन में 1986 में हुई थी । जिसके बाद उस समय के सेना प्रमुख जनरल #कृष्णास्वामी सुंदरजी के नेतृत्व में ऑपरेशन फाल्कन हुआ था ।

🚩1987 की झड़प की शुरुआत नामका चू से हुई थी । भारतीय फौज नामका चू के दक्षिण में ठहरी थी, लेकिन एक #आईबी टीम समदोरांग चू में पहुंच गई, ये जगह #नयामजंग चू के दूसरे किनारे पर है ।समदोरंग चू और नामका चू दोनों नाले इस उत्तर से दक्षिण को बहने वाली नयामजंग चू नदी में गिरते हैं। 1985 में भारतीय फौज पूरी गर्मी में यहां डटी रही, लेकिन 1986 की गर्मियों में पहुंची तो यहां चीनी फौजें मौजूद थी । समदोरांग चू के भारतीय इलाके में चीन अपने तंबू गाड़ चुका था, भारत ने पूरी कोशिश की कि चीन को अपने सीमा में लौट जाने के लिए समझाया जा सके, लेकिन अड़ियल चीन मानने को तैयार नहीं था ।

🚩2017 की तरह 1987 में भी चीन और भारत की सेना आंखों में आंख डाले सामने खड़ी थी,लेकिन इस बार भी चीन को जवाब मिलने वाला था । चीन ने पूर्व में लड़ाई की तैयारी पूरी कर ली थी । इधर भारतीय पक्ष ने भी फैसला ले लिया तथा इलाके फौज को एकत्रित किया जाने लगा । इसी के लिए #भारतीय सेना ने #ऑपरेशन फाल्कन तैयार किया, जिसका उद्देश्य सेना को तेजी से सरहद पर पहुंचाना था । तवांग से आगे कोई सड़क नहीं थी, इसलिए जनरल #सुंदर जी ने जेमीथांग नाम की जगह पर एक ब्रिगेड को एयरलैंड करने के लिए #इंडियन एयरफोर्स को रूस से मिले हैवी लिफ्ट #MI-26 हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करने का फैसला किया ।

🚩भारतीय सेना ने हाथुंग ला पहाड़ी पर पोजीशन संभाली,जहां से समदोई चू के साथ ही तीन और पहाड़ी इलाकों पर नजर रखी जा सकती थी । 1962 में चीन ने ऊंची जगह पर पोजीशन लिया था, परंतु इस बार भारत की बारी थी । जनरल #सुंदर जी की रणनीति यही पर खत्म नहीं हुई थी । ऑपरेशन फाल्कन के द्वारा लद्दाख के डेमचॉक और उत्तरी सिक्किम में #T -72 टैंक भी उतारे गए । अचंभित चीनियों को विश्वास नहीं हो रहा था। इस ऑपरेशन में भारत ने एक जानकारी के अनुसार 7 लाख सैनिकों की तैनाती की थी । फलत: लद्दाख से लेकर सिक्किम तक चीनियों ने घुटने टेक दिए । इस #ऑपरेशन फाल्कन ने चीन को उसकी औकात दिखा दी । भारत ने शीघ्र ही इस मौके का लाभ उठाकर अरुणाचलप्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया ।

🚩सदैव अतीत के गायन में व्यस्त रहने वाले ग्लोबल टाइम्स को 1967 एवं 1986 के उपरोक्त घुटने टेकने वाले घटनाओं के अतिरिक्त यह भी याद रखना चाहिए कि वियतनाम युद्ध के बाद चीनी सेनाओं ने कोई भी लड़ाई नहीं लड़ी है, जबकि भारतीय सेना सदैव पाकिस्तानी सीमा पर अघोषित युद्ध से संघर्षरत ही रहती है । विशेष कर हिमालयी सरहदों में चीन की इतनी काबिलियत नहीं है कि वह भारत का मुकाबला कर सके । तुलनात्मक तौर पर भारत चीन के समक्ष भले ही कमजोर लग सकता है, परंतु वास्तविक स्थिति ऐसी नहीं है। 1967 के दोनों युद्धों से स्पष्ट है कि अपनी विशिष्ट एवं अचूक #रणनीति के द्वारा #भारत न्यूनतम संसाधनों के बीच भी चीन को हराने में सक्षम है।

🚩डोकलाम क्षेत्र में भारत की भौगोलिक स्थिति हो या हथियार दोनों ही चीन से बेहतर हैं । भारतीय सुखोई हो या ब्रह्मोस, इसका चीन के पास कोई काट नहीं है। चीनी सुखोई 30 एमकेएम एक साथ केवल 2 निशाने साध सकता है, जबकि भारतीय सुखोई एक साथ 30 निशाने साध सकता है। अभी अमेरिकी विशेषज्ञों के अनुसार भारत ऐसे मिसाइल सिस्टम के विकास में लगा हुआ है, जिससे दक्षिण भारत से भी चीन पर परमाणु हमला किया जा सकता है ।भारत अभी उत्तरी भारत से मिसाइल से न केवल चीन अपितु यूरोप के कई हिस्सों पर भी हमला करने में सक्षम है । इस तरह चीन भारतीय मिसाइलों के परमाणु हमलों के पूरी तरह रेंज में है, जो भारत को चीन के प्रति निवारक शक्ति उपलब्ध कराता है।

🚩विश्व अभी जिस वैश्विक मंदी से गुजर रहा है, वहीं भारत 7% की विकास दर बनाए हुए है। इस स्थिति में चीन भारत के सशक्त बाजार पर भी निर्भर है। भारत-चीन व्यापार संतुलन भी चीन की ओर ही झुका हुआ है। ऐसे में संबंधों में और कटुता की वृद्धि होने से चीन को इस व्यापार से भी हाथ धोना पड़ेगा । चीन भारत के साथ व्यापार को कितना महत्व देता है, उसे नाथू ला के नवीनतम घटना से भी समझा जा सकता है। डोकलाम मुद्दे पर भारत पर दबाव डालने के लिए चीन ने नाथू ला दर्रे से मानसरोवर यात्रा रोकी, लेकिन व्यापार बिल्कुल नहीं। इस तरह अतीत की व्याख्या, सामरिक व्याख्या एवं आर्थिक व्याख्याओं से स्पष्ट है कि डोकलाम से चीन ही पीछे हटेगा। (लेखक : राहुल लाल )

🚩भारत सरकार भी चीनी समाना का धीरे-धीरे आयात कम कर देना चाहिए और भारत मे ही #टेक्स कम करके कंपनियां खोलकर #प्रोडक्ट बनानी चाहिए जिससे भारत की जनता को कम कीमत में सामान मिल सके, जिससे #भारतवासी भी चीन का माल नही लेकर भारत का ही प्रोडक्ट ले और धीरे-धीरे चीन जो केवल कोरी धमकी देता है वे भी बन्द हो जायेगा ।

🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻


🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk


🔺 Twitter : https://goo.gl/kfprSt

🔺 Instagram : https://goo.gl/JyyHmf

🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX

🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

   🚩🇮🇳🚩 आज़ाद भारत🚩🇮🇳🚩

Saturday, July 22, 2017

गौरक्षकों के खिलाफ ओवैसी ने संसद में जमा किया प्राइवेट मेंबर बिल

जुलाई 22, 2017

AIMIM के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा सचिवालय में प्राइवेट मेंबर बिल जमा कर दिया है। उनके अनुसार औसतन हर महीने हिंसक भीड़ के द्वारा इंसानियत का गला घोट रही है । प्रधानमंत्री तक ने गोरक्षा के नाम पर तथाकथित गौरक्षकों को बार-बार अल्टीमेटम दिया है किंतु नतीजा अबतक शून्य बटा सन्नाटा ही रहा है। इसलिए एेसी जानलेवा भीड़ पर लगाम लगाने के लिए AIMIM के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने यह पहल की है। उसके पेश होने की अब प्रतीक्षा है।
gaurakshakon-ke-khilaaf-ovesi-ne-sansad-me-jama-kiya-private-member-bill

आेवैसी ने कहा, भारत में भीड़ के हाथों हत्या यानी ‘मॉब लिंचिंग ‘ के मामलों में हुई बढ़ोतरी ने ना सिर्फ अल्पसंख्यकों के मन में दहशत की दीवार खड़ी कर दी है बल्कि मोदी सरकार की छवि को भी नुकसान पहुंच रहा है। बीफ रखने का आरोप लगाकर ना सिर्फ लोगों की पिटाई हो रही है बल्कि उनकी बर्बर हत्या तक कर दी गई है।

हिन्दुआें की हो रही हत्याआें पर क्या किसी हिन्दू नेता ने एेसा प्राइवेट मेंबर बिल प्रस्तुत किया है ?

कश्मीर , बंगाल , केरला, तमिलनाडु में हो रहे हिन्दुओं पर अत्याचार और हत्यायें पर कोई भी सांसद बिल पास क्यों नही करता है???

तीन दिन पहले ओडिशा के केन्द्रापड़ा जिले में शुक्रवार को मांस माफिया गुंडों की भीड़ ने एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर कानन, उनकी पत्नी और दो दोस्तों पर हमला कर दिया। काकन को बुरी तरह पीटा, जिससे उसे काफी चोट आई, उनको हॉस्पिटल में दाखिल करना पड़ा । 

कानन ने कहा कि जब हम लोग शुक्रवार को लगभग शाम 4 बजे घूमने के लिए केन्द्रापड़ा के चंदीली गांव जा रहे थे तब हमने देखा कि, कुछ बदमाश लाठी और चाकू से पशुओं पर हमला कर रहे थे।

कानन ने उसका वीडियों और फोटो भी खींचा। हालांकि उसने 100 नम्बर डायल कर पुलिस सहित वहां के एसपी राहुल को भी सूचना दी परंतु मौके पर पुलिस वहां नहीं पहुंची। पुलिस के नहीं पहुंचने के बाद हमने भीड़ पर आक्रमण किया। जिसके बाद भीड़ ने हमारी पत्नी के साथ छेड़छाड़ की तो हमने उन लोगों पर हमला किया। कानन ने कहा कि, मेरे मोबाइल में सब रिकॉर्ड है।

गौरक्षकों को गुंडा कहनेवाले नेता तथा मीडिया अब उनपर हुए आक्रमण पर चुप क्यों है ?

गौरक्षक अपनी जान की बाजी लगाकर, रात में जगकर 
गौ रक्षा करने के लिये तत्पर रहता है, फिर भी उसको गुंडा बोला जाता है और गाय की रक्षा के लिए किसी को थप्पड़ भी मार दे तो मीडिया में हल्ला हो जाता है, सेक्युलर लोग निंदा करने लगते हैं, भारत माता की जय नही बोलने वाला गद्दार ओवैसी संसद में बिल पेश करता है लेकिन उससे ठीक विपरीत गोरक्षकों की हत्या भी हो जाती है तब ये सब मुह बन्द कर देते है ।

विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल की आगरा में 3 दिवसीय बैठक में विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डॉ. प्रवीण तोगडिया ने बताया कि, गौ रक्षक न तो कभी गुंडे थे, न कभी हैं और न कभी बनेंगे।

गौरक्षा का अर्थ भारतीय संस्कृति की सुरक्षा और उसका पोषण है। देश में यदि गौवंश सुरक्षित रहेगा तो देश के अन्नदाता किसान को आत्महत्या करनी नही पड़ेगी और न ही सरकार से कर्ज माफी की गुहार लगानी होगी। बजरंग दल भी गौ रक्षा करता आया है और आगे भी गौ रक्षा में बड़े से बड़ा बलिदान देकर गौवंश की सुरक्षा करता रहेगा। तोगडिया जी द्वारा प्रश्न पूछा गया कि, यदि गौ रक्षा करने वाले गुंडे हैं तो गौ हत्या करने वाले कौन हैं ?

सरकार को शीघ्र गौ माता को राष्ट्रीय गाय माता घोषित कर देना चाहिए और बूचड़खानों को सब्सिडी बन्द करके गौ-पालकों को देना चाहिए जिससे देश में सुख शांति बनी रहेगी ।
🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻

🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk


🔺 Twitter : https://goo.gl/he8Dib

🔺 Instagram : https://goo.gl/PWhd2m

🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX

🔺Blogger : https://goo.gl/N4iSfr

🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

   🚩🇮🇳🚩 आज़ाद भारत🚩🇮🇳🚩

Friday, July 21, 2017

'पाकिस्तान' की नींव बंगाल में ही पड़ी थी

जुलाई 21, 2017

16 अगस्त, 1946 यानी भारत की स्वतंत्रता से ठीक एक साल पहले कलकत्ता में पहला दंगा भड़का और बंगाल के गांवों तक फैल गया।  दंगों को मुस्लिम लीग द्वारा जानबूझकर भड़काया गया था ।

भारत के मजहबी बंटवारे की चर्चा के बीच आपको बंगाल की ‘कलंक-कथा’ सुनाते हैं ।

Azaad bharat - pakistan ki niv bengal me padi thi


वर्ष 1927 में मुस्लिम लीग के पास केवल 1300 सदस्य थे । एक गांव के चुनाव का परिणाम प्रभावित कर सकें, इतनी भी इनकी हैसियत नहीं थी । 1944 में यह हालत थी कि अकेले बंगाल में पांच लाख से भी अधिक मुसलमान मुस्लिम लीग के सदस्य बन चुके थे और भारत विभाजन की थ्योरी दिन-ब-दिन बल पकड़ती जा रही थी। यह सब गांधी और नेहरू की नाक के नीचे हुआ और वे खुशफहमी में इसकी गंभीरता भांप नहीं सके । 1930 के दशक में जब नेहरू को मुसलमानों की बढ़ती महत्वाकांक्षा के प्रति आगाह किया गया तो उन्होंने कहा कि यह हो ही नहीं सकता कि मेरे मुसलमान भाई देश को पीछे करके मजहब को आगे करेंगे और अपने लिए एक अलग मुल्क मांगेंगे । 1905 में जो खतरे का संकेत इतिहास ने कांग्रेस को दिया था, उसकी उपेक्षा करने की क्षमता पंडित नेहरू में ही थी ।

1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ तो पूरा देश सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहा था । इन दंगों की शुरुआत कहां से हुई थी? 

जवाब सरल है- हमारे प्रिय बंगाल से!

1947 के सांप्रदायिक दंगों की शुरुआत भी बंगाल से ही हुई थी ।

16 अगस्त, 1946 यानी भारत की स्वतंत्रता से ठीक एक साल पहले कलकत्ते में पहला दंगा भड़का और बंगाल के गांवों तक फैल गया । दंगों को मुस्लिम लीग द्वारा जानबूझकर भड़काया गया था । वह पाकिस्तान के निर्माण के लिए अंतिम रूप से आम सहमति का निर्माण करने के लिए एक ‘ट्रिगर मूवमेंट’ था।  अंग्रेज भारत से बोरिया बिस्तर समेटने लगे थे और मुसलमानों को महसूस हुआ, अभी नहीं तो कभी नहीं । लोहा गर्म है, हथौड़ा मारो और उन्होंने हथौड़ा मारा ।

बंगाल से यह आग बिहार पहुंची, बिहार से यूनाइटेड प्रोविंस और वहां से पंजाब. ‘कलकत्ते का इंतकाम नौआखाली में लिया गया, नौआखाली का इंतकाम बिहार में, बिहार का गढ़मुक्तेश्वर में, गढ़मुक्तेश्वर के बाद अब क्या ?’ पूरे देश मे फैल गया ।

15 अगस्त को जब दिल्ली में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहां पर थे?वे बंगाल में बेलियाघाट में थे ।
वे वहां पर क्या कर रहे थे? 
वे उपवास पर थे और सांप्रदायिक दंगों को शांत करने की अपील कर रहे थे ।
 भलमनसाहत से विषबेल को पनपने से रोका जा सकता है और भलमनसाहत से विषबेल को समाप्त भी किया जा सकता है, यह गांधी-चिंतन था  और अपने जीवनकाल में गांधी ने अपने इन दोनों बालकोचित पूर्वग्रहों को ध्वस्त होते हुए अपनी आंखों से देखा ।

मुस्लिम लीग ने जब पाकिस्तान की मांग की थी, तो उसका तर्क क्या था?

मुस्लिम लीग का तर्क था कि कांग्रेस ‘बनियों’ और ‘ब्राह्मणों’ की पार्टी है और लोकतांत्रिक संरचनाओं में मुसलमानों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है। तब जो सांप्रदायिक दंगे हुआ करते थे, उनमें कांग्रेसी हिंदुओं का साथ देते थे और मुस्लिम लीग वाले मुसलमानों का लेकिन जब पाकिस्तान बना तो क्या वहां पर वे लोकतांत्रिक संरचनाएं निर्मित हुई,जिनकी मोहम्मद अली जिन्ना इतनी शिद्दत से बात कर रहे थे? 

जी नहीं..!!

भारत में पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1952 में हुआ था, जिसमें कांग्रेस को जीत मिली थी ।पाकिस्तान में पहला लोकतांत्रिक चुनाव इसके 18 साल बाद 1970 में हुआ और जब उसमें पूर्वी पाकिस्तान के शेख मुजीबुर्रहमान को भारी जीत मिली तो पाकिस्तान में गृहयुद्ध छिड़ गया और ढाका में भीषण नरसंहार की शुरुआत हुई, जिसके गुनहगारों का फैसला आज तलक बांग्लादेश में किया जाता है ।

ये उन मुसलमानों की तथाकथित लोकतांत्रिक संरचनाएं थी,जिन्होंने देश को तोड़ा!

1946 में उन्हें यह साफ-साफ बोलने में शर्म आ रही थी कि हमें अपने लिए एक इस्लामिक कट्टरपंथी सैन्यवादी आतंकवादी मुल्क चाहिए, जहां हम अपना मजहबी नंगा नाच कर सकें!

अभी हम यहां पर 1971 के बाद निर्मित हुई परिस्थितियों में पश्चिम बंगाल और असम में बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ की विस्तार से बात ही नहीं कर रहे हैं । जिसका मकसद आबादी के गणित से चुनावों में जीत हासिल करना है । बंगाल में लंबे समय तक कम्युनिस्टों की सरकार रही, जिनकी निष्ठा चीन के प्रति अधिक थी और भारतीय राष्ट्र को दिन-ब-दिन कमज़ोर करते जाना जिनका घोषित मकसद है। उसके बाद यहां पर ममता बनर्जी की हुकूमत आई, जो इस्लामिक तुष्टीकरण की बेशर्मी में कम्युनिस्टों से भी आगे निकल गई है ।

2007 में कलकत्ता, 2013 में कैनिंग और 2016 में धुलागढ़ में पहले ही ‘ट्रेलर’ दिखाए जा चुके थे और तथाकथित बंगाली भद्रलोक अपनी-अपनी बाड़ियों में दोपहर की नींद ले रहे थे ।

आज जो कश्मीर की हालत है, वह 1946 में बंगाल की हालत थी और 1905 में आने वाले वक्त का एक मुजाहिरा हो चुका था । 1947 में आखिरकार बंगाल का एक बड़ा हिस्सा भारत से टूटकर अलग हो गया, तीस-चालीस साल बाद अगर कश्मीर आपके हाथ से चला जाए तो आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए ।

 यह इसलिए नहीं हो रहा है, क्योंकि मुसलमानों को ‘सिविल राइट्स’ चाहिए या उन्हें अपनी ‘रीजनल आइडेंडिटी’ की रक्षा करनी है, जैसा कि हमारे सेकुलरान हमें बताते रहते हैं ।

यह इसलिए हो रहा है, क्योंकि मुसलमानों को अपना एक ‘इस्लामिक स्टेट’ चाहिए । इसी लिए पाकिस्तान बना, इसी लिए बांग्लादेश बना, इसी लिए कश्मीर सुलग रहा है, इसीलिए बंगाल जल रहा है और यह पिछले चौदह सौ सालों से हो रहा है ।

आंखें हो तो देख लीजिए, कान हो तो सुन लीजिए । इतिहास गवाह है और वर्तमान आपके सामने है । किसी शायर ने कहा था कि आग का पेट बहुत बड़ा होता है । जब आप आग की उदरपूर्ति करते हैं तो वह और भड़कती है ठंडी नहीं होती । आप और कितना दोगे? 
आप पहले ही बहुत दे चुके हैं और आग की भूख शांत होने का नाम नहीं ले रही है । आप अपने आपको और कब तक भुलावे में रखोगे ।

 (लेखक : सुशोभित सक्तावत)

अभी भी वक्त है हिन्दुस्तानी सावधान हो जाये तो हिन्दुस्तान को कोई खंडित नही कर सकता अगर थोड़ा भी चूक किया तो आने वाली पीढ़ी को बहुत भुगतान करना पड़ेगा ।


🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻

🔺Youtube : https://goo.gl/XU8FPk


🔺 Twitter : https://goo.gl/he8Dib

🔺 Instagram : https://goo.gl/PWhd2m

🔺Google+ : https://goo.gl/Nqo5IX

🔺Blogger : https://goo.gl/N4iSfr

🔺 Word Press : https://goo.gl/ayGpTG

🔺Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

   🚩🇮🇳🚩 आज़ाद भारत🚩🇮🇳🚩