Friday, July 21, 2017

'पाकिस्तान' की नींव बंगाल में ही पड़ी थी

जुलाई 21, 2017

16 अगस्त, 1946 यानी भारत की स्वतंत्रता से ठीक एक साल पहले कलकत्ता में पहला दंगा भड़का और बंगाल के गांवों तक फैल गया।  दंगों को मुस्लिम लीग द्वारा जानबूझकर भड़काया गया था ।

भारत के मजहबी बंटवारे की चर्चा के बीच आपको बंगाल की ‘कलंक-कथा’ सुनाते हैं ।

Azaad bharat - pakistan ki niv bengal me padi thi


वर्ष 1927 में मुस्लिम लीग के पास केवल 1300 सदस्य थे । एक गांव के चुनाव का परिणाम प्रभावित कर सकें, इतनी भी इनकी हैसियत नहीं थी । 1944 में यह हालत थी कि अकेले बंगाल में पांच लाख से भी अधिक मुसलमान मुस्लिम लीग के सदस्य बन चुके थे और भारत विभाजन की थ्योरी दिन-ब-दिन बल पकड़ती जा रही थी। यह सब गांधी और नेहरू की नाक के नीचे हुआ और वे खुशफहमी में इसकी गंभीरता भांप नहीं सके । 1930 के दशक में जब नेहरू को मुसलमानों की बढ़ती महत्वाकांक्षा के प्रति आगाह किया गया तो उन्होंने कहा कि यह हो ही नहीं सकता कि मेरे मुसलमान भाई देश को पीछे करके मजहब को आगे करेंगे और अपने लिए एक अलग मुल्क मांगेंगे । 1905 में जो खतरे का संकेत इतिहास ने कांग्रेस को दिया था, उसकी उपेक्षा करने की क्षमता पंडित नेहरू में ही थी ।

1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ तो पूरा देश सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहा था । इन दंगों की शुरुआत कहां से हुई थी? 

जवाब सरल है- हमारे प्रिय बंगाल से!

1947 के सांप्रदायिक दंगों की शुरुआत भी बंगाल से ही हुई थी ।

16 अगस्त, 1946 यानी भारत की स्वतंत्रता से ठीक एक साल पहले कलकत्ते में पहला दंगा भड़का और बंगाल के गांवों तक फैल गया । दंगों को मुस्लिम लीग द्वारा जानबूझकर भड़काया गया था । वह पाकिस्तान के निर्माण के लिए अंतिम रूप से आम सहमति का निर्माण करने के लिए एक ‘ट्रिगर मूवमेंट’ था।  अंग्रेज भारत से बोरिया बिस्तर समेटने लगे थे और मुसलमानों को महसूस हुआ, अभी नहीं तो कभी नहीं । लोहा गर्म है, हथौड़ा मारो और उन्होंने हथौड़ा मारा ।

बंगाल से यह आग बिहार पहुंची, बिहार से यूनाइटेड प्रोविंस और वहां से पंजाब. ‘कलकत्ते का इंतकाम नौआखाली में लिया गया, नौआखाली का इंतकाम बिहार में, बिहार का गढ़मुक्तेश्वर में, गढ़मुक्तेश्वर के बाद अब क्या ?’ पूरे देश मे फैल गया ।

15 अगस्त को जब दिल्ली में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, तब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहां पर थे?वे बंगाल में बेलियाघाट में थे ।
वे वहां पर क्या कर रहे थे? 
वे उपवास पर थे और सांप्रदायिक दंगों को शांत करने की अपील कर रहे थे ।
 भलमनसाहत से विषबेल को पनपने से रोका जा सकता है और भलमनसाहत से विषबेल को समाप्त भी किया जा सकता है, यह गांधी-चिंतन था  और अपने जीवनकाल में गांधी ने अपने इन दोनों बालकोचित पूर्वग्रहों को ध्वस्त होते हुए अपनी आंखों से देखा ।

मुस्लिम लीग ने जब पाकिस्तान की मांग की थी, तो उसका तर्क क्या था?

मुस्लिम लीग का तर्क था कि कांग्रेस ‘बनियों’ और ‘ब्राह्मणों’ की पार्टी है और लोकतांत्रिक संरचनाओं में मुसलमानों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है। तब जो सांप्रदायिक दंगे हुआ करते थे, उनमें कांग्रेसी हिंदुओं का साथ देते थे और मुस्लिम लीग वाले मुसलमानों का लेकिन जब पाकिस्तान बना तो क्या वहां पर वे लोकतांत्रिक संरचनाएं निर्मित हुई,जिनकी मोहम्मद अली जिन्ना इतनी शिद्दत से बात कर रहे थे? 

जी नहीं..!!

भारत में पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1952 में हुआ था, जिसमें कांग्रेस को जीत मिली थी ।पाकिस्तान में पहला लोकतांत्रिक चुनाव इसके 18 साल बाद 1970 में हुआ और जब उसमें पूर्वी पाकिस्तान के शेख मुजीबुर्रहमान को भारी जीत मिली तो पाकिस्तान में गृहयुद्ध छिड़ गया और ढाका में भीषण नरसंहार की शुरुआत हुई, जिसके गुनहगारों का फैसला आज तलक बांग्लादेश में किया जाता है ।

ये उन मुसलमानों की तथाकथित लोकतांत्रिक संरचनाएं थी,जिन्होंने देश को तोड़ा!

1946 में उन्हें यह साफ-साफ बोलने में शर्म आ रही थी कि हमें अपने लिए एक इस्लामिक कट्टरपंथी सैन्यवादी आतंकवादी मुल्क चाहिए, जहां हम अपना मजहबी नंगा नाच कर सकें!

अभी हम यहां पर 1971 के बाद निर्मित हुई परिस्थितियों में पश्चिम बंगाल और असम में बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ की विस्तार से बात ही नहीं कर रहे हैं । जिसका मकसद आबादी के गणित से चुनावों में जीत हासिल करना है । बंगाल में लंबे समय तक कम्युनिस्टों की सरकार रही, जिनकी निष्ठा चीन के प्रति अधिक थी और भारतीय राष्ट्र को दिन-ब-दिन कमज़ोर करते जाना जिनका घोषित मकसद है। उसके बाद यहां पर ममता बनर्जी की हुकूमत आई, जो इस्लामिक तुष्टीकरण की बेशर्मी में कम्युनिस्टों से भी आगे निकल गई है ।

2007 में कलकत्ता, 2013 में कैनिंग और 2016 में धुलागढ़ में पहले ही ‘ट्रेलर’ दिखाए जा चुके थे और तथाकथित बंगाली भद्रलोक अपनी-अपनी बाड़ियों में दोपहर की नींद ले रहे थे ।

आज जो कश्मीर की हालत है, वह 1946 में बंगाल की हालत थी और 1905 में आने वाले वक्त का एक मुजाहिरा हो चुका था । 1947 में आखिरकार बंगाल का एक बड़ा हिस्सा भारत से टूटकर अलग हो गया, तीस-चालीस साल बाद अगर कश्मीर आपके हाथ से चला जाए तो आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए ।

 यह इसलिए नहीं हो रहा है, क्योंकि मुसलमानों को ‘सिविल राइट्स’ चाहिए या उन्हें अपनी ‘रीजनल आइडेंडिटी’ की रक्षा करनी है, जैसा कि हमारे सेकुलरान हमें बताते रहते हैं ।

यह इसलिए हो रहा है, क्योंकि मुसलमानों को अपना एक ‘इस्लामिक स्टेट’ चाहिए । इसी लिए पाकिस्तान बना, इसी लिए बांग्लादेश बना, इसी लिए कश्मीर सुलग रहा है, इसीलिए बंगाल जल रहा है और यह पिछले चौदह सौ सालों से हो रहा है ।

आंखें हो तो देख लीजिए, कान हो तो सुन लीजिए । इतिहास गवाह है और वर्तमान आपके सामने है । किसी शायर ने कहा था कि आग का पेट बहुत बड़ा होता है । जब आप आग की उदरपूर्ति करते हैं तो वह और भड़कती है ठंडी नहीं होती । आप और कितना दोगे? 
आप पहले ही बहुत दे चुके हैं और आग की भूख शांत होने का नाम नहीं ले रही है । आप अपने आपको और कब तक भुलावे में रखोगे ।

 (लेखक : सुशोभित सक्तावत)

अभी भी वक्त है हिन्दुस्तानी सावधान हो जाये तो हिन्दुस्तान को कोई खंडित नही कर सकता अगर थोड़ा भी चूक किया तो आने वाली पीढ़ी को बहुत भुगतान करना पड़ेगा ।


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