होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। #होली #भारत का अत्यंत प्राचीन #पर्व है जो होली, होलिका या होलाका नाम से मनाया जाता है । वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव भी कहा गया है। इस साल 1 मार्च को होली है और 2 मार्च को धुलेटी है ।
वैदिक, प्राचीन एवं विश्वप्रिय उत्सव यह होलिकोत्सव प्राकृतिक, प्राचीन व वैदिक उत्सव है । साथ ही यह आरोग्य, आनंद और आह्लाद प्रदायक उत्सव भी है, जो प्राणिमात्र के राग-द्वेष मिटाकर, दूरी मिटाकर हमें संदेश देता है कि हो... ली... अर्थात् जो हो गया सो हो गया ।
यह वैदिक उत्सव है । #लाखों वर्ष पहले भगवान रामजी हो गये । उनसे पहले उनके पिता, पितामह, पितामह के पितामह दिलीप राजा और उनके बाद रघु राजा... रघु राजा के राज्य में भी यह महोत्सव मनाया जाता था ।
Know Holi's ancient history and ways to stay healthy throughout the year
होली का प्राचीन इतिहास...
पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश इन पांच तत्त्वोंकी सहायतासे देवताके तत्त्वको पृथ्वीपर प्रकट करनेके लिए यज्ञ ही एक माध्यम है । जब पृथ्वीपर एक भी स्पंदन नहीं था, उस समयके प्रथम त्रेतायुगमें पंचतत्त्वोंमें विष्णुतत्त्व प्रकट होनेका समय आया । तब परमेश्वरद्वारा एक साथ सात ऋषि-मुनियोंको स्वप्नदृष्टांतमें यज्ञके बारेमें ज्ञान हुआ । उन्होंने यज्ञकी सिद्धताएं (तैयारियां) आरंभ कीं । नारदमुनिके मार्गदर्शनानुसार यज्ञका आरंभ हुआ । मंत्रघोषके साथ सबने विष्णुतत्त्वका आवाहन किया । यज्ञकी ज्वालाओंके साथ यज्ञकुंडमें विष्णुतत्त्व प्रकट होने लगा । इससे पृथ्वीपर विद्यमान अनिष्ट शक्तियोंको कष्ट होने लगा । उनमें भगदड मच गई । उन्हें अपने कष्टका कारण समझमें नहीं आ रहा था । धीरे-धीरे श्रीविष्णु पूर्ण रूपसे प्रकट हुए । ऋषि-मुनियोंके साथ वहां उपस्थित सभी भक्तोंको श्रीविष्णुजीके दर्शन हुए । उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी । इस प्रकार त्रेतायुगके प्रथम यज्ञके स्मरणमें होली मनाई जाती है । होलीके संदर्भमें शास्त्रों एवं पुराणोंमें अनेक कथाएं प्रचलित हैं ।
प्रह्लाद की भक्ति के कारण होली परम्परा शुरू हुई
प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज #हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके भगवान ब्रह्माजीसे वरदान पा लिया कि, संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके । न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर । यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए ।
ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा । हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ । #प्रहलाद #भगवान #विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी ।
हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को आदेश दिया कि, वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे । प्रहलाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने का निश्चय किया । उसने प्रहलाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन प्रभु-कृपा से वह बचता रहा ।
हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था । हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई ।
होलिका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से आग में जा बैठी । लेकिन परिणाम उल्टा ही हुआ । होलिका ही अग्नि में जलकर वहीं भस्म हो गई और भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गया ।
तभी से #होली का #त्यौहार मनाया जाने लगा ।
तत्पश्चात् हिरण्यकश्यप को मारने के लिए #भगवान विष्णु #नरसिंह अवतार में खंभे से प्रगटे और गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला ।
होली पर #गौशालाओं को बनायें स्वावलंबी...
होली को लकड़ी से जलाने पर कार्बनडायोक्साईड निकलता है जो वातावरण को अशुद्ध करता है और जनता का स्वास्थ्य खराब होता है लेकिन #गाय के #कंडे जलाने पर ऑक्सीजन निकलता है जो वातावरण में शुद्धि लाता है जिससे व्यक्ति स्वस्थ रहता है । #वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के एक कंडे में 2 बूंद गाय का घी डालकर धुंआ करे तो एक टन ऑक्सीजन बनता है ।
गाय के कंडे से #होली जलाने से वातावरण की शुद्धि होगी, जनता का स्वास्थ्य सुधरेगा, साथ-साथ में गाय माता और कंडे बनाने वाले गरीबों का भी पालन-पोषण होगा इसलिए आप अपने गांव शहरों में होली गाय के कंडे से ही जलाए ।
पूरे साल स्वस्थ्य रहने के लिए क्या करें होली पर..??
1- होली के बाद 15-20 दिन तक बिना नमक का अथवा कम नमकवाला भोजन करना #स्वास्थ्य के लिए हितकारी है ।
2- इन दिनों में भुने हुए चने - ‘होला का सेवन शरीर से वात, कफ आदि दोषों का शमन करता है ।
3- एक महीना इन दिनों सुबह #नीम के 20-25 कोमल पत्ते और एक काली मिर्च चबा के खाने से व्यक्ति वर्षभर निरोग रहता है ।
4- होली के दिन चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य हुआ था । इन दिनों में #हरिनाम कीर्तन करना-कराना चाहिए । नाचना, कूदना-फाँदना चाहिए जिससे जमे हुए कफ की छोटी-मोटी गाँठें भी पिघल जायें और वे ट्यूमर कैंसर का रूप न ले पाएं और कोई दिमाग या कमर का ट्यूमर भी न हो । होली पर नाचने, कूदने-फाँदने से मनुष्य स्वस्थ रहता है ।
5 - लट्ठी-खेंच कार्यक्रम करना चाहिए, यह #बलवर्धक है ।
6 - होली जले उसकी #गर्मी का भी थोड़ा फायदा लेना, लावा का फायदा लेना ।
7 - मंत्र सिद्धि के लिए #होली की रात्रि को (इसबार 1 मार्च की रात्रि को) भगवान नाम का जप अवश्य करें ।
8- #पलाश के फूलों का #रंग एक-दूसरे पर छिड़क के अपने चित्त को आनंदित व उल्लासित करना । सभी रासायनिक रंगों में कोई-न-कोई खतरनाक बीमारी को जन्म देने का दुष्प्रभाव है । लेकिन पलाश की अपनी एक सात्त्विकता है । #पलाश के फूलों का रंग रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है । गर्मी को पचाने की, सप्तरंगों व सप्तधातुओं को संतुलित करने की क्षमता पलाश में है । पलाश के फूलों से जो होली खेली जाती है, उसमें पानी की बचत भी होती है ।
पलाश के रंग नही मिले तो अपने घर पर भी प्राकृतिक रंग बना सकते है नीचे लिंक पर देखें
होली रंगों का त्यौहार है, हँसी-खुशी का त्यौहार है, लेकिन होली के भी अनेक रूप देखने को मिलते है। प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचलन, ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक संगीत की जगह फ़िल्मी गानों का प्रचलन इस आधुनिक रूप से बहुत नुकसान होता है ।
Know the loss of chemical shades and
the method of making natural colors at home
रासायनिक रंगों से होने वाली हानि...
1 - काले रंग
में लेड ऑक्साइड
पड़ता है जो
गुर्दे की बीमारी, दिमाग की कमजोरी
करता है ।
2 - हरे रंग में कॉपर सल्फेट होता है जो आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व
लाता है ।
3 - सिल्वर रंग में एल्यूमीनियम ब्रोमाइड होता है जो कैंसर करता है ।
4- नीले रंग में प्रूशियन ब्ल (कॉन्टैक्ट डर्मेटाइटिस) से भयंकर त्वचारोग
होता है ।
5 - लाल रंग जिसमें मरक्युरी सल्फाइड
होता है जिससे त्वचा का कैंसर होता है ।
6- बैंगनी रंग में क्रोमियम आयोडाइड
होता है जिससे दमा, एलर्जी
होती है ।
सभी देशवासियों से अनुरोध है कि आप केमिकल रंगों से होली न खेले और न ही जानवरो जैसे कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैस आदि पर कोई रंग डाले क्योकि रंग में केमिकल होता है। वो अपने आप को साफ़ करने के लिए अपने को जीभ से चाटते है और वो केमिकल उनके पेट में जाता है और बीमार पड़ जाते है या मर जाते हैं ।
अब आपको घर में ही प्राकृतिक रंग बनाने की सरल विधियाँ बता रहे हैं जो आसानी से बनाकर उपयोग कर सकते हैं।
केसरिया रंगः पलाश के फूलों से यह रंग सरलता से तैयार किया जा सकता है। पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें। सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर होली का आनंद उठायें। यह रंग होली खेलने के लिए सबसे बढ़िया है। शास्त्रों में भी पलाश के फूलों से होली खेलने का वर्णन आता है। इसमें औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है। रक्तसंचार को नियमित व मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ ही यह मानसिक शक्ति तथा इच्छाशक्ति में भी वृद्धि करता है।
सूखा हरा रंगः मेंहदी का पाउडर तथा गेहूँ या अन्य अनाज के आटे को समान मात्रा में मिलाकर सूखा हरा रंग बनायें। आँवला चूर्ण व मेंहदी को मिलाने से भूरा रंग बनता है, जो त्वचा व बालों के लिए लाभदायी है।
सूखा पीला रंगः हल्दी व बेसन मिला के अथवा अमलतास व गेंदे के फूलों को छाया में सुखाकर पीस के पीला रंग प्राप्त कर सकते हैं।
गीला पीला रंगः एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़ने वाले रंग जो खाने के काम आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं। अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी में भिगोकर रखें, सुबह उबालें।
लाल रंगः लाल चंदन (रक्त चंदन) पाउडर को सूखे लाल रंग के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। यह त्वचा के लिए लाभदायक व सौंदर्यवर्धक है। दो चम्मच लाल चंदन एक लीटर पानी में डालकर उबालने से लाल रंग प्राप्त होता है, जिसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलायें।
पीला गुलाल : (१) ४ चम्मच बेसन में २ चम्मच हल्दी चूर्ण मिलायें | (२) अमलतास या गेंदा के फूलों के चूर्ण के साथ कोई भी आटा या मुलतानी मिट्टी मिला लें ।
पीला रंग : (1) 2 चम्मच हल्दी चूर्ण 2 लीटर पानी में उबालें | (2) अमलतास, गेंदा के फूलों को रातभर भिगोकर उबाल लें ।
जामुनी रंग : चुकंदर उबालकर पीस के पानी में मिला लें।
काला रंग : आँवला चूर्ण लोहे के बर्तन में रातभर भिगोयें ।
लाल रंग : (1) आधे कप पानी में दो चम्मच हल्दी चूर्ण व चुटकीभर चूना मिलाकर 10 लीटर पानी में डाल दें | (2) 2 चम्मच लाल चंदन चूर्ण 1 लीटर पानी में उबालें ।
लाल गुलाल : सूखे लाल गुडहल के फूलों का चूर्ण उपयोग करें ।
हरा रंग : (1) पालक, धनिया या पुदीने की पत्तियों के पेस्ट को पानी में भिगोकर उपयोग करें | (2) गेहूँ की हरी बालियों को पीस लें ।
हरा गुलाल : गुलमोहर अथवा रातरानी की पत्तियों को सुखाकर पीस लें ।
भूरा हरा गुलाल : मेहँदी चूर्ण के साथ आँवला चूर्ण मिला लें । स्त्रोत : संत श्री आसारामजी आश्रम से प्रकाशित ऋषि प्रसाद
रासायनिक रंगों के कुप्रभावों की जानकारी होने के बाद बहुत से लोग स्वयं ही प्राकृतिक रंगों की ओर लौट रहे हैं। चंदन, गुलाबजल, टेसू (पलाश) के फूलों से बना हुआ रंग तथा प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की परंपरा को बनाए हुए है । आप भी केमिकल रंगों को त्यागकर घर में ही प्राकृतिक रंग बनाकर होली खेले और स्वथ्य रहें ।
होली पर गाए-बजाए जाने वाले ढोल, मंजीरों, फाग, धमार, चैती और ठुमरी, वैदिक गानों से ही करनी चाहिए । फिल्मो के गानों से करने से हानि होती है ।
होली का त्यौहार हास्य-विनोद करके छुपे हुए आनंद-स्वभाव को जगाने के लिए है लेकिन आजकल जो प्रचलन चल रहा है कि केमिकल रंगों से होली खेलना वो बहुत नुकसानदायक है । अगर पलाश के रंगों से होली खेलेंगे तो इतने फायदे होंगे कि आपको डॉक्टर की ज्यादा आवश्यकता ही नही पड़ेगी ।
Knowing how to play Holi with Palash colors gives many benefits
and freedom from Kalsarpa
पलाश को हिंदी में ढ़ाक, टेसू, बंगाली में पलाश, मराठी में पळस, गुजराती में केसूडा कहते है।
इसके पत्त्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी – पात्र में किये भोजन तुल्य लाभ मिलते हैं ।
कालसर्प योग से मुक्ति
कालसर्प दोष बहुत भयंकर माना जाता है और ये करो, ये करो, इतना खर्चा करो, इतना जप करो, कई लोग इनको ठग लेते हैं । फिर भी कालसर्प योग से उनका पीछा नहीं छूटता। लेकिन ज्योतिष के अनुसार उनका कालसर्प योग नहीं रहता जिनके ऊपर केसुड़े (पलाश ) के रंग - होली के रंग का फुँवारा लग जाता है। फिर कालसर्प योग से मुक्ति हो गई । कालसर्प योग के भय से पैसा खर्चना नहीं और अपने को ग्रह दोष है, कालसर्प है ऐसा मानकर डरना नहीं पलाश के रंग शरीर पर लगाओ जिससे काल कालसर्प योग चला जायेगा।
पलाश से अनेक रोगों में मुक्ति
‘लिंग पुराण’ में आता है कि पलाश की समिधा से ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र द्वारा 10 हजार आहुतियाँ दें तो सभी रोगों का शमन होता है ।
पलाश के फूल : प्रेमह (मूत्रसंबंधी विकारों) में: पलाश-पुष्प का काढ़ा (50 मि.ली.) मिश्री मिलाकर पिलायें ।
रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में : फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है । आँखे आने पर (Conjunctivitis) फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजे ।
वीर्यवान बालक की प्राप्ति : एक पलाश-पुष्प पीसकर, उसे दूध में मिला के गर्भवती माता को रोज पिलाने से बल-वीर्यवान संतान की प्राप्ति होती है ।
पलाश के बीज : 3 से 6 ग्राम बीज-चूर्ण सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें | चौथे दिन सुबह 10 से 15 मि.ली. अरंडी का तेल गर्म दूध में मिलाकर पिलाने से कृमि निकल जायेंगे ।
पत्ते : पलाश व बेल के सूखे पत्ते, गाय का घी व मिश्री समभाग मिला के धूप करने से बुद्धि की शुद्धि व वृद्धि होती है ।
बवासीर में : पलाश के पत्तों की सब्जी घी व तेल में बनाकर दही के साथ खायें ।
छाल : नाक, मल-मूत्र मार्ग या योनि द्वारा रक्तस्त्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें ।
पलाश का गोंद : पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध या आँवला रस के साथ लेने से बल-वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं । यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है ।
पलाश के फूलों से होली खेलने की परम्परा का फायदा बताते हुए हिन्दू संत आसाराम बापू कहते हैं कि ‘‘पलाश कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है। साथ ही रक्तसंचार में वृद्धि करता है एवं मांसपेशियों का स्वास्थ्य, मानसिक शक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाता है।
रासायनिक रंगों से होली खेलने में प्रति व्यक्ति लगभग 35 से 300 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि सामूहिक प्राकृतिक-वैदिक होली में प्रति व्यक्ति लगभग 30 से 60 मि.ली. से कम पानी लगता है ।
इस प्रकार देश की जल-सम्पदा की हजारों गुना बचत होती है । पलाश के फूलों का रंग बनाने के लिए उन्हें इकट्ठे करनेवाले आदिवासियों को रोजी-रोटी मिल जाती है ।
पलाश के फूलों से बने रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की क्षमता बढ़ती है, मानसिक संतुलन बना रहता है ।
इतना ही नहीं, पलाश के फूलों का रंग रक्त-संचार में वृद्धि करता है, मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ-साथ मानसिक शक्ति व इच्छाशक्ति को बढ़ाता है । शरीर की सप्तधातुओं एवं सप्तरंगों का संतुलन करता है । स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा प्रकाशित ऋषि प्रसाद
आपको बता दें कि पलाश से वैदिक होली खेलने का अभियान हिन्दू संत आसाराम बापू ने शुरू किया था जिसके कारण केमिकल रंगों का और उससे फलने-फूलनेवाला अरबों रुपयों का दवाइयों का व्यापार प्रभावित हो रहा था।
बापू आसारामजी के सामूहिक प्राकृतिक होली अभियान से शारीरिक मानसिक अनेक बीमारियों में लाभ होकर देश के अरबो रुपयों का स्वास्थ्य-खर्च बच रहा है । जिससे विदेशी कंपनियों को अरबो का घाटा हो रहा था इसलिए एक ये भी कारण है उनको फंसाने का । साथ ही उनके कार्यक्रमों में पानी की भी बचत हो रही है ।
पर मीडिया ने तो ठेका लिया है समाज को गुमराह करने का। 5-6 हजार लीटर प्राकृतिक रंग (जो कि लाखों रुपयों का स्वास्थ्य व्यय बचाता है) के ऊपर बवाल मचाने वाली मीडिया को शराब, कोल्डड्रिंक्स उत्पादन तथा कत्लखानों में गोमांस के लिए प्रतिदिन हो रहे अरबों-खरबो लीटर पानी की बरबादी जरा भी समस्या नही लगती। ऐसा क्यों ???
कुछ सालों से अगर गौर करें तो जब भी कोई हिन्दू त्यौहार नजदीक आता है तो दलाल मीडिया और भारत का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग हमारे हिन्दू त्यौहारों में खोट निकालने लग जाता है ।
जैसे दीपावली नजदीक आते ही छाती कूट कूट कर पटाखों से होने वाले प्रदूषण का रोना रोने वाली मीडिया को 31 दिसम्बर को आतिशबाजियों का प्रदूषण नही दिखता। आतिशबाजियों से क्या ऑक्सीजन पैदा होती है?
जन्माष्टमी पर दही हांडी कार्यक्रम नही हो लेकिन खून-खराबा वाला ताजिया पर आपत्ति नही है।
ऐसे ही शिवरात्रि के पावन पर्व पर दूध की बर्बादी की दलीलें देने वाली मीडिया हजारों दुधारू गायों की हत्या पर मौन क्यों हो जाती है?
अब होली आई है तो बिकाऊ मीडिया पानी बजत की दलीलें लेकर फिर उपस्थित होंगी । लेकिन पानी बचाना है तो साल में 364 दिन बचाओ पर पलाश की वैदिक होली अवश्य मनाओं । क्योंकि बदलना है तो अपना व्यवहार बदलो....त्यौहार नहीँ ।