Friday, January 6, 2017

बिगबॉस देखते हैं तो हो जाइये सावधान...!!!



बिगबॉस देखते हैं तो हो जाइये सावधान...!!!

भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का एक और बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय षड़यंत्र...!!!

Beware Of Big Boss 


भारत की संस्कृति इतनी दिव्य और महान है कि उस पर सदियों से कुठाराघात होता आया है ।

पहले मुगलों ने भारत को लूटा और हिन्दू संस्कृति नष्ट करने का प्रयास किया फिर अंग्रेजों ने भारत को लूटकर संस्कृति बदलने का अथाह प्रयास किया ।

इससे भी भारत की दिव्य संस्कृति नष्ट नही हुई तो अब ईसाई मिशनरियों द्वारा लालच देकर धर्मान्तरण और मुस्लिमों द्वारा डरा-धमकाकर हिन्दुओं का धर्मान्तरण किया जा रहा है ।

उससे भी अधिक इस जमाने में हमारा मीडिया और बॉलीवुड द्वारा मानसिक धर्मान्तरण किया जा रहा है ।
आपने देखा होगा कि कई सालों से मीडिया द्वारा हिन्दू संगठनों एवं हिन्दू संतों को दिन रात बदनाम किया जा रहा है लेकिन किसी ईसाई पादरी या मौलवी के लिए कभी कुछ नहीं दिखाया जाता ।

ऐसे ही बॉलीवुड में कई सालों से इस्लामीकरण हो गया है बॉलीवुड के जरिये  हमारे आराध्य हिन्दू देवी देवताओं, हिन्दू त्यौहारों, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू साधु-संतों को नीचा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है ।

अब हम आपको इसका एक ताजा उदाहरण देते हैं..!!!

अन्तर्राष्ट्रीय षड़यंत्र के तहत सलमान खान की अध्यक्षता में बिग बॉस टीवी शो चल रहा है जिसमें लड़ाई झगड़े दिखाकर हमारे घरों में अशांति और कलह बढ़ाने जैसा वातावरण हमारे मस्तिष्क में डाला जा रहा है ।

बिग बॉस विदेशी गन्दगी, कामवासना और अश्लीलता दिखाकर भारतीय युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट कर रहा है ।

आप स्वयं विचार करें कि ये सब देखकर आपके बच्चों को कैसे संस्कार मिलेंगे..???

अश्लीलता, अर्धनग्न स्त्रियां देखकर हमारे युवा पथभ्रष्ट नही होंगे क्या...???

क्या देश में रेप और बलात्कार जैसे केस और नही बढ़ेगे...???

जरा स्वयं विचार करें..!!

बिग बॉस 10 में तो अति हद तब हो जाती है जब साधु के कपड़े पहनकर  "स्वामी ओम" साधुताई के नाम पर लड़कियों से छेड़ खानी करना , दारू पीना, मांस खाना आदि करके हिन्दू संतों की गरिमा पर गहरी चोट लगा रहा है।

शो देखकर तो ऐसा लगता है जैसे ओमजी महाराज को विदेशी पैसा मिला है हिन्दू संतो की छवि धूमिल करने के लिए !!

ओमजी महाराज का कहना है कि मेरे को बोले थे कि रामराज्य करवाना है तो बिग बॉस में काम करो लेकिन वहाँ जाने के बाद मुझे कुछ खिला दिया था और मेरे को जान से मारने की धमकी दी थी इसलिये मैंने बिग बॉस में ये सब किया ।

अब सरकार और न्यायालय को इसकी जांच करानी चाहिए और बिग बॉस तुंरन्त बन्द करवा देना चाहिए ।

* याद रहे रोम, यूनान और मिस्र जैसी प्राचीन संस्कृतियों को नष्ट करने के बाद ईसाई मिशनरियों की नजर अब महान भारतीय संस्कृति पर (जहाँ लोगों को माता पिता की सेवा करना,उन्हें देवतातुल्य जानना, संयम  का पाठ, एकता के सूत्र में बंधना सिखाया जाता है ऐसे ही अनंत गुणों से भरपूर है हमारी संस्कृति) है।*


ऐसा न हो जब तक आपको समझ आये तब तक बहुत देर हो चुकी हो।

 *भारतीय संस्कृति को पुनः जागृत करने वाले संतों की प्रतिष्ठा को बचाना है तो सभी भारतीय बिग बॉस शो का पूर्ण बहिष्कार करें, एवं इस शो को देखना बंद करें।*

Thursday, January 5, 2017

संत समाज संयुक्त राष्ट्र संघ को लिखेगे पत्र...!!!

संत समाज संयुक्त राष्ट्र संघ को लिखेगे पत्र...!!!

अंतर्राष्ट्रीय सनातन संत समिति ने प्रस्ताव पारित किया..!!!

देश में संतो के खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार और षड़यंत्र के पीछे विदेशी कंपनियो व मिशनरियों का हाथ है।

ऐसा मानते हुए अंतर्राष्ट्रीय सनातन संत समिति ने संयुक्त राष्ट्रीय संघ को एक पत्र लिखने के लिए प्रस्ताव पारित किया है । संतो का कहना हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ मिशनरी व इन कंपनियों पर अंकुश लगाये।
संत समाज संयुक्त राष्ट्र संघ को लिखेगे पत्र...!!!


समिति का सम्मलेन पिछले दिनों उजडवेडा हनुमान मंदिर के समीप स्थित चिदध्यानम शिविर में हुआ । स्वामी चिदम्बरानंद महाराज की अध्यक्षता में हुए सम्मलेन में 'देश और धर्म पर हम चुप क्यों' विषय,वैचारिक मंथन के दौरान संतो ने फैसला लिया कि देश और धर्म की रक्षा के लिए समाज की चुप्पी तोड़ कर मुखर बनाया जाएगा ।

 स्वामीजी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को पत्र लिखने का प्रस्ताव किया । संतों की करतल ध्वनि के बीच स्वामी भावेशानंदजी महाराज ने समर्थन किया । उन्होंने बताया कि समिति में शामिल संतों के अलावा अन्य संतों व महंतों के भी पत्र पर हस्ताक्षर करवाए जाएंगे ।


शंकराचार्य सहित कई संत हुए षड़यंत्र के शिकार..!!!

स्वामी चिदम्बरानंद महाराज के अनुसार जो संत आदिवासी व पिछड़े क्षेत्र में धर्मातरण रोकने व शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहें हैं मिशनरी व उनके इशारों पर विदेशी कंपनियां षड़यंत्र रच रही हैं । शंकराचार्य, जयेन्द्र सरस्वती, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर , संत आसारामजी बापू और असीमानंदजी अब तक इनके षड़यंत्र का शिकार हो चुके हैं । हम संयुक्त राष्ट्र संघ को पत्र लिखने के बाद देश में भी अभियान चलाएंगे ।

प्रशासक की लापरवाही से नाराजगी...!!!

हिन्दू संतों के खिलाफ अभीतक एक भी सबूत नही है और साध्वी प्रज्ञा और संत आसारामजी बापू को क्लीनचिट मिलने के बावजूद भी इन संतों को जमानत तक नही देना ये प्रशासन की लापरवाही है ।

आपको बता दें कि भारत में विदेशी कम्पनियाँ कोलगेट, दवाईयां, ड्रग्स, पेप्सी, दारू आदि का टीवी में ऐड देकर भारतवासियों को लुभाते हैं और भोले भारतवासी उसको अच्छी क्वालटी समझकर खरीद लेते हैं जिससे विदेशी कम्पनियाँ भारत से अरबों-खबरों रूपये कमाकर देशवासियों को खोखला कर रही है और ईसाई मिशनरियां हिन्दुओं का जोर-शोर से धर्मान्तरण करवा रही हैं उसको रोकने के लिए हिन्दू साधु-संत गांव-गांव, नगर-नगर जाकर हिन्दू संस्कृति की महिमा समझाते थे और एक नयी जाग्रति लाकर विदेशी कंपनियों और ईसाई धर्मान्तरण पर रोक लगा रहे थे इसलिए साधु-संतों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें जेल भेजा गया, कई साधु-संतों की हत्यायें हो गई ।

ओडिशा के लक्ष्मणानन्दजी की हत्या करवा दी गई, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर 9 साल से, स्वामी असीमानन्द जी 7 साल से, स्वामी अमृतानन्द जी 7 साल से, संत आसारामजी बापू साढ़े तीन साल से, नारायण साईं 3 साल से, धनंजय देसाई 2 साल से जेल में हैं । क्योंकि इन्होंने विदेशी कम्पनियों और धर्मान्तरण का डटकर मुकाबला किया था ।


आपको मुस्लिम समुदाय के लोग तो दिख जाएंगे कि ये दंगे कर रहे हैं लेकिन ये ईसाई मिशनरियां बड़े छल-कपट से हिन्दुओं का धर्मान्तरण कर रही हैं और आम जनता को भनक भी नही लगने देती हैं।


रोमन केथोलिक #चर्च का एक छोटा राज्य है जिसे वेटिकन बोलते है । अपने धर्म (ईसाई) के प्रचार के लिए वे हर साल​ 171,600,000,000 डॉलर खर्च करते हैं।


भारत की मीडिया 90% ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित है इसलिए वो हमेशा हिन्दुओं के विरोध में ही काम करती है ।

ईसाई मिशनरियों द्वारा विदेशी फंड से चलने वाले आज भी भारत में कई हजारों NGOs चल रहे हैं जो दिन रात हिन्दुओं को लालच देकर धर्मान्तरण करवा रहे हैं। 

लेकिन उनकी तरफ कानून, सरकार, मीडिया किसी का भी ध्यान नही जाता ।


अतः सभी हिन्दू सावधान रहें !
अपने-अपने इलाको में जो लालच देकर धर्मान्तरण करवा रहे हैं उन पर कड़ी कार्यवाही करें नही तो हिन्दुस्तान में हिन्दू बचेगा ही नही ।

Wednesday, January 4, 2017

गुरु गोविंद सिंह जयंती - 5 जनवरी 2016

गुरु गोविंद सिंह जयंती - 5 जनवरी 2016

सिख समुदाय के दसवें धर्म-गुरु (सतगुरु) गोविंद सिंह जी का जन्म पौष शुदि सप्तमी संवत 1723 (22 दिसंबर, 1666) को हुआ था । उनका जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था। 

उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1675 को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक संत थे।

सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की । जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
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गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। 

उन्होंने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ 14 युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान किया, जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं।

गुरु गोविंद सिंह जो विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे।

गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म!!


प्राग राज के निवास समय श्री गोबिंद राय जी के जन्म से एक दिन पहले माता नानकी जी ने स्वाभाविक श्री गुरु तेग बहादुर जी (Shri Guru Tek Bahadar Ji) को कहा कि बेटा! आप जी के पिता ने एक बार मुझे वचन दिया था कि तेरे घर तलवार का धनी बड़ा प्रतापी शूरवीर पोत्र ईश्वर का अवतार होगा । मैं उनके वचनों को याद करके प्रतीक्षा कर रही हूँ कि आपके पुत्र का मुँह मैं कब देखूँगी !
 बेटा जी! मेरी यह मुराद पूरी करो, जिससे मुझे सुख की प्राप्ति हो ।

अपनी माता जी के यह मीठे वचन सुनकर गुरु जी ने वचन किया कि माता जी! आप जी का मनोरथ पूरा करना अकाल पुरख के हाथ मैं है । हमें भरोसा है कि आप के घर तेज प्रतापी ब्रह्मज्ञानी पोत्र देंगे ।

गुरु जी के ऐसे आशावादी वचन सुनकर माता जी बहुत प्रसन्न हुए । माता जी के मनोरथ को पूरा करने के लिए गुरु जी नित्य प्रति प्रातकाल त्रिवेणी स्नान करके अंतर्ध्यान हो कर वृति जोड़ कर बैठ जाते व पुत्र प्राप्ति के लिए अकाल पुरुष की आराधना करते ।

गुरु जी की नित्य आराधना और याचना अकाल पुरख के दरबार में स्वीकार हो गई। उसने हेमकुंट के महा तपस्वी दुष्ट दमन को आप जी के घर माता गुजरी जी के गर्भ में जन्म लेने कि आज्ञा की । जिसे स्वीकार करके श्री दमन (दसमेश) जी ने अपनी माता गुजरी जी के गर्भ में आकर प्रवेश किया ।

गुरु गोविंद सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी के घर पटना में 22 दिसम्बर 1666 को हुआ था। जब वह पैदा हुए थे उस समय उनके पिता असम में धर्म उपदेश को गये थे। उन्होंने बचपन में फारसी, संस्कृत की शिक्षा ली और एक योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल सीखा।

गुरु गोबिंद सिंह जी का विवाह सुंदरी जी से 11 साल की उम्र में 1677 में हुआ। उनके चार पुत्र साहिबजादा अजीत सिंह, जूझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह थे ।

गुरु गोबिन्द सिंह मार्ग!!

अप्रैल 1685 में, सिरमौर के राजा मत प्रकाश के निमंत्रण पर गुरू गोबिंद सिंह ने अपने निवास को सिरमौर राज्य के पांवटा शहर में स्थानांतरित कर दिया । सिरमौर राज्य के गजट के अनुसार, राजा भीम चंद के साथ मतभेद के कारण गुरु जी को आनंदपुर साहिब छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था और वे वहाँ से टोका शहर चले गये । मत प्रकाश ने गुरु जी को टोका से सिरमौर की राजधानी नाहन के लिए आमंत्रित किया। नाहन से वह पांवटा के लिए रवाना हुये। मत प्रकाश ने गढ़वाल के राजा फतेह शाह के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने के उद्देश्य से गुरु जी को अपने राज्य में आमंत्रित किया था। राजा मत प्रकाश के अनुरोध पर गुरु जी ने पांवटा मे बहुत कम समय में उनके अनुयायियों की मदद से एक किले का निर्माण करवाया। गुरु जी पांवटा में लगभग तीन साल के लिए रहे और कई ग्रंथों की रचना की। 

सन 1687 में नादौन की लड़ाई में, गुरु गोबिंद सिंह, भीम चंद, और अन्य मित्र देशों की पहाड़ी राजाओं की सेनाओं ने अलिफ खान और उनके सहयोगियों की सेनाओं को हरा दिया था । विचित्र नाटक (गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित आत्मकथा) और भट्ट वाहिस के अनुसार, नादौन पर बने व्यास नदी के तट पर गुरु गोबिंद सिंह आठ दिनों तक रहे और विभिन्न महत्वपूर्ण सैन्य प्रमुखों का दौरा किया।

भंगानी के युद्ध के कुछ दिन बाद, रानी चंपा (बिलासपुर की विधवा रानी) ने गुरु जी से आनंदपुर साहिब (या चक नानकी जो उस समय कहा जाता था) वापस लौटने का अनुरोध किया जिसे गुरु जी ने स्वीकार किया । वह नवंबर 1688 में वापस आनंदपुर साहिब पहुंच गये ।

1695 में, दिलावर खान (लाहौर का मुगल मुख्य) ने अपने बेटे हुसैन खान को आनंदपुर साहिब पर हमला करने के लिए भेजा । मुगल सेना हार गई और हुसैन खान मारा गया। हुसैन की मृत्यु के बाद, दिलावर खान ने अपने आदमियों जुझार हाडा और चंदेल राय को शिवालिक भेज दिया। हालांकि, वे जसवाल के गज सिंह से हार गए थे। पहाड़ी क्षेत्र में इस तरह के घटनाक्रम मुगल सम्राट औरंगजेब के लिए चिंता का कारण बन गए और उसने क्षेत्र में मुगल अधिकार बहाल करने के लिए सेना को अपने बेटे के साथ भेजा।

खालसा पंथ की स्थापना!!

गुरु गोबिंद सिंह जी का नतृत्व सिख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया रंग ले कर आया। उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा जो कि सिख धर्म के विधिवत् दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है उसका निर्माण किया।

सिख समुदाय के एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा – कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राजी हो गया और गुरु गोबिंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पूछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राजी हुआ और उनके साथ गया पर वे तम्बू से जब बाहर निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी प्रकार पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोबिंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।

उसके बाद गुरु गोबिंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दुधारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा के बनाने के बाद उन्हें छटवां खालसा का नाम दिया गया जिसके बाद उनका नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया गया। उन्होंने क शब्द के पांच महत्व खालसा के लिए समझाये और कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा।

गुरु गोबिंद सिंह की तीन पत्नियाँ थी!!

21जून, 1677 को 10 साल की उम्र में उनका विवाह माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में किया गया। उन दोनों के 3 लड़के हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह ।

4अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम था अजित सिंह।

15अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। वैसे तो उनकी कोई संतान नहीं थी पर सिख धर्म के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा। 

यह कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने कुल चौदह युद्ध लड़े परन्तु कभी भी किसी पूजा के स्थल के लोगों को ना ही बंदी बनाया या क्षतिग्रस्त किया।

भंगानी का युद्ध Battle of Bhangani (1688)नादौन का युद्ध Battle of Nadaun (1691)गुलेर का युद्ध Battle of Guler (1696)आनंदपुर का पहला युद्ध First Battle of Anandpur (1700)आनंदपुर साहिब का युद्ध Battle of Anandpur Sahib (1701)निर्मोहगढ़ का युद्ध Battle of Nirmohgarh (1702)बसोली का युद्ध Battle of Basoli (1702)आनंदपुर का युद्ध Battle of Anandpur (1704)सरसा का युद्ध Battle of Sarsa (1704)चमकौर का युद्ध Battle of Chamkaur (1704)मुक्तसर का युद्ध Battle of Muktsar (1705)

परिवार के लोगों की मृत्यु!!

कहा जाता है कि सिरहिन्द के मुस्लिम गवर्नर ने गुरु गोबिंद सिंह के माता और दो पुत्र को बंदी बना लिया था। जब उनके दोनों पुत्रों ने इस्लाम धर्म को कुबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें जिन्दा दफना दिया गया। अपने पोतों के मृत्यु के दुःख को ना सह सकने के कारण माता गुजरी भी ज्यादा दिन तक जीवित ना रह सकी और जल्द ही उनकी मृत्यु हो गयी। मुगल सेना के साथ युद्ध करते समय 1704 में उनके दोनों बड़े बेटों की मृत्यु हो गयी।

जफरनामा!!

गुरु गोबिंद सिंह ने जब देखा कि मुगल सेना ने गलत तरीके से युद्ध किया है और क्रूर तरीके से उनके पुत्रों का हत्या कर दी है तो हथियार डाल देने के बजाये गुरु गोबिंद सिंग ने औरंगजेब को एक जीत पत्र “जफरनामा” जारी किया। बाद में मुक्तसर, पंजाब में दोबारा गुरु जी ने स्थापित किया और अदि ग्रन्थ Adi Granth के नए अध्याय को बनाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया जो पांचवें सिख गुरु अर्जुन द्वारा संकलित किया गया है।

उन्होंने अपने लेखन का एक संग्रह बनाया है जिसको नाम दिया दसम ग्रन्थ Dasam Granth और अपनी स्वयं की आत्मकथा जिसका नाम रखा है बिचित्र नाटक Bicitra Natak.

अन्तिम समय!!

एक हत्यारे से युद्ध करते समय गुरु गोबिंद सिंह जी के छाती में दिल के ऊपर एक गहरी चोट लग गयी थी। जिसके कारण 18 अक्टूबर, 1708 को 42 वर्ष की आयु में नान्देड में अपना नश्वर देह त्याग दिया ।

आओ सब मिलकर ऐसी दिव्य विभूति गुरु गोविंद सिंह की जयंती पर उन्हें शत शत नमन करें ।

Tuesday, January 3, 2017

सनसनीखेज खुलासा : साध्वी प्रज्ञा को फंसाने के लिए आरोपियों की हत्या की गयी !!!

सनसनीखेज खुलासा : साध्वी प्रज्ञा को फंसाने के लिए कर दी थी आरोपियों की हत्या..!!!


2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में एक नया मोड़ आ गया है। निलंबित पुलिसवाले ने कहा, 2 मुख्य आरोपियों की मौत हो चुकी है। कोर्ट में दाखिल हलफनामे में पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा कि केस के दोनों आरोपियों की पुलिस कस्टडी में ही हत्या कर दी गई थी।

सनसनीखेज खुलासा करते हुए निलंबित पुलिसवाले ने आरोप लगाया है कि मालेगांव में बम रखने के आरोपियों संदीप दांगे और रामजी कलसांगरा की महाराष्ट्र एटीएस के अधिकारियों ने 2008 में ही हत्या कर दी थी और शवों को 26/11 हमले में मरने वालों के साथ यह कहकर ठिकाने लगा दिया था कि उनकी शिनाखत नहीं हो पाई है।
सनसनीखेज खुलासा : साध्वी प्रज्ञा को फंसाने के लिए आरोपियों की हत्या की गयी !!!


निलंबित पुलिसकर्मी महबूब मुजावर का यह आरोप महाराष्ट्र एटीएस के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। हालांकि मुजावर को आय से अधिक संपत्ति और आर्म्स ऐक्ट के तहत एक केस के कारण सस्पेंड किया गया था। दोनों मामले इस महीने की शुरुआत में शोलापुर मैजिस्ट्रेट कोर्ट के पास आए थे।

शोलापुर मैजिस्ट्रेट मुजावर के खिलाफ दोनों मामलों की सुनवाई कर रहा है। मुजावर का कहना है कि दांगे और कलसांगरा की मौत का रहस्य तत्कालीन (2009) डीजीपी एसएस विर्क को बताने के कारण उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। 

हालांकि, मुजावर ने हलफनामे में किसी पुलिस अधिकारी का नाम नहीं लिखा है। 

संपर्क किए जाने पर अखबार मुंबई मिरर को बताया गया कि वह कोर्ट में अधिकारियों के नामों से पर्दा उठाएंगे। उन्होंने आगे कहा, 'मैंने जलगांव से जिस संदिग्ध आतंकी को गिरफ्तार किया था, उसे छोड़ दिया गया और दांगे व कलसांगरे को हिरासत में ले लिया गया। उसी दिन साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भी हिरासत में लिया गया था। कलसांगरे और दांगे को मुंबई ले जाया गया, जहां उन्हें कस्टडी में मार दिया गया।'

मालेगांव ब्लास्ट : रामजी की पत्नी ने कहा मर्डर किया तो पति की लाश दो..!!!

इंदौर : महाराष्ट्र एटीएस इंस्पेक्टर मेहबूब मुजावर द्वारा सोलापुर कोर्ट में दिए एफिडेविट में रामजी कलसांगरा और संदीप दांगे का एनकाउंटर का खुलासा करने के बाद उनके परिजन सामने आ गए हैं । एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में रामजी की पत्नी लक्ष्मी ने कहा कि यदि उनकी हत्या की गई है, तो बॉडी सामने आनी चाहिए । जबकि संदीप के पिता वीके दांगे ने जल्द से जल्द पूरे मामले की जांच की मांग रखी है ।

2008 के दशहरे के बाद से गायब है रामजी...!!

- रामजी की पत्नी लक्ष्मी और बेटे देवव्रत ने मीडिया से चर्चा में कहा कि एटीएस ने पिछले 8 साल से हमारे परिवार का जीना मुश्किल कर दिया है । 

- 2008 के दशहरे पर आखरी बार रामजी कलसांगरा हमारे साथ थे। उसके बाद से वो लापता हैं।  उनका कोई सुराग नहीं है उनसे कोई संपर्क नहीं हुआ है। 

- लक्ष्मी ने कहा कि एटीएस इंस्पेक्टर मुजावर के बयान की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए, यदि एटीएस ने उन्हें मार दिया है तो पति की बॉडी दी जाए।  

- उधर, संदीप दांगे के पिता प्रो. वीके दांगे ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले की जांच की बात की है। ये जांच तुरंत  निष्पक्ष होनी चाहिए ताकि सच सामने आ सके। 

- उन्होंने कहा कि मुजावर ने संदीप और रामजी के बारे में तो कहा है, लेकिन इसी मामले में एटीएस द्वारा उठाए गए दिलीप पाटीदार के बारे में उसने अपना मुंह नहीं खोला है।  

- दिलीप पाटीदार अभी भी लापता है। उसकी गुमशुदगी की भी जांच की जानी चाहिए।

- ब्लास्ट में इंदौर के श्याम साहू को भी आरोपी बनाया गया था। एनआईए ने अपनी रिपोर्ट में उन्हें क्लीनचिट दे दी है।

- साहू ने कहा कि एटीएस का रवैया आतंकवादियों जैसा था वे लोग मारपीट कर मनमाने बयान पर साइन करवा लेते थे।

- साहू के अनुसार एटीएस चीफ हेमंत करकरे ने उन पर कई बार ये दबाव डाला था कि तुम इस मामले में किसी बड़े आदमी का नाम ले तो तो तुम्हें छोड़ देंगे।


आपको बता दें कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर 9 साल से और कर्नल श्रीकांत पुरोहित 7 साल से बिना सबूत जेल में हैं । साध्वी प्रज्ञा को NIA ने क्लीन चिट भी दे दी है और वो कैंसर से पीड़ित हैं और उनको षड़यंत्र के तहत फंसाये जाने के भी कई सबूत मिल चुके हैं । उसके बावजूद भी उन्हें जमानत तक नहीं देना बड़ा आश्चर्य है!!!

जब कि साध्वी प्रज्ञा जी केंसर से पीड़ित हैं उनका चलना, फिरना, उठना, बैठना भी मुश्किल हो रहा है  फिर भी ईलाज के लिए जमानत तक नहीं देना कितना बड़ा अन्याय है।

स्वामी असीमानंद ने भी ईसाई धर्मान्तरण पर रोक लगाई थी इसलिए उनको टारगेट बनाकर जेल भेज दिया गया था ।


जॉइंट इंटेलीजेंस कमेटी के पूर्व प्रमुख और पूर्व उपराष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डॉ. एस डी प्रधान ने देश में भगवा आतंक की थ्योरी को लेकर कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं। 

जिसमें उन्होंने बताया है कि साध्वी प्रज्ञा और स्वामी असीमानंद का ब्लास्ट में नाम ही नही था और ब्लास्ट पाकिस्तान द्वारा ही करवाया गया था । इसका पुख्ता सबूत होने पर भी चिंदमर ने राजनीतिक फायदे के लिए साध्वी प्रज्ञा और स्वामी असीमानन्द जैसे हिंदुत्व निष्ठों को जेल भेज दिया था।

ऐसे ही संत आसारामजी बापू को भी क्लीन चिट मिल चुकी है लेकिन उनको भी अभीतक जमानत तक नही मिल पा रही है ऐसे ही श्री धनंजय देसाई को भी बिना सबूत जेल में रखा हुआ है ।

हिंदुत्ववादी सरकार आने पर भी इन हिंदुत्वनिष्ठों को जमानत तक नही मिलना और खूंखार आतंकी टुंडा जैसे आतंकवादी को बरी करना ।

कितना बड़ा आश्चर्य है..!!!

तरुण तेजपाल, सलमान खान, लालू प्रसाद यादव आदि अपराध सिद्ध होने पर भी बरी हो जाते हैं तो इन निर्दोष हिन्दुत्वनिष्ठों को जमानत क्यों नही मिल रही है...???

आखिर निर्दोष हिन्दू संतों को कब मिलेगा न्याय..???

"क्या देर से न्याय मिलना अन्याय का ही रूप नहीं ?"

सोचो हिन्दू !!!

Monday, January 2, 2017

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम एक फकीर का खुला खत..!!!

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम एक फकीर का खुला खत..!!!

सोनिया मैडम और उनके पुत्र असहाय घूम रहे हैं ।

हिन्दी मासिक पत्रिका आदर्श पंचायती राज में बोरिया बाबा का एक लेख छपा है ।

इस पत्रिका में लिखा है कि 100 वर्ष से अधिक आयु के वैष्णव अघोरी बाबा, हरे राम ब्रह्मचारी (बोरिया बाबा) सिद्ध बाबा केनाराम परंपरा के महान संतों में से एक हैं । 
Azaad Bharat -Mystic's open letter to Prime Minister Narendra Modi

उन बोरिया बाबा ने प्रधानमंत्री मोदी जी को संबोधित करते हुए कहा है कि कांग्रेस पार्टी ने 80 वर्षीय संत आशारामजी बापू को लगभग साढे तीन वर्ष पहले एक झूठे मुकदमें में फंसाकर जेल भेज दिया था । मैडम सोनिया ने अपनी हुकूमत में और भी हिन्दू संतो को खूब फंसाया है । अब मैडम सोनिया व उसके पुत्र के कर्म पूरे हो चुके हैं। उनका राजपाट छीन चुका है अब दोनों ही असहाय होकर घूम रहे हैं।

 शास्त्र वचन भी है...
संत कै दूखनि नीचु निचाई। संत दोखी का थाउ को नाहीँ।।

संत आशारामजी बापू पिछले 50 वर्षों से इस देश की सेवा में जुटे हुए थे। अपने सत्संग ,गुरुकुल व गौशालाओं के जरिये वो भारत की सनातन संस्कृति धर्म व गौ-माता की खूब सेवा कर रहे थे । देश में ईसाई मिशनरियों द्वारा हिन्दुओं को धड़ाधड़ ईसाई बनाये जाने के कामों में इससे रोक लग रही थी । और इसी कारण से मैडम सोनिया उनसे नाराज हो गयी थी।

देश के लोगों को पूरी उम्मीद थी कि मोदी जी की सरकार आ जाने पर संत आशारामजी बापू को तुरंत न्याय मिल जायेगा। इस लिए देश के बड़े- बड़े साधु संतो ने भी भाजपा की जीत के लिये खूब-खूब प्रार्थनाएँ, यज्ञ तथा भंडारे किये थे ।


मोदी जी की सरकार बने अब 3 साल पूरे होने जा रहे हैं , किन्तु न तो मोदी जी ने और न ही भाजपा के किसी अन्य बड़े नेता ने ही अपने मुँह से इस बारे में कुछ कहा  तक नहीं है ।

संत आशारामजी बापू की रिहाई न होने के कारण ही आज भारत के बड़े - बड़े साधु संत व मठाधीश तक भयभीत है । 

उनका कहना है कि जब इतने बड़े संत के साथ सरकार ऐसा बर्ताव कर सकती है तो हम लोंगो की तो बिसात ही क्या है!
इस लिये कोई भी संत महात्मा इस बारे मे खुल कर बोल भी नहीं पा रहा है। 

मोदी जी मेरा आपसे कहना है कि जिस राजा के राज में संत सताए जाएँ तथा संत महात्मा भयभीत होकर रहें, तो उस राजा का भविष्य कतई उज्जवल नहीं है ।

मैं भी संत महात्माओं की इस पवित्र भारत भूमि पर 100 वर्षों से भी अधिक समय से  विचरण कर रहा एक वैष्णव अघोरी फकीर हूँ । मैंने भी आपके लिए माँ भगवती से खूब प्रार्थनाएं की थी । इसलिए मेरी तो आपको सलाह है कि संत आशारामजी बापू एक निर्दोष संत हैं । आप सम्मान के साथ उनकी आजादी का जल्दी से जल्दी प्रबंध कर दें ।

भारत के हजारों संत इसके लिए आपको आशीर्वाद और दुआएं देंगे तथा आपके उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना भी करेंगे ।

आप स्वयं एक ज्ञानी पुरुष हैं । आपको अब भारत भूमि पर राज करने का अवसर भी मिल गया है। आप पूर्व में हुए कुछ महान राजाओं की तरह गौ, ब्राह्मण व संतों के रक्षक बनें, आपका नाम अमर हो जायेगा । 

संत को सताने से मनुष्य के सभी सत्कर्म इस प्रकार नष्ट हो जाते हैं जैसे अग्नि के सानिंध्य से कपूर नष्ट हो जाता है ।

शास्त्र वचन भी है -

संत का दोखी अध् बीच ते टूटे !
संत का दोखी किते काजी न पहुँचों!!

संत को सताने वाले राजा का (इकबाल) तेज प्रताप बीच में ही नष्ट हो जाता है। वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता ।

आपको बता दें कि बोरिया बाबा के गुरूजी बाबा बैताली राम जी जिनका शरीर इस धरा पर लगभग 350 वर्षों तक रहा था । 

बोरिया बाबा अपने जीवन के 60-70 वर्ष हिमालय में तपस्या कर अब लोक-कल्याणार्थ नीचे आकर देश में पर्यावरण सुधार के कार्य में जुटे हुए हैं ।

 इसी सिलसिले में बाबा की भेंट देश के राजनेताओं, श्रीमति इंदिरा गांधी से लेकर वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तक भी होती रही है ।

 भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी तो बाबा का जब भी दिल्ली आना होता था, वो उन्हें अपने भोंडसी आश्रम जरुर लेकर जाते थे।

(संदर्भ : आदर्श पंचायती राज - हिन्दी मासिक पत्रिका) दिसंबर -2016, पृष्ठ-5

Sunday, January 1, 2017

भारतवासी शहीद गोकुल सिंह के बलिदान दिवस को भूल गए !! पर 1 जनवरी को अंग्रेजों का नया साल याद रखते हैं !!

महाआश्चर्य!

भारतवासी,1 जनवरी को देश की आजादी के लिए शहीद होने वाले अमर वीर गोकुल सिंह को भूल गए..!!!
पर गुलाम बनाने वाले अंगेजों के नववर्ष को याद रखे..!


1669 की क्रान्ति के जननायक, परतंत्र भारत में असहयोग आन्दोलन के जन्मदाता, राष्ट्रधर्म रक्षक वीर गोकुल सिंह जी और उनके सात हजार क्रान्तिकारी साथियों के बलिदान दिवस पर {1जनवरी} उनको शत-शत नमन।


कैसे वीर थे वो अलबेले,कैसी अमर है उनकी कहानी।
सरदार गोकुल सिंह जी की, आओ याद करें कुर्बानी।।
Indians-have-forgotten-Gokul-Singhs-martyrdom-day 


सन् 1666 के समय में इस्लामिक राक्षस औरंगजेब के अत्याचारों से हिन्दू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, हिन्दू स्त्रियों की इज्जत लूटकर उन्हें मुस्लिम बनाया जा रहा था।
औरंगजेब और उसके सैनिक पागल हाथी की तरह हिन्दू जनता को मथते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।

हिंदुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया। अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला। 

सिनसिनी गाँव के सरदार गोकुल सिंह के आह्वान पर किसानों ने लगान देने से इंकार कर दिया, परतन्त्र भारत के इतिहास में वह "पहला असहयोग आन्दोलन" था ।

दिल्ली के सिंहासन के नाक तले समरवीर धर्मपरायण हिन्दू वीर योद्धा गोकुल सिंह और उनकी किसान सेना ने आतताई औरंगजेब को हिंदुत्व की ताकत का एहसास दिलाया। 

मई 1669 में अब्दुन्नवी ने सिहोरा गाँव पर हमला किया। उस समय वीर गोकुल सिंह गाँव में ही थे। भयंकर युद्ध हुआ लेकिन इस्लामी शैतान अब्दुन्नवी और उसकी सेना सिहोरा के वीर हिन्दुओं के सामने टिक ना पाई और सारे इस्लामिक पिशाच गाजर-मूली की तरह काट दिए गए।

गोकुल सिंह की सेना में जाट, राजपूत, गुर्जर, यादव, मेव, मीणा इत्यादि सभी जातियों के हिन्दू थे। इस विजय ने मृतप्राय हिन्दू समाज में नए प्राण फूँक दिए थे।

इसके बाद पाँच माह तक भयंकर युद्ध होते रहे । मुगलों की सभी तैयारियां और चुने हुए सेनापति प्रभावहीन और असफल सिद्ध हुए । क्या सैनिक और क्या सेनापति सभी के ऊपर गोकुलसिंह का वीरता और युद्ध संचालन का आतंक बैठ गया। अंत में सितंबर मास में, बिल्कुल निराश होकर, शफ शिकन खाँ ने गोकुलसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा । गोकुल सिंह ने औरंगेजब का प्रस्ताव अस्वीकार करते हुए  कहा कि "औरंगजेब कौन होता है हमें माफ करने वाला, माफी तो उसे हम हिन्दुओं से मांगनी चाहिए उसने अकारण ही हिन्दू धर्म का बहुत अपमान किया है।

अब औरंगजेब 28 नवम्बर 1669 को दिल्ली से चलकर खुद मथुरा आया गोकुल सिंह से लड़ने के लिए। औरंगजेब ने मथुरा में अपनी छावनी बनाई और अपने सेनापति होशयार खाँ को एक मजबूत एवं विशाल सेना के साथ युद्ध के लिए भेजा।

आगरा शहर का फौजदार होशयार खाँ 1669 सितंबर के अंतिम सप्ताह में अपनी-अपनी सेनाओं के साथ आ पहुंचे । यह विशाल सेना चारों ओर से गोकुलसिंह को घेरा लगाते हुए आगे बढ़ने लगी । गोकुलसिंह के विरुद्ध किया गया यह अभियान, उन आक्रमणों से विशाल स्तर का था, जो बड़े-बड़े राज्यों और वहां के राजाओं के विरुद्ध होते आए थे। इस वीर के पास न तो बड़े-बड़े दुर्ग थे, न अरावली की पहाड़ियाँ और न ही महाराष्ट्र जैसा विविधतापूर्ण भौगोलिक प्रदेश । इन अलाभकारी स्थितियों के बावजूद, उन्होंने जिस धैर्य और रण-चातुर्य के साथ, एक शक्तिशाली साम्राज्य की केंद्रीय शक्ति का सामना करके, बराबरी के परिणाम प्राप्त किए, वह सब अभूतपूर्व है।

औरंगजेब की तोपो,धर्नुधरों, हाथियों से सुसज्जित तीन लाख की विशाल सेना और गोकुल सिंह की किसानों की 20000 हजार की सेना में भयंकर युद्ध छिड़ गया। 
चार दिन तक भयंकर युद्ध चलता रहा और गोकुल सिंह की छोटी सी अवैतनिक सेना अपने बेढंगे व घरेलू हथियारों के बल पर ही अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित और प्रशिक्षित मुगल सेना पर भारी पड़ रही थी। 

भारत के इतिहास में ऐसे युद्ध कम हुए हैं जहाँ कई प्रकार से बाधित और कमजोर पक्ष, इतने शांत निश्चय और अडिग धैर्य के साथ लड़ा हो । हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था। पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे, परन्तु वीरवर गोकुलसिंह का युद्ध तीसरे दिन भी चला ।

इस लड़ाई में सिर्फ पुरुषों ने ही नही बल्कि उनकी स्त्रियों ने भी पराक्रम दिखाया। 

चार दिन के युद्ध के बाद जब गोकुल की सेना युद्ध जीतती हुई प्रतीत हो रही थी तभी हसन अली खान के नेतृत्व में एक नई विशाल मुगलिया टुकड़ी आ गई और इस टुकड़ी के आते ही गोकुल की सेना हारने लगी। युद्ध में अपनी सेना को हारता देख हजारों नारियाँ जौहर की पवित्र अग्नि में खाक हो गई।

गोकुल सिंह और उनके ताऊ उदय सिंह को सात हजार साथियों सहित बंदी बनाकर आगरा में औरंगजेब के सामने पेश किया गया। औरंगजेब ने कहा "जान की खैर चाहते हो तो इस्लाम कबूल कर लो और रसूल के बताए रास्ते पर चलो। बोलो क्या इरादा है इस्लाम या मौत?

अधिसंख्य धर्म-परायण हिन्दुओं ने एक सुर में कहा - "औरंगजेब, अगर तेरे खुदा और रसूल मोहम्मद का रास्ता वही है जिस पर तू चल रहा है तो धिक्कार है तुझे,
हमें तेरे रास्ते पर नहीं चलना l"

इतना सुनते ही औरंगजेब के संकेत से गोकुल सिंह की बलशाली भुजा पर जल्लाद का बरछा चला।
गोकुल सिंह ने एक नजर अपने भुजाविहीन रक्तरंजित कंधे पर डाली और फिर बड़े ही घमण्ड के साथ जल्लाद की ओर देखा और कहा दूसरा वार करो। 
दूसरा बरछा चलते ही वहाँ खड़ी जनता आंर्तनाद कर उठी और फिर गोकुल सिंह के शरीर के एक-एक जोड़ काटे गए। गोकुल सिंह का सिर जब कटकर धरती माता की गोद में गिरा तो मथुरा में केशवराय जी का मंदिर भी भरभराकर गिर गया। यही हाल उदय सिंह और बाकि साथियों का भी किया गया। उनके छोटे- छोटे बच्चों को जबरन मुसलमान बना दिया गया ।

*1 जनवरी 1670 ईसवी का दिन था वह।*

ऐसे अप्रतिम वीर का कोई भी इतिहास नही पढ़ाया गया और न ही कहीं कोई सम्मान दिया गया। न ही उनके नाम पर न कोई विश्वविद्यालय है और न कोई केन्द्रीय या राजकीय परियोजना। 

*कितना एहसान फरामोश, कृतघ्न है हिंदू समाज!!*

कैसे वीर हुए इस धरा पर,जिन्होंने धर्म के लिए प्राण न्यौछावर कर दिये पर इस्लाम नही अपनाया।

गोकुलसिंह सिर्फ जाटों के लिए शहीद नहीं हुए थे न उनका राज्य ही किसी ने छीन लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुगल-सत्ता, दीनतापूर्वक, सन्धि करने की तमन्ना लेकर गिड़-गिड़ाई थी।

 शर्म आती है हमें कि हम ऐसे अप्रतिम वीर को कागज के ऊपर भी सम्मान नहीं दे सके।

शाही इतिहासकारों ने उनका उल्लेख तक नही किया। केवल जाट पुरूष ही नही बल्कि उनकी वीरांगनायें भी अपनी ऐतिहासिक दृढ़ता और पारंपरिक शौर्य के साथ उन सेनाओं का सामना करती रही।

 दुर्भाग्य की बात है कि भारत की इन वीरांगनाओं और सच्चे सपूतों का कोई उल्लेख शाही टुकड़ों पर पलने वाले तथाकथित इतिहासकारों ने नहीं किया। 

जागो भारतवासियों!!!

Saturday, December 31, 2016

क्या आप 1 जनवरी के नववर्ष का इतिहास जानते हो...???

क्या आप 1 जनवरी के नववर्ष का इतिहास जानते हो...???

नव वर्ष उत्सव 4000 वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था। लेकिन उस समय नए वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि (हिन्दुओं का नववर्ष ) भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी ये तिथि नव वर्षोत्सव के लिए चुनी गई थी लेकिन रोम के तानाशाह जूलियस सीजर को भारतीय नववर्ष मनाना पसन्द नही आ रहा था इसलिए उसने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष, यानि, ईसापूर्व 46 इस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था ।
Do You Know Real History of New Year Celebration

उसके बाद ईसाई समुदाय उनके देशों में 1 जनवरी से नववर्ष मनाने लगे ।

हमारे महान भारत में अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की 1757 में  स्थापना की । उसके बाद भारत को 190 साल तक गुलाम बनाकर रखा गया। इसमें वो लोग लगे हुए थे जो हमारे ऋषि मुनियों की प्राचीन संस्कृति को मिटाने में कार्यरत थे। लॉड मैकाले ने सबसे पहले भारत का इतिहास बदलने का प्रयास किया जिसमें गुरुकुलों में हमारी वैदिक शिक्षण पद्धति को बदला गया ।

हमारा प्राचीन इतिहास बदला गया जिसमें हम अपने मूल इतिहास को भूल गये  और हमें अंग्रेजों के गुलाम बनाने वाले इतिहास याद रह गया और आज कई भोले-भाले भारतवासी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष नही मनाकर 1 जनवरी को ही नववर्ष मनाने लगे ।

हद तो तब हो जाती है कि एक दूसरे को नववर्ष की बधाई देने लग जाते हैं ।

क्या ईसाई देशों में हिन्दुओं को हिन्दू नववर्ष की बधाई दी जाती है..???

किसी भी ईसाई देश में हिन्दू नववर्ष नहीं मनाया जाता है फिर हमारे भोले भारतवासी उनका नववर्ष क्यों मनाते हैं?

यह आने वाला नया वर्ष 2017 अंग्रेजों अर्थात ईसाई धर्म का नया साल है।

मुस्लिम का नया साल होता है और वो हिजरी कहलाता है इस समय 1437 हिजरी चल रही है।

हिन्दू धर्म का इस समय विक्रम संवत 2073 चल रहा है।

इससे सिद्ध हो गया कि हिन्दू धर्म ही सबसे पुराना धर्म है । 

इस विक्रम संवत से 5000 साल पहले इस धरती पर भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए । उनसे पहले भगवान राम, और अन्य अवतार हुए यानि कहाँ करोडों वर्ष पुराना हमारा सनातन धर्म और कहाँ हम 2000 साल पुराना नव वर्ष मना रहे हैं!

जरा सोचिए....!!!

सीधे-सीधे शब्दों में हिन्दू धर्म ही सब धर्मों की जननी है। 

यहाँ किसी धर्म का विरोध नहीं है परन्तु  सभी भारतवासियों को बताना चाहते हैं कि इस इंग्लिश कैलेंडर के बदलने से हिन्दू वर्ष नहीं बदलता!

 जब बच्चा पैदा होता है तो पंडित जी उसका नामकरण हिन्दू कैलेंडर से नहीं करते, हिन्दू पंचांग से किया जाता है । ग्रहदोष भी हिन्दू पंचाग से देखे जाते हैं और विवाह,जन्मकुंडली आदि का मिलान भी हिन्दू पंचाग से ही होता है । सारे व्रत त्यौहार हिन्दू पंचाग से आते हैं। मरने के बाद तेरहवाँ भी हिन्दू पंचाग से ही देखा जाता है।

मकान का उद्घाटन, जन्मपत्री, स्वास्थ्य रोग और अन्य सभी समस्याओं का निराकरण भी हिन्दू कैलेंडर {पंचाग} से ही होता है।

आप जानते हैं कि रामनवमी, जन्माष्टमी, होली, दीपावली, राखी, भाई दूज, करवा चौथ, एकादशी, शिवरात्री, नवरात्रि, दुर्गापूजा सभी विक्रमी संवत कैलेंडर से ही निर्धारित होते हैं  |
 इंग्लिश कैलेंडर में इनका कोई स्थान नहीं होता।

सोचिये! फिर आपके इस सनातन धर्म के जीवन में इंग्लिश नववर्ष या कैलेंडर का स्थान है कहाँ ? 

अतः हिन्दू अपने सनातन धर्म के नव वर्ष को ही मनायें ।


एक देशभक्त ने लिखा है कि..

अपने मन को समझाऊँ कैसे..?
आज मंगलगीत मैं गाऊँ कैसे..?
भगत सिंह को फाँसी पर चढ़ा दिया जिन्होंने,
मैं उनका नववर्ष मनाऊँ कैसे..?

एक कवि ने क्या खूब कहा है कि...

 हवा लगी पश्चिम की , सारे कुप्पा बनकर फूल गए ।
ईस्वी सन तो याद रहा , पर अपना संवत्सर भूल गए ।।
चारों तरफ नए साल का , ऐसा मचा है हो-हल्ला ।
बेगानी शादी में नाचे , जैसे कोई दीवाना अब्दुल्ला ।।
धरती ठिठुर रही सर्दी से , घना कुहासा छाया है ।
कैसा ये नववर्ष है , जिससे सूरज भी शरमाया है ।।
सूनी है पेड़ों की डालें , फूल नहीं हैं उपवन में ।
पर्वत ढके बर्फ से सारे , रंग कहां है जीवन में ।।
बाट जोह रही सारी प्रकृति , आतुरता से फागुन का ।
जैसे रस्ता देख रही हो , सजनी अपने साजन का ।।
लिए बहारें आँचल में , जब चैत्र प्रतिपदा आएगी ।
फूलों का श्रृंगार करके , धरती दुल्हन बन जाएगी ।।
मौसम बड़ा सुहाना होगा , दिल सबके खिल जाएँगे ।
झूमेंगी फसलें खेतों में , हम गीत खुशी के गाएँगे ।।
उठो खुद को पहचानो , यूँ कबतक सोते रहोगे तुम ।
चिन्ह गुलामी के कंधों पर , कबतक ढोते रहोगे तुम ।।
अपनी समृद्ध परंपराओं का , आओ मिलकर मान बढ़ाएंगे ।
आर्यवृत के वासी हैं हम , अब अपना नववर्ष मनाएंगे ।।