Saturday, September 5, 2020

राष्ट्र निर्माण के लिए शिक्षक की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है ये जानिए चाणक्य नीति से।

05 सितंबर 2020


हर वर्ष हम 5 सितंबर को शिक्षिक दिवस तो मना लेते हैं पर शिक्षक का हमारे जीवन और राष्ट्र के लिए कितना महत्व है ये नही जानते हैं। हर व्यक्ति के जीवन के निर्माण के लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अगर किसी की है तो वे शिक्षक की है, अगर शिक्षक सही शिक्षा विद्यार्थी को दे तो वो महानता को छू लेगा और राष्ट्र व संस्कृति के प्रति जागरूक रहेगा अगर उसको शिक्षक ने सही शिक्षा नही दी तो वो अपने जीवनकाल में हताश निराश रहेगा और कोई महत्वपूर्ण कार्य नही कर सकेगा और राष्ट्र व अपनी संस्कृति के विरुद्ध भी जा सकता है।




आइए चाणक्य नीति से जानते है क्या कहते थे वे शिक्षकों के लिए...

आचार्य चाणक्य ने बताया कि शिक्षक गौरव घोषित तब होगा जब ये राष्ट्र गौरवशाली होगा और ये राष्ट्र गौरवशाली तब होगा जब ये राष्ट्र अपने जीवन मूल्यों एवं परम्पराओं का निर्वाह करने में सफल एवं सक्षम होगा। और ये राष्ट्र सफल एवं सक्षम तब होगा, जब शिक्षक अपने उतरदायित्व का निर्वाह करने में सफल होगा। और शिक्षक सफल तब कहा जाएगा, जब वह राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करने में सफल हो। यदि व्यक्ति राष्ट्र भाव से शून्य है, राष्ट्र भाव से हिन है, अपनी राष्ट्रीयता के प्रति सजग नही है तो ये शिक्षक की असफलता है।

और हमारा अनुभव साक्षी है की राष्ट्रीय चरित्र के अभाव में हमने अपने राष्ट्र को अपमानित होते देखा है। हमारा अनुभव है की शस्त्र से पहले हम शास्त्र के अभाव से पराजित हुए है। हम शस्त्र और शास्त्र धारण करने वालो को राष्ट्रीयता का बोध नही करा पाए और व्यक्ति से पहले खंड खंड हमारी राष्ट्रीयता हुई। शिक्षक इस राष्ट्र की राष्ट्रीयता व सामर्थ्य को जाग्रत करने में असफल रहा। यदि शिक्षक पराजय स्वीकार कर ले तो पराजय का वो भाव राष्ट्र के लिए घातक होगा।

अत: वेद वंदना के साथ साथ राष्ट्र वन्दना का स्वर भी दिशाओं में गूंजना आवश्यक है। आवश्यक है व्यक्ति एवं व्यवस्था को ये आभास कराना की यदि व्यक्ति की राष्ट्र की उपासना में आस्था नहीं रही तो तो उपासना के अन्य मार्ग भी संघर्ष मुक्त नहीं रह पायेंगे। अत: व्यक्ति से व्यक्ति, व्यक्ति से समाज, व समाज से राष्ट्र का एकीकरण आवश्यक है।

अत: शीघ्र ही व्यक्ति समाज एवं राष्ट्र को एक सूत्र में बांधना होगा। और वह सूत्र राष्ट्रीयता ही हो सकती है। शिक्षक इस चुनोती को स्वीकार करे व शीघ्र ही राष्ट्र का नव निर्माण करने के लिए सिद्ध हो। संभव है की आपके मार्ग में बाधाएं आएँगी, पर शिक्षक को उन पर विजय पानी होगी। और आवश्यकता पड़े तो शिक्षक शस्त्र उठाने में भी पीछे ना हटे।

मैं स्वीकार करता हु की शिक्षक का सामर्थ्य शास्त्र है, और यदि मार्ग में शस्त्र बाधक हो और राष्ट्र मार्ग के कंटक सिर्फ शस्त्र की ही भाषा समझते हो तो शिक्षक उन्हें अपने सामर्थ्य का परिचय अवश्य दे। अन्यथा सामर्थ्यहीन शिक्षक अपने शास्त्रों की भी रक्षा नही कर पायेगा। संभव है की इस राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने के लिए शिक्षक को सत्ताओ से भी लड़ना पड़े पर स्मरण रहे की सत्ताओ से राष्ट्र महत्वपूर्ण है। राजनैतिक सत्ताओ के हितो से राष्ट्रीय हित महत्वपूर्ण है। अत: राष्ट्र की वेदी पर सत्ताओ की आहुति देनी पड़े तो भी शिक्षक संकोच न करे। इतिहास साक्षी है की सत्ता व स्वार्थ की राजनीति ने इस राष्ट्र का अहित किया है। हमे अब सिर्फ इस राष्ट्र का विचार करना है। यदि शासन सहयोग दे तो ठीक अन्यथा शिक्षक अपने पूर्वजो के पुण्य व कीर्ति का स्मरण कर अपने उतरदायित्व का निर्वाह करने में सिद्ध हो विजय निश्चित है। सप्त सिंधु की संस्कृति की विजय निश्चित है। विजय निश्चित है इस राष्ट्र के जीवन मूल्यों की। विजय निश्चित है इस राष्ट्र की, आवश्यकता मात्र आवाहन की है। - आचार्य चाणक्य

हमारी प्राचीन गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली के साथ आधुनिक शिक्षा-प्रणाली की तुलना करेंगे तो दोनों के बीच बहुत बड़ी खाई दिखाई पड़ेगी। गुरुकुल में प्रत्येक विद्यार्थी नैतिक शिक्षा प्राप्त करता था। प्राचीन संस्कृति का यह महत्त्वपूर्ण अंग था। प्रत्येक विद्यार्थी में विनम्रता, आत्मसंयम, आज्ञा-पालन, सेवा और त्याग-भावना, सद्व्यवहार, सज्जनता, शिष्टता तथा अंततः बल्कि अत्यंत प्रमुख रूप से आत्मज्ञान की जिज्ञासा रहती थी। आधुनिक प्रणाली में शिक्षा का नैतिक पक्ष सम्पूर्णतः भुला दिया गया है।

शिक्षकों का कर्तव्य-

विद्यार्थियों को सदाचार के मार्ग में प्रशिक्षित करने और उनका चरित्र सही ढंग से मोड़ने में स्कूल तथा कॉलेजों के शिक्षकों और प्रोफेसरों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आती है। उनको स्वयं पूर्ण सदाचारी और पवित्र होना चाहिए। उनमें पूर्णता होनी चाहिए। अन्यथा वैसा ही होगा जैसा एक अंधा दूसरे अंधे को रास्ता दिखाये। शिक्षक-वृत्ति अपनाने से पहले प्रत्येक शिक्षक को शिक्षा के प्रति अपनी स्थिति की पूरी जिम्मेदारी जान लेनी चाहिए। केवल शुष्क विषयों को लेकर व्याख्यान देने की कला सीखने से ही काम नहीं चलेगा। यही प्राध्यापक की पूरी योग्यता नहीं है।

संसार का भावी भाग्य पूर्णतया शिक्षकों और विद्यार्थियों पर निर्भर है । यदि शिक्षक अपने विद्यार्थियों को ठीक ढंग से सही दिशा में, धार्मिक वृत्ति में शिक्षा दें तो संसार में अच्छे नागरिक, योगी और जीवन्मुक्त भर जायेंगे, जो सर्वत्र प्रकाश, शांति, सुख और आनंद बिखेर देंगे।

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Friday, September 4, 2020

ये कौनसा कानून है? नेता को बेल और संतों को जेल?

04 सितंबर 2020


तथाकथित बुद्धिजीवियों के एक बहुत बड़े वर्ग से सुनने को मिलता है कि "कानून अपना काम कर रहा है", "कानून सबके लिए समान है" , लेकिन वास्तव में क्या कानून सबके लिए एक है कि नहीं या क़ानून के रखवालें केवल समान बोलतें ही हैं कि उसका पालन भी करते हैं या नहीं, यह आपको जानना चाहिए।




आपको बता दें कि अखिलेश यादव सरकार में मंत्री रहे सामूहिक दुष्कर्म के मामले में जेल में बंद गायत्री प्रसाद प्रजापति को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने जमानत दे दी है। लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज में भर्ती गायत्री प्रसाद प्रजापति ने कोरोना वायरस संक्रमण का हवाला देकर जमानत की याचिका दायर की थी। गायत्री प्रसाद प्रजापति 15 मार्च, 2017 से जेल में है। गायत्री प्रसाद प्रजापति के खिलाफ लखनऊ के गौतमपल्ली पुलिस स्टेशन में नाबालिग के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला दर्ज है और उन पर पॉक्सो एक्ट भी है और कोर्ट ने इसी केस में प्रजापति को दो महीने की अंतरिम जमानत की मंजूरी दी है।

आपको यह भी बता दें कि जोधपुर जेल में 7 साल से बंद 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू को आज तक एक दिन भी जमानत नही दी गई जबकि उनकी धर्मपत्नी को हार्ट अटैक भी आया था उनके परिवार में 1-2 लोगों की मृत्यु भी हुई और उनकी उम्र भी ज्यादा है उनका स्वास्थ्य भी कई बार खराब हुआ है और कोरोना का खतरा सबसे ज्यादा अधिक उम्र वालों को होता है और जोधपुर जेल में कई कैदी कोरोना पोजेटिव भी पाए गए फिर भी उनकी सुनवाई नही हो रही हैं और सपा नेता को तुरंत जमानत दे दी इसके कारण आम जनता का भी कानून से भरोसा उठ रहा है।

जाकिर नाईक एवं मौलाना साद फरार और न्यायालय चुप रहता है पर हिंदू संतों को आधी रात में गिरफ्तार करने का आदेश देता है। इमाम बुखारी पर कई गैर जमानती वारंट हैं पर उसको गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं है।

बता दें कि जब किसी नेता, अभिनेता, जज या पत्रकार अथवा मुस्लिम और इसाई धर्मगुरु आदि पर आरोप लगते हैं तब सभी बुद्धजीवी बोलतें हैं कि जांच चल रही है, कानून अपना काम कर रहा है, कानून सबके लिए समान है आदि-आदि, लेकिन जैसे ही किसी हिंदुनिष्ठ या हिंदू साधु-संत पर झुठे आरोप लगते हैं तो सभी बोलने लग जाते हैं कि आरोपी पर इतने गंभीर आरोप लगे हैं, फिर भी गिरफ्तारी नहीं हो रही है, ये शर्मनाक बात है आदि-आदि, कुछ इस तरह के नारे लगते हैं और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया जाता है और सालों तक जमानत भी नहीं दी जाती है।

जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी पर हत्या का आरोप लगा और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया गया फिर वे बाद में निर्दोष बरी हुए।

वैसे साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, स्वामी असीमानंद, स्वामी नित्यानंद, डीजी वंजारा जी आदि को भी सालों तक जेल में प्रताड़ित किया गया और आखिर में निर्दोष बरी हुए।

अभी वर्तमान में हिंदू संत आसाराम बापू का केस तो आप देख ही रहे हैं, उनके पास षडयंत्र के तहत फ़साने और निर्दोष होने के प्रमाण भी हैं फिर भी उनको जमानत नही दी जा रही है।

दूसरी ओर सलमान खान को सजा होने के बाद भी 1 घण्टे में ही जमानत मिल जाती है, संजय दत्त को बार-बार पेरोल मिल जाती है, लालू को सजा होने के बाद बेटे की शादी में जाने के लिए जमानत मिल जाती है, पत्रकार तरुण तेजपाल पर आरोप सिद्ध होने के बाद भी जमानत मिल जाती है, बिशप फ्रैंको को 21 दिन में जमानत मिल जाती है, इससे साफ सिद्ध होता है कि कानून केवल समान बोला जा रहा है पर कानून व्यवस्था देखने वाले समानता का व्यवहार नहीं कर रहे हैं।

कानून के हाथ भले ही लम्बे हों परन्तु लगता है कि नीति बहुत ही पक्षपाती है। देश में कई ऐसे कैदी हैं जिनके पास वकील रखने व जमानत लेने के पैसे नहीं हैं इसलिए जेल में सड़ रहे हैं, वे बाहर नहीं आ पा रहे हैं। किसी साधु-संत अथवा आम आदमी पर आरोप लगते ही गिरफ्तार कर लिया जाता है पर बड़े नेता-अभिनेता, अमीर आदि को गिरफ्तारी से पहले ही जमानत हासिल हो जाती है।

इन सब बातों से साफ पता चलता है कि कानून समान बोला जा रहा है पर उसका पालन नहीं हो रहा है इससे हिंदुनिष्ठ और आम जनता को न्याय नहीं मिल पा रहा है, यह जनता के लिए दुःखद बात है इस पर सरकार और न्यायालय को ठोस कदम उठाना चाहिए नहीं निर्दोष पीड़ित होते ही रहेंगे।

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Thursday, September 3, 2020

हॉस्पिटल में चल रही है लूट, जानिए इन खबरों को और हो जाइए सावधान...

03 सितंबर 2020


कोई भी व्यक्ति बीमार होता है तो उसको सबसे पहले डॉक्टर याद आते हैं और डॉक्टर पर भरोसा करता है की वे मुझे ठीक कर देंगे लेकिन कुछ डॉक्टर और कुछ हॉस्पिटल ने लूट पाट के धंधे शुरु कर दिए हैं। वे ठीक तो नही करते हैं लेकिन मौत के घाट भी उतार देते हैं ऊपर से बड़े-बड़े बिल बनाकर थमा देते हैं इसके कारण आज लोगों को हॉस्पिटल से भरोसा उठ रहा है।




डिलीवरी फीस चुकाने के लिए नहीं रुपये, बच्चे को ही बेच दिया।

धरती पर डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है, लेकिन वो भगवान किसी माँ से उसके नवजात बच्चे को छीनकर बेच सकता है। ऐसा सुनने में थोड़ा सा अजीब लगता है। लेकिन ऐसा ही एक वाकया उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में सामने आय़ा है। जहां डिलीवरी के बाद एक दंपति ने करीब 35 हजार रुपए की फीस देने में अपनी असमर्थता जताई। आरोप है की अस्पताल वालों ने उससे जबरदस्ती बच्चा छीन लिया और एक कागज पर अंगूठा लगवा लिया।

दंपती का यह पांचवां बच्चा है और वे उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में शंभू नगर इलाके में किराए के कमरे में अपने पति शिवचरण के साथ रहती हैं। बता दें कि शिवचरण रिक्शा चालक है। रिक्शा चलाकर वो दिन के 200 से तीन सौ रुपए कमाता है। उनका सबसे बड़ा बेटा 18 साल का है। वह एक जूता कंपनी में मजदूरी करता है। कोरोना लॉकडाउन में उसकी फैक्ट्री बंद हो गई तो वह बेरोजगार हो गया।

हिन्दुस्तान की खबर के मुताबिक, 24 अगस्त एक आशा वर्कर उनके घर आई और बबिता को वह फ्री में डिलीवरी करवा देगी। शिवचरण ने कहा कि उन लोगों का नाम आयुष्मान भारत योजना में नहीं था, लेकिन आशा ने कहा कि फ्री इलाज करवा देगी। जब बबिता अस्पताल पहुंची तो अस्पताल वालों ने कहा कि सर्जरी करनी पड़ेगी। 24 अगस्त की शाम 6 बजकर 45 मिनट पर उसने एक लड़के को जन्म दिया। अस्पताल वालों ने उन लोगों को करीब 35 हजार रुपए का बिल थमाया।

डीएम ने कहा, कराएंगे जांच

शिवचरण ने कहा, 'मेरी पत्नी और मैं पढ़ लिख नहीं सकते हैं। हम लोगों का अस्पताल वालों ने कुछ कागजों में अंगूठा लगवा लिया। हम लोगों को डिस्चार्ज पेपर नहीं दिए गए। उन्होंने बच्चे को एक लाख रुपए में खरीद लिया।' वहीं, जब ये मामला आगरा जिले के डीएम प्रभूनाथ सिंह के संज्ञान में आया। तो उन्होंने कहा, 'यह मामला गंभीर है। इसकी जांच की जाएगी और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।'

'लिखित समझौते का कोई मोल नहीं।'

उधर, बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने कहा कि अस्पताल के स्पष्टीकरण से उनका अपराध नहीं कम होता। हर बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण ने निर्धारित की है। उसी प्रक्रिया के तहत ही बच्चे को गोद दिया और लिया जाना चाहिए। अस्पताल प्रशासन के पास जो लिखित समझौता है, उसका कोई मूल्य नहीं है। उन्होंने अपराध किया है।'


ऐसे ही एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है उसमें एक महिला बता रही है, मेरे पिताजी को कोरोना पोजेटिव बताया गया और अस्पताल में भर्ती कर दिया 15 दिन के बाद बताया कि उनकी मौत हो गई है, वीडियो कॉल करवाने के लिए बताया था पर वो भी नही करवाया था और 14 लाख रुपये का बिल बना दिया, और 11 लाख रुपये देने पर भी उनकी डेड बॉडी नही दे रहे हैं।

मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल ने कोरोना के इलाज के लिए दाखिल एक शख्स को 18 लाख 80 हजार रुपए का बिल दिया है। इससे पहले  ऑटो रिक्शा ड्राइवर और मजदूर को  9-9 लाख से ज्यादा का बिल दिया गया जबकि एक व्यापारी को कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए 15 लाख रुपए का बिल थमा दिया गया।


हादसों में घायल और खाने-पीने वाली वस्तुओं के मिलावट की वजह से लोग डॉक्टरों के पास जाते हैं। उनके पास और कोई चारा भी नहीं होता। अस्पताल का ही सहारा होता है। चाहे कोई गरीब हो या अमीर प्रत्येक घायल व बीमार के लिए डॉक्टर एक भगवान की तरफ से भेजा गया फरिश्ता ही होता है, जो कि मरीज को तंदुरुस्त करता है। मगर, आजकल इलाज को भी बहुत बड़ा व्यापार बना दिया है। हर बड़े व छोटे अस्पतालों में इतनी भीड़ होती है कि उन्हें देख ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे सारा शहर ही बीमार हो अस्पताल में आ गया हो। अगर बात की जाए सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों की तो ज्यादातर अस्पतालों में इलाज के नाम पर इतनी अंधी लूट मची हुई है कि एक मरीज की वजह से पहले से ही परेशान उसके परिजन अस्पतालों के बड़े-बड़े बिलों का भुगतान कर जहां बेहद परेशान हो रहे है, वहीं वो आर्थिक तौर पर भी खोखले हो रहे हैं।

प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर की चेकअप पर्ची फीस भी 200 से ले 1000 तक हो चुकी है। चेकअप के बाद टेस्टों का दौर शुरू हो जाता है, जो कि ज्यादातर हजारों रुपये में होता है। फिर डॉक्टरों की तरफ से वहीं दवाई मरीज को लिख कर दी जाती है जो सिर्फ उन्हीं के अस्पताल में मौजूद होती है। मजबूरी में मरीजों को बड़े बड़े बिल दे वहां ठहरना पड़ता है।

इस लूट को बंद करवाने के लिए सबसे पहले हमें निरोग रहना होगा इसके लिए नियमित रूप से आसान-प्राणायाम करने होंगे उसके बाद आर्युवेद पर आना होगा और फास्टफूड बंद करके ताजा भोजन करना होगा और देशी गाय के दूध दही, मूत्र, गोबर आदि का उपयोग करके स्वस्थ रहना होगा नही तो ये लोग लूटते ही रहेंगे और सरकार को भी इनपर नियंत्रण लाना होगा और जो डॉक्टर की पढ़ाई में लाखों रुपये फीस हो रही है वे भी कम करना होगा इससे ईमानदार डॉक्टर होंगे तो भी लूटपाट बंद होगी।

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Wednesday, September 2, 2020

पादरी ने बच्ची का ब्लैकमेल करके बनाया न्यूड फोटो, ईसाई धर्म अपनाने को डाला दबाव।

02 सितंबर 2020


कन्नूर (कैरल) के कैथोलिक चर्च की एक नन सिस्टर मैरी चांडी ने पादरियों और ननों का चर्च और उनके शिक्षण संस्थानों में व्याप्त व्यभिचार का जिक्र अपनी आत्मकथा ‘ननमा निरंजवले स्वस्ति’ में किया है कि ‘चर्च के भीतर की जिन्दगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी । एक पादरी ने मेरे साथ बलात्कार की कोशिश की थी । मैंने उस पर स्टूल चलाकर इज्जत बचायी थी । ’ यहाँ गर्भ में ही बच्चों को मार देने की प्रवृत्ति होती है ।




दुनिया भर में हजारों ईसाई पादरी छोटे बच्चें-बच्चियों और महिलाओं का यौन शोषण कर रहे हैं। इस पर उनके मुख्य पोप ने माफी भी मांगी है पर सबसे बड़ी बात तो यह है कि इतना होने पर भी मीडिया उन दुष्कर्मी पादरियों के बारे में बोलने में पहरेज करता है। कुछ मीडिया को तो सिर्फ हिंदू धर्म से ही नफरत है इसलिए वे सिर्फ पवित्र हिंदू धर्मगुरुओं को ही बदनाम करती है।

आपको बता दें कि गुजरात के अहमदाबाद के अमराईवाडी इलाके में एक पादरी के खिलाफ एक नाबालिग से छेड़छाड़ करने और उसका न्यूड वीडियो बनाने के आरोप में शिकायत दर्ज की गई है। ऑप इंडिया के मुताबिक उसने राबड़ी कॉलोनी में रहने वाली नाबालिग लड़की को प्यार का झूठा झाँसा देकर फँसा लिया। इसके बाद उसने वीडियो कॉल के माध्यम से उसका न्यूड वीडियो बना लिया और फिर बाद में उसे ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए मजबूर करने की कोशिश की।

रिपोर्ट के मुताबिक, पादरी ने नाबालिग लड़की के चाचा को यह वीडियो भेजा। जब लड़की के माता-पिता को इसका पता चला, तो उन्होंने पुलिस स्टेशन पहुँचकर पादरी गुलाबचंद के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।

रिपोर्ट में बताया गया है कि पादरी 11 वीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़की को धमकाता था। नाबालिग लड़की 25 दिसंबर, 2019 को क्रिसमस के मौके पर अपने पड़ोसी के साथ अपने घर के पास वाले एक चर्च में गई थी। पादरी ने लड़की से बात की और उसे अपने माता-पिता को चर्च में लाने के लिए कहा।

हालाँकि, उसने अपने माता-पिता से इस बारे में कोई बात नहीं की। कुछ दिनों बाद, पादरी के भतीजे ने लड़की के माता-पिता को फोन किया और उन्हें चर्च बुलाया। लगभग एक महीने बाद, लड़की अपने माता-पिता के साथ फिर से चर्च गई। इसके बाद पादरी गुलाबचंद और उनके भतीजे ने नाबालिग के घर पर भी ‘प्रार्थना’ सभा का आयोजन किया।

पादरी नाबालिग को उसके पिता के फोन पर कॉल करता था। कथित तौर पर उसने नाबालिग लड़की को ‘चुंबन’ वाली तस्वीर भेजी थी और ‘आई लव यू’ भी बोला था। उसने उसके साथ प्यार में पड़ने का नाटक किया और उसका पीछा भी किया। जब भी वह अकेली होती, वह उसे वीडियो कॉल पर कपड़े उतारने के लिए कहता। मना करने पर वह उसे धमकी देता था कि अगर वह उसकी बात नहीं मानेगी तो वो उसे बदनाम कर देगा।

पादरी ने लगभग एक हफ्ते पहले लड़की का वीडियो उसके चाचा को भेजा था। तब जाकर उसके पिता को सारी बात पता चली। इसके 2-3 दिन बाद भी उसने कथित तौर पर फिर से उसकी न्यूड तस्वीरें भेजी थी। मामले में फिलहाल पुलिस ने शिकायत दर्ज कर ली है और जाँच की जा रही है।

यहाँ तो केवल एक ही घटना आपको बताई बाकी हजारों ईसाई पादरी हैं जिन्होंने कई छोटे बच्चों के साथ और कई ननों के साथ रेप किया है पर मीडिया इस पर मौन रहती है। वामपंथी मीडिया को तो सिर्फ हिंदू धर्म से ही नफरत है इसलिए वे सिर्फ पवित्र हिंदू धर्मगुरुओं को ही बदनाम करती है क्योंकि हिंदू साधु-संत हिंदू संस्कृति के प्रति लोगों को जगरूक करते हैं, धर्मान्तरण पर रोक लगवाते हैं, समाज को व्यसनमुक्त, सदाचारी बनाते हैं जिसके कारण राष्ट्र एवं संस्कृति विरोधी ताकतें कुछ मीडिया को फंडिंग करते हैं जिससे पादरियों के दुष्कर्म छुपाते हैं और हिंदू धर्मगुरुओं को बदनाम करते हैं।

दूसरी तरफ न्यायालय भी उनको तुरंत राहत दे देता है। बिशप फ्रैंको को 21 दिन में ही जमानत हासिल हो गई थी जबकि 85 वर्षीय हिंदू संत आसाराम बापू के खिलाफ 5 साल तक न्यायालय में सुनवाई होती रही पर 1 दिन भी जमानत नहीं दी गई। आज 7 साल हुए लेकिन अभी तक जमानत हासिल नही हुई।

मीडिया द्वारा हिंदू साधु-संतों को बदनाम करना और न्यायलय द्वारा जमानत नहीं देना और ईसाई पादरी और मौलवी के दुष्कर्म को छुपाना और न्यायालय से तुरंत जमानत हासिल होना, यह भारतीय संस्कृति को खत्म करने का यह एक भयंकर साजिश ही है, हिंदुस्तानी इससे समझे और सावधान रहें।

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Tuesday, September 1, 2020

अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए विदेशों से लोग आते हैं भारत...

01 सितंबर 2020


भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता है कि जीते-जी तो विभिन्न संस्कारों के द्वारा, धर्मपालन के द्वारा मानव को समुन्नत करने के उपाय बताती ही है लेकिन मरने के बाद भी, अंत्येष्टि संस्कार के बाद भी जीव की सदगति के लिए किये जाने योग्य संस्कारों का वर्णन करती है।




‘श्राद्ध’ पितृऋण चुकाने के लिए अत्यंत आवश्यक माना जाता है। श्राद्धविधि में किए जानेवाले मंत्रोच्चारण में पितरों को गति देने की सूक्ष्म शक्ति समाई हुई होती है। श्राद्ध में पितरों को तर्पण करने से वे संतुष्ट होते हैं। श्राद्धविधि करने से पितरों को मुक्ति मिलती है और हमारा जीवन भी सुसह्य हो जाता है।

अपने पुर्वजों के लिए हिन्दू धर्म में किया जानेवाला ये संस्कार विदेशी लोगों को भी ज्ञात है और शायद यही कारण है कि, कई विदेशी लोग अपने पुर्वजों को मुक्ति दिलाने की यह विधि करने के लिए भारत आते हैं एवं पूरी श्रद्धा से यह विधि करते हैं । पिछले साल यह विधि करने के लिए रूस की नताशा सप्रबनोभआ, सरगे और एकत्रिना ने धर्मनगरी गया आकर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था।

गया में पिंडदान किया रुसी नागरिकों ने

इन लोगों ने ऐतिहासिक विष्णुपद मंदिर, फल्गु के देवघाट, प्रेतशिला और रामशिला वेदी पर पिंडदान किया और पूर्वजों के लिए स्वर्गलोक की कामना की। इन लोगों ने विष्णुपद मंदिर में पूजा अर्चना की। मीडिया से बात करते हुए इन लोगों ने कहा कि, सनातन धर्म के बारे में पढ़ा था जिसमें पिंडदान को काफी महत्वपूर्ण माना गया है और इस परंपरा को भारतीय वेशभूषा में संपन्न करने के बाद उनकी आकांक्षा आज पूरी हो गयी है !

आपको बता दें कि वर्ष 2017 में मोक्ष स्थली गया में पितरों की मुक्ति के महापर्व पितृपक्ष मेला के दौरान देवघाट पर अमेरिका, रूस, जर्मनी और स्पेन के 20 विदेशी नागरिकों ने अपने पितरों की मुक्ति की कामना को लेकर पिंडदान व तर्पण किया था। इनमें से एक जर्मनी की इवगेनिया ने कहा था कि, भारत धर्म और अध्यात्म की धरती है। गया आकर मुझे आंतरिक शांति की अनुभूति हो रही है। मैं यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आई हूं।

इन विदेशियों को हिन्दू धर्म के अनुसार आचरण करते देख, हिन्दू धर्म की महानता हमारें ध्यान में आती है। माता-पिता तथा अन्य निकट संबंधियों की मृत्युपरांत की यात्रा सुखमय एवं क्लेशरहित हो तथा उन्हें सद्गति मिले, इस हेतु किया जानेवाला संस्कार है ‘श्राद्ध’। श्राद्धविधि करने से पितरों की कष्ट से मुक्ति हो जाती है और हमारा जीवन भी सुसह्य हो जाता है। परंतु दुर्भाग्यवश आज हिंदुओं को धर्म मे बताई गई ऐसी विधी करना पिछडापन लगता है। उनके मॉडर्न जीवनशैली को श्राद्ध करने जैसी कृति अंधश्रद्धा लगती है।

हिन्दू समाज की यह दु:स्थिती धर्मशिक्षा का महत्त्व दर्शाती है। आज हिंदुओं को धर्मशिक्षा न मिलने के कारण ही उनका इस प्रकार अध:पतन हो रहा है। आज ऐसी स्थिति है कि, विदेशों से आकर श्रद्धालु हिन्दू धर्म तथा अध्यात्म के बारे में जानकारी प्राप्त कर हिन्दू धर्म के अनुसार आचरण करने लगें हैं। वही हिन्दू धर्म के उदगमस्थान तथा पुण्यभूमी भारतवर्ष के कई हिंदुओं को ही आज धर्माचरण करना पिछड़ेपन जैसे लगता है।

मृत्यु के बाद जीवात्मा को उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ कर्मानुसार स्वर्ग नरक में स्थान मिलता है। पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुनः मृत्युलोक (पृथ्वी) में आता है। स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना यह देवयान मार्ग है।

पितृयान मार्ग से जाने वाले जीव पितृलोक से होकर चन्द्रलोक में जाते हैं। चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं। यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है। अतः कृष्ण पक्ष में वंशजों को उनके लिए आहार पहुँचाना चाहिए, इसीलिए श्राद्ध एवं पिण्डदान की व्यवस्था की गयी है। शास्त्रों में आता है कि अमावस के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना चाहिए।

आपको बता दें कि भगवान श्रीरामचन्द्रजी भी श्राद्ध करते थे। जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान एवं धर्म के संस्कारों का सिंचन किया उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध से प्रसन्न करने के दिन ही हैं श्राद्धपक्ष। इस दिनों में पितृऋण से मुक्त होने के लिए हमे श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

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Monday, August 31, 2020

साल 2013 को 31 अगस्त की आधी रात को आशारामजी बापू को कैसे किया था गिरफ्तार ?

31 अगस्त 2020


आज से 7 साल पहले 31 अगस्त 2013 में ठीक रात 12 बजे 80 वर्षीय हिन्दू संत आसारामजी बापू की गिरफ्तारी हुई थी, मीडिया ने आज तक जितना उनके खिलाफ मीडिया ट्रायल चलाया होगा शायद किसी के खिलाफ नहीं चलाया होगा क्योंकि आशाराम बापू ने जिन आदिवासियों को ईसाई बना दिया गया था, उन लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवा दी थी, करोड़ों लोगों को सनातन धर्म के प्रति कट्टर बना दिया था, सैंकड़ों गुरुकुल और 17000 से अधिक बाल संस्कार केंद्र खोलकर बच्चों को भारतीय संस्कृति के अनुसार जीवन जीने के लिए प्रेरित किया, कत्लखाने जाती हजारों गायों को बचाकर अनेकों गौशालाएं खोल दी, वेलेंटाइन डे के दिन करोडों लोगो द्वारा मातृ-पितृ पूजन शुरू करवा दिया।  विदेशों में भी उनके लाखों अनुयायी बन चुके थे और वे भारतीय संस्कृति की वहाँ प्रचार करने लगे थे, करोड़ो लोगों को व्यभिचारी से सदाचारी बना दिया उसके बाद उन करोडों लोगो ने व्यसन छोड़ दिये, सिनेमा में जाना छोड़ दिया, क्लबों में जाना छोड़ दिया, ब्रह्मचर्य का पालन करने लगे, स्वदेशी अपनाने लगे इसके कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अरबो-खरबों रुपये का घाटा हुआ और ईसाई मिशनरियों के धर्मान्तरण की दुकानें बंद होने लगीं, फिर ये पूरा सुनियोजित ढंग से षड्यंत्र रचा गया।




बताया जाता है कि अरबों-खरबों का कंपनियों को घाटा होना और धर्मान्तरण की दुकानें बंद होने के कारण ये हिन्दू धर्म व राष्ट्र विरोधी ताकतों ने उनके खिलाफ षड्यंत्र रचा गया। डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने बताया है कि मैंने आशाराम बापू को पहले ही बता दिया था कि आप जो धर्मान्तरण रोकने का कार्य कर रहे हैं उसके कारण वेटिकन सिटी बहुत नाराज है और वे सोनिया गांधी को बोलकर आपको जेल भेजने की तैयारी कर रहा है, पर आशारामजी बापू ने कहा कि "देश व धर्म की रक्षा के लिए सूली पर चढ़ जाऊंगा लेकिन धर्म की हानि नहीं होने दूंगा।"

आपको बता दें कि उनके खिलाफ षडयंत्र तो 2004 से शुरू हो गया था और 2008 में जोर पकड़ा उसमें उनके गुरुकुल के दो बच्चों की संदिग्ध रीति से मौत हो गई और उनके खिलाफ तांत्रिक विद्या बताकर मीडिया ने उनका इतना कुप्रचार किया कि आम जनता में भी रोष व्याप्त होने लगा बाद में सुप्रीम कोर्ट ने और उसके बाद में सरकार ने क्लीनचिट दी तब मीडिया ने कुछ नहीं दिखाया। 2008 में उनको जेल भेजने की तैयारी थी लेकिन उनके मंसूबे पूरे नहीं हुए लेकिन विदेशी फंड से चलने वाली मीडिया ने उनके वैदिक होली का कुप्रचार करने लगी अर्थात उनके हर हिन्दू धर्म के अनुसार कार्य की आलोचना करने लगी, उनको बदनाम करना जारी रखा।।

साल 2013 में उनके खिलाफ एक FIR दर्ज हुई लेकिन आपको बता दें कि आरोप लगाने वाली लड़की रहने वाली थी शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) की 
थी, पढ़ती थी छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) में, घटना जोधपुर (राजस्थान) की बात रही है और FIR करवाती है तथाकथित घटना के 5 दिन बाद दिल्ली में वो भी रात को 02:30 बजे, दिलचस्पी की बात तो ये है कि FIR में उस लड़की ने लिखवाया है कि मैं कमरे के अंदर थी और मेरे पर आशाराम बापू ने डेढ़ घण्टे तक हाथ घुमाया और मेरी माँ कमरे के बाहर गेट पर बैठी थी तो क्या लड़की चिल्ला नहीं सकती थी ? चिल्लाती तो तुरन्त ही उसकी मां को पता चल जाता। दूसरी बात की वो घटना रात को 10:30 के आसपास की बता रही थी जबकि वो जिसके घर में रुकी थी वे लोग बता रहे थे कि 10:30 बजे तो हमारे घर में थी और हमने दरवाजा को लॉक कर दिया था और कॉल डिटेल के अनुसार तथाकथित घटना के समय लड़की अपने एक मित्र से बात कर रही थी और जिनके घर पर रुकी थी उन्होंने भी बताया कि सुबह हमारे साथ लड़की हंस खेल रही थी हम उनको स्टेशन पर भी छोड़कर आये फिर उनको अचानक क्या हुआ कि FIR कर दिया। FIR करने के बाद आरोप लगाने वाली लड़की को उसकी सहेली ने पूछा कि ऐसे झूठे आरोप क्यो लगा रही है ?? तो उसने जवाब दिया कि मेरे को मेरे माता-पिता जैसे बोल रहे हैं वैसा कर रही हूं। और जो लड़की तथाकथित घटना बता रही है तो उस समय तो आशाराम बापू किसी कार्यक्रम में थे उनके साथ 50-60 लोग भी थे उन्होंने कोर्ट में गवाही भी दिया है।

आपको बता दें कि जब लड़की का मेडिकल करवाया तो उसमें एक खरोंच का निशान तक भी नहीं आया अर्थात लड़की के साथ कुछ हुआ ही नहीं और FIR में भी लिखा है कि रेप हुआ ही नहीं सिर्फ हाथ घुमाया। मेडिकल में वो भी बात खारिज हो गई लेकिन मीडिया ने दुष्प्रचार किया कि लड़की के साथ रेप हुआ है, जबकि खुद जांच ऑफिसर अजय पाल लाम्बा ने बताया कि रेप का आरोप है ही नहीं, छेड़छाड़ का आरोप है फिर भी विदेशी फंडेड मीडिया उनको बदनामी करती रही।

आपको ये भी बता दें कि वरिष्ठ अधिवक्ता सज्जन राज सुराणा ने न्यायालय में साजिश का खुलासा करते हुए आगे बताया कि Prosecution Witness PW-06 मणाई फार्म हाउस के मालिक रामकिशोर ने ये कहीं नहीं कहा कि 15/08/2013 को लड़की या उसके माता-पिता रात्रि को 10 बजे कुटिया या कुटिया के आस-पास गए तो फिर जो रेप कमिट हुआ क्या वो हवा में रेप कमिट हुआ ? इन्होंने उसके existence को ही नकार दिया । 

अब question ये पैदा होता है कि ये लड़की आखिर आरोप क्यों लगा रही है ? इसके लिए हमने जिज्ञासा भावसर का स्टेटमेंट रीड किया । इसमें अमृत प्रजापति, कर्मवीर, राहुल सचान, महेंद्र चावला आदि जो बहुत से गवाह थे उन्होंने मिलकर conspiracy (षड़यंत्र) की । उनके अहमदाबाद स्थित आश्रम को एक फैक्स भेजा था जिसमें अमृत प्रजापति व उनके साथियों के द्वारा ये कहा गया था कि 50 करोड़ रुपये दो वरना परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाओ । हम झूठी लड़कियां तैयार करेंगे, प्लांट करेंगे जिसके कारण बापूजी जिंदगी भर तक जेल में रहेंगे, कभी बाहर नहीं आ सकेंगे ।

इस बात के लिए conspiracy वडोदरा (गुजरात) में की गई थी। जिसमें दीपक चौरसिया (इंडिया न्यूज़) भी शामिल था जो मीडिया के ऊपर प्रचार प्रसार कर रहा था, कर्मवीर (परिवादिया का पिता) भी शामिल था । सबने मिलकर जो conspiracy की थी वो जिज्ञासा भावसार के सामने की थी। इन सबका जो एक motive था, वो 50 करोड़ की ब्लैकमेलिंग का था । 50 करोड़ नहीं देने के कारण से मणाई गाँव का पूरा घटनाक्रम बनाया गया है ।

इस तरीके से सुनियोजित षड्यंत्र रचा गया और उनको 80 उम्र में आधी रात को गिरफ्तार कर लिया और कोर्ट में चल रहे ट्रायल जिस समय अपराध सिद्ध नहीं हुआ ऐसे 5 साल तक केस चला लेकिन उनको जमानत नही दी गई जबकि उनके केस की पैरवी दिग्गज नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी पैरवी कर चुके हैं और उनको लड़की के बयान को सही मानते हुए POCSO एक्ट लगाकर सेशन कोर्ट ने उम्रकैद सजा सुना दी जबकि लड़की बालिग थी उसके अलग अलग बर्थ सर्टिफिकेट से साबित भी हुआ था और उनके पास निर्दोष होने के अनेक प्रमाण हैं फिर भी सजा सुना दी। आपको बता दें कि निचली अदालत के कई फैसले हाईकोर्ट ओर सुप्रीम कोर्ट बदल देती है क्योंकि कई बार जल्दबादी में गलत निर्णय ले लिया जाता है खेर जब वे ऊपरी कोर्ट में जायेंगे निर्दोष बरी होंगे लेकिन उनका देश व धर्म के लिए कार्य करने का इतना कीमती समय कौन लौटा पायेगा?

 जो न्यायालय सलमान खान को निचली अदालत से सजा होने के बाद भी ऊपरी कोर्ट तुरंत जमानत दे देती है और आतंकवादीयों के हथियार रखने वाले संजय दत्त को बार बार पेरोल देती रही वो ही न्यायालय हिंदू संत आसाराम बापू को 7 साल में एक दिन भी जमानत अथवा पेरोल नही दे पाई।

जो कानून पूरे भारत में कोरोना फैलाने वाले मौलाना साद को और दिल्ली के इमाम बुखारी पर सैंकड़ों गैर जमानती वारंट होने के बाद भी आजतक गिरफ्तार नहीं कर पाई वही कानून हिंदू संत आशाराम बापू को 7 साल से जेल में रखे है और मीडिया भी सिर्फ हिंदू धर्म के साधु-संतों के खिलाफ झूठी कहानियां बनाकर बदनाम करती है वही मीडिया इन सबपर चुप है और सेक्युलर हिंदू तो वामपंथी मीडिया की बात को मानकर अपने ही धर्मगुरुओं के खिलाफ बोलना चालू कर देते हैं।

इसलिए हिंदू अब समझ जाओ की सनातन धर्म की रक्षा करने वालों को कैसे फंसाया जाता है।


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Sunday, August 30, 2020

श्राद्ध करना चाहिए? श्राद्ध करने से क्या फायदें और नहीं करने से क्या हानि होगी ?

30 अगस्त 2020


भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता है कि जीते-जी तो विभिन्न संस्कारों के द्वारा, धर्मपालन के द्वारा मानव को समुन्नत करने के उपाय बताती ही है, लेकिन मरने के बाद, अंत्येष्टि संस्कार के बाद भी जीव की सदगति के लिए किए जाने योग्य संस्कारों का वर्णन करती है।




मरणोत्तर क्रियाओं-संस्कारों का वर्णन हमारे शास्त्र-पुराणों में आता है । आश्विन (गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) के कृष्ण पक्ष को हमारे हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के रूप में मनाया जाता है। श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में यथास्थान किया गया है । इस वर्ष श्राद्ध पक्ष : 01 सितम्बर से 17 सितंबर तक है।

सनातन हिन्दू धर्म में एक अत्यंत सुरभित पुष्प है कृतज्ञता की भावना, जो कि बालक में अपने माता-पिता के प्रति स्पष्ट परिलक्षित होती है । हिन्दू धर्म का व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा तो करता ही है, उनके देहावसान के बाद भी उनके कल्याण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है । 'श्राद्ध-विधि' इसी भावना पर आधारित है ।

मृत्यु के बाद जीवात्मा को उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ कर्मानुसार स्वर्ग नरक में स्थान मिलता है । पाप-पुण्य क्षीण होने पर वह पुनः मृत्युलोक (पृथ्वी) में आता है । स्वर्ग में जाना यह पितृयान मार्ग है एवं जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होना यह देवयान मार्ग है ।

पितृयान मार्ग से जाने वाले जीव पितृलोक से होकर चन्द्रलोक में जाते हैं । चंद्रलोक में अमृतान्न का सेवन करके निर्वाह करते हैं । यह अमृतान्न कृष्ण पक्ष में चंद्र की कलाओं के साथ क्षीण होता रहता है । अतः कृष्ण पक्ष में वंशजों को उनके लिए आहार पहुँचाना चाहिए, इसलिए श्राद्ध एवं पिण्डदान की व्यवस्था की गयी है । शास्त्रों में आता है कि अमावस्या के दिन तो पितृतर्पण अवश्य करना चाहिए ।

दिव्य लोकवासी पितरों के पुनीत आशीर्वाद से कुल में दिव्य आत्माएँ अवतरित हो सकती हैं । जिन्होंने जीवन भर खून-पसीना एक करके इतनी साधन-सामग्री व संस्कार देकर आपको सुयोग्य बनाया उनके प्रति सामाजिक कर्त्तव्य-पालन अथवा उन पूर्वजों की प्रसन्नता, ईश्वर की प्रसन्नता अथवा अपने हृदय की शुद्धि के लिए सकाम व निष्काम भाव से यह श्राद्धकर्म करना चाहिए ।

श्राद्ध करने की विधि जानने के लिए यहाँ से साहित्य खरीद भी सकते हैं।

श्राद्ध पितरों तक कैसे पहुँचता है?

आधुनिक विचारधारा एवं नास्तिकता के समर्थक शंका कर सकते हैं किः "यहाँ दान किया गया अन्न पितरों तक कैसे पहुँच सकता है ?

भारत की मुद्रा 'रुपया' अमेरिका में 'डॉलर' एवं लंदन में 'पाउण्ड' होकर मिल सकती है एवं अमेरिका के डॉलर जापान में येन एवं दुबई में दीनार होकर मिल सकते हैं । यदि इस विश्व की नन्हीं सी मानव रचित सरकारें इस प्रकार मुद्राओं का रुपान्तरण कर सकती हैं तो ईश्वर की सर्वसमर्थ सरकार आपके द्वारा श्राद्ध में अर्पित वस्तुओं को पितरों के योग्य करके उन तक पहुँचा दे, इसमें क्या आश्चर्य है ?

मान लो, आपके पूर्वज अभी पितृलोक में नहीं, अपित मनुष्य रूप में हैं । आप उनके लिए श्राद्ध करते हो तो श्राद्ध के बल पर उस दिन वे जहाँ होंगे वहाँ उन्हें कुछ न कुछ लाभ होगा।

मान लो, आपके पिता की मुक्ति हो गयी हो तो उनके लिए किया गया श्राद्ध कहाँ जाएगा ? जैसे, आप किसी को मनीआर्डर भेजते हो, वह व्यक्ति मकान या आफिस खाली करके चला गया हो तो वह मनीआर्डर आप ही को वापस मिलता है, वैसे ही श्राद्ध के निमित्त से किया गया दान आप ही को विशेष लाभ देगा।

दूरभाष और दूरदर्शन आदि यंत्र, हजारों किलोमीटर का अंतराल दूर करते हैं, यह प्रत्यक्ष है । इन यंत्रों से भी मंत्रों का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है ।

देवलोक एवं पितृलोक के वासियों का आयुष्य मानवीय आयुष्य से हजारों वर्ष ज्यादा होता है । इससे पितर एवं पितृलोक को मानकर उनका लाभ उठाना चाहिए तथा श्राद्ध करना चाहिए।

भगवान श्रीरामचन्द्रजी भी श्राद्ध करते थे । पैठण के महान आत्मज्ञानी संत हो गये श्री एकनाथ जी महाराज, पैठण के निंदक ब्राह्मणों ने एकनाथ जी को जाति से बाहर कर दिया था एवं उनके श्राद्ध-भोज का बहिष्कार किया था । उन योगसंपन्न एकनाथ जी ने ब्राह्मणों के एवं अपने पितृलोक वासी पितरों को बुलाकर भोजन कराया । यह देखकर पैठण के ब्राह्मण चकित रह गये एवं उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमायाचना की ।

जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान एवं धर्म के संस्कारों का सिंचन किया उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध से प्रसन्न करने के दिन ही हैं श्राद्धपक्ष । श्राद्धपक्ष आश्विन के (गुजरात-महाराष्ट्र में भाद्रपद के) कृष्ण पक्ष में की गयी श्राद्ध-विधि गया क्षेत्र में की गयी श्राद्ध-विधि के बराबर मानी जाती है । इस विधि में मृतात्मा की पूजा एवं उनकी इच्छा-तृप्ति का सिद्धान्त समाहित होता है ।

प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर देवऋण, पितृऋण एवं ऋषिऋण रहता  है। श्राद्धक्रिया द्वारा पितृऋण से मुक्त हुआ जाता है । देवताओं को यज्ञ-भाग देने पर देवऋण से मुक्त हुआ जाता है । ऋषि-मुनि-संतों के विचारों को, आदर्शों को अपने जीवन में उतारने से, उनका प्रचार-प्रसार करने से एवं उन्हें लक्ष्य मानकर आदरसहित आचरण करने से ऋषिऋण से मुक्त हुआ जाता है ।

गरुड़ पुराण (10.57-59) में आता है कि ‘समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दु:खी नहीं रहता । पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशुधन, सुख, धन और धान्य प्राप्त करता है ।

‘हारीत स्मृति’ में लिखा है :
न तत्र वीरा जायन्ते नारोग्यं न शतायुष:।
न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति यंत्र श्राद्धं विवर्जितम।।
अर्थात ‘जिनके घर में श्राद्ध नहीं होता उनके कुल-खानदान में वीर पुत्र उत्पन्न नहीं होते, कोई निरोग नहीं रहता । किसी की लम्बी आयु नहीं होती और उनका किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त होता ( किसी – न - किसी तरह की झंझट और खटपट बनी रहती है ) ।’

अगर आपके पास पैसे की व्यवस्था नहीं है और पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :
“हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ ।” ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगाएं । और गाय माता को चारा खिलाये तो भी पितर तृप्त होते हैं।

श्राद्ध पक्ष में रोज भगवदगीता के सातवें अध्याय का पाठ और 1 माला द्वादश मंत्र ”ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और एक माला "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा" की करनी चाहिए और उस पाठ एवं माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए इससे भी पितरों को तृप्ति मिलती हैं।

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