13 जून 2020
जम्मू कश्मीर के अनंतनाग जिले में आतंकियों ने 8 जून 2020 को कांग्रेस के हिंदू सरपंच अजय पंडिता (भारती) की गोली मारकर हत्या कर दी। अजय पंडिता की हत्या उस वक्त की गई, जब वो बागान में गए हुए थे। उनके परिवार में माँ-पिता के अलावा पत्नी और दो बेटियाँ हैं। आतंकियों ने पीछे से उन पर वार कर मौत की नींद सुला दिया। कश्मीर में हिंदुओं की हत्या कोई नई बात नहीं है और अजय पंडिता की हत्या भी इसीलिए हुई, क्योंकि वो एक कश्मीरी पंडित हिंदू थे और साथ ही वो एक जनसेवक के पद भी थे।
अजय पंडिता की हत्या को लेकर कश्मीरी पंडित जनर्लिस्ट दिव्या राजदान ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा, “कश्मीर में 700 साल से ज्यादा से कश्मीरी पंडितों का नरसंहार होता आ रहा है और हमारा जनेऊ हमेशा से रक्त में लिपटा रहा है। ये सिर्फ कश्मीरी पंडितों का ही नहीं सभी हिंदुओं का हाल रहा है। आज यह समय आ गया है कि हम समझें कि यह स्थिति काफी गंभीर है, क्योंकि इसका जो मूल कारण है, वो इस्लाम से आता है। अजय पंडिता की बात करें तो उन्होंने कोई ऐसा अपराध नहीं किया था कि उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाए। उनका अपराध बस इतना था कि उनका नाम अजय पंडिता था, वो जेनेऊधारी थे, इसीलिए उन्हें मौत की नींद सुला दिया गया।”
वो आगे कहती हैं, “कहीं न कहीं आज भी कश्मीर इस्लामिक स्टेट है, वहाँ पर मुस्लिमों का वर्चस्व है और वो नहीं चाहते हैं कि 1% भी हिंदू वहाँ पर रहे। वहाँ पर हिंदुओं के लिए कोई जगह नहीं है। अनुच्छेद 370 हट गया, लेकिन आज भी हिंदुओं की हालत जस की तस है। आज भी वहाँ 1990 की तरह की ही स्थिति है, जब हमारा 7 बार नरसंहार हुआ। अगर आज हम वहाँ पर गए तो हमारा 8वीं बार नरसंहार होगा। मगर मैं हमेशा से कहती हूँ कि हमारा 8वीं बार नरसंहार नहीं होगा, क्योंकि उसके लिए हम बचेंगे ही नहीं। हमें पूरी तरह से हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा।”
दिव्या राजदान का कहना है कि आज जो अजय पंडिता के साथ हुआ है, उसका विरोध करने के लिए जनआक्रोश की आवश्यकता है। पूरे भारत को एक होने की आवश्यकता है। इसके साथ ही उन्होंने सारे मीडिया हाउस, सभी हिन्दू भाई-बहनों और भारतीय नागरिकों से अपील की है कि वो इसके खिलाफ आवाज उठाएँ और लोगों को जागरुक करें, क्योंकि जो कश्मीर में हुआ है, वो सिर्फ कश्मीर की बात नहीं है, पूरे भारत की बात है। पूरे देश में किसी न किसी कोने में एक कश्मीर तैयार हो रहा है। इसके पीछे उन्होंने इस्लाम के माध्यम से लोगों को बहकाने, आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने, मारने-काटने, रेप करने के लिए उकसाना बताया।
दिव्या ने आगे कहा कि इसके पीछे जमात है, हुर्रियत के लोग हैं, पाकिस्तान है, इसके पीछे एक अंतर्राष्ट्रीय साजिश है, जो कि सरकार को पता है, लेकिन फिर भी इस पर काम नहीं हो रहा है। उन्होंने बताया कि कश्मीर को अगर इस्लामिक स्टेट कहें तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं होगी, क्योंकि यहाँ पर लगभग 99% मुस्लिम हैं, और 1% से भी कम में हिंदू, सिख आदि हैं। वो कहती हैं, “देश में एक इस्लामिक स्टेट है और वो कश्मीर है। तो इसे आप हल्के में मत लीजिए, जो चीज इराक और सीरिया में होती आ रही है वही कश्मीर में भी हो रहा है और यह 13वीं शताब्दी से हो रहा है। आज भी 21वीं शताब्दी में इराक और सीरिया में हो रहा है, कश्मीर में उसी का प्रतिबिंब दिख रहा है और यही असलियत है।”
इंडिया फॉर कश्मीर (India4Kasmir) के संस्थापक रोहित कचरू ने कहा कि इसमें चौंकने वाली तो कोई बात ही नहीं है। ये तो एक दिन होना ही था। अब तो हम लोगों ने इतनी लाशें देख ली, इतनी लाशों को कंधा दे दिया कि अब समझ में ही नहीं आता कि कैसे रिएक्ट करूँ? उन्होंने बताया कि जिस इलाके में ये घटना हुई है, वहाँ पर एक भी हिंदू राजनीतिक क्षेत्र में नहीं है, न तो एमएलए और न ही एमपी। एकमात्र हिंदू सरपंच अजय पंडिता थे, जिन्हें आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया।
वो आगे कहते हैं कि आतंकवादियों ने उन्हें मारा है तो इसका मतलब है कि वो कुछ अच्छा कर रहे होंगे। स्थानीय लोगों को डर होगा कि कल को कहीं ये एमएलए या एपमपी न बन जाए, कहीं ये लोगों की सोच को न बदल दे, लोगों के अंदर के भय को न मिटा दे। इसलिए इसे यहीं पर खत्म कर दो। जड़ से ही मिटा दो। स्थानीय लोग आतंकवादियों से संपर्क करते हैं और वो आकर गोली मारकर चले जाते हैं और कोई उन्हें पकड़ भी नहीं पाता है। इसके बाद सोशल मीडिया पर कश्मीरी मुसलमान इसकी तारीफ करते हैं कि वाह, बहुत अच्छा काम किया।
तो सोचने वाली बात है कि जब उन्हें हिंदू सरपंच तक बर्दाश्त नहीं तो फिर भला वो एमएलए एमपी क्या बनने देंगे? उन्होंने तो राज्य को इस्लामिक बना दिया है। वहाँ शरिया चलता है। वो कहते हैं, पीएम मोदी ने अनुच्छेद 370 हटाकर बहुत अच्छा काम किया है। इसके लिए मैं उनका सदा आभारी रहूँगा। लेकिन अभी भी जमीनी स्तर पर काफी कुछ करना बाकी है। हकीकत में वहाँ के लोगों की स्थिति आज भी नहीं सुधरी है। हम सरकार से कश्मीरी पंडितों के पॉलिटिकल एम्पोवेर्नमेंट की माँग करते हैं। डोमिसाइल से आप 1-2 लाख लोगों को तो वहाँ भेज दोगे, लेकिन होगा क्या? वो एक दो बम गिराकर सबको उड़ा देंगे। उनके लिए तो ये और भी अच्छा होगा। एक साथ इतने हिंदुओं को मारना तो जिहाद है उनके लिए।
रोहित आगे कहते हैं, “इसलिए हमें पॉलिटिकल एम्पॉवरमेंट चाहिए। जब आप एंग्लो इंडियन को नॉमिनेशन दे सकते हो तो हमें क्यों नहीं? जब तक हमारे पास पॉलिटिकल पावर नहीं होगी, हम कुछ नहीं कर पाएँगे। कल को यदि हम कश्मीर से चुनाव लड़ने का सोचें तो उस क्षेत्र से नहीं लड़ेंगे, क्योंकि जो अजय पंडिता के साथ हुआ है, वो हमारे साथ भी हो सकता है। इंसान तभी यह कर सकता है, जब वह अपने परिवार की मोह-माया त्याग दे और ये सोच ले कि वो मरने जा रहा है। इधर कुछ हिंदू भी बीजेपी कॉन्ग्रेस में ही उलझ रहे हैं। ये नहीं देखते कि एक हिंदू मरा है। उनका तो मकसद ही हमें उलझाना है, जो उन्होंने कर दिया। उनका बलिदान बेकार नहीं जाना चाहिए। सरकार को हमारी सुरक्षा के लिए सोचना चाहिए।”
इंडिया फॉर कश्मीर (India4Kasmir) की प्रवक्ता साक्षी मट्टू ने इसके पीछे की वजह डोमिसाइल सर्टिफिकेट (प्रोसिजर) रूल्स, 2020 को बताया। जिसके तहत 1989 के बाद कश्मीर घाटी से विस्थापित उन सभी हिंदू परिवारों को प्रदेश का स्थाई निवासी होने का प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा, जो प्रदेश से निकलकर देश के अन्य हिस्सों में बस गए। मगर, उनके बच्चों या परिवार के अन्य सदस्यों को राज्य का स्थाई निवासी होने का प्रमाण पत्र नहीं मिल पाया।
उन्होंने बताया कि 1990 में भी इसी तरह से शुरुआत हुई थी। पहले हिंदूओं के प्रतिष्ठित और नामी नेताओं को निशाना बनाया गया। वो कहती हैं, “अनंतनाग और शोपियाँ आतंकवादियों का हब है। अजय पंडिता वहाँ से चुनाव जीतकर सरपंच बने थे। तो अब सोचने वाली बात है कि वो वहाँ पर सेवा तो मुसलमानों की ही कर रहे थे न। क्योंकि हिंदू तो वहाँ पर 1% से भी कम है। इनके लिए हर हिंदू काफिर है और इनका किसी भी प्रतिष्ठित या शासन करने वाले पोस्ट पर रहना उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं है।”
साक्षी ने कहा, “370 के बाद इनकी कमर टूट गई है। सरकार ने बहुत ही उम्दा तरीके से इसे हैंडल किया है, मगर ये नया डोमिसाइल लॉ इन्हें पच नहीं रहा है, क्योंकि इससे वहाँ के विस्थापित हिंदुओं को फिर से स्थाई नागरिक का अधिकार मिल सकता है। ये बातें उन्हें खटक रही है। वो लोग दावा करते हैं कि कश्मीर इस्लामिक राज्य है, मगर कश्मीर का नाम ऋषि कश्यप के नाम पर पड़ा था तो जाहिर सी बात है कि हिंदू संस्कृति थी। मगर सच्चाई यही है कि कश्मीर का इस्लामीकरण हो चुका है। वह शरिया के हिसाब से चलता है, मगर अब डोमिसाइल आने से उन्हें लग रहा है कि उनका हुकूमत खत्म होने वाला है। इसलिए इस तरह की वारदात करके वो ये संदेश देना चाहते हैं कि कश्मीर में 1990 से लेकर अभी तक कुछ नहीं बदला है। अभी भी वहाँ पर हिंदुओं की स्थिति वैसी ही है। उन्होंने संदेश दिया है कि अगर आप यह सोचते हैं कि कोई गैर हिंदू यहाँ पर आकर रह सकता है, तो वो बात अपने दिलो-दिमाग से निकाल दीजिए।”
इसके साथ ही वो मानवाधिकार आयोग और वामपंथी लॉबी पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि ये कश्मीर में इंटरनेट बंद होने पर तो दुनिया सिर पर उठा लेते हैं, मुसलमानों के साथ कुछ होता है तो उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उछाला जाता है, मगर जब बात हिंदुओं के हत्या की होती है, तो ये इनकी डिक्शनरी में फिट ही नहीं होता है। ये उनके लिए मायने ही नहीं रखते है। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला पर भी निशाना साधा। आतंकवादियों ने स्पष्ट संदेश दिया कि जब सरपंच की हत्या हो सकती है, तो फिर आप कितने सुरक्षित हो, खुद सोच लो।
साथ ही उन्होंने इस तरफ भी इशारा किया कि हिंदू सरपंच की हत्या के बाद आप कश्मीरी मुसलमानों के सोशल रिएक्शन देखेंगे तो आप समझ जाएँगे कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? आतंकवादियों के हौसले वहाँ पर बुलंद क्यों हैं? उन्होंने कहा कि अगर आप एक टूरिस्ट की तरह कश्मीर जाएँगे तो आपकी काफी आवभगत करेंगे, क्योंकि उन्हें पैसा चाहिए, आप नहीं। अगर आप वहाँ के निवासी बनने की कोशिश करेंगे तो यही होगा। वहीं एक्टिविस्ट आशीष कौल ने बताया कि उन्हें लगातार इस्लामी आतंकवाद की तरफ से धमकियाँ मिलती रहती थी।
लेखक : रचना कुमारी
आपको बता दें कि प्राचीनकाल में कश्मीर हिन्दू संस्कृति का गढ़ रहा है। यहाँ पर भगवान शिव और सती पार्वती रहते थे । यहाँ झील में देवताओं का वास था, वहाँ एक राक्षस भी रहने लगा, जो देवताओं को सताने लगा, जिसका वैदिक ऋषि कश्यप और देवी सती ने मिलकर अंत कर दिया, ऋषि कश्यप द्वारा उस असुर को मारने से उस जगह का नाम कश्यपमर पड़ा, जो आगे चलकर कश्मीर नाम से जाना जाने लगा । लेकिन भारत के बंटवारे के बाद जवाहरलाल नेहरू की गलती के कारण आज कश्मीर पर आतंकवाद फेल गया और हिंदुओं की बुरी हालत हुई। वर्त्तमान केंद्र सरकार ने 370 हटाकर उनकी कमर तोड़ दी है लेकिन जब तक हिंदू एकजुट होकर कश्मीर के लिए समर्थन नही करेगा तब तक हिंदू वहाँ बसकर सुरक्षित नही रह पाएंगे इसलिए हिंदुओं को एक होने की अत्यंत आवश्यकता हैं।
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12 जून 2020
वामपंथी बिकाऊ मीडिया का एक ही लक्ष्य है कि ईसाई धर्मगुरु हो अथवा मुस्लिम धर्मगुरु हो उनके ऊपर कोई आरोप लगता है अथवा अपराध सिद्ध भी हो जाये तो उसको इस तरीके से दिखाएंगे की जैसे कोई हिंदु साधु-संत है क्योंकि उनका उद्देश्य है हिंदू संस्कृति के स्तम्भ साधु-संतों को बदनाम करके हिंदू धर्म को नीचा दिखाना और कुछ भोले हिन्दू उनकी बातों में आ जाते हैं और बिकाऊ मीडिया की बात को सच मानकर अपने धर्मगुरुओं को गलत बोलने लग जाते हैं।
मुस्लिमपरस्ती में मीडिया का एक धड़ा इस कदर मदमस्त है कि उसे गलती से कहीं कोई अपराधी मुस्लिम समुदाय का या कई बार ईसाई भी दिख गया तो ये पूरा गिरोह चटपट येन-केन प्रकारेण अर्थात कुछ भी करके पाठकों के सामने ऐसा स्पिन देने की कोशिश में लग जाएगा कि समुदाय विशेष का अपराध भी ढक जाए और कोई निरपराध समुदाय या व्यक्ति खास तौर पर हिन्दू धर्म प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सवालों के घेरे में भी आ जाए।
अभी ताजा मामला आजतक द्वारा प्रकाशित एक लेख का है। जिसमें विजुअल और लेख के गड़बड़झाले से असल अपराधी असलम को पूरी तरह से गायब कर लेख में ‘बाबा’ और ‘भक्त’ जैसे शब्दों का जानबूझकर प्रयोग करते हुए पाठकों को बरगलाने और समुदाय विशेष के असलम को बचाने की शातिराना कोशिश की गई है।
क्या है असल में मामला
मध्य प्रदेश के रतलाम के नयापुरा क्षेत्र में झाड़ फूँक और पानी फूँककर इलाज करने वाले असलम की मौत हाल ही में कोरोना से होने के बाद प्रशासन में हड़कंप मच गया है। क्योंकि जब प्रशासन ने असलम के संपर्क में आए लोगों की लिस्ट निकाली तो वो काफी लंबी-चौड़ी निकली। इसके बाद उन लोगों का सैंपल लिया गया, जिसमें से 19 लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं।
लेकिन, जब मीडिया में इस न्यूज़ की रिपोर्टिंग हुई तो पूरा गिरोह असलम को बाबा, भक्त, भगवा को आगे कर बचाने की हड़बड़ी में लग गया। इन्हीं 19 कोरोना पॉजिटिव लोगों को आजतक ने ‘भक्त’ और झाड़फूँक कर इलाज का ढोंग करने वाले असलम को ‘बाबा’ लिखा है।
मीडिया गिरोह का हिन्दूफ़ोबिक प्रपंच
इस तरह से स्पिन देने के मामले में वैसे ‘आजतक’ अकेला नहीं है, ‘नई दुनिया’, ललनटॉप, Ndtv, द वायर से लेकर ज़्यादातर वामपंथी धड़े के मीडिया समूह सालों से खुला-खेल फर्रुखाबादी की तरह अक्सर मुस्लिम आलिम, मौलवी, मुल्ला या किसी झाड़फूँक करने वाले फकीर या ढोंगी को ये बाबा, तांत्रिक, साधु आदि नामों और भगवा, त्रिशूल, त्रिपुण्ड के विजुअल में छिपाते आए हैं।
बहुत ही बारीकी से कभी प्रतीकात्मक तस्वीर के नाम पर तो कभी सीधे खुले में खेलते हैं कि कौन सी जनता जा रही है तहकीकात करने? अगर बाद में पता भी चला तो क्या हो जाएगा? क्योंकि आजतक कभी इन्हें अपनी इन हरकतों पर कोई बड़ा आउटरेज नहीं झेलना पड़ा।
इस तरह से फेक न्यूज़ के माध्यम से ही सही लेकिन समुदाय विशेष के शातिर मुस्लिम अपराधी को बचाने और बेहद सहिष्णु समुदाय अर्थात हिन्दुओं और उनके धार्मिक प्रतीकों को बदनाम करने का उनका मकसद लम्बे समय से पूरा होता आया है।
यहाँ एक बात विचारणीय है कि सोशल मीडिया के दौर में जब पब्लिक ही इन मीडिया गिरोहों के झूठ को पकड़ के इन्हें लताड़ती है तो भी ये पूरा वामपंथी इकोसिस्टम और मीडिया गिरोह उस सच्चाई उजागर करने वाले को ही हेट फ़ैलाने वाला कहकर अपने अपराधों और झूठ से पल्ला झाड़ती नजर आती है। बेनकाब होकर भी अपने किए की न कभी माँगते है और न ही इन्हें कोई अफ़सोस होता है।
गौरतलब है कि नई दुनिया समेत कई अन्य मीडिया पोर्टल ने भी इसी तरह से एक बार फिर से असलम के आगे ‘बाबा’ लगाकर इसे हिंदू स्पिन देने की कोशिश की। वैसे ये पहला मामला नहीं है, जब किसी अखबार ने ऐसा करने की कोशिश की हो।
इससे पहले भी आरोपित ‘मुस्लिमों’ की न केवल पहचान छिपाई गई, बल्कि इस चक्कर में हिंदुओं को बदनाम करने के लिए कई अन्य युक्तियाँ भी प्रयोग में लाई गई। जैसे हाल ही में रेप आरोपित एक और मुस्लिम आलिम असलम फैजी को ‘तांत्रिक’ बताया गया था और साथ ही जादू-टोना करने वाले मौलवी की जगह एक पुजारी का स्केच लगा दिया गया था।
मीडिया गिरोह के लोग शायद अभी भी चेत नहीं रहे हैं। नहीं तो ऐसी गलती जानबूझकर बार-बार नहीं दोहरातें वो भी तब जब इन्हें पता है कि कोई भी दो चार कीवर्ड टाइप कर तुरंत ही उनकी पोल खोल देगा।
संभवतः ऐसा करने का सबसे बड़ा कारण यही है कि इन मीडिया गिरोहों को पता है कि उनका एक फिक्स पाठक या दर्शक वर्ग है। जो ऐसी स्पिन दी हुई चीजों को हाथों-हाथ लपककर उन्हें वायरल कराता है जिससे इनके अतिप्रिय समुदाय विशेष के तमगे में उसके शांतिप्रिय होने का भाव तो जो बेकसूर है हिन्दू समुदाय उसके प्रतीकों और नामों के प्रति लोगों के अंदर घृणा और दुर्भावना फैलती है और ऐसा करना ही इनका असल मकसद है।
यह कोई पहली ऐसी घटना नही है जो ईसाई अथवा मुस्लिम धर्मगुरु को हिंदू धर्मगुरु बताकर बदनाम किया हो वामपंथी बिकाऊ मीडिया हमेंशा से यही करती आई है कि ईसाई और मुस्लिम धर्मगुरुओं के दुष्कर्मो को छुपाना और पवित्र निर्दोष हिंदू साधू-संतों को बदनाम करना क्योंकि उनको पता है हिंदू सहिष्णुता के नाम पर पलायनवादी और वर्ण व्यवस्था के नाम पर जातियों में बंट गए हैं इसके कारण ये वामपंथी हिंदू धर्म को हमेंशा बदनाम करते हैं अभी भी सर्तक हो जाये और कुछ नही कर सके तो बिकाऊ वामपंथी मीडिया का बहिष्कार करें, उसके अखबार नही लें, उसके वेबसाइट, सोशल मीडिया प्लेटफार्म और टीवी देखना बंद कर दें तो इनकी अक्कल ठिकाने आएगी फिर ये लोग हिन्दू धर्म के खिलाफ झूठ नही फेलायेंगें।
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11 मई 2020
हमारे देश में कई ऐसी पुस्तकें लिखी जाती हैं, जिनमें हमारी अपनी ही विरासत का मखौल उड़ाया जाता है। इनमें से एक ‘विश्व बुक्स’ प्रकाशन संस्थान भी है, जिसकी किताबें हिंदुत्व का मजाक बनाने के लिए ही लिखी जाती हैं। ‘विश्व बुक्स’ की अधिकतर पुस्तकें बच्चों और छात्रों के लिए लिखी जाती हैं। वो लोग ही इसे ज्यादा पढ़ते हैं। कई पुस्तकें वयस्कों के लिए भी हैं। इनमें से अधिकतर हिन्दू घृणा से सनी हुई किताबें हैं।
उदाहरण के लिए इसकी एक किताब का शीर्षक देखिए- “धार्मिक कर्मकांड- पंडों का चक्रव्यूह“, जिसमें ब्राह्मणों का मजाक बनाया गया है। इसमें हिन्दू धर्म की पूजा पद्धतियों को नकारते हुए इसे ब्राह्मणों की साजिश बताया गया है। यानी, ब्राह्मणों, साधुओं, हिन्दू धर्म और मंदिरों को बदनाम करने का ‘विश्व बुक्स’ ने बीड़ा उठाया हुआ है। राकेश नाथ द्वारा लिखित इस पुस्तक के कवर पर ही भगवा वस्त्रों में एक ब्राह्मण को कमण्डल लेकर भागते हुए दिखाया गया है।
जब छात्र व बच्चे इन चीजों को पढ़ते होंगें तो क्या वो अपने ही धर्म और समाज के प्रति हीन भावना से ग्रसित नहीं हो जाते होंगें? ब्राह्मणों को इस तरह से पेश किया गया है जैसे वो समाज के सबसे बड़े गुंडे हों। इसी तरह इसने जयप्रकाश यादव द्वारा लिखित पुस्तक ‘धर्म: एक धोखा’ नामक पुस्तक का प्रकाशन किया है, जिसमें धर्म को छल-कपट का विषय बताया गया है। इसके कवर पेज पर भी कमंडल लिए एक ब्राह्मण को दिखाया गया है।
राकेश नाथ की ही एक और पुस्तक है- “धर्म का शाप- आतंक, विभत्स्ता, क्रूरता व बर्बरता का जनक”, जिसमें व्यक्ति को धर्म के कारण दबे-कुचले होने की बात कही गई है। इसके अलावा हिन्दू समाज को अपने ही प्रति ‘हीनता’ से भरने के लिए हिन्दुओं को हार जाने वाला समुदाय बता कर एक पुस्तक में समेटा गया है और उसे नाम दिया गया है- :द हिस्ट्री ऑफ़ हिंदूज- द सागा ऑफ़ डिफिट्स, जिसमें हिन्दू समाज को डरपोक प्रदर्शित किया गया है।
इससे पहले एक ट्विटर यूजर अंजी ने खुलासा किया था कि उन्होंने अमेजॉन के जरिए विश्व बुक्स से श्रीमद्भगवद्गीता मँगाने का ऑर्डर दिया था लेकिन साथ में हिन्दूघृणा से सनी किताब भी आई। जब उनके ऑर्डर की डिलीवरी हुई, तो उसके साथ एक और बुक थी जिसका शीर्षक था- “भागवत पुराण कितना अप्रासंगिक।” उक्त पुस्तक पुराण का प्रतिवाद है और पाठकों को पुराण पढ़ने से रोकने के लिए स्पष्ट रूप से लक्षित है।
इसके अलावा अंजी बताते हैं कि ये पहली बार नहीं है, जब इस विक्रेता ने अमेजॉन के जरिए इस प्रकार की किताबें अपने कस्टमर को भेजने का काम किया। इससे पहले भी लोगों ने अमेजॉन पर रिव्यू लिखे हैं, जहाँ सत्यम एस नाम का यूजर लिखता है कि किताब विक्रेता ने उसे भी एक किताब फ्री भेजी थी। जिसमें हिंदुत्व औऱ श्रीमद्भगवद्गीता के ख़िलाफ़ विचार प्रस्तुत थे।
हालाँकि अपने रिव्यू में कस्टमर ने उस किताब का नाम नहीं लिखा था और कहा था कि वह उस किताब को लिखने वाले लेखक का प्रचार नहीं करना चाहता। लेकिन विक्रेता से कहना चाहता है कि जब कोई पवित्र ग्रंथ पढ़ना चाहे, अपने विचारों को शुद्ध करना चाहे, शांत जीवन जीना चाहे, तो तुम होते कौन हो नकारात्मता फैलाने वाले? अपने रिव्यू में यूजर ने विक्रेता के ख़िलाफ़ एक्शन लेते हुए उसे ब्लॉक करने की माँग की थी।
अंजी ने भी अपने थ्रेड में आगे लिखा कि यदि पुराण मैंने ऑर्डर किया है, तो इसका मतलब मैं उसे पढ़ना चाहता हूँ, विक्रेता को कोई अधिकार नहीं है कि वह मेरे धर्मग्रंथ का प्रतिवाद भेजकर मेरे विश्वास का मजाक उड़ाए।
एमेजोन ने इससे पूर्व भी हिन्दू देवताओं के चित्रोंवाली चप्पलें, अंतर्वस्त्र आदि बेचने के लिए रखे थे तथा हिन्दुओं के विरोध के पश्चात वह हटा लिए गए।
इस तरह की घटना कई उपभोक्ताओं के साथ हो चुकी है। कई लोगों को ऐसी किताबें भेजी गई हैं। किसी ने सुपरहीरोज की किताब ऑर्डर की तो उन्हें ये मिला, किसी ने अंग्रेजी की किताब मँगाई तो उन्हें बाइबल पहुँची। जाहिर है, वो भले ही मुफ्त में चीजें दे दें लेकिन अमेज़ॉन हिन्दुओं के ख़िलाफ़ घृणा को भड़काता ही है, हर हाल में। ऐसे पाठकों को ख़ासकर निशाना बनाया जा रहा है, जो आस्तिक हैं, धर्म में विश्वास रखते हैं।
इसी तरह की एक पुस्तक है “हम अध्यात्मवादी होते हैं“, जिसमें डॉक्टर सुरेंद्र कुमार शर्मा नामक व्यक्ति ने दावा किया है कि हिन्दू अपनी प्राचीन संस्कृति का ढोल पीटते रहते हैं और उनका अलग अध्यात्मवाद है। साथ ही इसमें लिखा है कि अध्यात्मवादी होना एक ‘षड्यंत्र’ था, जिसे ऋषियों, नायकों, अवतारों और मुनियों ने बुना था। दावा किया गया है कि उन्होंने ऐसा इसीलिए किया, ताकि विशेष वेश बना कर अपने स्वार्थों की पूर्ति कर सकें।
इस पुस्तक के डिस्क्रिप्शन में लिखा है कि ये पाठकों को ‘अध्यात्मवाद की भूलभुलैया’ से बाहर लेकर आएगा। राकेश नाथ की एक अन्य पुस्तक में रामचरितमानस की रचना करने वाले कवि तुलसीदास को ही बदनाम किया गया है। इस पुस्तक का ही नाम है, “तुलसीदास- द मिसगाईडर ऑफ हिन्दू सोसाइटी“, अर्थात उन्हें हिन्दू समाज को पथभ्रष्ट करने वाला व्यक्ति बताया गया है। इसमें लिखा है कि हिन्दुओं को विदेशी सलीमशाहियीं के जूतों के नीचे कीड़े-मकोड़ों की तरह रौंदा जाता था।
तुलसीदास के साहित्य को ‘आडम्बर’ घोषित कर दिया गया है और उन्हें हिन्दुओं को पुरुषार्थ छोड़ कर राम भरोसे रहने के लिए प्रेरित करने वाला व्यक्ति बताया गया है। इस पुस्तक में इन चीजों की ‘पोल खोलने’ का दावा किया गया है। इसी लेखक की “हम हिन्दुओं में क्या नैतिकता है?” नामक पुस्तक में पूछा गया है कि भारत में अवतार क्यों पैदा हुए हैं और उनकी लम्बी लाइनें क्यों लग गई हैं? इसमें विदेशी आक्रांताओं के हमले का कारण हिन्दुओं के विवेकहीन पाखंडों, आडम्बरों और मान्यताओं को बताया गया है।
इस पुस्तक में हिन्दुओं की सही स्थिति का आकलन करने का दावा करते हुए नैतिकता सिखाने की बात कही गई है। इसी लेखक की एक अन्य पुस्तक ‘ब्राह्मण यूनियन‘ को भी ‘विश्व बुक्स’ ने ही पब्लिश किया है और इसमें भी ब्राह्मणों को बदनाम किया गया है। “क्या हिन्दू नारी आज भी उपेक्षित है?“- इस पुस्तक में स्त्रियों की स्थिति को जबरदस्ती धर्म से जोड़ कर दिखाने की कोशिश की गई है। “धर्म का धंधा” भी ऐसी ही एक पुस्तक है।
एक पुस्तक में तो हिन्दुओं के धर्मग्रंथों को ही हमारे ऊपर लादा गया एक बोझ बता दिया गया है। “कितने अप्रासंगिक हैं धर्मग्रन्थ?” में हमारी अपनी ही प्राचीन पुस्तकों को कूड़ा-करकट की तरह दिखाया गया है। “जैन धर्म ग्रंथों की कितनी वास्तविकता?” नामक पुस्तक में रीति-रिवाजों को मनुष्य को विवेकहीन बनाने का एक जरिया बताया गया है। लिखा है कि आदेश और प्रवचन इत्यादि अनुयायियों को बरगलाने का एक जरिया हैं।
बता दें कि ‘विश्व बुक्स’ दिल्ली प्रेस ग्रुप का ही एक एसोसिएट है, ऐसा उसकी ही वेबसाइट पर बताया गया है। दिल्ली प्रेस 9 भाषाओं में 32 मैगजीन्स का प्रकाशन करता है। ‘विश्व बुक्स’ का मुख्यालय गाजियाबाद के साहिबाबाद में स्थित है। अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये किस नेक्सस का काम है। ऐसी किताबों को जबरदस्ती लोगों को पढ़वाना एक ऐसी मुहिम का हिस्सा है, जिससे लोग अपने ही धर्म और इतिहास से विमुख हो जाएँ।
इससे पहले चंपक पत्रिका के अक्टूबर 2019 संस्करण के एक हिस्से में बच्चों से कश्मीर में अपने जैसे अन्य बच्चों के नाम पत्र लिखने और उनसे वहाँ की स्थिति के बारे में पूछने के लिए अपील की गई थी। पत्रिका के इस संस्करण में कहा गया है कि कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त किए जाने के बाद घाटी में स्थिति ठीक नहीं है। हजारों सैनिकों और सेना की बटालियनों को कश्मीर भेजा गया है और जगह-जगह कर्फ्यू लगा हुआ है।
लिखा गया था कि यहाँ तक कि टेलीफोन लाइनों और इंटरनेट सेवाओं को भी निलंबित कर दिया गया है। मतलब उन पर बड़ा अत्याचार हो रहा है। आप हमें पत्र भेंजे हम उन्हें निश्चित रूप से कश्मीर के बच्चों तक पहुँचाएँगे। ऐसा करके बच्चों में ये जहर बोने की कोशिश है कि देखिए वहाँ के बच्चे किस हाल में हैं। कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि इससे पहले वहाँ के क्या हालात थे। इसी तरह ‘दिल्ली प्रेस ग्रुप्स’ की किताबें प्रपंच फैलाती हैं।
इसकी सबसे पुरानी पत्रिका ‘द कारवाँ’ के एज़ाज अशरफ की एक घटिया रिपोर्ट में, उन्होंने हमारे शहीद सैनिकों की ‘जाति का विश्लेषण’ किया था। कारवाँ का एजेंडा तो ऐसा है, जिसमें उन्होंने उन बलिदानी सैनिकों को भी नहीं छोड़ा, जिनकी पाकिस्तान जैसे आतंकी स्टेट द्वारा प्रायोजित आतंकी संगठन जैश द्वारा निर्मम हत्या कर दी गई थी। इसने अमित शाह, पीएम मोदी, एनएसए डोभाल और उनके बेटे पर कई घटिया आधारहीन रिपोर्ट प्रकाशित किए हैं।
जनता की मांग है कि सरकार विश्व बुक के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाए और अमेज़ॉन पर भी हिंदू विरोधी बिकने वाली किताबो ओर सामग्री पर रोक लगाए।
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