Tuesday, June 30, 2020

भारत ने चाइनीज ऐप क्यों बैन किया ? उसके विकल्प में देशी ऐप भी जानिए

30 जून 2020

🚩भारत सरकार ने 59 चाइनीज मोबाइल ऐप पर बैन लगा दिया जिसकी सरहाना पूरा देश कर रहा है लेकिन कुछ लोगो के पेट मे दर्द भी हो रहा है और सरकार को कोश रहे है इससे साफ पता चलता है कि चीन के कुछ एजेंट भारत मे भी है और चीनी app बेन करते ही उनका चेहरा भी सामने आ गया वे भी देश ने पहचान लिया जबकि कई भारतीय कंपनियां इसे भारत सरकार का स्वागत योग्य कदम बता रही हैं। टिकटॉक से प्रतिस्पर्धा में रहने वाले वीडियो चैट ऐप रोपोसो की मालिकाना कंपनी इनमोबी ने कहा कि ये कदम उसके प्लेटफॉर्म के लिए बाज़ार को खोल देगा। वहीं भारतीय सोशल नेटवर्क शेयरचैट ने भी सरकार के इस कदम का स्वागत किया है।

🚩भारत ने क्यों लगाया बैन ?

भारत सरकार ने अपने इस फैसले को आपातकालीन उपाय और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ज़रूरी कदम बताया है। भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ट्वीट कर कहा, यह पाबंदी सुरक्षा, संप्रभुता और भारत की अखंडता के लिए जरूरी है। हम भारत के नागरिकों के डेटा और निजता में किसी तरह की सेंध नहीं चाहते हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि हमें कई स्रोतों से इन ऐप्स को लेकर शिकायत मिली थी। एंड्रॉयड और आईओएस पर ये ऐप्स लोगों के निजी डेटा में भी सेंध लगा रहे थे। इन ऐप्स पर पाबंदी से भारत के मोबाइल और इंटरनेट उपभोक्ता सुरक्षित होंगे। यह भारत की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता के लिए जरूरी है। भारत सरकार ने अपने बयान में चीन या चीनी कंपनी का नाम नहीं लिया है।

🚩आपको बता दे की चीन से सरहद पर तनातनी के बीच केंद्र सरकार ने सोमवार रात दुनिया के सबसे पॉपुलर ऐप्स मे से एक टिकटोक और यूसी ब्राउजर सहित 59 चाइनीज मोबाइल ऐप को भारत में बैन कर दिया गया है। ऐसे में अगर आप अपने फोन से चाइनीज ऐप्स को हटाना चाह रहे हैं और उनके विकल्प की तलाश में हैं तो हम आपका यह काम आसान कर देते हैं। आज हम आपको उन ऐप्स के बारे में बता रहे हैं जो आपके फोन में मौजूद चाइनीज ऐप्स की जगह ले सकते हैं।

इन ऐप्स को प्ले स्टोर और ऐपल ऐप स्टोर से यूजर्स डाउनलोड कर पाएंगे।  

🚩ये हैं नये विकल्प

● TikTok की जगह Bolo Indya, Roposo जैसे ऐप्स ले सकते हैं।

● PUBG Mobile की जगह Call of Duty, Garena Free Fire जैसे ऐप्स ले सकते हैं।

● Helo की जगह ShareChat का उपयोग की किया जा सकता है। साथ ही Mitron, Dubsmash, Funimate का यूज कर सकते हैं।

● ShareIt, Xender की जगह Files by Google का उपयोग कर जैसे ऐप्स से बचा जा सकता है।

● UC Browser की जगह Google Chrome को इस्तेमाल किया जा सकता है।

● CamScanner की जगह Adobe Scan, Microsoft Lens इस समय अधिक इस्तेमाल होने वाले ले सकता है।

● BeautyPlus की जगह B612 Beauty और Filter Camera, Candy Camera का इस्तेमाल कर सकते हैं।

● Club Factory और Shein जैसे ऐप्स के बजाए Flipkart, Amazon India, Koovs आदि पर ख़रीदारी के लिए जाएं।

● App Lock को छोड़कर Norton App Lock अपना सकते हैं।

● VivaVideo की जगह KineMaster, Adobe Premier Rush को डाउनलोड कर सकते हैं।

● Periscope को LiveMe, Kwai के अलटेरनेट की तरह उपयोग करें।

● Google News आपके फोन में UC News की जगह ले सकता है।

● Parallel Space की जगह App Cloner का उपयोग कर सकते हैं।

🚩चीन App को बेन करने पर जनता भारत सरकार की भूरी-भूरी सराहना कर रही है और जरूरी भी है क्योंकि आज जो चीन हमारे साथ धोखा दे रहा है कल भारतवासियों की प्राइवेसी और डेटा ले जाएगी फिर हमारे खिलाफ कुछ भी कर सकते है इसलिए अच्छा है चाइनीज ऐप्प बंद कर दिया और हमारा कर्तव्य है कि इसमें भारत सरकार को सहयोग दे और चीनी सामान का भी धीरे धीरे बहिष्कार करते जाए इससे चीन की आर्थिक कमर टूट जाएगी हमारे देश के खिलाफ आँख उठाकर फिर नही देखेगा लेकिन बस शर्त यही है कि सभी देशवासी इसमे अपना योगदान दे तब संभव हो पायेगा।

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Monday, June 29, 2020

कोरोना काल मे जेलों में कैदियों की भीड़ खतरनाक साबित हो रही हैं!

29 जून 2020

🚩हम ये मान लेते हैं कि जो जेल में हैं, वे सभी अपराधी हैं। कुछ साल पहले ज्ञात हुआ कि देश में लगभग दो - तिहाई कैदी वास्तव में अभी अपराधी करार नहीं दिए गए। वे 'अंडर ट्रायल्स' हैं। यानी उनका और उनके गुनाह का फैसला नहीं हुआ है। वे अदालती निर्णय के इंतजार में जेल में समय बिता रहे हैं। 2015 के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 40% अंडर ट्रायल्स ने जेल में एक साल से कम समय बिताया था। लगभग 20% ऐसे थे जिन्होंने 1-2 साल कैद में बिताए। कई बार ऐसा भी हुआ कि कैदी को खुद पर लगे इल्जाम के लिए जो सजा हो सकती है, उससे भी ज्यादा समय जेल में बिता दिया, बिना अदालती फैसला आए। इनमें कुछ स्वामी असिमानन्द जैसे हैं, जिन्हें अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया। न्यायिक प्रक्रिया ने ही अन्याय किया।
🚩ज्यादातर अंडर ट्रायल्स कम पढ़े-लिखे, कमजोर तबके के लोग हैं। समाज में उन्हें गुनहगार ही माना जाएगा और निजी जिंदगी में, रोजगार में दिक्कतें आ सकती हैं। लेकिन अंडर ट्रायल्स के सामने और भी दुःख हैं। देश में कई राज्यों में जेलों में उनकी क्षमता से बहुत ज्यादा कैदी हैं। इससे कैद की जिंदगी और कठिन हो जाती है और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। 2015 की सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 115 कैदियों की मौत ख़ुदकुशी से हुई।

🚩आज अंडर ट्रायल्स की बात करना क्यों जरूरी है? हमें पता है कि कोरोना वायरस एक व्यक्ति से दूसरे में फैलता है और इससे बचने के लिए आपस में दूरी रखना जरूरी है। इस वजह से जेलों में कैद लोगों को भी बहुत खतरा है, खासकर जहां क्षमता से ज्यादा कैदी हैं। जेलों में भीड़ की समस्या केवल भारत में ही नहीं, ईरान, अमेरिका, इंग्लैंड में भी है। इन देशों में धीरे - धीरे सहमति बनी है कि इस समय कैदियों को रिहा कर देना न सिर्फ मानवीयता के नजरिये से सही है बल्कि इसमें ही समझदारी है।

🚩ईरान में करीब 50 हजार कैदियों को मार्च में छोड़ा गया, अमेरिका में ट्रम्प पहले इसका विरोध कर रहे थे लेकिन वहां भी कई राज्यों ने कैदी रिहा किए। भारत में खबरें आ रही हैं कि जेलों में कैदी कोरोना पॉजिटिव पाए गए। इस हफ्ते दिल्ली की मंडोली जेल में कोरोना से पहले कैदी की मौत का तब पता चला जब मौत के बाद जांच हुई। उसके साथ रहने वाले 17 कैदी भी पॉजिटिव मिलें। जब देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है, तो जेलों में क्या हाल होगा। मार्च में सर्वोच्च न्यायलय ने आदेश दिया कि हर राज्य में कमेटी गठित हो ताकि जेलों में भीड़ घटाने पर विचार हो। दिल्ली के तिहाड़ से मार्च में चार सौ कैदी रिहा किए गए थे और येरवडा, पुणे में हजार कैदियों को रिहा किया गया। इस सब पर सरकार की तरफ से और तीव्रता की जरूरत है। 

🚩तमिलनाडु के थूथूकुड़ी में एक पिता-पुत्र को लॉकडाउन के उल्लंघन पर टोका गया तो उन्होंने दुकान तो बंद कर ली लेकिन अपशब्द इस्तेमाल करने पर गिरफ्तार किया गया और इतना टॉर्चर किया कि उनकी मौत हो गई। न्यायिक प्रक्रिया को हमेशा से सत्ता ने राजनैतिक मकसदों के लिए इस्तेमाल किया है। महामारी में सत्ता का ऐसा उपयोग अनैतिक, अमानवीय है। लेखिका - रितिका खेड़ा, अर्थशास्त्री

🚩डब्ल्यूएचओ की सलाह 

🚩कोरोना के चलते डब्ल्यूएचओ ने भी सलाह दी है कि सभी देश, जेलों में भीड़ कम करने के उपाय ढूंढें, रिहाई, नियमित स्वास्थ्य जांच और मिलने आने वालों पर रोक। निकारागुआ में कैदियों को जेल से घर पर कैदी रखा गया हैं। रिहाई में अंडर ट्रायल्स, वृद्ध कैदियों, छोटे और अहिंसक गुनाहों के लिए कैद लोगों, अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त, को प्राथमिकता दी जा रही हैं।

🚩जो देशद्रोह जैसे गंभीर आरोप में जेल में हैं उनको रिहा नही कर सकते है लेकिन जो अंडर ट्रायल में है और उन पर गंभीर आरोप नही है, गर्भवती महिलाएं, वृद्ध लोग है जिनके आचरण जेल में अच्छे है उनको जमानत अथवा पेरोल मिलनी चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

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Sunday, June 28, 2020

भामाशाह से धनाढ्य लोग कुछ सीखें, देश व धर्म की रक्षा के लिए कैसा त्याग किया था?

28 जून 2020

🚩दान की चर्चा होते ही भामाशाह का नाम स्वयं ही मुँह पर आ जाता है। देश रक्षा के लिए महाराणा प्रताप के चरणों में अपनी सब जमा पूँजी अर्पित करने वाले दानवीर भामाशाह का जन्म अलवर (राजस्थान) में 28 जून, 1547 को हुआ था। उनके पिता श्री भारमल्ल तथा माता श्रीमती कर्पूरदेवी थीं। श्री भारमल्ल राणा साँगा के समय रणथम्भौर के किलेदार थे। अपने पिता की तरह भामाशाह भी राणा परिवार के लिए समर्पित थे।

🚩एक समय ऐसा आया जब अकबर से लड़ते हुए राणा प्रताप को अपनी प्राणप्रिय मातृभूमि का त्याग करना पड़ा। वे अपने परिवार सहित जंगलों में रह रहे थे। महलों में रहने और सोने चाँदी के बरतनों में स्वादिष्ट भोजन करने वाले महाराणा के परिवार को अपार कष्ट उठाने पड़ रहे थे। राणा को बस एक ही चिन्ता थी कि किस प्रकार फिर से सेना जुटाएँ, जिससे अपने देश को मुगल आक्रमणकारियों के चंगुल से मुक्त करा सकें।

🚩इस समय राणा के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या धन की थी। उनके साथ जो विश्वस्त सैनिक थे, उन्हें भी काफी समय से वेतन नहीं मिला था। कुछ लोगों ने राणा को आत्मसमर्पण करने की सलाह दी, पर राणा जैसे देशभक्त एवं स्वाभिमानी को यह स्वीकार नहीं था। भामाशाह को जब राणा प्रताप के इन कष्टों का पता लगा, तो उनका मन भर आया। उनके पास स्वयं का तथा पुरखों का कमाया हुआ अपार धन था। उन्होंने यह सब राणा के चरणों में अर्पित कर दिया। इतिहासकारों के अनुसार उन्होंने 25 लाख रु. तथा 20,000 अशर्फी राणा को दीं। राणा ने आँखों में आँसू भरकर भामाशाह को गले से लगा लिया।

🚩राणा की पत्नी महारानी अजवान्दे ने भामाशाह को पत्र लिखकर इस सहयोग के लिए कृतज्ञता व्यक्त की। इस पर भामाशाह रानी जी के सम्मुख उपस्थित हो गये और नम्रता से कहा कि मैंने तो अपना कर्त्तव्य निभाया है। यह सब धन मैंने देश से ही कमाया है। यदि यह देश की रक्षा में लग जाये, तो यह मेरा और मेरे परिवार का अहोभाग्य ही होगा। महारानी यह सुनकर क्या कहतीं, उन्होंने भामाशाह के त्याग के सम्मुख सिर झुका दिया।

🚩उधर जब अकबर को यह घटना पता लगी, तो वह भड़क गया। वह सोच रहा था कि सेना के अभाव में राणा प्रताप उसके सामने झुक जायेंगे, पर इस धन से राणा को नयी शक्ति मिल गयी। अकबर ने क्रोधित होकर भामाशाह को पकड़ लाने को कहा। अकबर को उसके कई साथियों ने समझाया कि एक व्यापारी पर हमला करना उसे शोभा नहीं देता। इस पर उसने भामाशाह को कहलवाया कि वह उसके दरबार में मनचाहा पद ले ले और राणा प्रताप को छोड़ दे, पर दानवीर भामाशाह ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अकबर से युद्ध की तैयारी भी कर ली। यह समाचार मिलने पर अकबर ने अपना विचार बदल दिया।

🚩भामाशाह से प्राप्त धन के सहयोग से राणा प्रताप ने नयी सेना बनाकर अपने क्षेत्र को मुक्त करा लिया। भामाशाह जीवन भर राणा की सेवा में लगे रहे। महाराणा के देहान्त के बाद उन्होंने उनके पुत्र अमरसिंह के राजतिलक में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इतना ही नहीं, जब उनका अन्त समय निकट आया, तो उन्होंने अपने पुत्र को आदेश दिया कि वह अमरसिंह के साथ सदा वैसा ही व्यवहार करे, जैसा उन्होंने राणा प्रताप के साथ किया है।

🚩आज के हिन्दू समाज को अपने बच्चों को लोरियों में राणा प्रताप और भामाशाह के त्याग और तपस्या की कहानियाँ अवश्य सुनानी चाहिए। ताकि उन्हें यह मालूम हो सके कि उनके पूर्वजों ने कितने त्याग कर अपने वैदिक धर्म की रक्षा की थी।

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Saturday, June 27, 2020

वन्दे मातरम् का इतिहास और उसके अंधे विरोध की हकीकत

27 जून 2020

🚩आज बंकिम चंद्र चटर्जी का जन्मदिवस है। वे प्रसिद्द गीत वन्दे मातरम के रचियता थे। हमारे देश के कुछ मुस्लिम भाई बहकावे में आकर वन्दे मातरम गान का बहिष्कार कर देते हैं। उनका कहना है कि वन्दे मातरम का गान करना इस्लाम की मान्यताओं के खिलाफ है। दुनिया में शायद भारत ही ऐसा पहला देश होगा जिसमें राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रीय गान अलग अलग हैं। हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि अल्पसंख्यकों को प्रोत्साहन देने के नाम पर, तुष्टिकरण के नाम पर राष्ट्रगीत के अपमान को कुछ लोग आंख बंदकर स्वीकार कर लेते हैं।

🚩भारत जैसे विशाल देश को हजारों वर्षों की गुलामी के बाद आजादी के दर्शन हुए थे। वन्दे मातरम वह गीत है, जिससे सदियों से सुप्त भारत देश जग उठा और अर्ध शताब्दी तक भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरक बना रहा। इस गीत के कारण बंग-भंग के विरोध की लहर बंगाल की खाड़ी से उठ कर इंग्लिश चैनल को पार करती हुई ब्रिटिश संसद तक गूंजा आई थी। जो गीत गंगा की तरह पवित्र, स्फटिक की तरह निर्मल और देवी की तरह प्रणम्य है उस गीत का तुष्टिकरण की भेंट चढ़ाना, राष्ट्रीयता का परिहास ही तो है। जबकि इतिहास इस बात का गवाह है कि भारत का विभाजन इसी तुष्टिकरण के कारण हुआ था। इस लेख के माध्यम से हम वन्दे मातरम के इतिहास को समझने का प्रयास करेंगे।

🚩1. वन्दे मातरम के रचियता बंकिम चन्द्र

🚩बहुत कम लोग यह जानते हैं की वन्दे मातरम के रचियता बंकिम बाबु का परिवार अंग्रेज भगत था। यहाँ तक की उनके पैतृक गृह के आगे एक सिंह की मूर्ति बनी हुई थी। जिसकी पूँछ को दो बन्दर खिंच रहे थे, पर कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। यह सिंह ब्रिटिश साम्राज्य का प्रतीक था। जबकि बन्दर भारतवासी थे। ऐसी मानसिकता वाले घर में बंकिम जैसे राष्ट्रभक्त का पैदा होना। निश्चित रूप से उस समय की क्रांतिकारी विचारधारा का प्रभाव कहा जायेगा। आनंद मठ में बंकिम बाबु ने वन्देमातरम गीत को प्रकाशित किया। आनंद मठ बंगाल में नई क्रांति के सूत्रपात के रूप में उभरा था।

🚩2. वन्दे मातरम और कांग्रेस

🚩कांग्रेस की स्थापना के द्वितीय वर्ष 1886 में ही कोलकाता अधिवेशन के मंच से कविवर हेमचन्द्र द्वारा वन्दे मातरम के कुछ अंश मंच से गाये गए थे। 1896 में कांग्रेस के 12वें अधिवेशन में रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा गाया गया था। लोकमान्य तिलक को वन्दे मातरम में इतनी श्रद्धा थी कि शिवाजी की समाधी के तोरण पर उन्होंने इसे उत्कीर्ण करवाया था। 1901 के बाद से कांग्रेस के प्रत्येक अधिवेशन में वन्दे मातरम गाया जाने लगा।

🚩6 अगस्त 1905 को बंग भंग के विरोध में टाउन हॉल में सभा हुई। सभा में वन्दे मातरम को विरोध के रूप में करीब तीस हज़ार भारतीयों द्वारा गाया गया था। स्थान स्थान पर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और स्वदेशी कपड़ा और अन्य वस्तुओं का उपयोग भारतीय जनमानस द्वारा किया जाने लगा। यहाँ तक की बंग भंग के बाद वन्दे मातरम संप्रदाय की स्थापना भी हो गई थी। वन्दे मातरम की स्वरलिपि रविन्द्र नाथ टैगोर जी ने दी थी।

🚩3. राष्ट्र कवि/लेखक और वन्दे मातरम

🚩राष्ट्रीय कवियों और लेखकों द्वारा अनेक रचनाएँ वन्दे मातरम को प्रसिद्द करने के लिए रची गई जो उसके महत्व को  सिद्ध करती हैं।

🚩इनमे से है स्वदेशी आन्दोलन चाई आत्मदान, वन्दे मातरम गाओ रे भाई – श्री सतीश चन्द्र, मागो जाय जेन जीवन चले, शुधु जगत माझे तोमार काजे, वन्दे मातरम बले- श्री कालि प्रसन्न काव्य विशारद, भइया देश का यह क्या हाल, खाक मिटटी जौहर होती सब, जौहर हैं जंजाल बोलो वन्दे मातरम-श्री कालि प्रसन्न काव्य विशारद आदि। अक्टूबर 1905 में ‘वसुधा’ में जितेंदर मोहम बनर्जी ने वन्दे मातरम पर लेख लिखा था। 1906 के चैत्र मास के बम्बई के ‘बिहारी अखबार’ में वीर सावरकर ने वन्दे मातरम पर लेख लिखा था। 22 अप्रैल को मराठा में ‘तिलक महोदय’ ने वन्दे मातरम पर ‘शोउटिंग ऑफ़ वन्दे मातरम’ के नाम से लेख लिखा था।

🚩कुछ ईसाई लेखक वन्दे मातरम की प्रसिद्धि से जलभून कर उसके विरुद्ध अपनी लेखनी चलाते हैं जैसे
पिअरसन महोदय ने तो यहाँ तक लिख दिया कि मातृभूमि की कल्पना ही हिन्दू विचारधारा के प्रतिकूल है। बंकिम महोदय ने इसे यूरोपियन संस्कृति से प्राप्त किया है।

🚩अपनी जन्म भूमि को माता या जननी कहने की गरिमा तो भारत वर्ष में उस काल से स्थापित है। जब धरती पर ईसाइयत या इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था।

🚩वेदों में इस तथ्य को इस प्रकार ग्रहण किया गया हैं –

🚩वह माता भूमि मुझ पुत्र के लिए पय यानि दूध आदि पुष्टि प्रद पदार्थ प्रदान करे। – अथर्ववेद १२/१/२०

🚩भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ। – अथर्ववेद १२-१-१५

🚩वाल्मीकि रामायण में “जननी जन्मभूमि ” को स्वर्ग के समान तुल्य कहा गया है।

🚩ईसाई मिशनरियों ने तो यहाँ तक कह डाला कि वन्दे मातरम राजनैतिक डकैतों का गीत हैं।

🚩4. वन्दे मातरम और बंगाल में कहर

🚩बंगाल की अंग्रेजी सरकार ने कुख्यात सर्कुलर जारी किया कि अगर कोई छात्र स्वदेशी सभा में भाग लेगा अथवा वन्दे मातरम का नारा लगाएगा। तो उसे स्कूल से निकाल दिया जायेगा।

🚩बंगाल के रंगपुर के एक स्कूल के सभी 200 छात्रों पर वन्दे मातरम का नारा लगाने के लिए 5-5 रुपये का दंड किया गया था।

🚩पूरे बंगाल में वन्दे मातरम के नाम की क्रांति स्थापित हो गई थी। इस संस्था से जुड़े लोग हर रविवार को वन्दे मातरम गाते हुए चन्दा एकत्र करते थे। उनके साथ रविन्द्र नाथ टैगोर भी होते थे। यह जुलुस इतना बड़ा हो गया कि इसकी संख्या हजारों तक पहुँच गई थी। 16 अक्टूबर 1906 को बंग भंग विरोध दिवस बनाने का फैसला किया गया था। उस दिन कोई भी बंगाली अन्न-जल ग्रहण नहीं करेगा। ऐसा निश्चय किया गया। बंग भंग के विरोध में सभा हुई और यह निश्चय किया गया की जब तक चूँकि सरकार बंगाल की एकता को तोड़ने का प्रयास कर रही है। इसके विरोध में हर बंगाली विदेशी सामान का बहिष्कार करेगा। हर किसी की जबान पर वन्दे मातरम का नारा था। चाहे वह हिन्दू हो, चाहे मुस्लिम हो, चाहे ईसाई हो।

🚩वन्दे मातरम से आम जनता को कितना प्रेम हो गया था। इसका उदहारण हम इस प्रसंग से समझ सकते है। किसी गाँव में, जो ढाका जिले के अंतर्गत था, एक आदमी गया और कहने लगा कि मैं नवाब सलीमुल्लाह का आदमी हूँ। इसके बाद वन्दे मातरम गाने वाले और नारे लगाने वालो की निंदा करने लगा। इतना सुनते ही पास की एक झोपड़ी से एक बुढ़िया झाड़ू लेकर बाहर आई और बोली वन्दे मातरम गाने वाले लड़को ने मुझे बचाया हैं। वे सब राजा बेटा है। उस वक्त तेरा नवाब कहाँ था?

🚩5. फूलर के असफल प्रयास

🚩फूलर उस समय बंगाल का गवर्नर बना। वह अत्यन्त छोटी सोच वाला व्यक्ति था। उसने कहा कि मेरी दो बीवी हैं। एक हिन्दू और दूसरी मुस्लिम। मुझे दूसरी ज्यादा प्रिय है। फुलर का उद्देश्य हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ना था। फुलर के इस घटिया बयान के विपक्ष में क्रान्तिकारी और कवि अश्वनी कुमार दत ने अपनी कविता में लिखा-

🚩“आओ हे भारतवासी! आओ, हम सब मिलकर भारत माता के चरणों में प्रणाम करें। आओ! मुसलमान भाइयों, आज जाती-पाती का झगड़ा नहीं है। इस कार्य में हम सब भाई भाई है।इस धुल में तुम्हारे अकबर है और हमारे राम है।”

🚩फूलर ने बंगाल के मुस्लिम जमींदारों को भड़का कर दंगा करवाने का प्रयास किया पर उसके प्रयास सफल न हुए।

🚩अंग्रेज सरकार के मन में वन्दे मातरम को लेकर कितना असंतोष था कि उन्होंने सभी विद्यालयों को सरकारी आदेश जारी किया। सभी छात्र अपनी अपनी नोटबुक में 500 बार यह लिखे कि “वन्दे मातरम चिल्लाने में अपना समय नष्ट करना मुर्खता और अभद्रता हैं।”

🚩6. वारिसाल में कांग्रेस का अधिवेशन और वन्दे मातरम

🚩14 अप्रैल 1906 के दिन वारिसाल में कांग्रेस के जुलुस में वन्दे मातरम का नारा लगाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। शांतिपूर्वक निकल रहे जुलुस पर पुलिस ने निर्दयता से लाठीचार्ज किया। निर्दयता की हालत यह थी कि एक मकान की खूंटी पर वन्दे मातरम लिखा था। तो उस मकान को गिरा दिया गया। 10-11 वर्ष का एक बालक रसोई में वन्देमातरम गा रहा था। तो उसे घर से निकलकर कोर्ट के सामने चाबुक से पीटा गया। दो हलवाइयों की दुकान पर यह नारा लिखा था तो उनके सर फोड़ दिए गए। सुरेंदर नाथ बनर्जी की गिरफ्तार कर 200 रुपये जुर्माने और अलग से कोर्ट की अवमानना पर 200 रुपये का दंड लेकर छोड़ दिया गया। इतनी निर्दयता के बावजूद भीड़ वन्दे मातरम का गान करते हुए अपने सभापति महोदय रसूल साहिब को लेकर सभास्थल पर पहुँच गई।

🚩मंच पर हिन्दू नेताओं के साथ मुस्लमान नेताओं में सर्वश्री इस्माइल चौधरी, मौलवी अब्दुल हुसैन, मौलवी हिदायत बक्श, मौलवी हमिजुद्दीन अहमद, मौलवी दीन मुहम्मद, मौलवी मोथार हुसैन, मौलवी मोला चौधरी उपस्थित थे। वन्दे मातरम के गान से सभा का आरम्भ हुआ था। सभापति महोदय ने देश की आज़ादी के लिए सभी हिन्दू-मुसलमान को आपस में मिलकर लड़ने का आवाहन किया।

🚩इतने में सुरेंदर नाथ बनर्जी अपने साथियों के साथ सभा स्थल पर जा पहुँचे। जिससे वन्दे मातरम के गगन भेदी नारों के साथ सम्पूर्ण सभा स्थल गूँज उठा। सभा में ब्रिटिश सरकार के द्वारा वन्दे मातरम को लेकर किये जा रहे अत्याचार को घोर निंदा की गई। जिस स्थान पर सुरेंदरनाथ बनर्जी को वन्दे मातरम गाने के लिए गिरफ्तार किया गया था। उस स्थान पर वन्दे मातरम स्तंभ बनाने के प्रस्ताव को सभा में पारित किया गया। अगले दिन के सभी समाचार पत्र वरिसाल के वन्दे मातरम संघर्ष की प्रशंसा और अंग्रेज सरकार की निंदा से भरे पड़े थे। वारिसाल की घटना के कारण लार्ड कर्जन को भारत के वाइसराय के पद से त्याग देना पड़ा।

🚩7. वन्दे मातरम और योगी अरविन्द

🚩वन्दे मातरम के नाम से पत्र आरंभ हुआ जिसे पहले विपिन चन्द्र पाल ने सम्पादित किया बाद में श्री अरविन्द ने। श्री अरविन्द ने इस पत्र से यह भली भांति सिद्ध कर दिया की तलवार से ज्यादा तीखी लेखनी होती है और उसकी ज्वाला से क्रूर शासन भी भस्मीभूत हो सकता है। अरविन्द के पत्र के बारे में स्टेट्समैन अखबार लिखता है कि “अखबार की हर लाइन के बीच भरपूर राजद्रोह दीखता है। पर वह इतनी दक्षता से लिखा होता है कि उस पर क़ानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती।”

🚩श्री अरविन्द ने वन्दे मातरम गीत के बारे में कहा है कि बंकिम ने ही स्वदेश को माता की संज्ञा दी है। वन्दे मातरम संजीवनी मंत्र है। हमारी स्वाधीनता का हथियार वन्दे मातरम है। उन्होंने कहा कि वन्दे मातरम साधारण गीत नहीं है। बल्कि एक ऐसा मंत्र है जो हमें मातृभूमि की वंदना करने की सीख देता है। उनकें इस व्यक्तव्य के कारण ही बंग-भंग के क्रांतिकारियों के लिए वन्दे मातरम का यह नारा वह गीत मंत्र बन गया।

🚩अपनी पत्नी को 30 अगस्त 1908 को एक पत्र में श्री अरविन्द लिखते है- “मेरा तीसरा पागलपन यह है कि जहाँ दुसरे लोग स्वदेश को जड़ पदार्थ, खेत, मैदान, पहाड़, जंगल और नदी समझते हैं। वहां मैं अपनी मातृभूमि को अपनी माँ समझता हूँ। उसे अपनी भक्ति अर्पित करता हूँ और उसकी पूजा करता हूँ।माँ की छाती पर बैठ कर अगर कोई उसका खून चूसने लगे तो बेटा क्या करता है? क्या वह चुपचाप बैठा हुआ भोजन करता है? या स्त्री पुरुष के साथ रंगरलिया बनता है? या माँ को बचाने के लिए दौड़ जाता है?”

🚩श्री अरविन्द को गिरफ्तार कर लिया गया। उससे देश में वन्दे मातरम की लहर चल पड़ी।

🚩1906 को धुलिया, महाराष्ट्र में वन्दे मातरम के नारे से सभा ही रूक गयी। नासिक में वन्दे मातरम पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। जिस जिस ने प्रतिबन्ध को तोड़ा, तो उसे पीटा गया गया। कई गिरफ्तारियाँ हुई। इस कांड का तो नाम ही वन्दे मातरम कांड बन गया।

🚩फरवरी 1907 को तमिलनाडू में मजदूरों ने हड़ताल कर दी और ब्रिटिश नागरिकों को घेर कर उन्हें भी वन्दे मातरम के नारे लगाने को बाध्य किया।

🚩मई 1907 को रावलपिंडी में भी स्वदेशी के नेताओं की गिरफ़्तारी के विरोध में युवकों ने वन्दे मातरम के नारे को लगाते हुए लाठियाँ खाई।

🚩26 अगस्त,1907 को वन्दे मातरम के एक लेख के कारण बिपिन चन्द्र पाल को अदालत में सजा हुई। तो उनका स्वागत हजारों की भीड़ ने वन्दे मातरम से किया। यह देखकर पुलिस अँधाधुंध लाठीचार्ज करने लगी। यह देखकर एक 15 वर्षीय बालक सुशील चन्द्र सेन ने एक पुलिस वाले मुँह पर मुक्का मार दिया। उस वीर बालक को 15 बेतों की सजा सुनाई गई थी। सुशील की इस सजा की प्रशंसा करते हुए संध्या में एक लेख छपा “सुशील की कुदान भरी, फिरंगी की नानी मरी”

🚩सुशील युगांतर पार्टी के सदस्य थे। उनकी चर्चा सुरेंदर नाथ बनर्जी तक पहुँची तो उन्होंने उसे सोने का तमगा देकर सम्मानित किया।

🚩अब युगांतर पार्टी के सदस्यों ने सुशील को सजा देने वाले अत्याचारी किंग्स्फोर्ड को यमालय भेजने की ठानी। यह कार्य प्रफुल्ल चन्द्र चाकी और खुदी राम बोस को सोंपा गया। षड़यंत्र असफल हो जाने पर चाकी ने आत्महत्या कर ली और खुदीराम ने फाँसी का फन्दा चूम कर सबसे कम उम्र में शहीद होने का सम्मान प्राप्त किया। इसी केस में श्री अरविन्द को भी सजा हुई थी।

🚩8. वन्दे मातरम और राष्ट्रीय झंडा

🚩कांग्रेस का लम्बे समय तक कोई निजी झंडा नहीं था। कांग्रेस के अधिवेशन में यूनियन जैक को फहराकर भारत के अंग्रेज भगत प्रसन्न हो जाते थे। 1906 में कोलकता में कांग्रेस के अधिवेशन में भगिनी निवेदिता ने सबसे पहले वज्र अंकित झंडे का निर्माण किया जिस पर वन्दे मातरम लिखा हुआ था। उसके बाद 18 अक्टूबर, 1907 को जर्मनी के स्टुअर्ट नगर में मैडम बीकाजी कामा ने वन्दे मातरम गीत के बाद राष्ट्रीय झंडा फहराया जिस पर वन्दे मातरम अंकित था। अपने भाषण में मैडम कामा ने पहले अंग्रेजों द्वारा भारत में किये जा रहे अत्याचारों का विवरण दिया जिससे की सुनने वालो के रोंगटे खड़े हो गए। उसके बाद भारत का झंडा निकालती हुई वह बोली " यह है भारतीय राष्ट्र का स्वतंत्र झंडा। यह देखिये फहरा रहा है। भारतीय देश भक्तों के रक्त से यह पवित्र हो चूका है। सदस्यगण, मैं आपसे अनुरोध करती हूँ कि आप खड़े होकर भारत की इस स्वतंत्र पताका का अभिवादन करे।”

🚩सर्व प्रथम झंडे पर वन्दे मातरम को अंकित करने से पाठक उस काल में वन्दे मातरम के भारतीय जन समुदाय पर प्रभाव को समझ सकते है।

🚩9. वन्दे मातरम का भारत व्यापी प्रभाव

🚩मोतीलाल नेहरु ने जवाहरलाल नेहरु को 1905 में एक पत्र में लिखा था कि हम ब्रिटिश भारत के इतिहास की सबसे संकट पूर्ण अवधि से गुजर रहे है। इलाहाबाद में भी वन्दे मातरम आम अभिनन्दन बन गया हैं। यदि अभियान चलता रहा तो यहाँ लौटने पर भारत को, जब तुम गये, उससे बिलकुल बदला पाओगे।

🚩25 नवम्बर 1905 को ट्रिब्यून अखबार लिखता है कि “बंगाल में लोगो ने वन्दे मातरम का जयघोष शुरू किया हैं। इन शब्दों का अर्थ है माता की वन्दना। इसमें कुछ भी भयंकर नहीं है। फिर दमनशाही द्वारा वन्दे मातरम की मनाही क्यूँ है? अब तो पंजाब में सुशिक्षित लोग एक दुसरे से भेंट होने पर वन्दे मातरम कहकर अभिनन्दन करते है। इस प्रकार सारे हिंदुस्तान में असंख्य मुखों से निरन्तर निकलते वन्दे मातरम को बंद करने में सरकार को कितने सिपाहियों और अधिकारीयों की आवश्यकता होगी? पूर्वी बंगाल की जनता के साथ सारे हिंदुस्तान की सहानभूति हैं।

🚩जब हैदराबाद के निज़ाम के धर्मान्ध अत्याचारों के विरुद्ध आर्य समाज ने 1939 में हैदराबाद सत्याग्रह किया था तब जेल में रामचन्द्र के नाम से एक आर्यवीर को बंद कर दिया गया था। अपनी क्रूरता की धाक जमाने के लिए जेल में आर्य सत्याग्रहियों पर अत्याचार किया जाता था। जेल में दरोगा जब भी वीर रामचंद्र को बेंत मारते तो उनके मुख से वन्दे मातरम का नारा निकलता था। दरोगा जब तक मारते रहते जब तक की रामचंद्र बेहोश न हो गए पर उनके मुख से बेहोशी में भी नारा निकलता रहा। उनका जेल से छूटने के बाद आजीवन नाम ही रामचंद्र वन्देमातरम हो गया। ऐसा अनुराग था देश और धर्म प्रेमियों को वन्दे मातरम के साथ।

🚩10. वन्दे मातरम विदेश में

🚩जुलाई 1909 को मदन लाल धींगरा को लन्दन में जब फाँसी दी गई तो उनके अंतिम शब्द थे “वन्दे मातरम”।

🚩1909 को जिनेवा से एक पत्रिका वन्दे मातरम का का प्रकाशन आरंभ हुआ। अपने प्रथम अंक में पत्रिका ने कहा ‘विदेशी अत्याचार के विरुद्ध हमारे बहादुर और बुद्धिमान नेताओं ने बंगाल में जो यशस्वी अभियान शुरू किया है। वन्दे मातरम के माध्यम से हम उसे पूर्ण शक्ति और दृढ़ता के साथ में चलायेगे।

🚩कनाडा से आ रहे जहाज कमागातामारू के झंडे पर वन्दे मातरम, सत श्री अकाल और अल्लाह हो अकबर के नारे लिखे थे।

🚩साउथ अफ्रीका से जब महात्मा गाँधी भारत लौटे तो उन्होंने भारत आकर वन्दे मातरम गीत की प्रशंसा करी थी।(हरिजन 1 जुलाई 1938)

🚩1922 में जब गोखले अफ्रीका गए तो हजारों भारत वासियों ने उनका स्वागत वन्दे मातरम से किया था।

🚩1937 में तुर्की के अदान नगर में भारतीय मस्जिद पर वन्दे मातरम लिखा था। मस्जिद पर भारतीय तिरंगा लगा था और हर नमाज के साथ वन्दे मातरम का घोष किया जाता था।

11. भारतीय क्रांतिकारी और वन्दे मातरम

🚩सन 1920 में लाला लाजपत राय ने दिल्ली से दैनिक वन्दे मातरम का प्रकाशन शुरू किया था।

🚩सन 1930 में चन्द्र शेखर आजाद अपने पिता को पत्र लिखने समय वन्दे मातरम सबसे ऊपर लिखते हैं।

🚩सन 1920 का असहयोग आन्दोलन, नमक सत्याग्रह में भी वन्दे मातरम का बोलबाला था।

🚩रामचंद्र बिस्मिल ने काकोरी कांड में फाँसी पर लटकने से पहले वन्दे मातरम कहा था।

🚩चटगांव सशस्त्र संघर्ष में वीर सूर्यसेन को फाँसी देने से पहले जब भी मार पड़ती तो वे वन्दे मातरम का जय घोष करते थे। उन्हें इतना मार गया था कि वे बेहोश हो गए और अचेत अवस्था में ही उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया था।

🚩इसके अतिरिक्त अनेक सन्दर्भ हमें भारत की आज़ादी की लड़ाई में वन्दे मातरम को प्रेरणा के स्रोत्र के रूप में पाते हैं। डॉ . विवेक आर्य

🚩इस लेख से स्पष्ट होता है कि अगर कोई वन्दे मातरम का विरोध करता है तो वे भी देश विरोधी में ही गिना जाएगा क्योंकि अंग्रेज भी वन्दे मातरम को पसंद नही करते थे इसलिए वन्दे मातरम का विरोध करने वाले लोगो से सावधान रहें वे देशहित में कार्य नही कर सकते।

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