07 मार्च 2021
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अतराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्रेम प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं की उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
अतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) 28 फरवरी 1909 को पहली बार अमेरिका में सेलिब्रेट किया गया था। सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने न्यूयॉर्क में 1908 में गारमेंट वर्कर्स की हड़ताल को सम्मान देने के लिए इस दिन का चयन किया ताकि इस दिन महिलाएं काम के कम घंटे और बेहतर वेतनमान के लिए अपना विरोध और मांग दर्ज करवा सके।
1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में इसे अन्तर्राष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था, क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था।
1913-14 में महिला दिवस युद्ध का विरोध करने का प्रतीक बन कर उभरा । रुसी महिलाओं ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस फरवरी माह के आखिरी दिन पर मनाया और पहले विश्व युद्ध का विरोध दर्ज किया । यूरोप में महिलाओं ने 8 मार्च को पीस ऐक्टिविस्ट्स को सपोर्ट करने के लिए रैलियां की।
1917 में रूस की महिलाओं ने, 8 मार्च महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिये हड़ताल पर जाने का फैसला किया । यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी । जार ने सत्ता छोड़ी, अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिया । उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर । इन दोनो की तारीखों में कुछ अन्तर है । जुलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखरी इतवार 23 फरवरी को था जबकि ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च थी । इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है । इसी लिये 8 मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
1975 में यूनाइटेड नेशन्स ने 8 मार्च का दिन सेलिब्रेट करना शुरू किया । 1975 वह पहला साल था जब अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।
2011 में अमेरिका के पूर्व प्रेजिडेंट बराक ओबामा ने 8 मार्च को महिलाओं का ऐतिहासिक मास कहकर पुकारा । उन्होंने यह महीना पूरी तरह से महिलाओं की मेहनत, उनके सम्मान और देश के इतिहास को महत्वपूर्ण आकार प्रकार देने के लिए उनके प्रति समर्पित किया।
महिला उत्थान मंडल द्वारा देशभर में सौंपें जायेंगें ज्ञापन:-
महिला उत्थान मंडल महिला कार्यकर्ताओं ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी का दर्जा प्रदान किया गया है।
“यस्य नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता”
अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है वहां पर ईश्वर स्वयं निवास करते हैं।
एक समय था जब हमारे देश में भारतीय नारी को देवी और लक्ष्मी का रूप मानकर देश की महिलाओं को पूजा जाता था, लेकिन पश्चात्य संस्कृति का अंधानुसरण करके टीवी, फिल्मों, मीडिया, अश्लील उपन्यास आदि के कारण इन्सान अपने चरित्र से इस कदर नीचे गिर गया है कि उसके लिए स्त्री एक पूजनीय और देवी का रूप न होकर केवल उपभोग की वस्तु समझी जाने लगी है।
उन्होंने आगे कहा कि महिलाओं को लेकर अनेक प्रकार की कुरीतियों का भी जन्म हुआ है जैसे दहेज, कन्या भ्रूण हत्या, उपभोग की वस्तु समझना ऐसी तमाम बुराईयाँ जन्म ले चुकी हैं, इसे रोकने के लिए हिंदू संत आशारामजी बापू ने महिला सशक्तिकरण के लिए अनेक कार्य किये हैं। कॉल सेंटरों, ऑफिसों में हो रहे महिला शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद की तथा महिलाओं में आत्मबल, आत्मविश्वास, साहस, संयम-सदाचार के गुणों को विकसित करने के लिए महिला उत्थान मंडलों का गठन किया है जिससे जुड़कर कई महिलाएँ उन्नत हो रही हैं।
उन्होंने आगे कहा कि बापू आशारामजी द्वारा बनाये गए महिला उत्थान मंडल द्वारा महिलाओं के लिए महिला सर्वांगीण विकास शिविर व सेवा-साधना शिविरों का आयोजन, गर्भपात रोको अभियान, तेजस्विनी अभियान, युवती एवं महिला संस्कार सभाएं, दिव्य शिशु संस्कार अभियान, मुफ्त चिकित्सा सेवा, मातृ-पितृ पूजन दिवस, कैदी उत्थान कार्यक्रम, घर-घर तुलसी लगाओ अभियान, गौ रक्षा अभियान व दरिद्रनारायण सेवा आदि समाजोत्थान के कार्य किये जाते हैं। बापूजी ने नारियों का आत्मबल जगाकर उनका वास्तविक उत्थान किया है । उनकी अनुपस्थिति के कारण उपरोक्त विश्वव्यापी सेवाकार्यों में अपूर्णीय क्षति हो रही है । उन्होंने महिलाओं की अस्मिता की रक्षा के लिए भोगवादी सभ्यता से लोहा लिया एवं अथकरूप से अनेक प्रयास किये, इसलिए उन्हें शीघ्र रिहा किया जाये।
महिला जागृति, नारी सशक्तिकरण व महिलाओं के सर्वांगीण विकास हेतु देशभर में महिला उत्थान मंडलों का गठन किया गया है, जिनके अंतर्गत नारी उत्थान के अनेक
चलाये जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि महिला सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का दुरूपयोग हो रहा है । कानून की आड़ में कई निर्दोष पुरुषों को फँसाया जा रहा है जिसके कारण उस पूरे परिवार को सजा भुगतनी पड़ती है । इसका विरोध करना बहुत जरूरी है।
विश्व की 4 प्राचीन संस्कृतियों में से केवल भारतीय संस्कृति ही अब तक जीवित रह पायी है और इसका मूल कारण है कि संस्कृति के आधारस्तम्भ संत-महापुरुष समय-समय पर भारत-भूमि पर अवतरित होते रहे हैं, लेकिन आज निर्दोष संस्कृति रक्षक संतों को अंधे कानूनों के तहत फँसाया जा रहा है।
निर्दोष संतों पर हो रहे षड्यंत्र की भर्त्सना करते हुए महिला कार्यकर्ताओं ने कहा कि ' बापू आशारामजी ने संस्कृति-रक्षा एवं संयम-सदाचार के प्रचार-प्रसार में अपना पूरा जीवन अर्पित कर दिया । मातृ-पितृ पूजन दिवस व वसुधैव कुटुम्बकम् की लुप्त हो रही परम्पराओं की पुनः शुरूआत कर भारतीय संस्कृति के उच्च आदर्शों को पुनर्जीवित किया है । दो महिलाओं के बेबुनियाद आरोपों को मुद्दा बनाकर ऐसे महान संत को सालो से जेल में रखा गया है, क्या यही न्याय है ? हम करोड़ो बहनें जो उनके समर्थन में खड़ी हैं हमारी आवाज को क्यों नहीं सुना जा रहा है ?
मडल की सदस्याओं का कहना है कि बढ़ रहे पाश्चात्य कल्चर के अंधानुकरण के कारण आज महिला वर्ग के जीवन में संस्काररूपी जड़ें खोखली होती नजर आ रही हैं । ऐसे में अब हमें पुनः अपने मूल की ओर लौटने की आवश्यकता है। इतिहास साक्षी है कि यह कार्य सदा संतों-महापुरुषों के द्वारा ही सम्पन्न होता रहा है। अपनी ही संस्कृति एवं देश के हित के लिए, बालकों, महिलाओं एवं युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए, समस्त देशवासियों की भलाई के लिए अपना जीवन होम देनेवाले पूज्य संत आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित महिला उत्थान मंडल द्वारा 8 मार्च विश्व महिला दिवस के निमित मंडल के महत्वपूर्ण मुदों पर ध्यान केंद्रित करने व बापू आशारामजी की रिहाई की मांग करते हुए और महिलाओं की पवित्रता के लिए देशभर में मुख्य मंत्री , राज्यपाल ,कलेक्टर या अन्य उच्च अधिकारी को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
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